Re: Thriller अचूक अपराध ( परफैक्ट जुर्म ) adultery Thriller
Posted: 05 Jul 2020 11:05
राज द्वारा मोटल के सामने इन्सपैक्टर की कार के पीछे कार रोकी जाते ही सतीश सैनी लॉबी से बाहर आ गया। स्पष्ट था वह सड़क पर निगाहें जमाए ही अंदर बैठा था।
-“हलो कौशल। कैसे हो?”
-“बढ़िया।”
उन्होंने हाथ मिलाए।
राज ने नोट किया दोनों बातें करते वक्त एक-दूसरे को उन दो प्रतिद्वद्वंदियों की भांति देख रहे थे जो पहले भी आपस में शतरंज या उससे ज्यादा खतरनाक कोई और खेल खेल चुके थे।
सैनी ने बताया वह नहीं जानता था मनोहर के साथ क्या हुआ था और क्यों हुआ। उसने न तो कोई गलत बात देखी, न सुनी और न ही की थी। इस पूरे मामले से उसका ताल्लुक सिर्फ इतना था की मनोहर को कार में लाने वाले आदमी ने वहाँ आकर टेलीफोन करने के बारे में कहा था।
राज को घूरकर वह खामोश हो गया।
इन्सपैक्टर चौधरी ने नो वेकेंसी के प्रकाशित साइन बोर्ड पर निगाह डाली।
-“तुम्हारा धंधा बड़िया चल रहा है?”
-“नहीं।” सैनी मुँह बनाकर बोला- “बहुत मंदा है।”
-“तो फिर यह नो वेकेंसी का बोर्ड क्यों लगा रखा है?”
-“रजनी की वजह से। वह रिसेप्शन डेस्क पर बैठ कर ड्यूटी नहीं दे सकती।”
-“क्यों? मीना छुट्टी पर है?”
-“ऐसा ही समझ लो।”
-“मतलब? उसने नौकरी छोड़ दी?”
सैनी ने अपने भारी कंधे उचकाए।
-“पता नहीं। मैं तुमसे पूछने वाला था।”
इन्सपैक्टर चौधरी की भवें सिकुड़ गईं।
-“मुझसे क्यों?”
-“क्योंकि तुम उसके रिश्तेदार हो । वह इस हफ्ते काम पर नहीं आई है और मैं कहीं भी उसे कांटेक्ट नहीं कर पाया।
-“अपने फ्लैट में नहीं है?”
-“नहीं।”
-“तुम वहाँ गए थे?”
-“नहीं।” लेकिन फोन करने पर वहाँ सिर्फ घंटी बजती रही है। सैनी इन्सपैक्टर की आँखों में झाँकता हुआ बोला- “तुम भी उससे नहीं मिले?”
-“इस हफ्ते नहीं।” इन्सपैक्टरर ने जवाब दिया फिर संक्षिप्त मोन के पश्चात बोला- “हम अब मीना से ज्यादा नहीं मिलते।”
-“अजीब बात है। मैं तो उसे तुम्हारे ही परिवार का हिस्सा समझता था।”
-“हलो कौशल। कैसे हो?”
-“बढ़िया।”
उन्होंने हाथ मिलाए।
राज ने नोट किया दोनों बातें करते वक्त एक-दूसरे को उन दो प्रतिद्वद्वंदियों की भांति देख रहे थे जो पहले भी आपस में शतरंज या उससे ज्यादा खतरनाक कोई और खेल खेल चुके थे।
सैनी ने बताया वह नहीं जानता था मनोहर के साथ क्या हुआ था और क्यों हुआ। उसने न तो कोई गलत बात देखी, न सुनी और न ही की थी। इस पूरे मामले से उसका ताल्लुक सिर्फ इतना था की मनोहर को कार में लाने वाले आदमी ने वहाँ आकर टेलीफोन करने के बारे में कहा था।
राज को घूरकर वह खामोश हो गया।
इन्सपैक्टर चौधरी ने नो वेकेंसी के प्रकाशित साइन बोर्ड पर निगाह डाली।
-“तुम्हारा धंधा बड़िया चल रहा है?”
-“नहीं।” सैनी मुँह बनाकर बोला- “बहुत मंदा है।”
-“तो फिर यह नो वेकेंसी का बोर्ड क्यों लगा रखा है?”
-“रजनी की वजह से। वह रिसेप्शन डेस्क पर बैठ कर ड्यूटी नहीं दे सकती।”
-“क्यों? मीना छुट्टी पर है?”
-“ऐसा ही समझ लो।”
-“मतलब? उसने नौकरी छोड़ दी?”
सैनी ने अपने भारी कंधे उचकाए।
-“पता नहीं। मैं तुमसे पूछने वाला था।”
इन्सपैक्टर चौधरी की भवें सिकुड़ गईं।
-“मुझसे क्यों?”
-“क्योंकि तुम उसके रिश्तेदार हो । वह इस हफ्ते काम पर नहीं आई है और मैं कहीं भी उसे कांटेक्ट नहीं कर पाया।
-“अपने फ्लैट में नहीं है?”
-“नहीं।”
-“तुम वहाँ गए थे?”
-“नहीं।” लेकिन फोन करने पर वहाँ सिर्फ घंटी बजती रही है। सैनी इन्सपैक्टर की आँखों में झाँकता हुआ बोला- “तुम भी उससे नहीं मिले?”
-“इस हफ्ते नहीं।” इन्सपैक्टरर ने जवाब दिया फिर संक्षिप्त मोन के पश्चात बोला- “हम अब मीना से ज्यादा नहीं मिलते।”
-“अजीब बात है। मैं तो उसे तुम्हारे ही परिवार का हिस्सा समझता था।”