आठ दिन

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
rajaarkey
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Re: आठ दिन

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:46

Vo pal main kabhi chah kar bhi bhool nahi sakta.

Barq nazron ko,

Baad-e-saba chaal ko,

Aur zulf ko kaali ghata keh diya,

Meri aankhon mein sawan ki rut aayi,

Jab deeda-e-yaar ko maiqada keh diya.

Main kahan,

Jurrat-e-labkushai kahan,

Tauba tauba junoon ki ye betabiyan,

Rubaru jinke nazren bhi kabhi uthti na thi,

Unke munh par aaj unhen bewafa keh diya.

Us waqt mujhe ehsaas hua tha ke shaadi ke 7 saal tak tum jo dikha rahi thi vo sirf ek bhram tha. Tumhari asliyat toh jaise ek parde ki pichhe thi aur tum sirf biwi hone ka apna role play kar rahi thi. Aur ab achanak vo role khatam karte hue jab shayad tumhein samajh nahi aaya ke kya kaha jaaye, jab tumhare paas alfaaz ki kami ho gayi toh tum gusse mein chillane lagi thi.

Kaise tumne chilla chilla kar apne chehre se nakaab hata diya tha. Kaise tumne vo parda phaad diya tha jiske pichhe tum saat saal tak chhupi rahi.

Main tumse pyaar nahi karti. Tumse shaadi karna ek bahut badi galti thi. Please mujhe jaane do. Main yahan nahi reh sakti. Dam ghutne laga hai mera yahan.

Aur main kisi pagal goonge ki tarah khada tumhein dekh raha tha. Sadme mein sirf tumhare munh ko hilta hua dekh raha tha par usse nikalte shabd nahi sun raha tha. Main tumhari taraf badha toh tum fauran pichhe hat gayi thi, jaise mujhse koi badbu aa rahi ho.

Aur tab maine tumse kaha tha ke main tumhein jaane nahi de sakta aur na hi jaane doonga kyunki tum meri biwi ho.

Yaad hai kaise tum sardi ke dino mein chup chap mere pichhe se aakar thande haath meri kameez ke andar daal deti thi.

Tum aksar aise bachchon jaisi harkaten karti thi.

Yaad hai ek baar tum mere liye valentine's day par gift lekar aayi thi aur khamoshi se mujhe bina bataye meri desk par rakh diya tha. Aur main apne kaam mein itna magan rehta tha ke usi same desk par bethe hone ke bavajood hafton tak mujhe vo gift nazar nahi aaya. Tum intezaar karti rahi aur phir thak kar tumne khud mujhe us gift ke baare mein bataya aur mujhe khol kar dikhaya.

Tumhare pyaar se bhare us surprise ko maine poori tarah kharab kar diya tha par shayad tumhein chot maine us waqt pahunchayi jab tumhare gift kholne ke baad mere chehre par zara bhi khushi tumhein dikhayi nahi di aur main ek baar phir apne kaam mein lag gaya.

Shayad yahi sab baaten thi jinhone tumhein mujhse itni door kar diya. Shayad.

Par shaadi ke waqt tumne mujhse wada kiya tha ke tum kabhi meri kisi baat ka bura nahi manogi. Ke tumhein kabhi mere kaam ko lekar kisi baat se koi takleef nahi hogi. Maine tumhein bataya tha ke mera kaam mere liye sabse pehle hai aur meri personal life par shayad iska thoda bahut farak bhi pade.

Aur tumne fauran mujhse wada kiya tha ke mere kaam ko lekar tumhein koi pareshani nahi hogi, tum kabhi bura nahi manogi. Ke tum hamesha mujhse pyaar karti rahogi.

Kya jhooth bola tha tumne? Ya jaldbaazi mein bina soche samjhe ek wada kar diya tha jo ab tod rahi ho?

Unka koi pegham na aaya,

Dil ka tadapna kaam na aaya,

Tu na mila toh dard mila hai,

Dar se magar tere nakam na aaya.

Husn ne ki ji bhar ke jafayen,

Uspe magar ilzaam na aaya,

Tere baghair aey jaan-e-tamanna,

Dil ko kahin aaram na aaya.

Aur ab toh ham dono hi shayad un toote hue wadon se kahin aage nikal chuke hain.

Agar ye sach hai ke mohabbat ek zindai cheez hai aur har zinda cheez ki tarah ye bhi ek din mar jaati hai toh kya aisa ho sakta hai ke mari hui mohabbat mein phir se jaan aa jaaye?

Ghar ke bahar pachunch kar tum bell bajaogi. Vahi bell jo ek din tum khud pasand karke kharid kar laayi thi. Poore 4 din din market mein bhatakne ke baad tumhein ye doorbell pasand aayi thi. Tumhein koi aisi bell chahiye thi jo thodi musical ho aur jiska music ham dono ki personality se match kare.

Bahar khadi tum kuchh der tak bell bajati rahogi. Kisi bahar ke aadmi ki tarah tum apni chaabi se door khol kar andar nahi aana chahogi jo ki tum tab kiya karti jab tum is ghar mein rehti thi. Jab tum is ghar ko apna samajhti thi.

Aur jab darwaza nahi khulega toh tum mera naam lekar mujhe pukarogi.

Koi jawab nahi aayega. Tum ek baar phir ghanti bajaogi aur phir mera naam pukarogi.

Itni khamoshi. Ek pal ke liye toh tumhein aisa lagega jaise ke ghar par koi hai hi nahi.

Aur phir aakhir mein tum aakhir mein apne purse mein rakhi ghar ki chaabi nikalogi aur darwaza khologi.

Chaabi daalte hue tumhara dil ek pal ke liye dhadkega aur tum shayad ye ummeed bhi karogi ke chaabi fit na ho. Ke tumhare pagal pati ne tumhare jaane ke baad ghar ke locks change kar diye hon aur tumhein apni zindagi aur ghar se hamesha ke liye nikal diya ho.

kramashah..............


rajaarkey
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Re: आठ दिन

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:47

आठ दिन--पार्ट-3

गतान्क से आगे..............

पर नही. ऐसा कुच्छ नही होगा. लॉक्स अब भी वही हैं और चाभी भी. तुम चाभी घूमाओगी और दरवाज़ा खुल जाएगा.

तुम घर के बड़े से भारी दरवाज़े को खोल कर अंदर आओगी. पुशिंग ओपन दा डोर. बड़ा भारी सा दरवाज़ा जिस पर काले रंग का पैंट है और तुम्हारे पंजे का निशान छपा हुआ है.

अंदर आते हुए तुम यही उम्मीद करोगी के घर के अंदर वैसी ही स्मेल होगी जैसे तब होती थी जब ये घर तुम्हारा था. तुम उम्मीद कर रही होगी के अंदर ए.सी. ऑन होगा और एक ठंडी हवा तुम्हारे चेहरे पर लगेगी जो तुम्हें बाहर की गर्मी से बचाएगी. पर नही. ना तो ठंडी हवा होगी और ना ही वो खुश्बू जो इस घर

में तुम्हारे होने से होती थी.

घर के अंदर की हवा गरम होगी वैसी ही जैसी के बाहर की हवा है. बल्कि उससे भी बुरी क्यूंकी अंदर की बंद हवा में एक अजीब सी बदबू होगी हो घर में घुसते ही तुम्हारे चेहरे पर थप्पड़ की तरह लगेगी.

घबरा कर तुम एक बार फिर मेरा नाम पुकरोगी.

तुम्हारी आवाज़ खुद तुम्हारे ही कानो को कितनी कमज़ोर और परेशान सी लगेगी. और तुम घर के अंदर से उठ रही स्मेल की वजह से फिर एक बार अपनी नाक सिकोड लॉगी. ठीक उसी तरह जो मुझे बहुत पसंद आया करता था.

परेशान होकर तुम घर के अंदर से उठ रही स्मेल से बचने के लिए लिविंग रूम की खिड़की खोलने की कोशिश करोगी.

मुझे माफ़ कर दो प्लीज़.

मैं अब एक घंटे से ज़्यादा के लिए वापिस नही आ सकती. कभी नहीं.

ये शायद मेरी ही ग़लती थी. मुझे तुमसे शादी नही करनी चाहिए थी

मुझे पता होना चाहिए था के हम दोनो ग़लती कर रहे हैं.

हां मैने अपने घरवालो के कहने पर तुमसे शादी की थी.

उनके दबाव में आकर.

वो कहते थे के तुम एक बहुत बड़े प्रोफेसर हो और तुम्हारे साथ मेरा फ्यूचर सेफ आंड सेक्यूर होगा.

मैने तुम्हें प्यार करने की बहुत कोशिश की. बहुत चाहा के तुम्हारी बीवी बन सकूँ, सिर्फ़ जिस्म से नही बल्कि दिल से भी.

मैं सिर्फ़ अपना समान लेने आऊँगी. और जो मैं नही ले जा सकती वो तो किसी को दे देना या फेंक देना.

तुम मेरी ज़िंदगी में पहले लड़के थे. तुमसे पहले मैं किसी लड़के को नही जानती थी. अगर जानती होती तो शायद .....

नही मैने तुमसे कभी प्यार नही किया, कभी कर ही नही पाई. अपना जिस्म तो तुम्हें दे दिया पर दिल नही दे पाई और कभी दे भी नही पाऊँगी.

तुम एक बार फिर मेरा नाम पुकरोगी. पूछोगी के क्या मैं उपेर के कमरे में हूँ? तुम्हारा दिल तुम्हें फ़ौरन पलट जाने को कह रहा होगा. भाग जाने को कह रहा होगा.

फिर भी तुम अपने दिल की बात ना सुनते हुए सीढ़ियाँ चढ़ती उपेर के कमरे की तरफ आओगी.

तेरी यादों के जो आखरी थे निशान,

दिल तड़प्ता रहा, हम मिटाते रहे.

खत लिखे थे जो तुमने कभी प्यार में,

उनको पढ़ते रहे और जलाते रहे.....

धड़कते दिल के साथ तुम सीढ़ियाँ चढ़ती उपेर आओगी. सीढ़ियों पर अब भी वही कार्पेट होगा जो तुम पसंद करके लाई थी. जिसके रंग को लेकर हम दोनो में काफ़ी बहस हुई थी. सीढ़ियों के साथ बनी रेलिंग का सहर लिए तुम उपेर को चढ़ती आओगी, जैसे कोई नीद में चल रहा हो.

उपेर आते हुए पता नही तुम्हारे दिल में कौन सी फीलिंग होगी? गिल्ट? अफ़सोस? दुख? डर? आज़ादी?

या तुम सिर्फ़ ये सोच रही होगी के उपेर तुम्हें क्या मिलने वाला है? या ये के क्यूंकी तुम अब तक मेरी बीवी हो तो तुम्हारा फ़र्ज़ बनता है के एक बार उपेर आकर देखो?

तुम्हारे चेहरे पर तुम्हारी वो क्यूट सी स्माइल होगी इस बात का मुझे पूरा यकीन है. वही स्माइल जिसका मैं आज भी दीवाना हूँ पर फ़र्क सिर्फ़ इतना होगा के तब वो स्माइल नकली होगी, ये सोचकर के अगर मैं तुम्हें उपेर मिला तो तुम मुस्कुरा कर मुझे देखो.

तुम घबरा रही होंगी. शायद तुम्हें हल्के से चक्कर भी आ रहे हों. दिल ज़ोर से धड़क रहा होगा और खून का बहाव दिमाग़ की तरफ ज़्यादा बढ़ जाएगा. जैसे जैसे डरते हुए तुम सीढ़ियाँ चढ़ोगी वैसे वैसे कभी तुम्हारी आँखों के आगे रोशनी होगी तो कभी अंधेरा सा.

सीढ़ियाँ चढ़ कर तुम एक पल के लिए रुकोगी और एक गहरी साँस लॉगी. पर साँस ज़्यादा लंबी और गहरी ले नही पओगि. क्यूँ घर में नीचे आ रही स्मेल यहाँ और भी ज़्यादा तेज़ होगी. गर्मी की घुटन से भरी एक अजीब से तेज़ स्मेल. तुम्हारा दम घुटने लगेगा और शायद तुम्हें उल्टी भी आने को हो पर तुम पलट नही सकती. वापिस नही जा सकती. तुम्हें बेडरूम का दरवाज़ा खोल कर अंदर देखना ही पड़ेगा.

इश्क़ को दर्द-ए-सर कहने वालो सुनो,

कुच्छ भी हो हमने ये दर्द-ए-सर ले लिया,

वो निगाहों से बचकर कहाँ जाएँगे,

अब तो उनके मोहल्ले में घर ले लिया.

आए बन ठनके शहर-ए-खामोशी में वो,

कब्र देखी जो मेरी तो कहने लगे,

अर्रे आज इतनी तो इसकी तरक्की हुई,

एक बेघर ने अच्छा सा घर ले लिया.

और हमारे बेडरूम तक आने से पहले तुम्हें उस छ्होटे से कमरे के आगे से गुज़रना होगा, वो कमरा जो तुमने हमारे बच्चे के लिए बनवाया था. वो बच्चा जो कभी हुआ ही नही.


rajaarkey
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Re: आठ दिन

Unread post by rajaarkey » 07 Nov 2014 22:48

बेडरूम का दरवाज़ा बंद होगा. तुम अपना हाथ दरवाज़े पर रख कर धकेलना चाहोगी और तुम्हें दरवाज़े की गर्मी महसूस होगी. और अब भी तुम्हारे दिमाग़ में ये चल रहा होगा के तुम दरवाज़ा खोल कर अंदर नही देखना चाहती पर फिर भी तुम ऐसा कर रही हो. तुम दरवाज़े के बाहर बने नॉब को अपने हाथ से पकड़ कर घूमाओगी और हिम्मत करते हुए धीरे से दरवाज़ा खॉलॉगी.

भिन-भीनाहट के आवाज़ कितनी तेज़ होगी. इस क़दर तेज़ जैसे कहीं आग लगी हो. और उसके उपेर से कमरे में उठ रही बदबू जैसे कहीं कुच्छ सड़ रहा हो. भिंन-भीनाहट और बदबू दोनो मिलकर ऐसा आलम बना रही होंगी जिसका तुम यूँ अचानक सामना नही कर पावगी.

कोई चीज़ तुम्हारे चेहरे को च्छुकर गुज़र जाएगी, तुम्हारी आँखों को, तुम्हारे होंठों को. घबरा कर तुम 2 कदम पिछे हो जाओगी और फिर मेरे नाम लेकर पुकरोगी.

कमरे में कोई हलचल नही होगी. पर्दे गिरे हुए होंगे और लाइट्स ऑफ होंगी. उस हल्की सी रोशनी में तुम्हारी आँखों को अड्जस्ट होने में थोड़ा वक़्त लगेगा. और जब दिखाई देना शुरू होगा तब तुम्हें कमरे में भरी मक्खियों का एहसास होगा.

वो भिंन-भिनाने की आवाज़ इन्ही मक्खियो की होगी.

हज़ारों? लाखों? छत से लेकर दीवारों तक, हर चीज़ पर मक्खियाँ.

और नीचे कार्पेट पर भी. उसी कार्पेट पर जिसपे की चीज़ का गाढ़ा सा दाग है.

और बिस्तर पर भी मक्खियाँ. हां वही महेंगा सा बेड जो हम दोनो अपने लिए पसंद करके लाए थे. जिसपर मैने जाने कितनी बार तुमसे मोहब्बत की. जिसपर तुम हर रात मेरी बीवी बनकर मेरे साथ सोई.

क्या ये? कौन है ये?

ये चेहरा या जो कुच्छ भी चेहरे का बचा है अब पहचान में नही आ रहा.

चमड़ी सूज कर इस हद तक पहुँच चुकी है के अब तो बुलबुले से उठ रहे हैं जैसे चूल्‍हे पर रखा कुच्छ गाढ़ा सा पक रहा हो.

चमड़ी अब चमड़ी बची नही. ये तो अब एक कुच्छ काली सी चीज़ बन चुकी है जो धीरे धीरे गल कर जैसे नीचे बिस्तर पर बह रही है, जैसे नीचे ज़मीन पर बह रही है. चमड़ी जो अब धीरे धीरे उस जिस्म से अलग हो रही है जिस जिस्म को ढकना उसका काम था.

जिस्म भी इस तरह से फूल सा गया है जैसे अंदर हवा भर दी गयी हो. धीरे धीरे सड़ रहा जिस्म जिसपर मक्खियाँ जैसे दावत मनाने आई हों.

और यहाँ वहाँ टुकड़ो में है जो कभी मुँह था, जो कभी नाक थी, जो कभी कान थे.

उस इंसान शरीर जैसी चीज़ की कलाईयों पर काटने का निशान है. खून से सना चाकू अब भी वहीं पड़ा होगा जहाँ वो हाथ से छूट कर गिरा था

दोनो हाथ और बाहें जो मक्खियों से पूरी तरह ढके हुए होंगे इस तरह फैले हैं जैसे किसी को गले लगा लेना चाहते हों.

हर तरफ और हर जगह गाढ़े काले पड़ चुके खून के धब्बे हैं. लाश के कपड़ो, चादर और नीचे कार्पेट पर.

बदबू बहुत ज़्यादा है. सड़ने की बदबू जो कमरे की हवा को पूरी तरह गंदा कर चुकी है पर फिर भी तुम पलट नही पओगि. जिस चीज़ ने तुम्हें पकड़ कर कमरे में थाम रखा होगा वो तुम्हें इतनी आसानी से छ्चोड़ेगी नही.

पूरा कमरा उस वक़्त जैसे एक खुला पड़ा ज़ख़्म होगा. तुम्हारा पति मरा नही है बस एक दूसरी दुनिया में चला गया है जहाँ से वो हमेशा तुम्हें देख सकेगा, अपनी बीवी की तरह. क्यूंकी वो अपनी ज़िंदगी में तुमसे कभी अलग हुआ ही नही, उसने कभी तुमसे अपना रिश्ता तोड़ा ही नही. वो तो जिया भी तुम्हारे इश्क़ में, तुम्हारा पति बनकर और मरा भी तुम्हारे इश्क़ में तुम्हारा पति कहलाते हुए.

हवा में उड़ रही हज़ारों लाखों आँखें तुम्हारे पति की ही हैं जो तुम्हें देख रही है, ये हवा में फेली अजीब सी भिन्न भिन्न की आवाज़ तुम्हारे पति की ही है जो तुमसे बात करना चाह रही है, कुच्छ गिला कोई शिकवा करना चाह रही है.

मक्खियाँ तुम्हारे चेहरे को, तुम्हारी आँखों को, तुम्हारे होंठों को च्छुकर गुज़र रही है जैसे आखरी बार तुम्हारा पति तुम्हें छुना चाह रहा हो. तुम हाथ हिलाती उन्हें अपने सामने से हटाओगी और धीमे कदमों से बिस्तर पर पड़ी लाश की तरफ बढ़ोगी. लाश के पास बिस्तर पर एक काग़ज़ का टुकड़ा पड़ा होगा जो तुम उठाकर पढ़ोगी.

गम मौत का नही है,

गम ये है के आखरी वक़्त भी,

तू मेरे घर नही है....

निचोड़ अपनी आँखों को,

के दो आँसू टपकें,

और कुच्छ तो मेरी लाश को हुस्न मिले,

डाल दे अपने आँचल का टुकड़ा,

के मेरी मय्यत पर चादर नही है .......

दोस्तो कैसी लगी एक प्यार करने वाले पति की कहानी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा

समाप्त


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