बाबुल प्यारे compleet

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raj..
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बाबुल प्यारे compleet

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 10:40

बाबुल प्यारे


चेतावनी ........... ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन और बाप बेटी के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक बाप बेटी के सेक्स की कहानी है


मैं अपने मा बापू की लाड'ली छेमिया देख'ते देखते 16 वें बसंत में आ गयी. मा तो हर काम में मुझे डान्ट'ती रहती थी पर बापू बहुत प्यार कर'ता था. बात बात में मेरी लाड'ली बेटी मेरी छेमिया कहते थकता न था. मैं अपने मा-बाप की अकेली औलाद हूँ. हम गाओं में रहते थे. मेरे बापू खेती बाड़ी करते हैं. बापू तो अब तक मुझे बच्ची ही समझ'ता है. जब की मेरी छाती के अमरूद बड़े होने लगे और मेरी चूत के इरद गिरद काफ़ी बाल उग आए.
आज से करीब साल भर पह'ले एक रात अचानक मेरी चूत से ढेर सारा खून बाहर आया था और मेरी पॅंटी खून से तर बतर हो गयी थी तो मैं तो घबरा कर रोने लगी और रोते रोते मा के पास पाहूंची थी. कुच्छ शर'माते हुए जब मा को पूरी बात बताई तो मा ने मुझे कई हिदाय'ते दी. मा ने अपना सॅनिटरी नॅपकिन दिया था. अब मा मेरे चल'ने उठ'ने और घर में फुदक'ते रहने पर डान्ट'ने लगी.
जब मैं छोटी थी तो बापू ने मुझे गाओं के स्कूल में डाल दिया. वो स्कूल 10थ तक था. अभी एक महीने पह'ले ही मैने दसवीं की परीक्षा दी है पर रिज़ल्ट आने में देर है. मैं आगे पढ़'ना चाह रही थी पर मा ने शहर जा के पढ़'ने के लिए साफ मना कर दिया. मैं बापू के साम'ने बहुत रोई गिड'गिड़ाई पर मा के आगे बापू की भी नहीं चलती थी. बापू ज़्यादा पढ़े-लिखे नहीं हैं इसलिए उन्होने मुझे कहा था कि पढ़ाई के मामले में मैं जैसे ठीक समझू करलूँ.
इसी बीच दो दिन के लिए मेरे शहर वाले चाचाजी गाओं आए. चाचा की मेरी हम उम्र एक लड़की जिसका नाम रस्मी और एक लड़का था जो कि मुझ'से 5 साल छ्होटा था. घर में और बातों के साथ मेरी शहर में पढ़ाई की भी बात चली और चाचा ने कहा भी था कि दोनों बहनें यानी कि मैं और रस्मी साथ साथ कॉलेज चली जाया करेगी पर मा ने बात टाल दी. मैं आगे पढ़'ना चाह रही थी बापू भी राज़ी था पर हम दोनों की मा के आगे न चली.
मुझे काफ़ी मायूस देख चाचा ने कहा कि कुच्छ दिन इसे मेरे साथ शहर भेज दो, रस्मी के साथ इसका बहुत मन लग जाएगा और मैं चाचा के साथ शहर चली आई. शहर आ कर मैं तो हकि-बकी रह गयी. शहर की लड़कियों के कपड़े देख कर मुझे लगा कि मुझे वापस गाओं चले जाना चाहिए.कहीं मैं शहर के माहौल में बिगड़ ना जाऊं.
हमारे गाओं में लड़कियाँ सिर्फ़ सलवार सूट ही पेहेन्ती थी और वो भी काफ़ी लूज. शहर में तो किसी लड़की को लूज का मतलब ही नहीं पता था. जिसे देखो टाइट @जीन्स, टाइट टी-शर्ट, स्लीव्ले शर्ट, स्कर्ट, और अगर सलवार कमीज़ तो वो भी बहुत टाइट. रस्मी मुझ से बहुत ही मॉडर्न थी पर हम उम्र होने के कारण हम दोनों बहुत जल्द घुल मिल गये. रात में मैं और रस्मी साथ साथ सोते.
कुच्छ ही दिनों में हम पक्की सहेलियाँ बन गयी. शहर का महॉल, मेरी नादान उमारिया और रस्मी के साथ ने मुझे जल्द ही मॉडर्न बना दिया. रस्मी के पास कंप्यूटर भी था. रात में अब रस्मी मुझे अडल्ट वेब साइट्स का नज़ारा दिखाने लगी. नेट पर राज शर्मा का एक ब्लॉग कामुक-कहानियाँडॉटब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम जो की गूगल का एक हिन्दी की कहानियों के लिए फेमस ब्लॉग है उस'की वह मेंबर थी. उस ब्लॉग की कहानियाँ पढ़ के तो में हक्की बक्की रह गयी. मुझे विस्वास नहीं हो रहा था कि हक़ीक़त में कुच्छ ऐसा भी हो सक'ता है क्या.
फिर एक दिन रस्मी ने राज शर्मा के एक वीडियोब्लॉग -- वीडियोदेशीडॉटब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम पर मुझे कुच्छ अडल्ट क्लिप्स दिखाई. मज़े की बात ये थी कि इस ब्लॉग मे वीडियो देख सकते है डाउनलोड करने की ज़रूरत नही थी यह सब देख कर मेरी हालत खराब हो गयी. ऐसी फिल्म रोज़ आती थी और मैं रोज़ ही देखती थी. मैने नोटीस किया की यह सब देखने में मुझे मज़ा आता है और सोचने लगी कि असली में सेक्स करने में कितना मज़ा आता होगा. अब मुझे पता चला कि शहर की लड़कियाँ एरॉटिक कपड़े क्यों पहेंटी हैं.असल में उन्हे सेक्स में मज़ा आता है और वो उससे बुरा नहीं मानती.

raj..
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Re: बाबुल प्यारे

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 10:43


इसी बीच मैने रस्मी के साथ बाज़ार जाके काई नये कपड़े सिलवाए. मैने कमीज़ को टाइट सिलवाया और सलवार को भी.मैने कमीज़ को काफ़ी डीप-कट सिलवाया और सामने कुच्छ बटन रखवाए.फिर मैने एक शॉप पर जाकर एक स्कर्ट , टाइट और छ्होटा टॉप और एक मॅक्सी (फुल्ली कवर्ड नाइटी) ली.
रस्मी के साथ ने मुझे सेक्स के रंग में भी रंग दिया. राज शर्मा के ब्लॉग की वासनात्मक कहानियाँ पढ़'के तो में सेक्स के बारे में काफ़ी कुच्छ जान गयी थी. रात में मैं और रस्मी एक दूसरे के जवान होते अंगों से खेलने लगे.
फिर एक दिन मैं गाओं वापस आ गयी, हालाँकि रस्मी का साथ छ्चोड़'ते वक़्त मेरी आँखों में आँसू आ गये . मा और बापू मुझे देख बहुत खुस हुए. बापू ने कुच्छ शहर का हाल चाल पूचछा और फिर खेत में काम करने निकल पड़े. मा कुच्छ देर बाद रसोई में चली गयी. मैने मा के साथ रसोई में ही आ गयी और मा को शहर की बातें बताने लगी. लगभग 2 घन्टे बाद मा ने बापू का खाना एक पोट्ली में बाँधा और बोली की मैं खेत जा रही हूँ.
मैं : लाओ मम्मी, मैं दे आती हूँ, बहुत दीनो से अपना खेत भी नहीं देखी, खेतों की भी बहुत याद आती है.
मम्मी : ठीक है, तू ही दे आ, पहले भी तो तू ही जाती थी मैं बापू का रोटी का टिफिन लेकर खेत में चल्दि. बापू खेत में सिर्फ़ लूँगी पेहेन्ते थे. बापू को मैने पहेले भी ऐसे देखा था लेकिन आज पता नहीं मुझे अंदर से कुच्छ हो रहा था. बापू की अच्छी- ख़ासी मसल्स थी और चेस्ट चौड़ी. बापू का चेहरा मासूम था. बापू ने लूँगी अपनी नेवेल के नीचे बाँधी हुई थी और उनका पूरा बदन पसीने से भरा था. बापू ज़मीन में फावड़ा(टूल टू डिग ग्राउंड) चला रहे थे. बापू ने मुझे देख'ते ही कहा,
अर्रे छेमिया, तू. अपनी मम्मी को ही आने देती, तू सफ़र करके आई है, थक गयी होगी.
मैं : नहीं तो फिर बापू रोटी खाने लगे. मैं बापू के बदन को देख रही थी. पहली बार मुझे एहसास हुआ कि मेरे बापू कितने मस्क्युलर हैं, कितनी चौड़ी चेस्ट है और चेस्ट पे बाल कितने अच्छे लगते हैं और नेवेल भी प्यारी है. मैं सोचने लगी यह मुझे क्या हो गया है, भला कोई बेटी अपने बापू को इस आंगल से देखती है, पर क्या करूँ, कंट्रोल नहीं होता. जब बापू रोटी खा चुके तो मैं खेत से वापस आते वक़्त यह ही सोचती रही कि यह मुझे क्या हो गया है, मेरा दिल कुच्छ करना चाहता, पर क्या करना चाहता है मैं यह ना समझ पाई. रात को हम लोग ज़मीन पर ही चादर बिछा कर सोते थे. मेरी आँखों के सामने बार बार बापू की बॉडी आ रही थी. मैं बापू और मम्मी के बीच सोती थी, अभी मैं उनके लिए बची थी.
रात को सोते वक़्त मुझे लगा कोई मेरे स्तन्नो (ब्रेस्ट) पर हाथ फेर रहा है. फिर धीरे धीरे वो हाथ मेरे स्तन्नो को दबाने लगे. मुझे भी मज़ा आने लगा. फिर वो हाथ मेरे टाँगों (लेग्स) के बीच में रब करने लगे, मुझे लगा कि यह मेरे बापू ही हैं.मैं उनकी छाति पर हाथ फेरने लगी और उनकी लूँगी उतारने लगी. उन्होने मेरी सलवार निकाल दी.फिर मेरी कछि (पॅंटी) .और मेरी चूत को जैसे ही उन्होने किस किया . मेरी आँख खुल गयी.देखा तो यह मेरा सपना था.बापू तो एक तरफ सो रहे थे.
लेकिन मेरी टाँगों के बीच में सच में आग लगी हुई थी. क्या एक बेटी अपने बाप से सेक्स का सपना भी देख सकती है ? एक तरफ तो मुझे गिल्टी फील हो रही थी तो दूसरी तरफ मुझे मज़ा भी आ रहा था. एक तो मेरा रस्मी का साथ छुट गया था और अब इस गाओं के माहॉल में मेरा मन नहीं लग रहा था. लेकिन इंसान निराशा में भी कोई न कोई आशा की किरण ढून्ढ लेता है और इस घर में जहाँ केवल मा और बापू थे मुझे वह आशा की किरण बापू में दिखाई पाद'ने लगी. पता नहीं क्यों मम्मी मुझे सौत लग'ने लगी.दूसरे दिन फिर में बापू का खाना लेके खेत पहून्ची.

raj..
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Re: बाबुल प्यारे

Unread post by raj.. » 16 Oct 2014 10:44


बापू : ले आई खाना.
मैं : हां बापू, चलो काम छ्चोड़ो और पहले खा लो बापू खाने लगे.
मैं : बापू आप'की शहर में मुझे कितनी याद आ रहे थी और आप हो की मुझे पह'ले की तरह प्यार ही नहीं करते हो.
बापू : बेटी याद तो हूमें भी बहुत आती है तुम्हारी. तुम शहर क्या चली गयी मेरा तो मन ही नहीं लग रहा था. अब तक बापू खाना खा चुके थे. बापू खड़े हुए तो मैं बापू के गले से लिपट गयी.
मैं : बापू तुम्हारे बिना मुझे शहर में कुच्छ भी अच्च्छा नहीं लग रहा था. यह कह'ते कह'ते मैं बापू की खुली छाति से अपनी संतरे सी चूचियाँ रगड़'ने लगी.
बापू : बेटी मेरे पसीने से तेरे कपड़े कहराब हो जाएँगे मैं बापू से और कस के लिपट गयी और हल्के हल्के अपने ब्रेस्ट बापू की चेस्ट से रगड़ने लगी
मैं : बापू अगर मुझे आपकी बहुत याद आए तो मैं क्या किया करूँ ? इस रगदाई में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.बापू क्या समझते.वो बहुत भोले थे
बापू : जब भी तुम्हे बहुत याद आए तो यहाँ खेत में आ जाया करो. अब मैं बापू से अलग हुई लेकिन अपने हाथ मैने बापू की चेस्ट पर फेरने लगी. फिर मैं बापू से इजाज़त लेकर घर को चल दी.
मेरे प्यारे बाबुल मुझे सच्च में बहुत प्यार कर'ते थे पर यह प्यार वो प्यार नहीं था जो मैं बापू से चाह'ती थी. मैने फ़ैसला कर लिया कि मेरी प्यास को मेरे बापू ही बुझाएँगे.उस रात मैं सो नहीं सकी. रस्मी के साथ कंप्यूटर पर जो वीडियोज देखे थे उनके सीन मेरी आँखों के आगे घूम'ने लगे. बापू मुझे सॅप'नों का राजकुमार लग'ने लगा.
दूसरे दिन जब बापू खेत पर चले गये तो पल पल मेरे लिए भारी होने लगा. मैं बात देख रही थी कि कब खेत मैं खाना पाहूंचाने का सम'य आए और मैं अपने प्यारे बाबुल के पास पहून्च जाऊं. इन दिनों खेत की फसल मेरी हाइट से ऊँची हो गयी थी इसलिए कोई खेत में आसानी से दिखता नहीं था. मैने सोचा यह भी तो अच्छा ही है.
मैं : बापू.मैं आ गयी मैं बापू से जाकर लिपट गयी.और हां, बापू सिर्फ़ लूँगी में थे.
बापू : अर्रे बेटी, तू कब आई
मैं : अभी अभी, मैं अपने ब्रेस्ट बापू की चेस्ट से रगड़ने लगी.मज़ा आ रहा था.
बापू : छेमिया तुम तो कुच्छ ज़्यादा ही उदास रहने लगी हो मैने सोचा सब कुच्छ अभी करने से काम बिगड़ सकता है.आख़िर एक बाप अपनी बेटी को इतनी आसानी से नही चोदेगा. मुझे अपने बापू के डंडे को अपनी चूत की तरफ धीरे धीरे आकर्षित करना होगा. मुझे पता था कि अगर मैं एक दम से ओपन हो गयी तो बात बिगड़ सकती है. मैं चाहती थी के बापू खुद ही बेबुस हो जाए और उन्हे लगे कि इस काम के वो खुद भी रेस्पॉन्सिबल हैं. मैने सोचा सारा काम कल से शुरू किया जाए. रात को हम बाप-बेटी एक साथ तो सोए लेकिन मैने कुच्छ नहीं किया.और बापू ने क्या करना था, उनके लिए तो मैं बेटी के अलावा और कुच्छ ना थी. मैं रात को भी वही पुराने सलवार-कमीज़ में सोई.
अगला दिन मेरे लिए आशा की नयी किरण लिए हुए उगा. मेरे मामा के गाओं का एक आदमी सुबह ही घर पहून्च गया था. रात में मेरे नाना की अचानक तबीयत बहुत खराब हो गयी और मा तुरंत उस आदमी के साथ मेरे नाना के घर जाने वाली थी. सुबेह मैने ही सब के लिए नाश्ता बनाया. नास्ता करते ही मा तो उस आदमी के साथ मेरे मामा के गाओं चली गयी.
मैं : बापू मैं दोप-हर को खेत पर रोटी ले आऊँगी.
बापू : अच्छा. बापू के जाने के बाद मैं नहाई और अपना शहर में सिलवाया हुआ टाइट , डीप-कट सूट पहना. दोप-हर हुई तो बापू का खाना खेत पर लेकर चल्दि.मैं तो एग्ज़ाइट्मेंट से मरी जेया रही थी. मेरे डीप-कट कमीज़ में से मेरे उभार (ब्रेस्ट) काफ़ी एक्सपोज़्ड थे.बटन खोलने की देर थी की उभार सॉफ दिखते.ब्रा तो आज मैने पहनी ही नहीं थी.
मैं : बापू
बापू : ले आई रोटी मेरा सूट फ्लोरोस्सेंट ग्रीन कलर का था.जब बापू ने मुझे देखा तो वो थोड़े हैरान से हुए.आख़िर अपनी बेटी के उभारों की झलक पहली बार मिली थी.
मैं : चलो पहले खा लो
बापू : तूने खा लिया ?
मैं : मुझे अभी भूक नहीं है बापू रोटी खाने लगे.
मैं : बापू, आपने मेरा सूट नहीं देखा
बापू : हां, रंग अच्छा है.पर क्या यह थोड़ा टाइट और छ्होटा नहीं है.
मैं : छ्होटा.कहाँ से ?
बापू : सामने से.
मैं : सामने से ? कहाँ सामने से ?
बापू : सामने से.मेरा मतलब है छाति से.
मैं : ओह छाति से, नहीं तो, यह तो शहर में आम है.
बापू : क्या शहर में तुम्हारी उम्र की छ्हॉक'रियाँ ऐसे ही सूट पहन'ती है?
मैं : सब ऐसे पेहेन्ते हैं.बल्कि यह तो कुच्छ भी नहीं.
बापू : कोई मुझे बता रहा था कि शहर का माहौल ऐसा ही है
मैं : हां वो तो है.लेकिन मुझे तो अपने पर कंट्रोल है
बापू : अच्छी बात है बेटी.तुझे अपने आप को ऐसे माहौल से बच के रहना चाहिए बापू ने रोटी खा ली तो मैं घर जाने के लिए चली, दो तीन कदम पर ही मैने पैर (फुट) मुड़ने (स्प्रेन) का बहाना किया और गिर गयी.
मैं : ओह.बापू. बापू भागते हुए आए
बापू : क्या हुआ बेटी ?
मैं : बापू.पैर मूड (स्प्रेन) गया.बहुत दर्द हो रहा है बापू ने मेरा सॅंडल निकाला और देखने लगे
बापू : कहाँ से मुड़ा है.कहाँ दर्द हो रहा है ?
मैं : ऊ.बापू.बहुत दर्द हो रहा है

क्रमशः......................


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