Re: Thriller अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) adultery Thriller
Posted: 05 Jul 2020 11:03
कार का पिछला दरवाजा खोले अंदर झुका सैनी कदमों की आहट सुनकर फौरन सीधा खड़ा हो गया।
आगंतुक राज था।
-“इसकी सांस चल रही है।” उसने पूछा।
शराब के प्रभाववंश सैनी के चेहरे पर उत्पन्न तमतमाहट खत्म हो चुकी थी।
-“हाँ, सांस चल रही है।” वह बोला- मेरे ख्याल से इसे अंदर नहीं ले जाना चाहिए। लेकीन अगर तुम कहते हो तो अंदर ले जाएंगे।”
-“सोच लीजिए, आप का कारपेट गंदा हो जाएगा।”
सैनी उसके पास आ गया। उसकी आँखें कठोर थीं।
-“बेकार की बातें मत करो। यह तुम्हें कहाँ मिला था?”
-“एयरफोर्स कैम्प से दक्षिण में कोई दो मील दूर खाई में।”
-“तुम इसे मेरे दरवाजे पर ही क्यों लाए?”
-“इसलिए कि मुझे यही पहली इमारत नजर आई थी।” राज शुष्क स्वर में बोला- “अगली बार ऐसी नौबत आने पर यहाँ रुकने की बजाय आगे चला जाऊंगा।”
-“मेरा यह मतलब नहीं था।”
-“फिर क्या था?”
-“मैं सोच रहा था, क्या यह महज इत्तिफाक है।”
-“क्यों? तुम इसे जानते हो?”
-“हाँ। यह मनोहर लाल है। बवेजा ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक ड्राइवर।”
-“अच्छी तरह जानते हो?”
-“नहीं। शहर के ज़्यादातर लोगों को जानना मेरे धंधे का हिस्सा है लेकिन मामूली ट्रक ड्राइवरों को मुँह मैं नहीं लगाता।”
-“अच्छा करते हो। इसे किसने शूट किया हो सकता है?”
-“तुम किस हक से सवाल कर रहे हो?”
-“यूँ ही।”
-“तुमने बताया नहीं तुम कौन हो?”
-“नहीं बताया।”
-“ऐसा तो नहीं है कि किसी वजह से तुमने ही इसे शूट कर दिया था?”
-“तुम बहुत होशियार हो। मैंने ही इसे शूट किया था और इसे यहाँ लाकर इस तरह भागने की कोशिश कर रहा हूँ।”
-“तुम्हारी शर्ट पर खून लगा देख कर मैंने यूँ पूछ लिया था।”
उसके चेहरे पर कुटिलतापूर्ण मुस्कराहट देखकर राज के जी में आया उसके दाँत तोड़ दे लेकिन अपनी इस इच्छा को दबाकर वह कार की दूसरी साइड में चला गया। डोम लाइट का स्विच ऑन कर दिया।
घायल मनोहर लाल के मुँह से अभी भी खून के छोटे-छोटे बुलबुले बाहर आ रहे थे। आँखें बंद थीं और सांसें धीमी।
एंबुलेंस आ पहुँची। मनोहर लाल को स्ट्रेचर पर डाल कर उसमें डाल दिया गया।
मात्र उत्सुकतावश राज अपनी कार में रहकर एंबुलेंस का पीछा करने लगा।
आगंतुक राज था।
-“इसकी सांस चल रही है।” उसने पूछा।
शराब के प्रभाववंश सैनी के चेहरे पर उत्पन्न तमतमाहट खत्म हो चुकी थी।
-“हाँ, सांस चल रही है।” वह बोला- मेरे ख्याल से इसे अंदर नहीं ले जाना चाहिए। लेकीन अगर तुम कहते हो तो अंदर ले जाएंगे।”
-“सोच लीजिए, आप का कारपेट गंदा हो जाएगा।”
सैनी उसके पास आ गया। उसकी आँखें कठोर थीं।
-“बेकार की बातें मत करो। यह तुम्हें कहाँ मिला था?”
-“एयरफोर्स कैम्प से दक्षिण में कोई दो मील दूर खाई में।”
-“तुम इसे मेरे दरवाजे पर ही क्यों लाए?”
-“इसलिए कि मुझे यही पहली इमारत नजर आई थी।” राज शुष्क स्वर में बोला- “अगली बार ऐसी नौबत आने पर यहाँ रुकने की बजाय आगे चला जाऊंगा।”
-“मेरा यह मतलब नहीं था।”
-“फिर क्या था?”
-“मैं सोच रहा था, क्या यह महज इत्तिफाक है।”
-“क्यों? तुम इसे जानते हो?”
-“हाँ। यह मनोहर लाल है। बवेजा ट्रांसपोर्ट कंपनी का ट्रक ड्राइवर।”
-“अच्छी तरह जानते हो?”
-“नहीं। शहर के ज़्यादातर लोगों को जानना मेरे धंधे का हिस्सा है लेकिन मामूली ट्रक ड्राइवरों को मुँह मैं नहीं लगाता।”
-“अच्छा करते हो। इसे किसने शूट किया हो सकता है?”
-“तुम किस हक से सवाल कर रहे हो?”
-“यूँ ही।”
-“तुमने बताया नहीं तुम कौन हो?”
-“नहीं बताया।”
-“ऐसा तो नहीं है कि किसी वजह से तुमने ही इसे शूट कर दिया था?”
-“तुम बहुत होशियार हो। मैंने ही इसे शूट किया था और इसे यहाँ लाकर इस तरह भागने की कोशिश कर रहा हूँ।”
-“तुम्हारी शर्ट पर खून लगा देख कर मैंने यूँ पूछ लिया था।”
उसके चेहरे पर कुटिलतापूर्ण मुस्कराहट देखकर राज के जी में आया उसके दाँत तोड़ दे लेकिन अपनी इस इच्छा को दबाकर वह कार की दूसरी साइड में चला गया। डोम लाइट का स्विच ऑन कर दिया।
घायल मनोहर लाल के मुँह से अभी भी खून के छोटे-छोटे बुलबुले बाहर आ रहे थे। आँखें बंद थीं और सांसें धीमी।
एंबुलेंस आ पहुँची। मनोहर लाल को स्ट्रेचर पर डाल कर उसमें डाल दिया गया।
मात्र उत्सुकतावश राज अपनी कार में रहकर एंबुलेंस का पीछा करने लगा।