new hindi kamukata जमना दास का बीज
Posted: 16 Oct 2017 08:02
चमेली ने हमेशा मेहनत से काम किया पर गरीबी हमेशा छाई रही, फिर वो एक ज़ालिम ठेकेदार के सामने झुक गयी और अपने परिवार की खुशियों के लिए सौदा कर लिया.. एक मस्त hot desi kahani पढ़िए..
मेहनत करते चमेली कभी थकती नही थी। यह तो उसका रोज का काम था। बस सड़क की सफाई करते-करते वह ऊब गई थी। अब वह किसी बड़े काम की तलाश में थी जहां वह ज्यादा पैसा कमा सके। कमाई कुछ बढे तो उसके लिए अपने निठल्ले पति का पेट भरना और उसकी दारू का इंतजाम करना थोडा आसान हो जायेगा।
शहर से कुछ दूर एक बहुमंजिला अस्पताल का निर्माण हो रहा था। चमेली की नजर बहुत दिनों से वहां के काम पर थी। वहां अगर काम मिल जाए तो मजे ही मजे! एक बार काम से छुट्टी होने पर वह वहां पहुन्ची भी थी लेकिन बात नही बनी क्योंकि फिलहाल वहां किसी मरद की जरूरत थी। उस दिन देर से घर पहुंची तो प्रतिक्षारत किशन ने पूछ लिया, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’
चमेली एक नजर पति के चेहरे पर डालते हुए बोली, ‘‘अस्पताल गई थी।’’
‘‘काहे, बच्चा लेने?’’ खोखली हंसी हंसते किशन ने पूछा।
‘‘और का… अब तू तो बच्चा दे नही सकता, वहीं से लाना पड़ेगा।’’ चमेली ने भी मुस्कराते हुए उसी अंदाज में उत्तर दिया।
‘‘बड़ी बेशरम हो गई है री….’’ किशन ने खिलखिलाते हुए कहा।
‘‘चल काम की बात कर….’’
‘‘कब से तेरा रास्ता देखते आंखें पथरा गई। हलक सूखा जा रहा है। भगवान कसम, थोड़ा तर कर लूं। ला, दे कुछ पैसे…. ’’ किशन बोला।
चमेली ने बिना किसी हील-हुज्जत के अपनी गांठ खोल बीस रुपए का मुड़ा-तुड़ा नोट उसकी ओर बढाते हुए कहा, ‘‘ले, मर….’’
खींस निपोरते हुए किशन नोट लेकर वहां से चला गया। रात गए वह लौटा तो हमेशा की तरह नशे में धुत था। चमेली मन मसोस कर रह गई और चुपचाप थाली परोस कर उसके सामने रख दी। खाना खाते-खाते किशन ने एक बार फिर पूछा, ‘‘सच्ची बता री, तू अस्पताल काहे गई थी?’’
चमेली उसकी बेचैनी पर मुस्कराते हुए बोली, ‘‘क्यों? पेट पिराने लगा? अरे मुए, मैं वहां काम के जुगाड़ में गई थी। सुना है वहां जादा मजदूरी मिले है…. तीन सौ रुपए रोज।’’
‘‘तीन सौ?’’ किशन की बांछें खिल गई।
jamnadas ka beej hot desi kahani
चमेली का मतवाला रूप
‘‘बोल, करेगा तू काम? तेरे लिए वहां जगह है।’’ चमेली ने पूछा।
किशन खिलखिला पड़ा, ‘‘मैं और काम…. काहे? तू मुझे खिला नही सकती क्या?’’
‘‘अब तक कौन खिला रहा था, तेरा बाप?’’ चमेली ने पलट कर पूछ लिया।
‘‘देख चमेली, सच बात तो यो है कि मेरे से काम न होए। तू तो जानत है हमार हाथ-पैर पिरात रहत हैं।’’
‘‘रात को हमरे साथ सोवत समय नाही पिरात? तेरे को बस एक ही काम आवे है और वह भी आधा-अधूरा…. नामर्द कहीं का!’’ चमेली उलाहना देते हुए बोली। किशन पर इसका कोई असर नही हुआ। वह जानता था कि वह चमेली को खुश नहीं कर पाता था।
‘‘ठीक है तू मत जा, मैं चली जाऊं वहां काम पर?’’ चमेली ने पूछा।
नशे में भी किशन जैसे चिंता में पड़ गया, ‘‘ठेकेदार कौन है वहां?’’
‘‘जमना दास…. ’’
‘‘अरे वो…. वो तो बड़ा कमीना है।’’ किशन बिफर पड़ा।
‘‘तू कैसे जाने?’’
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‘‘मैंने सुना है।’’ किशन ने बताया।
‘‘मुझे तो बड़ा देवता सा लागे है वो…. ’’ चमेली ने प्रशंसा की।
‘‘हुंह, शैतान की खोपड़ी है वो… ठेकेदार का बच्चा!’’ किशन गुस्से में बहका।
‘‘फिर ना जाऊं?’’ चमेली ने पूछा।
किशन सोच में पड़ गया। उसकी आँखों के सामने सौ-सौ के हरे नोट लहराने लगे और साथ ही दारू की रंग-बिरंगी बोतलें भी घूमने लगी। इसलिए उसने अनुमति के साथ चेतावनी भी दे डाली, ‘‘ठीक है चली जा, पर संभल कर रहियो वहां। बड़ा बेढब आदमी है जमना दास।’’
एक दिन समय निकाल कर और हिम्मत जुटा कर चमेली फिर ठेकेदार जमना दास के पास पहुंच गई। इस बार वह निर्माण-स्थल के बजाय उसके दफ्तर गई थी।
‘‘क्या बात है?’’ जमना दास ने पूछा।
‘‘काम चाहिए, और का?’’ चमेली मुस्कराते हुए बोली।
‘‘तेरे लिए यहां काम कहां है? मेरे को चौकीदारी के लिए मरद चाहिए…. अब तुझे चौकीदार रखूंगा तो मुझे तेरी चौकीदारी करनी पड़ेगी।’’ जमना दास भोंडी हंसी हँसता हुआ बोला। उसकी ललचाई नजरें चमेली के जिस्म के लुभावने उभारों पर फिसल रही थीं।
‘‘मेरा मरद तो काम करना ही न चाहे।’’ चमेली ने बताया।
‘‘तो मैं क्या करूं?’’ जमना दास लापरवाही से बोला।
चमेली निराश नही हुई। उसे वहां काम करने वाली मजदूरनी की नसीहत याद आ गई। चमेली ने वही पैतरा अपनाया, ‘‘बाबूजी, हमारा आपके सिवा कौन है! आप नौकरी नही देंगे तो हम भूखों मर जाएगें।’’
‘‘देख भई, इस दुनिया में सभी भूखे हैं। तू भूखी है तो मैं भी भूखा हूं। अगर तू मेरी भूख मिटा दे तो मैं तेरी और तेरे परिवार की भूख मिटा दूंगा।’’ जमना दास ने सीधा प्रस्ताव किया। चमेली सोच में पड़ गई।
‘‘सोचती क्या है…. काम यहां करना, हाजिरी वहां लग जाया करेगी।’’
‘‘अपने मरद से पूछ कर बताऊंगी।’’ चमेली ने कहा।
‘‘अरे उस किशन के बच्चे को मैं तैयार कर लूंगा।’’ जमना दास ने विश्वासपूर्वक कहा।
अगले दिन ठेकेदार जमना दास ने बढ़िया देसी शराब की चार बोतलें किशन के पास भेज दी। इतनी सारी बोतलें एक साथ देख किशन निहाल हो गया। उसने सपने में भी नही सोचा था कि वह एक साथ इतनी सारी बोतलें पा जाएगा। जमना दास तो सचमुच ही देवता आदमी निकला। उसने चमेली को जमना दास के यहां काम करने की इजाज़त दे दी।
अगले दिन चमेली जमना दास के दफ्तर पंहुच गयी। वहाँ कोई खास काम तो था नहीं। बस सफाई करना, पानी लाना, चाय बनाना इस तरह के काम थे। एक घंटे बाद जमना दास साईट पर चला गया। चमेली को कह गया कि वह एक बजे खाना खाने आएगा। खाना भी चमेली को ही बनाना था। चमेली सोच रही थी कि इस तरह के काम के बदले तीन सौ रुपये रोज मिल जाएँ तो उसकी तो मौज हो जायेगी … और साथ में किशन की भी। पर साथ में उसे शंका भी थी। वह जानती थी कि जमना दास उसे ऐसे ही नहीं छोड़ेगा। फिर उसने सोचा कि ओखली में सर दे दिया है तो अब मूसल से क्या डरना।
जमना दास एक बजे वापस आ गया। चमेली ने उसे खाना खिलाया। फिर उसने अपनी खाने की पोटली खोली तो जमना दास ने कहा, “अरे, तू अपने लिए खाना ले कर आई है! कल से यह नहीं चलेगा। तू यहां मेरे साथ-साथ अपने लिए भी खाना बना लिया कर।”
चमेली ने खाना खा कर बर्तन साफ़ करने जा रही थी तो जमना दास ने उससे कहा, “अब मेरे आराम करने का वक़्त हो गया है।”
वह दफ्तर के पीछे के कमरे में चला गया। चमेली पहले ही देख चुकी थी कि दफ्तर के पीछे एक कमरा बना हुआ था जिसका एक दरवाजा दफ्तर में खुलता था और एक पीछे बाहर की तरफ। उससे लगा हुआ एक बाथरूम भी था। उस कमरे में एक पलंग, एक मेज और दो कुर्सियाँ रखी हुई थीं। थोड़ी देर में चमेली को जमना दास के खर्राटों की आवाज सुनाई देने लगी।
मेहनत करते चमेली कभी थकती नही थी। यह तो उसका रोज का काम था। बस सड़क की सफाई करते-करते वह ऊब गई थी। अब वह किसी बड़े काम की तलाश में थी जहां वह ज्यादा पैसा कमा सके। कमाई कुछ बढे तो उसके लिए अपने निठल्ले पति का पेट भरना और उसकी दारू का इंतजाम करना थोडा आसान हो जायेगा।
शहर से कुछ दूर एक बहुमंजिला अस्पताल का निर्माण हो रहा था। चमेली की नजर बहुत दिनों से वहां के काम पर थी। वहां अगर काम मिल जाए तो मजे ही मजे! एक बार काम से छुट्टी होने पर वह वहां पहुन्ची भी थी लेकिन बात नही बनी क्योंकि फिलहाल वहां किसी मरद की जरूरत थी। उस दिन देर से घर पहुंची तो प्रतिक्षारत किशन ने पूछ लिया, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’
चमेली एक नजर पति के चेहरे पर डालते हुए बोली, ‘‘अस्पताल गई थी।’’
‘‘काहे, बच्चा लेने?’’ खोखली हंसी हंसते किशन ने पूछा।
‘‘और का… अब तू तो बच्चा दे नही सकता, वहीं से लाना पड़ेगा।’’ चमेली ने भी मुस्कराते हुए उसी अंदाज में उत्तर दिया।
‘‘बड़ी बेशरम हो गई है री….’’ किशन ने खिलखिलाते हुए कहा।
‘‘चल काम की बात कर….’’
‘‘कब से तेरा रास्ता देखते आंखें पथरा गई। हलक सूखा जा रहा है। भगवान कसम, थोड़ा तर कर लूं। ला, दे कुछ पैसे…. ’’ किशन बोला।
चमेली ने बिना किसी हील-हुज्जत के अपनी गांठ खोल बीस रुपए का मुड़ा-तुड़ा नोट उसकी ओर बढाते हुए कहा, ‘‘ले, मर….’’
खींस निपोरते हुए किशन नोट लेकर वहां से चला गया। रात गए वह लौटा तो हमेशा की तरह नशे में धुत था। चमेली मन मसोस कर रह गई और चुपचाप थाली परोस कर उसके सामने रख दी। खाना खाते-खाते किशन ने एक बार फिर पूछा, ‘‘सच्ची बता री, तू अस्पताल काहे गई थी?’’
चमेली उसकी बेचैनी पर मुस्कराते हुए बोली, ‘‘क्यों? पेट पिराने लगा? अरे मुए, मैं वहां काम के जुगाड़ में गई थी। सुना है वहां जादा मजदूरी मिले है…. तीन सौ रुपए रोज।’’
‘‘तीन सौ?’’ किशन की बांछें खिल गई।
jamnadas ka beej hot desi kahani
चमेली का मतवाला रूप
‘‘बोल, करेगा तू काम? तेरे लिए वहां जगह है।’’ चमेली ने पूछा।
किशन खिलखिला पड़ा, ‘‘मैं और काम…. काहे? तू मुझे खिला नही सकती क्या?’’
‘‘अब तक कौन खिला रहा था, तेरा बाप?’’ चमेली ने पलट कर पूछ लिया।
‘‘देख चमेली, सच बात तो यो है कि मेरे से काम न होए। तू तो जानत है हमार हाथ-पैर पिरात रहत हैं।’’
‘‘रात को हमरे साथ सोवत समय नाही पिरात? तेरे को बस एक ही काम आवे है और वह भी आधा-अधूरा…. नामर्द कहीं का!’’ चमेली उलाहना देते हुए बोली। किशन पर इसका कोई असर नही हुआ। वह जानता था कि वह चमेली को खुश नहीं कर पाता था।
‘‘ठीक है तू मत जा, मैं चली जाऊं वहां काम पर?’’ चमेली ने पूछा।
नशे में भी किशन जैसे चिंता में पड़ गया, ‘‘ठेकेदार कौन है वहां?’’
‘‘जमना दास…. ’’
‘‘अरे वो…. वो तो बड़ा कमीना है।’’ किशन बिफर पड़ा।
‘‘तू कैसे जाने?’’
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‘‘मैंने सुना है।’’ किशन ने बताया।
‘‘मुझे तो बड़ा देवता सा लागे है वो…. ’’ चमेली ने प्रशंसा की।
‘‘हुंह, शैतान की खोपड़ी है वो… ठेकेदार का बच्चा!’’ किशन गुस्से में बहका।
‘‘फिर ना जाऊं?’’ चमेली ने पूछा।
किशन सोच में पड़ गया। उसकी आँखों के सामने सौ-सौ के हरे नोट लहराने लगे और साथ ही दारू की रंग-बिरंगी बोतलें भी घूमने लगी। इसलिए उसने अनुमति के साथ चेतावनी भी दे डाली, ‘‘ठीक है चली जा, पर संभल कर रहियो वहां। बड़ा बेढब आदमी है जमना दास।’’
एक दिन समय निकाल कर और हिम्मत जुटा कर चमेली फिर ठेकेदार जमना दास के पास पहुंच गई। इस बार वह निर्माण-स्थल के बजाय उसके दफ्तर गई थी।
‘‘क्या बात है?’’ जमना दास ने पूछा।
‘‘काम चाहिए, और का?’’ चमेली मुस्कराते हुए बोली।
‘‘तेरे लिए यहां काम कहां है? मेरे को चौकीदारी के लिए मरद चाहिए…. अब तुझे चौकीदार रखूंगा तो मुझे तेरी चौकीदारी करनी पड़ेगी।’’ जमना दास भोंडी हंसी हँसता हुआ बोला। उसकी ललचाई नजरें चमेली के जिस्म के लुभावने उभारों पर फिसल रही थीं।
‘‘मेरा मरद तो काम करना ही न चाहे।’’ चमेली ने बताया।
‘‘तो मैं क्या करूं?’’ जमना दास लापरवाही से बोला।
चमेली निराश नही हुई। उसे वहां काम करने वाली मजदूरनी की नसीहत याद आ गई। चमेली ने वही पैतरा अपनाया, ‘‘बाबूजी, हमारा आपके सिवा कौन है! आप नौकरी नही देंगे तो हम भूखों मर जाएगें।’’
‘‘देख भई, इस दुनिया में सभी भूखे हैं। तू भूखी है तो मैं भी भूखा हूं। अगर तू मेरी भूख मिटा दे तो मैं तेरी और तेरे परिवार की भूख मिटा दूंगा।’’ जमना दास ने सीधा प्रस्ताव किया। चमेली सोच में पड़ गई।
‘‘सोचती क्या है…. काम यहां करना, हाजिरी वहां लग जाया करेगी।’’
‘‘अपने मरद से पूछ कर बताऊंगी।’’ चमेली ने कहा।
‘‘अरे उस किशन के बच्चे को मैं तैयार कर लूंगा।’’ जमना दास ने विश्वासपूर्वक कहा।
अगले दिन ठेकेदार जमना दास ने बढ़िया देसी शराब की चार बोतलें किशन के पास भेज दी। इतनी सारी बोतलें एक साथ देख किशन निहाल हो गया। उसने सपने में भी नही सोचा था कि वह एक साथ इतनी सारी बोतलें पा जाएगा। जमना दास तो सचमुच ही देवता आदमी निकला। उसने चमेली को जमना दास के यहां काम करने की इजाज़त दे दी।
अगले दिन चमेली जमना दास के दफ्तर पंहुच गयी। वहाँ कोई खास काम तो था नहीं। बस सफाई करना, पानी लाना, चाय बनाना इस तरह के काम थे। एक घंटे बाद जमना दास साईट पर चला गया। चमेली को कह गया कि वह एक बजे खाना खाने आएगा। खाना भी चमेली को ही बनाना था। चमेली सोच रही थी कि इस तरह के काम के बदले तीन सौ रुपये रोज मिल जाएँ तो उसकी तो मौज हो जायेगी … और साथ में किशन की भी। पर साथ में उसे शंका भी थी। वह जानती थी कि जमना दास उसे ऐसे ही नहीं छोड़ेगा। फिर उसने सोचा कि ओखली में सर दे दिया है तो अब मूसल से क्या डरना।
जमना दास एक बजे वापस आ गया। चमेली ने उसे खाना खिलाया। फिर उसने अपनी खाने की पोटली खोली तो जमना दास ने कहा, “अरे, तू अपने लिए खाना ले कर आई है! कल से यह नहीं चलेगा। तू यहां मेरे साथ-साथ अपने लिए भी खाना बना लिया कर।”
चमेली ने खाना खा कर बर्तन साफ़ करने जा रही थी तो जमना दास ने उससे कहा, “अब मेरे आराम करने का वक़्त हो गया है।”
वह दफ्तर के पीछे के कमरे में चला गया। चमेली पहले ही देख चुकी थी कि दफ्तर के पीछे एक कमरा बना हुआ था जिसका एक दरवाजा दफ्तर में खुलता था और एक पीछे बाहर की तरफ। उससे लगा हुआ एक बाथरूम भी था। उस कमरे में एक पलंग, एक मेज और दो कुर्सियाँ रखी हुई थीं। थोड़ी देर में चमेली को जमना दास के खर्राटों की आवाज सुनाई देने लगी।