Re: Thriller अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) adultery Thriller
Posted: 05 Jul 2020 11:04
-“वह एयरफोर्स की उस बेस से कोई दो मील दूर सड़क के नीचे खाई में पड़ा था। वह घुटनों के बल उठा और हाथ हिलाकर मुझे कार रोकने का इशारा किया।”
-“यानि तब तक वह होश में था?”
-“ऐसा ही लगता है,”
-“उसने कुछ कहा था?”
-“नहीं। जब तक मैं कार से उतर कर उसके पास पहुँचा वह बेहोश हो चुका था। उसकी हालत को देखते हुए उसे वहाँ से उठाना तो मैं नहीं चाहता था लेकिन फोन करने या किसी को मदद के लिए बुलाने का कोई साधन वहाँ नहीं था। इसलिए उसे उठा कर अपनी कार की पिछली सीट पर डाला और पहली इमारत के पास पहुँचते ही एंबुलेंस के लिए फोन करा दिया।”
-“किस जगह से?”
-“सैनी डीलक्स मोटल से। सैनी पर इस की अजीब सी प्रतिक्रिया हुई। लगता है वह मनोहर लाल को जानता तो था लेकिन उसके जीने या मरने से कोई मतलब उसे नहीं था। एंबुलेंस के लिए उसकी पत्नि ने फोन किया था।”
-“मिसेज सैनी वहाँ क्या कर रही थी?”
-“रिसेप्शनिस्ट की तरह डेस्क पर मौजूद थी।”
-“सैनी की मैनेजर वहाँ नहीं थी?”
-“वह कौन है?”
-“मिस बवेजा।”
-“अगर वह वहाँ थी भी तो मैंने उसे नहीं देखा। क्या उससे कोई फर्क पड़ता है?”
-“नहीं।” इन्सपैक्टर अचानक तीव्र हो गए अपने स्वर को सामान्य बनाता हुआ बोला- “यह पहला मौका है- मैंने रजनी सैनी को वहाँ काम करती सुना है।”
एस. आई. ने अपनी नोट बुक से सर ऊपर उठाया।
-“इस हफ्ते वह रोज वहाँ काम करती रही है, सर।”
इन्सपैक्टर के चेहरे की मांसपेशियाँ खिंच गईं और आँखों में विचारपूर्ण भाव झाँकने लगे।
-“सैनी थोड़ा नशे की झोंक में था शायद इसीलिए वह कड़ाई से पेश आया था। उसने मुझसे पूछा मैंने ही तो उस आदमी को शूट नहीं कर दिया था।” राज ने कहा।
-“तुमने क्या जवाब दिया?”
-“यही की मैंने तो पहले कभी उसे देखा तक नहीं था। अगर उसने दोबारा ऐसी बकवास की तो मैं इसे अपने बयान में जोड़ दूँगा।”
-“हालात को देखते हुए आइडिया बुरा नहीं है।” इन्सपैक्टर ने कहकर पूछा- “क्या तुम साथ चल कर वो जगह दिखा सकते हो जहां महोहर लाल को पड़ा पाया था?”
-“जरूर?”
-“लेकिन उससे पहले मैं तुम्हारा ड्राइविंग लाइसेन्स और प्रेस कार्ड देखना चाहूँगा। तुम्हें एतराज तो नहीं है?”
-“नहीं।”
राज ने जेब से दोनों चीजें निकालकर उसे दे दीं।
इन्सपैक्टर ने देखकर वापस लौटा दीं।
-“यानि तब तक वह होश में था?”
-“ऐसा ही लगता है,”
-“उसने कुछ कहा था?”
-“नहीं। जब तक मैं कार से उतर कर उसके पास पहुँचा वह बेहोश हो चुका था। उसकी हालत को देखते हुए उसे वहाँ से उठाना तो मैं नहीं चाहता था लेकिन फोन करने या किसी को मदद के लिए बुलाने का कोई साधन वहाँ नहीं था। इसलिए उसे उठा कर अपनी कार की पिछली सीट पर डाला और पहली इमारत के पास पहुँचते ही एंबुलेंस के लिए फोन करा दिया।”
-“किस जगह से?”
-“सैनी डीलक्स मोटल से। सैनी पर इस की अजीब सी प्रतिक्रिया हुई। लगता है वह मनोहर लाल को जानता तो था लेकिन उसके जीने या मरने से कोई मतलब उसे नहीं था। एंबुलेंस के लिए उसकी पत्नि ने फोन किया था।”
-“मिसेज सैनी वहाँ क्या कर रही थी?”
-“रिसेप्शनिस्ट की तरह डेस्क पर मौजूद थी।”
-“सैनी की मैनेजर वहाँ नहीं थी?”
-“वह कौन है?”
-“मिस बवेजा।”
-“अगर वह वहाँ थी भी तो मैंने उसे नहीं देखा। क्या उससे कोई फर्क पड़ता है?”
-“नहीं।” इन्सपैक्टर अचानक तीव्र हो गए अपने स्वर को सामान्य बनाता हुआ बोला- “यह पहला मौका है- मैंने रजनी सैनी को वहाँ काम करती सुना है।”
एस. आई. ने अपनी नोट बुक से सर ऊपर उठाया।
-“इस हफ्ते वह रोज वहाँ काम करती रही है, सर।”
इन्सपैक्टर के चेहरे की मांसपेशियाँ खिंच गईं और आँखों में विचारपूर्ण भाव झाँकने लगे।
-“सैनी थोड़ा नशे की झोंक में था शायद इसीलिए वह कड़ाई से पेश आया था। उसने मुझसे पूछा मैंने ही तो उस आदमी को शूट नहीं कर दिया था।” राज ने कहा।
-“तुमने क्या जवाब दिया?”
-“यही की मैंने तो पहले कभी उसे देखा तक नहीं था। अगर उसने दोबारा ऐसी बकवास की तो मैं इसे अपने बयान में जोड़ दूँगा।”
-“हालात को देखते हुए आइडिया बुरा नहीं है।” इन्सपैक्टर ने कहकर पूछा- “क्या तुम साथ चल कर वो जगह दिखा सकते हो जहां महोहर लाल को पड़ा पाया था?”
-“जरूर?”
-“लेकिन उससे पहले मैं तुम्हारा ड्राइविंग लाइसेन्स और प्रेस कार्ड देखना चाहूँगा। तुम्हें एतराज तो नहीं है?”
-“नहीं।”
राज ने जेब से दोनों चीजें निकालकर उसे दे दीं।
इन्सपैक्टर ने देखकर वापस लौटा दीं।