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Re: गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे full on adult

Posted: 26 Dec 2017 13:16
by rajkumari
मैं अपनी ब्रा पैंटी धोने लगी तभी दरवाज़े के ऊपर कुछ आवाज़ हुई. मैंने पलटकर देखा समीर ने दरवाज़े के ऊपर मेरी दूसरी साड़ी और ब्लाउज लटका दिए थे पर पेटीकोट दरवाज़े से फिसलकर मेरी तरफ बाथरूम में फर्श पर गिर गया था.

समीर – सॉरी मैडम, पेटीकोट फिसल गया.

मैंने देखा पेटीकोट फर्श में गिरने से गीला हो गया है.

समीर – मैडम , पेटीकोट सूखी जगह पर गिरा या गीला हो गया ?

मैं क्या बोलती एक ही एक्सट्रा पेटीकोट लाई थी वो भी गीला हो गया. मैंने झूठ बोल दिया वरना वो ना जाने फिर क्या क्या बोलता.

“ठीक है. सूखे में ही गिरा है.”

समीर – चलिए शुक्र है. मुझे ध्यान से रखना चाहिए था.

तब तक मैंने अपने अंडरगार्मेंट्स धो लिए थे.

फिर मैं अपने बदन में लिपटा टॉवेल उतारकर अपने हाथ पैर पोछने लगी. मेरे हिलने से मेरी बड़ी चूचियाँ भी हिल डुल रही थी , बड़ा मिरर होने से उसमें सब दिख रहा था. मैंने देखा मेरे निपल तने हुए हैं और दो अंगूर के दानों जैसे खड़े हुए हैं.

फिर मैंने दरवाज़े के ऊपर से ब्लाउज उठाया और पहनने लगी. मैं बिना ब्रा के ब्लाउज नही पहनती पर आज ऐसे ही पहनना पड़ रहा था. बदक़िस्मती से मेरे सफेद ब्लाउज का कपड़ा भी पतला था. मैंने मिरर में देखा सफेद ब्लाउज में मेरे भूरे रंग के ऐरोला और निपल साफ दिख रहे हैं. मैं अपने को कोसने लगी की ये वाला ब्लाउज मैं क्यूँ लेकर आई पर तब मुझे क्या पता था की बिना ब्रा के ब्लाउज पहनना पड़ेगा.

समीर – मैडम , जल्दी कीजिए. मुझे गुरुजी के पास भी जाना है.

मैंने जल्दी से गीला पेटीकोट पहन लिया . और कोई चारा भी नही था. बिना पेटीकोट के साड़ी में बाहर कैसे निकलती. फिर मैंने साड़ी पहन के ब्लाउज को साड़ी के पल्लू से ढक लिया.

जब मैं बाथरूम से बाहर आई तो समीर मुझे देखकर मुस्कुराया. तभी मैं लड़खड़ा गयी , जिससे पतले ब्लाउज में मेरी चूचियाँ उछल गयी. मैंने देखा समीर की नज़रों ने मेरी चूचियों के हिलने को मिस नही किया. समीर के सामने बिना ब्रा के मुझे बहुत अनकंफर्टेबल फील हुआ और मैंने जल्दी से अपना पल्लू ठीक किया और जितना हो सकता था उतना ब्लाउज ढक दिया.

फिर मैंने अपने धोए हुए अंडरगार्मेंट्स समीर को दे दिए. मुझे नितंबों और जांघों पर गीलापन महसूस हो रहा था क्यूंकी पेटीकोट उन जगहों पर गीला हो गया था. अजीब सा लग रहा था पर क्या करती वैसी ही पहने रही.
समीर – ठीक है मैडम , अब आप आराम कीजिए.

समीर के जाने के बाद मैंने जल्दी से कमरे का दरवाज़ा बंद किया और गीला पेटीकोट उतार दिया. इस बार मैंने साड़ी नही उतारी. साड़ी को कमर तक ऊपर करके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया. पेटीकोट गीला होने से मेरे भारी नितंबों में चिपक रहा था , तो मुझे खींचकर उतारना पड़ा. फिर पेटीकोट को सूखने के लिए फैला दिया. अब मैं बिना ब्रा, पैंटी और पेटीकोट के सिर्फ़ ब्लाउज और साड़ी में थी.

करीब एक घंटे तक मैंने आराम किया. तब तक पेटीकोट भी सूख गया था. मैं सोच रही थी की अब तो पेटीकोट लगभग सूख ही गया है , पहन लेती हूँ. तभी किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया.


“प्लीज़ एक मिनट रूको, अभी खोलती हूँ.”

मैंने साड़ी ऊपर करके जल्दी से पेटीकोट पहना और फिर साड़ी ठीक ठाक करके दरवाज़ा खोल दिया. दरवाज़े पे परिमल खड़ा था.

परिमल – मैडम , दीक्षा के लिए गुरुजी आपका इंतज़ार कर रहे हैं. समीर ने मुझे भेजा है आपको लाने के लिए.

परिमल नाटे कद का था , शायद 5” से कम ही होगा , उसकी आँखों का लेवल मेरी छाती तक था. इसलिए मैं इस बात का ध्यान रख रही थी की मेरी चूचियाँ ज़्यादा हिले डुले नही.

“ठीक है. मैं तैयार हूँ. लेकिन समीर ने कहा था की दीक्षा से पहले नहाना पड़ेगा.”

परिमल – हाँ मैडम , दीक्षा से पहले स्नान करना पड़ता है . पर वो स्नान खास किस्म की जड़ी बूटियों को पानी में मिलाकर करना पड़ता है. आप चलिए , वहीं गुरुजी के सामने स्नान होगा.

उसकी बात सुनकर मैं शॉक्ड हो गयी.

“क्या ??? गुरुजी के सामने स्नान ???? ये मैं कैसे कर सकती हूँ ?? क्या मैं छोटी बच्ची हूँ ?? “

परिमल – अरे नही मैडम. आप ग़लत समझ रही हैं. मेरे कहने का मतलब है गुरुजी खास किस्म का जड़ी बूटी वाला मिश्रण बनाते हैं, आपके नहाने से पहले गुरुजी कुछ मंत्र पढ़ेंगे. दीक्षा वाले कमरे में एक बाथरूम है , आप वहाँ नहाओगी.

परिमल के समझाने से मैं शांत हुई.

परिमल – मैडम किसने कहा है की आप छोटी बच्ची हो ? कोई अँधा ही ऐसा कह सकता है.
फिर थोड़ा रुककर बोला,” लेकिन मैडम, अगर आप स्कूल गर्ल वाली ड्रेस पहन लो तो आप छोटी बच्ची की जैसी लगोगी, ये बात तो आप भी मानोगी.”

परिमल मुस्कुराया. मैं समझ गयी परिमल मुझसे मस्ती कर रहा है . लेकिन मुझे आश्चर्य हुआ की मुझे भी उसकी बात में मज़ा आ रहा था. स्कूल यूनिफॉर्म की स्कर्ट तो मेरे बड़े नितंबों को ढक भी नही पाएगी , लेकिन फिर भी परिमल मुझसे ऐसा मज़ाक कर रहा था. ना जाने क्यूँ पर उसकी ऐसी बातों से मेरे निपल और चूचियाँ कड़क हो गयीं , शायद खुद को एक छोटी स्कूल ड्रेस में कल्पना करके , जो मुझे ठीक से फिट भी नही आती. परिमल के छोटे कद की वजह से उसकी आँखें मेरी कड़क हो चुकी चूचियों पर ही थी.

मैंने भी मज़ाक में जवाब दिया,”समीर ने कहा है की आश्रम से मुझे साड़ी मिलेगी. अब तुम मेरे लिए कहीं स्कूल ड्रेस ना ले आओ.”

परिमल हंसते हुए बोला,”मैडम , आश्रम भी तो स्कूल जैसा ही है, तो स्कूल ड्रेस पहनने में हर्ज़ क्या है. लेकिन अगर आप पहन ना पाओ तो फिर मुझे बुरा भला मत कहना.”

पता नही मैं परिमल के साथ ये बेकार की बातचीत क्यों कर रही थी पर मुझे मज़ा आ रहा था. शायद उसके छोटे कद की वजह से मैं उससे मस्ती कर रही थी. उससे बातों में मैं ये भूल ही गयी थी की मैं आश्रम में आई क्यूँ हूँ. मैं यहाँ कोई पिकनिक मनाने नही आई थी , मुझे तो माँ बनने के लिए उपचार करवाना था. लेकिन पहले समीर के साथ और अब परिमल के साथ हुई बातचीत से मेरा ध्यान भटक गया था.

मुझे ये अहसास हुआ की ना सिर्फ़ मेरे निपल कड़क हो गये हैं बल्कि मेरा दिल भी तेज तेज धड़क रहा था. शायद एक अनजाने मर्द के सामने बिना ब्रा के सिर्फ़ ब्लाउज पहने होने से एक अजीब रोमांच सा हो रहा था.

फिर मैंने पूछा,” तुम्हारी बात सही है की आश्रम भी एक स्कूल जैसा ही है , पर मैं स्कूल ड्रेस क्यूँ नही पहन सकती ?”

इसका जो जवाब परिमल ने दिया वैसा कुछ किसी भी मर्द ने आजतक मेरे सामने नही कहा था.

परिमल – क्यूंकी स्कूल यूनिफॉर्म तो स्कूल गर्ल के ही साइज़ की होगी ना मैडम.
मेरे पूरे बदन पर नज़र डालते हुए परिमल ने जवाब दिया.
फिर बोला,”अगर मान लो मैं आपके लिए स्कूल ड्रेस ले आया , सफेद टॉप और स्कर्ट. मैं शर्त लगा सकता हूँ की आप इसे पहन नही पाओगी. अगर आपने स्कर्ट में पैर डाल भी लिए तो वो ऊपर को जाएगी नही क्यूंकी मैडम आपके नितंब बड़े बड़े हैं. और टॉप का तो आप एक भी बटन नही लगा पाओगी. अगर आप ब्रा नही पहनी हो तब भी नही , जैसे अभी हो. तभी तो मैंने कहा था मैडम , की अगर आप पहन ना पाओ तो मुझे बुरा भला मत कहना.”

उसकी बात से मुझे झटका लगा. इसको कैसे पता की मैंने ब्रा नही पहनी है. हे भगवान ! लगता है पूरे आश्रम को ये बात मालूम है.

“उम्म्म………..मैं नही मानती. स्कर्ट तो मैं पहन ही लूँगी , हो सकता है टॉप ना पहन पाऊँ. भगवान का शुक्र है की आश्रम के ड्रेस कोड में स्कूल यूनिफॉर्म नही है.” मैं खी खी कर हंसने लगी , परिमल भी मेरे साथ हंसने लगा.

परिमल की हिम्मत भी अब बढ़ती जा रही थी क्यूंकी वो देख रहा था की मैं उसकी बातों का बुरा नही मान रही हूँ और उससे हँसी मज़ाक कर रही हूँ. ऐसी बेशर्मी मैंने पहले कभी नही दिखाई थी पर पता नही क्यूँ बौने परिमल के साथ मुझे मज़ा आ रहा था. इन बातों का मेरे बदन पर असर पड़ने लगा था. मेरी साँसे थोड़ी भारी हो चली थी. मेरी चूचियाँ कड़क हो गयी थीं और मेरी चूत भी गीली हो गयी थी. अब सीधा खड़ा रहना भी मेरे लिए मुश्किल हो रहा था , इसलिए साड़ी ठीक करने के बहाने मैंने अपने नितंब दरवाज़े पर टिका दिए.

परिमल – मैडम , अभी हमको देर हो रही है. दीक्षा के बाद मैं आपको स्कूल ड्रेस लाकर दूँगा फिर आप पहन के देख लेना की मैं सही हूँ या आप.

परिमल मुझे दाना डाल रहा है की मैं उसके सामने स्कूल ड्रेस पहन के दिखाऊँ , ये बात मैं समझ रही थी. पर इस बौने आदमी को टीज़ करने में मुझे भी मज़ा आ रहा था.

“सच में क्या ? आश्रम में तुम्हारे पास स्कूल ड्रेस भी है ? ऐसा कैसे ?”

परिमल – मैडम ,कुछ दिन पहले गुरुजी का एक भक्त अपनी बेटी के साथ आया था. लेकिन जाते समय वो एक पैकेट यहीं भूल गया जिसमे उसकी बेटी की स्कूल ड्रेस और कुछ कपड़े थे. वो पैकेट ऑफिस में ही रखा है. लेकिन अभी देर हो रही है मैडम, गुरुजी दीक्षा के लिए इंतज़ार कर रहे होंगे.

हमारी छेड़खानी कुछ ज़्यादा ही खिंच गयी थी . आश्रम में किसी लड़की की स्कूल यूनिफॉर्म होगी ये तो मैंने सोचा भी नही था. लेकिन बौने परिमल की मस्ती का मैंने भी पूरा मज़ा लिया था.

Re: गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे full on adult

Posted: 26 Dec 2017 13:17
by rajkumari
फिर मैं परिमल के साथ दीक्षा लेने चले गयी. दीक्षा वाले कमरे में बहुत सारे देवी देवताओं के चित्र लगे हुए थे. वो कमरा मेरे कमरे से थोड़ा बड़ा था. एक सिंहासन जैसा कुछ था जिसमें एक मूर्ति के ऊपर फूलमाला डाली हुई थी और सुगंधित अगरबत्तियाँ जल रही थीं.

उस कमरे में गुरुजी और समीर थे. परिमल मुझे अंदर पहुँचाके कमरे का दरवाज़ा बंद करके चला गया. उस कमरे में आने के बाद मैं बहुत नर्वस हो रही थी.

गुरुजी - रश्मि , अब तुम्हारे दीक्षा लेने का समय आ गया है. यहाँ हम सब लिंगा महाराज के भक्त हैं और थोड़ी देर में दीक्षा लेने के बाद तुम भी उनकी भक्त बन जाओगी. लेकिन तुम्हारी दीक्षा हमसे भिन्न होगी क्यूंकी तुम्हारा लक्ष्य माँ बनना है. जय लिंगा महाराज. रश्मि, लिंगा महाराज बहुत शक्तिशाली देवता हैं. अगर तुम अपने को पूरी तरह से उनके चरणों में समर्पित कर दोगी तो वो तुम्हारे लिए चमत्कार कर सकते हैं. लेकिन अगर तुमने पूरी तरह से अपने को समर्पित नही किया तो अनुकूल परिणाम नही मिलेंगे. जय लिंगा महाराज.

फिर समीर ने भी जय लिंगा महाराज बोला और मुझसे भी यही बोलने को कहा.

मैंने भी जय लिंगा महाराज बोल दिया लेकिन मुझे इसका मतलब पता नही था.

गुरुजी – रश्मि, लिंगा महाराज की दीक्षा लेने से तुम्हारे शरीर और आत्मा की शुद्धि होगी. इसके लिए पहले तुम्हें अपने शरीर को नहाकर शुद्ध करना होगा. तुम यहाँ बने हुए बाथरूम में जाओ. वहाँ बाल्टी में जो पानी है उसमें खास किस्म की जड़ी बूटी मिली हुई हैं . तुम उस पानी से नहाओ और अपने पूरे बदन में लिंगा को घुमाओ.

ऐसा कहकर गुरुजी ने मुझे वो लिंगा दे दिया , जो एक काला पत्थर था. लगभग 6 – 7 इंच लंबा और 1 इंच चौड़ा था. और एक सिरे पर ज़्यादा चौड़ा था. फास्ट फ़ूड सेंटर में जैसा एग रोल मिलता है देखने में वैसा ही था , मतलब एक छोटे बेस पर एग रोल रखा हो वैसा.

लेकिन मेरे मन में ये बात नही आई की ये जो आकृति है , गुरुजी इसके माध्यम से पुरुष के लिंग को दर्शा रहे हैं.

गुरुजी – रश्मि, जड़ी बूटी वाले पानी से अपने बदन को गीला करना . उसके बाद वहीं पर मग में साबुन का घोल बना हुआ है , उस साबुन को लगाना. फिर अपने पूरे बदन में लिंगा को घुमाना.

“ठीक है गुरुजी.”

गुरुजी – रश्मि तुम गर्भवती होने के लिए दीक्षा ले रही हो , इसलिए लिंगा को अपने ‘ यौन अंगों ‘ पर छुआकर , तीन बार जय लिंगा महाराज का जाप करना.

मैने हाँ में सर हिला दिया. लेकिन गुरुजी के मुँह से ‘ यौन अंगों ‘ का जिक्र सुनकर मुझे बहुत शरम आई और मेरा चेहरा सुर्ख लाल हो गया.

गुरुजी – रश्मि, औरतें सोचती हैं की उनके ‘ यौन अंगों ‘ का मतलब है योनि. लेकिन ऐसा नही है. पहले तुम मुझे बताओ की तुम्हारे अनुसार ‘ यौन अंग ‘ क्या हैं ? शरमाओ मत , क्यूंकी शरमाने से यहाँ काम नही चलेगा.

गुरुजी का ऐसा प्रश्न सुनकर मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा. मैं हकलाने लगी और जवाब देने के लिए मुझे शब्द ही नही मिल रहे थे.

“जी वो……...‘ यौन अंग ‘ मतलब ………जिनसे संभोग किया जाता है.”

दो मर्दों के सामने मेरा शरम से बुरा हाल था.

गुरुजी – रश्मि , तुम्हें यहाँ खुलना पड़ेगा. अपना दिमाग़ खुला रखो. खुलकर बोलो. शरमाओ मत. ठीक है, अपने उन ‘ यौन अंगों ‘ का नाम बताओ जहाँ पर लिंगा को छुआकर तुम्हें मंत्र का जाप करना है.

अब मुझे जवाब देना मुश्किल हो गया. गुरुजी मुझसे अपने अंगों का नाम लेने को कह रहे थे.

“जी वो ……वो ….मेरा मतलब……….. चूची और चूत.” हकलाते हुए काँपती आवाज़ में मैंने जवाब दिया.

गुरुजी – ठीक है रश्मि. मैं समझता हूँ की एक औरत होने के नाते तुम शरमा रही हो. तुमने सिर्फ़ दो बड़े अंगों के नाम लिए. तुमने कहा की तुम अपनी चूची पर लिंगा को घुमाकर मंत्र का जाप करोगी. लेकिन तुम अपने निपल्स को भूल गयी ? जब तुम अपने पति के साथ संभोग करती हो तो उसमे तुम्हारे निपल्स की भी कुछ भूमिका होती है की नही ?

मैने शरमाते हुए हाँ में सर हिला दिया. अब घबराहट से मेरा गला सूखने लगा था. कुछ ही मिनट पहले मैं परिमल को टीज़ कर रही थी पर शायद अब मेरा वास्ता बहुत अनुभवी लोगों से पड़ रहा था, जिनके सामने मेरे गले से आवाज़ ही नही निकल रही थी.

गुरुजी – रश्मि तुम अपने नितंबों का नाम लेना भी भूल गयी. क्या तुम्हें लगता है की नितंब भी ‘यौन अंग’ हैं ? अगर कोई तुम्हें वहाँ पर छुए तो तुम्हें उत्तेजना आती है की नही ?

हे ईश्वर ! मेरी कैसी परीक्षा ले रहे हो. मैं क्या जवाब दूं.
मैं सर झुकाए गुरुजी के सामने बैठी थी. ज़ोर ज़ोर से मेरा दिल धड़क रहा था. मेरे पास बोलने को कुछ नही था. मैंने फिर से हाँ में सर हिला दिया.

गुरुजी की आवाज़ बहुत शांत थी और एक बार भी उन्होने मेरी बिना ब्रा की चूचियों की तरफ नही देखा था. उनकी आँखें मेरे चेहरे पर टिकी हुई थी और उनकी आँखों में देखने का साहस मुझमे नही था.

गुरुजी – रश्मि देखा तुमने. हम कई चीज़ों को भूल जाते हैं. तुम्हारे शरीर का हर वो अंग , जिसमे संभोग के समय तुम्हें उत्तेजना आती है, हर उस अंग पर लिंगा को छुआकर तुम्हें तीन बार मंत्र का जाप करना है. तुम्हारी चूचियाँ, निपल्स, नितंब, चूत, जांघें और तुम्हारे होंठ. तुम्हें पूरे मन से मेरी आज्ञा का पालन करना होगा तभी तुम्हें लक्ष्य की प्राप्ति होगी.

समीर – मैडम, ये कपड़े आप नहाने के बाद पहनोगी.

फिर समीर ने मुझे भगवा रंग की साड़ी , ब्लाउज और पेटीकोट दिए. मेरे पास पहनने को कोई अंडरगार्मेंट नही था.

मैं कपड़े लेकर बाथरूम को जाने लगी. तभी मुझे ख्याल आया गुरुजी फर्श में बैठे हुए हैं तो उनकी नज़र पीछे से मेरे हिलते हुए नितंबों पर पड़ रही होगी. मेरे पति अनिल ने एक बार मुझसे कहा था की जब तुम पैंटी नही पहनती हो तब तुम्हारे नितंब कुछ ज़्यादा ही हिलते हैं.

लेकिन फिर मैंने सोचा की मैं गुरुजी के बारे में ऐसा कैसे सोच सकती हूँ की वो पीछे से मेरे हिलते हुए नितंबों को देख रहे होंगे. गुरुजी तो इन चीज़ों से ऊपर उठ चुके होंगे.

फिर मैं बाथरूम के अंदर चली गयी और दरवाज़ा बंद कर दिया. वहाँ इतनी तेज़ रोशनी थी की मेरी आँखे चौधियाने लगी. मुझे बड़ी हैरानी हुई की बाथरूम में इतनी तेज लाइट लगाने की क्या ज़रूरत है ?
बाथरूम के दरवाज़े में कपड़े टाँगने के लिए हुक लगे हुए थे और ये मेरे कमरे की तरह ऊपर से खुला हुआ नही था.

मैंने साड़ी उतार दी लेकिन उस तेज रोशनी में बड़ा अजीब लग रहा था. ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं सूरज की तेज रोशनी में नहा रही हूँ. मैंने अपने ब्लाउज के बटन खोले और मेरी चूचियाँ ब्रा ना होने से झट से बाहर आ गयीं. फिर मैंने पेटीकोट भी उतारकर हुक पे टाँग दिया. अब मैं पूरी नंगी हो गयी थी.

मैंने बाल्टी में हाथ डालकर अपनी हथेली में जड़ी बूटी वाला पानी लिया. उसमे कुछ मदहोश कर देने वाली खुशबू आ रही थी . पता नही क्या मिला रखा था.

फिर मैंने पानी से नहाना शुरू किया और मग में रखे हुए साबुन के घोल को अपने बदन में मला.
उसके बाद मैंने लिंगा को पकड़ा , जो पत्थर का था लेकिन फिर भी भारी नही था. लिंगा को मैंने अपनी बायीं चूची पर लगाया और जय लिंगा महाराज का जाप किया. और फिर ऐसा ही मैंने अपनी दायीं चूची पर किया. उस पत्थर के मेरी नग्न चूचियों पर छूने से मुझे अजीब सी सनसनी हुई और कुछ पल के लिए मेरे बदन में कंपकंपी हुई.

इस तरह से अपने पूरे नंगे बदन में मैंने लिंगा को घुमाया. और अपनी चूत , नितंबों , जांघों और होठों पर लिंगा को छुआकर मंत्र का जाप किया.
ऐसा करने से मेरा बदन गरम हो गया और मैंने उत्तेजना महसूस की. फिर मैंने टॉवेल से गीले बदन को पोछा और आश्रम के कपड़े पहनने लगी.

[ ये तो मैंने सपने में भी नही सोचा था की अपने नंगे बदन पर जो मैं ये लिंगा को घुमा रही हूँ, ये सब टेप हो रहा है और इसीलिए वहाँ इतनी तेज लाइट का इंतज़ाम किया गया था. ]

आश्रम के कपड़ों में पेटीकोट तो जैसे तैसे फिट हो गया पर ब्लाउज बहुत टाइट था. मुझे पहले ही इस बात की शंका थी की कहीं इनके दिए हुए कपड़े मिसफिट ना हो. मेरी चूचियों के ऊपर ब्लाउज आ ही नही रहा था और ब्लाउज के बटन लग ही नही रहे थे . अभी ब्रा नही थी अगर ब्रा पहनी होती तो बटन लगने असंभव थे. जैसे तैसे तीन हुक लगाए लेकिन ऊपर के दो हुक ना लग पाने से चूचियाँ दिख रही थीं. मैंने साड़ी के पल्लू से ब्लाउज को पूरा ढक लिया और बाथरूम से बाहर आ गयी.

गुरुजी – रश्मि , जैसे मैंने बताया , वैसे ही नहाया तुमने ?

“जी गुरुजी “

गुरुजी – ठीक है. अब यहाँ पर बैठो और लिंगा महाराज की पूजा करो.

गुरुजी ने पूजा शुरू की , वो मंत्र पढ़ने लगे और बीच बीच में मेरा नाम और मेरे गोत्र का नाम भी ले रहे थे. मैं हाथ जोड़ के बैठी हुई थी. लिंगा महाराज से मैंने अपने उपचार के सफल होने की प्रार्थना की.

समीर भी पूजा में गुरुजी की मदद कर रहा था. करीब आधे घंटे तक पूजा हुई. अंत में गुरुजी ने मेरे माथे पर लाल तिलक लगाया और मैंने झुककर गुरुजी के चरण स्पर्श किए.

जब मैं गुरुजी के पाँव छूने झुकी तो हुक ना लगे होने से मेरी चूचियाँ ब्लाउज से बाहर आने लगी. मैं जल्दी से सीधी हो गयी वरना मेरे लिए बहुत ही असहज स्थिति हो जाती.

गुरुजी – रश्मि , अब तुम्हारी दीक्षा पूरी हो चुकी है. अब तुम मेरी शिष्या हो और लिंगा महाराज की भक्त हो. जय लिंगा महाराज.

“ जय लिंगा महाराज” , मैंने भी कहा.

गुरुजी – अब मैं कल सुबह 6:30 पर तुमसे मिलूँगा. और आश्रम में तुम्हें क्या करना है ये बताऊँगा. अब तुम जा सकती हो रश्मि.

मैं उस कमरे से बाहर आ गयी और अपने कमरे में चली आई , समीर भी मेरे साथ था.

समीर – मैडम, गुरुजी के पास ले जाने के लिए मैं कल सुबह 6:15 पर आऊँगा. और आपके अंडरगार्मेंट्स भी ले आऊँगा. कुछ देर में परिमल आपका डिनर लाएगा.

फिर समीर चला गया.

मैं बहुत तरोताजा महसूस कर रही थी , शायद उस जड़ी बूटी वाले पानी से स्नान करने की वजह से ऐसा लग रहा था. गुरुजी की पूजा से भी मैं संतुष्ट थी.

फिर थोड़ी देर मैंने बेड में आराम किया.
कुछ समय बाद किसी ने दरवाज़ा खटखटा दिया.

Re: गुरुजी के आश्रम में रश्मि के जलवे full on adult

Posted: 26 Dec 2017 13:17
by rajkumari
मैने जल्दी जल्दी ब्लाउज के तीन हुक लगाए . ऊपर के दो हुक लग ही नही रहे थे. इससे मेरी चूचियों का आधा ऊपरी भाग दिख जा रहा था. मैंने अच्छी तरह से साड़ी से ब्लाउज को ढक लिया.

समीर ने कहा था की परिमल डिनर लेकर आएगा तो मैंने सोचा 10 बज गये हैं, वही आया होगा. मैंने दरवाज़ा खोला तो परिमल ही आया था पर वो डिनर नही लाया था.

परिमल – मैडम , दीक्षा कैसी रही ?

“ठीक रही. मुझे गुरुजी की पूजा अच्छी लगी.”

परिमल – जय लिंगा महाराज……...गुरुजी पर आस्था बनाए रखना , वो आपके जीवन की सारी बाधाओं को दूर कर देंगे.

परिमल मुस्कुरा रहा था.
नाटे कद के परिमल को देखते ही मेरे होठों पर मुस्कान आ जाती थी. मैंने सोचा थोड़ी देर इसके साथ मस्ती करती हूँ.
ना जाने क्यूँ पर परिमल के साथ मुझे संकोच नही लगता था शायद उसके ठिगने कद की वजह से. इसीलिए मैं भी उसके साथ मस्ती कर लेती थी , वरना अपने शर्मीले स्वभाव की वजह से पहले तो कभी किसी मर्द के सामने मैं ऐसे बात नही करती थी.

परिमल – मैडम, मैं आपके लिए डिनर ले आऊँ ?

“नही , अभी 10 ही बजे हैं. मैं तो 10:30 के बाद ही डिनर करती हूँ.”

कुछ रुककर मैं बोली,” परिमल, तुमने जो बात मुझसे कही थी , मैंने उसके बारे में सोचा. मुझे लगता है तुम सही बोल रहे थे. स्कूल यूनिफॉर्म की स्कर्ट मुझे फिट नही आएगी. इसलिए मैं अपने शब्द वापस लेती हूँ.”

परिमल ने ऐसा मुँह बनाया की मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोकी. उसके लिए ‘हाथ आया पर मुँह ना लगा’ वाली बात हो गयी थी. वो सोच रहा था की दीक्षा के बाद मुझे स्कूल यूनिफॉर्म लाके देगा और उस छोटी ड्रेस में मुझे देखने की कल्पना से उसकी आँखें चमक रही थी. वो मुझे अपने जाल में फँसा हुआ समझकर निश्चिंत था. पर अब मैंने हार मान ली थी तो उसका चेहरा ही उतर गया.

परिमल – लेकिन मैडम वो ….आपने तो कहा था की एक बार ट्राइ कर के देखोगी.

“हाँ , पहले मैंने ऐसा सोचा था, पर अब मैं तुम्हारी बात मान रही हूँ की मुझे स्कूल यूनिफॉर्म फिट नही आएगी.”

मैंने अपने अंगों का नाम नही लिया की कहाँ पर स्कर्ट फिट नही आएगी जैसे जांघें या नितंब.
परिमल ऐसे दिख रहा था जैसे अभी अभी इसकी कुछ कीमती चीज़ खो गयी हो , मुझे छोटी स्कूल ड्रेस में देखने का उसका सपना टूट गया था. उसको निराश देखकर मैंने बातचीत बदल दी. मैं उसका उत्साह बनाए रखना चाहती थी ताकि उससे मस्ती चलती रहे.

“ मेरी एक दूसरी समस्या है . क्या तुम कोई उपाय बता सकते हो ?”

परिमल का चेहरा अभी भी मुरझाया हुआ था पर मेरी बात सुनकर उसने नज़रें उठाकर मुझे देखा.

“समीर ने जो ब्लाउज मुझे दिया है वो मुझे टाइट हो रहा है. तुम कोई दूसरा ब्लाउज ला सकते हो ?”

परिमल की आँखों में फिर से चमक आ गयी. शायद वो सोच रहा होगा अगर छोटी स्कर्ट में मेरे नितंब देखने को नही मिले तो टाइट ब्लाउज में चूचियाँ ही सही.

परिमल – क्यों ? समीर ने आपको 34” साइज़ का ब्लाउज नही दिया क्या ?

मेरी भौंहे तन गयी. इसको मेरा साइज़ कैसे पता ? वो तो मैंने समीर को बताया था. हे भगवान ! इस आश्रम में सबको पता है की मेरी चूचियों का साइज़ 34” है.

“पता नही. लेकिन ब्लाउज फिट नही आ रहा. मुझे लगता है ग़लत साइज़ दे दिया.”

परिमल – नही मैडम. साइज़ तो वही होगा क्यूंकी आश्रम में अलग साइज़ को अलग बंड्ल में रखते हैं.

“अगर ब्लाउज फिट नही आ रहा है तो सही साइज़ कैसे होगा ? यहाँ पर कितना टाइट हो रहा है.”

मैंने अपनी चूचियों की तरफ इशारा किया. मैं परिमल को थोड़ा टीज़ करना चाहती थी.

परिमल – मैडम, ये रेडीमेड ब्लाउज है, शायद इसीलिए आपको टाइट लग रहा होगा.

“परिमल, ये इतना टाइट है की मैं ऊपर के दो हुक नही लगा पा रही हूँ.”

पहले कभी भी किसी मर्द के सामने मैंने ऐसी बातें नही की थी पर पता नही उस बौने के सामने मैं इतनी बेशरमी से कैसे बातें कर दे रही थी.

अब परिमल ने सीधे मेरी चूचियों की तरफ देखा. साड़ी के पल्लू से मेरा ब्लाउज ढका हुआ था. परिमल शायद अपने मन में कल्पना कर रहा था की अगर पल्लू हट जाए तो आधे खुले ब्लाउज में मैं कैसी दिखूँगी.

परिमल –मैडम, तब तो आपको परेशानी हो रही होगी. बिना हुक लगाए आप कैसे रहोगी ? मैं कोई दूसरा ब्लाउज ले आऊँ क्या अभी ?

ओहो …..देखो तो , ये बिचारा मुझ हाउसवाइफ के लिए कितना चिंतित है…………..

“ अभी रहने दो. वैसे भी रात हो गयी है. अब तो मैं अपने कपड़े उतारकर नाइट्गाउन पहनूँगी.”

मैं देखना चाहती थी की मेरी इस बात का उस पर क्या रिएक्शन होता है.

मैंने देखा उसके पैंट में थोड़ा उभार आ गया है. शायद वो मेरे कपड़े उतारने की कल्पना कर रहा होगा. उसके रिएक्शन से मेरे दिल की धड़कने भी तेज हो गयी.

परिमल – ठीक है मैडम. आप कपड़े चेंज करो , मैं डिनर ले आता हूँ.

ये ठिगना आदमी बहुत चालू था. उसे मालूम था की मेरे पास अंडरगार्मेंट्स नही है. जब मैं साड़ी ब्लाउज उतारकर नाइट्गाउन पहनूँगी तो सेक्सी लगूंगी.
मैंने हाँ बोल दिया और वो डिनर लेने चला गया. मैंने सोचा नाइट्गाउन में अगर अश्लील लग रही हूँगी तो नही पहनूँगी.

परिमल के जाने के बाद मैंने दरवाज़ा बंद किया और कपबोर्ड से नाइट्गाउन निकाला. नाइट्गाउन भगवा रंग का था. भगवान का शुक्र है ये पतले कपड़े का नही था और इसमे बाहें भी थी लेकिन लंबाई कुछ कम थी. रूखे कपड़े से बना हुआ छोटी नाइटी जैसा गाउन था. दिखने में तो मुझे ठीक ही लगा.

मैं कमरे में अपने कपड़े उतारने लगी . उस टाइट ब्लाउज को उतारकर मुझे राहत मिली. उसमें मेरी चूचियाँ इतनी कस रही थी की दर्द करने लगी थी. नाइटी पहनकर मैंने अपने को उस बड़े से मिरर में देखा.

अंडरगार्मेंट्स तो मेरे पास थे नही. नाइटी के रूखे कपड़े के मेरी चूचियों पर रगड़ने से मेरे निपल तन गये और चूचियाँ कड़क हो गयी.

एक दिन में इतनी बार मैं पहले कभी गरम नही हुई थी . मुझे क्या पता था आने वाले दिनों के सामने तो ये कुछ भी नही है.

नाइटी काफ़ी फैली सी थी और कपड़ा भी मोटा था , इसलिए बिना ब्रा पैंटी के भी अश्लील नही लग रही थी. लेकिन लंबाई कम होने से घुटने तक थी, पूरे पैर नही ढक रही थी.

मैंने मिरर में हर तरफ से देखा , मुझे ठीक ही लगी. सिर्फ़ मेरे तने हुए निपल्स की शेप दिख रही थी और बिना ब्रा के उसको ढकने का कोई उपाय नही था.

थोड़ी देर में परिमल डिनर की ट्रे लेकर आ गया. डिनर में सब्जी, दाल और रोटी थी.

परिमल नाइटी में मुझे घूर रहा था . मैंने कोशिश करी की ज़्यादा हिलू डुलू नही वरना मेरी बड़ी चूचियाँ बिना ब्रा के उछलेंगी.

परिमल – आप डिनर कीजिए. मैं यहीं पर वेट करता हूँ ताकि अगर आपको किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो ला सकूँ.

“ठीक है परिमल.”

मुझे मालूम था की परिमल अपनी आँखें सेकने के लिए ही मेरे साथ रुक रहा है. पर मैने उसे मना नही किया.
मैं बेड में बैठ गयी और डिनर की छोटी सी टेबल को अपनी तरफ खींचा. लेकिन जैसे ही मैं बेड में बैठी मेरी नाइटी जो पहले से ही छोटी थी थोड़ी और ऊपर उठ गयी और घुटने दिखने लगे.

परिमल – मैडम, आप खाओ . मैं यहाँ पर बैठ जाता हूँ.

ऐसा कहते हुए वो मुझसे कुछ दूरी पर फर्श में बैठ गया.

पहले मैंने सोचा ये लोग आश्रम में रहते हैं तो ज़मीन में बैठने के आदी होंगे. कमरे में कोई चेयर भी नही थी , इसलिए परिमल फर्श पर बैठ गया होगा.

लेकिन कुछ ही देर में मुझे उस नाटे आदमी की बदमाशी का पता चल गया. असल में नाटे कद का होने से फर्श में बैठकर उसे मेरी नाइटी का ‘अपस्कर्ट व्यू’ दिख रहा था. इतना चालू निकला.

मैंने तो पैंटी भी नही पहनी थी. मैं एकदम से अलर्ट हो गयी और अपनी जांघों को चिपका लिया. एक हाथ से मैंने नाइटी को नीचे खींचने की कोशिश की लेकिन मेरे बड़े नितंबों की वजह से नाइटी नीचे को खिंच नही रही थी.

मैंने परिमल को देखा , उसकी नज़रें मेरी टांगों पर ही थी . लेकिन मेरे जांघों को चिपका लेने से उसके चेहरे पर निराशा के भाव थे. जो वो देखना चाह रहा था वो उसे देखने को नही मिल रहा था. उसके चेहरे के भाव देखकर मुझे हंसी आ गयी.

परिमल के सामने बैठे होने की वजह से मैंने जल्दी जल्दी डिनर किया और हाथ धोने बाथरूम चली गयी.

परिमल अभी भी फर्श पर बैठा हुआ था तो पीछे से उस छोटी नाइटी में मेरे हिलते हुए नितंबों को वो देख रहा होगा. सूखने को रखा हुआ टॉवेल फर्श पर गिरा हुआ था तो जब मैं झुककर उसे उठाने लगी तो मेरी छोटी नाइटी पीछे से ऊपर उठ गयी , पता नही परिमल ने फर्श पर बैठे हुए कितना देख लिया होगा.

फिर परिमल ट्रे लेकर चला गया लेकिन उसकी आँखों की चमक बता रही थी की मेरे झुककर टॉवेल उठाने के पोज़ को वो अपने मन में रीवाइंड करके देख रहा है.

परिमल के जाने के बाद मैं सोने के लिए बेड में लेट गयी , लेकिन मुझे नींद नही आ रही थी. मेरे मन में ये बात आ रही थी की कहीं मैंने परिमल के साथ अपनी हद तो पार नही की ? जब मैं टॉवेल उठाने के लिए झुकी तो पता नही उसने क्या देखा.

मुझे बहुत बेचैनी होने लगी तो मैं बेड से उठ गयी और बाथरूम में मिरर के आगे उसी पोज़ में झुककर देखने लगी. मैंने झुककर बाथरूम के फर्श को हाथों से छुआ और पीछे मिरर में देखा.

हे भगवान ! मेरी नाइटी जांघों तक ऊपर उठ गयी थी और पीछे को उभरकर मेरे सुडौल नितंबों का शेप बहुत कामुक लग रहा था. उस पोज़ में मेरी मांसल जांघें तो खुली हुई दिख रही थी.अगर नाइटी थोड़ी और ऊपर उठ जाती तो बिना पैंटी के मेरे नितंबों के बीच की दरार भी दिख जाती. क्या पता उस ठिगने परिमल को दिख भी गयी हो.

मुझे अपने ऊपर इतनी शरम आई की क्या बताऊँ. मेरी नींद ही उड़ गयी. मैं इतनी केयरलेस कैसे हो सकती हूँ. झुकने से पहले मुझे ध्यान रखना चाहिए था की पीछे वो ठिगना आदमी बैठा है. मुझे अपने ऊपर बहुत गुस्सा आया और मैं खुद को कोसने लगी.

खिन्न मन से मैं बेड में लेट गयी और आगे से ज़्यादा ध्यान रखूँगी , सोचने लगी.

सोने से पहले मैंने जय लिंगा महाराज का जाप किया और अपना उपचार सफल होने की प्रार्थना की.