ऐसा भी होता है--2
गतान्क से आगे............
"ओह साहिल !!!!" वो बराबर लंबी साँसें लेते हुए आहें भर रही थी और मुझे लिपटी जा रही थी. मेरे होंठ अब भी कभी उसके गालों पर होते तो कभी उसके होंठ और गले पर.
और इसी बीच मेरे हाथ एक बार फिर कमीज़ के अंदर उसके पेट को सहलाता उसकी चूची पर आया पर इस बार ब्रा के उपेर से आने के बजाय सीधा ब्रा के अंदर घुसा और उसकी नंगी चूची मेरे एक हाथ में आ गयी.
"साहिल !!!!!!" वो मेरी बाहों में ऐसे मचल रही थी पानी के बिना मच्चली.
मैने बारी बारी ब्रा के अंदर हाथ घुसा कर उसकी दोनो चूचियो को महसूस किया, सहलाया. मेरे खुद के जिस्म में जैसे एक आग सी लगी हुई थी और मुझे खुद को समझ नही आ रहा था के मैं कैसे इस पार्क में उस आग को ठंडी करूँ.
"चलो कहीं और चलते हैं" उसकी चूचियाँ सहलाते हुए मैने कहा
"कहाँ?" वो आहें भरती हुई बोली
मैने चारों तरफ देखा. हमसे थोड़ी देर एक फुलवारी लगी हुई थी और हम उसके पिछे आराम से छिप कर बैठ सकते थे.
"उधर चलते हैं" मैने इशारे से कहा
"नही मुझे नही जाना" उसने फ़ौरन मना कर दिया
"चलो ना"
"नही"
उसने फिर मना किया और इस बार वो संभाल कर बैठ गयी. मेरा हाथ उसने अपनी कमीज़ के अंदर से निकाल दिया और अपना दुपट्टा सही करने लगी.
"उधर एक फॅमिली आकर बैठी है. वो देख लेंगे हमें. अब प्लीज़ कुच्छ मत करो"
उसने पार्क के एक तरफ इशारा किया जहाँ एक परिवार चादर बिच्छा कर बैठने की तैय्यारि कर रहा था. पर उनका ध्यान हमारी तरफ बिल्कुल नही था और बहुत मुश्किल था के उनकी नज़र हम पर पड़ती या वो हमें नोटीस करते.
"नही देखेंगे" मैने फिर उसे अपनी तरफ खींचा और हाथ सीधा उसकी कमीज़ के अंदर घुसा कर उसकी नंगी चूचियों को पकड़ लिया.
"ओह साहिल तुम क्या कर रहे हो" वो आह भर कर बोली और फिर चुप चाप मेरे किस का जवाब देने लगी.
हम कुच्छ देर तक खामोशी से काम लीला में लगे रहे.
ऐसा भी होता है compleet
Re: ऐसा भी होता है
"सपना" कुच्छ देर बाद मैने कहा
"हां" वो मुझसे लिपटी हुई बोली
"कुच्छ मांगू?"
"क्या?"
"एक बार अपने ये दिखा दो ना" मैने उसकी चूचियो पर हल्के से दबाव डाला
मेरी बात ने जैसे 1000 वॉट के झटके का काम किया. वो फ़ौरन छितक कर मुझसे अलग हो गयी.
"बिल्कुल नही" मेरा हाथ अपनी कमीज़ से निकालते हुए वो अपना दुपट्टा ठीक करने लगी
"प्लीज़"
"नही"
"एक बार"
"तुमने टच कर लिया यही बहुत बड़ी बात है"
"एक बार देखने दो ना"
"नही" वो अपने कपड़े ठीक करने लगी "और अब चलो यहाँ से. बहुत देर हो गयी है"
"थोड़ी देर तो रुक जाओ"
"रुकूंगी तो तुम फिर शुरू हो जाओगे"
"अच्छा नही करूँगा कुच्छ"
"पक्का?"
"एक आखरी किस दे दो फिर कुच्छ नही करूँगा" मैने कहा
"नही" उसने मना किया पर उसकी आँखों में भी वासना के डोरे सॉफ नज़र आ रहे थे. मैं जानता था के उस लम्हे को जितना मैं एंजाय कर रहा हूँ उतना वो भी कर रही है.
"अच्छा बैठ तो जाओ" वो खड़ी हुई तो मैने फिर उसका हाथ खींच कर नीचे बैठा लिया.
थोड़ी देर तक हम दोनो खामोशी से बैठे रहे.
"एक आखरी किस के बारे में क्या ख्याल है?"
मैने कहा तो वो तड़प कर ऐसे मेरी तरफ पलटी जैसे मेरे पुच्छने का इंतेज़ार ही कर रही थी. अपने होंठ उसने सीधा मेरे होंठो पर रख दिए और एक बार फिर चूमने लगी.
और मेरा हाथ जैसे अपने आप उसकी कमीज़ के अंदर घुस कर उसकी ब्रा से होता हुआ उसकी नंगी चूचियो पर आ टीका.
"एक बार दिखा दो ना प्लीज़" मैने फिर इलतेजा की
"बिल्कुल नही"
"प्लीज़"
"अपनी बेगम के देख लेना शादी के बाद"
उसकी बात सुन कर मेरी हसी छूट पड़ी.
"अब बस करो" कहकर वो अलग हुई और फिर संभाल कर बैठ गयी.
"बहुत फास्ट हो तुम" कुच्छ देर बाद वो बोली
"क्या?" मैने पुछा
"इतनी सी देर में कहाँ से कहाँ पहुँच गये. एक्सपर्ट हो. कितनी लड़कियों की ले चुके हो ऐसे?"
मैं सिर्फ़ हल्के से मुस्कुरा कर रह गया.
"हां" वो मुझसे लिपटी हुई बोली
"कुच्छ मांगू?"
"क्या?"
"एक बार अपने ये दिखा दो ना" मैने उसकी चूचियो पर हल्के से दबाव डाला
मेरी बात ने जैसे 1000 वॉट के झटके का काम किया. वो फ़ौरन छितक कर मुझसे अलग हो गयी.
"बिल्कुल नही" मेरा हाथ अपनी कमीज़ से निकालते हुए वो अपना दुपट्टा ठीक करने लगी
"प्लीज़"
"नही"
"एक बार"
"तुमने टच कर लिया यही बहुत बड़ी बात है"
"एक बार देखने दो ना"
"नही" वो अपने कपड़े ठीक करने लगी "और अब चलो यहाँ से. बहुत देर हो गयी है"
"थोड़ी देर तो रुक जाओ"
"रुकूंगी तो तुम फिर शुरू हो जाओगे"
"अच्छा नही करूँगा कुच्छ"
"पक्का?"
"एक आखरी किस दे दो फिर कुच्छ नही करूँगा" मैने कहा
"नही" उसने मना किया पर उसकी आँखों में भी वासना के डोरे सॉफ नज़र आ रहे थे. मैं जानता था के उस लम्हे को जितना मैं एंजाय कर रहा हूँ उतना वो भी कर रही है.
"अच्छा बैठ तो जाओ" वो खड़ी हुई तो मैने फिर उसका हाथ खींच कर नीचे बैठा लिया.
थोड़ी देर तक हम दोनो खामोशी से बैठे रहे.
"एक आखरी किस के बारे में क्या ख्याल है?"
मैने कहा तो वो तड़प कर ऐसे मेरी तरफ पलटी जैसे मेरे पुच्छने का इंतेज़ार ही कर रही थी. अपने होंठ उसने सीधा मेरे होंठो पर रख दिए और एक बार फिर चूमने लगी.
और मेरा हाथ जैसे अपने आप उसकी कमीज़ के अंदर घुस कर उसकी ब्रा से होता हुआ उसकी नंगी चूचियो पर आ टीका.
"एक बार दिखा दो ना प्लीज़" मैने फिर इलतेजा की
"बिल्कुल नही"
"प्लीज़"
"अपनी बेगम के देख लेना शादी के बाद"
उसकी बात सुन कर मेरी हसी छूट पड़ी.
"अब बस करो" कहकर वो अलग हुई और फिर संभाल कर बैठ गयी.
"बहुत फास्ट हो तुम" कुच्छ देर बाद वो बोली
"क्या?" मैने पुछा
"इतनी सी देर में कहाँ से कहाँ पहुँच गये. एक्सपर्ट हो. कितनी लड़कियों की ले चुके हो ऐसे?"
मैं सिर्फ़ हल्के से मुस्कुरा कर रह गया.
Re: ऐसा भी होता है
"सीरियस्ली साहिल. ज़रा सी देर में कितना कुच्छ कर डाला तुमने"
थोड़ी देर के लिए फिर खामोशी च्छा गयी. वो बैठी अपनी तेज़ हो चली साँसों को शांत करने की कोशिश करने लगी और मैं अपनी तेज़ हो चली धड़कन को नॉर्मल करने की कोशिश. पर मेरा दिल तो कर रहा था के एक बार फिर उसको पकड़ कर चूम लूम और उससे लिपट जाऊं.
और शायद यही हाल उसके दिल का भी था. इससे पहले के मैं कुच्छ करता, वो खुद ही घूम कर मेरी तरफ पलटी और मुझे सिमट गयी.
"क्या हुआ?"
"किस करो मुझे"
"अभी तो किया था"
"तब तुम्हें करना था. अब मुझे करना है"
मैं भला मना क्यूँ करता. मेरे लिए तो प्यासे को पानी मिलने जैसे बात हो गयी थी. एक बार फिर से वही सिलसिला शुरू हो गया. मैं उसे चूमने लगा और मेरा हाथ उसकी कमीज़ के अंदर घुस कर कभी उसकी नंगी चूचियो सहलाता तो कभी पेट तो कभी पीठ.
वो भी बराबर मेरा साथ दे रही थी पर शायद उसकी हद यहीं तक थी. इससे आगे वो कुच्छ करना चाहती नही थी. मैने भी जो मिले सो अच्छा सोचते हुए जितना मिल रहा था उसी का भरपूर फयडा उठाने की सोची.
क्रमशः...........
थोड़ी देर के लिए फिर खामोशी च्छा गयी. वो बैठी अपनी तेज़ हो चली साँसों को शांत करने की कोशिश करने लगी और मैं अपनी तेज़ हो चली धड़कन को नॉर्मल करने की कोशिश. पर मेरा दिल तो कर रहा था के एक बार फिर उसको पकड़ कर चूम लूम और उससे लिपट जाऊं.
और शायद यही हाल उसके दिल का भी था. इससे पहले के मैं कुच्छ करता, वो खुद ही घूम कर मेरी तरफ पलटी और मुझे सिमट गयी.
"क्या हुआ?"
"किस करो मुझे"
"अभी तो किया था"
"तब तुम्हें करना था. अब मुझे करना है"
मैं भला मना क्यूँ करता. मेरे लिए तो प्यासे को पानी मिलने जैसे बात हो गयी थी. एक बार फिर से वही सिलसिला शुरू हो गया. मैं उसे चूमने लगा और मेरा हाथ उसकी कमीज़ के अंदर घुस कर कभी उसकी नंगी चूचियो सहलाता तो कभी पेट तो कभी पीठ.
वो भी बराबर मेरा साथ दे रही थी पर शायद उसकी हद यहीं तक थी. इससे आगे वो कुच्छ करना चाहती नही थी. मैने भी जो मिले सो अच्छा सोचते हुए जितना मिल रहा था उसी का भरपूर फयडा उठाने की सोची.
क्रमशः...........