एक छोटी सी कहानी-- नौ-लक्खा

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
rajaarkey
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Re: एक छोटी सी कहानी-- नौ-लक्खा

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 21:46




Din raat vo apne gareebi aur majboori par rona jaise uski zindagi ban chuka tha. Mayusi aur bebasi mein vo is kadar kho gayi thi ke apni bachpan ki dost Pallavi se bhi usne milna julna band kar diya tha. Vajah thi ke Pallavi ek ameer ghar se thi aur vo usse milkar use ye apni gareebi ka ehsaas nahi dilana chahti thi.


Phir ek shaam uske pati ne office se aate hi uske haath mein ek bada sa envelope thama diya.


"Kya hai ye?" Usne bedili se puchha

"Kholkar dekho" Muskurate hue uske pati ne jawab diya.


Usne lifafa phaad kar khola aur andar se ek invitation card nikla. Sawaliya nazar se usne apne pati ki taraf dekha.


"Office ki taraf se ek party rakhi ja rahi hai. Hamari office ke sab bade log party mein aayenge. Usi ka invitation hai"


Bajay khush hone ke, jiski uske pati ko bahut ummeed thi, usne vo invitation card kamre mein rakhi table par patak diya.

"Toh main kya karun iska?"

"Aisa kyun kehti ho. Mujhe laga tumhein khushi hogi. Tum kabhi kahin bahar nahi jaati aur ye ek bahut aalishan party hai. Sab bade bade log shaamil hote hain aur ye invitation bhi sabko nahi milta. Maine badi mushkil se haasil kiya hai"


Usne gusse bhari nazar se apne pati ko aise ghoora jaise abhi use kha jaayegi.

"Aur tumhein kya lagta hai ke itni badi party mein main kya pehenkar jaoongi?"


Uske pati ko ekdam jawab nahi soojha. Is baat ki taraf uska bilkul dhyaan nahi gaya tha.


"Pehen lo kuchh bhi" Vo haklate hue bola "Kaafi saare kapde hain toh tumhare paas aur unmein se kuchh ...."


Kehta kehta vo achanak ruk gaya. Saamne khadi uski biwi ab ro rahi thi. Badi badi aankhon se mote mote aansoo behkar uske gaal par ludhak rahe the.


"Kya hua?" Vo fauran uske kareeb aata hua bola


Jitni achanak se usne rona shuru kiya tha vaise hi vo achanak chup ho gayi aur apne chehre se aansoo ponchhte hui boli,

"Kuchh nahi. Mere paas pehenne ke liye dhang ka kuchh bhi nahi hai isli main is party mein nahi ja sakti. Ye invitation apne kisi dost ko de do jiski biwi ke paas dhang ka ek jodi kapda toh ho"


Shakal dekh kar hi maalum hota tha ke uski baat se uska pati ko kaafi dukh hua tha.


"Achha dil chhota mat karo" Vo uska haath pakadta hua bola "Kitne tak ki aa jaayegi ek dress jo tum aisi party mein pehen sako?"


Vo ek pal ke liye chup hokar sochne lagi. Uske dimag mein alag alag brand ke kapde daudne lage aur vo ek aisi keemat ka andaza lagane lagi jo itni kam na ho ke vo apne pasand ka kapda na le sake par itni zyada bhi na ho ke uska pati sunte hi inkaar kar de.


"4-5 hazar se kya kam hoga" Kuchh der sochne ke baad vo boli.


Keemat sunte hi patidev ki aankhen hairat se phel gayi aur chehra safed ho chala. Ek pal ke liye use laga ke vo zyada keemat bol gayi.


"Theek hai. Main 5 hazar deta hoon. Tum apne liye ek achhi si dress le aao"


Party ka din dheere dheere nazdeek aata ja raha tha aur uski bechaini badhti ja rahi thi. Vo apne liye apni pasand ki ek dress le aayi thi magar .....


"Kya baat hai?" Ek shaam uske pati ne kaha "Dekh raha hoon ke pichhle kuchh din se kaafi bechain si ho?"

"Main party mein nahi ja rahi?" Usne jawab diya

"Kyun?"

"Ek dhang ki jewellery nahi hai mere paas. Zewar ke naam par pehenne ko kuchh bhi nahi"


"Tumhari shaadi ke kuchh gehne hain toh. Vahi daal lo"

Usne gusse mein apne pati ko ghoora.

"Main party mein ja rahi hoon, phir se shaadi karne nahi ja rahi"

"Toh aise hi chal lo" Uske pati ne dheere se kaha

"Vahan kitni ameer ameer auraten hongi. Unke beech tumhari biwi aise bina kisi zewar ke achhi lagegi?"


Kuchh der ke liye kamre mein khamoshi ho gayi.


"Tumhari vo dost hai na" Kuchh der baad uska pati bola "Pallavi jiske baare mein tum hamesha batati ho. Usse le aao ek raat ke liye kuchh"

Uske chehre par achanak khushi ki lehar daud gayi.

"Haan ye toh maine socha hi nahi tha" Pallavi uski kaafi kareebi dost thi aur vo jaanti thi ke vo use mana nahi karegi.

kramashah....................


rajaarkey
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Re: एक छोटी सी कहानी-- नौ-लक्खा

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 21:47

नौ-लक्खा--2

गतान्क से आगे.................................
अगले दिन ही वो पल्लवी से मिलने पहुँच गयी और अपना दुखड़ा उसके सामने रोया.
उसकी बात सुनकर पल्लवी उसको अपने कमरे में ले गयी और अपने सारे गहने उसके सामने रख दिए.


"तुझे जो पसंद हो उठा ले"


पहले उसने कुच्छ ब्रेस्लेट्स देखे, फिर कुच्छ सोने की चेन्स, फिर कुच्छ एअर रिंग्स. बारी बारी वो सब कुच्छ पहेन कर अपने आपको शीशे में देखती और हर बार उसका दिल यही करता के जो उसने पहेन रखा है उसे ना उतारे. पर फिर भारी दिल से वो उतार कर पल्लवी को वापिस दे देती और कुच्छ और पहेन कर देखती.


अचानक उसकी नज़र एक काले रंग के ज्यूयलरी केस पर पड़ी. खोलकर देखा तो अंदर एक हीरों का हार था. उस हार पर एक नज़र पड़ते ही उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. डिब्बे से उसने हार निकाल कर अपने गले की तरफ बढ़ाया तो उसके हाथ काँप रहे थे. उसने हार पहेन कर देखा तो वो उसकी ड्रेस के साथ बिल्कुल मॅच कर गया. उस हार और ड्रेस में अपने आप को देख कर वो खुद ही इठलाने लगी.


"मैं ये ले लूँ?"

"हां हां ले जा" पल्लवी ने फ़ौरन जवाब दिया.

वो खुशी के मारे आगे बढ़कर पल्लवी से लिपट गयी और थोड़ी देर बाद हार लेकर अपने घर आ गयी.


पार्टी वाले दिन वो जैसे महफ़िल की जान थी. वो वहाँ मौजूद सब औरतों में सबसे ज़्यादा खूबसूरत थी. उसका रंग रूप, उसके अंदाज़, उसकी हसी वहाँ हर किसी से अलग था. पार्टी में मौजूद हर मर्द की नज़र उसपर थी.


हर कोई उससे बात करना चाहता था, उसका नाम पुच्छना चाहता था, उसके साथ डॅन्स करना चाहता था. हर किसी की ज़ुबान पर उस शाम बस उसी का नाम था.
उस रात वो बहुत देर तक नाचती रही. कुच्छ पार्टी में मौजूद लोग बार बार उसे डॅन्स के लिए पूछते रहे और कुच्छ खुद उसका भी रुकने का दिल नही किया. उस शाम वो एक अलग ही दुनिया में थी जहाँ उसकी ग़रीबी और उसकी मजबूरी उससे कोसों दूर थी.


सुबह के 3 बजे वो लोग पार्टी से निकले. पूरी पार्टी में उसका पति अपने बॉस के साथ शराब पीता रहा और वो नाचती रही थी इसलिए दोनो ही काफ़ी थके हुए थे. बाहर से उन्होने एक टॅक्सी की जिसने थोड़ी देर बाद उन्हें उनके घर के आगे लाकर छ्चोड़ दिया.


घर पहुँच कर उसने लाइट्स ऑन की और सीधी अपने कमरे में लगे फुल साइज़ मिरर के आगे आ खड़ी हुई ताकि अपने आपको निहार सके. सामने जो नज़र आया वो देख कर उसके मुँह से चीख निकल गयी.


हीरों का वो हार जो पूरी रात उसके गले की शान बना हुआ था अब उसके गले से गायब था.

"चिल्ला क्यूँ रही हो?" नशे में उसका पति बड़बड़ाया.

वो अपने मुँह पर हाथ रखे उसकी तरफ पलटी.

"हार खो गया"

"क्या?"

"पल्लवी का हीरों वाला हार" वो हकलाते हुए बोली "खो गया"


एक झटके में उसके पति का सार नशा गुल हो गया.

"खो गया मतलब?? ऐसे कैसे खो गया?"


उन्हें मिलकर अपना पूरा घर छान मारा. उसकी ड्रेस को उतार कर झाड़ा, कोट में चेक किया, उसके बॅग को उलट कर देखा पर हार का कहीं कोई निशान नही था.


"तुम्हें यकीन है के जब तुम पार्टी में से निकली थी तो हार गले में था?"

"हां मुझे पता है के हार था. म्र्स. मल्होत्रा ने बाहर जाते जाते भी हार को देख कर उसकी तारीफ की थी"

"पर अगर बाहर कहीं सड़क पर गिरा होता तो तुम्हें आवाज़ तो आती"

"हां बात तो सही है. एक मिनट, वो टॅक्सी. उसका नंबर याद है?" वो अचानक बोली

"नही मैने ध्यान नही दिया. तुमने देखा?"

"नही" उसने भी इनकार में गर्दन हिला दी.


कुच्छ देर तक वो दोनो ऐसे ही बैठे एक दूसरे को देखते रहे. कुच्छ देर बाद उसके पति ने उठ कर फिर से कपड़े पहने.


"मैं देख कर आता हूँ. शायद कहीं गिरा मिल जाए"


पर ऐसा हुआ नही. वो जाकर हर उस जगह पर देख आया जहाँ वो दोनो एक सेकेंड के लिए भी खड़े हुए थे पर हार नही मिला.

rajaarkey
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Re: एक छोटी सी कहानी-- नौ-लक्खा

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 21:48


"अब मैं पल्लवी को क्या जवाब दूँगी?" वो रोते हुए बोली

"उसे फोन करके बोलो के हार को हुक टूट गया है और तुम ठीक करवा के वापिस दोगि. थोड़ा सोचने का टाइम मिल जाएगा"


और अपने पति के कहने पर उसने ऐसा ही किया.

अगले कुच्छ दिन तक वो दोनो करी बार पार्टी वाली जगह पर गये, पार्टी में आए लोगों से पुछा पर हार का कुच्छ पता नही चला.


"नया लेकर देना पड़ेगा, वैसा ही जैसा के वो हार था" उसके पति ने थक हार कर कहा.


अगले दिन वो हार के डिब्बे पर लिखा अड्रेस देख कर ज्यूयलरी शोरुम पहुँचे.

"जी हां हमारे यहाँ से ही बिका है" शोरुम में डिब्बा देख कर ज़ोहरी ने कहा "ये नौ-लक्खा हमारी स्पेशॅलिटी है"

"ऐसा ही एक बनवाना है"

"जी बन जाएगा. 9 लाख में से आधे आपको अड्वान्स देने होंगे और बाकी आधे डेलिवरी पर"


कीमत सुन कर दोनो की आँखें हैरत से खुली की खुली रह गयी पर और कोई रास्ता था भी नही. उनके अगले कुच्छ दिन यही सोचने में निकले के 9 लाख का इंटेज़ाम कहाँ से करें. उसकी शादी के गहने, पति का प्रोविडेंट फंड, मोटरसाइकल सब चीज़ों को जोड़कर देखा गया पर फिर आख़िर में उन्हें अपना घर ही गिरवी
रखा पड़ा.


4.5 लाख अड्वान्स देते वक़्त उसने हार में लगने वाले हीरों और बाकी चीज़ों को खुद देख कर ये तसल्ल्ली की थी के हार बिल्कुल वैसा ही दिखे जैसा की पल्लवी के पास था.


एक महीने बाद जब वो हार लौटने गयी तो पहली बार पल्लवी ने उसे देख कर मुँह बनाया.


"मुझे बीच में ज़रूरत पड़ी थी हार की. टाइम पे वापिस करती यार"


पर पल्लवी ने डिब्बा खोल कर हार देखा नही जिसका उसे बहुत डर था. हार हूबहू पल्लवी के हार जैसा ही दिखता था पर वो कहते हैं ना का चोर की दाढ़ी में तिनका. उसे लग रहा था के पल्लवी डिब्बा खोल कर देखेगी और पहचान जाएगी के ये हार उसका नही है पर ऐसा हुआ नही.

और फिर ज़िंदगी ने एक अजीब सा मोड़ ले लिए. जिस चीज़ से उसको सख़्त नफ़रत थी वो अब और ज़्यादा बढ़ गयी थी यानी के मजबूरी.

घर में काम करने वाली लड़की को हटा दिया गया, उसके शादी के गहने बेच दिए गये, पातिदेव मोटरसाइकल बेच कर बस में सफ़र करने लगे. दोनो के दिमाग़ में बस एक ही ख्याल था के सर से किसी भी तरह क़र्ज़ उतार कर अपना घर छुड़ा लें इससे पहले के सड़क पर आने की नौबत आए.


और फिर उसने भी अपनी ख्याली दुनिया छ्चोड़ कर घर संभालना सीख लिया. बर्तन धोना, झाड़ू पोछा लगाना, कपड़े धोना, खाना पकाना ये सारे वो काम थे जो एक ग़रीब घर में पैदा होने की वजह से उसे बहुत पहले कर लेने चाहिए थे पर उसने अब किए. इन सबसे अलग उसने भी एक ऑफीस में सेक्रेटरी की नौकरी कर ली.

ज़्यादा पढ़ी लिखी वो थी नही इसलिए उस छ्होटी सी नौकरी से जो भी पैसे मिलते, सब बॅंक का क़र्ज़ चुकाने में चले जाते.


उसके पति ने ओवरटाइम करना शुरू कर दिया था. रात को देर से घर आना और सुबह होते ही ऑफीस चले जाना अब एक आदत सी बन गयी थी. अक्सर कमिशन लेकर वो कुच्छ बड़े बड़े अकाउंट्स का काम घर ले आता और पूरा सनडे उसी में गुज़ार देता.


और अगले 10 साल तक उनका यही लाइफस्टाइल रहा.
क्रमशः....................



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