आठ दिन

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
rajaarkey
Platinum Member
Posts: 3125
Joined: 10 Oct 2014 10:09

Re: आठ दिन

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:43

आठ दिन--पार्ट-2

गतान्क से आगे..............

ये घर, हमारा घर. 2 साल पहले जब हमने ये घर बनवाया था तो कितने शौक से बनवाया था. किस तरह से तुमने घर की हर एक चीज़ को बड़े देखभाल से खुद डिज़ाइन किया था. कैसे कौन सा कमरा कहाँ बनेगा, किस तरह बनेगा, कितने कमरे होंगे, कौन सा पैंट होगा, कौन से पर्दे, हर चीज़ को तुमने खुद अपने आप शौक से पसंद किया था.

और क्यूँ ना करती, कब्से हम इस घर की आस लगाए बैठे थे. काब्से तुम दिन रात बस अपने घर की बातें किया करती थी. कैसे तुम कहा करती थी के जब अपना घर होगा तो तुम ऐसे सजाओगी, वैसे सजाओगी.

कैसे तुमने पुर घर को ये ध्यान में रख कर बनवाया था के हमारे 2 बच्चे होंगे.

शादी के 6 साल हो जाने के बाद भी तुम बच्चा नही चाहती थी क्यूंकी तुम्हें इस बात की ज़िद थी के तुम अपने बच्चे को जनम अपने घर में दोगि जहाँ वो पल बढ़कर बड़ा होगा.

और हैरत की बात है के कैसे तुमने मुझे फोन पर आखरी बार बात करते हुए कहा था "थॅंक गॉड हमारा कोई बच्चा नही है"

तुम्हें कार में बैठे बैठे थोड़ी देर हो चुकी होगी. टॅक्सी ड्राइवर ने कार का एंजिन और ए.सी. दोनो बंद कर दिए होंगे और तुम्हें अब हल्की हल्की गर्मी महसूस होनी शुरू हो चुकी होगी.

तुम हमेशा बहुत सुंदर थी. बेहद खूबसूरत. इतनी खूबसूरत के कभी कभी मुझे लगता था के तुमने क्यूँ मुझे अपना पति चुना. शकल सूरत में मैं कहीं से भी तुम्हारी मुक़ाबले नही था और कई बार अंजाने में तुमने मुझे इस बात का एहसास कराया भी था.

कैसे तुम हस्ते हस्ते मज़ाक में कह जाती थी के तुम चाहती तो तुम्हें एक से एक खूबसूरत लड़के मिल जाते. कैसे तुम अक्सर मासूमियत से मुझे मेरे चेहरे का एहसास करा देती थी.

पर मैने कभी तुमसे कोई शिकायत नही की. हां मुझ में शायद कमी थी पर किस में नही होती. भगवान ने हर इंसान में अच्छे और बुरे का सही मिश्रण बनाया है. गुण अवगुण सब में होते हैं. मुझ में भी थे.

तुम में भी थे पर कभी मैने तुम्हें उसका कोई एहसास नही कराया. मैं शायद तुम्हारी वो अच्छी साइड ही देखता रहा जिससे मुझे बेन्तेहाँ मोहब्बत था. जिस पर मैं दिल-ओ-जान से मरता था.

कार से बाहर निकल कर अपने आपको धूप से बचाती तुम घर की तरफ बढ़ोगी और दिल ही दिल में सख़्त धूप और गर्मी की अपने आप से शिकायत करोगी. 5 हफ्ते देल्ही से बाहर रह कर तुम भूल चुकी होगी के इन दिनो देल्ही का मौसम कैसा रहता है.

गरम, बहुत गरम.

और ऐसे ही कुच्छ गर्मी शायद मेरी आत्मा के अंदर भी है, मेरी रूह और मेरे दिल में भी जा बसी है. तुम मेरी बीवी हो और मैने कभी तुम्हारे साथ कोई ज़्यादती नही की. कभी अपनी आवाज़ तक तुम्हारे सामने ऊँची नही की. उस वक़्त भी नही जब तुम मेरे सामने पागलों की तरह चिल्ला रही थी के तुम तलाक़ चाहती हो. के तुम मुझसे प्याद नही करती, कभी किया ही नही.

और तब पहली बार मैने तुम्हारी नज़र में सच्चाई देखी थी. अब तक जो मोहब्बत मैं तुम्हारे चेहरे में देखता था वो तो सब धोखा था. तब पहले बार मैने तुम्हारी नज़र में अपने लिए घ्रना देखी थी.

वो पल मैं कभी चाह कर भी भूल नही सकता.

बर्क़ नज़रों को,

बाद-ए-सबा चाल को,

और ज़ुलफ को काली घटा कह दिया,

मेरी आँखों में सावन की रुत आई,

जब दीदा-ए-यार को मैक़दा कह दिया.

मैं कहाँ,

जुर्रत-ए-लाबकूशाई कहाँ,

तौबा तौबा जुनून की ये बेताबियाँ,

रूबरू जिनके नज़रें भी कभी उठती ना थी,

उनके मुँह पर आज उन्हें बेवफा कह दिया.


rajaarkey
Platinum Member
Posts: 3125
Joined: 10 Oct 2014 10:09

Re: आठ दिन

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:44

उस वक़्त मुझे एहसास हुआ था के शादी के 7 साल तक तुम जो दिखा रही थी वो सिर्फ़ एक भ्रम था. तुम्हारी असलियत तो जैसे एक पर्दे की पिछे थी और तुम सिर्फ़ बीवी होने का अपना रोल प्ले कर रही थी. और अब अचानक वो रोल ख़तम करते हुए जब शायद तुम्हें समझ नही आया के क्या कहा जाए, जब तुम्हारे पास अल्फ़ाज़ की कमी हो गयी तो तुम गुस्से में चिल्लाने लगी थी.

कैसे तुमने चिल्ला चिल्ला कर अपने चेहरे से नकाब हटा दिया था. कैसे तुमने वो परदा फाड़ दिया था जिसके पिछे तुम सात साल तक छुपि रही.

मैं तुमसे प्यार नही करती. तुमसे शादी करना एक बहुत बड़ी ग़लती थी. प्लीज़ मुझे जाने दो. मैं यहाँ नही रह सकती. दम घुटने लगा है मेरा यहाँ.

और मैं किसी पागल गूंगे की तरह खड़ा तुम्हें देख रहा था. सदमे में सिर्फ़ तुम्हारे मुँह को हिलता हुआ देख रहा था पर उससे निकलते शब्द नही सुन रहा था. मैं तुम्हारी तरफ बढ़ा तो तुम फ़ौरन पिछे हट गयी थी, जैसे मुझसे कोई बदबू आ रही हो.

और तब मैने तुमसे कहा था के मैं तुम्हें जाने नही दे सकता और ना ही जाने दूँगा क्यूंकी तुम मेरी बीवी हो.

याद है कैसे तुम सर्दी के दिनो में चुप चाप मेरे पिछे से आकर ठंडे हाथ मेरी कमीज़ के अंदर डाल देती थी.

तुम अक्सर ऐसे बच्चों जैसी हरकतें करती थी.

याद है एक बार तुम मेरे लिए वॅलिंटाइन'स दे पर गिफ्ट लेकर आई थी और खामोशी से मुझे बिना बताए मेरी डेस्क पर रख दिया था. और मैं अपने काम में इतना मगन रहता था के उसी समय डेस्क पर बैठे होने के बावजूद हफ्तों तक मुझे वो गिफ्ट नज़र नही आया. तुम इंतेज़ार करती रही और फिर तक कर तुमने खुद मुझे उस गिफ्ट के बारे में बताया और मुझे खोल कर दिखाया.

तुम्हारे प्यार से भरे उस सर्प्राइज़ को मैने पूरी तरह खराब कर दिया था पर शायद तुम्हें चोट मैने उस वक़्त पहुँचाई जब तुम्हारे गिफ्ट खोलने के बाद मेरे चेहरे पर ज़रा भी खुशी तुम्हें दिखाई नही दी और मैं एक बार फिर अपने काम में लग गया.

शायद यही सब बातें थी जिन्होने तुम्हें मुझसे इतनी दूर कर दिया. शायद.

पर शादी के वक़्त तुमने मुझसे वादा किया था के तुम कभी मेरी किसी बात का बुरा नही मनोगी. के तुम्हें कभी मेरे काम को लेकर किसी बात से कोई तकलीफ़ नही होगी. मैने तुम्हें बताया था के मेरा काम मेरे लिए सबसे पहले है और मेरी पर्सनल लाइफ पर शायद इसका थोड़ा बहुत फरक भी पड़े.

और तुमने फ़ौरन मुझसे वादा किया था के मेरे काम को लेकर तुम्हें कोई परेशानी नही होगी, तुम कभी बुरा नही मनोगी. के तुम हमेशा मुझसे प्यार करती रहोगी.

क्या झूठ बोला था तुमने? या जल्दबाज़ी में बिना सोचे समझे एक वादा कर दिया था जो अब तोड़ रही हो?

उनका कोई पेगाम ना आया,

दिल का तड़पना काम ना आया,

तू ना मिला तो दर्द मिला है,

दर से मगर तेरे नाकाम ना आया.

हुस्न ने की जी भर के जफाएँ,

उसपे मगर इल्ज़ाम ना आया,

तेरे बाघैर आए जान-ए-तमन्ना,

दिल को कहीं आराम ना आया.

और अब तो हम दोनो ही शायद उन टूटे हुए वादों से कहीं आगे निकल चुके हैं.

अगर ये सच है के मोहब्बत एक ज़िंडाई चीज़ है और हर ज़िंदा चीज़ की तरह ये भी एक दिन मर जाती है तो क्या ऐसा हो सकता है के मरी हुई मोहब्बत में फिर से जान आ जाए?

घर के बाहर पहुच कर तुम बेल बज़ाओगी. वही बेल जो एक दिन तुम खुद पसंद करके खरीद कर लाई थी. पूरे 4 दिन दिन मार्केट में भटकने के बाद तुम्हें ये डोरबेल पसंद आई थी. तुम्हें कोई ऐसी बेल चाहिए थी जो थोड़ी म्यूज़िकल हो और जिसका म्यूज़िक हम दोनो की पर्सनॅलिटी से मॅच करे.

बाहर खड़ी तुम कुच्छ देर तक बेल बजाती रहोगी. किसी बाहर के आदमी की तरह तुम अपनी चाबी से डोर खोल कर अंदर नही आना चाहोगी जो की तुम तब किया करती जब तुम इस घर में रहती थी. जब तुम इस घर को अपना समझती थी.

और जब दरवाज़ा नही खुलेगा तो तुम मेरा नाम लेकर मुझे पुकरोगी.

कोई जवाब नही आएगा. तुम एक बार फिर घंटी बज़ाओगी और फिर मेरा नाम पुकरोगी.

इतनी खामोशी. एक पल के लिए तो तुम्हें ऐसा लगेगा जैसे के घर पर कोई है ही नही.

और फिर आख़िर में तुम आख़िर में अपने पर्स में रखी घर की चाबी निकालगी और दरवाज़ा खॉलॉगी.

चाबी डालते हुए तुम्हारा दिल एक पल के लिए धड़केगा और तुम शायद ये उम्मीद भी करोगी के चाबी फिट ना हो. के तुम्हारे पागल पति ने तुम्हारे जाने के बाद घर के लॉक्स चेंज कर दिए हों और तुम्हें अपनी ज़िंदगी और घर से हमेशा के लिए निकाल दिया हो.

क्रमशः..............


rajaarkey
Platinum Member
Posts: 3125
Joined: 10 Oct 2014 10:09

Re: आठ दिन

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:45

AATH DIN--2

gataank se aage..............

Ye ghar, hamara ghar. 2 saal pehle jab hamne ye ghar banvaya tha toh kitne shauk se banvaya tha. Kis tarah se tumne ghar ki har ek cheez ko bade dekhbhal se khud design kiya tha. Kaise kaun sa kamra kahan banega, kis tarah banega, kitne kamre honge, kaun sa paint hoga, kaun se parde, har cheez ko tumne khud apne aap shauk se pasand kiya tha.

Aur kyun na karti, kabse ham is ghar ki aas lagaye bethe the. Kabse tum din raat bas apne ghar ki baaten kiya karti thi. Kaise tum kaha karti thi ke jab apna ghar hoga toh tum aise sajaogi, vaise sajaogi.

Kaise tumne poore ghar ko ye dhyaan mein rakh kar banvaya tha ke hamare 2 bachche honge.

Shaadi ke 6 saal ho jaane ke baad bhi tum bachcha nahi chahti thi kyunki tumhein is baat ki zid thi ke tum apne bachche ko janam apne ghar mein dogi jahan vo pal badhka bada hoga.

Aur hairat ki baat hai ke kaise tumne mujhe phone par aakhri baar baat karte hue kaha tha "Thank god hamara koi bachcha nahi hai"

Tumhein car mein bethe behte thodi der ho chuki hogi. Taxi driver ne car ka engine aur A.C. dono band kar diye honge aur tumhein ab halki halki garmi mehsoos honi shuru ho chuki hogi.

Tum hamesha bahut sundar thi. Behad khoobsurat. Itni khoobsurat ke kabhi kabhi mujhe lagta tha ke tumne kyun mujhe apna pati chuna. Shakal soorat mein main kahin se bhi tumhari mukaable nahi tha aur kai baar anjane mein tumne mujhe is baat ka ehsaas karaya bhi tha.

Kaise tum haste haste mazak mein keh jaati thi ke tum chahti toh tumhein ek se ek khoobsurat ladke mil jaate. Kaise tum aksar masoomiyat se mujhe mere chehre ka ehsaas kara deti thi.

Par maine kabhi tumse koi shikayat nahi ki. Haan mujh mein shayad kami thi par kis mein nahi hoti. Bhagwan ne har insaan mein achhe aur bure ka sahi mishran banaya hai. Gun avgun sab mein hote hain. Mujh mein bhi the.

Tum mein bhi the par kabhi maine tumhein uska koi ehsaas nahi karaya. Main shayad tumhari vo achhi side hi dekhta raha jisse mujhe beintehaan mohabbat tha. Jis par main dil-o-jaan se marta tha.

Car se bahar nikal kar apne aapko dhoop se bachati tum ghar ki taraf badhogi aur dil hi dil mein sakht dhoop aur garmi ki apne aap se shikayat karogi. 5 hafte Delhi se bahar reh kar tum bhool chuki hogi ke in dino Delhi ka mausam kaisa rehta hai.

Garam, bahut garam.

Aur aise hi kuchh garmi shayad meri aatma ke andar bhi hai, meri rooh aur mere dil mein bhi ja basi hai. Tum meri biwi ho aur maine kabhi tumhare saath koi zyadti nahi ki. Kabhi apni aawaz tak tumhare saamne oonchi nahi ki. Us waqt bhi nahi jab tum mere saamne pagalon ki tarah chilla rahi thi ke tum talak chahti ho. Ke tum mujhse pyaad nahi karti, kabhi kiya hi nahi.

Aur tab pehli baar maine tumhari nazar mein sachchayi dekhi thi. Ab tak jo mohabbat main tumhare chehre mein dekhta tha vo toh sab dhokha tha. Tab pehle baar maine tumhari nazar mein apne liye ghrana dekhi thi.

Post Reply