xossip hindi - गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग
xossip hindi - गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग
"देवरजी, तुम्हे अपनी माँ को चोदने का मन करता है तो इसमे शरमाने की कोई बात नही है." मैने कहा, "बहुत से लड़के अपनी माँ को चोदना चाहते हैं. और बहुत सी मायें अपने बेटों से चुदवाकर अपनी हवस मिटाती हैं."
"भाभी, क्या ऐसा भी होता है?" किशन ने आश्चर्य से पूछा.
"बहुत कुछ होता है दुनिया मे, मेरे भोले देवरजी!" मैने कहा.
"पर मेरी माँ ऐसी औरत लगती नही है." किशन बोला.
"तो मैं क्या ऐसी औरत लगती हूँ जो अपने देवर से खेत मे आ के चुदवाती है?" मैने कहा, "सासुमाँ भी एक औरत है और उसे भी दूसरी औरतों की तरह बहुत चुदवाने का मन करता होगा. तभी तो वह बाबूजी से मज़े ले लेकर चुदवाती है. उन्होने अपनी जवानी मे क्या क्या कुकर्म किये हैं हमे क्या पता. अगर वह तुम्हारे भैया से चुदी हो तो हैरत की कोई बात नही है."
मेरी बात सुनकर किशन गनगना उठा.
मैने किशन को एक और कौर रोटी खिलायी. उसके हाथ मेरी जांघों से हटकर मेरे नंगे, सपाट पेट को सहलाने लगे थे. मेरे आंचल को उसने गिरा दिया था और मेरी छोटी ब्लाउज़ मे कैद मेरे चूचियों को बीच-बीच मे दबा रहा था.
किशन ने मेरी ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और मेरी ब्लाउज़ उतार दी. फिर ब्रा का हुक खोलकर मेरी ब्रा भी उतार दी. अब मैं उसके सामने अध-नंगी बैठी थी. सुबह की धूप मेरी नंगी चूचियों पर पड़ रही थी और ठंडी ठंडी हवा से मुझे सिहरन हो रही थी. दूर दूर तक कोई भी नही था, पर इस तरह खुले मे नंगे होने के कारण मुझे डर भी लग रहा था और रोमांच भी हो रहा था.
मैने किशन के मुंह मे एक और कौर रोटी डाली और दूसरे हाथ से उसके लन्ड को हिलाने लगी. वह मेरे पास बैठकर खाना खा रहा था और मेरी चूचियों को मसल रहा था और मेरी निप्पलों को चुटकी मे लेकर मींज रहा था. चारो तरफ़ सन्नाटा था. सिर्फ़ किशन का लन्ड हिलाने के कारण मेरे हाथ की चूड़ियाँ खनक रही थी.
बीच-बीच मे झुककर किशन मेरी चूचियों को पी भी रहा था जिससे सब्जी मेरे निप्पलों पर लग जा रही थी.
"हाय देवरजी, क्या कर रहे हो!" मैने मज़ा लेते हुए कहा, "मेरी चूचियों को तो जूठा कर दिया तुमने."
"बहुत स्वाद आ रहा है, भाभी!" किशन हंसकर बोला, "बैंगन के भर्ते से कभी मैने चूची नही खाई है."
इस तरह हंसी मज़ाक करते हुए किशन का खाना खतम हुआ. उसने मुंह धोया, पानी पिया और कहा, "भाभी, मेरी भूख तो आपने मिटा दी. अब मेरी बारी है आपकी भूख मिटाने की."
मैने अपने नरम होंठ उसके तपते होठों पर रख दिये और उसे चूमने लगी. उसके हाथ मेरी चूचियों को मसलने लगे. मेरी चूत बहुत गीली हो गयी थी और मैं मस्ती मे आहें भरने लगी.
चारपायी पर एक दरी बिछी हुई थी जिस पर किशन ने मुझे लिटा दिया. मैने अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठा दी और अपनी चूत उसके सामने नंगी कर दी. चड्डी पहननी तो मैने कब की बंद कर दी थी.
किशन मेरे खुले पैरों के बीच बैठा. अपना लन्ड मेरी गरम चूत पर रखकर अन्दर ठेलने लगा. उसका लन्ड बहुत आराम से मेरी चूत को चीरता हुआ अन्दर घुस गया. मैने उसे अपने ऊपर खींच लिया और उसके होठों को पीने लगी. उसका मुंह से बैंगन भर्ते की खुशबु अब भी आ रही थी. उसके मुंह मे अपनी जीभ घुसाकर मैं उससे जीभ लड़ाने लगी.
किशन कुछ देर मेरी चूत मे अपना लन्ड डाले पड़ा रहा. फिर वह अपनी कमर चलाने लगा और मुझे चोदने लगा. मैं भी उसका साथ देने लगी. खुले आसमान के तले चुदाई करने का अलग ही मज़ा आ रहा था. वीणा, सोनपुर मे रमेश और उसके तीन दोस्तों जब तुम्हारा और मेरा सुनसान मे बलात्कार किया था उसके बाद खुले मे चुदवाने का मेरे पहला अनुभव था. बहुत मज़ा आ रहा था. तुम्हे भी मौका मिले तो खेत मे किसी से ज़रूर चुदवा कर देखो. एक अलग ही लुत्फ़ पाओगी.
किशन और मैं चारपायी पर चुदाई मे व्यस्त थे. वह काफ़ी संयम के साथ मुझे चोद रहा था, जब के मैं बहुत गरम हो गयी थी. "ओह!! आह!!" करके मैं चूत मे उसका लन्ड ले रही थी.
अचानक मुझे लगा कि कोई हमारी तरफ़ आ रहा है. सरसों के फ़सलों के ऊपर से शायद किसी का सर दिखाई दिया था.
मैने किशन को रुकने को कहा. उसने ठाप लगना जारी रखा और अपना सर उठाकर पीछे देखा.
"कोई नही है, भाभी!" उसने कहा और चोदना जारी रखा.
सुनकर मैं फिर मस्ती मे डूब गयी और चुदवाने मे वस्त हो गयी. "उम्म!! हाय, देवरजी! बहुत अच्छा पेल रहे हो आज! आह!! उफ़्फ़!! अपनी माँ की चूत समझकर...मेरी चूत मार रहे हो क्या?" मैने कहा, "आह!! उम्म!! और जोर से देवरजी! आह!! जल्दी ही तुम अपने भैया की तरह...पूरे चोदू बन जाओगे! ओह!! हाय क्या मज़ा दे रहे हो! आह!! आह!! आह!!"
मेरे सर पर नीला आसमान था. सुबह की हलकी धूप हम दोनो के नंगे शरीर पर पड़ रही थी. खेत के सन्नाटे मे बस किशन के ठापों के ताल पर मेरी चूड़ीयों के खनकने की और पायल के छनकने की आवाज़ आ रही थी.
किशन अपनी सांसों पर काबू रखकर "ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ!" करके मुझे चोद रहा था. अब की बार वह मुझे 10-15 मिनट तक चोदता रहा और मैं दो बार झड़ भी गयी.
जब किशन ने मेरे गर्भ मे अपना वीर्य भरना शुरु किया तब मैं एक और बार झड़ी और जोर जोर से बड़बड़ाने लगी, "और जोर से ठोको, देवरजी! हाय, मैं झड़ी!! आह!! उम्म!! उम्म!! हाय तुम्हारा पानी मेरी चूत मे भर रहा है! बहुत मज़ा आ रहा है! आह!!"
झड़ने के बाद हम देवर भाभी एक-दूसरे से लिपटकर चारपायी के ऊपर कुछ देर नंगे पड़े रहे.
हम दोनो शांत हुए तो किशन मेरे ऊपर से उठा और उसने अपनी चड्डी और पजामा पहन लिया. मैने उठकर अपनी साड़ी और पेटीकोट अपने कमर से उतारी. दोनो मे बुरी तरह सिलवटें पड़ गयी थी. ब्लाउज़ चुदाई के समय मेरी पीठ के नीचे आ गयी थी और उसमे भी बहुत सिलवटें पड़ गयी थी. मैने सोचा, मेरा सिंदूर ज़रूर फैल गया होगा. कोई भी देखकर सोचेगा के मैं बुरी तरह चुद कर आ रही हूँ. वीणा, अपनी हालत पर मुझे शरम भी आ रही थी और रोमांच भी हो रहा था!
मैने ब्लाउज़ और ब्रा पहनी और खाने की प्लेट और खाली डिब्बा लेकर घर की तरफ़ चल दी. किशन वहीं खेत मे रुक गया.
"भाभी, क्या ऐसा भी होता है?" किशन ने आश्चर्य से पूछा.
"बहुत कुछ होता है दुनिया मे, मेरे भोले देवरजी!" मैने कहा.
"पर मेरी माँ ऐसी औरत लगती नही है." किशन बोला.
"तो मैं क्या ऐसी औरत लगती हूँ जो अपने देवर से खेत मे आ के चुदवाती है?" मैने कहा, "सासुमाँ भी एक औरत है और उसे भी दूसरी औरतों की तरह बहुत चुदवाने का मन करता होगा. तभी तो वह बाबूजी से मज़े ले लेकर चुदवाती है. उन्होने अपनी जवानी मे क्या क्या कुकर्म किये हैं हमे क्या पता. अगर वह तुम्हारे भैया से चुदी हो तो हैरत की कोई बात नही है."
मेरी बात सुनकर किशन गनगना उठा.
मैने किशन को एक और कौर रोटी खिलायी. उसके हाथ मेरी जांघों से हटकर मेरे नंगे, सपाट पेट को सहलाने लगे थे. मेरे आंचल को उसने गिरा दिया था और मेरी छोटी ब्लाउज़ मे कैद मेरे चूचियों को बीच-बीच मे दबा रहा था.
किशन ने मेरी ब्लाउज़ के हुक खोल दिये और मेरी ब्लाउज़ उतार दी. फिर ब्रा का हुक खोलकर मेरी ब्रा भी उतार दी. अब मैं उसके सामने अध-नंगी बैठी थी. सुबह की धूप मेरी नंगी चूचियों पर पड़ रही थी और ठंडी ठंडी हवा से मुझे सिहरन हो रही थी. दूर दूर तक कोई भी नही था, पर इस तरह खुले मे नंगे होने के कारण मुझे डर भी लग रहा था और रोमांच भी हो रहा था.
मैने किशन के मुंह मे एक और कौर रोटी डाली और दूसरे हाथ से उसके लन्ड को हिलाने लगी. वह मेरे पास बैठकर खाना खा रहा था और मेरी चूचियों को मसल रहा था और मेरी निप्पलों को चुटकी मे लेकर मींज रहा था. चारो तरफ़ सन्नाटा था. सिर्फ़ किशन का लन्ड हिलाने के कारण मेरे हाथ की चूड़ियाँ खनक रही थी.
बीच-बीच मे झुककर किशन मेरी चूचियों को पी भी रहा था जिससे सब्जी मेरे निप्पलों पर लग जा रही थी.
"हाय देवरजी, क्या कर रहे हो!" मैने मज़ा लेते हुए कहा, "मेरी चूचियों को तो जूठा कर दिया तुमने."
"बहुत स्वाद आ रहा है, भाभी!" किशन हंसकर बोला, "बैंगन के भर्ते से कभी मैने चूची नही खाई है."
इस तरह हंसी मज़ाक करते हुए किशन का खाना खतम हुआ. उसने मुंह धोया, पानी पिया और कहा, "भाभी, मेरी भूख तो आपने मिटा दी. अब मेरी बारी है आपकी भूख मिटाने की."
मैने अपने नरम होंठ उसके तपते होठों पर रख दिये और उसे चूमने लगी. उसके हाथ मेरी चूचियों को मसलने लगे. मेरी चूत बहुत गीली हो गयी थी और मैं मस्ती मे आहें भरने लगी.
चारपायी पर एक दरी बिछी हुई थी जिस पर किशन ने मुझे लिटा दिया. मैने अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठा दी और अपनी चूत उसके सामने नंगी कर दी. चड्डी पहननी तो मैने कब की बंद कर दी थी.
किशन मेरे खुले पैरों के बीच बैठा. अपना लन्ड मेरी गरम चूत पर रखकर अन्दर ठेलने लगा. उसका लन्ड बहुत आराम से मेरी चूत को चीरता हुआ अन्दर घुस गया. मैने उसे अपने ऊपर खींच लिया और उसके होठों को पीने लगी. उसका मुंह से बैंगन भर्ते की खुशबु अब भी आ रही थी. उसके मुंह मे अपनी जीभ घुसाकर मैं उससे जीभ लड़ाने लगी.
किशन कुछ देर मेरी चूत मे अपना लन्ड डाले पड़ा रहा. फिर वह अपनी कमर चलाने लगा और मुझे चोदने लगा. मैं भी उसका साथ देने लगी. खुले आसमान के तले चुदाई करने का अलग ही मज़ा आ रहा था. वीणा, सोनपुर मे रमेश और उसके तीन दोस्तों जब तुम्हारा और मेरा सुनसान मे बलात्कार किया था उसके बाद खुले मे चुदवाने का मेरे पहला अनुभव था. बहुत मज़ा आ रहा था. तुम्हे भी मौका मिले तो खेत मे किसी से ज़रूर चुदवा कर देखो. एक अलग ही लुत्फ़ पाओगी.
किशन और मैं चारपायी पर चुदाई मे व्यस्त थे. वह काफ़ी संयम के साथ मुझे चोद रहा था, जब के मैं बहुत गरम हो गयी थी. "ओह!! आह!!" करके मैं चूत मे उसका लन्ड ले रही थी.
अचानक मुझे लगा कि कोई हमारी तरफ़ आ रहा है. सरसों के फ़सलों के ऊपर से शायद किसी का सर दिखाई दिया था.
मैने किशन को रुकने को कहा. उसने ठाप लगना जारी रखा और अपना सर उठाकर पीछे देखा.
"कोई नही है, भाभी!" उसने कहा और चोदना जारी रखा.
सुनकर मैं फिर मस्ती मे डूब गयी और चुदवाने मे वस्त हो गयी. "उम्म!! हाय, देवरजी! बहुत अच्छा पेल रहे हो आज! आह!! उफ़्फ़!! अपनी माँ की चूत समझकर...मेरी चूत मार रहे हो क्या?" मैने कहा, "आह!! उम्म!! और जोर से देवरजी! आह!! जल्दी ही तुम अपने भैया की तरह...पूरे चोदू बन जाओगे! ओह!! हाय क्या मज़ा दे रहे हो! आह!! आह!! आह!!"
मेरे सर पर नीला आसमान था. सुबह की हलकी धूप हम दोनो के नंगे शरीर पर पड़ रही थी. खेत के सन्नाटे मे बस किशन के ठापों के ताल पर मेरी चूड़ीयों के खनकने की और पायल के छनकने की आवाज़ आ रही थी.
किशन अपनी सांसों पर काबू रखकर "ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ! ऊंघ!" करके मुझे चोद रहा था. अब की बार वह मुझे 10-15 मिनट तक चोदता रहा और मैं दो बार झड़ भी गयी.
जब किशन ने मेरे गर्भ मे अपना वीर्य भरना शुरु किया तब मैं एक और बार झड़ी और जोर जोर से बड़बड़ाने लगी, "और जोर से ठोको, देवरजी! हाय, मैं झड़ी!! आह!! उम्म!! उम्म!! हाय तुम्हारा पानी मेरी चूत मे भर रहा है! बहुत मज़ा आ रहा है! आह!!"
झड़ने के बाद हम देवर भाभी एक-दूसरे से लिपटकर चारपायी के ऊपर कुछ देर नंगे पड़े रहे.
हम दोनो शांत हुए तो किशन मेरे ऊपर से उठा और उसने अपनी चड्डी और पजामा पहन लिया. मैने उठकर अपनी साड़ी और पेटीकोट अपने कमर से उतारी. दोनो मे बुरी तरह सिलवटें पड़ गयी थी. ब्लाउज़ चुदाई के समय मेरी पीठ के नीचे आ गयी थी और उसमे भी बहुत सिलवटें पड़ गयी थी. मैने सोचा, मेरा सिंदूर ज़रूर फैल गया होगा. कोई भी देखकर सोचेगा के मैं बुरी तरह चुद कर आ रही हूँ. वीणा, अपनी हालत पर मुझे शरम भी आ रही थी और रोमांच भी हो रहा था!
मैने ब्लाउज़ और ब्रा पहनी और खाने की प्लेट और खाली डिब्बा लेकर घर की तरफ़ चल दी. किशन वहीं खेत मे रुक गया.
xossip hindi - गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग
जब मैं आधे रास्ते पहुंची तब मैने देखा कि रामु एक पेड़ के नीचे खड़ा है. मुझे वह आखें फाड़-फाड़कर देखने लगा.
मैने शरम से पानी-पानी हो गयी. मेरे कपड़ों की हालत को देखकर उसे जैसे अनुभवी आदमी के लिये समझना मुश्किल नही था कि मैं किसी के से मुंह काला करवा कर आ रही हूँ.
"कहाँ से आ रही हो, भाभी?" रामु ने पूछा.
"देवरजी को खाना देने गयी थी." मैने कहा और घर की तरफ़ जाने लगी.
रामु ने मेरे सामने आकर मेरा रस्ता रोक लिया और बोला, "खाना देने मे बहुत देर लगा दी आपने? घर पर सब लोग परेसान हो रहे हैं. हमे भेजा है आपकी खबर लेने के लिये."
उसके अंदाज़ मे एक बदतमीज़ी थी जो मैने पहले कभी नही देखी थी. एक नौकर के मुंह से यह बदतमीज़ी मुझे बिलकुल पसंद नही आयी.
"मैं देवरजी को अपने हाथों से खाना खिला रही थी. बस?" मैने कहा, "अब मेरे रास्ते से हटो!"
रामु सामने से हट गया, और मेरे साथ साथ चलने लगा. वह बोला, "हमे तो लगा आपको कुछ हो गया है."
"कुछ नही हुआ है मुझे." मैने सख्ती से जवाब दिया.
"आपके कपड़ों का जो हाल है, उसे देखकर कोई समझे तो का समझे?" रामु ने कहा.
मैने उसके बात का जवाब नही दिया क्योंकि मैं किशन के साथ वही करके आ रही थी जो वह समझ रहा था.
हम दो मिनट साथ चले, फिर रामु बोला, "भाभी, आप गुलाबी को बहुत सिक्सा दे रही हैं. बहुत कुछ सिखाया है उसे."
मैं समझ गयी वह किस शिक्षा की बात कर रहा है.
"हूं. गंवार लड़की है. कुछ सीख लेगी तो बुरा क्या है?" मैने जवाब दिया.
"गंवार तो हम भी हैं, भाभी!" रामु तेड़ी नज़र से मेरी चूचियों को देखते हुए बोला, "कुछ हमे भी सिखाये दो!"
"क्या सीखोगे तुम?" मैने बात टालने के लिये पूछा.
"वही जो सब आप गुलाबी को सिखायी हैं." रामु ने कहा. फिर अचानक मेरा हाथ पकड़कर बोला, "पियार करना."
मैने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और चिल्लाकर कहा, "रामु! तुम्हे हो क्या गया है? तुम्हे होश है तुम किससे बात कर रहे हो? मैने तुम्हारे मालिक की बहु हूँ! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा हाथ पकड़ने की?"
सुनकर रामु डरा नही. बल्कि उसने दोनो हाथों से मेरे कंधों को पकड़ा और और मुझे अपने करीब खींच लिया. मेरे होठों पर अपने होंठ रखकर उन्हे जबरदस्ती पीने लगा. उसके मुंह से बीड़ी और देसी शराब की महक आ रही थी.
मैने किसी तरह अपना मुंह हटाया तो वह बोला, "भाभी, हम बहुत पियार करते हैं आपसे! एक बार हमको पियार करने दो! बहुत मजा पाओगी!"
वीणा, तुम्हे तो पता है मेरा रामु से चुदवाने का इरादा था, पर उस वक्त उसकी बदतमीज़ी और मुंह से आती बीड़ी और शराब की बदबू से मैं उचट गयी. एक नौकर को नौकर की तरह रहना चाहिये. मैं घर की बहु हूँ. मैं उसे पटाती तो और बात थी. वह मेरा बलात्कार करे यह मुझे स्वीकार नही था. मैने रामु के मुंह पर कसकर एक थप्पड़ लगा दिया.
थप्पड़ लगते ही रामु के सर पर जैसे खून सवार हो गया.
मेरे कंधों को जोर से दबाकर बोला, "ई आप अच्छा नही की, भाभी! हम आपकी बहुत इज्जत करते थे. पर आप इज्जत के लायक ही नही है."
"क्या मतलब?" मैने हिम्मत करके कहा. मुझे रामु से अब डर लगने लगा था.
"आप गुलाबी को ऐसी चीजें सिखाई हैं, जो कोई सरीफ औरत किसी को नही सिखाती." रामु बोला, "और आप सोनपुर के मेले मे ऐसा काम की हैं जो हम सोच भी नही सकते थे."
"क्या किया मैने सोनपुर मे?" मैने पूछा. मैं जानती थी गुलाबी ने उसे बता सब दिया है.
"आप वहाँ चार-चार मर्दों से चुदवाई हैं!" रामु मेरे कंधों को झकोर कर बोला. उसका एक हाथ अब मेरी चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से बेदर्दी से मसलने लगा.
मैने उसके "चुदाई" शब्द के प्रयोग को नज़र अंदाज़ करना उचित समझा और पूछा, "तुम्हे कैसे पता? तुमने देखा था मुझे सोनपुर मे यह सब करते हुए?"
"नही," रामु बोला, "पर हम जो अपनी आंखों से देखे ऊ तो गलत नही है?"
"क्या देखा तुमने, रामु?" मैने हैरान होकर पूछा.
"आप अभी किसन भैया से चुदवाकर आ रही हैं." रामु बोला, "हम अपनी आंखों से देखे, कैसे चारपायी पर साड़ी कमर तक उठाकर, आप किसन भैया से मजे लेकर चुदवा रही थी."
मेरी तो बोलती ही बंद हो गयी. चुदाई करते समय मुझे जो भ्रम हुआ था कि कोई आ रहा है ठीक ही था.
"भाभी, तुम एक बहुत गिरी हुई औरत हो! बड़े भैया बिस्तर से उठ नही पा रहें हैं, और तुम देवर के साथ खेत मे मुंह काला कर रही हो!" रामु बोला और फिर से जबरदस्ती मेरे होंठ पीने लगा. उसके हाथ मेरी चूचियों को दबाये जा रहे थे. उसका लन्ड उसकी पैंट मे बिलकुल खड़ा था और मेरे पेट पर गड़ रहा था.
एक अजीब सी मस्ती मुझ पर छाने लगी. मैने इस आदमी के वश मे थी. यह मेरा यहाँ बलात्कार करेगा तो किसी को मेरी आवाज़ सुनाई नही देगी. वीणा, मुझे सोनपुर के उस दिन की याद आने लगी जब रमेश और उसके दोस्तों मे मिलकर हम दोनो को लूटा था.
"अब तुम क्या चाहते हो, रामु?" मैने पूछा.
"तेरे को चोदना!" रामु एक भेड़िये की तरह मुझे नोचता हुआ बोला, "और नही चोदने देगी तो हम बड़े भैया को सब बता देंगे. जब जब हमरा मन करेगा हम तेरी मस्त चूचियों को पीयेंगे, तेरी चूत को मारेंगे, तेरी गांड को मारेंगे, और तु चुपचाप हमसे चुदवायेगी. समझी?"
"यह कैसे बात कर रहे हो मुझसे, रामु?" उसकी तु-तमारी सुनकर मैने उसे टोका.
"जैसे तेरे जैसी रंडी से बात करनी चाहिये." रामु ने कहा, "जो अपने देवर से खुले खेत मे चुदवा सकती है, वह सोनपुर मे ज़रूर चार-चार से एक साथ चुदवाई होगी."
मुझे समझ नही आ रहा था यह ममला कहाँ जा रहा है. अगर यह तुम्हारे मामाजी या मामीजी को बताये तो मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता क्योंकि दोनो मेरी योजना मे शामिल थे. पर तुम्हारे बलराम भैया अगर सुने तो न जाने क्या कर बैठें.
मैने अपनी जवानी को रामु के सामने समर्पण कर दी. "ठीक है, रामु. तुम्हे जो मन हो कर लो. पर मेरे उनको कुछ मत बताओ." मैने कहा.
मैने शरम से पानी-पानी हो गयी. मेरे कपड़ों की हालत को देखकर उसे जैसे अनुभवी आदमी के लिये समझना मुश्किल नही था कि मैं किसी के से मुंह काला करवा कर आ रही हूँ.
"कहाँ से आ रही हो, भाभी?" रामु ने पूछा.
"देवरजी को खाना देने गयी थी." मैने कहा और घर की तरफ़ जाने लगी.
रामु ने मेरे सामने आकर मेरा रस्ता रोक लिया और बोला, "खाना देने मे बहुत देर लगा दी आपने? घर पर सब लोग परेसान हो रहे हैं. हमे भेजा है आपकी खबर लेने के लिये."
उसके अंदाज़ मे एक बदतमीज़ी थी जो मैने पहले कभी नही देखी थी. एक नौकर के मुंह से यह बदतमीज़ी मुझे बिलकुल पसंद नही आयी.
"मैं देवरजी को अपने हाथों से खाना खिला रही थी. बस?" मैने कहा, "अब मेरे रास्ते से हटो!"
रामु सामने से हट गया, और मेरे साथ साथ चलने लगा. वह बोला, "हमे तो लगा आपको कुछ हो गया है."
"कुछ नही हुआ है मुझे." मैने सख्ती से जवाब दिया.
"आपके कपड़ों का जो हाल है, उसे देखकर कोई समझे तो का समझे?" रामु ने कहा.
मैने उसके बात का जवाब नही दिया क्योंकि मैं किशन के साथ वही करके आ रही थी जो वह समझ रहा था.
हम दो मिनट साथ चले, फिर रामु बोला, "भाभी, आप गुलाबी को बहुत सिक्सा दे रही हैं. बहुत कुछ सिखाया है उसे."
मैं समझ गयी वह किस शिक्षा की बात कर रहा है.
"हूं. गंवार लड़की है. कुछ सीख लेगी तो बुरा क्या है?" मैने जवाब दिया.
"गंवार तो हम भी हैं, भाभी!" रामु तेड़ी नज़र से मेरी चूचियों को देखते हुए बोला, "कुछ हमे भी सिखाये दो!"
"क्या सीखोगे तुम?" मैने बात टालने के लिये पूछा.
"वही जो सब आप गुलाबी को सिखायी हैं." रामु ने कहा. फिर अचानक मेरा हाथ पकड़कर बोला, "पियार करना."
मैने झटके से अपना हाथ छुड़ाया और चिल्लाकर कहा, "रामु! तुम्हे हो क्या गया है? तुम्हे होश है तुम किससे बात कर रहे हो? मैने तुम्हारे मालिक की बहु हूँ! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरा हाथ पकड़ने की?"
सुनकर रामु डरा नही. बल्कि उसने दोनो हाथों से मेरे कंधों को पकड़ा और और मुझे अपने करीब खींच लिया. मेरे होठों पर अपने होंठ रखकर उन्हे जबरदस्ती पीने लगा. उसके मुंह से बीड़ी और देसी शराब की महक आ रही थी.
मैने किसी तरह अपना मुंह हटाया तो वह बोला, "भाभी, हम बहुत पियार करते हैं आपसे! एक बार हमको पियार करने दो! बहुत मजा पाओगी!"
वीणा, तुम्हे तो पता है मेरा रामु से चुदवाने का इरादा था, पर उस वक्त उसकी बदतमीज़ी और मुंह से आती बीड़ी और शराब की बदबू से मैं उचट गयी. एक नौकर को नौकर की तरह रहना चाहिये. मैं घर की बहु हूँ. मैं उसे पटाती तो और बात थी. वह मेरा बलात्कार करे यह मुझे स्वीकार नही था. मैने रामु के मुंह पर कसकर एक थप्पड़ लगा दिया.
थप्पड़ लगते ही रामु के सर पर जैसे खून सवार हो गया.
मेरे कंधों को जोर से दबाकर बोला, "ई आप अच्छा नही की, भाभी! हम आपकी बहुत इज्जत करते थे. पर आप इज्जत के लायक ही नही है."
"क्या मतलब?" मैने हिम्मत करके कहा. मुझे रामु से अब डर लगने लगा था.
"आप गुलाबी को ऐसी चीजें सिखाई हैं, जो कोई सरीफ औरत किसी को नही सिखाती." रामु बोला, "और आप सोनपुर के मेले मे ऐसा काम की हैं जो हम सोच भी नही सकते थे."
"क्या किया मैने सोनपुर मे?" मैने पूछा. मैं जानती थी गुलाबी ने उसे बता सब दिया है.
"आप वहाँ चार-चार मर्दों से चुदवाई हैं!" रामु मेरे कंधों को झकोर कर बोला. उसका एक हाथ अब मेरी चूचियों को ब्लाउज़ के ऊपर से बेदर्दी से मसलने लगा.
मैने उसके "चुदाई" शब्द के प्रयोग को नज़र अंदाज़ करना उचित समझा और पूछा, "तुम्हे कैसे पता? तुमने देखा था मुझे सोनपुर मे यह सब करते हुए?"
"नही," रामु बोला, "पर हम जो अपनी आंखों से देखे ऊ तो गलत नही है?"
"क्या देखा तुमने, रामु?" मैने हैरान होकर पूछा.
"आप अभी किसन भैया से चुदवाकर आ रही हैं." रामु बोला, "हम अपनी आंखों से देखे, कैसे चारपायी पर साड़ी कमर तक उठाकर, आप किसन भैया से मजे लेकर चुदवा रही थी."
मेरी तो बोलती ही बंद हो गयी. चुदाई करते समय मुझे जो भ्रम हुआ था कि कोई आ रहा है ठीक ही था.
"भाभी, तुम एक बहुत गिरी हुई औरत हो! बड़े भैया बिस्तर से उठ नही पा रहें हैं, और तुम देवर के साथ खेत मे मुंह काला कर रही हो!" रामु बोला और फिर से जबरदस्ती मेरे होंठ पीने लगा. उसके हाथ मेरी चूचियों को दबाये जा रहे थे. उसका लन्ड उसकी पैंट मे बिलकुल खड़ा था और मेरे पेट पर गड़ रहा था.
एक अजीब सी मस्ती मुझ पर छाने लगी. मैने इस आदमी के वश मे थी. यह मेरा यहाँ बलात्कार करेगा तो किसी को मेरी आवाज़ सुनाई नही देगी. वीणा, मुझे सोनपुर के उस दिन की याद आने लगी जब रमेश और उसके दोस्तों मे मिलकर हम दोनो को लूटा था.
"अब तुम क्या चाहते हो, रामु?" मैने पूछा.
"तेरे को चोदना!" रामु एक भेड़िये की तरह मुझे नोचता हुआ बोला, "और नही चोदने देगी तो हम बड़े भैया को सब बता देंगे. जब जब हमरा मन करेगा हम तेरी मस्त चूचियों को पीयेंगे, तेरी चूत को मारेंगे, तेरी गांड को मारेंगे, और तु चुपचाप हमसे चुदवायेगी. समझी?"
"यह कैसे बात कर रहे हो मुझसे, रामु?" उसकी तु-तमारी सुनकर मैने उसे टोका.
"जैसे तेरे जैसी रंडी से बात करनी चाहिये." रामु ने कहा, "जो अपने देवर से खुले खेत मे चुदवा सकती है, वह सोनपुर मे ज़रूर चार-चार से एक साथ चुदवाई होगी."
मुझे समझ नही आ रहा था यह ममला कहाँ जा रहा है. अगर यह तुम्हारे मामाजी या मामीजी को बताये तो मुझे कोई फ़र्क नही पड़ता क्योंकि दोनो मेरी योजना मे शामिल थे. पर तुम्हारे बलराम भैया अगर सुने तो न जाने क्या कर बैठें.
मैने अपनी जवानी को रामु के सामने समर्पण कर दी. "ठीक है, रामु. तुम्हे जो मन हो कर लो. पर मेरे उनको कुछ मत बताओ." मैने कहा.
xossip hindi - गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग
रामु खुश हो गया और मुझे कुछ पेडों के पीछे एक झुरमुट मे ले गया.
"चल नंगी हो!" रामु ने मुझे हुकुम दिया और अपने कपड़े उतारने लगा. जल्दी से अपनी कमीज, बनियान, पैंट और चड्डी उतारकर नंगा वह हो गया.
वीणा, रामु का रंग काला है पर वह देखने मे बुरा नही है. उसका शरीर बहुत गठीला और ताकतवर है. सपाट पेट के नीचे उसका 7 इंच का बिलकुल काला लन्ड तनकर खड़ा था और थोड़ा थोड़ा ठुमक रहा था. लन्ड के नीचे एक आलू की तरह बड़ा पेलड़ लटक रहा था.
एक नौकर के मुंह से इस तरह की बदतमीज़ी से मुझे एक अनोखा मज़ा आने लगा. वह घर की बहु को एक रंडी की तरह इस्तेमाल कर रहा था. उसके सामने मजबूर हो के मेरी कामाग्नी बुरी तरह भड़क उठी.
मैने अपनी साड़ी उतारकर नीचे घांस पर रख दी और फिर ब्लाउज़ भी खोल दिया. रामु मेरे पास आ गया और ब्रा के ऊपर से मेरी चूचियों को मसलने लगा और मेरे होंठ पीने लगा. उसका खड़ा लन्ड मेरी नंगी पेट मे चुभने लगा.
मैने अपने हाथ पीछे करके अपने ब्रा की हुक खोल दी ताकि वह और आराम से मेरी चूची दबा सके. इससे मेरी सुडौल चूचियां उसके सामने नंगी हो गयी. रामु मेरी चूचियों को मसलने लगा तो मेरे मुंह से एक मस्ती की आह निकल गयी.
मैने अपने पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया जिससे पेटीकोट मेरे पाँव के इर्द-गिर्द गिर गया. मैने पेटीकोट को पैरों से अलग कर दिया. अब रामु और मैं बिलकुल नंगे खड़े थे.
चारों तरफ़ सन्नाटा था. बस पेड़ों पर पत्तियों के सरसराने और चिड़ियों के चहकने की आवाज़ आ रही थी.
कुछ देर मुझे चूमने के बाद रामु बोला, "चल चूत खोलकर नीचे लेट जा."
मैने अपनी साड़ी को घाँस पर चादर की तरह बिछाया और उस पर लेट गयी. मैने अपनी दोनो टांगें फैला दी और अपनी चूत उसके सामने कर दी. उस वक्त मैं उसका काला लन्ड अपनी गोरी चूत मे लेने के लिया पागल हुई जा रही थी. घर के नौकर के हाथों बलात्कार की बात सोचकर ही मैं गनगना रही थी.
रामु मुझे खड़े-खड़े कुछ देर निहारता रहा. फिर मेरे पैरों के बीच बैठकर बोला, "तु कितनी भी बड़ी छिनाल क्यों न हो, बड़े भैया बहुत किस्मत वाले हैं. क्या मस्त, सुन्दर जवानी है तेरी! कोई सात जनम भी तुझे चोदे तो जी न भरे."
"रामु, जो करना है जल्दी कर लो." मैने कहा, "कोई यहाँ आ जायेगा तो मैं कहीं की नही रहुंगी."
"कोई नही आता यहाँ." रामु बोला, "गुलाबी को हम यहाँ बहुत बार चोदे हैं."
रामु ने अपने काले लन्ड का मोटा सुपाड़ा मेरी गोरी चूत पर रखा और चूत के होठों के बीच ऊपर-नीचे करने लगा. मेरी चूत के गीलपन से उसका सुपाड़ा बिलकुल तर हो गया. मैने मस्ती मे आंखे बंद कर ली.
रामु ने समझा मैं डर रही हूँ और बोला, "चूतमरानी, इतना नाटक मत कर. सब से चुदवा-चुदवा के तो तेरी चूत अब तक भोसड़ी बन चुकी होगी!"
बोलकर वह अपना लन्ड पकड़कर मेरी चूत मे घुसाने लगा.
हालांकि लन्ड काफ़ी मोटा था, पर वह बहुत आसानी से चूत अन्दर घुस गया. और क्यों न जाता! मेरी चूत किशन के वीर्य से भरी हुई थी. थोड़ा थोड़ा वीर्य मेरी चूत से चू कर जांघों पर बह भी रहा था.
रामु का लन्ड अन्दर जाते ही किशन का वीर्य चूत के किनारों के पिचकारी की तरह निकल आया.
देखकर रामु जोर से हंस दिया. बोला, "साली कुतिया! अपनी चूत देवर के मलाई से पूरा भरवाकर आ रही है! ठहर तेरी चूत मे मैं अपना पेलड़ भी खाली करता हूँ. तेरे जैसी रंडी को तो सचमुच कुतिये की तरह सारे गाँव को मिलकर चोदना चाहिये!"
रामु को मेरी इस कदर बेइज़्ज़ती करके बहुत उत्तेजना हो रही थी. और मुझे भी उसकी भद्दी गालियाँ सुनकर कामुकता हो थी. पर मैं कुछ बोले बिना उसके नीचे लेटी रही.
रामु कमर उठा उठाकर मुझे चोदने लगा. पहले दो चार ठाप मे किशन का वीर्य मेरी चूत से निकल गया. वीर्य से चूत बहुत चिकनी हो गयी थी जिससे रामु और मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.
कुछ देर रामु की जोरदार ठाप खाने के बाद मैं और अपने आप को काबू मे नही रख पायी. उसके बालों मे, उसके पीठ पर हाथ फेरते हुए मैं सिसकने लगी और "ऊंह!! ऊंह!! ऊंह!!" की आवाज़ निकालने लगी.
मेरी मस्ती की आवाज़ें सुनकर रामु का जोश भी बढ़ गया. वह बहुत संयम से मुझे चोद रहा था पर उसकी रफ़्तार बढ़ने लगी.
मैने रामु के मुंह को खींचकर अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिये और उसके होंठ पीने लगी. अब मुझे उसके मुंह की बीड़ी और देसी शराब की महक अच्छी लग रही थी. मैं कमर उठा उठाकर उसका लन्ड अपनी चूत मे लेने लगी.
रामु जोर जोर से ठाप लगाते हुए बोला, "साली, हम कहे थे ना बहुत मजा पायेगी! आ रहा है मजा? ले चुद अच्छे से! अब से रोज़ तुझे चोदेंगे और मजा देंगे!"
"रामु तुम रोज़ मुझे चोदोगे तो गुलाबी का क्या होगा?" मैने पूछा, "उसकी चूत कौन ठंडी करेगा?"
"गुलाबी अपनी माँ चुदाये!" रामु ठाप लगाते हुए बोला, "तेरे जैसे मस्त सुन्दर लुगाई पास हो तो हमे गुलाबी की का जरूरत है?"
"हाय, रामु, क्या कह रहे हो? गुलाबी तुम्हारी जोरु है!" मैने कमर उठाकर ठाप लेते हुए कहा, "तुम नही चोदोगे तो वह किसी और से चुदा लेगी."
"तो चुदाय ना!" रामु कमर चलाता हुआ बोला, "हमने कब रोका है उसे? उसके लछ्छन तो तुने...पहले ही खराब कर दिये हैं. अब तो लन्ड चूसती है...गंदी भासा बोलती है...साली जल्दी ही किसी से...चुदवा भी बैठेगी."
"तुम्हे बुरा नही लगेगा, रामु?" मैने पूछा.
"बुरा तो लगेगा." रामु बोला, "पर हम कहाँ दूध के धुले हैं? यहाँ तेरी चूत मार रहे हैं...अपने गाँव मे इतने दिनो तक अपनी चाची की चूत मार रहे थे."
"तुम अपनी चाची को चोदते हो?" मैने हैरान होकर पूछा.
रामु ने कुछ देर चुपचाप ठाप लगया, फिर बोला, "ऊ तेरी तरह ही एक बड़ी चुदैल है...चाचा से उसकी प्यास नही बुझती...जब गाँव जाता हूँ...उसको रोज़ चोदता हूँ...मेरे पीछे किसी और से भी चुदवाती होगी...दो बच्चे भी हैं...पता नही मेरे हैं...के चाचा के हैं...या और किसी और के."
रामु की बात सुनकर मुझे खुशी हुई. लग रहा था अपना काम आसान ही होने वाला था.
पेड़ के नीचे घाँस पर लेटे हुए रामु और मैं कुछ देर चोदा-चोदी करते रहे. ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जो हमारे गरम, नंगे शरीर पर सिहरन पैदा कर रही थी. चिड़ियों के चहकने के बीच मेरी चूड़ीयों की और पायल की आवाज़ आ रही थी. और चुदाई के ताल पर जब हमारे पेट एक दूसरे से टकरा रहे थे तब "ठाप! ठाप! ठाप! ठाप!" की आवाज़ आ रही थी.
कुछ देर की चुदाई के बाद मैं जोर जोर से बड़बड़ाने लगी और बार-बार झड़ने लगी, "आह!! आह! हाय रामु, क्या चोद रहे हो! ऊह!! उम्म!! और जोर से मेरे राजा! चोद डालो अपनी रंडी को!! आह!! ऐसे ही रोज़ मुझे चोदना मेरे राजा! मैं तुम्हारी रखैल बनके रहुंगी!! आह!! मस्त चोद रहे हो रामु!!"
रामु की सांसें बहुत तेज हो गयी थी. अब तक शायद हमें चुदाई करते हुए आधा घंटा हो चुका था. मैं इतनी मस्ती मे थी कि मुझे होश ही नही था कि मैं खुले मे नंगी होकर घर के नौकर से चुदवा रही थी. कोई आ सकता है इसके अंदेशे से मेरी मस्ती दुगुनी हो रही थी.
आखिर रामु खुद को और सम्भाल नही सका. मेरी चूचियों को अपने सीने से चिपकाकर उसने अपना लन्ड पेलड़ तक मेरी चूत मे पेल दिया और मेरे गर्भ के मुख पर अपना पानी छोड़ने लगा. मैं भी उससे लिपटकर आखरी बार झड़ने लगी. मेरी चूत मे किशन के वीर्य मे अपना ढेर सारा वीर्य मिलाकर रामु पस्त हो गया और मेरे ऊपर लेट गया.
Page 17
"चल नंगी हो!" रामु ने मुझे हुकुम दिया और अपने कपड़े उतारने लगा. जल्दी से अपनी कमीज, बनियान, पैंट और चड्डी उतारकर नंगा वह हो गया.
वीणा, रामु का रंग काला है पर वह देखने मे बुरा नही है. उसका शरीर बहुत गठीला और ताकतवर है. सपाट पेट के नीचे उसका 7 इंच का बिलकुल काला लन्ड तनकर खड़ा था और थोड़ा थोड़ा ठुमक रहा था. लन्ड के नीचे एक आलू की तरह बड़ा पेलड़ लटक रहा था.
एक नौकर के मुंह से इस तरह की बदतमीज़ी से मुझे एक अनोखा मज़ा आने लगा. वह घर की बहु को एक रंडी की तरह इस्तेमाल कर रहा था. उसके सामने मजबूर हो के मेरी कामाग्नी बुरी तरह भड़क उठी.
मैने अपनी साड़ी उतारकर नीचे घांस पर रख दी और फिर ब्लाउज़ भी खोल दिया. रामु मेरे पास आ गया और ब्रा के ऊपर से मेरी चूचियों को मसलने लगा और मेरे होंठ पीने लगा. उसका खड़ा लन्ड मेरी नंगी पेट मे चुभने लगा.
मैने अपने हाथ पीछे करके अपने ब्रा की हुक खोल दी ताकि वह और आराम से मेरी चूची दबा सके. इससे मेरी सुडौल चूचियां उसके सामने नंगी हो गयी. रामु मेरी चूचियों को मसलने लगा तो मेरे मुंह से एक मस्ती की आह निकल गयी.
मैने अपने पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया जिससे पेटीकोट मेरे पाँव के इर्द-गिर्द गिर गया. मैने पेटीकोट को पैरों से अलग कर दिया. अब रामु और मैं बिलकुल नंगे खड़े थे.
चारों तरफ़ सन्नाटा था. बस पेड़ों पर पत्तियों के सरसराने और चिड़ियों के चहकने की आवाज़ आ रही थी.
कुछ देर मुझे चूमने के बाद रामु बोला, "चल चूत खोलकर नीचे लेट जा."
मैने अपनी साड़ी को घाँस पर चादर की तरह बिछाया और उस पर लेट गयी. मैने अपनी दोनो टांगें फैला दी और अपनी चूत उसके सामने कर दी. उस वक्त मैं उसका काला लन्ड अपनी गोरी चूत मे लेने के लिया पागल हुई जा रही थी. घर के नौकर के हाथों बलात्कार की बात सोचकर ही मैं गनगना रही थी.
रामु मुझे खड़े-खड़े कुछ देर निहारता रहा. फिर मेरे पैरों के बीच बैठकर बोला, "तु कितनी भी बड़ी छिनाल क्यों न हो, बड़े भैया बहुत किस्मत वाले हैं. क्या मस्त, सुन्दर जवानी है तेरी! कोई सात जनम भी तुझे चोदे तो जी न भरे."
"रामु, जो करना है जल्दी कर लो." मैने कहा, "कोई यहाँ आ जायेगा तो मैं कहीं की नही रहुंगी."
"कोई नही आता यहाँ." रामु बोला, "गुलाबी को हम यहाँ बहुत बार चोदे हैं."
रामु ने अपने काले लन्ड का मोटा सुपाड़ा मेरी गोरी चूत पर रखा और चूत के होठों के बीच ऊपर-नीचे करने लगा. मेरी चूत के गीलपन से उसका सुपाड़ा बिलकुल तर हो गया. मैने मस्ती मे आंखे बंद कर ली.
रामु ने समझा मैं डर रही हूँ और बोला, "चूतमरानी, इतना नाटक मत कर. सब से चुदवा-चुदवा के तो तेरी चूत अब तक भोसड़ी बन चुकी होगी!"
बोलकर वह अपना लन्ड पकड़कर मेरी चूत मे घुसाने लगा.
हालांकि लन्ड काफ़ी मोटा था, पर वह बहुत आसानी से चूत अन्दर घुस गया. और क्यों न जाता! मेरी चूत किशन के वीर्य से भरी हुई थी. थोड़ा थोड़ा वीर्य मेरी चूत से चू कर जांघों पर बह भी रहा था.
रामु का लन्ड अन्दर जाते ही किशन का वीर्य चूत के किनारों के पिचकारी की तरह निकल आया.
देखकर रामु जोर से हंस दिया. बोला, "साली कुतिया! अपनी चूत देवर के मलाई से पूरा भरवाकर आ रही है! ठहर तेरी चूत मे मैं अपना पेलड़ भी खाली करता हूँ. तेरे जैसी रंडी को तो सचमुच कुतिये की तरह सारे गाँव को मिलकर चोदना चाहिये!"
रामु को मेरी इस कदर बेइज़्ज़ती करके बहुत उत्तेजना हो रही थी. और मुझे भी उसकी भद्दी गालियाँ सुनकर कामुकता हो थी. पर मैं कुछ बोले बिना उसके नीचे लेटी रही.
रामु कमर उठा उठाकर मुझे चोदने लगा. पहले दो चार ठाप मे किशन का वीर्य मेरी चूत से निकल गया. वीर्य से चूत बहुत चिकनी हो गयी थी जिससे रामु और मुझे बहुत मज़ा आ रहा था.
कुछ देर रामु की जोरदार ठाप खाने के बाद मैं और अपने आप को काबू मे नही रख पायी. उसके बालों मे, उसके पीठ पर हाथ फेरते हुए मैं सिसकने लगी और "ऊंह!! ऊंह!! ऊंह!!" की आवाज़ निकालने लगी.
मेरी मस्ती की आवाज़ें सुनकर रामु का जोश भी बढ़ गया. वह बहुत संयम से मुझे चोद रहा था पर उसकी रफ़्तार बढ़ने लगी.
मैने रामु के मुंह को खींचकर अपने होंठ उसके होंठ पर रख दिये और उसके होंठ पीने लगी. अब मुझे उसके मुंह की बीड़ी और देसी शराब की महक अच्छी लग रही थी. मैं कमर उठा उठाकर उसका लन्ड अपनी चूत मे लेने लगी.
रामु जोर जोर से ठाप लगाते हुए बोला, "साली, हम कहे थे ना बहुत मजा पायेगी! आ रहा है मजा? ले चुद अच्छे से! अब से रोज़ तुझे चोदेंगे और मजा देंगे!"
"रामु तुम रोज़ मुझे चोदोगे तो गुलाबी का क्या होगा?" मैने पूछा, "उसकी चूत कौन ठंडी करेगा?"
"गुलाबी अपनी माँ चुदाये!" रामु ठाप लगाते हुए बोला, "तेरे जैसे मस्त सुन्दर लुगाई पास हो तो हमे गुलाबी की का जरूरत है?"
"हाय, रामु, क्या कह रहे हो? गुलाबी तुम्हारी जोरु है!" मैने कमर उठाकर ठाप लेते हुए कहा, "तुम नही चोदोगे तो वह किसी और से चुदा लेगी."
"तो चुदाय ना!" रामु कमर चलाता हुआ बोला, "हमने कब रोका है उसे? उसके लछ्छन तो तुने...पहले ही खराब कर दिये हैं. अब तो लन्ड चूसती है...गंदी भासा बोलती है...साली जल्दी ही किसी से...चुदवा भी बैठेगी."
"तुम्हे बुरा नही लगेगा, रामु?" मैने पूछा.
"बुरा तो लगेगा." रामु बोला, "पर हम कहाँ दूध के धुले हैं? यहाँ तेरी चूत मार रहे हैं...अपने गाँव मे इतने दिनो तक अपनी चाची की चूत मार रहे थे."
"तुम अपनी चाची को चोदते हो?" मैने हैरान होकर पूछा.
रामु ने कुछ देर चुपचाप ठाप लगया, फिर बोला, "ऊ तेरी तरह ही एक बड़ी चुदैल है...चाचा से उसकी प्यास नही बुझती...जब गाँव जाता हूँ...उसको रोज़ चोदता हूँ...मेरे पीछे किसी और से भी चुदवाती होगी...दो बच्चे भी हैं...पता नही मेरे हैं...के चाचा के हैं...या और किसी और के."
रामु की बात सुनकर मुझे खुशी हुई. लग रहा था अपना काम आसान ही होने वाला था.
पेड़ के नीचे घाँस पर लेटे हुए रामु और मैं कुछ देर चोदा-चोदी करते रहे. ठंडी ठंडी हवा चल रही थी जो हमारे गरम, नंगे शरीर पर सिहरन पैदा कर रही थी. चिड़ियों के चहकने के बीच मेरी चूड़ीयों की और पायल की आवाज़ आ रही थी. और चुदाई के ताल पर जब हमारे पेट एक दूसरे से टकरा रहे थे तब "ठाप! ठाप! ठाप! ठाप!" की आवाज़ आ रही थी.
कुछ देर की चुदाई के बाद मैं जोर जोर से बड़बड़ाने लगी और बार-बार झड़ने लगी, "आह!! आह! हाय रामु, क्या चोद रहे हो! ऊह!! उम्म!! और जोर से मेरे राजा! चोद डालो अपनी रंडी को!! आह!! ऐसे ही रोज़ मुझे चोदना मेरे राजा! मैं तुम्हारी रखैल बनके रहुंगी!! आह!! मस्त चोद रहे हो रामु!!"
रामु की सांसें बहुत तेज हो गयी थी. अब तक शायद हमें चुदाई करते हुए आधा घंटा हो चुका था. मैं इतनी मस्ती मे थी कि मुझे होश ही नही था कि मैं खुले मे नंगी होकर घर के नौकर से चुदवा रही थी. कोई आ सकता है इसके अंदेशे से मेरी मस्ती दुगुनी हो रही थी.
आखिर रामु खुद को और सम्भाल नही सका. मेरी चूचियों को अपने सीने से चिपकाकर उसने अपना लन्ड पेलड़ तक मेरी चूत मे पेल दिया और मेरे गर्भ के मुख पर अपना पानी छोड़ने लगा. मैं भी उससे लिपटकर आखरी बार झड़ने लगी. मेरी चूत मे किशन के वीर्य मे अपना ढेर सारा वीर्य मिलाकर रामु पस्त हो गया और मेरे ऊपर लेट गया.
Page 17