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Re: मायावी दुनियाँ

Posted: 22 Dec 2014 21:31
by Jemsbond
उस समय क्लास में गुप्ता जी अंग्रेजी पढ़ा रहे थे जब चपरासी ने वहाँ प्रवेश किया। गुप्ता जी ने पढ़ाना छोड़कर प्रश्नात्मक दृष्टि से चपरासी को देखा।
''मास्टर साहब, रामू को प्रिंसिपल मैडम बुला रही हैं।
रामू बने सम्राट ने हैरत से चपरासी को देखा। भला प्रिंसिपल को उससे क्या काम पड़ गया था।

''रामू!" गुप्ता जी ने रामू को पुकारा, ''जाओ, तुम्हें प्रिंसिपल मैडम बुला रही हैं।"
रामू अपनी सीट से उठ खड़ा हुआ। एक ही जगह बैठे अमित, गगन और सुहेल ने एक दूसरे को राज़भरी नज़रों से देखा।
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जब सम्राट प्रिंसिपल के रूम में दाखिल हुआ तो वहाँ अग्रवाल सर पहले से मौजूद थे।
''आओ रामकुमार!" प्रिंसिपल ने बड़े प्यार से रामू को बुलाया। रामू बना सम्राट आगे बढ़ा।
''मुझे यह सुनकर ख़ुशी हुई कि तुमने अग्रवाल सर को चैलेंज किया है कि तुम इन्हें गणित में हरा सकते हो।" प्रिंसिपल भाटिया ने अग्रवाल सर की ओर देखकर कहा। अग्रवाल सर रामू को व्यंगात्मक तरीके से देख रहे थे।

''मैंने!" हैरत से सम्राट ने कहा। फिर तुरंत ही सिचुएशन उसकी समझ में आ गयी। यानि गगन वगैरा ने अग्रवाल सर और प्रिंसिपल के कान भरे थे।
''चलो अच्छा है। इससे मेरा ही मकसद हल होगा।" उसने सोचा।
''जवाब दो रामकुमार।" प्रिंसिपल भटिया ने उसे टोका।
''मेरे दिल ने कहा था, इसलिए मैंने ऐसा चैलेंज किया।" रामू ने जवाब दिया।

अग्रवाल सर का चेहरा तपते लोहे की तरह लाल हो गया जबकि मैडम भाटिया अपनी कुर्सी से गिरते गिरते बचीं।
''मैं इसका चैलेंज कुबूल करता हूँ।" अग्रवाल सर ने भर्राई आवाज में कहा, ''लेकिन मेरी एक शर्त है।"
''कैसी शर्त?" प्रिंसिपल ने पूछा।
''अगर ये सवाल नहीं हल कर पाया तो स्कूल के पीछे बह रहे गन्दे नाले में इसे डुबकी लगानी पड़ेगी।"
''यह तो बहुत सख्त सजा है अग्रवाल जी...!" प्रिंसिपल ने कहना चाहा किन्तु रामू बने सम्राट ने बीच में बात काट दी, ''मुझे शर्त मंजूर है।"
''ठीक है। मैं क्वेश्चन पेपर सेट करता हूँ।" अग्रवाल सर उठ खड़े हुए।
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''यह तुमने क्या किया रामू! माना कि तुम मैथ में तेज हो गये हो। लेकिन इतने भी नहीं कि अग्रवाल सर को चैलेंज कर दो। वो अपने जमाने के गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं।" नेहा इस समय रामू से बात कर रही थी।
''देखा जायेगा।" लापरवाही के साथ कहा रामू बने सम्राट ने।
''सोचता हूँ, पीछे के नाले में एकाध बाल्टी सेन्ट डलवा दूं।" अचानक पीछे से एक आवाज उभरी। दोनों ने चौंक कर देखा गगन, अमित और सुहेल की तिकड़ी थोड़ी दूर पर मौजूद थी। यह जुमला अमित ने कहा था।
''हाँ। वरना कोई बेचारा बदबू से मर जायेगा।" सुहेल ने जवाब दिया था।

''चलो यहाँ से चलते हैं।" नेहा ने रामू का हाथ पकड़कर कहा। दोनों वहाँ से चलने को हुए। उसी समय गगन ने सामने आकर उनका रास्ता रोक लिया।
''हाय नेहा!" उसने नेहा को मुखातिब किया।
''हाय!" बोर अंदाज में जवाब दिया नेहा ने।
''क्या बात है। आजकल तो लिफ्ट ही नहीं दे रही हो।" गगन ने शिकायत की।

''लिफ्ट खराब हो गयी है। तुम सीढि़यों का इस्तेमाल कर सकते हो।" गंभीर स्वर में नेहा ने जुमला उछाला। आसपास मौजूद दूसरे लड़कों ने मुस्कुराहट छुपाने के लिए अपने मुंह पर हाथ रख लिए।
गगन कोई सख्त जुमला कहने जा रहा था। उसी समय मिसेज कपूर उधर से गुजरने लगीं। फिर इन लड़कों को भीड़ लगाये हुए देखा तो टोक भी दिया, ''ऐ तुम लोगों ने यहाँ भीड़ क्यों लगा रखी है। जाओ अपनी क्लास में।"

''मैडम, आज आपके पास बहुत देर से फोन नहीं आया।" अमित ने टोक दिया। मिसेज कपूर इतिहास की शिक्षक थीं और मोबाइल पर बात करने के लिए बदनाम थीं। रांग नंबर भी लगता था तो फोन पर ही उसका पूरा इतिहास खंगाल डालती थीं।
''क्या बताऊं।" मिसेज कपूर के चेहरे से उदासी झलकने लगी, ''मेरे पास एक हथौड़ा है जिससे महान स्वतन्त्रता सेनानी चन्द्रशेखर आजाद ने अपनी बेडि़यां तोड़ी थीं। यह उस जमाने की बात है जब वह अंग्रेजों की जेल तोड़कर फरार हुए थे...।"

''मैडम मोबाइल की बात...।" सुहेल ने बीच में टोका।
''वही बता रही हूँ नालायक।" मैडम कपूर ने उसे घूरा, ''आज सुबह की बात है। मेरे भांजे ने वही हथौड़ा मेरी सेफ से निकाल लिया, और मेरे मोबाइल को उससे पीट डाला। तभी से उसकी आवाज गायब हो गयी है।" मैडम कपूर पर्स से मोबाइल निकालकर सबको दिखाने लगी।
''मैं देखता हूँ।" रामू बने सम्राट ने मैडम कपूर के हाथ से मोबाइल ले लिया और उसे खोल डाला।
''क्या करता है बे। क्या मैडम के फोन को कब्र में पहुंचा देगा।" सुहेल ने रामू को आँखें दिखाईं । मिसेज कपूर भी सकपका गयी थीं।

लेकिन इन सब से बेपरवाह रामू ने जेब से पेन निकाला और उसकी निब से मोबाइल के सर्किट से छेड़छाड़ करने लगा। चार पाँच सेकंड बाद उसने मोबाइल बन्द करके मिसेज कपूर की ओर बढ़ा दिया।
''मोबाइल ठीक हो गया।"
''क्या!" मिसेज कपूर के साथ साथ वहाँ मौजूद सारे लड़के उछल पड़े।
मिसेज कपूर ने जल्दी जल्दी अपने फोन को चेक किया।
''ये तो चमत्कार हो गया। मेरा फोन बिल्कुल ठीक हो गया। जियो मेरे लाल।" मिसेज कपूर ने तड़ाक से रामू के गालों पर एक चुंबन जड़ दिया और रामू मुंह बनाकर अपना गाल सहलाने लगा।

''कमाल है, हमें पता ही नहीं था कि ये ससुरा मैकेनिक भी है।" मिसेज कपूर के आगे बढ़ने के बाद अमित बोला।
इसके बाद वहां की भीड़ तितर बितर हो गयी, क्योंकि उन्होंने देख लिया था कि प्रिंसिपल मैडम भाटिया राउंड पर निकल चुकी हैं।

उधर असली रामू के सामने एक के बाद एक इस तरह मुसीबतें आकर गिर रही थीं जैसे पतझड़ के मौसम में पत्ते गिरा करते हैं। इतनी समस्याएं तो गणित के सवाल हल करने में नहीं झेलनी पड़ी थीं जितनी जीवन की उस पहेली को हल करने में दुश्वारियां आ रही थीं।
जिस छत पर भी वह पहुंचता था, वहीं से उसे खदेड़ दिया जाता था। पतंग की एक डोर उसकी नाक को भी घायल कर चुकी थी। दौड़ते भागते दोनों टाँगें बुरी तरह दुख रही थीं।

डार्विन ने कहा था इंसान के पूर्वज बंदर थे। लेकिन अगर ऐसा था तो इंसानों को बंदरों की इज्जत करनी चाहिए। लेकिन यहां इज्जत तो क्या मिलती उलटे मार पीट कर भगाया जा रहा था।
फिर एक छत पर पहुंच कर उसे ठिठक जाना पड़ा। उस छत की मुंडेर पर बैठी एक बंदरिया उसे प्रेमभरी नज़रों से देख रही थी।

बंदर बना रामू घबराकर साइड से कटने का रास्ता ढूंढने लगा। अब बंदरिया धीरे धीरे उसके करीब आ रही थी। और अपनी भाषा में कुछ कह भी रही थी। शायद किसी मुम्बइया फिल्म का रोमांटिक मीठा गीत गा रही थी।
लेकिन रामू के दिल से तो बेतहाशा कड़वी गालियां ही निकल रही थीं।
बंदरिया ने उसपर छलांग लगाईं और बंदर बना रामू परे हो गया। नतीजे में वह मुंह के बल गिरी धड़ाम से।

बंदरिया को शायद रामू से ऐसी उम्मीद नहीं थी। इसलिए वह थोड़ा गुस्से से और थोड़ा हैरत से रामू को देखने लगी। फिर उसने सोचा कि शायद यह शरारती बंदर उससे खेलना चाहता है। इसलिए इसबार उसने संभल संभल कर कदम बढ़ाना शुरू कर दिया।
इसबार भी रामू ने सरकना चाहा लेकिन बंदरिया ने झट से उसकी पूंछ पर पैर रख दिया। रामू ने उससे अपनी पूंछ छुड़ाने के लिए जो़र लगाना शुरू कर दिया। बंदरिया को भी शरारत सूझी और उसने झट से पूंछ पर से पैर उठा लिया। नतीजे में एक जोरदार झटके के साथ रामू सामने मौजूद खम्भे से टकरा गया और उसके सामने तारे नाच गये।

अब वह भी तैश में आ गया और उस नामाकूल बंदरिया को सबक सिखाने के लिए उसकी तरफ बढ़ा।
बंदरिया ने झट से अपने मुंह पर हाथ रख लिया। पता नहीं डर की वजह से, या शरमा कर।
रामू ने उसे थप्पड़ जड़ने के लिए अपना हाथ उठाया, लेकिन बीच ही में किसी के द्वारा थाम लिया गया।
उसने घूम कर देखा, ये कौन हीरो बीच में टपक पड़ा था। देखकर उसकी रूह फना हो गयी। क्योंकि वह उससे भी तगड़ा बंदर था और इस तरह उसे घूर रहा था मानो अभी उसे कच्चा चबा जायेगा।
फिर उस बदमाश ने उसकी पिटायी शुरू कर दी। बगल में खड़ी बंदरिया उसकी इस दुर्दशा पर खी खी करके हंस रही थी।
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यह एक अनोखी परीक्षा थी, जिसमें परीक्षा देने वाला केवल एक था और परीक्षक भी केवल एक। लेकिन देखने वाले बेशुमार थे। रामू यानि की सम्राट एक कुर्सी पर बैठा हुआ अग्रवाल सर के आने का इंतिजार कर रहा था। उसके सामने नोटबुक खुली रखी थी। जिसमें उसे अग्रवाल सर के सवालों के जवाब लिखने थे।
उससे थोड़ी दूर पर बाकी स्टूडेन्टस की भीड़ लगी हुइ थी। उनके पास कुछ टीचर्स भी मौजूद थे।

अचानक रामू ने पेन उठाया और नोटबुक पर तेजी से कुछ लिखना शुरू कर दिया।
''क्या लिख रहे हो रामू?" वहाँ मौजूद मिसेज कपूर ने टोका।
''अग्रवाल सर के प्रश्नों के जवाब।" रामू ने जवाब दिया और वहाँ मौजूद सारे स्टूडेन्ट एक दूसरे का मुंह देखने लगे।

''लेकिन अग्रवाल सर तो अभी अपने सवाल लेकर आये ही नहीं।" हैरत से कहा फिजि़क्स के टीचर सक्सेना सर ने।
''मैं जानता हूं वह कौन से प्रश्न लाने वाले हैं।" रामू ने अपना लिखना जारी रखा। सारे स्टूडेन्ट एक दूसरे से कानाफूसियां करने लगे थे। लग रहा था हाल में ढेर सारी मधुमक्खियाँ भिनभिना रही हैं।
''तुम्हें किसने बताया उन प्रश्नों के बारे में ?" सक्सेना सर ने फिर पूछा।
''किसी ने नहीं।" रामू का जवाब पहले की तरह संक्षिप्त था।

उसी समय वहाँ अग्रवाल सर ने प्रवेश किया। उनके हाथ में प्रश्न पत्र भी मौजूद था।
''ये लो और लिखना शुरू करो।" अग्रवाल सर ने प्रश्नपत्र रामू की तरफ बढ़ाया।
जवाब में रामू ने नोटबुक अग्रवाल सर की तरफ बढ़ा दी।
''ये क्या है?" अग्रवाल सर ने नोटबुक की तरफ नज़र की।
''आपके प्रश्नों के जवाब।"

''क्या? लेकिन मैंने तो अभी प्रश्नपत्र दिया ही नहीं।" हैरत का झटका लगा अग्रवाल सर को।
''मुझे मालूम था कि आप कौन कौन से प्रश्न पत्र देने वाले हैं। इसलिए वक्त न बरबाद करते हुए मैंने जवाब पहले ही लिख दिये।"
अविश्वसनीय भाव से पहले अग्रवाल सर ने रामू का चेहरा देखा और फिर नोट बुक पढ़ने लगे। जैसे जैसे वह आगे पढ़ रहे थे उनकी आँखें फैलती जा रही थीं।

''क्या बात है अग्रवाल साहब?" मिसेज कपूर ने पूछा।
''यह कैसे हो सकता है!"
''क्या?" सक्सेना सर भी उधर मुखातिब हो गये।
''इसने बिल्कुल सही जवाब लिखे हैं। दो ही बातें हो सकती हैं। या तो इसकी किसी ने मदद की है या फिर..!"
''या फिर क्या अग्रवाल साहब?" सक्सेना सर ने पूछा।

''या फिर इसके अंदर कोई दैवी शक्ति आ गयी है।"
''मुझे तो यही बात सही लगती है!" मिसेज कपूर आँखें फैलाकर बोली, ''कल इसने मेरा मोबाइल चुटकियों में सही कर दिया था। इसमें जरूर कोई दैवी शक्ति घुस गयी है।"
''रामू तुम खुद बताओ, क्या है असलियत?" सक्सेना सर ने रामू की तरफ देखा।
रामू बना सम्राट कुछ नहीं बोला। बस मन्द मन्द मुस्कुराता रहा।

Re: मायावी दुनियाँ

Posted: 22 Dec 2014 21:32
by Jemsbond
घण्टी की आवाज पर मिसेज वर्मा ने उठकर दरवाजा खोला। सामने उनके पड़ोसी मलखान सिंह मौजूद थे। हाथ में मिठाई का डब्बा लिये हुए।
''नमस्कार जी। लो जी मिठाई खाओ।" मलखान सिंह ने जल्दी से मिठाई का डब्बा मिसेज वर्मा की तरफ बढ़ाया।
मिसेज वर्मा ने इस तरह मलखान सिंह की तरफ देखा मानो उनकी दिमागी हालत पर शक कर रही हो।

किसी को एक गिलास पानी भी न पिलाने वाले मक्खीचूस मलखान सिंह के हाथ में जो मिठाई का डब्बा था उसमें काफी मंहगी मिठाइयां थीं।
''आपके यहां सब ठीक तो है?" मिसेज वर्मा ने हमदर्दी से पूछा।
''अरे अपने तो वारे न्यारे हो गये। और सब तुम्हारे सुपुत्र की वजह से हुआ है।" मलखान जी ख़ुशी से झूम रहे थे।

''मैं कुछ समझी नहीं। ऐसा क्या कर दिया रामू ने।" चकराकर पूछा मिसेज वर्मा ने।
''उसने परसों मुझे राय दी कि जॉली कंपनी के शेयर खरीद लो। फायदे में रहोगे। मैंने खरीद लिये। आज तीसरे दिन उसके शेयरों के भाव तीन गुना बढ़ चुके हैं। मैं तो मालामाल हो गया। कहाँ है वो, मैं उसको अपने हाथों से मिठाई खिलाऊँगा।"

''उसने जरूर आपको राय दी होगी। इधर कई दिनों से उसका दिमाग कुछ गड़बड़ चल रहा है। मैं तो उनसे भी कह चुकी हूं लेकिन वो कुछ सुनते ही नहीं।"
''बहन जी, आपके लड़के में जरूर कोई पुण्य आत्मा घुस गयी है।"
''मतलब उसके अंदर कोई भूत प्रेत घुस गया है। भगवान, तूने मुझे ये दिन भी दिखाना था।" फिर मिसेज वर्मा अपनी ही परेशानी में पड़ गयी और मलखान सिंह मौका देखकर वहां से खिसक लिए।
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बंदर रामू इस समय एक पाइप के अंदर दुबका बैठा था। उसका पूरा जिस्म फोड़े की तरह दर्द कर रहा था। उस नासपीटे बंदरिया के आशिक ने बुरी तरह उसकी पिटाई की थी और फिर दोनों बाहों में बाहें डाले वहां से कूद कर नज़दीक के पार्क में निकल गये थे। वह वहीं आंसू बहाता हुआ बैठा रह गया था। गणित से जी चुराने की इतनी बड़ी सजा उसे मिलेगी, यह तो उसने सोचा ही नहीं था।

जब उसे थोड़ा सुकून हुआ तो उसने पाइप के अंदर झांका। काफी लम्बा पाइप मालूम हो रहा था। उसे काफी दूर पर रौशनी दिखाई दी। 'यानि वह पाइप का दूसरा सिरा है। उसने सोचा और धीरे धीरे दूसरी तरफ बढ़ने लगा।
जल्दी ही वह दूसरे सिरे पर पहुंच गया। यह सिरा एक गली में खुलता था। गली के उस पार एक और मकान दिखाई दे रहा था।

उसने छलांग लगाई और उस मकान की छत पर पहुंच गया।
''यह मकान तो जाना पहचाना लगता है।" उसने चारों तरफ देखा, दूसरे ही पल उसके दिमाग को झटका सा लगा, ''अरे ये तो मेरा ही घर है।
उसकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। उसका मन चाहा दौड़कर नीचे जाये और अपने मम्मी पापा से लिपट जाये।

लेकिन दूसरे ही पल उसे ध्यान आ गया कि वह इस समय रामू नहीं बल्कि एक बंदर है और इस हालत में दुनिया की कोई ताकत उसे नहीं पहचान सकती। उसके माँ बाप भी नहीं। उसकी खुशियों पर ओस पड़ गयी और वह ठण्डी साँस लेकर वहीं कोने में बैठ गया।
पीरियड अभी अभी खत्म हुआ था। नेहा अपनी सहेलियों पिंकी और तनु के साथ बाहर निकल आयी।
''आज क्लास में रामू नहीं दिखाई दिया, कहां रह गया?" नेहा ने इधर उधर देखा।
''कालेज तो आया था वह। कहीं चला गया होगा।" पिंकी ने ख्याल जाहिर किया।
''आजकल वह अजीब अजीब हरकतें कर रहा है। कभी गुमसुम हो जाता है तो कभी ऐसा मालूम होता है जैसे वह आइंस्टीन की तरह बहुत बड़ा साइंटिस्ट हो गया है।"

''लेकिन मैं देख रही हूं कि तू आजकल उसकी कुछ ज्यादा ही फिक्र करने लगी है। कहीं मामला गड़बड़ तो नहीं?" शोख अंदाज में कहा तनु ने।
''गड़बड़ कुछ नहीं। मुझे हैरत है कि अचानक वह इतना जीनियस कैसे हो गया?"
''गगन को भी हैरत है कि अचानक तूने उससे मुंह क्यों मोड़ लिया।"

''एवरीवन वान्टस बेस्ट। तुम लोगों को पता है कि मैं मैथ में कमजोर हूं। इसीलिए मैंने गगन को घास डाली कि वह मेरी हेल्प करेगा। लेकिन मुश्किल सवालों में वह भी फंस जाता है। बट रामू तो जबरदस्त है। आँख बन्द करके जवाब देता है। चाहे जितना मुश्किल सवाल ले जाओ उसके सामने।"
''लो हटाओ। तुम्हारा पुराना आशिक तो इधर ही आ रहा है।" पिंकी ने एक तरफ इशारा किया, जिधर से गगन चला आ रहा था। उसके हाथों में फूलों का एक गुलदस्ता था।

''यहां से जल्दी निकल चलो, वरना अभी जख्म बन जायेगा आकर।"
लेकिन इससे पहले कि वे वहां से खिसकतीं, गगन ने उन्हें देख लिया था और रुकने का इशारा भी कर दिया था। फिर वह तेजी से उनकी ओर आया।
''हाय नेहा! हैप्पी बर्थ डे।" उसने गुलदस्ता नेहा की ओर बढ़ाया।
''लगता है रामू ने गणित के साथ तुम्हारी मेमोरी भी चौपट कर दी है। मेरा बर्थ डे अगले महीने है।" नेहा ने उसकी तरफ हमदर्दी से देखा। उसे यकीन हो गया था कि रामू की कामयाबियों ने गगन का दिमाग उलट दिया है।

''मैंने पुरातन काल के शक संवत कैलेण्डर के हिसाब से तुम्हारे जन्म दिन की गणना की है। और उस कैलकुलेशन के हिसाब से तुम्हारा जन्म दिन आज ही है।"
''बड़ी मेहनत कर डाली तुमने तो। लेकिन मैं पहले ये कैलकुलेशन रामू से जँचवाऊंगी। अगर सही निकली तब तुम्हें थैंक्यू कहूंगी।" नेहा का ये जुमला गगन को सुलगाने के लिए काफी था। फिर नेहा तो आगे बढ़ गयी और वह वहीं खड़ा हाथ में पकड़े गुलदस्ते को गुस्से से घूरने लगा मानो सारी गलती उसी गुलदस्ते की है।
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बंदर बना रामू चूंकि अपने घर के चप्पे चप्पे से वाकिफ था, इसलिए वह आराम से अपने ड्राइंग रूम में पहुंच गया। अभी तक उसकी मुलाकात अपनी मम्मी से नहीं हुई थी। और पापा से इस वक्त मिलने का सवाल ही नहीं था। क्योंकि ये उनके आफिस का वक्त था।
उसने देखा सारी किताबें कायदे से रैक में सजी हुई थीं।
'शायद मेरे पीछे मम्मी ने ये सब किया है।' उसने सोचा। किताबों के बीच मैथ की टेक्स्ट बुक देखकर उसके तनबदन में आग लग गयी। उसी किताब की वजह से तो आज उसकी ये हालत हुई थी। अब न तो वो जानवरों के रेवड़ में शामिल था और न ही इंसानों के।

'मम्मी पापा ने मुझे कितना ढूंढा होगा।' उसे अफसोस हो रहा था, 'क्यों वह खुदकुशी करने के लिए भागा। उसके मम्मी पापा का क्या हाल होगा। मम्मी तो रो रोकर बेहाल हो गयी होगी।'
उसे किसी के आने की आहट सुनाई दी, और वह जल्दी से एक अलमारी के पीछे छुप गया। अन्दर दाखिल होने वाली उसकी मम्मी ही थी और किसी नयी फिल्म का रोमांटिक गाना गुनगुना रही थी।

'मम्मी तो पूरी तरह खुश दिखाई दे रही है। यानि उसे मेरे गायब होने का जरा भी दु:ख नहीं। पूरी दुनिया में किसी को मेरी परवाह नहीं।' दु:ख के साथ उसने सोचा और वहीं जमीन पर बैठ गया।
अब मम्मी ने वहां की सफाई शुरू कर दी थी।
''रामू, मैंने तुम्हारा नाश्ता लगा दिया है। जल्दी से कर लो वरना स्कूल की देर हो जायेगी।' मम्मी ने पुकार कर कहा और रामू को हैरत का एक झटका लगा। वह तो बंदर की शक्ल में वहां मौजूद था, फिर मम्मी किसे आवाज दे रही थीं?

''मम्मी मैं नाश्ता कर रहा हूं।" अंदर से आवाज आयी और रामू को एक बार फिर चौंकना पड़ा। ये तो हूबहू उसी की आवाज थी, जिसको मुंह से निकालने के लिए वह कई दिन से तरस रहा था।
"लेकिन यह कौन बहुरूपिया है जिसने उसकी जगह पर उसके घर में कब्जा जमा लिया है?" उसके दिल में उसे देखने की इच्छा जागृत हो गयी। लेकिन इसके लिए जरूरी था कि वह डाइनिंग रूम में पहुंचे और वह भी बिना किसी की नजर में आये। वरना वहां अच्छा खासा बवाल खड़ा हो जाता।
उसकी मां वहां सफाई करके निकल गयी। वह भी छुपते छुपाते उसके पीछे पीछे चला, यह देखने के लिए कि कौन सा चोर उसके बहुरूप में उसकी जगह घेरे हुए है।

जब वह डाइनिंग रूम के पास पहुंचा तो उसने स्कूल की ड्रेस में एक लड़के को बाहर निकलते देखा। लेकिन पीठ उसकी तरफ होने की वजह से वह उसकी शक्ल देखने से वंचित रहा। इससे पहले कि वह उसकी शक्ल देखने की कोशिश करता, लड़का साइकिल पर सवार होकर दूर निकल चुका था। उसी समय रामू को किसी के आने की आहट सुनाई दी और वह एक पुराने कबाड़ के पीछे छुप गया।

Re: मायावी दुनियाँ

Posted: 22 Dec 2014 21:33
by Jemsbond

जबकि रामू की शक्ल में मौजूद सम्राट साइकिल पर सवार स्कूल की ओर बढ़ा जा रहा था। इस रोड पर अपेक्षाकृत सन्नाटा रहता था। उसने देखा दूर पेड़ की एक मोटी सी डाल ने रास्ता घेर रखा है। वह डाल के पास पहुंचा और साइकिल से नीचे उतरकर डाल को हटाने लगा। उसी समय झाडि़यों के पीछे से तीन लड़के निकलकर उसके सामने आ गये। तीनों ने अपने चेहरों पर मुखौटे डाल रखे थे और उनके हाथों में चेन तथा हाकियां मौजूद थीं। उसमें से एक उसकी साइकिल के पास पहुंचा और उसके पहिए से हवा निकालने लगा।

''क्या कर रहे हो भाई?" सम्राट उसकी तरफ घूमा।
''अबे दिखाई कम देता है क्या। हम तेरी हवा निकाल रहे हैं।" हवा निकालने वाला लड़का बोला और बाकी दो लड़के कहकहा लगाकर हंसने लगे।
''तुम बहुत गलत कर रहे हो। इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।" सम्राट पूरी तरह शांत स्वर में बोला।

''अरे। ये तो हमें धमकी दे रहा है।" हवा निकालने वाले लड़के ने बाकियों की ओर घूमकर देखा।
''ओह। फिर तो इसकी मौत आ गयी है।" दूसरे लड़के ने अपनी हाकी रामू बने सम्राट की ओर घुमाई। सम्राट ने हाकी से बचने की कोई कोशिश नहीं की। दूसरे ही पल उन लड़कों को हैरत का झटका लगा क्योंकि हाकी सम्राट के जिस्म से दो इंच पहले ही झटके के साथ पलट गयी थी। हाकी पकड़ने वाले लड़के को एक जोरदार झटका लगा और वह गिरते गिरते बचा।

''गगन, अमित क्यों जबरदस्ती अपना और मेरा टाइम खराब कर रहे हो?" रामू उर्फ सम्राट सुकून के साथ बोला। उसकी बात सुनकर लड़कों को मानो साँप सूंघ गया। और वे सब सकपका गये।
''तो तूने हमें पहचान लिया।" उनमें से एक जो वास्तव में अमित था, बोला।

''हमारे चेहरे तो छुपे हुए हैं। लगता है इसने हमें आवाज से पहचान लिया।" सुहैल बोला, जो वास्तव में रामू की साइकिल की हवा निकालने के लिए झुका था।
''अगर तुम लोग अपनी आवाज़ भी बदल लेते तब भी मैं पहचान जाता।" सम्राट ने कहा।
''क्यों? क्या तेरे अन्दर कोई ईश्वरीय शक्ति समा गयी है?" गगन के स्वर में व्यंग्य था।

''कुछ हद तक सही अनुमान लगाया है तुमने।" गंभीर स्वर में बोला सम्राट।
उसकी इस बात ने मानो वहां धमाका किया और तीनों लड़के उछल पड़े।
''क्या मतलब? क्या कहा तुमने?" अमित तेजी से उसकी तरफ घूमा।
''वही, जो तुम लोगों ने सुना।" सम्राट अपनी साइकिल के पास पहुंचा और हवा निकला हुआ टायर टयूब एक झटके में खींच लिया। अब वह खाली रिम लगे हुए पहिए की साइकिल पर सवार हुआ और तेजी से पैडिल मारते हुए आगे बढ़ गया। तीनों लड़के वहां खड़े एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे।
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रामू को एक बार फिर ज़ोरों की भूख लगने लगी। इसलिए वह किचन की तरफ बढ़ने लगा। और जल्दी ही वहां पहुंच गया। उसने इधर उधर देखा। पूरा किचन खाली था सिवाय कुछ जूठे बर्तनों के। उसे पता था कि उसकी मम्मी खाने के बाद बची हुई चीज़ों को सीधे फ्रिज में ठूंस देती हैं। क्योंकि खुले में रखा खाना सड़ने लगता है।
मम्मी की यह आदत इस वक्त उसके लिए मुसीबत बन गयी। फ्रिज खोलना कम से कम उसके बन्दर वाले जिस्म के लिए मुमकिन न था। अब उसके सामने एक ही चारा था कि जूठे बर्तनों को चाटना शुरू कर दे। उसने यही किया। उसे अपनी हालत पर हंसी भी आ रही थी और रोना भी। कभी वह घर में घुसी बिल्ली या चूहे को जूठे बर्तन चाटते देखता था तो मारकर भगा देता था। आज यही काम वह खुद कर रहा था।

जल्दी ही उसने सारे बर्तन इस तरह चाट कर साफ कर दिये मानो अभी अभी धुले गये हों। लेकिन पेट कमबख्त अभी भी और की डिमांड कर रहा था। यानि अब इसके अलावा और कोई चारा नहीं था कि वह किसी तरह फ्रिज खोलने का जुगाड़ करे।

वह फ्रिज के पास पहुंचा और उसे खोलने की कोशिश करने लगा। लेकिन उसकी सारी कोशिशें एक बन्दर की जबरदस्ती की उछलकूद से ज्यादा कुछ न कर सकीं। फिर उसे कोने में पड़ा चिमटा दिखाई दिया और उसे एक तरकीब सूझ गयी। उसने फौरन चिमटा उठाया और उसे फ्रिज के दरवाजे में फंसाकर जोर लगाने लगा।
तरकीब कामयाब रही और फ्रिज खुल गया। अन्दर से आने वाले पकवानों की खुशबू ने उसकी भूख दोगुनी कर दी। उसने एक ढक्कन उठाया और यह देखकर उसकी बाँछें खिल गयीं कि सामने उसकी मनपसंद डिश यानि छोले मौजूद थे। इधर उधर देखे बिना उसने दोनों हाथों से छोले उठाकर खाने शुरू कर दिये।

पेट भरने की कवायद ने उसे आसपास के माहौल से बेखबर कर दिया। अचानक बर्तन गिरने की छनछनाहट ने उसे चौंका दिया। उसने मुंह उठाकर देखा तो भौंचक्का रह गया। किचन के दरवाजे पर उसकी मां मौजूद थी और डरी हुई नजरों से उसकी तरफ देख रही थी। शायद वह किचन में बर्तन रखने आयी थी, जो उसके हाथ से छूटकर जमीन पर पड़े हुए थे।
अब दोनों एक दूसरे की आँखों में आँखें डाले हुए मूर्ति बने हुए अपनी अपनी जगह एक ही एक्शन में खड़े हुए थे।

सम्राट इस समय जंगल में मौजूद अपने अंतरिक्ष यान में मौजूद था। उसके साथी उसे घेरे हुए थे और उनके बीच कोई गहन विचार विमर्श हो रहा था। हमेशा की तरह सम्राट रामू के हुलिए में ही था।
''हम अपने मिशन में काफी हद तक कामयाबी हासिल कर चुके हैं। अब बहुत जल्द हम अपने टार्गेट तक पहुंचने वाले हैं।" सम्राट काफी उत्साहित होकर बता रहा था।
''सम्राट, यदि आप उचित समझें तो एक बात पूछना चाहता हूं।" सिलवासा ने सम्राट की ओर देखा।


''हां हां। पूछो।"
''अपना टार्गेट तो हम सभी को मालूम है। यानि इस ग्रह को पूरी तरह अपने कब्जे में करना। लेकिन इस टार्गेट को हासिल करने के लिए हम क्या रणनीति अपना रहे हैं, ये शायद हममें से किसी को नहीं मालूम।"
सम्राट ने बारी बारी से सबकी ओर नजर की फिर बोला, ''क्या वास्तव में आपमें से किसी को मेरी रणनीति के बारे में कुछ नहीं पता?

सभी ने नकारात्मक रूप में सर हिला दिया।
''ठीक है मैं बताता हूं। इस पृथ्वी का सर्वश्रेष्ठ प्राणी मानव है। जिसका पूरी पृथ्वी पर लगभग अधिकार है। एक वही है जो बुद्धि रखता है और उसके अनुसार निर्णय लेता है। अपनी अक्ल से काम लेकर उसने पूरी पृथ्वी पर कब्जा जमा लिया है। इसलिए इस पृथ्वी को अपने अधिकार में करने के लिए उसपर नियन्त्रण करना जरूरी है।" सम्राट की बात वहां मौजूद सभी लोग गौर से सुन रहे थे।

''अब इनपर कण्ट्रोल कैसे किया जाये, इसपर मैं इस ग्रह पर उतरने से पहले ही विचार कर रहा था। क्योंकि जिस प्रजाति ने पूरी पृथ्वी पर कब्जा जमा रखा है उनसे पार पाना बहुत दुष्कर होगा, इतना तो तय था।"
''अगर हम पूरी मानव प्रजाति को समाप्त कर दें तो बाकी जीवों पर आसानी से काबू पाया जा सकता है।" डेव ने कहा।

''यकीनन हम ऐसा कर सकते हैं। लेकिन हमारा टार्गेट है इस ग्रह के समस्त प्राणियों को अपने कण्ट्रोल में करना न कि उन्हें समाप्त करना। ऐसे में कोई दूसरा ही तरीका अपनाना ठीक रहता। अब इत्तेफाक से यान उतरते वक्त मेरा एक्सीडेंट हो गया। और मेरे मस्तिष्क को पृथ्वी के एक बच्चे का शरीर देना पड़ा। यहीं से मुझे एक अनोखा रास्ता मिल गया।
''कौन सा रास्ता सम्राट?" रोमियो ने पूछा।

''दरअसल इस ग्रह की सर्वाधिक शक्तिशाली प्रजाति एक अनदेखी ताकत से भय खाती है। और उसकी पूजा या इबादत करती है। वह अनदेखी ताकत कहीं ईश्वर कहलाती है, कहीं खुदा तो कहीं गॉड ।"
''आप सही कह रहे हैं सम्राट। यहां आने से पहले जब हम पृथ्वी का अध्ययन कर रहे थे तो यह बात काफी गहराई से हमने पढ़ी थी।" सिलवासा ने सर हिलाया।

''इसी तथ्य ने मुझे रास्ता दिखाया इन मानवों को अपने कण्ट्रोल में करने का। हम वैज्ञानिक रूप से इन पृथ्वीवासियों से बहुत ज्यादा विकसित हैं। और ऐसे कारनामे कर सकते हैं जो इनको किसी चमत्कार से कम नहीं दिखाई देंगे। रामू के रूप में मैंने ऐसे बहुत से कारनामे कर भी दिये हैं। जिसके बाद मेरे आसपास रहने वाले लोग मानने लगे हैं कि मेरे अन्दर कोई ईश्वरीय ताकत आ गयी है।"

''यह तो बहुत बड़ी कामयाबी है सम्राट।" डेव के चेहरे पर प्रसन्नता थी।
''हां। अब मेरा अगला टार्गेट है पूरी दुनिया के मनुष्यों में यह विश्वास जगाना कि मैं ईश्वर का अवतार हूं। और जब पूरी दुनिया इसपर यकीन कर लेगी तो उसी समय मैं यह घोषणा कर दूंगा कि मैं ही ईश्वर, अल्लाह या गॉड हूं।" सम्राट ने अपना पूरा मंसूबा उनके सामने जाहिर कर दिया।
सब ने ख़ुशी से सर हिलाया।
''फिर तो पूरी पृथ्वी बिना कुछ कहे हमारे कदमों में आ गिरेगी।" सिलवासा ने खुश होकर कहा।

''लेकिन ये काम इतना आसान भी नहीं। इस पृथ्वी पर एक से एक खुराफाती मनुष्य भी मौजूद हैं। जो अक्सर आँखों देखी को भी झुठलाने पर तुले रहते हैं। इसी पृथ्वी पर ऐसे लोग भी हैं जो अपने ईश्वर की सत्ता को भी स्वीकार नहीं करते। ऐसे में वह मुझे ईश्वर के रूप में कुबूलेंगे या नहीं, ये एक बड़ा प्रश्न है।" सम्राट ने फौरन ही उनकी उम्मीदों को बहुत आगे बढ़ने से रोका।
''उन्हें मानना ही पड़ेगा। कब तक वे हमारे चमत्कारों को झुठलायेंगे। और अगर मुटठी भर लोग न भी माने तो हम उन्हें चुपचाप मौत के घाट उतार देंगे।" डेव ने क्रोधित होकर कहा।
''ये इतना आसान भी नहीं है। सम्राट मौन होकर कुछ सोचने लगा।
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कुछ पलों तक रामू और उसकी माँ जड़वत बने एक दूसरे को देखते रहे। फिर उसकी माँ ने चीखने के लिए अपना मुंह खोला। एक बन्दर अगर किसी के सामने आ जाये तो चीखने के अलावा और कोई चारा ही कहां होता है।
उसी वक्त रामू को एक तरकीब सोची। उसने फौरन अपने दोनों हाथ जोड़ दिये और मां के कदमों में लोट गया। आखिर उसकी मां ही तो उसकी उम्मीदों का आखिरी सहारा थी। और माँ के कदमों में गिरना तो किसी के लिए भी गर्व की बात होती है।

मिसेज वर्मा ने जब एक बन्दर को अपने कदमों में लोटते देखा तो उसका डर हैरत में बदल गया। उसने अब गौर से बन्दर की आँखों में देखा तो वहां उसे आंसुओं की बूंदें चमकती दिखाई दीं।
मिसेज वर्मा का दिल करुणा से भर उठा। न मालूम इस बन्दर को कौन सा कष्ट था। जो वह इस तरह रो रहा था। वह घुटनों के बल जमीन पर बैठ गयी और उसके सर पर हाथ फेरने लगी। अपनी माँ का स्नेह पाकर बन्दर बने रामू की आँखों से आँसू और तेजी से गिरने लगे। उसे यूं रोता देखकर मिसेज वर्मा ने उसे अपने सीने से लगा लिया।

''मत रो। तुम्हें जरूर कोई बड़ी तकलीफ है। शायद तुम्हें भूख लगी है। मैं अभी तुम्हें कुछ खिलाती हूं।" वह उसे पुचकारती हुई फ्रिज की ओर बढ़ी जो पहले से ही खुला हुआ था। उसने गौर से फ्रिज के पास पड़े हुए चिमटे को देखा, फिर रामू की तरफ।
''अरे वाह तुम तो बहुत अक्लमन्द बन्दर हो। कैसी तरकीब लगाकर फ्रिज को खोला है।"
मिसेज वर्मा ने चार पाँच डिशेज निकालकर किचन के काउंटर पर रख दीं, ''बताओ, क्या खाओगे?
बन्दर बने रामू ने फौरन छोलों की तरफ इशारा किया।

''कमाल है। तुम्हारी पसन्द तो बिल्कुल मेरे बेटे रामू से मिलती है। उसे भी छोले बहुत पसन्द हैं। लो खा लो। उसके लिए मैं और बना दूंगी। वह शायद उस बहुरूपिये की तरफ इशारा कर रही थी। जो उसकी जगंह उसी के मेकअप में जमा हुआ था।

मिसेज वर्मा ने एक प्लेट में छोले निकालकर उसके सामने रख दिये। रामू उसे खाने लगा। उसे इतिमनान था, कि अब कोई भगायेगा नहीं। यही फर्क होता है माँ में और दूसरों में। उसकी मां बन्दर के जिस्म में भी उसकी भावनाओं को समझ गयी थी और उससे प्यार कर रही थी। जबकि दूसरे उसे देखते ही दुत्कार देते थे। उसे सबसे ज्यादा गुस्सा नेहा के ऊपर था जो कहने को उसकी बहुत बड़ी हमदर्द थी लेकिन इस हुलिये में देखकर ऐसा बुरी तरह दुत्कारा था जैसे वह कोई चोर हो।

''तुम ज़रूर पास के जंगल से आये होगे। लेकिन बिल्कुल मालूम नहीं होता कि तुम जंगली हो। ऐसा लगता है कि तुम किसी बहुत ही सभ्य घर में पले बढ़े हो।" मिसेज वर्मा ने कहा। और रामू की हलक में निवाला अटक गया। वह बुरी तरह खांसने लगा।
''आराम से खाओ। जल्दी करने की जरूरत नहीं।" मिसेज वर्मा जल्दी से गिलास में पानी निकाल लायी, ''लो इसे पी लो। इसको ऐसे पीते हैं। वह अपने मुंह के पास गिलास ले गयी और दो तीन घूंट लिये। शायद उसने सुन रखा था कि बन्दर इंसानों की नकल करते हैं।
रामू ने उसके हाथ से गिलास ले लिया और बाकायदा पीते हुए पूरा गिलास खाली कर दिया। मिसेज वर्मा उसे हैरत से देख रही थी। ऐसा सभ्य बन्दर उसने पहली बार देखा था।