रवि उसके उपर लेट गया & उसके आँसू अपने होटो से सॉफ कर उसके चेहरे को चूमने लगा,"बस रीमा...बस...अब दर्द नही होगा....",थोड़ी देर तक वो उसको चूमता रहा.
"अब तो दर्द नही हो रहा?"
"नही."
रवि धीरे-2 अपनी कमर हिलाने लगा.थोड़ी देर तक रीमा उसके नीचे शांत पड़ी रही पर फिर उसकी चूत मे अंदर-बाहर होते लंड ने उसकी मस्ती बढ़ानी शुरू कर दिया तो वो भी धीमे-2 अपनी कमर हिलाने लगी.रवि ने उसके होठ चूमे तो उसने भी जवाब मे अपनी जीभ उसके मुँह मे डाल दी.रवि जोश मे आ गया & अपने धक्के तेज़ कर दिए,बहुत देर से उसने अपने उपर काबू रखा था & अब वो बस अपनी नयी दुल्हन के अंदर झड़ना चाहता था.
रीमा भी इस नये एहसास सेगरम हो गयी थी उसने रवि को अपनी बाहो मे कस लिया & अपने नाख़ून उसकी पीठ मे गाड़ने लगी,अपनी टांगे उसने उसकी कमर पे लपेट दी जैसे कि चाहती हो कि उसका लंड उसके और अंदर तक चला जाए.
"श...हह...तुम्हारी चूत कितनी टाइट है,रीमा......कितना मज़ा आ रहा है....",उसने अपने होठ उसकी चूचियों से लगा दिए,"...और तुम्हारी...चा...ती..यान्न....कितनी मस्त & बड़ी हैं..."
रीमा उसके मुँह से ऐसी बातें सुन और मस्त हो गयी.उसे अपने उपर हैरत भी हुई की ऐसी बातें सुन उसे शर्म नही आ रही थी बल्कि मज़ा आ रहा था.
"जान,तुम्हे कैसा लग रहा है? बताओ ना.",रवि ने उसके निपल को दाँत से हल्के से काट लिया.
"बहुत अच्छा लग रा...है रवि...आ....अहह.....दिल कर रहा है बस यू ही तुम...हरी बा...हो...मे पड़ी तुमसे प्यार करवाती राहु...ऊओह..!"
उसकी बातें सुन रवि ने अपनी रफ़्तार और बढ़ा दी थी.,"प्यार नही,जान इसका नाम कुच्छ और है. वो बोलो,तुम मुझसे क्या करवा रही हो?"
"मुझे नही पता नाम-वाम.",रीमा को उस हाल मे भी शर्म आ गयी.
"चुदाई मेरी रानी,बोलो कि तुम मुझसे चूड़ना चाहती हो."
"नही."
"प्लीज़ बोलो ना."
"ना,मुझे शर्म आती है."
"ठीक है.फिर मैं इसे बाहर निकाल लेता हू.",रवि ने लगभग पूरा लंड उसकी चूत से खींच लिया,बस 1/2 इंच लंड अंदर था.
रीमा तड़प उठी & कमर उचका लंड को चूत के अंदर & अपनी बाहो से उसके जिस्म को अपने उपर लेने की नाकाम कोशिश करने लगी.
"पहले बोलो की तुम मुझसे चुदना चाहती हो & मेरा लंड अपनी चूत के अंदर चाहती हो."
रीमा को तो बस वो लंड अपने अंदर चाहिए था,वो अपनी शर्म भूल गयी,"मैं तुमसे चुदना चाहती हू, रवि.प्लीज़ डालो अपना लंड मेरी चूत मे & चोदो मुझे,प्लीज़!"
सुनते ही रवि ने 1 झटके मे ही पूरा लंड उसकी चूत मे पेल दिया,"लो मेरी जान.ये लो.."
कमरे मे दोनो की आनहो का शोर भर गया.रवि पागलो की तरह धक्के लगा रहा था & रीमा भी बेकाबू होकर अपनी कमर हिला धक्को का जवाब दे रही थी.
"रीमा,मैं झड़ने वाला हू."
"बस थोड़ी देर और रवि...आ...अहहह.....हहाअ.....आआआआण्ण्ण्ण्ण...!",रीमा के झाड़ते ही रवि ने भी 2-3 धक्के & लगाए & झाड़ गया.वो उसके सीने पे गिर गया & दोनो अपनी तेज़ सांसो को संभालने लगे.
खिलोना compleet
Re: खिलोना
खिलोना पार्ट--3
गांद के नीचे लगे कुशन पे पड़े खून के धब्बे उसके कुंवारेपन के ख़त्म होने की दास्तान बयान कर रहे थे.
"ऊओ....रवि!",रीमा 1 हाथ से अपनी छातिया मसल्ते हुए & दूसरे से अपने चूत के दाने को रगड़ते हुए झाड़ गयी.आँखे खोल वो अपनी सुहग्रात की यादो से बाहर आई.टवल से अपनी चूत से बह आए पानी को उसने सॉफ किया & कपड़े पहनने लगी.
कपड़े पहनते हुए उसने 1 नज़र घड़ी पे डाली तो देखा की 2 बज रहे हैं,तभी उसका मोबाइल बजा.उठाया तो रवि था,"हेलो!जान,सॉरी आने मे थोड़ी देर हो जाएगी.कुच्छ ज़रूरी काम आ गया है."
"आज के दिन भी काम!जाओ मैं तुमसे बात नही करूँगी."
"प्लीज़ नाराज़ मत हो,रीमा.क्या करू!बहुत ज़रूरी है.नही तो क्या मेरा दिल नही कर रहा आज का दिन सेलेब्रेट करने का.सवेरे से मैं तो बस यही सोच रहा हू कि आज तुम्हे कैसे चोदुन्गा.."
"धात!फोन पे भी ऐसी बातें कर रहे हो.ऑफीस मे कोई सुन लेगा तो."
"तो सुन ले.अपनी बीवी को चोदने की बात कर रहा हू किसी और को नही."
"चुप!पागल.अच्छा बताओ कितने बजे तक आ जाओगे."
"7 बजे तक पक्का."
"ओके.उस से देर मत करना."
"नही करूँगा,डार्लिंग.ओके,बाइ!"
"बाइ!"
शादी के बाद रीमा को अपने बारे मे 1 बहुत अहम बात पता चली थी.वो ये कि उसे चुदाई मे बहुत मज़ा आता था.जितना रवि उसे हर रोज़ चोदने को बेताब रहता था उतना ही वो भी रहती थी-शायद उस से ज़्यादा ही.हनिमून के तीसरे दिन जब रवि ने उसका हाथ पकड़ अपने लंड पे रखा तो वो कुच्छ शर्म & कुच्छ झिझक से अपना हाथ खींच बैठी थी,पर रवि के इसरार के बाद ना केवल उसने उसके लंड को अपने हाथो मे लिया बल्कि मुँह मे भी लेकर जम के चूसा.उसे लंड से खेलने मे बहुत मज़ा आया था.
हनिमून के 5 दीनो के बाद उसने कभी भी रवि को कॉंडम नही इस्तेमाल करने दिया.उसने उसे साफ कह दिया कि जो भी प्रोटेक्षन लेना है वो लेगी पर उसकी चूत & उसके लंड के बीच कुच्छ भी आए,ये उसे मंज़ूर नही था.पिच्छले 1 साल मे दोनो पति-पत्नी 1 दूसरे से पूरी तरह से खुल गये थे.छुट्टी के दिन अगर वो शहर नही घूम रहे होते तो घर के किसी कमरे मे चुदाई मे लगे होते.रवि तो छुट्टी मे उसे कपड़े पहनने ही नही देता था.
जहा रवि को उसे डॉगी स्टाइल & स्पून पोज़िशन -जिसमे वो करवट से लेट जाती & रवि उसके पीछे करवट से लेट उसकी चूत मे लंड घुसा कर चोद्ता-मे चोदना पसंद था वही रीमा को रवि के नीचे या फिर उसके उपर आकर चुदाई करना भाता था.दोनो हर रात कम से कम 2 बार चुदाई करते जिसमे 1 बार रवि की पसंद की & दूसरी बार रीमा की पसस्न्द की पोज़िशन मे चुदाई होती.
सारी पहन रीमा ने अपनी नाभि पे हाथ फेरा,फिर ड्रेसिंग टेबल से 1 रिंग उठा उसमे पहन ली.रीमा ने रवि के जनमदिन के मौके पे उसके तोहफे के तौर पे अपनी नेवेल पियर्सिंग कराई थी.रवि तो ये देख पागल ही हो गया था & पता नही कितनी देर तक उसकी ज़ुबान उसके पेट & नाभि पे घूमती रही थी.जब दोनो चुदाई नही कर रहे होते & यूँही बैठे टीवी देख रहे होते या कुच्छ पढ़ रहे होते तो रवि उसकी बगल मे कमर मे बाँह डाल बैठ जाता & अपना हाथ उसके पेट पे पहुँचा उस नेवेल रिंग से खेलता रहता.
ऐसा नही था कि सब कुच्छ सपने सा सुंदर था.रवि के पिता की नाराज़गी रीमा को बहुत परेशान करती थी.वो अनाथ थी शायद इसलिए परिवार की अहमियत रवि से ज़्यादा समझती थी,पर इस समस्या का हाल कैसे निकाले उसे समझ नही आता था.हनिमून के बाद रवि उसे ले पंचमहल गया.उसे लगा था कि पिताजी जब ये देखेंगे की उसने शादी कर ली है तो उन्हे मान ही जाएँगे.पूरे सफ़र मे रवि उसे अपने माता-पिता,भाई & दद्दा की कहानिया सुनाता रहा.
दद्दा कहने तो उसके परिवार के नौकर थे पर सभी लोग उन्हे भी परिवार का सदस्य ही मानते थे.दद्दा का नाम दर्शन था पर रवि & उसका भाई शेखर प्यार से उन्हे दद्दा बुलाते थे.जब शेखर 1 साल का था तो दद्दा घर मे आए & तब से यही रह गये.
रीमा को वो दिन याद आया,जब टॅक्सी से उतर रवि & वो उसके घर मे दाखिल हुए,"दद्दा ओ दद्दा!",रवि ने गेट खोलते हुए आवाज़ दी.
घर का दरवाज़ा खुला & वीरेन्द्रा साक्शेणा बाहर आए,"वो बाज़ार गया है."
रवि ने आगे बढ़ पिता के पाँव च्छुए तो रीमा ने भी वैसा ही किया.दोनो घर के अंदर गये तो रीमा ने पहली बार रवि की मा को देखा.रवि उन्हे रीमा के बारे मे बताने लगा.बिस्तर पे पड़ी वो उन्हे देख रही थी पर कुच्छ पता नही आ रहा था कि उन्हे कुच्छ समझ भी आ रहा था या नही.थोड़ी देर बाद विरेन्द्र जी ने रवि को आवाज़ दी तो रवि रीमा को वही छ्चोड़ कमरे से बाहर चला गया.
"...अभी 2-3 महीने बॅंगलुर मे काम करूँगा फिर कोशिश कर यहा ट्रान्स्फर ले लूँगा & आपलोगो के साथ रहूँगा."
"तुम्हारा अपना घर है जब चाहो आओ पर वो लड़की यहा नही आएगी."
"वो लड़की अब मेरी पत्नी है,पिताजी."
"मैं नही मानता."
"आपके मानने ना मानने से कुच्छ नही होता.क़ानून उसे मेरी बीवी मानता है."
"मैं तुमसे बहस नही करना चाहता.उस लड़की को मैं अपनी बहू नही मानता.मैने पूरी बिरादरी मे किसी को तुम्हारी इस बेवकूफी के बारे मे नही बताया है...यहा तक की दर्शन भी कुच्छ नही जानता.अगर इस घर से ताल्लुक रखना है तो उस लड़की को अपनी ज़िंदगी से अलग करो."
"ठीक है,आपने जिस बिरादरी को कुच्छ नही बताया है,आपको वो बिरादरी मुबारक हो.मुझे आपसे या आपकी बिरादरी से कुच्छ लेना-देना नही.अगर इस घर मे मेरी पत्नी की इज़्ज़त नही होगी तो उसे मैं अपनी बेइज़्ज़ती समझूंगा."
"जो मर्ज़ी समझो.मैने अपनी बात कह दी है."
"ठीक है.मैं जा रहा हू & तब तक वापस नही आओंगा जब तक रीमा को अपनी बहू नही मानेंगे.",और दोनो वॉया से चले आए.
रीमा ने कई बार रवि को समझाया कि वो नही जा सकती तो क्या हुआ वो चला जाया करे पंचमहल पर रवि भी अपने पिता की तरह ज़िद्दी था.दिल ही दिल मे तड़प्ता रहता था अपनी मा को देखने के लिए लेकिन जाने का नाम तक ज़ुबान पे नही लाता था.अपने भाई शेखर से उसे घर का हाल मालूम होता रहता था,शेखर 1-2 बार अपने ऑफीस टूर पे बॅंगलुर भी आया था & दोनो से मिला भी था.रीमा को वो 1 बहुत शरीफ इंसान लगा था.
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रीमा ने घड़ी देखी तो 8 बज रहे थे,उसने रवि को फोन लगाया तो स्विच ऑफ का मेसेज आया.ऐसे ही 9 बज गये तो वो चिंता से परेशान हो उठी.रवि का मोबाइल लगातार स्विच ऑफ आ रहा था.उसके ऑफीस के साथियो को फोन किया तो उन्होने कहा की वो तो 3 बजे ही दफ़्तर से निकल गया था,रीमा को बहुत घबराहट होरही थी & कुच्छ समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे.घड़ी ने 10 बजाए & उधर डोरबेल बाजी.वो चैन की साँस ले भागती हुई दरवाज़े पे पहुँची.
"कहा थे इत-.."दरवाज़ा खोल उसने सवाल पोच्छना शुरू किया पर बीच ही मे रुक गयी.सामने 1 पोलीस्वला खड़ा था.
"आप मिसेज़.रीमा साक्शेणा हैं?"
"जी."
"आप मिस्टर.रवि साक्शेणा ,जो मेट्रोपोलिटन बॅंक मे काम करते हैं,उनकी वाइफ हैं?"
"जी,हां.क्या बात है?",रीमा का दिल ज़ोरो से धड़क रहा था.
"आपके पति का आक्सिडेंट हुआ है."
गांद के नीचे लगे कुशन पे पड़े खून के धब्बे उसके कुंवारेपन के ख़त्म होने की दास्तान बयान कर रहे थे.
"ऊओ....रवि!",रीमा 1 हाथ से अपनी छातिया मसल्ते हुए & दूसरे से अपने चूत के दाने को रगड़ते हुए झाड़ गयी.आँखे खोल वो अपनी सुहग्रात की यादो से बाहर आई.टवल से अपनी चूत से बह आए पानी को उसने सॉफ किया & कपड़े पहनने लगी.
कपड़े पहनते हुए उसने 1 नज़र घड़ी पे डाली तो देखा की 2 बज रहे हैं,तभी उसका मोबाइल बजा.उठाया तो रवि था,"हेलो!जान,सॉरी आने मे थोड़ी देर हो जाएगी.कुच्छ ज़रूरी काम आ गया है."
"आज के दिन भी काम!जाओ मैं तुमसे बात नही करूँगी."
"प्लीज़ नाराज़ मत हो,रीमा.क्या करू!बहुत ज़रूरी है.नही तो क्या मेरा दिल नही कर रहा आज का दिन सेलेब्रेट करने का.सवेरे से मैं तो बस यही सोच रहा हू कि आज तुम्हे कैसे चोदुन्गा.."
"धात!फोन पे भी ऐसी बातें कर रहे हो.ऑफीस मे कोई सुन लेगा तो."
"तो सुन ले.अपनी बीवी को चोदने की बात कर रहा हू किसी और को नही."
"चुप!पागल.अच्छा बताओ कितने बजे तक आ जाओगे."
"7 बजे तक पक्का."
"ओके.उस से देर मत करना."
"नही करूँगा,डार्लिंग.ओके,बाइ!"
"बाइ!"
शादी के बाद रीमा को अपने बारे मे 1 बहुत अहम बात पता चली थी.वो ये कि उसे चुदाई मे बहुत मज़ा आता था.जितना रवि उसे हर रोज़ चोदने को बेताब रहता था उतना ही वो भी रहती थी-शायद उस से ज़्यादा ही.हनिमून के तीसरे दिन जब रवि ने उसका हाथ पकड़ अपने लंड पे रखा तो वो कुच्छ शर्म & कुच्छ झिझक से अपना हाथ खींच बैठी थी,पर रवि के इसरार के बाद ना केवल उसने उसके लंड को अपने हाथो मे लिया बल्कि मुँह मे भी लेकर जम के चूसा.उसे लंड से खेलने मे बहुत मज़ा आया था.
हनिमून के 5 दीनो के बाद उसने कभी भी रवि को कॉंडम नही इस्तेमाल करने दिया.उसने उसे साफ कह दिया कि जो भी प्रोटेक्षन लेना है वो लेगी पर उसकी चूत & उसके लंड के बीच कुच्छ भी आए,ये उसे मंज़ूर नही था.पिच्छले 1 साल मे दोनो पति-पत्नी 1 दूसरे से पूरी तरह से खुल गये थे.छुट्टी के दिन अगर वो शहर नही घूम रहे होते तो घर के किसी कमरे मे चुदाई मे लगे होते.रवि तो छुट्टी मे उसे कपड़े पहनने ही नही देता था.
जहा रवि को उसे डॉगी स्टाइल & स्पून पोज़िशन -जिसमे वो करवट से लेट जाती & रवि उसके पीछे करवट से लेट उसकी चूत मे लंड घुसा कर चोद्ता-मे चोदना पसंद था वही रीमा को रवि के नीचे या फिर उसके उपर आकर चुदाई करना भाता था.दोनो हर रात कम से कम 2 बार चुदाई करते जिसमे 1 बार रवि की पसंद की & दूसरी बार रीमा की पसस्न्द की पोज़िशन मे चुदाई होती.
सारी पहन रीमा ने अपनी नाभि पे हाथ फेरा,फिर ड्रेसिंग टेबल से 1 रिंग उठा उसमे पहन ली.रीमा ने रवि के जनमदिन के मौके पे उसके तोहफे के तौर पे अपनी नेवेल पियर्सिंग कराई थी.रवि तो ये देख पागल ही हो गया था & पता नही कितनी देर तक उसकी ज़ुबान उसके पेट & नाभि पे घूमती रही थी.जब दोनो चुदाई नही कर रहे होते & यूँही बैठे टीवी देख रहे होते या कुच्छ पढ़ रहे होते तो रवि उसकी बगल मे कमर मे बाँह डाल बैठ जाता & अपना हाथ उसके पेट पे पहुँचा उस नेवेल रिंग से खेलता रहता.
ऐसा नही था कि सब कुच्छ सपने सा सुंदर था.रवि के पिता की नाराज़गी रीमा को बहुत परेशान करती थी.वो अनाथ थी शायद इसलिए परिवार की अहमियत रवि से ज़्यादा समझती थी,पर इस समस्या का हाल कैसे निकाले उसे समझ नही आता था.हनिमून के बाद रवि उसे ले पंचमहल गया.उसे लगा था कि पिताजी जब ये देखेंगे की उसने शादी कर ली है तो उन्हे मान ही जाएँगे.पूरे सफ़र मे रवि उसे अपने माता-पिता,भाई & दद्दा की कहानिया सुनाता रहा.
दद्दा कहने तो उसके परिवार के नौकर थे पर सभी लोग उन्हे भी परिवार का सदस्य ही मानते थे.दद्दा का नाम दर्शन था पर रवि & उसका भाई शेखर प्यार से उन्हे दद्दा बुलाते थे.जब शेखर 1 साल का था तो दद्दा घर मे आए & तब से यही रह गये.
रीमा को वो दिन याद आया,जब टॅक्सी से उतर रवि & वो उसके घर मे दाखिल हुए,"दद्दा ओ दद्दा!",रवि ने गेट खोलते हुए आवाज़ दी.
घर का दरवाज़ा खुला & वीरेन्द्रा साक्शेणा बाहर आए,"वो बाज़ार गया है."
रवि ने आगे बढ़ पिता के पाँव च्छुए तो रीमा ने भी वैसा ही किया.दोनो घर के अंदर गये तो रीमा ने पहली बार रवि की मा को देखा.रवि उन्हे रीमा के बारे मे बताने लगा.बिस्तर पे पड़ी वो उन्हे देख रही थी पर कुच्छ पता नही आ रहा था कि उन्हे कुच्छ समझ भी आ रहा था या नही.थोड़ी देर बाद विरेन्द्र जी ने रवि को आवाज़ दी तो रवि रीमा को वही छ्चोड़ कमरे से बाहर चला गया.
"...अभी 2-3 महीने बॅंगलुर मे काम करूँगा फिर कोशिश कर यहा ट्रान्स्फर ले लूँगा & आपलोगो के साथ रहूँगा."
"तुम्हारा अपना घर है जब चाहो आओ पर वो लड़की यहा नही आएगी."
"वो लड़की अब मेरी पत्नी है,पिताजी."
"मैं नही मानता."
"आपके मानने ना मानने से कुच्छ नही होता.क़ानून उसे मेरी बीवी मानता है."
"मैं तुमसे बहस नही करना चाहता.उस लड़की को मैं अपनी बहू नही मानता.मैने पूरी बिरादरी मे किसी को तुम्हारी इस बेवकूफी के बारे मे नही बताया है...यहा तक की दर्शन भी कुच्छ नही जानता.अगर इस घर से ताल्लुक रखना है तो उस लड़की को अपनी ज़िंदगी से अलग करो."
"ठीक है,आपने जिस बिरादरी को कुच्छ नही बताया है,आपको वो बिरादरी मुबारक हो.मुझे आपसे या आपकी बिरादरी से कुच्छ लेना-देना नही.अगर इस घर मे मेरी पत्नी की इज़्ज़त नही होगी तो उसे मैं अपनी बेइज़्ज़ती समझूंगा."
"जो मर्ज़ी समझो.मैने अपनी बात कह दी है."
"ठीक है.मैं जा रहा हू & तब तक वापस नही आओंगा जब तक रीमा को अपनी बहू नही मानेंगे.",और दोनो वॉया से चले आए.
रीमा ने कई बार रवि को समझाया कि वो नही जा सकती तो क्या हुआ वो चला जाया करे पंचमहल पर रवि भी अपने पिता की तरह ज़िद्दी था.दिल ही दिल मे तड़प्ता रहता था अपनी मा को देखने के लिए लेकिन जाने का नाम तक ज़ुबान पे नही लाता था.अपने भाई शेखर से उसे घर का हाल मालूम होता रहता था,शेखर 1-2 बार अपने ऑफीस टूर पे बॅंगलुर भी आया था & दोनो से मिला भी था.रीमा को वो 1 बहुत शरीफ इंसान लगा था.
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रीमा ने घड़ी देखी तो 8 बज रहे थे,उसने रवि को फोन लगाया तो स्विच ऑफ का मेसेज आया.ऐसे ही 9 बज गये तो वो चिंता से परेशान हो उठी.रवि का मोबाइल लगातार स्विच ऑफ आ रहा था.उसके ऑफीस के साथियो को फोन किया तो उन्होने कहा की वो तो 3 बजे ही दफ़्तर से निकल गया था,रीमा को बहुत घबराहट होरही थी & कुच्छ समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे.घड़ी ने 10 बजाए & उधर डोरबेल बाजी.वो चैन की साँस ले भागती हुई दरवाज़े पे पहुँची.
"कहा थे इत-.."दरवाज़ा खोल उसने सवाल पोच्छना शुरू किया पर बीच ही मे रुक गयी.सामने 1 पोलीस्वला खड़ा था.
"आप मिसेज़.रीमा साक्शेणा हैं?"
"जी."
"आप मिस्टर.रवि साक्शेणा ,जो मेट्रोपोलिटन बॅंक मे काम करते हैं,उनकी वाइफ हैं?"
"जी,हां.क्या बात है?",रीमा का दिल ज़ोरो से धड़क रहा था.
"आपके पति का आक्सिडेंट हुआ है."
Re: खिलोना
आज रवि की मौत को 1 महीना हो गया था & रीमा घर मे बिल्कुल अकेली उदास पड़ी हुई थी.हादसे की खबर सुनते ही मौसी फ़ौरन उसके पास आ गयी थी & कल शाम तक उसके साथ थी.पर वो भी आख़िर कब तक यहा रुकती,कल रात वो भी वापस पुणे चली गयी.
बॅंगलुर से करीब 60 किलोमीटर दूर आर्कवाती नदी पे 1 पुराना पुल है.इसी पुल की रेलिंग तोड़ती रवि की बाइक नदी मे जा गिरी थी.बरसात की वजह से नदी भरी हुई थी & उपर से रवि को तैरना भी नही आता था.आक्सिडेंट उनकी आनिवर्सयरी की शाम को हुआ था & दूसरे दिन 1 बराज के गेट मे अटकी रवि की लाश मिली थी.
विरेन्द्र & शेखर साक्शेणा पंचमहल से आकर रवि का अंतिम संस्कार कर 15 दिनी मे वापस चले गये थे.रीमा के ससुर ने 1 बार भी उस से ना बात की ना उसका हाल पूचछा.हा,शेखर ने ज़रूर उसे कहा कि वो अगर ज़रूरत पड़े तो उसे बेझिझक बुला सकती है & अपना फोन नंबर. भी उसे दिया.
पता नही क्यू,रीमा का दिल पोलीस की बात मानने को तैय्यार नही था की ये आक्सिडेंट था.आख़िर रवि शहर से दूर उस वीराने मे क्या करने गया था?उसे अपने पति की मौत इतनी सीधी-सादी नही लग रही थी.कोई तो बात थी..फिर रवि इतने दीनो से परेशानी भी था.इन्ही ख़यालो मे वो खोई थी कि उसका मोबाइल बजा तो उसने उसे अपने कान से लगाया,"हेलो."
"हेलो,क्या मिसेज़.रीमा साक्शेणा बोल रही हैं?"
"जी हां."
"मैं अनिल कक्कर बोल रहा हू मेट्रोपोलिटन बॅंक से.आप कैसी हैं?"
"नमस्ते सर.मैं ठीक हू.कहिए क्या बात है?",ये रवि का बॉस था.
"रीमा जी,मैं इस वक़्त आपको परेशान तो नही करना चाहता पर बात ही कुच्छ ऐसी है.क्या आप आज बॅंक आ सकती हैं?"
"क्या बात है सर?"
"फोन पे बताने वाली बात होती तो मैं आपको कभी परेशान नही करता.प्लीज़ 1 बार बॅंक आ जाइए."
"ठीक है,सर मैं 11 बजे तक आ जाऊंगी.",रीमा ने घड़ी की तरफ देखा.
-------------------------------------------------------------------------------
बॅंक मे अनिल कक्कर के सामने बैठी रीमा का मुँह हैरत से खुला हुआ था,"ये आप क्या कह रहे हैं,सर?"
"मैं सच कह रहा हू.रवि ने 1 फ़र्ज़ी इंसान को .4 लाख का लोन दिलवाया था.अभी 2 दिन पहले जब लोन की पहली इंस्टल्लमेंट का पोस्ट-डेटेड स्चेक बाउन्स हो गया तो हमने तहकीकात की तो पता चला की लोनी के नाम & पता दोनो झूठे थे."
"पर आप यकीन से कैसे कह सकते हैं कि ये रवि ने ही किया है?रवि का काम तो फिगर्स आनलाइज़ करने का था."
"आप सही कह रही हैं,रीमा जी.पर बॅंक का कोई भी एंप्लायी बॅंक की कोई भी स्कीम किसी कस्टमर को बेच सकता है & रवि ने इसी बात का फ़ायदा उठा कर ये काम किया है.",उसने कुच्छ पेपर्स उसके सामने बढ़ाए,"आप चाहे तो ये पेपर्स पढ़ कर तसल्ली कर सकती हैं."
रीमा को तो कुच्छ समझ नही आ रहा था,"ये पैसे...ये क्या...मुझे चुकाने पड़ेंगे?"
"जी बिल्कुल,नही तो हमे मामला पोलीस को देना पड़ेगा.",कक्कर ने ठंडी साँस भारी.,"..बल्कि हमे तो अभी तक पोलीस को खबर कर देनी चाहिए थी,पर आपके हालत देख मैने सोचा कि पहले आपसे बात कर लू."
4 लाख रुपये!कहा से लाएगी वो इतनी बड़ी रकम...उसका सर चकरा रहा था...पोलीस का नाम सुन कर तो उसके पसीने छूट गये थे.तभी उसे पीठ पे कुच्छ महसूस हुआ,सर उठाया तो देखा की कक्कर मुस्कुराता हुआ उसकी पीठ सहला रहा था,"..घबराईए मत...1 और तरीका है...आप मेरे साथ को-ऑपरेट कीजिए,मैं आपको इस मुसीबत से निकालूँगा."
हर औरत मे मर्द की बुरी नियत भापने की ताक़त होती है,रीमा भी कक्कर का मतलब समझ गयी.उसका दिल तो किया कि 1 ज़ोर का तमाचा रसीद कर दे इस कामीने इंसान के गाल पे,पर उसने खुद पे काबू रखा & कुर्सी से उठ खड़ी हो गयी,"...जी सर...मुझ-...मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक़्त चाहिए..."
"हां..हां!लीजिए वक़्त.मैं 5 दीनो तक ये मामला दबा सकता हू,5 दीनो के बाद...",उसकी अनकही बात रीमा समझ गयी & वो उसके ऑफीस से बाहर निकल गयी.बाहर मार्केट मे उसने 1 जूस वाले से जूस पिया तो उसे थोड़ा सुकून मिला,उसने अपने बॅग से रवि का एटीम कार्ड निकाल कर उसके अकाउंट का बॅलेन्स चेक करने की सोची & बगल के एटीम मे घुस गयी.
एटीएम स्क्रीन पे जो रकम देखी उसने उसे फिर परेशान कर दिया,उसने दुबारा चेक किया पर एटीएम स्क्रीन पे .40,000 ही दिख रहा था.उसे अच्छी तरह से याद था कि इस अकाउंट मे करीब .2.5 लाख थे तो आख़िर 2 लाख कहा गये?
"ओह्ह...रवि,तुमने क्या किया था आख़िर?",वो मन ही मन बोली.दिन के 2 बजे वो वापस घर पहुँची.अंदर घुस कर उसने दरवाज़ा बंद किया ही था कि डोरबेल बज उठी.दरवाज़ा खोला तो देखा की उसके मकान मालिक खड़े हैं.
"नमस्ते अंकल."
"जीती रहो बेटी.",वो कोई 65 साल के बुज़ुर्ग थे & यही पास ही मे रहते थे.रवि की मौत के बाद उन्होने रीमा की काफ़ी मदद की थी.
"अरे,मैं तो भूल ही गयी थी.आपको किराए का चेक़ भी तो देना है."
"नही बेटी मैं उसके लिए नही आया था,पैसे कही भागे थोड़े ना जा रहे हैं.मैं तो बस तुम्हारा हाल पुच्छने आया था.",वो सोफे पे रीमा के बगल मे उसके कुच्छ ज़्यादा ही पास बैठ गये,"कुच्छ सोचा तुमने आगे क्या करना है?"
"अभी तक तो कुच्छ नही,अंकल.",उसे अंकल की नज़दीकी कुच्छ ठीक नही लगी तो वो उठ ड्रॉयर से चेकबुक निकाल उनका किराए का चेक़ बनाने लगी.
"घबराना मत बेटी,मैं हू ना.",अंकल उसके पास खड़े उसकी पीठ सहलाते हुए हाथ ब्लाउस से नीचे उसकी नंगी कमर पे ले आए.
"आपका चेक़,अंकल & बुरा ना माने तो आप अभी जा सकते हैं.मुझे थोड़ा काम है."
"हां...हां!तुम आराम करो बेटी....& कोई ज़रूरत हो तो मुझे बेझिझक बुला लेना.",रीमा ने दरवाज़ा बंद किया &रोती हुई सोफे पे जा गिरी.पहले रवि का बॉस अब ये बुड्ढ़ा.इन सबने उसे क्या कोई सड़क पे पड़ा खिलोना समझ रखा था क्या कि जिसकी मर्ज़ी हो वो उसके साथ खेल ले.
तभी फिर से डोरबेल बजी.रीमा ने आँसू पोछे & दरवाज़ा खोला तो चौंक उठी,सामने उसके ससुर खड़े थे.सकपका के उसने उनके पाँव छुए & उनके अंदर आते ही दरवाज़ा बंद कर दिया.
"तुम्हे हुमारे साथ पंचमहल चलना होगा."
"जी.",रीमा ने चौंक के उन्हे देखा.
"सुमित्रा-रवि की मा की हालत तो तुम जानती हो.डॉक्टर्स का कहना है कि कई बार अगर कोई बहुत शॉकिंग न्यूज़ सुनाई जाए तो ऐसे पेशेंट्स बोलने लगते हैं.इसीलिए हमने उसे रवि की मौत की खबर दी.सुमित्रा बोली तो नही पर उसकी आँखो से आँसू बहने लगे,रुलाई की आवाज़ नही निकली बस आखें बरसती रही.उस दिन से वो ठीक से खा-पी भी नही रही है.मैं जब भी उसके सामने जाता हू तो जैसे उसकी नज़रे मुझ से कुच्छ मांगती रहती हैं.थोड़े दीनो मैं समझ गया कि वो तुम्हे ढूंडती है."
"मा जी तो कुच्छ बोलती नही,फिर आपको ऐसा कैसे लगा?"
"मैं उसका पति हू,इतने साल हम साथ रहे हैं.उसके दिल की बात समझने के लिए मुझे किसी ज़ुबान की ज़रूरत नही."
"अपना सामान तैय्यार रखना,हम कल ही यहा से निकल जाएँगे.और हा 1 बहुत अहम बात सुन लो.मैं आज भी तुम्हे अपनी बहू नही मानता,बस अपनी पत्नी की बेहतरी के लिए तुम्हे वाहा ले जा रहा हू.और तुम भी बस 1 नर्स की हैसियत से वाहा जा रही हो.मेरी पूरी बिरादरी या जान-पहचान मे कोई भी रवि की शादी या तुम्हारे वजूद से वाकिफ़ नही है.तो तुम जब तक इस राज़ को अपने सीने मे दफ़न रखोगी वाहा रहोगी."
कोई और मौका होता तो रीमा उन्हे बाहर का रास्ता दिखा देती पर आज वीरेन्द्रा साक्शेणा के रूप मे भगवान ने उसे मुसीबत से बाहर निकालने का ज़रिया भेज दिया था.
"मुझे आपकी बात मंज़ूर है पर आपको अपने बेटे की 1 ग़लती सुधारनी होगी...और रवि की मौत के पीछे ज़रूर कोई राज़ था ,आपको उस राज़ का भी पता लगाना होगा."
"सॉफ-2 बात करो,पहेलियाँ मत बुझाओ."
और रीमा ने उन्हे पूरी बात बता दी.विरेन्द्र जी को उसकी बात पे यकीन नही हुआ पर जब दूसरे दिन वो उसके साथ बॅंक गये तो उन्हे यकीन करना ही पड़ा.
बॅंगलुर से करीब 60 किलोमीटर दूर आर्कवाती नदी पे 1 पुराना पुल है.इसी पुल की रेलिंग तोड़ती रवि की बाइक नदी मे जा गिरी थी.बरसात की वजह से नदी भरी हुई थी & उपर से रवि को तैरना भी नही आता था.आक्सिडेंट उनकी आनिवर्सयरी की शाम को हुआ था & दूसरे दिन 1 बराज के गेट मे अटकी रवि की लाश मिली थी.
विरेन्द्र & शेखर साक्शेणा पंचमहल से आकर रवि का अंतिम संस्कार कर 15 दिनी मे वापस चले गये थे.रीमा के ससुर ने 1 बार भी उस से ना बात की ना उसका हाल पूचछा.हा,शेखर ने ज़रूर उसे कहा कि वो अगर ज़रूरत पड़े तो उसे बेझिझक बुला सकती है & अपना फोन नंबर. भी उसे दिया.
पता नही क्यू,रीमा का दिल पोलीस की बात मानने को तैय्यार नही था की ये आक्सिडेंट था.आख़िर रवि शहर से दूर उस वीराने मे क्या करने गया था?उसे अपने पति की मौत इतनी सीधी-सादी नही लग रही थी.कोई तो बात थी..फिर रवि इतने दीनो से परेशानी भी था.इन्ही ख़यालो मे वो खोई थी कि उसका मोबाइल बजा तो उसने उसे अपने कान से लगाया,"हेलो."
"हेलो,क्या मिसेज़.रीमा साक्शेणा बोल रही हैं?"
"जी हां."
"मैं अनिल कक्कर बोल रहा हू मेट्रोपोलिटन बॅंक से.आप कैसी हैं?"
"नमस्ते सर.मैं ठीक हू.कहिए क्या बात है?",ये रवि का बॉस था.
"रीमा जी,मैं इस वक़्त आपको परेशान तो नही करना चाहता पर बात ही कुच्छ ऐसी है.क्या आप आज बॅंक आ सकती हैं?"
"क्या बात है सर?"
"फोन पे बताने वाली बात होती तो मैं आपको कभी परेशान नही करता.प्लीज़ 1 बार बॅंक आ जाइए."
"ठीक है,सर मैं 11 बजे तक आ जाऊंगी.",रीमा ने घड़ी की तरफ देखा.
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बॅंक मे अनिल कक्कर के सामने बैठी रीमा का मुँह हैरत से खुला हुआ था,"ये आप क्या कह रहे हैं,सर?"
"मैं सच कह रहा हू.रवि ने 1 फ़र्ज़ी इंसान को .4 लाख का लोन दिलवाया था.अभी 2 दिन पहले जब लोन की पहली इंस्टल्लमेंट का पोस्ट-डेटेड स्चेक बाउन्स हो गया तो हमने तहकीकात की तो पता चला की लोनी के नाम & पता दोनो झूठे थे."
"पर आप यकीन से कैसे कह सकते हैं कि ये रवि ने ही किया है?रवि का काम तो फिगर्स आनलाइज़ करने का था."
"आप सही कह रही हैं,रीमा जी.पर बॅंक का कोई भी एंप्लायी बॅंक की कोई भी स्कीम किसी कस्टमर को बेच सकता है & रवि ने इसी बात का फ़ायदा उठा कर ये काम किया है.",उसने कुच्छ पेपर्स उसके सामने बढ़ाए,"आप चाहे तो ये पेपर्स पढ़ कर तसल्ली कर सकती हैं."
रीमा को तो कुच्छ समझ नही आ रहा था,"ये पैसे...ये क्या...मुझे चुकाने पड़ेंगे?"
"जी बिल्कुल,नही तो हमे मामला पोलीस को देना पड़ेगा.",कक्कर ने ठंडी साँस भारी.,"..बल्कि हमे तो अभी तक पोलीस को खबर कर देनी चाहिए थी,पर आपके हालत देख मैने सोचा कि पहले आपसे बात कर लू."
4 लाख रुपये!कहा से लाएगी वो इतनी बड़ी रकम...उसका सर चकरा रहा था...पोलीस का नाम सुन कर तो उसके पसीने छूट गये थे.तभी उसे पीठ पे कुच्छ महसूस हुआ,सर उठाया तो देखा की कक्कर मुस्कुराता हुआ उसकी पीठ सहला रहा था,"..घबराईए मत...1 और तरीका है...आप मेरे साथ को-ऑपरेट कीजिए,मैं आपको इस मुसीबत से निकालूँगा."
हर औरत मे मर्द की बुरी नियत भापने की ताक़त होती है,रीमा भी कक्कर का मतलब समझ गयी.उसका दिल तो किया कि 1 ज़ोर का तमाचा रसीद कर दे इस कामीने इंसान के गाल पे,पर उसने खुद पे काबू रखा & कुर्सी से उठ खड़ी हो गयी,"...जी सर...मुझ-...मुझे सोचने के लिए थोड़ा वक़्त चाहिए..."
"हां..हां!लीजिए वक़्त.मैं 5 दीनो तक ये मामला दबा सकता हू,5 दीनो के बाद...",उसकी अनकही बात रीमा समझ गयी & वो उसके ऑफीस से बाहर निकल गयी.बाहर मार्केट मे उसने 1 जूस वाले से जूस पिया तो उसे थोड़ा सुकून मिला,उसने अपने बॅग से रवि का एटीम कार्ड निकाल कर उसके अकाउंट का बॅलेन्स चेक करने की सोची & बगल के एटीम मे घुस गयी.
एटीएम स्क्रीन पे जो रकम देखी उसने उसे फिर परेशान कर दिया,उसने दुबारा चेक किया पर एटीएम स्क्रीन पे .40,000 ही दिख रहा था.उसे अच्छी तरह से याद था कि इस अकाउंट मे करीब .2.5 लाख थे तो आख़िर 2 लाख कहा गये?
"ओह्ह...रवि,तुमने क्या किया था आख़िर?",वो मन ही मन बोली.दिन के 2 बजे वो वापस घर पहुँची.अंदर घुस कर उसने दरवाज़ा बंद किया ही था कि डोरबेल बज उठी.दरवाज़ा खोला तो देखा की उसके मकान मालिक खड़े हैं.
"नमस्ते अंकल."
"जीती रहो बेटी.",वो कोई 65 साल के बुज़ुर्ग थे & यही पास ही मे रहते थे.रवि की मौत के बाद उन्होने रीमा की काफ़ी मदद की थी.
"अरे,मैं तो भूल ही गयी थी.आपको किराए का चेक़ भी तो देना है."
"नही बेटी मैं उसके लिए नही आया था,पैसे कही भागे थोड़े ना जा रहे हैं.मैं तो बस तुम्हारा हाल पुच्छने आया था.",वो सोफे पे रीमा के बगल मे उसके कुच्छ ज़्यादा ही पास बैठ गये,"कुच्छ सोचा तुमने आगे क्या करना है?"
"अभी तक तो कुच्छ नही,अंकल.",उसे अंकल की नज़दीकी कुच्छ ठीक नही लगी तो वो उठ ड्रॉयर से चेकबुक निकाल उनका किराए का चेक़ बनाने लगी.
"घबराना मत बेटी,मैं हू ना.",अंकल उसके पास खड़े उसकी पीठ सहलाते हुए हाथ ब्लाउस से नीचे उसकी नंगी कमर पे ले आए.
"आपका चेक़,अंकल & बुरा ना माने तो आप अभी जा सकते हैं.मुझे थोड़ा काम है."
"हां...हां!तुम आराम करो बेटी....& कोई ज़रूरत हो तो मुझे बेझिझक बुला लेना.",रीमा ने दरवाज़ा बंद किया &रोती हुई सोफे पे जा गिरी.पहले रवि का बॉस अब ये बुड्ढ़ा.इन सबने उसे क्या कोई सड़क पे पड़ा खिलोना समझ रखा था क्या कि जिसकी मर्ज़ी हो वो उसके साथ खेल ले.
तभी फिर से डोरबेल बजी.रीमा ने आँसू पोछे & दरवाज़ा खोला तो चौंक उठी,सामने उसके ससुर खड़े थे.सकपका के उसने उनके पाँव छुए & उनके अंदर आते ही दरवाज़ा बंद कर दिया.
"तुम्हे हुमारे साथ पंचमहल चलना होगा."
"जी.",रीमा ने चौंक के उन्हे देखा.
"सुमित्रा-रवि की मा की हालत तो तुम जानती हो.डॉक्टर्स का कहना है कि कई बार अगर कोई बहुत शॉकिंग न्यूज़ सुनाई जाए तो ऐसे पेशेंट्स बोलने लगते हैं.इसीलिए हमने उसे रवि की मौत की खबर दी.सुमित्रा बोली तो नही पर उसकी आँखो से आँसू बहने लगे,रुलाई की आवाज़ नही निकली बस आखें बरसती रही.उस दिन से वो ठीक से खा-पी भी नही रही है.मैं जब भी उसके सामने जाता हू तो जैसे उसकी नज़रे मुझ से कुच्छ मांगती रहती हैं.थोड़े दीनो मैं समझ गया कि वो तुम्हे ढूंडती है."
"मा जी तो कुच्छ बोलती नही,फिर आपको ऐसा कैसे लगा?"
"मैं उसका पति हू,इतने साल हम साथ रहे हैं.उसके दिल की बात समझने के लिए मुझे किसी ज़ुबान की ज़रूरत नही."
"अपना सामान तैय्यार रखना,हम कल ही यहा से निकल जाएँगे.और हा 1 बहुत अहम बात सुन लो.मैं आज भी तुम्हे अपनी बहू नही मानता,बस अपनी पत्नी की बेहतरी के लिए तुम्हे वाहा ले जा रहा हू.और तुम भी बस 1 नर्स की हैसियत से वाहा जा रही हो.मेरी पूरी बिरादरी या जान-पहचान मे कोई भी रवि की शादी या तुम्हारे वजूद से वाकिफ़ नही है.तो तुम जब तक इस राज़ को अपने सीने मे दफ़न रखोगी वाहा रहोगी."
कोई और मौका होता तो रीमा उन्हे बाहर का रास्ता दिखा देती पर आज वीरेन्द्रा साक्शेणा के रूप मे भगवान ने उसे मुसीबत से बाहर निकालने का ज़रिया भेज दिया था.
"मुझे आपकी बात मंज़ूर है पर आपको अपने बेटे की 1 ग़लती सुधारनी होगी...और रवि की मौत के पीछे ज़रूर कोई राज़ था ,आपको उस राज़ का भी पता लगाना होगा."
"सॉफ-2 बात करो,पहेलियाँ मत बुझाओ."
और रीमा ने उन्हे पूरी बात बता दी.विरेन्द्र जी को उसकी बात पे यकीन नही हुआ पर जब दूसरे दिन वो उसके साथ बॅंक गये तो उन्हे यकीन करना ही पड़ा.