प्रेम कहानी--पूर्णा
वह गोरी चंचल हिरणी जैसी मदमदस्त चाल वाली लड़की का नाम पूर्णा था. पूर्णा का मतलब कई प्रकार से निकाला जा सकता है. एक तो वह पूर्ण रूप से अपने मदमस्त यौवन की दहलीज पर आ खड़ी होने के कारण एक पूर्ण महिला बन चुकी थी. गरीबी और लाचारी यही शायद उसकी मज़बुरी रही होगी तभी तो वह अपने से कई साल बड़े उस पौढ़ व्यक्ति से शादी कर चुकी थी. जिस समाज मे ऐसे रिश्तो को जोडऩे की प्रक्रिया को गंधर्व विवाह कहा जाता है उसे आम बोलचाल की भाषा में पाट भी कहते है. पूर्ण की आखिर क्या मज़बुरी थी यह तो वही जाने लकिन लोगो को ऐसा कहते जरूर सुना था कि यह शादी नहीं बल्कि सौदा था. पूर्णा की शादी को लेकर उसके समाज के कथित समाज सुधारक लोग उसे उस व्यक्ति के चुंगल से बलात् पूर्वक छुड़ा कर अपने साथ तो लाये लेकिन पूर्णा का अब क्या होगा कोई नहीं जानता था. पूर्णा का मामला किसी दुसरी जाति के पौढ़ व्यक्ति के साथ कथित शादी – विवाह या उसकी खरीदी – बिक्री से जुड़ा हुआ प्रतीत होता था. एश्चवर्या राय की हमशक्ल कहलाने वाली इस कजरारी आंखो वाली पूर्णा पर हर किसी का दिल आना ठीक उसी प्रकार था जिस प्रकार जैसा
अकसर जलेबी को देखते ही मुंह से लार टपकने लगती है. उसे देख कर अगर कोई आंह न भरे तो उस हिरणी की बलखाती जवानी का एक प्रकार से निरादर
होगा. आज उसे समाज के ठेकेदार समाज के मान – सम्मान की दुहाई देकर जबरन विवाह मंडप से उठा कर तो लेकर आ गये लेकिन अब समस्या उठी की आखिर
वह रहेगी कहाँ…..? हर कोई पूर्णा को अब अपने घर रखने से इंकार कर रहा था. जवानी की दहलीज पर पांव रख चुकी पूर्णा के पांव में कब कोई गिर पड़े इस बात का हर किसी का अंदेशा था. शायद एक कारण यह भी रहा हो कि कोई भी परिवार वाल व्यक्ति उसे अपने साथ अपने घर ले जने से मुंह चुरा रहा था. पूर्णा इन सब बातो से बेखबर थी. उसका दुसरा विवाह न करने देने वाले समाज के ठेकेदार एक – एक करके खिसकने लगे. आखिर में उसे एक घर में कुछ समय के लिए ठहराने का वादा करके समाज की पंचायत में उसका फैसला कर देने की बात करके वे लोग भी नौ – दो ग्यारह हो गये जो कि समाज की बेटियो की दुहाई का दंभ भरते थे. जिस व्यक्ति के घर पूर्णा रूकी थी उस घर के लोगो ने बेसहारा – बेसहाय – गरीब – लाचार स्वजाति लड़की को यह सोच कर पनाह दी थी कि उसका दुख दर्द कम हो जाये. जब पूर्णा दर्द के रूप में नासूर बनने लबी तो अब उनके लिए भी पूर्णा बोझ सी लगने लगी. दो चार नहीं बल्कि जब पूरे एक पखवाड़ा बीत गया लेकिन न तो समाज की पंचायत बैठी और न लोग उसकी सुध लेने आये. ऐसे में अब पूर्णा को लेकर उस घर में भी कोहराम मचना स्वभाविक था. अब पूर्णा को पनाह देने वाले पर भी ऊंगलियां उठनी शुरू हो गई. पूर्णा को लेकर सबसे पहले शरणदाता की धर्मपत्नि ने ही बगावत का डंका बजा डाला. इधर उस महिला को भी चिंता सताने लगी थी कि कहीं उसका पति कोई दुसरी सौतन तो घर में नहीं ले आया. सौत की डाह बहुंत बुरी होती है. जवान बेटे को छोड़ अब पति पर ही शक का बीज अंकुरित होकर पौधा बन चुका था. पूर्णा और अपने जवान बेटे के बीच सिमटी दूरी से बेखबर मां को अपने पति की चिंता और सौत की आशंका ने बीमार बना डाला था. इधर अनाथ पूर्णा का जब भरा -पूरा परिवार एवं हम उम्र प्रेमी मिल गया तो दोनो की बीच की दूरियां सिमटने लगी. घर परिवार में अब पूर्णा को लेकर मची महाभारत से तंग आकर एक दिन उसका शरणदाता समाज के उन ठेकेदारो के पास जा पहुंचा जिन्होने उनके शांत – खुशहाल जीवन में भूचाल ला दिया था. पत्नि के रात -दिन ताने और बाने से तंग आकर उसने भी पूर्णा को अपने घर से बाहर निकालने का मन बना लिया. एक बार फिर पूर्णा सड़क पर आ गई. कल बाजार में बिक चुकी पूर्णा को आज फिर किसी नये खरीददार का इंतजार था क्योकि वह अपना पूरा जीवन आखिर काटे भी तो किसके सहारे…..
पूर्णा का जैसा नाम वैसा काम था. चंचल हिरणी और कलकल बहती नदी की तरह थी . उसका कोई ठहराव नहीं थी इसलिए उसे उस सागर की ओर बहना था जिससे उसका मिलन होगा. सागर की खोज में पूर्णा बह तो निकली लेकिन वह आखिर क्या सागर से मिली भी या नहीं किसी को कुछ पता नहीं. पूर्णा को पूरा यकीन था कि उसका वह हम उम्र पे्रमी हाथ जरूर थाम लेगा लेकिन माता – पिता पर आश्रित वह उसका हाथ थामना तो दूर उससे जाते वक्त आंख तक मिलाने को तैयार नहीं था. ऐसे में आंखो में उम्मीद और आसुंओ का समुन्दर लिये पूर्णा ने अपना सामान समेटा और उस घर को भी बिदा करके चली गई. उसे पता भी नहीं चला कि उसने कब सवा महिने उस घर में बीता दिये जहां पर उसको लेकर आये दिन लड़ाई – झगड़ा होता रहता था. पूर्णा कौन थी कोई नहीं जानता लेकिन जब उससकी एक पौढ़ व्यक्ति से शादी हो रही ी तो उसे रोकने के लिए पूरा कथित समाज लावालश्कर के साथ जमा हो गया था. ऐसे लग रहा था कि भीड़ की शक्ल में आये इन्ही लोगो में से किसी के परिवार की सदस्य है पूर्णा लेकिन सच्चाई कुछ और ही थी जिसे छुपाने का प्रयास किया जा रहा था. आज पूर्णा को गये पच्चीस साल हो गये. वह जिंदा भी है या नहीं कोई नहीं जानता. पूर्णा की मदमस्त जवानी और उसका अल्हड़पन हर किसी को अपनी ओर मोहित कर देता था. काफी दिनो बाद आज जब दक्षिण भारत की आइटम गर्ल सेक्स बम कही जाने वाली अभिनेत्री स्वर्गीय सिल्क स्मिता की टीवी पर चल रही फिल्म में उसके चेहरे की झलक एवं आंखो में दिख रही अपील को देख कर उसे अपनी पूर्णा की बरबस याद आ गई. अपनी पूर्व प्रेमिका एवं पहले प्यार को याद कर जब उसकी आंखो से आंसु बहने लगे तो पास में बैठी पत्नि ने आखिर सवाल दाग ही दिया कि ”क्या हुआ आप रो क्यों रहे हो………! अपनी के द्वारा बहते आंखो के आंसुओ के पीछे की चोरी पकडने के बाद उसने बहाना बनाया कि ”कुछ नहीं आंख में कुछ चला गया ……!”
पत्नि ने देरी किये बिना अपने साड़ी के पल्लू से आंखो को पोछ कर आंखो से कुछ निकालना चाहा लेकिन जब आंखो से कुछ नहीं निकला तो पत्नि को भी आश्चर्यचकित रहना पड़ा. आखिर पति को रोता देख पत्नि ने एक बार फिर सवलो की तोप उसकी ओर दागी और वह बोल पड़ी ”कहीं उस सौतन की याद तो नहीं आ गई जिसके पीछे अभी तक अपना सब कुछ लुटाते चले आ रहे थे……!”
पत्नि के मुंह से कड़वे शब्दो को सुन कर वह अपने कमरे से बाहर की ओर निकल पड़ा. जब देर रात तक पति घर पर नहीं आया तो पत्नि को भी कुछ शक हुआ और उसने सभी जगह फोन काल खडख़ड़ा डाले.
प्रेम कहानी--पूर्णा
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