एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

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Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

Unread post by sexy » 06 Oct 2015 11:17

हुड-हुड को इमरान ने बिल्कुल अपने रंग मे ढालने की कोशिश की थी. वो सच मच थोड़ा सा बेवकूफ़ था. लेकिन इमरान के इशारे पर बिल्कुल मशीन की तरह काम कराता था. आलसी और सुस्त होने के बाद भी काम के समय उस मे काफ़ी फुर्तीलापन आ जाता था.

मगर इस काम से वो बुरी तरह उब्ब चुका था……जो आज कल उसे सौंपा गया था. वो इस काम को भी किसी हद तक बर्दाश्त कर सकता था……लेकिन कम से कम एबीसी होटेल मे ठहरने के लिए तैयार नहीं था. लेकिन इमरान से डराता भी था. उस बेचारे को ये भी नहीं पता था की वास्तव मे उसे करना क्या है. डिपार्टमेंट उसे मच्चली के शिकार के लिए सॅलरी तो देता नहीं था.

कल वो होटेल मे आया था और आज उसे इमरान के निर्देश के मुताबिक शिकार के लिए सुबह से शाम तक समंदर के किनारे बैठना था.

लेकिन वो एबीसी की फ़िज़ा और माहौल से सख़्त बेज़ार था. उसे वहाँ हर समय बुरे आदमी और बुरी औरातें दिखाई देती तीन.

इस समय वो ब्रेक फास्ट के टेबल पर बैठा जल्दी जल्दी गले मे चाय उंड़ेल रहा था. वो जल्दी से जल्दी यहाँ से निकल जाना चाहता था. बात ये थी की उसे काउंटर के समीप वही औरात दिखाई दे दी थी जिस ने पिच्छली रात उसे बहुत परेशन किया था. रात वो नशे मे थी……और हुड-हुड के सर पे सॉवॅर हो रही थी. वो उसे फिल्म देवदास का गाना “बालम बसो मेरे मन मे” सुनाए. हुड-हुड की बौखलाहट देख कर दूसरे लोग भी इस के मज़े लेने लगे थे.

पता नहीं किस तरह हुड-हुड ने उस से पिच्छा च्चुदाया था.

अब इस समय उसे देख कर उस के हाथ पैर फूल गये थे.

लेकिन औरात जो इस समय नशे मे नहीं थी…..काफ़ी गंभीर दिखाई दे रही थी. हुड-हुड ने जल्दी जल्दी नाश्ता ख़त्म किया और कमरे से शिकार का समान ले कर घाट की तरफ चल दिया.

हुड-हुड यहाँ आने के मकसद से तो अंजान था…..लेकिन वो अच्छी तरह जानता था की इमरान को इस इलाक़े से क्यों इंटेरेस्ट हो सकता है. मगर वो ये नहीं जानता था की उसे करना क्या है. हलाकी अपनी आँखें ज़रूर खुली रखना चाहता था.

इस भाग मे समंदर शांत था…..और इस तरफ लौंछों और बोट्स का आना जाना भी कम होता था. उसे अपने अलावा दो-टीन आदमी भी दिखाई दिए जो पानी मे दूरे डाले बैठे उंघ रहे थे.

वो एक बजे तक झक माराता रहा……लेकिन एक मच्चली भी उस के काँटे मे नहीं लगी.

लेकिन वो शायद इस से बेख़बर था की थोड़ी ही दूरी पर एक आदमी खड़ा खुद उसी की शिकार करने की ताक मे था.

वो आदमी कुच्छ देर खड़ा सिगरेट के काश लेता रहा फिर धीरे धीरे हुड-हुड की तरफ बढ़ा.

“आज कल शिकार बड़ी मुश्किल से मिलता है.” उस ने हुड-हुड से कुच्छ ही दूरी पर बैठते हुए कहा.

हुड-हुड चौंक कर उसे देखने लगा. ये एक दुबला पतला और लंबे कद का आदमी था. उमर 30 और 40 के बीच रही होगी. उस के कंधे से एक कॅमरा लटक रहा था.

“ज्ज……जी हन….” हुड-हुड अपने चेहरे पर फॉर्मल खुशी का भाव लता हुआ बोला.

“आप इस शौक को कैसा मानते हैं?” आगंतुक ने पुचछा.

“एमेम….माफ़ कीजिएगा….एमेम….मैं समझा नहीं.”

“श….मेरे इस सवाल का कोई दूसरा मीनिंग मत लगाइएगा. मेरा संबंध वास्तव मे एक पिक्चर मॅगज़ीन से है. मेरा काम है की डिफरेंट किस्म के हॉबीस के बड़े मे जानकारी और पिक्चर्स उपलब्ध करूँ.”

“ये मेरी हॉबी नहीं….ब्ब…बल्कि….प्प…पेशा है…” हुड-हुड मुस्कुरा कर बोला.

“मैं विश्वास नहीं कराता श्रीमान.” आगंतुक भी हँसने लगा “हमारे यहाँ प्रोफेशनल लोग समंदर मे जाल डालते हैं और उन का लिबास इतना शानदार नहीं होता……और वो इतना महँगा हट नहीं लगाते.”

हुड-हुड भी हँसने लगा. आगंतुक ने कहा “मैं आप का शुकरगुज़ार हुंगा अगर आप शिकार खेलते हुए मुझे 2-3 पोज़ दें.”

“यहाँ अकेला एमेम….मैं….ही टीटी….तो नहीं हूँ.”

“सही बात है. लेकिन मैं उन्हें इसके लायक नहीं समझता की उन की तस्वीर किसी ऐसे मॅगज़ीन मे पब्लिश हो जो अमेरिका, इंग्लेंड, फ्रॅन्स, गरमाणी और हॉलॅंड जैसे कंट्रीज़ मे जाता हो.”

हुड-हुड गढ़े की तरह फूल गया….और उस ने अपने दो टीन पोज़ दिए. लेकिन इस शौक के संबंध मे विचार प्रकट करते समय बुरी तरह हकलाने लगा.

ज़ाहिर है की उसे मच्चलियों के बड़े मे सिर्फ़ इतना ही मालूम था की हर मच्चली स्वादिष्ट नहीं होतीं……और वो चाहे जिस जाती के हों उन मे काँटे ज़रूर हॉट हैं.

“मैं……मौखिक नहीं बता सकता….” उस ने अंत-तह तंग आ कर कहा “लिख कर दे सकता हूँ.”

“होता है…….होता है….” आगंतुक ने कहा “कुच्छ लोग लिख सकते हैं…..बाल नहीं सकते. अच्छा कोई बात नहीं. मुझे इस बड़े मे जितना भी पता है खुद ही लिख दूँगा. वैसे आप मुझे अपना नाम और पता लिखवा दीजिए.”

हुड-हुड ने आराम का साँस लिया. क्लियर है की वो अपना नाम और पता ग़लत ही लिखवाया होगा.

आगंतुक चला गया. लेकिन उस आगंतुक की घाट मे भी कोई था. जैसे ही वो रेतीले भाग को पार कर के बंदरगाह की तरफ जाने वाली सड़क पर पहुँचा एक आदमी टीले की ओट से निकल कर उस का पिच्छा करने लगा. ये आदमी इमरान के अलावा और कोई नहीं था.

****

निधी अपने होटेल के कमरे मे पिच्छली रात से इमरान का इंतेज़ार कर रही थी. वो उसे होटेल मे ठहरा कर जल्दी ही वापस आने का वादा कर के चला गया था.

निधी उस के लिए अत्यधिक चिंतित थी. लेकिन इतनी हिम्मत भी नहीं रखती थी की उस की तलाश मे निकल खड़ी होती.

उसे पुलिस का भी दर था…..और वो भयानक आदमी तो था ही उस की तलाश मे. पूरा दिन बीट गया लेकिन इमरान नहीं आया. इस समय शाम के 4 बाज रहे थे. और निधी बिकुल निराश हो चुकी थी. उसे विश्वास हो गया था की इमरान किसी ना किसी मुसीबत मे फँस गया है.

या तो वो पुलिस के हटते चढ़ गया या फिर उस भयानक आदमी ने…….वो इस विचार से ही काँप उठी. उस की कल्पना मे इमरान की लाश थी.

वो बेड पर करवटें बदल रही थी. उस की समझ मे नहीं आता था की क्या करे. अचानक किसी ने दूर को नॉक किया…..और निधी चौंक पड़ी. लेकिन फिर उस ने सोचा की संभव है वेटर हो…..क्यों की ये टी टाइम था.

“आ जाओ….” निधी ने बेदिली से कहा.

दरवाज़ा खुला. सामने इमरान खड़ा मुस्कुरा रहा था.

“तूमम्म्मम….” निधी बेठहाशा उच्छल कर उसकी तरफ लपकी. “तुम कहाँ थे? मैं तुम्हें मार डालूंगी.”

“हाएँन्न्…” इमरान इस तरह बौखला कर पिच्चे हट गया जैसे उसे सच मच निधी की तरफ से कातिलाना हमले की आशंका हो.

“निधी हँसने लगी………..मगर उसे झंझोड़ कर बोली. “तुम बड़े सुवार हो….बताओ कहाँ थे?”

“चाची फ़रज़ाना का मकान ढुंड रहा था.” इमरान ने गंभीराता से कहा.

“क्यों…..ये कोन हैं?”

“मैं नहीं जानता.” इमरान ठंडी साँस ले कर बोला. “मुझे पता चला है की वो एक ऐसे आदमी को जानती हैं जिस का बायन कान आधा कटा हुआ है.”

“करने लगे बेठुकी बकवास….तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कहाँ चले गये थे?”

“क्या तुम मारना चाहती हो?”

“हन….मैं मारना चाहती हूँ.” निधी झल्ला गयी.

“अच्छा तो उर्दू के इश्क़िया नॉवाले्स पढ़ना स्टार्ट कर दो. तुम बहुत जल्दी बोर हो कर मार जाओगी.”

“इमरान मैं तुम्हें गोली मार दूँगी.”

“चलो बैठ जाओ.” इमरान ने उसे एक ईज़ी चेर पर धकेलटा हुआ बोला. “हम दोनों की ज़िंदगी केवल उस अग्यात आदमी की मौत पर डिपेंड कराती है.”

निधी उसे खामोशी से देखती रही फिर बोली. “तुम आख़िर हो क्या बाला…..मुझे बताओ……मैं पागल हो जवँगी.”

“मैं तुम से पुचहता हूँ की क्या कल रात फोन पर तुम ने पुलिस को इनफॉर्म किया था?”

“किस बड़े मे?” निधी चौंक पड़ी.
एक भयानक आदमी – 10

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Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

Unread post by sexy » 06 Oct 2015 11:18

“यही की गर्रगे नंबर 13 मे एक लाश है.”

“हरगिज़ नहीं……..भला मैं क्यों इनफॉर्म कराती.”

“पता नहीं……..फिर वो कोन औरात है….तुम ने शाम का कोई अख़बार देखा?”

“नहीं…..मैने नहीं देखा. मुझे पूरी बात बताओ. उलझन मे ना डालो.”

“पुलिस ने गर्रगे का टाला तोड़ कर लाश रिकवर किया है. ड्राइवर ज़िंदा ही निकला. केवल बेहोश हो गया था. अख़बार की खबर है की पिच्छली रात किसी अग्यात औरात ने जो लहजे से आंग्लो-इंडियन लगती थी…..फोन पर इसकी सूचना दी थी.”

“मैं कसम खाने को तैयार हूँ.”

“मुझे विश्वास हैं. तुम ऐसी हरकत नहीं कर सकती हो. मेरे कहने का मतलब ये है की तुम मेरी अनुमति के बिना इस होटेल से बाहर कदम भी ना निकालना……चाहे मुझ से एक हफ़्ता बात ही मुलाकात क्यों ना हो.”

“मैं वादा नहीं कर सकती.”

“क्यों….?”

“मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगी. तुम मुझे अकेली नहीं छोड़ सकते.”

“यानी तुम चाहती हो की हम दोनों की गर्डानें साथ ही कटे.”

“ना जाने क्यों मुझे तुम्हारी मौजूदगी मे किसी से भी दर नहीं लगता.”

“अच्छा…..केवल आज रात और यहाँ ठहर जाओ.”

“आख़िर क्यों? तुम क्या करते फिर रहे हो……मुझे बताओ.”

“नहीं निधी…..तुम बहुत अच्छी हो. तुम आज रात यहीं रुकोगी. अच्छा ये बताओ कभी तुम्हें एबीसी होटेल में कोई ऐसा आदमी दिखाई दिया है जिस का बायन का आधा कटा हुआ हो?”

निधी पलकें झपकाने लगी. शायद वो कुच्छ याद करने के लिए दिमाग़ पर ज़ोर डाल रही थी.

“क्यों…..तुम ये क्यों पुच्छ रहे हो?” उस ने धीरे से कहा…. “नहीं मैं ने वहाँ ऐसा कोई आदमी नहीं देखा. लेकिन मैं ऐसे एक आदमी को जानती ज़रूर हूँ.”

“एबीसी से संबंध है उस का?” इमरान ने पुचछा.

“नहीं…..वो उस हैसियत का आदमी नहीं है की उस का प्रवेश एबीसी जैसी महँगी जगहों मे हो सके. वो मच्चुवारों की एक बोट मे मझडूर है.”

“तुम्हें विश्वास है की उस का बायन कान कटा हुआ है?”

“हन…..लेकिन तुम…..”

“श्स्स्सस्स….रूको….मुझे बताओ की वो इस समय कहाँ मिलेगा?”

“मैं भला कैसे बता सकती हूँ. मुझे उस का घर नहीं मालूम.”

“तो उस बोट का ही पता ठिकाना बताओ जिस पर वो काम कराता है?”

“हेरषफ़ीएल्ड फिशरीस…….”

“हेरषफ़ीएल्ड फिशरीस….” इमरान ने एक लंबी साँस ले कर धीरे दे दुहरेया. फिर उठता हुआ बोला. “अच्छा टाटा…..कल सुबह मुलाकात होगी.”

“ठहरो…..मुझे बताओ की तुम किस चक्कर मे हो?”

“मैं अपने बाकी के नोट वापस लेना चाहता हूँ.”

“कुच्छ भी हो.” निधी उसे घूराती हुई बोली “अब तुम मुझे उतने अहमाक़ नहीं लगते जीतने उस शाम एबीसी मे लग रहे थे.”

“फिर अहमाक़ कहा……….तुम खुद अहमाक़….”

इमरान उसे घूँसा दिखता हुआ कमरे से निकल गया. निधी के फ्लॅट मे आज बहुत अधिक रौशनी दिखाई दे रही थी. इमरान ने फाल्ट के भीतर बाहर के सारे लाइट्स ऑन कर रखे थे. अगर उस के डिपार्टमेंट के किसी आदमी को उसकी इन हरकतों का पता चल जाता तो उसे पक्का पागल या दीवाना समझ लेता.

आज दिन भर वो ग़लतियों पर ग़लतियाँ कराता रहा था. अपराधियों मे से एक का हाथ आ जाना और और फिर उसे मामूली सी मरम्मत कर के छोड़ देना नियम-तह एक बौट बड़ी ग़लती थी. होना तो ये चाहिए था की इमरान उसे गिरफ्तार कर के उसे उसके दूसरे साथियों के बड़े मे बतने पर मजबूर कर देता. फिर उस ने हुड-हुड के बड़े मे इनफॉर्म कर दिया था साथ ही अपने बड़े मे भी बता दिया था की निधी के फ्लॅट ही मे रात गुज़ारेगा.

और अब उस मे ऐसे दीवाली मनाए बैठा था जैसे किसी ख़ास फंक्षन की तैयारी कर रहा हो.

क्लॉक ने 12 बजाए और उस ने दरवाज़ों की तरफ देखा. जो खुले हुए थे. लेकिन उसे क्लॉक की टिक-टिक के अलावा और कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी.

दरवाज़े तो क्या आज उस ने खुदकियाँ तक खुली न्यू एअर तीन. हलाकी आज सर्दी क्लाइमॅक्स पर थी. अचानक उसे कोर्रदूर मे कदआंटी की आवाज़ सुनाई दी जो धीरे धीरे निकट आती जा रही थी. फिर किसी ने गुनगुना कर कहा…”निधी डार्लिंग……”

अगले ही पल एक 20-25 साल का नौजवान आदमी दरवाज़े मे खड़ा मूरखों की तरह पलकें झपका रहा था.

“फरमाइए….” इमरान बड़े प्यार से मुस्कुरआया.

“श……सॉरी…..” उस ने शर्मीले ढंग से कहा. “यहाँ पहले निधी रहती थी.”

“अब भी रहती है…..पधारिये….” इमरान बोला.

नौजवान कमरे मे प्रवेश किया.

“निधी कहाँ है?”

“वो आज कल अपनी आंटी के यहाँ मुगियों की देख भाल का तरीका सिख रही है.”

“आप कोन हैं?”

“मैं एक शरीफ आदमी हूँ.”

“निधी….!!” नौजवान ने निधी को पुकारा.

“मैं कह रहा हूँ ना की वो इस समय यहाँ नहीं है.” इमरान बोला.

“अर्रे वो बड़ी शराराती है.” नौजवान हंस कर बोला. “मेरी आवाज़ सुन कर चुप गयी है. खैर मैं ढुंड लेता हूँ.”

नौजवान बड़ी बेठाकल्लूफ़ी से निधी के बेडरूम मे गया. इमरान उस के पिच्चे पिच्चे चल रहा था. नौजवान ने 2-3 मिनूट मे पूरे फ्लॅट की तलाशी ले डाली. फिर दूसरी तरह अंधेरे कोर्रदूर मिस्टर टॉर्च की रौशनी डालने लगा.

“बस करो मेरे लाल.” इमरान उस के कंधे पर हाथ रखता हुआ बोला. “अभी तुम्हारे मुहह से दूध की बू आती है.”

“क्या मतलब?” नौजवान झल्ला कर मुड़ा.

“मतलब भी बतावँगा……आओ मेरे साथ.” इमरान ने कहा और फिर उसे ड्रॉयिंग-रूम मे वापस लाया. नौजवान उसे कहर भारी निगाहों से घूर रहा था.

“तशरीफ़ रखिए श्रीमान.” इमरान ने अप्रात्याशित ढंग से शिष्टाचार का प्रदर्शन किया.

“अभी तुम ने क्या कहा था?” नौजवान ने झल्लाहट भरे ढंग से कहा.

“मैं ने निवेदन किया था की आप तलाशी ले चुके और अब आप को संतुष्टि मिल चुकी……की मेरे साथ दूसरे लोग नहीं हैं……अब तशरीफ़ ले जाइए और अपने बुलडोग से कह दीजिए की मेरे नोट मुझे वापस कर दे. मैं बहुत बुरा आदमी हूँ. अपने साथ भीड़ भाड़ नहीं रखता. अकेला काम कराता हूँ. मैं इस समय इस फ्लॅट मे अकेला हूँ. लेकिन मेरा दावा है की तुम्हारा बुलडोग मेरा बाल भी बाका नहीं कर सकता. ये देखो मैं ने सारे दरवाज़े खोल रखे हैं……और सारी लाइट्स जला रखे हैं…..लेकिन….हहा…..कुच्छ नहीं….”

“मैं समझा नहीं…..आप क्या कह रहे हैं.”

“जाओ यार भेजा मत छातो…..उसे मेरा संदेश पहुँचा दो जिस ने तुम्हें भेजा है. चलो अब खिस्को भी……वरना मेरा हाथ तुम पर भी उठ जाएगा. आज ही मैं तुम्हारे एक साथी की अच्छी ख़ासी मरम्मत कर चुका हूँ.”

“मैं तुम्हें देख लूँगा.” नौजवान उठता हुआ बोला…..और आँधी की तरह कमरे से निकल गया.

लेकिन इमरान इस तरह खड़ा था जैसे उसे अभी किसी और का इंतेज़ार हो. उस ने जेब से चेवींगुँ का पॅकेट निकाला और एक निकाल कर उसे मूह मे डाल लिया.

सेकोनट मिनूत्स मे और मिनूत्स घंटों मे बदलते गये…..लेकिन नझडीक या दूर किसी भी तरह की आवाज़ नहीं सुनाई दी.

और फिर इमरान खुद कोसच मच अहमाक़ समझने लगा. उसे उम्मीद थी की वो नमलूम आदमी ज़रूर आएगा. लेकिन अब 2 बाज रहे थे और सब तरफ सन्नाटा था.

उस ने सोचा की अब इस हिमाकत को समाप्त कर दे. संभव है की वो नौजवान निधी ही का कोई कस्टमर रहा हो. इमरान दरवाज़े और खिड़कियाँ बंद करने के लिए उठा.

अभी दरवाज़े के करीब भी नहीं पहुँचा था की राहदारी मे कदआंटी की आवाज़ गूंजने लगी. कोई बहुत तेज़ी से उसी तरफ आ रहा था. इमरान बड़ी फुर्ती से टीन चार कदम पिच्चे हट आया.

लेकिन अगले ही पल उसकी आँखें हैरात से फटी रह गयीं. निधी दरवाज़े मे खड़ी बुरी तरह हाँफ रही थी. लेकिन उस के चेहरे पर परेशानी के भाव नहीं थे.

“तुम ने मेरा कहा नहीं माना.” इमरान आँखें निकाल कर बोला.

“बस तुम इसी तरह बकवास किया करो.” निधी एक सोफे पर गिराती हुई बोली. फिर अपना पर्स खोल कर 2 पॅकेट्स निकाले और उन्हें इमरान की तरफ उच्छालते हुए कहा

“अपने बाकी 2 पॅकेट्स सम्भालो.”

इमरान ने पॅकेट्स को उलट पलट कर देखा और फिर हैरात से निधी की तरफ देखने लगा.

“कुच्छ देर पहले मेरा हार्ट-फैल होते होते बचा है.” निधी ने कहा.

“क्यों….? तुम्हें ये पॅकेट्स कहाँ से मिले?”

“बताती हूँ…..तोड़ा दम लेने दो.” निधी ने कहा और कप-बोर्ड से विस्की की बोतल निकाली…..फिर ग्लास मे नीट विस्की ढाल कर उस की चुस्कियाँ लेने लगी.

फिर उस ने रुमाल से मूह पोच्च कर कहा “मुझे नींद नहीं आ रही थी. ठीक 1 बजे किसी ने दरवाज़ा नॉक किया. मैं समझी शायद तुम हो. मैं ने उठ कर दरवाज़ा खोल दिया. लेकिन वो कोई और था…..उस ने मुझे दोनों पॅकेट्स दिए…..और एक लिफ़ाफ़ा…..जिस पर मेरा नाम लिखा हुआ था. और फिर उस ने मुझे कुछ पुच्छने का समय नहीं दिया. चुप छाप तुरंत वापस चला गया.”

निधी ने पर्स से एक एन्वालेप निकाल कर इमरान की तरफ बढ़ा दिया.

इमरान ने एन्वालेप से लेटर निकाल कर मेज़ पर फैलाते हुए एक लंबी साँस ली. लिखा हुआ था:

“निधी…..! तुम्हारे फ्रेंड के बाकी नोट के पॅकेट भेज रहा हूँ. लेकिन तुम उन्हें खोल कर देखोगी नहीं. होटेल के बाहर एक नीले रंग की कार खड़ी है. चुप छाप जा कर उस मे बैठ जाओ. वो तुम्हें तुम्हारे फ्लॅट पर पहुँचा देगी. तुम दोनो चाहे जहाँ भी चुपो……मेरी नज़रों से नहीं चुप सकते. मुझे तुम दोनों से कोई दुश्मनी नहीं है……वरना तुम दोनो अब तक ज़िंदा नहीं होते. तुम्हारा दोस्त साधारण सा अपराधी है. जाली नोटों का धनदा कराता है और बस…….उस से कहो की चुप छाप इस शहर से चला जाए……वरना तुम तो मुझे बहुत दिनों से जानती हो. मैं और कुच्छ नहीं चाहता. यहाँ से इसी समय निकल जाओ.”

इमरान ने लेटर पढ़ कर निधी से कहा “और तुम नीली कार मे बैठ गयी.”

“क्या कराती….मैं ने सोचा की जब उस ने मेरे ठिकाने का पता लगा लिया तो मुझे किसी प्रकार का नुकसान पहुँचने मे उसे क्या देर लगेगी.”

“रिघ्त…….तुम ने अकल्मंदी का काम किया है.”

“मगर….” निधी इमरान को घूराती हुई बोली “क्या उस ने तुम्हारे बड़े मे ग़लत लिखा है?”

“झक माराता है. अब मैं उस से अपनी मान-हानि का बदला लूँगा.”

“देखो तोते…..मैं ने तुम्हारे बड़े मे बहुत कुच्छ सोचा है…..और हन…..ये दीवाली किस खुशी मे माना न्यू एअर है?”

“मैं बहुत अधिक रौशनी चाहता हूँ…..मगर तुम ने मेरे बड़े मे ग़लत ही सोचा होगा. अच्छा अब तुम यहाँ मुझे कभी नहीं देखोगी.”

“तो रियली इस शहर से जा रहे हो?”

“मैं किसी के ऑर्डर का पाबंद नहीं हूँ. और फिर भला उस मसखारे से दर कर भागुंगा?”

“प्लीज़……मुझे बताओ की तुम कोन हो?”

“एक मामूली सा मुजरिम……क्या तुम्हें यकीन नहीं आया?”

“नहीं…….मुझे उस की बात पर यकीन नहीं आया. एक मामूली सा मुजरिम उस के मुकाबले मे ठहर सकता है…….यहाँ के अच्छे अच्छे दिल गुर्दे वाले उसकी कल्पना से ही काँपते हैं. तुम मेरे धांडे को जानते ही हो. हर किस्म के आदमियों का सामना होता है.”

“मैं एक शरीफ आदमी हूँ. मम्मी और डॅडी बचपन ही से मुझे इस बात का विश्वास दिलाते रहे हैं.” इमरान ने दुखी स्वर मे कहा “वैसे मैं कभी कभी सच मच हिमाकतें कर बैठता हूँ…..जैसे आज….”

इमरान ने अपना टेलिफोन बूत वाला कारनामा सुना दिया और निधी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी. उस ने कहा “तुम झूते हो. तुम ने मेरी आवाज़ की नकल कैसे उतारी होगी?”

“इस तरह……इस मे मुश्किल ही क्या है?” इमरान ने हू बहू निधी की आवाज़ मे नकल उतारी.

निधी कुच्छ पल उसे हैरात से देखती रही फिर बोली “मगर इस हरकत का मकसद क्या था?”

“मज़ा लेना…..और क्या कहूँ? मगर रिज़ल्ट देखो की उस ने खुद ही पॅकेट्स भेज दिए.”

“तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी है.” निधी ने कहा “ंौुझे इस मे भी कोई चाल लग रही है”

“हो सकता है…..एनीवे मैं जानता हूँ की जूस के आदमी हर समय पिच्चे लगे रहते हैं……वरना उसे तुम्हारा पता कैसे मालूम होता.”

“यही मैं भी सोच रही थी.”

“ये उसी टाइम की बात है जब मैं आज शाम तुम से मिला था. मेरे ही द्वारा वो तुम तक पहुँचा होगा.”

“मगर इमरान……वो आदमी जो पककेटों को लाया था, जानते हो वो कोन था? मुझे हैरात है……वो वही कान कटा मच्चुवारा था, जिस के बड़े मे तुम पुच्छ रहे थे.”

इमरान संभाल कर बैठ गया.

“क्या वो तुम्हें पहले से पहचानता है?”

“यकीन के साथ नहीं कह सकती. नहीं….मुझे पहले कभी उस से बात चिट भी करने का संयोग नहीं हुआ.”

इमरान के माथे पर बाल उभर आए. वो कुच्छ सोच रहा था. थोड़ी देर बाद उस ने एक लंबी अंगड़ाई ली. फिर बोला “जाओ अब सो जाओ. मुझे भी नींद आ रही है……और अगर अब भी मुझे बोर करोगी तो इसी समय यहाँ से चला जवँगा.”

निधी चुप छाप उठी और अपने बेडरूम मे चली गयी.

एक भयानक आदमी – 11

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Re: एक भयानक आदमी – Indian Sex Thriller

Unread post by sexy » 06 Oct 2015 11:18

इमरान दरवाज़े और खिड़कियाँ बंद करने के बाद थोड़ी देर तक चेवींगुँ चबाता रहा. फिर नोटों के पॅकेट्स खोल दिए. उसे उम्मीद थी की उन पॅकेट्स मे कुच्छ ना कुच्छ ज़रूर होगा……क्यों की निधी को इन पककेटों को ना खोलने की हिदायत दी गयी थी.

उस का विचार सही निकला. एक पॅकेट मे नोटों के बीच एक तह किया हुआ काग़ज़ का टुकड़ा दिखाई दिया. ये भी एक खत था…..लेकिन इस मे इमरान को संबोधित किया गया था.

“दोस्त……!! बड़े जियाले लगते हो. साथ ही शातिर भी. मगर जाली नोटों का धनदा च्छिच्चोड़ा काम है. अगर तरक्की चाहते हो तो रात को 11 बजे उसी वीरने मे मिलो जहाँ मैं ने तुम पर पहला हमला किया था. एबीसी होटेल वाले शिकारी के बड़े मे सूचना देने केलिए धन्यवाद. वो केवल मच्चलियों के शिकार के लिए वहाँ ठहरा है. लेकिन मच्चलियों के शिकार के बड़े मे कुच्छ नहीं जानता. तो कल रात को तुम ज़रूर मिल रहे हो. मैं इंतेज़ार करूँगा.”

इमरान ने खत के टुकड़े टुकड़े कर के जला डाला. उस के होंतों पर एक शैठानी मुस्कुराहट नाच रही थी. वो उठा और दबे पाओं निधी के फ्लॅट से निकल गया. दूसरी रात जब सब तरफ अंधेरे का साम्राज्या था इमरान उस वीरने मे पहुँच गया……जहाँ उसे बुलाया गया था. वहाँ से आधे काइलामीटर की दूरी पर एबीसी होटेल की खिड़कियों से रौशनी दिखाई दे रही थी.

इमरान उनहीं टीलों के बीच खड़ा था……जहाँ उस पर कुच्छ ही दिनों पहले हमला किया गया था.

उसे अधिक देर इंतेज़ार नहीं करना पड़ा,

“तुम आ गये….” उसे अपने पिच्चे तेज़ किस्म की सरगोशी सुनाई दी.

“इमरान चौंक कर मुड़ा. कुच्छ ही दूरी पर एक स्याह परच्छाइी दिखाई दी.

“हन मैं आ गया.” इमरान ने उसी अंदाज़ मे फुसफुसा कर जवाब दिया. “और मैं तुम से थोड़ा सा भी भयभीत नहीं हूँ.”

“मुझ ऐसे ही लोगों की ज़रूरात थी.” परच्चाय ने उत्तर दिया. “6 माह के भीतर ही करोरे-पाती बना दूँगा.”

“मैं करोरे-पाती नहीं बनना चाहता. मैं केवल इस लिए आया हूँ की……”

“छोड़ो इस बात को. मैं नहीं सुनूँगा. जवानी का खून गर्म होता है…..तुम अभी बचे हो. बुढ़ापे मे पैसों का मोल समझ मे आता है.”

“तुम कहना क्या चाहते हो?” इमरान ने पुचछा.

“मेरे साथ चलो.”

“चलो…..मगर कभी मुझे शादी करने पर मजबूर मत करना. मैं उस के अलावा और हर किस्म की ग़लती कर सकता हूँ.

साया हंस पड़ा. फिर उस ने कहा…..”आज निधी दिन भर तुम्हारी तलाश कराती रही है.”

“वो मुझे सच मच कोई अहमाक़ शहज़ादा समझती है.

“आओ….समय बहुत कम है मेरे पास.” साए ने इमरान की तरफ हाथ बढ़ाते हुए कहा.

“क्या गोद मे अओन?” इमरान ने कहा और एक तरफ हट गया. लेकिन दूसरे ही पल ऐसा लगा जैसे उस की खोपड़ी से अनगिनत तारे निकल कर फ़िज़ा मे फैल रहे हों. किसी ने पिच्चे से उस के सर पर कोई ठोस और भारी चीज़ दे मारी थी. वो लरखदाता हुआ परच्चाय की तरफ बढ़ा…..लेकिन उस तक पहुँचने से पहले ही ढेर हो गया.

***

बेहोश होने के बाद होश कैसे आता है? कम से कम ये बात किसी बेहोश होने वाले की समझ मे आने की चीज़ नहीं है. ऐसे ही इमरान को नहीं पता चल सका की वो कैसे होश मे आया. लेकिन आँख खुलने पर चेतना के जागने मे भी देर नहीं लगी.

वो एक बड़े और सजे सजाए हुए कमरे मे था. लेकिन अकेला नहीं. उस के अलावा कमरे मे 5 आदमी और भी थे. उन के शरीर पर काले रंग के लंबे लंबे चेस्टर थे…..और चेहरे काले नक़ाबों मे चुपे हुए थे. उन मे से एक आदमी किसी किताब के पन्ने पलट रहा था.

“हन भाई….क्या देखा?” उन मे से एक ने उस से पुचछा.

आवाज़ से इमरान ने पहचान लिया की ये वही था जिस से कुच्छ देर पहले टीलों के बीच बातें हुई तीन.

“जी हन….आप का विचार एकदम सही है.” दूसरे आदमी ने किताब पर निगाहें जमाए हुए कहा. “अली इमरान, म.स्क., द.स्क. लंडन, ऑफीसर ऑन स्पेशल ड्यूटीस फ्रॉम सेंट्रल इंटेलिजेन्स बूरेव…..”

“क्यों दोस्त….क्या ख़याल है?” गुमनाम आदमी इमरान की तरफ मूड कर बोला.

“म.स्क., द.स्क. नहीं बल्कि म.स्क., पीयेच.द.” इमरान ने गंभीराता से उत्तर दिया.

“शूट उप.” गुमनाम आदमी ने गरज कर कहा.

“सच मुझ मैं बहुत मूरख आदमी हूँ…..निधी ठीक कहती थी.” इमरान इस ढंग से बर्बदाया जैसे खुद से बोल रहा हो.

“तुम हमारे बड़े मे क्या जानते हो?” गुमनाम आदमी ने पुचछा.

“यही की तुम सब परदा-नासहीन लॅडीस हो…..और मुझे बे-वजह डरा रही हो.”

“तुम यहाँ से ज़िंदा नहीं जा सकते.” गुमनाम आदमी की आवाज़ मे गुर्राहट थी.

“चिंता मत करो. मरने के बाद चला जवँगा.” इमरान ने लपावाही से कहा.

गुमनाम आदमी की डरावनी आँखेंकुचछ पल नक़ाब से इमरान को घूराती रहीं फिर उस ने कहा “तुम्हें बठाना ही पड़ेगा की तुम्हारे कितने आदमी कहाँ कहाँ काम कर रहे हैं?”

“क्या तुम लोग सच मच सीरीयस हो?” इमरान अपने चेहरे पर हैरात के भाव लाते हुए कहा.

किसी ने कोई जवाब नहीं दिया. उस समय उन की खामोशी भी बहुत भयानक लग रही थी.”

इमरान फिर बोला “तुम्हें निश्चित रूप से ग़लत-फ़हमी हुई है है.”

“बकवास कर रहे हो. हमारे फाइल्स बहुत सावधानी से तैयार किए जाते हैं.” गुमनाम आदमी ने कहा.

“तब फिर मैं ही ग़लत हो गया हुंगा.” इमरान ने निराशा से सर हिला कर कहा. “कमाल है…..मैं…यानी….वाहह क्या बात है. मतलब अब अपने लिए कहीं भी जगह नहीं है यारो. ये ज़ुल्म है की तुम लोग मुझे सिब से जोड़ रहे हो.”

“हमारे पास अधिक समय नहीं है.” गुमनाम आदमी ने करोध भरे स्वर मे कहा “तुम्हें सुबह तक का समय दिया जाता है…..अपने आदमियों के नाम और पाते बता दो…..वरना……”

“मेरे विचार से…..” एक नक़ाब पॉश ने उसकी बात काट‚ते हुए कहा, “जलते हुए सलाख वाली कार्रवाई कैसी रहेगी?”

“टाइम नहीं है, सुबह देखेंगे….” गुमना आदमी गुर्राया.

वो सब कमरे से निकल गये और दरवाज़ा बाहर से लॉक्ड कर दिया गया.

इमरान ने एक लंबी अंगड़ाई ली……और सर का वो भाग टटोल कर जहाँ चोट लगी थी….बुरे बुरे से मूह बनाने लगा.

उसे आशा नहीं थी की उस के साथ इस प्रकार का बिहेव किया जाएगा. वो तो यही समझे हुआ था की उस ने अपराधियों को अपने जाल मे फँसा लिया है.

उस ने बे-वजह उन लोगों को हुड-हुड का पता नहीं बताया था. उस के दिमाग़ मे एक स्कीम थी……और वो उस मे कामयाब भी हो गया था. उस ने उस आदमी का पिच्छा कर के जिस ने समंदर के किनारे हुड-हुड के फोटो लिए थे. कम से कम अपराधियों के एक अड्डे का पता तो लगा ही लिया था…..और वहीं उस ने उस आदमी को भी देखा था…..जिस का बायन कान आधा कटा हुआ था.

इमरान थोड़ी देर तक ज्यों का त्यों ईज़ी चेर मे पड़ा रहा. उस का दिमाग़ बहुत तेज़ी से हालात पर गौर कर रहा था.

आधा घंटा बीट गया. शायद पूरी इमारात पर सन्नाटे की हुकूमत थी. कहीं से किसी किस्म की आवाज़ नहीं आ रही थी.

इमरान उठ कर खिड़कियों और दरवाज़ों की जाँच करने लगा. लेकिन कुच्छ ही देर मे उस पर प्रकट हो गया की वो बाहर नहीं निकल सकता. ये सारे दरवाज़े ऐसे थे जो बाहर से लॉक्ड किए जा सकते थे और बाहर से ही खोले जा सकते थे.

उस के दिमाग़ मे एक दूसरा और अत्यंत महत्त्वपूर्ण सवाल भी था की इमारात इस समय खाली है या कुच्छ और लोग भी मौजूद हैं. दोनों ही सूरात मे हालात चिंता-जनक थे. इमारात मे उस का कएला रहना असंभव था. लेकिन अगर उस के अलावा कुच्छ और लोग भी थे तो इमारात पर कब्रिस्ठान जैसा सन्नाटा क्यों था? क्या वो सो रहे हैं? इमरान ने सोचा की ये भी नामुमकिन है. उन्हों ने अपनी समझ से एक ख़तरनाक दुश्मन को पकड़ लिया है. इस लिए उस की तरफ से गाफील हो कर सो रहना कल्पना से परे था.

इमरान अच्छी तरह जानता था की सुबह उसे नाश्ते की मेज़ पर वालेकम कहने के लिए बंदी नहीं बनाया गया है. यहाँ ऐसी आओ-भगत होगी की शुकरिया अदा करने का मौका ना मिल सकेगा.

और फिर उठ कर टहलने लगा.. फिर अचानक उस ने दरवाज़ा को पीट कर चिल्लाना शुरू कर दिया.

बाहर कदआंटी की आहत हुई…..और किसी औरात ने सुरीली आवाज़ मे दाँत कर कहा…..”क्यों शोर मचा रहे हो?”

“मैं बाहर जाना चाहता हूँ.” इमरान ने बड़ी गंभीराता से जवाब दिया.

“बकवास मत करो.”

“शूट-उप.” इमरान बहुत ज़ोर से गरजा. “मैं तुझ जैसी कुतीया की बची से बात नहीं करना चाहता……किसी मर्द को भेज दे…..”

“तुम कुत्ते के पिल्ले…..खामोशी से बैठे रहो…..वरना गोली मार दी जाएगी.”

इस बार इमरान ने उसे बड़ी गंदी गंदी गालियाँ दी. जवाब मे वो भी बरस पड़ी.

इमरान ने इस से अनुमान लगा लिया की वो औरात इमारात मे अकेली है वरना वो उस की मरम्मत के लिए किसी मर्द को ज़रूर बुलाती.”

और कुच्छ देर तक उसे बुरा भला कहती रही…..फिर खामोश हो गयी. इमरान उस के कदआंटी की आवाज़ सुन रहा गतहा. उस ने अंदाज़ लगा लिया की करीब ही के किसी कमरे मे गयी है.

इमरान सोच रहा था की ऐसे हालात मे भी अगर वो हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा तो आने वाली नस्लें उसे सच मच ‘महान मूरख‚ ही के नाम से याद करेंगी.

वो एक बार फिर कमरे का निरीक्षण करने लगा. अचानक उसकी नज़र रस्सी के एक लच्चे पर पड़ी. उस ने झपट कर उसे उठा लिया. रस्सी की मोटाई आधे इंच से अधिक नहीं रही होगी…..और ऐसा लग रहा था जैसे वो पानी मे भिगो कर सुखाई गयी हो. इमरान कुच्छ पल उसे देखता रहा…..और फिर उस के होंतों पर एक शैठानी मुस्कुराहट नाचने लगी. इमरान के मूह से गालियाँ सुन कर उस औरात का मूड बहुत अधिक खराब हो गया था. वो काफ़ी सुंदर थी और उम्र भी 22-23 साल से अधिक ना रही होगी. हो सकता है की उस के साथी उसके नखरो को सर आँखों पर लेते रहे होंगे. एनीवे वो ऐसी नहीं लगती थी की किसी की कड़वी कसैली बातो को बर्दाश्त कर सकती.

और ये हक़ीकत थी की वो इस समय इमारात मे अकेली थी. इमरान को बंदी बनाने वालों को शायद पक्का विश्वास था की वो यहाँ से निकल ना सकेगा. वरना वो ऐसी ग़लती कभी ना करते. वो लड़की गुस्से से कांपाती हुई बेड पर जा पड़ी. उसे शायद अपने साथियों पर भी गुस्सा आ रहा था.

वो सो जाना चाहती थी. मगर नींद का दूर दूर तक पता नहीं था. आधा घंटा बीट गया. वो करवटें बदलती रही. अचानक उस ने एक चीख सुनी……..जो क़ैदी के कमरे से उठी थी……और फिर कुच्छ इस ढंग की आवाज़ें आने लगीं जैसे कोई किसी का गला घोंट रहा हो.

वो एका-एक उच्छल कर खड़ी हो गयी…..और अनायास बंदी के कमरे की तरफ दौड़ने लगी. लेकिन अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी. हर तरफ पहले की तरह सन्नाटा था.

“क्या है….? क्यों शोर मचा रखा है?” उस ने कमरे के सामने पहुँच कर कहा.

लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं मिला. एक ख़िड़ी की झिरी पर उस की निगाह पड़ी….और उस ने समझ लिया की अंदर लाइट जल रही है.

अगले ही पल उस की एक आँख उस झिरी से जा लगी. लेकिन फिर वो इस तरह झटके के साथ पिच्चे हट गयी जैसे बिजली का झटका लगा हो. उस ने कमरे के अंदर जो कुच्छ भी देखा वो उस के रोंगटे खड़े कर देने के लिए काफ़ी था.

च्चत से एक लाश लटक रही थी. उस के पैर ज़मीन से लगभग ढाई टीन फीट उँचाई पर झूल रहे थे…..और गर्दन मे रस्सी का फंडा. चेहरा दूसरी तरफ था.

सॉफ ज़ाहिर हो रहा था की बंदी ने एक कुर्सी पर खड़े हो कर फंडा अपनी गर्दन मे डाला और फिर लात मार कर कुर्सी एक तरफ गिरा दी. ब्लॅक जॅकेट और ब्लॅक पॅंट्स मे वो लाश बड़ी डरावनी लग रही थी.

वो एक बार फिर झिरी से अंदर झाँकने लगी. उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा था क्यों की उस ने उस बंदी की दिलेरी भारी हरकतों के बड़े में अपने साथियों से बहुत कुच्छ सुना था.

सपने मे भी उसे आशा नहीं थी की ऐसा निडर और बहादुर आदमी इस तरह आत्महत्या कर लेगा. हालाकी वो कुच्छ देर पहले उसका अपमान कर चुका था. लेकिन फिर भी वो उस के अंजम से दुखी हुए बिना नहीं रह सकी थी.

वो कोई कमज़ोर दिल की लड़की नहीं थी. कमज़ोर दिल की लड़की ऐसे ख़तरनाक अपराधियों के संग रह कैसे सकती थी.

वो कुच्छ पल खड़ी कुच्छ सोचती रही फिर दरवाज़ा खोल कर कमरे मे दाखिल हो गयी. लाश की पीठ दरवाज़े की तरफ थी. लड़की आगे बढ़ी ताकि लाश का चेहरा देख सके.

लेकिन इस से पजले की वो उस तक पहुँचती…..लाश रस्सी के फंदे से निकल कर धाम से फर्श पर आ रही. लड़की घबरा कर पिच्चे हट गयी. लेकिन इमरान ने उसे बाहर निकालने का मौका नहीं दिया. दूसरे ही पल उसकी सुराही-दार गर्दन इमरान के पंजे मे थी.

“वो यहाँ कब वापस आएँगे?” इमरान ने पकड़ मज़बूत करते हुए पुचछा.

लड़की थूक निगल कर रह गयी. उस की आँखें हैरात और ख़ौफ़ से फटी हुई तीन……और वो बुरी तरह काँप रही थी.

“बताओ…….वरना गला घोंट दूँगा.” इमरान के चेहरे पर करूराता दिखाई देने लगी.

“साढ़े…..साढ़े टीन बजे….”

“झूट बक रही हो….उपर वाले से डरो…..नहीं तो ज़ुबान सर जाएगी.” इमरान ने मूरखता भरे ढंग से कहा और उसकी गर्दन छोड़ दी.

लड़की उसी जगह खड़ी हाँफती रही.

“तुम ने कुच्छ देर पहले मुझे बुरा भला कहा था. अब कहो तो तुम्हारे कान और नाक काट लूँ.”

लड़की कुच्छ ना बोली. इमरान बकता रहा….”तुम शकल से शरीफ लगती हो….वरना मैं अभी तुम्हें गला घोंट कर मार डालता. क्या तुम इन मे से किसी की वाइफ हो?”

लड़की ने इनकार मे सर हिला दिया……और इमरान गरजदार आवाज़ मे बोला….”फिर तुम क्या बाला हो…..मूह से बोलो….वरना इसी रस्सी मे तुम्हारी लाश लटकती हुई दिखाई देगी.”

“मैं इन के किसी अपराध मे शामिल नहीं हूँ.” लड़की ने भर्रय हुई आवाज़ मे कहा.

“तुम आख़िर हो कोन?”

“मैं जो भी हूँ…..यही हूँ……और जीवन से तंग आ गयी हूँ. उन्हों ने मुझे कहीं का ना रखा है. लेकिन अब मैं हर हाल में उनके पंजे से निकलना चाहती हूँ.”

“शाबास….ओक…..अब मैं तुम्हें बचा लूँगा. लेकिन जो भी मैं कहूँगा वही करो.”
एक भयानक आदमी – 12

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