तेरे इश्क़ में Hindi Love Story

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rajaarkey
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Re: तेरे इश्क़ में Hindi Love Story

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:03

तेरे इश्क़ में पार्ट--2 Hindi Love Story

गतान्क से आगे.................
उस शाम जब तहज़ीब अपने घर पहुँची तो दरवाज़े के बाहर फूलों की 5 टोक्रियाँ रखी थी. वही फूल जो दिन में उसने खुद बेचे थे, उस जीप वाले लड़को को ....

टोकरी पर एक काग़ज़ का टुकड़ा रखा था जिसपर लिखा था,

"फूल वापिस नही कर रहा हूँ, आपको दे रहा हूँ ... ये आपके लिए हैं, मेरी तरफ से"

"कबसे मेरा पिच्छा कर रहे थे?" तहज़ीब ने पुछा. वो और आदित्य दोनो एक पार्क में बैठे हुए थे.

"अर्रे बहुत पहले से" आदित्य ने जवाब दिया "याद है 2 साल पहले जब तुम वो टेलरिंग सीखने जाती थी?"

"हां याद है" तहज़ीब ने कहा

"तब मैं रोज़ाना ...." आदित्य ने कहना शुरू ही किया था के तहज़ीब ने बीच में उसकी बात काट दी.

"हां याद आया. जब भी मैं अपनी टेलरिंग क्लास से निकलती थी, तुम बाहर खड़े मिलते थे हमेशा"

"राइट. तुम्हें देखने के लिए ही वहाँ खड़ा रहता था" आदित्य ने हँसते हुए जवाब दिया.

"और मैं हमेशा सोचती थी के पता नही किसके लिए खड़ा रहता है बेचारा क्यूंकी मैने तुम्हें किसी के साथ देखा नही था, बस अकेले खड़े इंतेज़ार करते रहते थे" तहज़ीब उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए बोली.

"बेचारा?" आदित्य भी उसके नरम हाथ पर अपनी गिरफ़्त जामाता हुआ बोला

"हां और नही तो क्या. तुम यार दिखने में इतने अच्छे भले थे और वहाँ टेलरिंग क्लास में एक भी लड़की ढंग की नही थी. मैं तुम्हें देखती थी तो लगता था के पता नही किसके साथ तुम्हारे नसीब फूट गये" कहते हुए वो हंस पड़ी.

"तुम्हारे साथ ही नसीब फोड़ने के चक्कर में था मैं"

"तो जब मैं रोज़ तुम्हारे सामने से होकर गुज़रती थी तो बताना चाहिए था ना मिस्टर. आदिल रहमान"

आदित्य और तहज़ीब को साथ 2 महीने हो गये थे. एक साल पहले वो रोज़ कुच्छ दिन तक तहीब के फूल उससे खरीदता और उसी के दरवाज़े पर छ्चोड़ आता जिससे चिड कर तहज़ीब ने उसे फूल बेचने से ही इनकार कर दिया था. नतीजा ये हुआ के आदित्य कहीं और से फूल खरीद कर उसके दरवाज़े पर छ्चोड़ने लगा.

धीरे धीरे रोज़ यूँ फूल देने का कुच्छ तो असर हुआ. तहज़ीब एक आम लड़की थी और उसका बर्ताव भी एक आम लड़की की तरह धीरे धीरे बदल गया. पहले सख़्त गुस्सा, फिर सिर्फ़ गुस्सा, फिर चिड़ना, फिर नॉर्मल रिक्षन, फिर रोज़ फूलों का इंतेज़ार और फिर उसको रोज़ यूँ शाम को अपने दरवाज़े पर फूलों का मिलना पसंद आने लगा. वो खूबसूरत सा लड़का जिसको देखकर ही वो कुढने लगती थी उसे पसंद आने लगा.

और फिर जब एक दिन उस लड़के ने उसका हाथ पकड़कर अपने दिल की बात कही, तो वो इनकार नही कर पाई. उस लड़के ने अपना नाम बताया था आदिल रहमान जिसके पापा एक बिज़्नेस-मॅन थे.

"मैने तुम्हें बहुत तलाश किया था तहज़ीब. तुम अचानक ही गायब हो गयी थी. बहुत भटका था तुम्हें ढूँढते हुए. तुम्हारे पड़ोसियों से पुछा, टेलरिंग क्लास की कुच्छ लड़कियों से पुछा पर किसी को कुच्छ पता नही था तुम्हारा. शहर के हर कोने में ढूँढा था मैने तुम्हें. कभी पोलीस फाइल्स में, कभी सोशियल सर्वीसज़ के ऑफिसस में, हर जगह तुम्हारा नाम तलाश किया पर तुम नही मिली. और फिर जब मैं उम्मीद छ्चोड़ चुका था, तब तुम मुझे एक दिन सड़क पर फूल बेचती हुई नज़र आ गयी. मैं बता नही सकता के क्या हाल हुआ था मेरा उस दिन. लगा था के जैसे मेरी खोई दुनिया मुझे मिल गयी. तुम वहाँ खड़ी फूल बेच रही थी और मैं अपनी जीप में बैठा तुम्हें देख बस खुशी के मारे रोता रहा"

"ओह आदिल" तहज़ीब उसके कंधे पर अपना सर रखते हुए बोली

"फिर तुम फूल बेचकर अपने घर चली और मैं तुम्हारा पिछा करता हुआ तुम्हारा घर देख आया"

"और अगले दिन मेरे फूल मुझसे ही खरीद लिए" तहज़ीब ने मुस्कुराते हुए बात पूरी की.

कुच्छ देर तक दोनो खामोश रहे.

"उस एक रात ने सब कुच्छ बदल दिया था आदिल" थोड़ी देर बाद तहज़ीब बोली "हिंदू-मुस्लिम के बीच लगी आग ने उन दिनो जाने कितने घर फूँके थे और उन्ही में एक घर मेरा भी था. मेरे माँ बाप और मेरा छ्होटे भाई, तीनो को ज़िंदा जला दिया गया था. बच गयी थी बस एक मैं. बहुत दिन तक यूँ ही भटकती रही रिश्ते-दारो के यहाँ. कभी किसी के घर तो कभी किसी के घर. पर एक जवान लड़की को यूँ कोई नही छ्चोड़ता. जिसके यहाँ भी रही, वहाँ पर यही कोशिश की गयी के क्यूंकी मैं उनके यहाँ एक बोझ बनकर रह रही हूँ तो मेरा फ़र्ज़ बनता है के मैं ये क़र्ज़ किसी का बिस्तर गरम करके उतारू. किसी ने खुद अपने जिस्म की प्यास मुझसे बुझानी चाही तो किसी ने कोशिश की के मैं कही कोठे पर जाकर बैठ जाऊं. थक हारकर मैं फिर इसी शहर में लौट आई जहाँ मैं पैदा हुई थी और जहाँ मैने अपना सब कुछ खोया था और यहाँ मिल गये मुझे तुम ......"

rajaarkey
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Re: तेरे इश्क़ में Hindi Love Story

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:05


"तो ये है वो लड़की?" निखिल और आदित्य दोनो बैठे चाइ पी रहे थे.

"हां" आदित्या ने निखिल की बात का जवाब दिया "याद है मैं कैसे रोज़ शाम को जीप लेकर गायब हो जाता था?"

"हां याद है. सारे काम एक तरफ करके मिस्टर. आशिक़ रोज़ शाम बिना किसी को कुच्छ बताए जाने कहाँ निकल जाते थे"

"इसके चक्कर में ही जाता था. उस वक़्त एक टेलरिंग स्कूल में जाती थी वो और मैं शाम को उसे देखने वहीं पहुँचता था"

"बढ़िया है, पुराना प्यार मिल गया. वैसे नाम क्या है होने वाली भाभी जी का?" निखिल ने पुछा तो आदित्य चुप हो गया

"तहज़ीब ख़ान" कुच्छ देर बाद उसने जवाब दिया.

निखिल के हाथ से चाइ का कप गिरते गिरते बचा

"तेरा दिमाग़ खराब हो गया है?" निखिल जैसे चिल्ला ही पड़ा "जो तू कह रहा है उस बात का मतलब समझता है?"

"हां समझता हूँ यार पर ....."

"नही तू नही समझता" निखिल ने बात काट दी "बिल्कुल नही समझता. तहज़ीन ख़ान? एक मुस्लिम? साले तेरे बाप को पता चल गया तो गला काट देगा तेरा? और लोग क्या कहेंगे?"

"मुझे लोगों का फरक नही पड़ता" आदित्य ने जवाब दिया

"पड़ना चाहिए. तेरा बाप हिंदू गठन का प्रेसीडेंट है बल्कि ये ग्रूप शुरू ही उन्होने किया है. क्या कहेंगे लोग जब सबको ये पता चलेगा के जो आदमी हिदुत्व की बड़ी बड़ी बातें करता है उसका अपना बेटा एक मुस्सेलमान लड़की के
चक्कर में पड़ा हुआ है?"

"मैने कहा ना निखिल" आदित्य ने फिर आराम से जवाब दिया "मुझे लोगों का कोई फरक नही पड़ता"

"अपने बाप का तो पड़ता है ना या उन्हें भी भूल गया तू चूत के चक्कर में?" निखिल गुस्से में बोला

"निखिल" आदित्य इतनी ज़ोर से चिल्लाया के निखिल 2 कदम पिछे को हो गया "दोस्ती में भी एक हद होती है. मैं उस लड़की से प्यार करता हूँ. तमीज़ से बात कर"
कुच्छ देर तक दोनो फिर चुप हो गये.

"आइ आम सॉरी यार" आदित्य थोड़ी देर बाद बोला.

"अब समझा" निखिल ने अपना सर पकड़ते हुए कहा "साला वो मस्जिद में जाके नमाज़ पढ़ना, धरम को छ्चोड़ कर इंसानियत की बातें करना. गठन की मीटिंग्स में तेरा ना आना .. ये सब उस लड़की के चक्कर में कर रहा है ना
तू?"

"उसके साथ जो हुआ उसका ज़िम्मेदार मैं हूँ निखिल. और बराबर का ज़िम्मेदार है तू साले. वो मुस्लिम कॉलोनी जहाँ वो रहती थी, उस कॉलोनी पर उस रात हमला तूने और मैने लेड किया था. मैं और तू वहाँ आदमी लेकर गये थे. उस रात जितने घर जले, जितने भी लोग मरे, सब तेरे और मेरे इशारे पर हुआ था. उसका घर मेरे कहने पर जला था. मेरा कहने पर उसके घरवालो को ज़िंदा जला दिया गया था"

"उनके बारे में सोच रहा है तू? और उन्होने हमारे घर नही जलाए? उन्होने हमारे हिंदू भाइयों की जान नही ली?" निखिल बोला

"उसने नही ली" आदित्य चेहरा सख़्त करते हुए बोला "वो बेचारी एक मासूम लड़की थी जो टेलरिंग सीख रही थी, अपनी एक टेलरिंग शॉप खोलना चाहती थी. उसने किसी की जान नही ली, किसी का घर नही जलाया"

कुच्छ देर के लिए कमरे में सन्नाटा च्छा गया.

"सोच निखिल" थोड़ी देर बाद आदित्य बोला "हम दोनो के कहने पर उस रात कितने लोग मरे थे. कितनी औरतें मरी थी. कितने मासूम बच्चो को हलाल किया गया था"

rajaarkey
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Re: तेरे इश्क़ में Hindi Love Story

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:05


"ऐसा ही कुच्छ हमारी औरतों और बच्चों के साथ भी हुआ था" निखिल बोला

"नही" आदित्य ने कहा "उन दंगो में ना कोई तेरे घर से मरा था और ना ही मेरे घर से. दोनो तरफ से मरे थे आम लोग जिनको हिंदू-मुस्लिम से ज़्यादा 2 वक़्त की रोटी से मतलब था. और इस देश में 100 करोड़ हिंदू रहते हैं, सब
तेरे अपने हैं क्या? अगर ऐसा है तो जाकर लड़ उन सबके लिए. उन सबको 2 वक़्त की रोटी दे, रोज़गार दिला, नौकरियाँ दिला, किसी के साथ ना-इंसाफी मत होने दे. सब तेरे अपने हैं ना?"

"उसको पता है के तू हिंदू है?"निखिल ने जैसे उसकी बात सुनी ही नही थी

"नही. मैने उसको बताया है के मैं एक मुस्लिम हूँ. आदिल रहमान"

"वाह" निखिल ने ज़ोर से ताली बजाई "हिंदू गठन के प्रेसीडेंट का बेटा एक मुस्लिम. आदिल रहमान. शाबाश मेरे यार. अब आगे क्या प्लान है? अपना लंड भी कटवाओगे क्यूंकी लंड तो तुम उसको दिखाओगे ही किसी ना किसी दिन?"

"निखिल" आदित्य फिर गुस्से में बोला

"और कितना टाइम लगेगा?" आदित्य ने रिसेप्षनिस्ट से पुछा

"बस थोड़ी देर और सर" रिसेप्षन पर खड़ी लड़की ने जवाब दिया वो और तहज़ीब दोनो एक क्लिनिक में बैठे हुए थे.

"बार बार रिसेप्षन पर पहुच जाते हो" आदित्य वापिस आकर बैठा तो तहज़ीब बोली "वो लड़की बहुत पसंद आ रही है क्या?"

"शूट अप" आदित्य ने हँसते हुए जवाब दिया.

कुच्छ दिन पहले दोनो साथ में थे जब तहज़ीब को अचानक चक्कर आए और वो बेहोश होकर गिर पड़ी. उस वक़्त दोनो ने सोचा के शायद गर्मी की वजह से ऐसा हुआ पर फिर ये बार बार होने लगा. तहज़ीब अचानक कुछ करते करते
चक्कर खाकर गिर पड़ती और बेहोश हो जाती.

और फिर उसके सर में दर्द रहने लगा जो धीरे धीरे बढ़ता जा रहा था. सेहत रोज़ाना गिरती जा रही थी.

आँखों के नीचे काले धब्बे बनने शुरू हो गये क्यूंकी सर में दर्द की वजह से वो सो नही पाती थी. आदित्य उसको लेकर एक डॉक्टर के यहाँ पहुँचा. कुच्छ टेस्ट्स कराए गये और आज उनको रिज़ल्ट्स लेने के लिए आना था.

दोनो लॉबी में बैठे डॉक्टर के साथ अपने अपायंटमेंट का इंतेज़ार कर रहे थे.

"आदिल तुमने कभी कोई सपना देखा है?" अचानक तहज़ीब ने पुछा

"हां देखा है. रोज़ रात को आते है अजीब अजीब से ख्वाब"

"अर्रे वो नही" वो खिसक कर उसके करीब होते हुए बोली "मेरा मतलब के ज़िंदगी का ख्वाब. जो तुम अपनी ज़िंदगी में हासिल करना चाहते हो"

"हाँ है ना. तुम" आदित्य ने मुस्कुरा कर कहा
क्रमशः.......................................

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