hindi latest sex story - दिल दोस्ती और दारू

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rajkumari
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Re: hindi latest sex story - दिल दोस्ती और दारू

Unread post by rajkumari » 20 Jan 2017 09:50

वो लोग हद पार कर रहे थे और मैं उस वक़्त यही सोच रहा था कि क्या मैं कल का सूरज देख पाउन्गा ? और यदि मैं कल का सूरज देखूँगा भी तो किस हाल मे ? उस वक़्त मुझे ये भी नही मालूम था कि कल मैं कॉलेज मे रहूँगा
या किसी हॉस्पिटल मे अपने पूरे जिस्म मे पट्टी बँधवा कर पड़ा रहूँगा ?

मैने पुश अप करना शुरू कर दिया लेकिन तभी किसी ने मेरे पैंट का बेल्ट उतारने की कोशिश की और मैं वही रुक गया और खुद को ज़मीन से सटा दिया....

"ये आप लोग...."मैं कह भी नही पाया था कि मेरी कमर पर कसकर कई लात एक साथ पड़े , पूरा शरीर दर्द से कांप उठा और आख़िर मे मेरी आँख से आँसू निकले....धूल के कण मेरे पूरे जिस्म से चिपके हुए थे,...जब लड़को की लातों की बारिश थमी तो उन लड़कियो ने अपनी नोक वाली सॅंडल से मेरी कमर पर दस्तक की और वो पल ऐसा था जिसे मैं आज भी नही भुला सकता....उस दिन ना जाने कितने दिनो बाद मैं रोया था........

"चल फिर शुरू हो जा और याद रखना ,इस बार मत रुकना...."

मैने रोते हुए अपने हाथ ज़मीन से टिकाए और फिर पुश अप मारने लगा, इस बार एक लड़के ने अपने हाथ से मेरे पैंट मे लगी बेल्ट को निकाला और पैंट का बटन खोल दिया.....लेकिन मैं नही रुका क्यूंकी मुझे मालूम था कि रुकने का मतलब फिर से वही मार खाना....पूरे शरीर से बेतहासा पसीना निकल रहा था जिससे ज़मीन पर मेरी छाप बनी हुई थी.....जब मैं पुश अप कर रहा था तो उसी वक़्त विभा ने मेरी पैंट को नीचे खिसका दिया और खिलखिला के हँसने लगी.....

"रुकना मत बे..."
उसके बाद उन्होने मेरी कमर के नीचे के सारे कपड़े उतार दिए और मैं थक हार कर वही लेट कर रोने लगा....वो सब बहुत देर तक वही खड़े हँसते रहे ,मुझे गालियाँ देते रहे और फिर जब उनका मन भर गया तो वो वहाँ से चले गये........

यदि ये सब कॉलेज के अंदर होता तो शायद आज वो सब जैल मे होते,लेकिन ऐसा नही हुआ था....और कॉलेज के बाहर जो कुछ भी हुआ उसकी रेस्पॉन्सिबिलिटी कॉलेज की नही होती....मैं ग्राउंड से उठकर अपने हॉस्टिल की तरफ चला, उस वक़्त मैं अंदर से टूट चुका था...रोते-रोते आँसू ख़तम हो गये थे, आँखे सुर्ख लाल थी.....

ग्राउंड से निकलकर मैं सीधे हॉस्टिल की तरफ बढ़ा, रूम का दरवाज़ा पहले से ही आधा खुला हुआ था,जिसे पूरा खोलकर मैं अंदर घुसा....

"क्या हुआ...."घबराई हुई आवाज़ मे अरुण ने पुछा लेकिन मैं कुछ नही बोला या फिर कहे कि मुझमे कुछ बोलने की हिम्मत ही नही थी ,उस वक़्त यदि मैं कुछ बोलता तो यक़ीनन मैं रो पड़ता...इसलिए मैं उसी हालत मे सीधे जाकर अपने बेड पर लेट गया और अपनी आँखे बंद कर ली....पूरा शरीर दर्द और उन चुड़ेलों के सॅंडल की खरोचो से जल रहा था....

"ये क्या हो गया,...वो भी मेरे साथ...."उस वक़्त ना तो मुझे एश का ख़याल था और ना ही दीपिका मॅम का....उस वक़्त मैं ये भी भूल गया था मेरे भाई ने ये शहर छोड़ने से पहले कुछ नसीहत दी थी, दिल और दिमाग़ मे था तो सिर्फ़ बदला....मैं कुछ बड़ा धमाका करना चाहता था जिसकी चपेट मे आज ग्राउंड मे मौजूद सभी लोग आ जाए....

"कल सबकी माँ चोद दूँगा, फिर जो होगा देखा जाएगा....."कमर बहुत ज़ोर से दर्द कर रहा था,लेकिन फिर भी मैं उठकर बैठ गया....
" तू आराम कर अरमान..."

"बहुत सह लिया इन चूतियो को, तू देख मैं कल इनकी कैसे लेता हूँ...."खड़े होकर मैने कहा और अपना शर्ट उतारने लगा,...
"अबे किस चीज़ से मारा है तुझे..."

"वो पाँचो चुड़ैल सॅंडल पहन कर नाच रही थी ,साली रंडिया...."गुस्से से काँपते हुए मैं बोला और नहाने के लिए वहाँ से सीधे बाथरूम की तरफ की गया.....

उस रात कोई सीनियर हॉस्टिल मे नही आया और उस दिन मुझे हॉस्टिल मे सबसे अजीब जो बात लगी वो ये थी कि भू(बी-एच-यू)उस दिन रात भर किसी से फोन मे बात करता रहा ,वो किसी जुगाड़ की बात कर रहा था.....उस रात नींद मुझसे कोसो दूर थी, मैं बस यही चाह रहा था कि जल्दी से जल्दी सुबह हो और मैं एमकेएल से मिलू....
.
"माँ कसम सुन कर दुख हुआ...."हर रोज़ की तरह वरुण आज भी मुझसे पहले उठा और चाय बनाने के लिए गॅस ऑन करते हुए बोला...."ला दूध की बोतल पकड़ा...."

"अरुण, उधर दूध की बोतल रखी हुई है, ला दे..."

अरुण से मैने दूध की बोतल माँगी थी लेकिन उसने मुझे दारू की बोतल पकड़ा दी और तो और वो बोला कि एक कप चाय मेरे लिए भी बना दे....

"अबे उल्लू , मुझे हनी सिंग समझ रखा है क्या, जो चिप्स मे दारू डालकर खाउन्गा और फिर दोनो हाथ उपर करके उपर-उपर वाला गाना गाउन्गा,..."
"मतलब..."सर खुजाता हुआ वो बोला...

"मतलब की चाय दूध से बनती है शराब से नही...."

"ओह सॉरी ! ध्यान ही नही रहा...."

इसके बाद अरुण ने दूध का बोतल मुझे पकड़ाया और मैने वरुण को,, चाय बनाते हुए वरुण ने मुझसे पुछा....
"तो फिर उसके अगले दिन कुछ धमाका किया ,या एक बार फिर उनसे मार खाया..."

"उसके अगले दिन..."मैं उस वक़्त थोड़ा और सोना चाहता था,लेकिन वरुण को कुछ ज़्यादा ही उत्सुकता थी आगे जानने की ,इसलिए मुझे अपने यादों के समुंदर मे एक बार फिर तैरना पड़ा......
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"आज क्या बोलेगा उनसे, वो सब तो हर दिन की तरह आज भी वहाँ खड़ी है...."

मैं और अरुण कॉलेज के पीछे वाले गेट से कुछ ही दूरी पर खड़े थे.....वैसे तो एक पढ़ने वाले स्टूडेंट को गालियाँ नही बकनी चाहिए ख़ासकर के लड़कियो को....लेकिन उस कल उन्होने जो कुछ भी मेरे साथ किया था उसने मेरे सारी अच्छी चीज़ो को ख़तम कर दिया था....
"सिगरेट कैसे पीते है, जल्दी से बता..."
"सिंपल...छोटा कश लेना और फिर धुए को अंदर खींच लेना....."
"ला सिगरेट दे, ट्राइ करता हूँ..."
"वो तो नही है...."
"चल कोई बात नही आजा..."कॉलर को मैने उपर किया और उन चुदैलो की तरफ बढ़ा.....पीठ और कमर मे बहुत दर्द था, इसलिए हॉस्टिल से निकलते वक़्त मैं थोड़ा झुक कर और लंगड़ा कर चल रहा था...लेकिन उस वक़्त मैने खुद को स्ट्रेट किया और बिंदास चल मे चलकर उनकी तरफ आया.....जैसे - जैसे मैं उनकी तरफ बढ़ रहा था बीते दिन ग्राउंड का हर एक मोमेंट मेरी आँखो के सामने छा रहा था......
"गुड मॉर्निंग बंदरियो...."
"हुह...."उन पाँचो चुदैलो की नज़र मुझपर पड़ी और विभा बोली"कल का भूल गया क्या,जो आज आ गया..."

मुस्कुराते हुए मैने विभा के चेहरे को देखा और फिर जानबूझकर अपनी नज़र उसके सीने पर टिकाई और अपने होंठो पर जीभ फिराते हुए मैने विभा से कहा....
"साइज़ क्या है तेरे मम्मों को...."

"व्हाट..."उसने मुझे थप्पड़ मारने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया, तो मैने तुरंत उसका हाथ पकड़ लिया...
"बीसी, अपना हाथ संभाल..."उसे दूर झटका देते हुए मैने कहा....

मेरी इस हरकत से वहाँ सिगरेट पी रही एक लड़की के हाथ से सिगरेट छूट कर ज़मीन पर गिर गयी, जिसे उठाकर मैने एक छोटा सा खींचा जैसा कि अरुण ने बताया था और धुए को उसके फेस पर छोड़ते हुए बोला.....
"एक सिगरेट नही संभाल पा रही है तू , फिर मेरा लंड क्या पकड़ेगी....तुझे नही चोदुन्गा...तू रिजेक्ट...."

मैं जब उन पाँचो को बक रहा था तब शुरू -शुरू मे अरुण दूर खड़ा तमाशा देख रहा था, लेकिन बाद मे वो भी वही आ गया और विभा को देखकर बोला....
"एक बात बता तू, तुझे प्यार करने के लिए वो गधा ही मिला..."और हम दोनो हंस पड़े, अरुण ने बोलना जारी रखा"तेरे उस बाय्फ्रेंड को बेस्ट गधा ऑफ दा यूनिवर्स का अवॉर्ड मिलना चाहिए....साला 7 साल से इंजीनियरिंग. कर रहा है...."

हम दोनो एक बार फिर ज़ोर से हँसे, आज हँसने की बारी हमारी थी, कल जैसे मैं शांत खड़ा सह रहा था आज वही हालत उन पाँचो की थी.....

"सुनो बे रंडियो....दोबारा इधर दिखी तो यही पटक कर रेप कर दूँगा और चूत का भोसड़ा बना दूँगा....चल भाग यहा से...."

"रूको तुम दोनो , आने दो वरुण और उसके दोस्तो को..."एक लड़की ताव मे बोली.....

हम उन चूतिए सीनियर्स की माल को छेड़ा था ,जिससे मामला गरम तो होना ही था...लड़ाई तो होनी ही थी...तो फिर मेरे खास दोस्त अरुण ने सोचा कि जब युद्ध होना ही है तो क्यूँ ना फुल मज़ा ले लिया जाए और उसके बाद मैने ज़मीन से धूल उठाई और सबसे पहले विभा के चेहरे पर लगाया, वो गुस्से से पूरी लाल होकर मुझे घूरती रही,....

"ये उस दिन के समोसे का बदला और कल वाले कांड के लिए....."मैं बोलते-बोलते रुक गया, क्यूंकी हमे बचपन से यही सिखाया जाता है लड़कियो की इज़्ज़त करो उन्हे पूरा सम्मान करो....लेकिन जब लड़किया ही तुम्हारी मारने पर तुली हो तब क्या करना चाहिए ये किसी ने आज तक नही कहा था....
"छोड़ दे बे अरमान वरना यही रो पड़ेंगी ये..."
"जाओ, तुम पाँचो को मैने माफ़ किया, और जिसको बुलाना है बुला लेना....."
______________________

वो पाँचो अपना पैर पटक कर वहाँ से रफ़ा दफ़ा हो गयी और उन पाँचो के जाने के बाद सबसे पहले मैने जो काम किया वो ये था कि खुद को थोड़ा झुका लिया, साला बहुत देर से दर्द सहते हुए स्ट्रेट खड़ा था और फिर कॉलेज के अंदर जाने के लिए जैसे ही मुड़ा तो देखा कि वहाँ आस-पास बहुत से स्टूडेंट्स खड़े होकर हम दोनो को अपनी आँखे बड़ी-बड़ी करके देख रहे है, वो सभी हॉस्टिल मे रहने वाले फर्स्ट एअर के स्टूडेंट्स थे और वहाँ उनमे कुछ लड़किया भी थी....

"अबे ये लोग तो मुझे हीरो समझ रही होंगी...."सिगरेट को दूर फेक कर मैं बोला....

"चल बे, ये मुझे हीरो समझ रही होंगी...क्यूंकी जो किया मैने किया, तूने क्या किया...."

"वैसे एक बात बता..."सहारे के लिए मैने अरुण के कंधे पर हाथ रखा और कॉलेज के अंदर घुसा"वरुण और उसकी दानव सेना से कैसे निपटेंगे...."

"एक कट्टा खरीद लेते है साला और जब जब वो सब हमारी लेने आएँगे हम कट्टा दिखाकर उन्ही की ले लेंगे....क्या बोलता है..."
"कुछ ज़्यादा नही फेंक दिया..."बोलते - बोलते मैं रुका, और क्लास के अंदर चलने के लिए इशारा किया और लंगड़ाते हुए मैं सीएस क्लास के अंदर गया , आज भी अरुण का दोस्त हमसे पहले पहुच चुका था और मुझे देखकर उसने एक झटके मे कह दिया कि "वो नही आई है.."

"साला चूतिया..."मैने उसे गालियाँ बकि,...अरुण का दोस्त था इसलिए सिर्फ़ गालियाँ बकि यदि मेरा दोस्त होता तो जान से मार देता, साला स्लोली-स्लोली भी तो बोल सकता था कि एसा आज भी नही आई, ऐसे एक झटके मे बोल कर हार्ट अटॅक दे दिया साले ने

अपने क्लास मे आकर मैं चुप-चाप बैठ कर सामने क्लीन बोर्ड की तरफ देखने लगा, उस वक़्त जोश-जोश मे तो मैने उन पाँचो को बत्ती दे दी, लेकिन अब मुझे डर लगने लगा था....लेकिन उन सबकी कल की हरक़त से मुझमे इतनी हिम्मत तो आ ही गयी थी कि अब मैं चुप-चाप होकर मार नही खाउन्गा....
"एक मुक्का तो ज़रूर किसी को मारूँगा और वो भी पूरी ताक़त लगाकर...."

"क्या हुआ बे, किसको मारेगा..."

"कुछ नही ,सामने देख सर आ गये है..."

सामने सर को देखकर अरुण जमहाई लेते हुए बोला"ये फिर पकाएगा..."

वो पीरियड बीएमई का था और जो सर उस सब्जेक्ट को पढ़ाते थे उनका नाम मुझे आज तक नही मालूम, बाकी हम लोग उसे किसी भी नाम से बुला लेते थे जैसे कि लोडू, बक्चोद,चोदु,गन्दू एट्सेटरा. वो जब भी क्लास लेने आता तो एक चीज़ जो हमेशा मेरे साथ होती और वो ये थी कि मैं हमेशा गहरी नींद मे चला जाता भले ही मैं 12 घंटे ही सो कर क्यूँ ना आया हूँ......उस दिन भी मैं नींद की आगोश मे सो चक्कर लगा रहा था कि अरुण ने मुझे जगाया....

"क्या हुआ..."अपना मुँह फड़ते हुए मैने पुछा...

"वो लोडू क्वेस्चन कर रहा है, जाग जा..."
"मेरी बारी आएगी तो जगा देना..."
"अबे उठ..."मेरे पैर पर ज़ोर से लात मारते हुए अरुण ने कहा....."थोड़ा बहुत तो रेस्पेक्ट दे बे टीचर्स को..."
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"इसोतीनल प्रोसेस समझ मे आया किसी को..."उस लोडू ने हम सबसे पुछा और आधी क्लास ने ना मे जवाब दिया....
"कोई बात नही , आगे देखो"
" सर...."एक लड़का खड़ा हुआ "जब यही समझ नही आया तो आगे क्या देखे..."
"घर मे बुक खोल कर पढ़ना यार ,ईज़ी है सब समझ मे आ जाएगा...."
उस लड़के को बैठा कर उस चूतिए ने अपना चूतियापा जारी रखा और मैं फिर लुढ़क गया....जिस लड़के ने अभी कहा था कि "जब यही समझ नही आया तो आगे क्या समझ मे आएगा..."वो ब्रांच ओपनर था, और उसका नाम मैने तो कभी किसी से नही पुछा लेकिन अक्सर डिस्कशन करते समय कुछ लोग उसका नाम शुभम बताते थे......

"आज कौन सा लॅब है..."मैने अरुण से पुछा....
कॉलेज शुरू हुए अभी ज़्यादा दिन नही हुए थे लेकिन इतने ही दिनो मे मुझमे बहुत ज़्यादा बदलाव आ गया था, जहा पहले मैं स्कूल मे टीचर्स की हर बात को बड़े ध्यान से सुनता था वही अब मैं टीचर्स को गालियाँ बकता और हर क्लास मे टाइम पास करता....कॉलेज लगे हुए यूँ तो बहुत दिन नही हुए थे लेकिन इन दिनो मे मैने एक बार भी हॉस्टिल जाकर बुक नही खोला था....मुझे सुबह उठकर फाइल ना ढूँढनी पड़े इसलिए मैने सब सब्जेक्ट की लॅब फाइल अपने बॅग मे डाल कर रखी हुई थी, आलम तो ये था कि जो बॅग मैं कॉलेज से जाकर हॉस्टिल मे फैंकता था वैसा ही बॅग सुबह उठाकर कॉलेज आ जाता और जब भी घर से या बड़े भाई का कॉल आता तो मैं अक्सर यही बोलता था कि स्टडी बढ़िया चल रही है.......

"असाइनमेंट जमा करो...."दीपिका मॅम अपने हाथ मे पेन लेकर चेयर पर सवार हो चुकी थी....

"पहले ये बताओ कि किसने किसने असाइनमेंट खुद से बनाया है...."

ये एक ऐसा सवाल था जिसमे सभी ने अपना हाथ खड़ा किया जबकि एक दो को छोड़ कर शायद ही कोई ऐसा रहा होगा जिसने असाइनमेंट खुद से बनाया होगा.....

"वेरी गुड..."अपने चेहरे पर आए बालो को पीछे करते हुए दीपिका मॅम फिर बोली"अब ये बताओ ,किसने असाइनमेंट नही बनाया...."

मैने पूरी क्लास की तरफ देखा, किसी ने भी अपना हाथ नही उठाया , दीपिका मॅम ने अपना दूसरा सवाल फिर दोहराया और इस बार सिर्फ़ एक हाथ खड़ा हुआ और वो हाथ मेरा था......

"क्यूँ...तुमने असाइनमेंट क्यूँ नही किया...."

"भूल गया मॅम..."मैने सीधा सा जवाब दिया.....

"रिसेस मे तुम मुझसे कंप्यूटर लॅब मे मिलना..."

मैने गर्दन हाँ मे हिला दी और बैठ गया , इस वक़्त मुझे सबसे ज़्यादा गुस्सा अरुण पर आ रहा था क्यूंकी उसने असाइनमेंट कंप्लीट कर लिया और मुझे बताया तक नही......

"क्यूँ बे मुझे क्यूँ नही बताया तूने..."उसके पैर पर जोरदार लात मार कर मैने पुछा....

"मुझे लगा कि तूने कर लिया होगा..."अपने पैर को सहलाते हुए उसने कहा..."अगली बार से बता दूँगा..."

उस दिन दीपिका मॅम का पूरा पीरियड असाइनमेंट जमा करने और चेक करने मे बीत गया, असाइनमेंट चेक करते समय दीपिका मॅम बीच-बीच मे मुझे देखती और कभी-कभी हमारी नज़रें भी टकरा जाती.....जब पीरियड ख़तम हुआ तो दीपिका मॅम ने जाते हुए मुझे एक बार फिर रिमाइंड कराया कि मुझे रिसेस मे उनसे मिलना है......
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"आज तो बेटा दीपिका मॅम तुझे चोद के रहेगी..."अरुण मेरे मज़े लेते हुए बोला...3र्ड पीरियड शुरू हो चुका था लेकिन टीचर लापता था और तभी मैने अपनी अकल दौड़ाई और नवीन से उसकी बाइक की चाबी माँगी......

"अबे बाहर सीनियर्स होंगे..."अरुण ने कहा और जिसे समझ कर मैं बैठ गया.....

मैने सोचा था कि एक असाइनमेंट कॉपी खरीद कर इस खाली पीरियड मे ही अस्सिगमेंट पूरा कर लूँ और रिसेस मे दीपिका मॅम के मुँह पर असाइनमेंट दे मारू, लेकिन सीनियर्स का नाम सुनकर मेरा पूरा प्लान चौपट हो गया.....

खुद को बाजीराव सिंघम और उसके साथ रहने वाला उसका एक और दोस्त अक्सर फर्स्ट एअर की क्लास के कॉरिडर मे चक्कर मारते रहते थे और जो क्लास भी खाली दिखी वो उसमे घुसकर अपना रोला झाड़ते, उस दिन जब हमारी क्लास खाली जा रही थी तो उसी वक़्त वो दोनो टपक पड़े......उनमे से एक जो खुद को बाजीराव सिंघम कहता था वो अंदर आया और उसके साथ हमेशा कॉलेज के चक्कर काटने वाला उसका दोस्त गेट पर खड़ा होकर निगरानी करने लगा.....बाजीराव सिंघम लड़कियो की तरफ जाकर गप्पे मारने लगा, इसी बीच सब नॉर्मल हो गये और आपस मे बात करने लगे....तभी वो चीखा और सब शांत हो गये....

"क्या है बे ये...सीनियर क्लास मे है और तुम लोग दिमाग़ की माँ-बहन किए जा रहे हो...."लड़को की तरफ आता हुआ वो बोला और फिर उसने मुझे देख लिया"तू खड़े हो, क्या नाम बताया था तूने अपना..."

"अरमान....."

"अरमान...."मुझे उपर से नीचे तक देखते हुए उसने वही कहा जिसकी मुझे आशंका थी"ज़्यादा उड़ी-उड़ी मे रहना बंद कर दे ,वरना....."गेट पर खड़े अपने दोस्त को पास बुलाकर उसने अपने दोस्त के कंधे पर हाथ रखा और फिर बोला....
"ये जो तुम्हारा सीनियर है ना मैं इसका भी बाप हूँ...."उसका इशारा गेट पर खड़े रहने वाले सीनियर की तरफ था...."तो अब सोच ले कि मैं तेरा भी बाप हूँ...."

उसका ये कहना था कि मेरा खून हज़ार डिग्री सेल्सीयस पर खौला, मैने उसे घूर कर देखा....एक बार फिर वही हुआ जो मैने सोच कर रखा है, वो मेरे पास आया और मेरा कॉलर पकड़ कर बोला..
"क्या घूर रहा है , मैं हूँ तेरा बाप..."

"बाप के कॉलर से हाथ हटा..."

ये सबके लिए एक धमाके की तरह था, मेरे मुँह से वो लफ्ज़ सुनकर खुद बाजीराव सिंघम और उसका दोस्त भी धमाके के चपेट मे आ गये....मैने बाजीराव सिंघम के शरीर को देखा और अंदाज़ा लगाया कि यदि हमारी लड़ाई हुई तो रिज़ल्ट बहुत देर तक मे आएगा, मतलब कि हम दोनो बराबर थे......

"तू जानता है कौन हूँ मैं...मैं हूँ बाजीराव सिंघम..."अपना सीना ठोक कर फिल्मी स्टाइल मे वो बोला....

"तू अगर बाजीराव सिंघम है तो मैं हूँ चुलबुल पांडे...अब बोल."

वो शांत हो गया ,और कुछ देर तक मेरी आँखो मे आँखे डाल कर आ जाने क्या सोचता रहा, उसके बाद उसने अपने दोस्त को बुलाया....और मैने अरुण को खड़ा होने के लिए कहा.....उस वक़्त दोनो तरफ दो लोग थे और दोनो ही बराबर लेकिन पलड़ा हमारा भारी था क्यूंकी मैने इसी बीच उन दोनो से कह दिया था कि जब हमारी लड़ाई चलेगी तो उसी समय हमारे क्लास का कोई एक स्टूडेंट जाकर प्रिन्सिपल ऑफीस मे ये न्यूज़ देके आएगा कि मेकॅनिकल फर्स्ट एअर मे कुछ सीनियर्स , जूनियर्स को बुरी तरह पीट रहे है, और प्रिन्सिपल सर मान भी लेंगे....उसके बाद तुम दोनो को कॉलेज से निकाल दिया जाएगा.....तो बेहतर यही है कि अभी क्लास से बाहर चले जाओ वरना कॉलेज से बाहर जाना पड़ेगा........वो दोनो क्लास से बाहर चले गये,लेकिन मुझे यकीन था कि वो दोनो मुझे बाहर ज़रूर पकड़ेंगे और उसी वक़्त मैने अपने दुश्मनो मे उन दोनो का नाम भी जोड़ लिया.....मेरी आज इस दिलेरी की वजह से सबकी नज़र मुझपर होगी ये मैने पहले ही सोच लिया था, और उसी वक़्त मैने खुद से बोला कि"काश एश इस क्लास मे होती तो आज वो मुझसे ज़रूर पट जाती, फिर हम दोनो उसके पैसे पर बाहर खाना खाने जाते, उसके बाद एक ही कोल्ड ड्रिंक मे स्ट्रॉ डाल कर पीते और उसके बाद मैं उसे एक लाल गुलाब देता और वो शर्मा कर कहती कि "अरमान...तुम कितने वो हो...""

"दीपिका मॅम के पास नही जाना क्या...."अरुण की बेसुरी आवाज़ ने मुझे होश मे लाया....
"रिसेस हो गया..."
"5 मिनट. भी हो गये है...."
"तू भी चल ना..."
"तू जा "अंगड़ाई मारते हुए अरुण बोला"मुझे नींद आ रही है.."

मैं अकेले ही अपनी जगह से उठा और क्लास से बाहर जाने लगा तभी अरुण ने आवाज़ दी"संभाल कर कहीं वो तेरा रेप ना कर दे........"

"लड़किया भी रेप करती है क्या..."मैने हँसते हुए अरुण से पुछा
"आज कल की लड़किया कुछ भी कर सकती है...."उसने भी हँसते हुए जवाब दिया.....
"चल ठीक है, मिलता हूँ कुछ देर मे..."
मैं क्लास से बाहर निकल आया, कंप्यूटर लब ग्राउंड फ्लोर पर था और जैसे-जैसे मैं सीढ़िया उतर रहा था वैसे-वैसे ही एक डर, एक शरम मेरे अंदर अपना डेरा जमा रही थी....मैं यही चाह रहा था कि दीपिका मॅम कंप्यूटर लॅब मे अकेली ना हो, उनके साथ कुछ स्टूडेंट्स भी हो.....मैं अपने कॉलेज का शायद एकलौता ऐसा लड़का था जो दीपिका मॅम जैसी हॉट आइटम की करीबी से डर रहा था...

"मे आइ कम इन मॅम..."कंप्यूटर लॅब के गेट के पास खड़े होकर मैने अंदर आने की पर्मिशन माँगी....
"अरमान...कम इन"वो खुश होते हुए इस कदर बोली ,जैसे उसे कब से मेरा इंतेज़ार हो.....उसकी उस हँसी ने मुझे अंदर से डरा दिया और मेरे कानो मे अरुण की आवाज़ गूंजने लगी"संभाल कर ,कही वो तेरा रेप ना कर दे...."

"अरे अंदर आओ, बाहर क्यूँ खड़े हो..."उसने मुझे दोबारा अंदर आने के लिए कहा और मैं बजरंग बली का नाम लेकर जंग-ए-मैदान मे कूद गया....

"आपने मुझे बुलाया था..."जहाँ वो बैठी थी वहाँ जाकर मैं बोला और चारो तरफ नज़र दौड़ाई पूरे लॅब मे उसके और मेरे सिवा सिर्फ़ कंप्यूटर्स थे....

"तुमने असाइनमेंट कंप्लीट क्यूँ नही किया...."अपनी चेयर को मेरी तरफ खींच कर वो आराम से बैठ गयी,

"मस्त पर्फ्यूम लगाई है इस लंड की प्यासी ने..."मैं बड़बड़ाया...

"तुमने असाइनमेंट पूरा नही किया ,क्या मैं जान सकती हूँ कि ऐसा क्यूँ हुआ..."

"सॉरी मॅम, आइ फर्गॉट"
"क्या भूल गये.."
"असाइनमेंट करना भूल गया..."
वो अपनी जगह से उठी और मेरे पीछे खड़े होकर धीरे से बोली" फिज़िक्स लॅब वाली बात तो नही भूले..."

पूरे शरीर का पानी सूख गया और दिल की धड़कने तेज हो गयी ये सुनकर, मेरी ये हालत देखकर दीपिका मॅम की हँसी छूट गयी...
"तुम शरमाते बहुत हो..."मेरे कान पास अपना चेहरा लाकर वो बोली....
"मुझे भी कुछ दिन पहले ही ये पता चला कि मैं एक शर्मिला लड़का हूँ..."
"सो, अब क्या इरादा है..."
"इरादा तो ये है कि मैं आज रात भर असाइनमेंट लिखूंगा और फिर कल सब्मिट कर दूँगा..."दीपिका मॅम के अरमानो पर पानी डालते हुए मैने कहा....लेकिन उसके अगले ही पल दीपिका मॅम ने एक जोरदार धमाका किया....

"मुझे चोदने का विचार है या गे है तू..."खुन्नस मे वो बोली....

मैं एक बार फिर सदमे मे आ गया था, और आज का सदमा उस दिन के फिज़िक्स लॅब वाले सदमे से ज़्यादा बड़ा था....वो मेरे पीछे खड़ी मेरे जवाब का इंतजार कर रही थी और मैं सदमे से बाहर आने की कोशिश कर रहा था......
"पानी मिलेगा...."मैने टॉपिक चेंज करने के इरादे से कहा....
"कौन सा पानी...चूत वाला या बोतल वाला...."
दीपिका मॅम के इन लफ़ज़ो ने मुझे एक बार फिर सदमे मे डाल दिया और मुझे डर लगने लगा कि मुझे कहीं हार्ट अटॅक ना आ जाए....

"मैं एक सरीफ़ पढ़ाई करने वाला लड़का हूँ , मुझे इन सब मे मत फँसाओ...."अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए मैने अपनी कोशिश जारी रखी....

"बोल तो ऐसे रहा है ,जैसे कभी मूठ ही ना मारी हो...."वो वापस सामने वाली चेयर पर बैठ गयी और अपने सामने रखे डेक्सटॉप पर कुछ करने लगी.....उसके बाद कुछ देर तक वो उसी मे बिज़ी रही और फिर बोली...
"इधर आओ..."
"किधर..."गला एक बार फिर सूखा...
"मेरे पास..."
लड़खड़ा ते हुए कदमो से मैं दीपिका मॅम की तरफ गया,जहा वो चेयर पर किसी महारानी की तरह बैठी हुई थी, उनके करीब जाकर मैं खड़ा हो गया और कंप्यूटर के स्क्रीन पर नज़र दौड़ाई,दीपिका मॅम ने एक वीडियो प्ले किया , वो वीडियो ऐसा था कि जिसे देखकर मेरे पसीने छूट गये, इस बार तो हार्ट अटॅक ही आ जाता लेकिन मैने खुद को संभाल लिया......
"दिस पोज़िशन आइ लाइक मोस्ट आंड यू..."

जवाब मे मैने अपने होंठो पर सिर्फ़ जीभ फिरा दी,अभी मेरे सामने एक फुल2 न्यूड फक्किंग वीडियो चल रहा था....ये कैसे हो सकता है, कोई टीचर अपने स्टूडेंट के साथ ऐसे बर्ताव कैसे कर सकती है....लेकिन हक़ीक़त तो वही था जो उस दिन लॅब मे मेरे साथ हो रहा था, उम्र के उस पड़ाव पर शायद बहुत सी चीज़े ऐसी थी जिसे जानना अभी बाकी था....

मेरा मन और तन डोलने लगा , सीधे-सीधे शब्दो मे कहें तो जब आपके सामने चुदाई की फिल्म चल रही हो तो लंड अपने आप खड़ा हो जाता है, मेरा भी लंड खड़ा हुआ , जिसे देखकर दीपिका मॅम ने अपने दाँत दिखा दिए....ना चाहकर भी उस वक़्त मैं ये चाहने लगा था कि दीपिका मॅम पहले अपने हाथो से मेरे लंड को सहलाए और फिर अपने मुँह से मेरे लंड को चूसे और उसके बाद किसी स्लट की तरह बोले कि "वाउ, युवर डिक ईज़ सो बिग...."

"किसी लड़की मे तुम्हे सबसे अच्छा पार्ट क्या लगता है...."वीडियो बंद करके दीपिका मॅम मेरे तरफ मूडी...

"मतलब...."मैं जानता था कि दीपिका मॅम के सवाल का क्या मतलब था ,लेकिन फिर भी मैने पुछा....
"मतलब कि चूत,गान्ड ,बूब्स ,लिप्स....."

"बूब्स आंड लिप्स...."मैने जवाब दिया और एक अजीब बात मुझे ये लगी कि,अब मुझे शरम नही आ रही थी.....
"टच माइ लिप्स..."
"किससे टच करूँ हाथ से या फिर होंठ से या फिर ......"

"अभी तो फिलहाल हाथ से मज़ा लो..."
मैने अपनी उंगलियो को दीपिका मॅम के होंठो पर रखा और धीरे-धीरे सहलाते हुए उसके होंठ के अंदर तक ले गया,....ये सब कुछ बहुत अजीब था, मुझे खुद यकीन नही हो रहा था कि मेरी मुरझाई तक़दीर मे एक अप्सरा कैसे आ गयी वो भी बिना कपड़ो के....

"वहाँ भी हाथ फिरा लूँ..."मेरा इशारा उसके मस्त बड़े-बड़े बूब्स की तरफ था,...दीपिका मॅम ने अपने सीने को एक बार देखकर बोली...
"ये सब पुछा नही जाता...."
"देन ओके..."और मेरे काँपते हुए हाथ उसके सीने से जा चिपके और ऐसे चिपके की छोड़ने का नाम ही नही ले रहे थे, लंड पैंट को फाड़ कर बाहर निकलने के लिए बेताब था तभी खड़े लंड पर ज़ोर से हथौड़ा मारते हुए दीपिका मॅम ने कहा...
"अब तुम जाओ..."

दुखभरे मन से मैने दीपिका मॅम की छातियों को देखा ,जिनसे मेरे हाथ चिपके हुए थे , मैं मासूमियत भरी आवाज़ मे बोला"एक बार इन्हे दबा लूँ..."

"तुम अब जाओ...."हंसते हुए उसने मेरे हाथ को दूर किया और मुझे तुरंत वहाँ से जाने का इशारा किया.....

"61-62 करना पड़ेगा अब..."कंप्यूटर लॅब से बाहर निकल कर मैं खुद पर झल्लाया और बाथरूम की तरफ चल दिया, आज कयि धमाके एक साथ हो चुके थे, पहले मैने उन पाँचो चुदैलो को बत्ती दी, फिर बाजीराव सिंघम और उसके दोस्त को और उसके बाद कंप्यूटर लॅब वाला धमाका.....लेकिन एक और धमाका बहुत जल्द होने वाला था और ये धमाका सबसे बड़ा भी था........

"मुझे मालूम चल गया है कि एश कॉलेज क्यूँ नही आ रही कुछ दिनो से...."मूठ मारने के बाद मरा सा मुँह लेकर मैं क्लास मे घुसा ही था कि अरुण बोला....

"क्यूँ....?"मैने अरुण की तरफ देखा....

अभी तक मैं यही समझ रहा था कि शायद उसके घर मे कोई काम होगा, या फिर उसकी तबीयत खराब होगी या हल्का फूलका बुखार होगा, ये भी हो सकता है कि वो अपने किसी रिश्तेदार से मिलने कहीं बाहर गयी हो और इसी वजह से वो कॉलेज ना आई हो, लेकिन अरुण ने धमाका करके मेरे दिमाग़ को शुन्य कर दिया, उसने एश के कॉलेज ना आने का जो रीज़न बताया ,उसे सुनकर यकीन ही नही हुआ और मैने अरुण से एक बार फिर पुछा....
"क्या बोला तूने मैने सुना नही..."

"एश ने स्यूयिसाइड करने की कोशिश की थी......"

मुझे फिर भी यकीन नही हुआ और ये सोचकर कि मैने ग़लत सुना होगा मैने एक बार और अरुण से पुछा...
"क्या..."
"एश ने स्यूयिसाइड करने की कोशिश की है..."

तीन बार से मैं लगातार वही सवाल पुछ रहा था और अरुण मेरे उन सवालो का एक सा जवाब दे रहा था....उस वक़्त कुछ हुआ ,कुछ अलग सा ही हुआ,कुछ अलग सा ही अहसास हुआ....मैं वहाँ से दौड़ते हुए सीधे कॉलेज से बाहर आया बिना ये सोचे हुए भी कि मुझे जाना कहाँ है, बिना ये सोचे कि सीनियर्स मुझे पकड़ सकते है और मेरा कचूमर बना सकते है....कॉलेज के मेन गेट से मैं निकला ही था कि मेरी नज़र उस एक पेड़ पर पड़ी जिस पर रंग बिरंगे फूल लगे हुए थे....वो वही पेड़ था, वहाँ उस वक़्त हवा भी वही बह रही थी ,जो रोजाना बहती थी , कॉलेज भी वही था और उसमे पढ़ने वाले स्टूडेंट्स भी वही थे...सूरज आज भी पूरब से निकल कर अपनी मंज़िल की तरफ बढ़ रहा था, लेकिन जब से एश के स्यूयिसाइड की खबर सुनी तो उस एक पल मे जैसे पूरी दुनिया बदल गयी हो, रंग-बिरंगी धरती जैसे अकल के कारण सुख गयी हो, ऐसा लगने लगा था मुझे उस वक़्त....लोग मेरे सामने से आते और चले जाते, उस वक़्त यदि कोई मुझपर लात-घुसो की बरसात भी कर देता तो मैं उसे सिवाय देखने के कुछ नही करता......

"अरुण...नवीन..."मैने ये दो नाम लिए, जो मेरे खास दोस्त थे ,

"कहाँ जा रहा है..."पीछे से मेरे खास दोस्त अरुण ने आवाज़ दी, वो भी मेरे पीछे-पीछे आ गया था बिना ये जाने उसे जाना कहाँ है....
"एश किस हॉस्पिटल मे है...."

मेरी घबराहट को अरुण पहचान गया और मेरी बेचैनी को समझकर वो बोला"ये तो मुझे नही मालूम...."
"तुझे किसने बताया कि एश ने स्यूयिसाइड करने की कोशिश की है...."

"क्लास मे कुछ लड़के बात कर रहे थे, जिसे मेरे दोस्त ने सुन लिया और फिर मुझे खबर दी...."

इस वक़्त एश से मिलने का बहुत दिल कर रहा था , लेकिन उससे मिलूं भी तो कैसे ,यदि मैं उससे मिला भी तो मैं क्या कहूँगा...कि मैं यहाँ क्यूँ आया, किसलिए आया किस हक़ से आया.....दिल मे हज़ार गोलिया फाइयर करके मैने वहाँ से वापस अपनी क्लास मे जाने का सोचा....

कॉरिडर मे अब भी स्टूडेंट्स बाहर थे, कुछ टहल रहे थे तो कुछ ग्रूप बनाकर बाते कर रहे थे, वहाँ मुझे अरुण का वो दोस्त भी दिखाई दिया जो एश की क्लास मे था.....

"सुन ना यार...."मैने अरुण के दोस्त को बुलाया और उस साले ने मेरी दुखती रग पर हाथ तो रखा ही साथ ही साथ हथौड़ा मारते हुए बोला...

"अरमान तुझे मालूम चला या नही....एश ने स्यूयिसाइड करने की कोशिश की है...."

"हां मालूम है...कोई वजह मालूम चली कि उसने ऐसा क्यूँ किया..."

"प्यार, मोहब्बत का चक्कर है दोस्त....तू भूल जा उसे..."

जितनी आसानी से उसने मुझे कह दिया उतनी आसानी से मैने उसकी बात को एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया और उससे पुछा कि एश किस हॉस्पिटल मे है....

"मालूम नही....लेकिन कॉलेज ऑफ होने तक किसी से पुछ्कर तुझे बता दूँगा...."

"थॅंक्स , अब चलता हूँ..."
"चल बाइ..."
वहाँ से मैं सीधे अपनी क्लास मे आकर बैठ गया ,ये सोच सोच कर दिल फटा जा रहा था कि एश ने किसी के प्यार मे अपनी जान देने की कोशिश की है....

"वो उसे बहुत प्यार करती है ,इसका मतलब मैं और मेरे अरमानो के लिए उसके दिल मे कोई जगह नही...."मैं उस वक़्त खुद से ही सवाल जवाब किए जा रहा था....

"लेकिन उस दिन क्लास मे तो वो मुझे देख रही थी...."मैं उस वक़्त झूठ को सच और सच को झूठ साबित करने पर लगा हुआ था, उस वक़्त मुझे ज़रा भी ख़याल नही था कि फिज़िक्स वाले सर क्लास मे आ चुके है....

"हे, तुम..."
"हाऐईयईईन्न...."अरुण ने मुझे नोंचा तो मैं होश मे आया....

"क्या हाई हाईीन लगा रखे हो, पढ़ना है तो चुप चाप रहो वरना बाहर जाओ..."

"बीसी मैने एक शब्द भी नही बोला..."उस फिज़िक्स वाले कुर्रे सर को देखकर मैने खुद से कहा.....

"आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते..."जब किसी ने अपने दिमाग़ का थियरी कुर्रे सर को सुनाया तो उसे यही जवाब मिला....ये जवाब सिर्फ़ उसे ही नही बल्कि कयि और भी स्टूडेंट्स को मिला...जब भी कोई उल्टा सीधा सवाल करता तो कुर्रे सर उस पर अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ कर कहते कि "आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते...." और फिर सब शांत हो जाते....क्वेस्चन तो मेरे दिमाग़ मे भी था लेकिन उस वक़्त मैं नही पुछ पाया शायद एश की वजह से......कुर्रे सर की भी एक अजीब और बड़ी घटिया आदत थी वो क्लास ख़तम होने के कुछ देर पहले एक-एक स्टूडेंट से उस दिन जो पढ़ाया गया उसे बताने को कहते...जो बता देता वो बैठ जाता था लेकिन ना बताने वाले को कुर्रे सर फिज़िक्स डिपार्टमेंट मे बुलाते और वहाँ , इज़्ज़त की धज्जिया उड़ाते....

"तुम बताओ...."
मैं चुप चाप खड़ा हुआ और दिमाग़ को परत दर परत खोल कर देखने लगा कि मैं इस बारे मे कुछ जानता हूँ या नही.....थियरी ऑफ रेलेटिविटी के टॉपिक मे मैं वर्जिन था लेकिन कुछ दिन पहले मैने किसी न्यूज़ पेपर मे कुछ पढ़ा था और जो पढ़ा था वही कुर्रे सर के उपर दे मारा.....

"सर, मेरा एक सवाल है...कुछ दिन पहले मैने पढ़ा था कि कुछ पार्टिकल ऐसे भी है जिनकी वेलोसिटी लाइट के वेलोसिटी से भी तेज है और यदि ऐसा है तो फिर आइनस्टाइन का प्रिन्सिपल ग़लत हो गया , आप क्या कहते है इस बारे मे...."

"आइनस्टाइन हो या कोई आम आदमी , कोई भी फिज़िक्स के नियमो के खिलाफ नही जा सकता...बैठ जाओ..."
"थॅंक यू सर "

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Re: hindi latest sex story - दिल दोस्ती और दारू

Unread post by rajkumari » 20 Jan 2017 09:51

उस दिन बहुत से स्टूडेंट्स कुर्रे सर के लपेटे मे आ गये...मैं चाहता था कि अरुण भी उस लपेटे मे फस जाए लेकिन साला होशियार निकला और जब कुर्रे सर ने उसे खड़ा किया तो लंबा चौड़ा भाषण उसने दे डाला.....
"बड़े ध्यान से सुन रहा था कुर्रे का बोरिंग लेक्चर....."
"मतलब...."
" उसका लेक्चर सुने बिना तू इतना सब कैसे बोल सकता है..."
"ये सब तो पहले से मालूम था मुझे..."कंधा उचका कर वो बोला....
.
"मैं आज ड्रॉयिंग की क्लास अटेंड नही करूँगा...." अपना बॅग बंद करते हुए नवीन ने हम दोनो से कहा....
"क्यूँ जाके गान्ड मरवाना है..."
"लवदे..."अरुण को एक हाथ लगाकर नवीन ने कहा "जब देखो तब गाली भरे रहता है मुँह मे...."
"तू उसको हटा और ये बता कि आज ड्रॉयिंग की क्लास क्यूँ छोड़ रहा है....सुना है बहुत हार्ड सब्जेक्ट है ये..."मैं नही चाहता था कि वो वहाँ से जाए , क्यूंकी नवीन के साथ रहने से क्लास बोरिंग नही लगती थी...
"भैया आ रहा है घर से और 3 बजे उन्हे रेलवे स्टेशन लेने जाना है,..."
"जब काम 3 बजे है तो फिर अभी से क्यूँ जा रहा है,..."
"बस जा रहा हूँ....रूम की सॉफ-सफाई भी करनी है ,वरना भाई रूम मे आकर मेरा हाल-चाल बाद मे पुछेगा उससे पहले मुझे बोलेगा कि चल पहले रूम सॉफ कर..."
"आज तेरे रूम पर ही रुकने का प्लान है क्या उनका...."मेरे अंदर एक अलग ही ख्छिछड़ी पाक रही थी जिसमे मिर्च मसले डालते हुए नवीन बोला...
"नही, 4 बजे उनकी ट्रेन है..."
"आज रात मैं तेरे रूम पर रुकुंगा...."
"क्यूँ..."मेरे एकदम से कहने पर नवीन थोड़ा चौक सा गया,
"क्यूँ बे, तू आज उसके रूम पर क्यूँ रुकेगा...."अरुण ने मुझे बीच मे टोका...
"काम है कुछ..."
"गे गे गे गे..."एक धुन मे गाते हुए अरुण ने कहा....
"आक्च्युयली मैं सोच रहा था कि एसा जिस हॉस्पिटल मे है, वहाँ जाकर उसे देख आउ..."
"नवीन, लौंडा तो गया हाथ से..."मुस्कुराते हुए अरुण ने कहा"फिर मैं भी चलता हूँ..."
फिर क्या था हम तीनो ने अपना बॅग उठाया और निकल पड़े नवीन के रूम की तरफ....रास्ते भर मैने प्लान बनाया की मुझे हॉस्पिटल जाकर आक्च्युयली करना क्या है, लेकिन फिर याद आया कि हमे तो उस हॉस्पिटल का नाम तक नही मालूम जिसमे एश अड्मिट है.....
"अबे तू किसलिए मेरे साथ आया है..."बाइक पर बैठे हुए ही मैने कोहनी से अरुण को मारा....
"तेरे साथ उस हॉस्पिटल मे जाउन्गा ,जहाँ एश अड्मिट है..."
"घंटा जाएगा , पहले ये तो मालूम कर कि एश है किस हॉस्पिटल मे...."
कॉलेज से नवीन के रूम पहुचने मे सिर्फ़ आधा घंटा लगा,इधर नवीन रूम की सफाई मे लग गया और उधर मैं और अरुण उसके बिस्तर पर किसी महाराजा की तरह सवार होकर अपना प्लान बनाने लगे........
"भू को कॉल करता हूँ...."अरुण ने अपना मोबाइल निकालते हुए कहा.....भू भी एश के पीछे पड़ा हुआ था इसलिए अरुण ने सोचा कि शायद उसे कुछ मालूम हो और हमारा दाँव एक दम फिट बैठा, उस साले भू को मालूम था कि एश कहाँ अड्मिट है....
"काम हो गया...."कॉल डिसकनेक्ट करके अरुण ने कहा....
"कहाँ है वो और किस हालत मे है..."
"अपोलो मे है...."
"चल जल्दी से चलते है वहाँ...."मैं बिना कुछ सोचे समझे जाने के लिए उठ खड़ा हुआ, तभी नवीन जो रूम की सॉफ-सफाई मे लगा हुआ था वो बोला
"हेलो...किधर.."
"अपोलो..."
"बेटा ,अभी जाना है तो ऑटो मे जाओ ,क्यूंकी 3 बजे भाई को लेने रेलवे स्टेशन जाना है और वैसे भी अपोलो 2 कमरो का कोई छोटा हॉस्पिटल नही है जो मुँह उठा के पहुच गये...बेटा अंदर घुसने के लिए आइडी कार्ड लगता है....."हम दोनो के बढ़ते कदम वही रुक गये और अरुण के हाथ से नवीन ने बाइक की चाबी छीन कर कहा"पिछवाड़े मे लात मार के बाहर करेंगे वहाँ का सेक्यूरिटी गार्ड्स...."
"तो अब क्या करे...."
"4 बजे तक रुक ,भाई को रेलवे स्टेशन छोड़ने के बाद मैं भी साथ मे चलूँगा...."
उस दिन नवीन के भाई ने 1 घंटे बुरी तरह से बोर किया और नवीन के रूम को सॉफ देखकर खुश भी बहुत हुए, और जाते जाते हम तीनो को ठीक से पढ़ने की नसीहत भी दी, 4:30 बजे के लगभग नवीन रेलवे स्टेशन से वापस रूम पर आया और हम तीनो अपोलो हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े......
"ले आ गया अपोलो , अब बोल अंदर जाने का क्या जुगाड़ है..."नवीन जब बाइक पार्क करके आया तो मैने उससे पुछा....
"मेरे इधर के अंकल यहाँ अड्मिट है, उनको बाहर बुलाता हूँ...."कहते हुए नवीन ने मोबाइल निकाला और फिर अपने अंकल से बात की,...कुछ ही देर मे नवीन के अंकल बाहर आए, नवीन और उसके अंकल ने कुछ देर ही हेलो जैसी कयि पकाऊ बाते की और फिर हमे दो कार्ड देकर बोले कि तुम तीनो मे से सिर्फ़ दो लोग ही अंदर जा सकते हो....जाना तो तीनो को था इसलिए हम तीनो एक दूसरे का मुँह तकने लगे कि कौन अपनी कुर्बानी देगा....लेकिन जब कोई फ़ैसला नही हुआ तो अंकल ने हम तीनो को कुछ देर रुकने के लिए कहा और फिर जुगाड़ करके एक और आइडी कार्ड लेकर आए....
"नवीन, अपने अंकल से पुच्छ के देख कि ये एश को जानते है कि नही...."
"चूतिया है क्या...."
"तू चूतिया, तेरा बाप....."इसके आगे मैने कुछ नही बोला और थोड़ी डोर खड़े नवीन के अंकल के पास गया, जो किसी से बात कर रहे थे.....
"अंकल, हमारे कॉलेज की एक लड़की ने स्यूयिसाइड करने की कोशिश की है,...उसे आप जानते है क्या....."
"एश......"
"ओ तेरी "अंदर ही अंदर खुश होते हुए मैने नवीन के अंकल से कहा"हाँ वही, जब यहाँ आए है तो सोचा कि उससे भी मिल लूँ...."
"वो मेरे करीबी दोस्त खुराना की एकलौती बेटी है , एश की स्यूयिसाइड की खबर सुनकर मुझे भी दुख हुआ था, लेकिन अब वो ठीक है और यदि उससे मिलना चाहते हो तो 125 रूम नंबर. मे जाओ"
"थॅंक यू अंकल"
वहाँ से खुशी-खुशी मैं अरुण और नवीन के पास आया और उन्हे रूम नो. 125 मे चलने के लिए कहा,..
________________________

गये थे बड़े आशिक़ बनकर, सोचा था किसी ना किसी बहाने उससे बात कर ही लूँगा , फिर उसका हाल चाल भी पुच्छ लूँगा, लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ और ना ही इसके आस-पास कुछ हुआ.... जिस रूम मे एश अड्मिट थी , हम तीनो उस रूम के बाहर चुप चाप खड़े अंदर झाँक रहे थे क्यूंकी अंदर झक्क मार के झाँकने के सिवा हम तीनो या फिर कहे कि मैं कुछ कर भी नही सकता था, क्यूंकी जो काम मुझे करना था वो रूम. नंबर. 125 मे कोई और कर रहा था, जिन अरमानो की गठरी बनाकर मैं यहाँ आया था वो खुल कर जिस रूम मे एश अड्मिट थी उसके बाहर बिखर चुकी थी , कानो मे एक बार फिर वही आवाज़ गूँजी जिसे मैं सुनना नही चाहता था, जिसे मैं बर्दाश्त नही कर सकता था....."प्यार ,मोहब्बत का चक्कर है भाई, तू उसे भूल जा...." उस वक़्त अरुण भी चुप था और नवीन भी चुप चाप खड़ा था.....रूम के अंदर एश एक लड़के से बात कर रही थी, एश की आँख मे आँसू थे और उस लड़के की आँख भी हल्की नम थी, दोनो साले मेरी लव स्टोरी की धज्जिया उड़ा कर अपने लिए फॅमिली प्लॅनिंग कर रहे थे.....जिस लड़के ने एश का हाथ पकड़ रखा था उसे मैने कॉलेज मे शायद काई बार देखा था, और यदि मेरा अंदाज़ा सही था तो वो यक़ीनन मेरा सीनियर है......

"इसका नाम गौतम है और ये सेकेंड एअर मे है...."नवीन ने धीरे से कहा, लेकिन यदि वो ज़ोर से भी कहता तो कोई फरक नही पड़ता क्यूंकी वहाँ हमे सुनने वाला कोई नही था, जो बीमार थे वो तो अलॉट हुए रूम मे ही पड़े थे और जो उनके करीबी थे वो या तो अपने करीबी के साथ रूम मे थे या फिर बाहर की हवा खाने के लिए बाहर गये हुए थे...उस वक़्त हम तीनो रूम नंबर. 125 की खिड़की से अंदर देख रहे थे, हम तीनो ने देखा कि उस लड़के ने एश का हाथ अपने दोनो हाथो से थाम लिया और कुछ बोलने लगा...जिसे सुनकर एश की आँखे खुशी से छलक उठी....

उस वक़्त आँखो मे आँसू उसके भी थे ,उस वक़्त दिल मेरा भी रोया था.....उस वक़्त अपने प्यार के सामने वो भी चुप थी ,उस वक़्त अपने प्यार के सामने चुप मैं भी था....उसके बगैर जीने की आदत ना तो उसे थी और उसके बगैर जीना मेरा भी मुश्किल था......

धीरे-धीरे मेरे कदम खुद बा खुद बाहर के लिए चल पड़े, अब सिचुयेशन बिल्कुल अलग थी, जहाँ कुछ देर पहले तक मैं यहा आने के लिए मरा जा रहा था वही अब मैं जल्द से जल्द यहाँ से दूर जाना चाहता था,जहाँ कुछ देर पहले मेरा दिल उसके दीदार के लिए उछल-उछल कर बेतहाशा हुआ जा रहा था वही अब मेरा दिल हताश होकर शांत बैठ गया था....हॉस्पिटल से बाहर आते वक़्त मैने कयि लोगो को देखा, लेकिन फिर भी ना जाने क्यूँ ऐसा लग रहा था कि मैं वहाँ ,उस बड़े से आलीशान हॉस्पिटल मे बिल्कुल अकेला हूँ....कोई यदि वहाँ धीरे से भी कुछ बोलता तो उसकी आवाज़ जोरो से मेरे कानो मे चुभति....मुझे उस वक़्त ऐसा लगने लगा था जैसे की मैं बरसो से उस जगह क़ैद हूँ और वहाँ से निकलने की कोशिश कर रहा हूँ.......
"अरमान....."मेरे कंधे को पीछे से पकड़ कर अरुण ने मुझे ज़ोर से हिलाया...."कहाँ जा रहा है...."
"बाहर...."अपने चारो तरफ देखते हुए मैने अरुण से कहा,"क्यूँ कुछ हुआ क्या..."
"ये बाहर का रास्ता नही है...सामने देख तू उस रूम की तरफ जा रहा है जहाँ अनाथ डेथ बॉडीस को रखा जाता है...."
अरुण सच कह रहा था, मेरे सामने कुछ दूरी पर वही रूम था, मेरा सर घूमने लगा और उसके बाद आँखो के तार सुस्त पड़ने लगे मैं उस वक़्त सोना चाहता था और मेरे मन मे ना जाने क्या सूझा जो मैं उसी रूम की तरफ चल पड़ा जहाँ मरे हुए लोगो के शरीर को रखा जाता था....मेरा दिमाग़ मेरे काबू मे नही था....मैं बस सोना चाहता था....
"अबे रुक,..."नवीन और अरुण ने मुझे पकड़ा लेकिन मैं उन्हे घसीटते हुए आगे बढ़ने लगा.....
"वत्फ़, बीसी मरवाएगा हमे..."अरुण मेरे कान के पास चिल्ला कर बोला और अचानक ही मैं होश मे आया.....
"मुझे क्यूँ पकड़ के रखा है बे..."उन दोनो को घूरते हुए मैने कहा,....
नवीन कुछ कहना चाहता था, लेकिन अरुण ने उसे इशारा करके शांत कर दिया और खुद बोला...."कुछ नही चल यहाँ से....

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Re: hindi latest sex story - दिल दोस्ती और दारू

Unread post by rajkumari » 20 Jan 2017 09:52

जहाँ एक तरफ एश ने स्यूयिसाइड करने की कोशिश की थी वही मेरे और एश के प्यार ने भी, जो कि शुरू तक नही हुआ था, स्यूयिसाइड करने की कोशिश की.....वो दिन मुझे आज भी याद है जब मैं बहक कर उस काले रूम की तरफ जा रहा था....इंजिनियर था इसलिए छोड़ दिया वरना यदि डॉक्टर होता तो दिमाग़ निकालकर उसमे मेरे उस दिन के बिहेवियर का रीज़न ढूंढता........

"मंदिरो मे तुझको पाने की लाख मन्नते भी कर लेता मैं....
यदि मिल जाती तू मुझको.....
मस्जीदो मे बैठ कर सुबह-शाम आदाब भी कर लेता मैं....
यदि वहाँ दिख जाती तू मुझको....
बड़ी दिलकश और दिल्चश्प निकली तेरी गम-ए-जुदाई.....
ना तू मिली और ना ही मैं मंदिर गया.....
ना तू दिखी और ना ही मैं मस्जिद गया.....
लेकर हाथो मे पैमाना तेरे इश्क़-ए-शराब का....
मैं वापस महफ़िल मे आकर बैठ गया......
"थोड़ा बरफ डाल, साला बहुत कड़वा है...."वरुण ने अपनी ग्लास खाली करके कहा"ये क्या बे, तू तो सेनटी कर रहा है मुझको अपने ये स्टोरी सुनकर, खैर आगे सुना..."
.
.
उसकी और मेरी मोहब्बत की बड़ी अजीब दास्तान है...
उधर ना उसका दिल खिला , इधर मेरा दिल भी रेगिस्तान है.....
उस दिन ना जाने मुझे क्या हो गया था , एश को गौतम के इतने करीब देखकर मैं अपना आपा खो बैठा था...उस दिन मैं नवीन के रूम पर नही रुका, अरुण का बहुत मन था लेकिन मेरी वजह से , मेरे हॉस्टिल वापस आने की ज़िद की वजह से नवीन ने मुझे और अरुण को शाम के समय हॉस्टिल छोड़ दिया....
"आइ वॉंट टू नो मोर अबाउट देम की उनका रिलेशन्षिप कब से और कैसे शुरू हुआ था...."हॉस्टिल के अंदर घुसते ही मैने अरुण से कहा....
" मैं सबकी जनम कुंडली लेकर नही बैठा हूँ, जो तू सबके बारे मे मुझसे पूछता फिरे...."अरुण खिसिया कर बोला....
"कुछ जुगाड़ नही है..."
"सॉलिड जुगाड़ है....यहाँ से कुछ दूरी पर दारू भट्टी है वहाँ से एक बोतल ला और पीकर एश और अपनी बेमतलब की लोवे स्टोरी का दा एंड कर दे....समझा..."
"सीधे-सीधे बोल ना कि तेरी फट गयी है..."
"जैसा तू समझ...."
मैं समझ गया था कि अरुण नाराज़ है और उसकी नाराज़गी की वजह शायद ये थी कि मैं ना तो खुद नवीन के रूम मे रुका और ना ही उसे रुकने दिया...
"अरमान का रूम यही है क्या..."मैं अपने बिस्तर पर और अरुण अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था ,तभी मुझे ये आवाज़ सुनाई दी, मेरे रूम के बाहर कोई था जो मेरे बारे मे पुछ रहा था, मैं खुद बाहर जाने के लिए उठा ही था कि दनदना के तीन सीनियर्स मेरे रूम मे आ धम्के....
"तुम दोनो मे से अरमान कौन है..."
"मैं हूँ..."मैने उनसे कहा और अंदर ही अंदर शपथ ले ली कि यदि ये कुछ उल्टा सीधा करेंगे तो मैं बिना कुछ सोचे इनसे भिड़ जाउन्गा......
"इसे पहचानता है..."उन तीनो मे से एक के हाथ मे एक फोटो थी ,जिसे दिखा कर वो मुझसे पुछ रहे थे...उनके हाथ मे उसी शक्स की फोटो थी जिसने वरुण और उन पाँच चुदैलो के साथ मिलकर मेरी रॅगिंग ली थी.....
"हां...."
"इसने वरुण के साथ मिलकर तेरी रॅगिंग ली थी...."
"निशान अभी तक मेरे पीठ मे है...."
"तू सुन..."एक ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मेरी तरफ देख कर बोला"ये साला सबसे बड़ा चूतिया है और वरुण उससे भी बड़ा, एक सीनियर हॉस्टिल वाला जूनियर हॉस्टिल वाले की रॅगिंग ले तो वो चलता है क्यूंकी हॉस्टिल वाले सीनियर का ये जन्मसिद्ध अधिकार है....लेकिन यदि कोई सिटी वाला हॉस्टिल वाले की रॅगिंग ले तो फिर उनकी बॅंड बजानी पड़ती है....इसको तो हमने बहुत मारा , अब ये तेरे पास भूल के भी नही भटकेगा और रही बात वरुण की ....तो कल सुबह रिसेस मे बाइक स्टॅंड पर मिलना....."
"थॅंक यू सर...."मैं खुशी खुशी नाचना चाहता था,लेकिन मैने खुद को कंट्रोल किया....
"एक बात बता..."वापस जाते हुए उनमे से एक ने कहा"तूने आज उन पाँचो चुदैलो को छेड़ा था क्या..."
"हल्का सा मज़ाक किया था उनके साथ...लेकिन आपको किसने बताया..."
"मुझे किसने बताया वो छोड़ और यदि वो कल कॉलेज के पीछे वाले गेट के पास दिखे तो हल्का मज़ाक नही थोड़ा ज़्यादा कर लेना...."
"अरुण ये कौन था...."उन तीनो के जाने के बाद मैने अरुण से पुछा....
"अबे इसको नही जानता..."
"ना...कौन है..."
" वरुण का सबसे बड़ा दुश्मन , सामने का नाम नही मालूम लेकिन इसका सरनेम सीडार है और सब इसे सीडार ही कहते है....."
सीडार को हॉस्टिल मे रहने वाले मशीहा के नाम से भी पुकारते थे...कहते है कि जब सीडार फर्स्ट एअर मे था तो उसकी किसी सीनियर ने जम कर रॅगिंग ली थी, लेकिन उसके बाद उसने एनएसयूई का एलेक्षन जीता और सारे कॉलेज मे हाइलाइट हुआ और जब वो थर्ड एअर मे आया तो जिस सीनियर ने उसकी रॅगिंग ली थी उसे उसने कुत्तो की तरह मारा था.....अब वो फोर्त एअर मे था और हॉस्टिल के स्टूडेंट्स को परेशान करने वालो की खटिया खड़ी कर देता था.....हॉस्टिल वालो की यूनिटी का सबसे बड़ा पहलू शायद सीडार ही था.....लेकिन कुछ चूतिए रहते है जो खुद को तीस मार ख़ान समझ कर होशियारी मारते है....मेरी रॅगिंग हॉस्टिल के जिस सीनियर ने ली थी वो भी उन चूतियो मे से था और हमेशा सीडार के खिलाफ जाता था , यदि वरुण के साथ मिलकर उसने मेरी रॅगिंग ना ली होती तो शायद सीडार उसे छोड़ भी देता और बात दब भी जाती....लेकिन जब मैने कल उन 5 चुदैलो को छेड़ा तो वो पूरे कॉलेज मे गॉसिप का मॅटर बन गया और वही से ग्राउंड पर मेरी रॅगिंग की खबर सीडार को लगी......

एक बार फिर से मुझे कल का इंतजार था, मैं चाहता था कि एक बार फिर से वो पाँचो चुड़ैल कॉलेज के पीछे वाले गेट के पास खड़ी रहे और मेरी मुलाकात उनसे हो जाए......
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उस दिन की बात ही अलग थी, दो शेर आमने सामने थे, फरक सिर्फ़ इतना था कि एक असलियत का था तो दूसरा प्लास्टिक का बेजान.....एक शेर तो मैं था और दूसरा शेर वो पाँचो चुड़ैल खुद को मान रही थी , वो उस वक़्त कॉलेज के पीछे वाले गेट के पास खड़ी होकर इस धुन मे मगन थी कि उनके बाय्फ्रेंड मेरी अच्छी खबर लेंगे, लेकिन उससे भी अच्छी खबर तो मेरे पास थी.....वो पाँचो भी शायद कॉलेज के पीछे वाले गेट पर मेरा ही इंतज़ार कर रही थी.....
"ला सिगरेट दे, धुआ उड़ाते हुए जाउन्गा...."झाड़ियों मे घुसे हुए मैने कहा"और वहाँ मेरी बेज़्जती कर देना, मैं जो कहूँ उसे करना और ऐसे रिएक्ट करना जैसे मैं तेरा बाप हूँ..."
"पकड़ के हिला ले फिर..."
"मज़ाक कर रहा था, चल आजा..."
सिगरेट के कश मारते हुए मैं उनकी तरफ तैश से बढ़ा , आँखो मे काला चश्मा और उंगलियो मे सिगरेट फिराता हुआ मैं उनके पास पहुचा....
"क्या हाल है बंदरियो, उस दिन का याद नही जो आज यहाँ फिर मरने आ गयी...."अपना चश्मा नीचे करके मैने सिगरेट का कश लिया और उन पाँचो की तरफ फेक दिया....
"ज़्यादा ओवर आक्टिंग मत कर"अरुण मेरे कान मे फुसफुसाया....
"ऐसा क्या..."धीमी आवाज़ मे मैने कहा"चल अब देख..."
"अच्छा ये बताओ, तुम पाँचो चुड़ैल यहाँ क्या सोच कर खड़ी हो...."
पहले बंदरिया और फिर चुड़ैल....अपने लिए ऐसे वर्ड सुनकर उनका पहले से ही सब कुछ लाल हो गया था तभी विभा ने मुझे धमकी दी कि वरुण विल फक यू.....
"क्यूँ तू कम पड़ गयी क्या या फिर वो पहले से ही ऐसा है..."
"आज तुझे घसीट-घसीट का मारेंगे हमारे बाय्फरेंड्स...."
"माँ कसम बहुत बेकार डाइलॉग था...."अपने जेब से रजनीगंधा का पॅकेट निकाल कर मैने मुँह मे डाला और फिर बोला"मुँह मे रजनीगंधा....कदमो मे लौंडिया, ऐसे डाइलॉग मारा कर...."
ना जाने वो क्या सोच कर आज यहाँ खड़ी होकर मेरा इंतज़ार कर रही थी...खैर मैने अपना प्रोग्राम जारी रखा और सबसे पहले विभा के सीने पर नज़र डाली...
"यार, अरुण आजकल टेन्निस बाल बड़े महेंगे हो गये है और इनको देखो दो दो लटका के घूम रही है...."
"यू बस्टर्ड, युवर काइंड ऑफ बॉय ईज़ लाइक माइ पिस, गो फक युवरसेल्फ आंड युवर फॅमिली, "झल्लाते हुए विभा बोली....
"आंड युवर काइंड ऑफ गर्ल्स आर लाइक माइ लवदा का सफेद पानी, जस्ट शॅग आंड फ्लो इंटो टाय्लेट बाइ अप्लाइयिंग बर्नूली'स थिरेम आंड दा एनर्जी प्रोड्यूसस बाइ मी फॉर दिस वर्क ईज़ ईक्वल टू दा युवर सकिंग पवर ऑफ डिक,....."
"व्हाट...."वो अपना सर गुस्से से खुजाते हुए बोली....
"मतलब कि दिल के अरमान आँसुओ मे बह गये "
"तू रुक , अभी वरुण को बुलाती हूँ...."पाँव पटक कर विभा वहाँ से चली गयी और उसके पीछे -पीछे बाकी की चुड़ैल भी चल दी....
"क्या गाली दी है भाई...."उनको जाते हुए देखकर अरुण ने कहा..."वैसे बर्नूली थिरेम का फ़ॉर्मूला क्या है ,मुझे याद नही आ रहा..."
"वो तो मुझे भी नही मालूम "मैं बोला" और पहले तो विभा की गान्ड से अपनी नज़र हटा...."
"वो तो बस मैं......क्यूंकी आइ लाइक पिछवाड़ा "
"ये मत भूल कि अभी हम भी कॉलेज के पिछवाड़े मे खड़े है, जल्दी चल वरना क्लास के लिए देरी हो जाएगी...."
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पंगा तो आज होना ही था, क्यूंकी वरुण और उसके दोस्त मुझपर पहले से ही भड़के हुए थे और उपर से आज मैने उनकी आइटम्स को भी छेड़ा था, और जहाँ तक मेरा अंदाज़ा था उसके अनुसार वो पाँचो फिर से मेरी शिकायत करेंगी और उसके बाद वरुण अपनी पूरी गॅंग के साथ मुझे मारने आएगा लेकिन उसके और मेरे बीच सीडार खड़ा था.....

"यदि सीडार नही आया तो...."मेरी धड़कने लाइट की वेलोसिटी से भी तेज चलने लगी, जब मेरे दिल मे ये ख़याल आया....क्यूंकी मैं जनता था कि यदि सीडार नही आया तो वरुण और उसके चम्चे मेरा बहुत बुरा हश्र करेंगे, मैने खुद को कयि बार समझाया कि ये सब मेरे बेतुके ख़याल है, सीडार मेरा साथ ज़रूर देगा लेकिन जब दिल नही माना तो मैने अपने मोबाइल निकालकर सीडार का नंबर डाइयल किया और उधर से तुरंत रेस्पोन्स मिला...
"हेलो..."
"सर मैं अरमान...."
"अरमान...."उसने मेरा नाम ऐसे लिया जैसे कुछ याद करने की कोशिश कर रहा हो और फिर बोला"हां बोल, अरमान..."
"वो सर, मैने आज फिर उन लड़कियो को छेड़ा , जो कॉलेज के पीछे वाले गेट पर खड़ी रहती है...."
"गुड, लेकिन अभी कॉल क्यूँ किया...."
"सर, वो विभा बोल के गयी है कि वो मुझे देख लेगी और उसका इशारा सॉफ था कि वो मुझे वरुण से...."
"डर मत, आज रिसेस मे कॉल करना"मेरी बात काट कर सीडार ने कहा और कॉल कट कर दी....
मोबाइल जेब मे रखकर मैने टाइम देखा, रिसेस होने मे चन्द मिनट. ही बाकी थे और मेरी साँसे तेज हो चली थी.....टीचर ने 10 मिनट. पहले ही क्लास छोड़ दी थी लेकिन ये हिदायत दी थी कि जब तक रिसेस का टाइम नही हो जाता कोई भी क्लास से बाहर नही निकलेगा.....किताबो से तो दुश्मनी हो गयी थी इसलिए पढ़ाई के बारे मे सोचना मैने मुनासिब नही समझा और एक बार फिर सीडार के बारे सोचने लगा.....

सीडार जहाँ एक तरफ इस साल एनएसयूआइ के एलेक्षन मे प्रेसीडेंट के पोस्ट के लिए खड़ा हुआ था वही दूसरी तरफ वरुण भी प्रेसीडेंट पोस्ट के लिए एक मज़बूत उम्मीदवार के रूप मे सीडार के खिलाफ था, इसलिए दोनो मे अनबन एक नॉर्मल सी बात थी....लेकिन ये अनबन इस साल से नही बल्कि बहुत पुरानी थी....पिछले साल वरुण ने कॉलेज के मेन गेट के पास हॉस्टिल वाले एक लड़के का शर्ट फाड़ दिया था और उसे बहुत मारा भी था और जब ये बात सीडार को मालूम चली तो वो पूरे हॉस्टिल वालो को समेट कर दूसरे दिन वरुण को उसी की क्लास मे यानी कि 4त एअर की क्लास मे घुसकर सबके सामने वरुण को औकात मे रहने की हिदायत दी थी....वरुण ना तो उस वक़्त सीडार का कुछ कर पाया और ना ही उसके बाद सीडार का कुछ उखाड़ पाया.....सीडार के पास जहाँ एकतरफ हॉस्टिल मे रहने वाले 200 लड़को का सपोर्ट था वही कॉलेज स्टाफ भी उसके साथ था, कॉलेज स्टाफ का सीडार के साथ होने की सबसे बड़ी वजह शायद ये थी कि वो अपने क्लास का टॉपर था , उपर से फुटबॉल का एक शानदार प्लेयर भी था.....
"मल्टी टॅलेंटेड लौंडा..."कुल मिलकर सीडार को यही बोल सकते है.....
रिसेस मे मैने एक बार फिर सीडार को कॉल किया और उसने मुझे बताया कि आगे क्या करना है.....मैं, अरुण के साथ क्लास से बाहर आया और बाइक स्टॅंड की तरफ बढ़ने लगा....ये जानते हुए भी कि वहाँ इस वक़्त वरुण की मंडली जमा होगी....लेकिन हमारे प्लान के मुताबिक मुझे बाइक स्टॅंड पर जाना ही था.....
"कॉलेज मे जाकर पढ़ाई करना बे, लौंडिया बाज़ी मे बिज़ी मत रहना और ना ही इस चक्कर मे पड़ना..."मेरे भाई की इस पहली अड्वाइज़ की मैने कल ही धज्जिया उड़ाई थी....क्यूंकी यदि एक लड़का किसी लड़की से मिलने हॉस्पिटल मे जाता है वो भी बिना जान पहचान के तो इसे हिन्दुस्तान के लोग लौंडियबाज़ी ही कहते है.....या फिर उसकी शुरुआत.

"दारू, सिगरेट इन सबको छुआ भी तो सोच लेना...."भाई की इस अड्वाइज़ का हाल पहले वाली अड्वाइज़ की तरह था....
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"और यदि लड़ाई झगड़े की एक भी खबर घर पर आई तो उसी वक़्त तेरा टी.सी. निकलवा दूँगा समझा..." और अब मैं अपने भाई की इस आख़िरी अड्वाइज़ की धज्जिया उड़ाने जा रहा था.......
"वरुण वो देख...."मुझे देखकर बाइक स्टॅंड पर बैठे एक भारी भरकम शरीर वाले ने मेरी तरफ इशारा किया....

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