एक अनोखा बंधन- Hindi Love Story

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rajaarkey
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Re: एक अनोखा बंधन- Hindi Love Story

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:24

Jish din zarina ko jaana hota hai, us se peechli raat dono raat bhar baate

karte rahte hain. Kabhi college ke dino ki, kabhi movies ki aur kabhi cricket

ki. kisi na kisi baat ke bahaane vo ek dusre ke saath baithe rahte hain. man hi man dono chaahte hain ki kaash kisi tarah baat pyar ki ho to acha ho. Par billi ke gale mein ghanti baandhe kaun ? Dono pyar ko dil mein dabaaye, duniya bhar ki baate karte rahte hain.

Subah 6 baje ki train thi. vo dono 4 baje tak baate karte rahe. Baate karte-karte unki aankh lag gayi aur dono baithe-baithe sofe par hi sho gaye.

koyi 5 baje Aditya ki aankh khulti hai. use apne paanv par kuch mahsus hota hai

Vo aankh khol kar dekhta hai ki zarina ne uske pairo par maatha tika rakha hai

“Arey!!!!!! ye kya kar rahi ho?”

“apne khuda ki ibaadat kar rahi hun, tum na hote to main aaj hargiz jeenda na hoti”

“Main kaun hota hun zarina, sab us bhagvaan ki kripa hai, chalo jaldi taiyaar ho jao, 5 baj gaye hain, hum kahin late na ho jaayein”

Zarina vaha se uth kar chal deti hai aur man hi man kahti hai, “mujhe rok lo

aditya”

“Kya tum ruk nahi sakti zarina...bahut acha hota jo hum hamesa ish ghar mein ek saath rahte.” aditya bhi man mein kahta hai.

Ek anokha bandhan dono ke beech jud chuka hai.

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5:30 baje aditya, zarina ko apni bike par railway station ley aata hai.

Zarina ko rail mein baitha kar aditya kahta hai, “ek surprise dun”

“Kya? ”

“Main bhi tumhaare saath aa raha hun”

“Sach!!!!”

“Aur nahi to kya… main kya aise maahol mein tumhe akele delhi bhejunga”

“Tum insaan ho ki khuda…kuch samajh nahi aata”

“Ek maamuli sa insaan hun jo tumhe…………”

“Tumhe… kya?” zarina ne pyar se pucha

“Kuch nahi”

Aditya man mein kahta hai, “……….jo tumhe bahut pyar karta hai”

Jo baat zarina sun-na chaahti hai, vo baat aditya man mein soch raha hai, aisa ajeeb pyar hai ushka.

Train chalti hai. Aditya aur zarina khub baate karte hain….baato-baato mein kab vo delhi pahunch jaate hain….unhe pata hi nahi chalta

Train se utarte vakt zarina ka dil bhaari ho uthta hai. Vo sochti hai ki pata

nahi ab vo aditya se kabhi mil bhi paayegi ya nahi.

“Arey soch kya rahi ho…utro jaldi” aditya ne kaha.

Zarina ko hosh aata hai aur vo bhaari kadmo se train se utarti hai.

“Chalo ab silampur ke liye auto karte hain” aditya ne ek auto waale ko ishaara kiya.

“Kya tum mujhe mausi ke ghar tak chod kar aaoge?”

“Aur nahi to kya… isi bahaane tumhaara saath thoda aur mil jaayega”

Zarina ye sun kar muskura deti hai.

Aditya ke ishaare se ek auto waala ruk jaata hai aur dono usme baith kar silampur ki taraf chal padte hain.

kramashah............


rajaarkey
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Re: एक अनोखा बंधन- Hindi Love Story

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:26

एक अनोखा बंधन----3

गतान्क से आगे.............

ज़रीना रास्ते भर किन्ही गहरे ख़यालो में खोई रहती है. अदित्य भी चुप रहता है.

एक घंटे बाद ऑटो वाला सिलमपुर की मार्केट में ऑटो रोक कर पूछता है, “कहा जाना है… कोई पता-अड्रेस है क्या?”

“ह्म्म…..भैया यही उतार दो. आदित्य, मौसी का घर सामने वाली गली में है” ज़रीना ने कहा.

"शूकर है तुम कुछ तो बोली." अदित्य ने कहा.

"तुम भी तो चुप बैठे थे मोनी बाबा बन कर...क्या तुम कुछ नही बोल सकते थे."

"अछा-अछा अब उतरो भी...ऑटो वाला सुन रहा है." दोनो के बीच तकरार शुरू हो जाती है.

ज़रीना ऑटो से उतरती है. "अदित्य आइ आम सॉरी पर तुम कुछ बोल ही नही रहे थे."

"ठीक है कोई बात नही. शांति से अपने घर जाओ...मुझे भूल मत जानता."

"तुम्हे भूलना भी चाहूं तो भी भुला नही पाउन्गि"

"देखा हो गयी ना अपनी बाते शुरू." अदित्य ने मुस्कुराते हुवे कहा.

ज़रीना ने उस गली की और देखा जिसमे उसकी मौसी का घर था और गहरी साँस ली. "चलु मैं फिर"

थोड़ी देर दोनो में खामोसी बनी रहती है. आदित्य ज़रीना को देखता रहता है. "जाते जाते कुछ कहोगी नही" अदित्य ने कहा.

“आदित्य अब क्या कहूँ…तुम्हारा सुक्रिया करूँ भी तो कैसे, समझ नही आता”

“सुक्रिया उस खुदा का करो जिसने हमे इंसान बनाया है…. मेरा सुक्रिया क्यों करोगी?”

“कभी खाना बुरा बना हो तो माफ़ करना, और जल्दी शादी कर लेना, तुम अकेले नही रह पाओगे”

“ठीक है..ठीक है….अब रुलाओगि क्या.. चलो जाओ अपनी मौसी के घर”

“ठीक है अदित्य अपना ख्याल रखना और हां मैने जो उस दिन तुम्हारे सर पर फ्लवर पोट मारा था उसके लिए मुझे माफ़ कर देना”

“और उस हॉकी का क्या?”

ज़रीना शर्मा कर मुस्कुरा पड़ती है और कहती है, “हां उसके लिए भी”

“ठीक है बाबा जाओ अब…. लोग हमें घूर रहे हैं”

ज़रीना भारी कदमो से मूड कर चल पड़ती है और अदित्य उसे जाते हुवे देखता रहता है.

वो उसे पीछे से आवाज़ देने की कोशिस करता है पर उसके मूह से कुछ भी नही निकल पाता.

ज़रीना गली में घुस कर पीछे मूड कर अदित्य की तरफ देखती है. दोनो एक दूसरे को एक दर्द भरी मुस्कान के साथ बाइ करते हैं. उनकी दर्द भारी मुस्कान में उनका अनौखा प्यार उभर आता है. पर दोनो अभी भी इस बात से अंजान हैं कि वो ना चाहते हुवे भी एक अनोखे बंधन में बँध चुके हैं. प्यार के बंधन में.

जब ज़रीना गली में ओझल हो जाती है तो अदित्य मूड कर भारी मन से चल

पड़ता है.

“पता नही कैसे जी पाउन्गा ज़रीना के बिना मैं? काश! एक बार उसे अपना दिल चीर कर दीखा पाता…क्या वो भी मुझे प्यार करती है? लगता तो है. पर कुछ कह नही सकते”अदित्य चलते-चलते सोच रहा है.

rajaarkey
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Re: एक अनोखा बंधन- Hindi Love Story

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:26

अचानक उसे पीछे से आवाज़ आती है

“आदित्य!!! रूको….”

आदित्य मूड कर देखता है.

उसके पीछे ज़रीना खड़ी थी. उसकी आँखो से आँसू बह रहे थे.

“अरे तुम रो रही हो… तुम्हे तो अपने, अपनो के पास जाते वक्त खुस होना

चाहिए”

“तुम से ज़्यादा मेरा अपना कौन हो सकता है अदित्य… मुझे खुद से दूर मत करो”

आदित्य की भी आँखे छलक उठती हैं और वो दौड़ कर ज़रीना को गले लगा कर

कहता है, “क्यों जा रही थी फिर तुम मुझे छ्चोड़ कर?”

“तुम मुझे रोक नही सकते थे?” ज़रीना ने गुस्से में पूछा.

“रोक तो लेता पर यकीन नही था कि तुम रुक जाओगी”

“तुम कह कर तो देखते” ज़रीना सुबक्ते हुवे बोली.

“ओह्ह…ज़रीना आइ लव यू…”

“पता नही क्यों.... बट आइ लव यू टू अदित्य” ज़रीना ने कहा.

“मुझे कुछ समझ नही आ रहा था कि वापिस कैसे जाउन्गा”

“और मैं सोच रही थी कि तुम्हारे बिना कैसे जी पाउन्गि”

“अछा हुवा तुम वापिस आ गयी वरना देल्ही से मेरी लाश ही जाती”

“ऐसा मत कहो… मैं वापिस क्यों नही आती. अम्मी,अब्बा और फ़ातिमा को तो खो चुकी हूँ, तुम्हे नही खो सकती अदित्य”

उन्हे उस पल किसी बात का होश नही रहता. प्यार और होश शायद मुस्किल से साथ चलते हैं.

“पता है…मैं तुम्हे बिल्कुल लाइक नही करता था”

“मैं भी तुमसे बहुत नफ़रत करती थी”

“ऐसा कैसे हो गया? ये सब सपना सा लगता है” अदित्य ने कहा

“ये तो पता नही…पर मुझे हमेशा अपने पास रखना अदित्य, तुम्हारे बिना मैं नही जी सकती”

“तुम मेरी जींदगी हो ज़रीना, मेरे पास नही तो और कहा रहोगी”

“पर अब हम जाएँगे कहा…. मुझे नही लगता कि हम दोनो उस नफ़रत के माहॉल में रह पाएँगे?”

“चिंता मत करो, प्यार हुवा है तो इस प्यार के लिए कोई ना कोई सुकून भरा

आसियाना भी ज़रूर मिल जाएगा”

दोनो हाथो में हाथ ले कर चल पड़ते हैं किसी अंजानी राह पर जिसकी

मंज़िल का भी उन्हे नही पता. प्यार की राह पर मंज़िल की वैसे परवाह भी कौन करता है.

जिस तरह नदी पहाड़ को चीर कर अपना रास्ता बना लेती है. उसी तरह प्यार

भी इस कठोर दुनिया में अपने लिए रास्ते निकाल ही लेता है. तभी शायद

इतनी नफ़रत के बावजूद भी दुनिया में प्यार… आज भी ज़ींदा है.

-- समाप्त.........


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