new hindi kamukata जमना दास का बीज
new hindi kamukata जमना दास का बीज
चमेली ने हमेशा मेहनत से काम किया पर गरीबी हमेशा छाई रही, फिर वो एक ज़ालिम ठेकेदार के सामने झुक गयी और अपने परिवार की खुशियों के लिए सौदा कर लिया.. एक मस्त hot desi kahani पढ़िए..
मेहनत करते चमेली कभी थकती नही थी। यह तो उसका रोज का काम था। बस सड़क की सफाई करते-करते वह ऊब गई थी। अब वह किसी बड़े काम की तलाश में थी जहां वह ज्यादा पैसा कमा सके। कमाई कुछ बढे तो उसके लिए अपने निठल्ले पति का पेट भरना और उसकी दारू का इंतजाम करना थोडा आसान हो जायेगा।
शहर से कुछ दूर एक बहुमंजिला अस्पताल का निर्माण हो रहा था। चमेली की नजर बहुत दिनों से वहां के काम पर थी। वहां अगर काम मिल जाए तो मजे ही मजे! एक बार काम से छुट्टी होने पर वह वहां पहुन्ची भी थी लेकिन बात नही बनी क्योंकि फिलहाल वहां किसी मरद की जरूरत थी। उस दिन देर से घर पहुंची तो प्रतिक्षारत किशन ने पूछ लिया, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’
चमेली एक नजर पति के चेहरे पर डालते हुए बोली, ‘‘अस्पताल गई थी।’’
‘‘काहे, बच्चा लेने?’’ खोखली हंसी हंसते किशन ने पूछा।
‘‘और का… अब तू तो बच्चा दे नही सकता, वहीं से लाना पड़ेगा।’’ चमेली ने भी मुस्कराते हुए उसी अंदाज में उत्तर दिया।
‘‘बड़ी बेशरम हो गई है री….’’ किशन ने खिलखिलाते हुए कहा।
‘‘चल काम की बात कर….’’
‘‘कब से तेरा रास्ता देखते आंखें पथरा गई। हलक सूखा जा रहा है। भगवान कसम, थोड़ा तर कर लूं। ला, दे कुछ पैसे…. ’’ किशन बोला।
चमेली ने बिना किसी हील-हुज्जत के अपनी गांठ खोल बीस रुपए का मुड़ा-तुड़ा नोट उसकी ओर बढाते हुए कहा, ‘‘ले, मर….’’
खींस निपोरते हुए किशन नोट लेकर वहां से चला गया। रात गए वह लौटा तो हमेशा की तरह नशे में धुत था। चमेली मन मसोस कर रह गई और चुपचाप थाली परोस कर उसके सामने रख दी। खाना खाते-खाते किशन ने एक बार फिर पूछा, ‘‘सच्ची बता री, तू अस्पताल काहे गई थी?’’
चमेली उसकी बेचैनी पर मुस्कराते हुए बोली, ‘‘क्यों? पेट पिराने लगा? अरे मुए, मैं वहां काम के जुगाड़ में गई थी। सुना है वहां जादा मजदूरी मिले है…. तीन सौ रुपए रोज।’’
‘‘तीन सौ?’’ किशन की बांछें खिल गई।
jamnadas ka beej hot desi kahani
चमेली का मतवाला रूप
‘‘बोल, करेगा तू काम? तेरे लिए वहां जगह है।’’ चमेली ने पूछा।
किशन खिलखिला पड़ा, ‘‘मैं और काम…. काहे? तू मुझे खिला नही सकती क्या?’’
‘‘अब तक कौन खिला रहा था, तेरा बाप?’’ चमेली ने पलट कर पूछ लिया।
‘‘देख चमेली, सच बात तो यो है कि मेरे से काम न होए। तू तो जानत है हमार हाथ-पैर पिरात रहत हैं।’’
‘‘रात को हमरे साथ सोवत समय नाही पिरात? तेरे को बस एक ही काम आवे है और वह भी आधा-अधूरा…. नामर्द कहीं का!’’ चमेली उलाहना देते हुए बोली। किशन पर इसका कोई असर नही हुआ। वह जानता था कि वह चमेली को खुश नहीं कर पाता था।
‘‘ठीक है तू मत जा, मैं चली जाऊं वहां काम पर?’’ चमेली ने पूछा।
नशे में भी किशन जैसे चिंता में पड़ गया, ‘‘ठेकेदार कौन है वहां?’’
‘‘जमना दास…. ’’
‘‘अरे वो…. वो तो बड़ा कमीना है।’’ किशन बिफर पड़ा।
‘‘तू कैसे जाने?’’
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‘‘मैंने सुना है।’’ किशन ने बताया।
‘‘मुझे तो बड़ा देवता सा लागे है वो…. ’’ चमेली ने प्रशंसा की।
‘‘हुंह, शैतान की खोपड़ी है वो… ठेकेदार का बच्चा!’’ किशन गुस्से में बहका।
‘‘फिर ना जाऊं?’’ चमेली ने पूछा।
किशन सोच में पड़ गया। उसकी आँखों के सामने सौ-सौ के हरे नोट लहराने लगे और साथ ही दारू की रंग-बिरंगी बोतलें भी घूमने लगी। इसलिए उसने अनुमति के साथ चेतावनी भी दे डाली, ‘‘ठीक है चली जा, पर संभल कर रहियो वहां। बड़ा बेढब आदमी है जमना दास।’’
एक दिन समय निकाल कर और हिम्मत जुटा कर चमेली फिर ठेकेदार जमना दास के पास पहुंच गई। इस बार वह निर्माण-स्थल के बजाय उसके दफ्तर गई थी।
‘‘क्या बात है?’’ जमना दास ने पूछा।
‘‘काम चाहिए, और का?’’ चमेली मुस्कराते हुए बोली।
‘‘तेरे लिए यहां काम कहां है? मेरे को चौकीदारी के लिए मरद चाहिए…. अब तुझे चौकीदार रखूंगा तो मुझे तेरी चौकीदारी करनी पड़ेगी।’’ जमना दास भोंडी हंसी हँसता हुआ बोला। उसकी ललचाई नजरें चमेली के जिस्म के लुभावने उभारों पर फिसल रही थीं।
‘‘मेरा मरद तो काम करना ही न चाहे।’’ चमेली ने बताया।
‘‘तो मैं क्या करूं?’’ जमना दास लापरवाही से बोला।
चमेली निराश नही हुई। उसे वहां काम करने वाली मजदूरनी की नसीहत याद आ गई। चमेली ने वही पैतरा अपनाया, ‘‘बाबूजी, हमारा आपके सिवा कौन है! आप नौकरी नही देंगे तो हम भूखों मर जाएगें।’’
‘‘देख भई, इस दुनिया में सभी भूखे हैं। तू भूखी है तो मैं भी भूखा हूं। अगर तू मेरी भूख मिटा दे तो मैं तेरी और तेरे परिवार की भूख मिटा दूंगा।’’ जमना दास ने सीधा प्रस्ताव किया। चमेली सोच में पड़ गई।
‘‘सोचती क्या है…. काम यहां करना, हाजिरी वहां लग जाया करेगी।’’
‘‘अपने मरद से पूछ कर बताऊंगी।’’ चमेली ने कहा।
‘‘अरे उस किशन के बच्चे को मैं तैयार कर लूंगा।’’ जमना दास ने विश्वासपूर्वक कहा।
अगले दिन ठेकेदार जमना दास ने बढ़िया देसी शराब की चार बोतलें किशन के पास भेज दी। इतनी सारी बोतलें एक साथ देख किशन निहाल हो गया। उसने सपने में भी नही सोचा था कि वह एक साथ इतनी सारी बोतलें पा जाएगा। जमना दास तो सचमुच ही देवता आदमी निकला। उसने चमेली को जमना दास के यहां काम करने की इजाज़त दे दी।
अगले दिन चमेली जमना दास के दफ्तर पंहुच गयी। वहाँ कोई खास काम तो था नहीं। बस सफाई करना, पानी लाना, चाय बनाना इस तरह के काम थे। एक घंटे बाद जमना दास साईट पर चला गया। चमेली को कह गया कि वह एक बजे खाना खाने आएगा। खाना भी चमेली को ही बनाना था। चमेली सोच रही थी कि इस तरह के काम के बदले तीन सौ रुपये रोज मिल जाएँ तो उसकी तो मौज हो जायेगी … और साथ में किशन की भी। पर साथ में उसे शंका भी थी। वह जानती थी कि जमना दास उसे ऐसे ही नहीं छोड़ेगा। फिर उसने सोचा कि ओखली में सर दे दिया है तो अब मूसल से क्या डरना।
जमना दास एक बजे वापस आ गया। चमेली ने उसे खाना खिलाया। फिर उसने अपनी खाने की पोटली खोली तो जमना दास ने कहा, “अरे, तू अपने लिए खाना ले कर आई है! कल से यह नहीं चलेगा। तू यहां मेरे साथ-साथ अपने लिए भी खाना बना लिया कर।”
चमेली ने खाना खा कर बर्तन साफ़ करने जा रही थी तो जमना दास ने उससे कहा, “अब मेरे आराम करने का वक़्त हो गया है।”
वह दफ्तर के पीछे के कमरे में चला गया। चमेली पहले ही देख चुकी थी कि दफ्तर के पीछे एक कमरा बना हुआ था जिसका एक दरवाजा दफ्तर में खुलता था और एक पीछे बाहर की तरफ। उससे लगा हुआ एक बाथरूम भी था। उस कमरे में एक पलंग, एक मेज और दो कुर्सियाँ रखी हुई थीं। थोड़ी देर में चमेली को जमना दास के खर्राटों की आवाज सुनाई देने लगी।
मेहनत करते चमेली कभी थकती नही थी। यह तो उसका रोज का काम था। बस सड़क की सफाई करते-करते वह ऊब गई थी। अब वह किसी बड़े काम की तलाश में थी जहां वह ज्यादा पैसा कमा सके। कमाई कुछ बढे तो उसके लिए अपने निठल्ले पति का पेट भरना और उसकी दारू का इंतजाम करना थोडा आसान हो जायेगा।
शहर से कुछ दूर एक बहुमंजिला अस्पताल का निर्माण हो रहा था। चमेली की नजर बहुत दिनों से वहां के काम पर थी। वहां अगर काम मिल जाए तो मजे ही मजे! एक बार काम से छुट्टी होने पर वह वहां पहुन्ची भी थी लेकिन बात नही बनी क्योंकि फिलहाल वहां किसी मरद की जरूरत थी। उस दिन देर से घर पहुंची तो प्रतिक्षारत किशन ने पूछ लिया, ‘‘इतनी देर कहां लगा दी?’’
चमेली एक नजर पति के चेहरे पर डालते हुए बोली, ‘‘अस्पताल गई थी।’’
‘‘काहे, बच्चा लेने?’’ खोखली हंसी हंसते किशन ने पूछा।
‘‘और का… अब तू तो बच्चा दे नही सकता, वहीं से लाना पड़ेगा।’’ चमेली ने भी मुस्कराते हुए उसी अंदाज में उत्तर दिया।
‘‘बड़ी बेशरम हो गई है री….’’ किशन ने खिलखिलाते हुए कहा।
‘‘चल काम की बात कर….’’
‘‘कब से तेरा रास्ता देखते आंखें पथरा गई। हलक सूखा जा रहा है। भगवान कसम, थोड़ा तर कर लूं। ला, दे कुछ पैसे…. ’’ किशन बोला।
चमेली ने बिना किसी हील-हुज्जत के अपनी गांठ खोल बीस रुपए का मुड़ा-तुड़ा नोट उसकी ओर बढाते हुए कहा, ‘‘ले, मर….’’
खींस निपोरते हुए किशन नोट लेकर वहां से चला गया। रात गए वह लौटा तो हमेशा की तरह नशे में धुत था। चमेली मन मसोस कर रह गई और चुपचाप थाली परोस कर उसके सामने रख दी। खाना खाते-खाते किशन ने एक बार फिर पूछा, ‘‘सच्ची बता री, तू अस्पताल काहे गई थी?’’
चमेली उसकी बेचैनी पर मुस्कराते हुए बोली, ‘‘क्यों? पेट पिराने लगा? अरे मुए, मैं वहां काम के जुगाड़ में गई थी। सुना है वहां जादा मजदूरी मिले है…. तीन सौ रुपए रोज।’’
‘‘तीन सौ?’’ किशन की बांछें खिल गई।
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चमेली का मतवाला रूप
‘‘बोल, करेगा तू काम? तेरे लिए वहां जगह है।’’ चमेली ने पूछा।
किशन खिलखिला पड़ा, ‘‘मैं और काम…. काहे? तू मुझे खिला नही सकती क्या?’’
‘‘अब तक कौन खिला रहा था, तेरा बाप?’’ चमेली ने पलट कर पूछ लिया।
‘‘देख चमेली, सच बात तो यो है कि मेरे से काम न होए। तू तो जानत है हमार हाथ-पैर पिरात रहत हैं।’’
‘‘रात को हमरे साथ सोवत समय नाही पिरात? तेरे को बस एक ही काम आवे है और वह भी आधा-अधूरा…. नामर्द कहीं का!’’ चमेली उलाहना देते हुए बोली। किशन पर इसका कोई असर नही हुआ। वह जानता था कि वह चमेली को खुश नहीं कर पाता था।
‘‘ठीक है तू मत जा, मैं चली जाऊं वहां काम पर?’’ चमेली ने पूछा।
नशे में भी किशन जैसे चिंता में पड़ गया, ‘‘ठेकेदार कौन है वहां?’’
‘‘जमना दास…. ’’
‘‘अरे वो…. वो तो बड़ा कमीना है।’’ किशन बिफर पड़ा।
‘‘तू कैसे जाने?’’
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‘‘मैंने सुना है।’’ किशन ने बताया।
‘‘मुझे तो बड़ा देवता सा लागे है वो…. ’’ चमेली ने प्रशंसा की।
‘‘हुंह, शैतान की खोपड़ी है वो… ठेकेदार का बच्चा!’’ किशन गुस्से में बहका।
‘‘फिर ना जाऊं?’’ चमेली ने पूछा।
किशन सोच में पड़ गया। उसकी आँखों के सामने सौ-सौ के हरे नोट लहराने लगे और साथ ही दारू की रंग-बिरंगी बोतलें भी घूमने लगी। इसलिए उसने अनुमति के साथ चेतावनी भी दे डाली, ‘‘ठीक है चली जा, पर संभल कर रहियो वहां। बड़ा बेढब आदमी है जमना दास।’’
एक दिन समय निकाल कर और हिम्मत जुटा कर चमेली फिर ठेकेदार जमना दास के पास पहुंच गई। इस बार वह निर्माण-स्थल के बजाय उसके दफ्तर गई थी।
‘‘क्या बात है?’’ जमना दास ने पूछा।
‘‘काम चाहिए, और का?’’ चमेली मुस्कराते हुए बोली।
‘‘तेरे लिए यहां काम कहां है? मेरे को चौकीदारी के लिए मरद चाहिए…. अब तुझे चौकीदार रखूंगा तो मुझे तेरी चौकीदारी करनी पड़ेगी।’’ जमना दास भोंडी हंसी हँसता हुआ बोला। उसकी ललचाई नजरें चमेली के जिस्म के लुभावने उभारों पर फिसल रही थीं।
‘‘मेरा मरद तो काम करना ही न चाहे।’’ चमेली ने बताया।
‘‘तो मैं क्या करूं?’’ जमना दास लापरवाही से बोला।
चमेली निराश नही हुई। उसे वहां काम करने वाली मजदूरनी की नसीहत याद आ गई। चमेली ने वही पैतरा अपनाया, ‘‘बाबूजी, हमारा आपके सिवा कौन है! आप नौकरी नही देंगे तो हम भूखों मर जाएगें।’’
‘‘देख भई, इस दुनिया में सभी भूखे हैं। तू भूखी है तो मैं भी भूखा हूं। अगर तू मेरी भूख मिटा दे तो मैं तेरी और तेरे परिवार की भूख मिटा दूंगा।’’ जमना दास ने सीधा प्रस्ताव किया। चमेली सोच में पड़ गई।
‘‘सोचती क्या है…. काम यहां करना, हाजिरी वहां लग जाया करेगी।’’
‘‘अपने मरद से पूछ कर बताऊंगी।’’ चमेली ने कहा।
‘‘अरे उस किशन के बच्चे को मैं तैयार कर लूंगा।’’ जमना दास ने विश्वासपूर्वक कहा।
अगले दिन ठेकेदार जमना दास ने बढ़िया देसी शराब की चार बोतलें किशन के पास भेज दी। इतनी सारी बोतलें एक साथ देख किशन निहाल हो गया। उसने सपने में भी नही सोचा था कि वह एक साथ इतनी सारी बोतलें पा जाएगा। जमना दास तो सचमुच ही देवता आदमी निकला। उसने चमेली को जमना दास के यहां काम करने की इजाज़त दे दी।
अगले दिन चमेली जमना दास के दफ्तर पंहुच गयी। वहाँ कोई खास काम तो था नहीं। बस सफाई करना, पानी लाना, चाय बनाना इस तरह के काम थे। एक घंटे बाद जमना दास साईट पर चला गया। चमेली को कह गया कि वह एक बजे खाना खाने आएगा। खाना भी चमेली को ही बनाना था। चमेली सोच रही थी कि इस तरह के काम के बदले तीन सौ रुपये रोज मिल जाएँ तो उसकी तो मौज हो जायेगी … और साथ में किशन की भी। पर साथ में उसे शंका भी थी। वह जानती थी कि जमना दास उसे ऐसे ही नहीं छोड़ेगा। फिर उसने सोचा कि ओखली में सर दे दिया है तो अब मूसल से क्या डरना।
जमना दास एक बजे वापस आ गया। चमेली ने उसे खाना खिलाया। फिर उसने अपनी खाने की पोटली खोली तो जमना दास ने कहा, “अरे, तू अपने लिए खाना ले कर आई है! कल से यह नहीं चलेगा। तू यहां मेरे साथ-साथ अपने लिए भी खाना बना लिया कर।”
चमेली ने खाना खा कर बर्तन साफ़ करने जा रही थी तो जमना दास ने उससे कहा, “अब मेरे आराम करने का वक़्त हो गया है।”
वह दफ्तर के पीछे के कमरे में चला गया। चमेली पहले ही देख चुकी थी कि दफ्तर के पीछे एक कमरा बना हुआ था जिसका एक दरवाजा दफ्तर में खुलता था और एक पीछे बाहर की तरफ। उससे लगा हुआ एक बाथरूम भी था। उस कमरे में एक पलंग, एक मेज और दो कुर्सियाँ रखी हुई थीं। थोड़ी देर में चमेली को जमना दास के खर्राटों की आवाज सुनाई देने लगी।
Re: new hindi kamukata जमना दास का बीज
अब चमेली के पास कोई काम नहीं था। वह खाली बैठी सोच रही थी कि उसे आज के पैसे आज ही मिल जायेंगे या हफ्ता पूरा होने पर सात दिन के पैसे एक साथ मिलेंगे। उसने सोचा कि कम से कम एक दिन के पैसे तो उसे आज ही मांग लेने चाहियें।
कोई एक घंटे बाद उसे पास के कमरे से कुछ आवाजें सुनाई दीं, चलने-फिरने की, बाथरूम का किवाड़ बंद होने और खुलने की। फिर उसने जमना दास की आवाज सुनी। वह उसे अन्दर बुला रहा था। वह कमरे में गयी तो जमना दास ने उसे कहा, “तू बाहर जा कर दफ्तर के ताला लगा दे और फिर पीछे के दरवाजे से इस कमरे में आ जा।”
वह ताला लगा कर पीछे से कमरे में आई तो उसने देखा कि जमना दास सिर्फ़ कच्छे और बनियान में एक कुर्सी पर बैठा था। उसने लम्पट दृष्टि से चमेली को देखते हुए कहा, “अब असली ‘काम’ करते हैं। दरवाजा बंद कर दे। किसी को पता नहीं चलेगा कि अन्दर कोई है।”
चमेली को पता था कि उसे देर-सबेर यह ‘काम’ करना ही पड़ेगा पर फिर भी दरवाजा बंद करते वक़्त वह घबरा रही थी। उसने किशन के अलावा और किसी के साथ यह नहीं किया था और किशन नामर्द न सही पर पूरा मर्द भी नहीं था। जमना दास ने उसे अपने पास बुला कर कपडे उतारने के लिए कहा। उसने झिझकते हुए अपनी ओढनी और चोली उतार कर मेज पर रख दी और सर झुका कर खड़ी हो गई। जमना दास ने अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा, “बाकी भी तो उतार।”
चमेली ने अचरज से पूछा, “बाकी काहे?”
“इसमें पूछने की क्या बात है? अपने खसम के आगे नहीं उतारती क्या?”
“नहीं।”
“तो क्या करता है वो?”
चमेली सर झुकाए चुपचाप खड़ी रही। जमना दास ने कहा, “बता ना, कुछ करता भी है या फिर छक्का है?”
“जी, वो अंगिया के ऊपर से हाथ फेर लेते हैं।”
“और? … और क्या करता है?”
“जी, लहंगा उठा कर अपना काम कर लेते है।”
‘और चूसता नहीं है?”
“क्या?”
“तेरी चून्चियां, और क्या?”
चमेली फिर चुप हो गई। उसे एक गैर मर्द के सामने ऐसी बातें करने में शर्म आ रही थी। लेकिन जमना दास को उसकी झिझक देख कर मज़ा आ रहा था। उसने फिर पूछा, “अरी, बता ना!”
“जी, उन्हें ये अच्छा नहीं लगता।”
“लो और सुनो! उसे ये अच्छा नहीं लगता! पूरा नालायक है साला! … खैर तू कपडे उतार। मैं चूसूंगा भी और चुसवाऊंगा भी!”
चमेली को उसकी बात पूरी तरह समझ में नहीं आई। उसे शर्म भी आ रही थी। किसी तरह हिम्मत कर के उसने अपने बाकी कपडे उतारे। उसे पूरी तरह नंगी देख कर जमना दास की तबीयत फड़कने लगी पर उसने कहा, “यह क्या जंगल उगा रखा है! कभी झांटें साफ़ नहीं करती?”
यह सुन कर तो चमेली शर्म से पानी-पानी हो गई। उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। पर जमना दास ने उसकी मुश्किल आसान करते हुआ कहा, “कोई बात नहीं। मैं कल तुझे शेविंग का सामान ला दूंगा। या तू कहेगी तो मैं ही तेरी झांटें साफ़ कर दूंगा।… अब आ जा यहां।”
चमेली लजाते हुए उसके पास पहुंची तो जमना दास ने उसे अपनी गोद में बिठा लिया। उसने उसकी गर्दन को चूमना शुरू किया और धीरे-धीरे उसके होंठ पहले चमेली के कान और फिर गालों से होते हुए उसके होंठों तक पहुँच गए। उसके हाथ चमेली की नंगी पीठ पर घूम रहे थे। होंठों को चूसते-चूसते उसने उसके स्तन को अपने हाथ में भर लिया और उसे हल्के-हल्के दबाने लगा। उसने अपनी जीभ उसकी जीभ से लड़ाई तो चमेली भी अपने आप को रोक नहीं पाई। उसने बेमन से खुद को जमना दास के हवाले किया था पर अब वह भी उत्तेजित होने लगी थी। उसने भी अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और मुँह के अंदर उसे घुमाने लगी।
अब जमना दास को लगा कि चमेली उसके काबू में आ गई है। उसने उसे अपने सामने फर्श पर बैठाया। अपना कच्छा उतार कर उसे बोला, “चल, अब इसे मुँह में ले!”
चमेली ने हैरत से कहा, “यह क्या कह रहे हैं आप!”
जमना दास बोला, “अरे, चूसने के लिए ही तो कह रहा हूं। अब यह मत कहना कि किशन ने तुझ से लंड भी नहीं चुसवाया।”
जमुना ने सोचा, “ये कहाँ फंस गई मैं! किशन ठीक ही कह रहा था। यह जमना दास तो वास्तव में कमीना है।” प्रत्यक्षत: उसने रुआंसी आवाज में कहा, “मैं सच कह रही हूं। उन्होंने कभी नहीं चुसवाया।”
जमना दास यह जान कर खुश हो गया कि उसे एक कुंवारा मुंह मिल रहा है। वह बोला, “मैं किशन नहीं, ठेकेदार जमना दास हूं। चूत से पहले लंड हमेशा मुंह में देता हूं। चल, मुंह खोल।”
चमेली को यह बहुत गन्दा लग रहा था। किशन अधूरा मर्द ही सही पर उससे ऐसा काम तो नहीं करवाता था। यहाँ उसके पास और कोई चारा नहीं था। मजबूरी में उसे अपना मुंह खोलना पड़ा। जमना दास ने लंड उसके होंठों पर फिसलाते हुए कहा, “एक बार स्वाद ले कर देख! फिर रोज़ चूसने को मन करेगा! जीभ फिरा इस पर!
उसने बेमन से लंड के सुपाड़े पर जीभ फिराई। पहले उसे अजीब सा महसूस हुआ पर कुछ देर जीभ फिराने के बाद उसे लगा कि स्वाद बुरा नहीं है। उसने सुपाड़ा मुंह में लिया और अपनी झिझक छोड़ कर उसे चूसने लगी। जमना दास ने उसका सर पकड़ लिया और वह उसके मुंह में धक्के लगाने लगा, “आह्ह! चूस, मेरी रानी … चूस। आह … आह्ह!”
जमना दास काफी देर तक लंड चुसवाने का मज़ा लेता रहा। जब उसे लगा कि वो झड़ने वाला है तो उसने अपना लण्ड मुंह से बाहर निकाल लिया। उसने चमेली को अपने सामने खड़ा कर दिया। अब चमेली के उठे हुए अर्धगोलाकार मम्मे उसके सामने थे। जमना दास की मुट्ठियां अनायास ही उसके मम्मों पर भिंच गयीं। वह उन्हें बेदर्दी से दबाने लगा। चमेली दर्द से सिसक उठी पर जमना दास पर उसकी सिसकियों का कोई असर नहीं हुआ। जी भर कर मम्मों को दबाने और मसलने के बाद उसने अपना मुंह एक मम्मे पर रख दिया। वह उसे चाट रहा था और चूस रहा था। साथ ही वह अपनी जीभ उसके निप्पल पर फिरा रहा था और उसको बीच-बीच में आहिस्ता से काट भी लेता था।
चमेली का दर्द अब गायब हो चुका था। उसे अपनी चूंची से एक मीठी गुदगुदी उठती हुई महसूस हो रही थी। वो भी अब चूंची-चुसाई का आनन्द लेने लगी। उसके मुंह से बरबस ही कामुक आवाज़ें निकल रही थी। जमना दास का एक हाथ उसकी जाँघों के बीच पहुँच गया। उसके मम्मों को चूसने के साथ-साथ वह अपने हाथ से उसकी चूत को सहला रहा था। जल्द ही चूत उत्तेजना से पनिया गई। अब उन दोनों की कामुक सिसकारियाँ कमरे में गूज रही थी।
अनुभवी जमना दास को यह समझने में देर न लगी कि लोहा गर्म है और हथोडा मारने का समय आ गया है। वह चमेली को पलंग पर ले गया। उसे पलंग पर चित्त लिटा कर वह बोला, “रानी, जरा टांगें चौड़ी कर!”
चमेली अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थी। उसने बेहिचक अपनी टांगें फैला दीं। जमना दास उसकी जांघों के बीच बैठ गया और उसने उसकी टांगें अपने कन्धों पर रख लीं। वह उसकी चूत को अपने लंड के सुपाड़े से सहलाने लगा। चमेली उत्तेजना से कसमसा उठी। उसने अपने चूतड उछाले पर लंड अपनी जगह से फिसल गया। जमना दास उसकी बेचैनी देख कर खुश हो गया। उसे लगा कि मुर्गी खुद क़त्ल होने के लिए तडफड़ा रही है। वह ठसके से बोला, “क्या हो रहा है, रानी? चुदवाना चाहती है?”
कोई एक घंटे बाद उसे पास के कमरे से कुछ आवाजें सुनाई दीं, चलने-फिरने की, बाथरूम का किवाड़ बंद होने और खुलने की। फिर उसने जमना दास की आवाज सुनी। वह उसे अन्दर बुला रहा था। वह कमरे में गयी तो जमना दास ने उसे कहा, “तू बाहर जा कर दफ्तर के ताला लगा दे और फिर पीछे के दरवाजे से इस कमरे में आ जा।”
वह ताला लगा कर पीछे से कमरे में आई तो उसने देखा कि जमना दास सिर्फ़ कच्छे और बनियान में एक कुर्सी पर बैठा था। उसने लम्पट दृष्टि से चमेली को देखते हुए कहा, “अब असली ‘काम’ करते हैं। दरवाजा बंद कर दे। किसी को पता नहीं चलेगा कि अन्दर कोई है।”
चमेली को पता था कि उसे देर-सबेर यह ‘काम’ करना ही पड़ेगा पर फिर भी दरवाजा बंद करते वक़्त वह घबरा रही थी। उसने किशन के अलावा और किसी के साथ यह नहीं किया था और किशन नामर्द न सही पर पूरा मर्द भी नहीं था। जमना दास ने उसे अपने पास बुला कर कपडे उतारने के लिए कहा। उसने झिझकते हुए अपनी ओढनी और चोली उतार कर मेज पर रख दी और सर झुका कर खड़ी हो गई। जमना दास ने अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए कहा, “बाकी भी तो उतार।”
चमेली ने अचरज से पूछा, “बाकी काहे?”
“इसमें पूछने की क्या बात है? अपने खसम के आगे नहीं उतारती क्या?”
“नहीं।”
“तो क्या करता है वो?”
चमेली सर झुकाए चुपचाप खड़ी रही। जमना दास ने कहा, “बता ना, कुछ करता भी है या फिर छक्का है?”
“जी, वो अंगिया के ऊपर से हाथ फेर लेते हैं।”
“और? … और क्या करता है?”
“जी, लहंगा उठा कर अपना काम कर लेते है।”
‘और चूसता नहीं है?”
“क्या?”
“तेरी चून्चियां, और क्या?”
चमेली फिर चुप हो गई। उसे एक गैर मर्द के सामने ऐसी बातें करने में शर्म आ रही थी। लेकिन जमना दास को उसकी झिझक देख कर मज़ा आ रहा था। उसने फिर पूछा, “अरी, बता ना!”
“जी, उन्हें ये अच्छा नहीं लगता।”
“लो और सुनो! उसे ये अच्छा नहीं लगता! पूरा नालायक है साला! … खैर तू कपडे उतार। मैं चूसूंगा भी और चुसवाऊंगा भी!”
चमेली को उसकी बात पूरी तरह समझ में नहीं आई। उसे शर्म भी आ रही थी। किसी तरह हिम्मत कर के उसने अपने बाकी कपडे उतारे। उसे पूरी तरह नंगी देख कर जमना दास की तबीयत फड़कने लगी पर उसने कहा, “यह क्या जंगल उगा रखा है! कभी झांटें साफ़ नहीं करती?”
यह सुन कर तो चमेली शर्म से पानी-पानी हो गई। उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था। पर जमना दास ने उसकी मुश्किल आसान करते हुआ कहा, “कोई बात नहीं। मैं कल तुझे शेविंग का सामान ला दूंगा। या तू कहेगी तो मैं ही तेरी झांटें साफ़ कर दूंगा।… अब आ जा यहां।”
चमेली लजाते हुए उसके पास पहुंची तो जमना दास ने उसे अपनी गोद में बिठा लिया। उसने उसकी गर्दन को चूमना शुरू किया और धीरे-धीरे उसके होंठ पहले चमेली के कान और फिर गालों से होते हुए उसके होंठों तक पहुँच गए। उसके हाथ चमेली की नंगी पीठ पर घूम रहे थे। होंठों को चूसते-चूसते उसने उसके स्तन को अपने हाथ में भर लिया और उसे हल्के-हल्के दबाने लगा। उसने अपनी जीभ उसकी जीभ से लड़ाई तो चमेली भी अपने आप को रोक नहीं पाई। उसने बेमन से खुद को जमना दास के हवाले किया था पर अब वह भी उत्तेजित होने लगी थी। उसने भी अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और मुँह के अंदर उसे घुमाने लगी।
अब जमना दास को लगा कि चमेली उसके काबू में आ गई है। उसने उसे अपने सामने फर्श पर बैठाया। अपना कच्छा उतार कर उसे बोला, “चल, अब इसे मुँह में ले!”
चमेली ने हैरत से कहा, “यह क्या कह रहे हैं आप!”
जमना दास बोला, “अरे, चूसने के लिए ही तो कह रहा हूं। अब यह मत कहना कि किशन ने तुझ से लंड भी नहीं चुसवाया।”
जमुना ने सोचा, “ये कहाँ फंस गई मैं! किशन ठीक ही कह रहा था। यह जमना दास तो वास्तव में कमीना है।” प्रत्यक्षत: उसने रुआंसी आवाज में कहा, “मैं सच कह रही हूं। उन्होंने कभी नहीं चुसवाया।”
जमना दास यह जान कर खुश हो गया कि उसे एक कुंवारा मुंह मिल रहा है। वह बोला, “मैं किशन नहीं, ठेकेदार जमना दास हूं। चूत से पहले लंड हमेशा मुंह में देता हूं। चल, मुंह खोल।”
चमेली को यह बहुत गन्दा लग रहा था। किशन अधूरा मर्द ही सही पर उससे ऐसा काम तो नहीं करवाता था। यहाँ उसके पास और कोई चारा नहीं था। मजबूरी में उसे अपना मुंह खोलना पड़ा। जमना दास ने लंड उसके होंठों पर फिसलाते हुए कहा, “एक बार स्वाद ले कर देख! फिर रोज़ चूसने को मन करेगा! जीभ फिरा इस पर!
उसने बेमन से लंड के सुपाड़े पर जीभ फिराई। पहले उसे अजीब सा महसूस हुआ पर कुछ देर जीभ फिराने के बाद उसे लगा कि स्वाद बुरा नहीं है। उसने सुपाड़ा मुंह में लिया और अपनी झिझक छोड़ कर उसे चूसने लगी। जमना दास ने उसका सर पकड़ लिया और वह उसके मुंह में धक्के लगाने लगा, “आह्ह! चूस, मेरी रानी … चूस। आह … आह्ह!”
जमना दास काफी देर तक लंड चुसवाने का मज़ा लेता रहा। जब उसे लगा कि वो झड़ने वाला है तो उसने अपना लण्ड मुंह से बाहर निकाल लिया। उसने चमेली को अपने सामने खड़ा कर दिया। अब चमेली के उठे हुए अर्धगोलाकार मम्मे उसके सामने थे। जमना दास की मुट्ठियां अनायास ही उसके मम्मों पर भिंच गयीं। वह उन्हें बेदर्दी से दबाने लगा। चमेली दर्द से सिसक उठी पर जमना दास पर उसकी सिसकियों का कोई असर नहीं हुआ। जी भर कर मम्मों को दबाने और मसलने के बाद उसने अपना मुंह एक मम्मे पर रख दिया। वह उसे चाट रहा था और चूस रहा था। साथ ही वह अपनी जीभ उसके निप्पल पर फिरा रहा था और उसको बीच-बीच में आहिस्ता से काट भी लेता था।
चमेली का दर्द अब गायब हो चुका था। उसे अपनी चूंची से एक मीठी गुदगुदी उठती हुई महसूस हो रही थी। वो भी अब चूंची-चुसाई का आनन्द लेने लगी। उसके मुंह से बरबस ही कामुक आवाज़ें निकल रही थी। जमना दास का एक हाथ उसकी जाँघों के बीच पहुँच गया। उसके मम्मों को चूसने के साथ-साथ वह अपने हाथ से उसकी चूत को सहला रहा था। जल्द ही चूत उत्तेजना से पनिया गई। अब उन दोनों की कामुक सिसकारियाँ कमरे में गूज रही थी।
अनुभवी जमना दास को यह समझने में देर न लगी कि लोहा गर्म है और हथोडा मारने का समय आ गया है। वह चमेली को पलंग पर ले गया। उसे पलंग पर चित्त लिटा कर वह बोला, “रानी, जरा टांगें चौड़ी कर!”
चमेली अब पूरी तरह गर्म हो चुकी थी। उसने बेहिचक अपनी टांगें फैला दीं। जमना दास उसकी जांघों के बीच बैठ गया और उसने उसकी टांगें अपने कन्धों पर रख लीं। वह उसकी चूत को अपने लंड के सुपाड़े से सहलाने लगा। चमेली उत्तेजना से कसमसा उठी। उसने अपने चूतड उछाले पर लंड अपनी जगह से फिसल गया। जमना दास उसकी बेचैनी देख कर खुश हो गया। उसे लगा कि मुर्गी खुद क़त्ल होने के लिए तडफड़ा रही है। वह ठसके से बोला, “क्या हो रहा है, रानी? चुदवाना चाहती है?”
Re: new hindi kamukata जमना दास का बीज
चमेली ने बेबसी से उसकी तरफ देखा। उसके मुंह से शब्द नहीं निकले। उसने धीरे से अपनी गर्दन हाँ में हिला दी। जमना दास ने कहा, “चूत पर थूक लगा ले।“
चमेली ने अपने हाथ पर थूका और हाथ से चूत पर थूक लगा लिया।
जमना दास फिर बोला, “इतने से काम नहीं चलेगा। ज़रा मेरे लंड पर भी थूक लगा दे।“
चमेली ने फिर अपने हाथ पर थूका और इस बार उसने लंड के सुपाड़े पर थूक लगा दिया। जमना दास ने सुपाड़ा उसकी चूत पर रखा और अपने चूतड़ों को पूरी ताक़त से आगे धकेल दिया। लंड अपना रास्ता बनाता हुआ चूत के अन्दर घुस गया। चमेली कोई कुंवारी कन्या नहीं थी पर इतना जानदार लंड उसने पहली बार लिया था। वह तड़प कर बोली, “आह्ह! … सेठ, आराम से!”
वह बोला, “बस रानी, अब डरने की कोई बात नहीं है।”
वह चमेली के ऊपर लेट गया। चूत बहुत टाइट थी और वह बुरी तरह उत्तेजित था लेकिन वह लम्बे समय तक औरत को चोदने के तरीके जानता था। उसने चुदाई बहुत हलके धक्कों से शुरू की। … जब उसने अपनी उत्तेजना पर काबू पा लिया तो धक्कों की ताक़त बढ़ा दी। वह कभी अपने लंड को लगभग पूरा निकाल कर सिर्फ सुपाड़े से उसे चोद रहा था तो कभी आधे लंड से। कुछ देर बाद चमेली नीचे से धक्के लगा कर उसके धक्कों का जवाब देने लगी। बेशक वो अब इस खेल में पूरी तरह से शामिल थी और चुदाई का लुत्फ़ उठा रही थी। उसके मुंह से बेसाख्ता सिस्कारियां निकल रही थीं।
उसकी प्रतिक्रिया देख कर जमना दास बोला, “क्यों रानी, अभी भी दर्द हो रहा है?”
“स्स्स! … नहीं! … उई मां! … उम्म्म! … जोर से!”
“ले रानी … ले, जोर से ले!” और जमना दास ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी। लंड अब पूरा अन्दर जा रहा था। घमासान चुदाई से कमरे में ‘फच्च फच्च’ की आवाजें गूँज रही थीं।
कुछ ही देर में चमेली झड़ने की कगार पर पहुँच गई। वह बेमन से चुदने के लिए तैयार हुई थी पर ऐसी धमाकेदार चुदाई उसे आज पहली बार नसीब हुई थी। उसने जमना दास को कस कर पकड़ लिया और हांफते हुए बोली, “बस सेठ … मैं झड रही हूँ। … अब बस!”
जमना दास भी झड़ने के लिए तैयार था। वह सिर्फ चमेली के लिए रुका हुआ था। जब उसने देखा कि चमेली अपनी मंजिल पर पहुँचने वाली है तो उसने धुआंधार चुदाई शुरू कर दी। दोनों एक साथ चुदाई के चरम पर पहुंचे … दोनों के शरीर अकड़ गए … लंड ने चूत में बरसात शुरू कर दी।
कुछ देर दोनों एक दूसरे की बाँहों में पड़े रहे। … चमेली चुद चुकी थी। उसकी चूत तृप्त हो गई थी। … जमना दास खुश था कि उसके मन की मुराद पूरी हो गई थी और एक नई चिड़िया उसके जाल में फंस गई थी।
दिन बीतते गए। यह खेल चलता रहा। वायदे के मुताबिक ठेकेदार जमना दास किशन की भूख-प्यास मिटाता रहा। चमेली चुदती रही और इतनी चुदी कि एक भावी मजदूर उसकी कोख में पलने लगा।
अपनी घरवाली का पेट दिनों-दिन बढ़ता देख कर किशन को चिंता सताने लगी। उसने सोचा कि मैंने जरा सी छूट क्या दे दी, इन्होने तो … वह ठेकेदार जमना दास के पास जाने ही वाला था कि विलायती दारू की एक पेटी उसके पास पहुंच गई। पूरी पेटी और वह भी विलायती दारू की! … उसके विचार बदलने लगे। उसने सोचा, “जमना दास तो देवता है … देवता प्रसाद तो देगा ही … चमेली ही मूरख निकली … उसे प्रसाद लेना भी न आया! आजकल तो इतने सारे साधन हैं फिर भी …”
रात को नशे में धुत्त किशन चमेली पर फट पड़ा। दिल की बात जुबान पर आ गई, ‘‘अपने पेट को देख, बेशरम! यह क्या कर आई?’’
“मैंने क्या किया? यह सब तो भगवान के हाथ में है!”
“भगवान के हाथ में? इसे रोकने के साधन मुफ्त में मिलते हैं! किसी सरकारी अस्पताल क्यों ना गई?”
“क्यों जाती अस्पताल? ज़रा सोच, अभी तो तेरे खाने-पीने का जुगाड़ मैं कर सकती हूं। मैं बूढ़ी हो जाऊंगी तो कौन करेगा यह?” चमेली अपने पेट पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘बुढ़ापे में तेरी देखभाल करने वाला ले आई हूं मैं?’’
यह सुन कर किशन का दुःख दूर हो गया. वह सोच रहा था, “क्या इन्साफ किया है भगवान ने! बुढापे में मेरी सेवा ठेकेदार जमना दास का बेटा करेगा!”
————-समाप्त————-
चमेली ने अपने हाथ पर थूका और हाथ से चूत पर थूक लगा लिया।
जमना दास फिर बोला, “इतने से काम नहीं चलेगा। ज़रा मेरे लंड पर भी थूक लगा दे।“
चमेली ने फिर अपने हाथ पर थूका और इस बार उसने लंड के सुपाड़े पर थूक लगा दिया। जमना दास ने सुपाड़ा उसकी चूत पर रखा और अपने चूतड़ों को पूरी ताक़त से आगे धकेल दिया। लंड अपना रास्ता बनाता हुआ चूत के अन्दर घुस गया। चमेली कोई कुंवारी कन्या नहीं थी पर इतना जानदार लंड उसने पहली बार लिया था। वह तड़प कर बोली, “आह्ह! … सेठ, आराम से!”
वह बोला, “बस रानी, अब डरने की कोई बात नहीं है।”
वह चमेली के ऊपर लेट गया। चूत बहुत टाइट थी और वह बुरी तरह उत्तेजित था लेकिन वह लम्बे समय तक औरत को चोदने के तरीके जानता था। उसने चुदाई बहुत हलके धक्कों से शुरू की। … जब उसने अपनी उत्तेजना पर काबू पा लिया तो धक्कों की ताक़त बढ़ा दी। वह कभी अपने लंड को लगभग पूरा निकाल कर सिर्फ सुपाड़े से उसे चोद रहा था तो कभी आधे लंड से। कुछ देर बाद चमेली नीचे से धक्के लगा कर उसके धक्कों का जवाब देने लगी। बेशक वो अब इस खेल में पूरी तरह से शामिल थी और चुदाई का लुत्फ़ उठा रही थी। उसके मुंह से बेसाख्ता सिस्कारियां निकल रही थीं।
उसकी प्रतिक्रिया देख कर जमना दास बोला, “क्यों रानी, अभी भी दर्द हो रहा है?”
“स्स्स! … नहीं! … उई मां! … उम्म्म! … जोर से!”
“ले रानी … ले, जोर से ले!” और जमना दास ने अपनी पूरी ताक़त लगा दी। लंड अब पूरा अन्दर जा रहा था। घमासान चुदाई से कमरे में ‘फच्च फच्च’ की आवाजें गूँज रही थीं।
कुछ ही देर में चमेली झड़ने की कगार पर पहुँच गई। वह बेमन से चुदने के लिए तैयार हुई थी पर ऐसी धमाकेदार चुदाई उसे आज पहली बार नसीब हुई थी। उसने जमना दास को कस कर पकड़ लिया और हांफते हुए बोली, “बस सेठ … मैं झड रही हूँ। … अब बस!”
जमना दास भी झड़ने के लिए तैयार था। वह सिर्फ चमेली के लिए रुका हुआ था। जब उसने देखा कि चमेली अपनी मंजिल पर पहुँचने वाली है तो उसने धुआंधार चुदाई शुरू कर दी। दोनों एक साथ चुदाई के चरम पर पहुंचे … दोनों के शरीर अकड़ गए … लंड ने चूत में बरसात शुरू कर दी।
कुछ देर दोनों एक दूसरे की बाँहों में पड़े रहे। … चमेली चुद चुकी थी। उसकी चूत तृप्त हो गई थी। … जमना दास खुश था कि उसके मन की मुराद पूरी हो गई थी और एक नई चिड़िया उसके जाल में फंस गई थी।
दिन बीतते गए। यह खेल चलता रहा। वायदे के मुताबिक ठेकेदार जमना दास किशन की भूख-प्यास मिटाता रहा। चमेली चुदती रही और इतनी चुदी कि एक भावी मजदूर उसकी कोख में पलने लगा।
अपनी घरवाली का पेट दिनों-दिन बढ़ता देख कर किशन को चिंता सताने लगी। उसने सोचा कि मैंने जरा सी छूट क्या दे दी, इन्होने तो … वह ठेकेदार जमना दास के पास जाने ही वाला था कि विलायती दारू की एक पेटी उसके पास पहुंच गई। पूरी पेटी और वह भी विलायती दारू की! … उसके विचार बदलने लगे। उसने सोचा, “जमना दास तो देवता है … देवता प्रसाद तो देगा ही … चमेली ही मूरख निकली … उसे प्रसाद लेना भी न आया! आजकल तो इतने सारे साधन हैं फिर भी …”
रात को नशे में धुत्त किशन चमेली पर फट पड़ा। दिल की बात जुबान पर आ गई, ‘‘अपने पेट को देख, बेशरम! यह क्या कर आई?’’
“मैंने क्या किया? यह सब तो भगवान के हाथ में है!”
“भगवान के हाथ में? इसे रोकने के साधन मुफ्त में मिलते हैं! किसी सरकारी अस्पताल क्यों ना गई?”
“क्यों जाती अस्पताल? ज़रा सोच, अभी तो तेरे खाने-पीने का जुगाड़ मैं कर सकती हूं। मैं बूढ़ी हो जाऊंगी तो कौन करेगा यह?” चमेली अपने पेट पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘बुढ़ापे में तेरी देखभाल करने वाला ले आई हूं मैं?’’
यह सुन कर किशन का दुःख दूर हो गया. वह सोच रहा था, “क्या इन्साफ किया है भगवान ने! बुढापे में मेरी सेवा ठेकेदार जमना दास का बेटा करेगा!”
————-समाप्त————-