मायाजाल

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
007
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Re: मायाजाल

Unread post by 007 » 10 Dec 2014 08:38

देखा मिल गया तुरन्त सबूत । वह टावल से मुँह पोंछता हुआ बोला । दोनों माँ बेटी अभी भी हँस रही थी । और राजवीर उसके धौल जमाती हुयी कह रही थी - चुप भी कर मरी । डैडी को ऐसा क्यों बोलती है । वो संता बंता तो नहीं है ।
- देखा प्रसून जी ! वह खुलकर हँसता हुआ बोला - ये मेरी अपने घर में पोजीशन है । बाइज्जत बामुलाहिजा बराङ साहब । ज्यादातर सिख लङकियाँ सरदार लङकों को पसन्द नहीं करतीं । उनकी फ़र्स्ट च्वाइस सिर्फ़ हिन्दू लङके हैं । और शायद । वह राजबीर की तरफ़ देखता हुआ बोला - यही हाल सरदार औरतों का भी है । इन दोनों को भी ये दाङी वाले कतई नासपसन्द हैं । कम से कम मेरा ख्याल तो अब तक यही बना है ।
- ओये चुप करो जी । राजवीर मानों प्यार से डाँटकर बोली - मैंने ऐसा कब बोला आपको । मुझे तो आप पूरे राजकपूर जैसे हीरो लगते हो ।
- मेरा नाम जोकर वाले । जस्सी फ़िर शरारत से प्रसून की तरफ़ देखते हुये बोली ।
उसकी बात पर एक जोरदार संयुक्त ठहाका लगा । अबकी बराङ साहब भी पहले से ही खुलकर हँसे । फ़िर वे तीनों भी साथ में हँसने लगे ।
- बङी प्यारी फ़ैमिली है मेरी । वह भावुक सा होकर बोला - हम आपस में एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं । लेकिन प्रसून जी मैंने आपसे एक प्रश्न किया है । कुछ जानना चाहा है । मैं नास्तिक क्यों बन गया । जब सदियों से भारत की धार्मिकता की जङों में काफ़ी गहराई है । रूटस जिसे बोलते हैं । फ़िर भी हर आदमी यहाँ नास्तिक सा क्यों है ?
वह गम्भीर हो गया । शायद इसी को संगति का असर कहते हैं । शायद बराङ को अब तक ऐसा कोई मिला नहीं होगा । जँचा नहीं होगा । जिससे वह बरसों से अपने दिल में छिपी इस बात को कह पाता । आज मानों उसने अपनी सारी भङास निकाली थी ।
- आपने ! वह प्रभावशाली सौम्य स्वर में बोला - एकदम सही बात कही है । और ये सिर्फ़ आपकी ही बात नहीं है । एक आम इंसान की बात है । पर किसी को इसको व्यक्त करने का मौका मिलता है । और किसी को नहीं । लाइफ़ में किसी को अपने प्रश्न का उत्तर मिल जाता है । किसी को नहीं ।
जब एक छोटा बच्चा जो एक दो साल का होता है । तब उसको बेसिक नालेज के लिये प्रारम्भिक शिक्षा हेतु बुक दी जाती है । उसमें A से एप्पल होता है । B से बनाना होता है । C से कैट होती है । सोचिये बराङ साहब । गहराई से सोचिये । A से एप्पल B से बनाना C से कैट को सचित्र किताब में लिखने की क्या आवश्यकता है ? ये सब चीजें तो हमारे आसपास उपलब्ध ही हैं । किताब से सिखाने की क्या आवश्यकता है ? इसके बाद शिक्षा के लिये स्कूल कालेजों की क्या आवश्यकता है । जब किताब है । प्राइवेट तौर पर सिखाने पढाने वाले शिक्षक भी हैं । तब इस सब फ़ालतू से सिस्टम की क्या आवश्यकता हो सकती है ।
सोचिये । एक बच्चा सिर्फ़ किताब में ही जीवन भर A से एप्पल B से बनाना C से कैट को देखता रहे । और स्कूल भी न जाये । पेङों पर लगा या हाथ में फ़ल रूप में A से एप्पल B से बनाना न कभी देखे । न कभी खाये । C से कैट को भी रियल्टी में न देखे । न किसी तरह का यूज करे । लेकिन उसको बार बार बताया जाये । उसके दिमाग में भर दिया जाये । A से एप्पल स्वीट होता है । ताकतवर होता है । B से बनाना मीठा और टेस्टी होता है । तो उसे क्या कोई उनमें रस आयेगा । उसकी आस्तिकता इन चीजों में होगी । नहीं । तब वह इन सभी चीजों के प्रति अन्दर से नास्तिक ही होगा ।
वही आप हो । दूसरे हैं । आप सिर्फ़ ABCD की किताब पढकर रह गये । आप स्कूल गये अवश्य । पर आपको एप्पल की मिठास का अहसास कराने वाले शिक्षक नहीं मिल सके । यह एप्पल ट्री आप कैसे उगाकर ढेरों एप्पल खुद पैदा कर लो । ये बताने वाला कोई रियल गुरु आपको नहीं मिला ।
एक जिन्दगी में असफ़ल गरीब आदमी भी अमीरी के शौक वैभव को लेकर नास्तिक ही होता है । क्यों ? वह उसे हासिल नहीं है इसलिये । तब उसकी अमीरी में आस्तिकता कैसे उत्पन्न हो । तब वह अपनी कुण्ठावश अमीरी और अमीरों को गालियाँ ही देता है । उनमें झूठे दोष निकालता है । जबकि दोषी वह स्वयँ है । प्लीज डोंट माइण्ड बराङ साहब । यदि आप ऐसा महसूस करते हैं । तो आप धार्मिक गरीव हैं । असफ़ल इंसान हैं । यदि सभी सिख ऐसा सोचते हैं । तो वे सभी बेहद गरीब हैं । ये आपका मकान कोठी गाङी धन आपके साथ अन्त में कुछ नहीं जाने वाला । तव आप एकदम खाली हाथ जाओगे । एक फ़टेहाल भिखारी की तरह । वहाँ सिर्फ़ सुमरन की कमाई साथ होती है । अब आप अपना आंकलन स्वयँ करें ।
बराङ को मानों सरे बाजार जूते पङे हों । उसका सारा घमण्ड इस देवदूत ने कुछ ही शब्दों में चूर चूर कर दिया था । पर कितना आश्चर्य था । उसे अपनी बेइज्जती में एक अजीव सा सुख हासिल हो रहा था । उस लङके ने मानों उसे हकीकत का आइना दिखा दिया हो । कितना जादू था । उसके शब्दों में । उसे लग रहा था । वो ये दिव्य वाणी सी यूँ ही बोलता रहे । और वो सुनता रहे । कितना अजीव सा सुख मिला था उसे । उसने मन ही मन उन तमाम साधुओं बाबाओं धार्मिक लोगों को माँ बहन की भद्दी गालियाँ दी । जो उसे जीवन में अब तक मिले थे । और जो धर्म के नाम पर जाने क्या क्या बकबास करते हुये आदमी को भृमित ही करते हैं । और सत्यता को करीब से तो बहुत दूर । दूर दूर तक नहीं जानते । दूसरे वह सिर्फ़ बोल ही नहीं रहा था । इतने दिनों में जस्सी को एक भी अटैक न आना । उसके घर में एक अजीव सी सात्विकता की खुशबू सी जो उसके आने से फ़ैली थी । वह बिना बताये बहुत कुछ बता रही थी । अब तक के घोर अभिमानी बराङ को दिल में बहुत ही प्रबल इच्छा हुयी कि वह इस पहुँचे हुये महात्मा के चरणों में गिर पङे । और बोले - आप ही मेरे गुरु हो ।
पर वह ऐसा कर न सका । अभी वह कुछ कहना ही चाहता था कि प्रसून फ़िर से बोला ।
- देखिये बराङ साहब ! ये ढोंगी और स्वयँ के लिये भी अज्ञानी बाबाओं द्वारा एक आम पर मजबूत धारणा बना दी गयी हैं कि परमात्म ज्ञान को जानना बेहद कठिन है । जबकि सभी धार्मिक ग्रन्थ बङी सरलता से कहते हैं - आत्मा अनादि अजन्मा अमर अजर और अबिनाशी है । आत्मा अनादि और अनन्त है । आत्मा आदि अन्त रहित है ।..और आप अपने मूल रूप में आत्मा ही हो । अपनी सिर्फ़ यही मजबूत और स्थायी पहचान हमेशा पक्के तौर पर याद रखने से परमार्थ ज्ञान बहुत सरल हो जाता है । और तब फ़िर आप चाहकर भी नहीं कह पाओगे कि - मैं नास्तिक हूँ ।
अब मनदीप साफ़ साफ़ और पहले से भी अधिक प्रभावित दिखा । राजवीर तो मानों भक्ति सागर में ही डूब रही थी । न आस्तिक न नास्तिक बस अपनी जवानी में मस्त जस्सी भी आश्चर्य से उसकी बातें सुन रही थी । उसका दिल साफ़ साफ़ कर रहा था कि वह प्रसून के गले में तुरन्त बाँहें डाल दे । और उसके होंठ चूम ले । ये वो उसे अभी अभी की ज्ञान वार्ता पर तोहफ़ा देना चाहती थी । पर वह ऐसा कर न सकी ।

रात रोज ही होती है । उसमें क्या नई बात थी । वही अंधेरा । वही बिजली का प्रकाश । वही दस ग्यारह बारह फ़िर एक बजता हैं । और सब नींद के आगोश में सोते हैं । सपने देखते हैं । बिस्तर पर करवटें बदलते हैं । आज भी एक बज गया था । और धीरे धीरे दो बजने वाले थे । पर जस्सी की आँखों में दूर दूर तक नींद नहीं थी । बहुत कोशिश के बाद भी वह एक पलक तक न झपका सकी थी ।
क्या कर रहा होगा वह ? आज उसने कैसा रहस्यमय व्यवहार उसके साथ किया था । बल्कि वह पूरा ही रहस्यमय इंसान था । रात के सन्नाटे में उसके साथ पहले हनीमून के बाद वह तबसे बराबर यही सोचती रही थी कि फ़िर से ऐसे मधुर क्षण कब आने वाले हैं । वह उसके साथ यहाँ वहाँ घूमने जाना चाहती थी । उसने सोच लिया था । अब वह हर हालत में उससे शादी करने वाला है । तब क्या हर्ज था । शादी अभी हो । या एक साल बाद । उसने तो अपने मन से उसे हसबैंड मान ही लिया था ।
वह अभी से उससे एक पत्नी की तरह व्यवहार करने लगी थी । पर उसे बेहद हैरत इस बात की थी कि कार में उसे आसमानी झूले की सैर करा देने वाले उस जादूगर ने उसके बाद उसके होठ तक चूमने की कोशिश नहीं की थी । और न जाने किन ख्यालों में उलझा रहा था । ऐसा लग रहा था । किसी बात को लेकर सीरियस है । वह उसके इस बदले हुये व्यवहार से हैरान थी ।
सुबह वह देर तक अकेला कहीं घूमने चला गया था । फ़िर वह बहुत देर तक उसके पेरेंटस से अकेले में बात करता रहा । वह शरमाती हुयी सी रंगीन ख्यालों में खोयी रही थी । वह निश्चय ही उसका हाथ माँग रहा था । और वह निश्चित सी थी । सो उसने वह बात सुनने की कोई कोशिश नहीं की ।
जब उससे वह बैचेनी सहन नहीं हुयी । तब वह उठकर कमरे में टहलने लगी । अजीव इंसान है । क्या कर रहा है । उस अकेले बन्द कमरे में । शाम सात बजे से लेकर अब रात के दो बजने वाले थे । किसी दूर के सफ़र पर गये लौटने वाले इंसान की प्रतीक्षा की भांति हर पल उसकी निगाह कमरे के गेट पर किसी आहट पर ही रही थी । अब आ रहा होगा । अब आ रहा होगा । पर वह नहीं आया ।
वह कमरे से बाहर भी नहीं जा सकता था । ये उसको पक्का पता था । जब वह बाहर आयेगा । सबसे पहले उसे ही मालूम होगा । वह उसे ही आवाज देगा । और उसके आवाज न सुन पाने पर वह उसके मोबायल पर काल करेगा । पर अब तो हद ही हो गयी थी । सात घण्टे से ज्यादा हो गये थे । और वह उसी तरह कमरे में बन्द था । आखिर क्या कर रहा था वह ।
वह अपनी उत्सुकता रोक न सकी । तभी उसे प्रसून की चेतावनी याद आयी । उससे लिया हुआ गाड प्रामिस याद आया । भले ही दस घण्टे हो जाये । दस दिन क्यों न हो जायें । वह न तो दरबाजा खोले । और न ही उसे किसी प्रकार से डिस्टर्ब करे ।
उसने सोचा । वह उसे कोई डिस्टर्ब नहीं करेगी । बस चुपके से देखेगी । आखिर वह इतनी देर से अकेला क्या कर रहा है । यही सोचते हुये वह उस कमरे के द्वार पर आ गयी । जिसमें प्रसून अन्दर बन्द था । उसने एक बार चारों तरफ़ देखा । सब सोये पङे थे । एकदम सन्नाटा फ़ैला हुआ था । उसने ताले में चाबी लगायी । और बिना आवाज दरबाजा खोला । कहीं कोई दिक्कत नहीं आयी ।
उसने दरबाजे को हल्का सा धक्का दिया । और थोङी सी जगह बनाती हुयी कमरे में आ गयी । सावधानी से उसने दरबाजा वापिस लगा दिया । और सामने बेड पर देखा । फ़िर वह रहस्यमय अन्दाज में मुस्करायी ।
ओह तो ये बात थी । और वह पता नहीं क्या क्या इतनी देर में सोच गयी थी । दरअसल उसे नींद आ गयी थी । और वह वहीं पङे पङे सो गया था ।
चलो आज यहीं सही । सोचते हुये वह उसके पास जाने को हुयी । तभी उसे प्रसून की चेतावनी ध्यान आयी । पर अब उस चेतावनी का क्या मतलब रहा । अब तो कोई बात ही नहीं थी । वह नार्मली सो रहा था । तभी उसे शरारत सूझी । हम तुम एक कमरे में बन्द हो जायें । और चाबी खो जाये । उसने ऐसा ही किया । और बाहर से लाक लेकर अन्दर से लगा दिया ।
वह दबे पाँव उसके पास आयी । और बैठ गयी । उसकी निगाह सोते हुये प्रसून पर गयी । और वह आगे के कदम के बारे में सोचने लगी । और फ़िर अचानक वह न सिर्फ़ चौंकी । बल्कि भौंचक्का ही रह गयी । ओह गाड ! ये वह क्या देख रही थी । क्या ये वाकई सच था ? कुछ अजीव सा अहसास उसे हुआ था । प्रसून की सांस नहीं चल रही थी । तब उसने गौर से देखा । वाकई वह मुर्दा पङा था । उसने उसके दिल पर हाथ रखा । कोई धङकन नहीं थी । उसने

उसकी नब्ज देखी । कोई स्पन्दन नहीं था । उसने उसकी छाती से कान लगाकर सुना । वह मर चुका था । निश्चित ही मर गया था । ओह गाड । ओह गाड ! ये सब क्या हुआ था ।
फ़िर उसके मुँह से जोरों की चीख निकलने को हुयी । लेकिन उससे पहले ही उस अटैक से उसका दिमाग शून्य 0 होता चला गया । उसके मुँह से मु मु की हल्की सी आवाज हुयी । और फ़िर उसका सिर तेजी से घूमने लगा । सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । फ़िर उसे लगा । एक तेज आँधी सी चलने लगी । और सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । लोग । वह । सभी तेजी से उङ रहे थे । और बस उङते ही चले जा रहे हैं । किसी अज्ञात अदृश्य की ओर ।
और फ़िर यकायक उसकी आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह तेज तूफ़ान उसे उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी । वह जंगल में भागने लगी । पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उसको भी मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था ।
फ़िर वह एक दरिया में फ़ँसकर उतराती हुयी सी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । जस्सी उसकी ओर जोर जोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई । और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी ।
पानी की तेज भंवर उसे डुबोये दे रही थी । वह गोते खा रही थी । नाव पर झुककर खङा सन्तुलन बनाता हुआ वह मछुआरा डगमाती नाव को बचाने की कोशिश कर रहा था । पर तूफ़ान की प्रचण्डता अपने चरम पर थी । तूफ़ान मानों प्रलय करके ही छोङने वाला था । उसकी चेतना लुप्त होने लगी । और फ़िर वह लहरों की दया पर डूबती उतराती हुयी दरिया में बहने लगी ।
विनाशकारी तूफ़ान अभी थमा नहीं था । पर बेहद ताकतवर लहरों ने उसे किसी दूर अज्ञात किनारे पर ले जाकर पटक दिया था । उसमें उठने की शक्ति नहीं रही थी । और वह निढाल सी पङी थी । फ़िर उसकी मौत हो गयी । और वह शिथिल होकर पङी रह गयी । खेल खत्म हो चुका था ।
पर मौत सिर्फ़ शरीर की हुयी थी । वह अपनी खूबसूरत देह छोङ चुकी थी । और एक नये शरीर सूक्ष्म शरीर में शरीर से बाहर आ गयी थी । अब उसके लिये उस प्रलयकारी तूफ़ान का मानों कोई मतलब ही नहीं था । अब वह आराम से उसी दरिया में लहरों पर चल रही थी । हवा में किसी पक्षी के समान उङ रही थी । और उसे स्वतः बोध था कि यह सब वह आराम से कर सकती है । जो चाहे कर सकती थी ।
तब उसे फ़िर से उस मछुआरे का ख्याल आया । पर वह उस स्थान से बहुत दूर भटक कर आ गयी थी । कौन था वह ? और इस वक्त कहाँ था ?
पर वह तो सिर्फ़ एक रहस्य था । एक दृश्य की तरह था । तब उसकी याददाश्त थोङा ही पहले लौटी । सिर्फ़ कुछ देर पहले । सिर्फ़ कुछ घण्टे पहले । ओह गाड । जस्सी हूँ मैं । नहीं जस्सी थी मैं । प्रसून जी..प्रसून जी मर गये ।
मौत के बाद आने वाला जो नशा सा कुछ देर को मौत जीवन सबको भुला देता है । उससे अब वह उबर गयी थी । और ठीक उसी बिन्दु पर पहुँच गयी थी । जब प्रसून के चेकअप के बाद वह गला फ़ाङकर चिल्लाने वाली थी । और फ़िर वही हुआ ।
- प प प्रसूनऽऽऽऽऽ जीऽऽऽ ! वह पूरी ताकत से चिल्लाई - आप कहाँ हो ?
बङी हैरत की बात थी । अब उसे प्रसून के मरने का कोई दुख नहीं था । वह भी मर चुकी थी । वह भी मर चुका था । पर वे मरे नहीं थे । सिर्फ़ उनकी वह दुनियाँ मर गयी थी । और वे नयी दुनियाँ में आ चुके थे । अब बस उसे प्रसून को तलाश करना था । तलाश । पर कहाँ तलाश करे वह ? वह कहाँ थी । पता नहीं । प्रसून कहाँ था । पता नहीं ।
तब उसने किसी चिङिया के पंखों की तरह हाथ फ़ैलाये । और अनन्त आकाश में उङती चली गयी । वह मुक्त परवाज सा करती हुयी उङती चली जा रही थी । पर न उसे कोई मार्ग पता था । और न ही मंजिल पता थी । उसके दिमाग में बस एक ही बात थी कि उसे अपने प्रेमी प्रियतम को तलाश करना है । जो कहीं इन्हीं चाँद तारों के बीच खो गया है ।
चाँद तारे । काले नीले मिश्रित आसमान के बीच चाँद तारों की अनोखी दुनियाँ । और वह इस दुनियाँ में किसी परी की भांति उङती चली जा रही थी । उफ़ ! शायद इंसान जीते जी कभी नहीं जान पाता । मरने के बाद क्या आनन्द ही आनन्द है ।
तभी सहसा उसकी सुखद कल्पनाओं को एक झटका सा लगा । दो भीमकाय भुजंग काली आकृतियों के राक्षस जैसे देहधारी उसके दोनों तरफ़ आ गये । उन्होंने किसी अपहरणकर्ताओं की तरह उसे घेरे में ले लिया । उन्हें कुछ आश्चर्य सा हो रहा था । उनके भावों की वासना उसे दूर से महसूस हो रही थी । उसने तेजी से उनसे बचते हुये दूर जाना चाहा । पर वह असफ़ल रही । ऐसा लग रहा था । वह किसी अदृश्य घेरे में कैद हो चुकी थी । और उसका नियन्त्रण उनके हाथ में था । तब उसे अन्दर से डर सा लगने लगा ।
वे तेजी से दिशा परिवर्तन कर उसे उत्तर की ओर ले जा रहे थे ।
आसमान की सुन्दरता गायब होने लगी थी । और काले घने अंधकार का शून्य 0 स्पेस सा आने लगा था ।
और तभी उन दोनों ने उसका हाथ थामना चाहा । वह एकदम से घबरा गयी । वे उसके करीब होते जा रहे थे । और बेहद कामुक निगाहों से देख रहे थे । वह एकदम रोने लगी । और फ़िर उसे प्रसून की याद आयी । अगर वह होता । तो इन राक्षसों से बचाता । पर अब वह असहाय लङकी भला क्या कर सकती थी ।
दैत्य सम देहधारियों ने फ़िर से उसको पकङना चाहा । और तब घबराहट में उसके मुँह से करुणा भरी पुकार स्वतः निकल गयी - प्रसून जी । प्रसूनऽऽऽऽ जीऽऽऽऽ ।
अब उसे सिर्फ़ प्रसून याद आ रहा था । वह उससे एक भाव होती जा रही थी । उसका खुद का अस्तित्व खत्म होता जा रहा था । और प्रसून उसके अन्दर समाता जा रहा था । तब वे भुजंगी एकदम आश्चर्य से चौंके । इस अति खूबसूरत लङकी जिसे वे अपहरण कर भोगना चाहते थे । के इर्द गिर्द एक सुरक्षित अदृश्य घेरा सा बन गया था । जिसे वे पार नहीं कर पा रहे थे ।
जस्सी ने भी महसूस किया । जैसे ही उसने पूर्ण भाव से प्रसून को याद किया । वह उनके लिये किसी छाया के समान हो गयी । जिसे वे लाख कोशिशों के बाद भी नहीं पकङ पा रहे थे । जबकि वे उससे अभी कुछ फ़ुट ही दूर थे । फ़िर वे निराश होकर दूसरी तरफ़ चले गये ।
उसने वापिस दिशा परिवर्तन करना चाहा । पर असफ़ल रही । काले घने अंधकार का वह डरावना शून्य 0 स्थान उसे चुम्बक की तरह खींच रहा था । उसे आगे कुछ भी नजर नहीं आ रहा था । सिर्फ़ अंधेरा ही अंधेरा था । स्याह काला । और काजल सा चिकना अंधेरा । और वह इस भयानक अंधेरे में विलीन होती जा रही थी । तब उसे ढोल बजने की आवाज सुनाई देने लगी । ढम ढम ढम ढमाढम ।

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Re: मायाजाल

Unread post by 007 » 10 Dec 2014 08:39

रात और अंधेरा । अंधेरा और रात । क्या सम्बन्ध है । इनका आपस में । देखने सुनने में ये बङी साधारण सी बात लगती है । पर वास्तव में ये बङी गहन बात है । अंधेरे के मजबूत आलिंगन में कसमसाती हु्यी जवान रजनी कैसे एक रोमांचक सफ़र तय करती है । कैसे उससे एकाकार होकर पूर्णता को प्राप्त होती है । यह रहस्य सिर्फ़ सफ़ल योगी ही जानते हैं । ये काली खूबसूरत निशा यौवन से भरपूर अपने अंग अंग में क्या क्या रस माधुर्य छिपाये है । ये इसके साथ रहने वाले योगी ही जान पाते है । इसकी कालिमा में एक अनोखी खूबसूरती और आकर्षण छुपा हुआ है ।
प्रसून किसी अंतरिक्ष केन्द्र से छोङे गये राकेट की तरह तीवृ गति से अंतरिक्ष में जा रहा था । उसके चारों तरफ़ गहरा काला काला काजल सा पदार्थ था । काले और गीले बर्फ़ीले घने ठण्डे बादलों में उसे कठिनाई सी हो रही थी । उसका योग प्रकाश और बल अभी इस स्तर की सूक्ष्म यात्राओं के लिये पर्याप्त नहीं था । वास्तव में उसे ऐसी यात्रा का जोखिम लेना भी नहीं चाहिये था । वह किसी ऐसी दूरस्थ सृष्टि में जा सकता था । जहाँ से फ़िर कभी उसके लिये लौट पाना संभव ही न हो । ऐसी हठ पूर्वक की गयी अनजानी योग यात्रा उसका योग बल समाप्त कर सकती थी । ये जीवन भी समाप्त कर सकती थी ।
पर ओमियो तारा के अनुभव से गुजरने के बाद उसने तय कर लिया था कि वह जिन्दगी का प्रत्येक खतरनाक अनुभव अब खतरनाक ढंग से ही करेगा । उसका अंजाम क्या होगा । अब इसकी उसे कोई परवाह ही नही थी । वह अब तक खामखाह की भूलभुलैया में था कि वह योगी है । अमर है । उसके जीवन पर उसका पूर्ण अधिकार है । और वह जीवन को अपने तरीके से निर्माण करेगा । जियेगा ।
पर वास्तव में अब वह जान गया था कि दूसरों की तरह वह भी महज एक खिलौना ही है । जिसका रिमोट दूर कहीं किसी के हाथ में है । अन्य आम इंसानों की तरह उसकी भी जिन्दगी कभी भी किसी मोङ पर खत्म हो सकती है । और तब इस धारणा से डरने के बजाय वह आंतरिक तौर पर और भी मजबूत हो गया था । और जिन्दगी का एक एक पल योग एडवेंचर के रोमांच में जीना चाहता था । वह किसी स्लाटर हाउस में कटे पशु की तरह अपने शरीर की बोटी बोटी का उपयोग दूसरों की भलाई के लिये करना चाहता था ।
और इसीलिये इस अदृश्य और अनजानी यात्रा में उसका क्या अंजाम होने वाला है । पता न होते हुये भी वह तेजी से मंजिल की और जा रहा था । उसका स्थूल शरीर बराङ साहब की कोठी के एक कमरे में बेड पर मृत समान पङा हुआ था । वह कमरा बाहर से लाक्ड था । उसकी चाबी जस्सी के पास थी । उसने जस्सी को कसम दी थी । उससे गाड प्रामिस लिया था कि चाहे दस दिन हो जायें । जब तक वह आवाज न दे । वह दरबाजा न स्वयं खोले । और न किसी को खोलने दे ।
हालांकि वे सब उस रहस्य से अधिक बैचेनी महसूस न करें । इससे उसने संकेत में बता दिया था कि वह कुछ दिनों के लिये योग समाधि में जा रहा है । और सिर्फ़ जस्सी की खातिर जा रहा है । और ऐसी हालत में देखना हिलाना डुलाना पुकारना उचित नहीं होता । वास्तव में उन्हें इस बात की बेहद उत्सुकता हुयी थी । पर मौके की नजाकत समझकर वे चुप ही रहे । और उसका कहा मानने में ही भलाई समझी । उनके घर में योग समाधि । शायद यही उनके लिये बहुत बङा अजूबा था ।
पर प्रसून के लिये ये साली जिन्दगी ही अजूबा बनी हुयी थी । क्या अजीब होती है । ये जिन्दगी भी । सिर्फ़ कुछ दिन पहले न कोई जस्सी थी । न उसका वो रहस्यमय केस था । न उसे कल तक पता था कि आज इस समय वह अंतरिक्ष की ऊँचाईयों पर अशरीरी जा रहा होगा । कहाँ जा रहा था वह । क्या पता । कहाँ जा रहा था ।
ये परसों रात की बात थी । कोई दस बजे वह जस्सी के रूम में लेटा हुआ था । बहुत धीमी आवाज में टीवी चल रहा था । जस्सी उसके पास ही बेड पर बैठी हुयी थी । वे दोनों अकेले थे । कल उसने बराङ साहब और राजवीर से स्पष्ट कर दिया था कि उसे जस्सी की समस्या किस तरह की मालूम होती है । और वास्तव में वह चाहता है कि एक बार पूरे जोर से जस्सी पर अटैक हो । जो वह उसकी रियल स्थिति को जान सके । अगर उनकी बेटी की किसी रहस्यमय वजह से मौत हो जाती है । उससे लाख गुना अच्छा है । उस वजह को जानकर उससे लङने की कोशिश की जाय । और बचने का रास्ता खोजा जाये । और इसके लिये उसका ज्यादा से ज्यादा जस्सी के पास रहना जरूरी था ।
दोनों को ये बात तुरन्त समझ में आयी । अगर कोई बाधा उनकी बेटी को मार भी सकती थी । तो फ़िर उनकी


लाडली बेटी अगर जिन्दगी के अन्तिम दिनों को भरपूर जीती थी । तो क्या हर्ज था । और ये बेचारा वो सिर्फ़ उनकी बेटी से एंजाय करने के लिये नहीं कर रहा था । उसने कम्प्यूटर पर उन क्लिप को चलाकर कई एंगल से मामले की गम्भीरता उनको समझाई भी थी कि ये कितना गम्भीर मामला था । दूसरे इस लङके में उन्होंने कोई छिछोरापन भी नहीं देखा था । तीसरे वह तो स्वयँ ही बङे ख्वाहिशमन्द थे कि वह जस्सी को पसन्द करने लगे । तो उनका जीवन ही सफ़ल हो जाये । और इसीलिये वह एक इज्जतदार दामाद के समान जस्सी के साथ उसके रूम में उसके बेड पर मौजूद था । जबसे उसने जस्सी के साथ सेक्स किया था । वह उससे बहुत शरमाने सी लगी थी । सब बातों से अनजान जस्सी उसे सिर्फ़ एक प्रेमिका के रूप में देखती थी । और वह उसे एक सफ़ल योगी की तरह किसी अदृश्य तिलिस्मी जाल में फ़ँसी खूबसूरत चिङिया के रूप में । खूबसूरत गोरी चिङिया । हरी आँखों वाली ।
अपनी बहुत कोशिशों के बाद वह सिर्फ़ इतना ही दृश्य देख जान पाया था कि किसी अज्ञात कारण से जस्सी की चेतना जब एक खास बिन्दु पर पहुँच जाती है । तब बवंडर उठता है । और फ़िर उसे तेज चक्कर सा महसूस होता है । उसका सर बहुत तेज चकराता है । और उसे दुनियाँ क्या पूरी सृष्टि ही घूमती हुयी उङती हुयी सी नजर आती है ।
स्वाभाविक ही ये भयंकर चक्रवाती तूफ़ान की स्थिति होती है । और उसमें घनघोर बारिश के साथ बिजली कङकङाती है । फ़िर जस्सी किसी दरिया में फ़ँसकर डूबने लगती है । तब उसे एक टार्जन लुक वाला युवा मछुआरा नजर आता है । वह उससे बचाने के लिये पुकारती है । बस ।
लेकिन इसके आगे क्या रहस्य था । और ठीक यही दृश्य करम कौर को भी क्यों दिखायी दिया । उसे याद रहा । जबकि जस्सी को याद नहीं रहता था । ये बहुत से सवाल उसके जहन में थे । कामुक और लंपट बाबा गुरुदेव सिंह इस तिलिस्म जाल में फ़ँसकर अकाल मारा गया था । इसकी भी क्या वजह थी । ये सब खेल क्या था ? और सबसे बङी बात कहाँ से संचालित हो रहा था । इसके तार कहाँ से जुङ रहे थे । यह उसके लिये सबसे अहम प्रश्न था ।
इस सृष्टि में कोई भी रहस्य कितना ही बङा क्यों न हो । उसका कोई न कोई सूत्र कहीं न कहीं मिल ही जाता है । और फ़िर गुत्थी को सुलझाना ही शेष रहता है । कितनी मजे की बात थी । बीमार जस्सी के रहस्य का सिरा सूत्र उसे करम कौर के दिमाग से हासिल हुआ था । उसके दिमाग में वह AV फ़ाइल के समान मौजूद था । जबकि जस्सी के दिमाग में नहीं था । यही हैरत की बात थी । तब उसने बङी मुश्किल से सिर्फ़ अन्दाजा ही लगाया था कि दोनों के साथ एक ही घटना घटी थी ।
अब आगे का रास्ता भले ही अनिश्चित था । पर शायद उससे ही कुछ हासिल हो सकता था । वह पूरा बवंडरी दृश्य उसके दिमाग की मेमोरी के एक हिस्से में फ़ीड था । और किसी वीडियो क्लिप की तरह वह उसे बार बार चलाता हुआ यह पहचानने की कोशिश कर रहा था कि आखिर यह जगह कहाँ और कौन सी है ? अगर वह उस जगह से कनेक्ट हो सकता था । उसको पहचान सकता था । और वह उसकी योग रेंज में आती थी । तो बात बन सकती थी ।
पर उसे बहुत झुँझलाहट सी हो रही थी । वह दृश्य उतना ही चलकर खत्म हो जाता था । और जो वह उसमें प्रवेश करने की चेष्टा कर रहा था । वह एकदम नाकाम ही सावित हो रही थी । सीधी सी बात थी । उसकी योग क्षमता अभी उतनी विकसित नहीं थी कि वह किसी अतीतकालिक घटना में सीधा ही हस्तक्षेप कर सके । ऐसी ही बारबार की कोशिशों में वह वहीं लेटा हुआ ट्रांस में जाता था ।
तभी उसे अपने शरीर से लिपटे एक कोमल बदन की गरमाहट सी महसूस हुयी । और उसकी क्षणिक विकल्प समाधि भंग हो गयी । उसने हौले से आँखे खौल दी । कमरे में अंधेरा फ़ैला हुआ था । सुन्दर जस्सी उसके साथ किसी मासूम बच्चे की भांति लिपटी हुयी थी । उसने टीवी लाइट बन्द कर दी थी ।
ये उसके लिये एक साथ कई मोर्चों पर लङने जैसा था । एक योगी के स्तर पर किसी पिता के समान वह जस्सी की किसी मासूम बालक की भांति रक्षा करने को दृण संकल्पित हो चुका था । पर बारबार दिक्कत यही आती थी कि उसकी तरफ़ से भी इसी भाव में पूरा सहयोग होता । तब कुछ बात थी । पर वह तो प्रेमिका होने के अतिरिक्त कुछ सोचना ही नहीं चाहती थी । वास्तव में वह सो गयी थी । और उसका मासूम चेहरा किसी अबोध बच्चे के समान किसी सुन्दर सपने में खोये अहसास का भाव प्रकट कर रहा था ।
वह सावधानी से ऊपर खिसककर अधलेटा सा हुआ । और सिगरेट सुलगायी । इस तरह बात बनेगी नहीं । उसने सोचा । उसे किसी अलग कमरे में खास व्यवस्था के तहत गहन समाधि में जाना ही होगा । और कुछ % तक सच्चाई से जस्सी के परिजनों को परिचित कराना ही होगा । और फ़िर उसने यही किया था ।
और परिणाम स्वरूप इस विशाल अंतरिक्ष के रहस्यमय अंधेरे में भटक रहा था ।
और तब अचानक वह बुरी तरह चौंका । जब उत्तर दिशा में किसी नीच लोक से उसे तेज बवंडर उठता नजर आया । वह उस बवंडर से बहुत ऊँचाई पर था । उसके नीचे बादल गहराने लगे थे । उज्जवल उजास दामन वाली दामिनी अपना भरपूर कटाक्ष फ़ेंकती थी । और आकाश में कङकङाहट सी गूँज जाती थी । क्या चपल देवी होती है । ये चपला भी । उसने सोचा । ये अनिंद्ध सुन्दरी उच्च देवों को भी सिर्फ़ आह भरने पर मजबूर अवश्य करती थी । पर उसे छू पाने की भी हिम्मत उनके अन्दर नहीं थी । क्योंकि उसे छूना आसान नहीं था । बल्कि संभव ही नहीं था । वह सिर्फ़ अद्वैत शक्तियों की दासी थी । और विशेष कार्यों हेतु मुक्त विचरण पर निकलती थी । उसने सोचा । जिन चेतन पुरुषों को ये नायिका सुख पहुँचाती होगी । उसका आनन्द न सिर्फ़ अवर्णनीय होगा । कल्पनातीत भी होगा । जिसका एक मादक कटाक्ष ही बृह्माण्डी गतिविधियों में तमाम परिवर्तन कर देता है । अंतरिक्षीय हलचल में उलट फ़ेर कर देता है । उस सुन्दरी की बस कल्पना ही की जा सकती है ।
पर अभी ये सब सोचना उसके कार्यकृम का हिस्सा नही था । उसे उस बवंडर से खास मतलब था । और इसके लिये उसे वापिस नीचे उतरना था । और फ़िर उसने वैसा ही किया । उसकी गति नीचे की तरफ़ होने लगी । वह बादलों के झुण्ड में खोता चला जा रहा था ।

007
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Re: मायाजाल

Unread post by 007 » 10 Dec 2014 08:41

वास्तव में कोई योगी कितना ही पहुँच वाला और जानकार क्यों ना हो जाये । प्रकृति के रहस्यों और दैत की मायावी भूमि से पार पाना उसके लिये कभी संभव नहीं है । अब उसका यही विचार पक्का होने लगा था । और अब उसे अपनी मूर्खता पर स्वयं ही हँसी भी आ रही थी । अपनी उलझन के चलते वह एक मामूली सी बात भी नहीं सोच पाया था । क्या थी वह मामूली बात ?
जस्सी और करम कौर के साथ अतीतकाल में जब भी यह घटना घटी होगी । निश्चय ही किसी भी प्रथ्वी पर ही घटी होगी । और उनके विगत मनुष्य जीवन में ही घटी होगी । जिसका कोई न कोई सम्बन्ध उस मछुआरे नाविक से हो सकता है । और सबसे बङी बात यह थी कि जो वह अपनी आदत अनुसार उसकी जङें उच्च लोकों में तलाश रहा था । वे दरअसल किसी नीच लोकों में भी हो सकती थी । बल्कि नीचे लोकों में ही होने की संभावना अधिक थी । क्योंकि ऊँचे लोकों के ऐसे दैवीय अटैक वह आसानी से समझ सकता था । वे उसके तमाम अनुभवों का हिस्सा से थे ।
काले सफ़ेद मटमैले अजीव से बादल मंडरा रहे थे । उनका नियुक्त प्रतिनिधि पुरुष बेहद काला सा था । और सपाट भाव से अपने कार्य में लगा था । उसने प्रसून पर एक उपेक्षित सी निगाह डाली । और ट्रेफ़िक पुलिस की तरह हाथ हिलाता बादलों को नियन्त्रित करने लगा ।
तब प्रसून स्वतः ही उसकी ओर आकर्षित हुआ । और उसके एकदम करीब पहुँच गया । उसकी भंगिमा से ही वह मेघदूत उसके योगत्व को जान गया । उसने प्रसून का औपचारिक अभिवादन किया । और वह उसके लिये क्या कर सकता है । ऐसा उसने आगृह किया । पर प्रसून उससे सिर्फ़ उस स्थान के बारे में जानकारी चाहता था । और आगे किस तरह के लोक थे । वहाँ के निवासी कौन से वर्ग में आते थे । बस यही जानना चाहता था । उसने प्रसून को बहुत कुछ बता दिया । जहाँ तक उसका कार्य क्षेत्र था । उसने बता दिया ।
यह स्थान यमपुरी के निकट था । आगे सजा पाये जीवों के लिये अंधेरे और नीच लोकों का सिलसिला शुरू हो गया था । उससे और आगे नीचाई पर जाने पर नरक और फ़िर महा नरकों का सिलसिला शुरू होता था ।
पर उसे नरकों से कोई वास्ता नहीं था । शायद उसका वास्ता क्षेत्रफ़ल की दृष्टि से बहुत छोटे ही अंधेरे लोकों से था । जस्सी का सम्बन्ध वहीं कहीं से जुङ रहा था । उत्तर दिशा की यह भूमियाँ तामसिक और निकृष्ट साधकों की अधिक होती थी । अतः उसका ज्यादा सरोकार इनसे नहीं रहा था । पर वह शुरूआती दौर में प्रेतों के काफ़ी करीब रहा था । अतः ऐसे लोकों का इतिहास भूगोल अच्छी तरह जानता था । समझ सकता था । यमपुरी के आसपास का एरिया एक तरह से प्रशासनिक क्षेत्र था । और यहाँ साधारण स्वतन्त्र प्रेतों के बजाय नियुक्त गण होते थे । या होने चाहिये । जबकि तान्त्रिक लोक जैसे सिद्ध लोकों का मामला अलग था । वहाँ के प्रेत और विभिन्न भाव रूहें अलग प्रकार की थी ।
वह गुरुत्व बल के योग दायरे में आधार रहित स्थिर खङा विचार मग्न था । बादलों के सफ़ेद बर्फ़ीले टुकङे उसको छूते हुये गुजर रहे थे । पर वह स्थूल देही की भांति कोई ठण्डक अनुभव नहीं कर रहा था ।
- हेऽऽऽ । तभी उसे आश्चर्य मिश्रित चीख सी सुनाई दी - मानव । देख मानव ।

उसने आवाज की तरफ़ देखा । वे दोनों योगिनियाँ थी । और शायद कहीं नियुक्त भी थी । उसे थोङी सी हैरत हुयी । सूक्ष्म शरीर में होने के बाद भी वे उसे मनुष्य स्थिति में महसूस कर सकती थी । और उसकी असलियत से वाकिफ़ थी । ये क्षेत्रिय असर था । इंसान जिस भूमि जिस स्थित जिस भाव से जुङा होता है । उसका असर उस पर निश्चय ही होता है । उसके मूल पर चङा भाव आवरण अपना परिचय दे ही देता है । पर मूल । उसने सोचा । और उनके मूल में स्त्री थी । सदियों से वे स्त्री मूल में थी । और वह स्त्री आज भी उनके अन्दर होगी । एक स्त्री । जो एक पूर्ण पुरुष की निकटता के अहसास से ही भीगने लगती है । उसे जकङने पकङने को संकुचित होने लगती है ।
- कमाल है । वह उनकी प्रशंसा सी करता हुआ बोला - आपने मुझे एकदम ठीक से पहचान लिया । मैं मानव ही हूँ । और मुझे स्वयँ आश्चर्य सा होता है । दूसरे मानव मेरे जैसे क्यों नहीं हैं ? जैसे मैं किसी पक्षी की भांति मुक्त आसमान में घूमता हूँ । पता नहीं मै औरों से अलग ऐसा कैसे कर लेता हूँ ।
उन दोनों ने एक दूसरे की तरफ़ देखा । और रहस्यमय अन्दाज में मुस्कराई ।
फ़िर एक बोली - इसका नाम कनिका और मेरा रक्षा है । कहिये हम आपकी क्या सेवा कर सकती हैं । भले ही आप उसका कोई मूल्य ना चुकाना । दरअसल यहाँ मृत्यु पश्चात तो बहुत मानव आते हैं । रोज ही लाखों जीवात्माओं का लेन देन इधर उधर होना जारी रहता है । पर यूँ स्वतन्त्र रूप से बहुत कम आते हैं ।
वह मोहक भाव से मुस्कराया । जो योगिनियों के दिल में तीर सा लगा । वे बैचेन सी होने लगी । यह किसी दूर देश के अनोखे पर पुरुष का स्वाभाविक चुम्बकीय आकर्षण था । उससे भोग करने की जबरदस्त कामना वाला आकर्षण ।
- जहाँ हम लोग खङे हैं । वह बहुत हल्का सा कटाक्ष करती हुयी बोली - ये प्रेतराज का क्षेत्र है । उसका काम सजा पाये लोगों पर निगाह रखना है । कुछ अंधेरे लोक उसके संचालन में होते हैं । वैसे उसका काम कुछ नहीं होता । पर वह वहाँ से जुङी गतिविधियों पर निगाह रखता है । वहाँ कोई बाहरी हलचल होने पर उसका उपाय करता है । और मामला उसकी शक्ति से बाहर होने पर केन्द्र को सूचित कर देता है ।
- अंधेरे लोक । वह उसके पूछने पर बोली । और उसने उँगली से एक तरफ़ इशारा किया - उनका मार्ग इधर से है । पर आप वहाँ क्यों जाना चाहते हैं ? तो फ़िर बिना प्रेतराज की अनुमति और उसके संज्ञान में लाये बिना आप कैसे जाओगे ? इसी पर निगाह रखना तो उसका काम है ।
अभी वह कुछ जबाब देना चाहता था कि उसे हल्के हल्के ढोल की आवाज सुनाई देने लगी । ढम ढम.. ढम ढमाढम । किसी कुशल संगीतज्ञ की तरह कोई ढोल बादक बङे लयताल से ढोल बजा रहा था । उसे सुर का अच्छा ज्ञान मालूम होता था ।
अभी वह उनसे इस बारे में कुछ पूछना ही चाहता था कि आगे का दृश्य देखकर उसके छक्के ही छूट गये । न सिर्फ़ उसके छक्के छूट गये । योगिनियों ने भी बहुत आश्चर्य से लगभग चीखते हुये उस दृश्य को देखा ।
- जस्सी । प्रसून के मुँह से निकला - ओह गाड । जस्सी । क्या ये मर गयी ?
एक तेज चक्रवाती बवंडर के बेहद ऊँचे गोल दायरे में जस्सी का सूक्ष्म शरीर ऊँचा और ऊँचा उठता हुआ आ रहा था । और वह तेजी से अंधेरे लोक की तरफ़ जा रही थी । अब कुछ पूछने बताने का समय नहीं था । वह तेजी से उधर ही जाने लगा । यहाँ बवंडर की गति अधिक नहीं थी । और अगर होती भी । तो वह योगी की गति से ज्यादा कभी नहीं हो सकती थी ।
अब उसके दिमाग में तुरन्त दो ख्याल आये । पहला । तुरन्त जस्सी को उस बवंडर से मुक्त कराकर उसकी असलियत पता करना । वह मर गयी । या जीवित थी । दूसरा । शायद इस बवंडर का सम्बन्ध उसकी कारण समस्या से जुङा हो । तब उसका हस्तक्षेप पूरे मामले को बिगाङ सकता था । और वह जो शायद स्वतः ही रहस्य की तह में जा रही थी । वो रास्ता बन्द हो सकता था । दूसरी बात अधिक उचित थी ।
वह सावधानी से उसके पीछे जाता हुआ देखने लगा ।
इसी को कहते हैं । मारने वाले से बचाने वाला बङा । हर समस्या का समाधान निश्चित होता है । हर रोग का इलाज निश्चित होता है । हर घटना का सटीक कारण होता है । और ये सब हो रहा है । केवल अज्ञान भृमवश अहम मूल से बने जीव को ऐसा भासता है कि वह इसका कर्ता है । आज जो प्रयोग उसके जीवन में घटा था । वह अदभुत ही था । अल्ला बेबी के मेल से लेकर उसके यहाँ तक पहुँचने और अब जस्सी के यकायक हैरत अंगेज तरीके से वहाँ बवंडर में होने के पीछे की सारी बातें उसके सामने रील की तरह घूम गयी । और वह कैसे और क्यों इस घटना में निमित्त था । यह सारी बात स्पष्ट हो गयी । अगर वह न होता । तो वह लङकी एकदम असहाय ही थी । पर अब वह एक मजबूत सहारे की तरह उसके साथ था । कितनी अजीब है । ये प्रभु की लीला भी । कौन इसका पार पा सकता है । वह उसका पूरक बना था । और वह उसकी पूरक बनी थी । और प्रकृति का कार्य भी चल रहा था । एक सीख रहा था । एक प्रयोग वस्तु था । और सृष्टि का कार्य भी हो रहा था । अदभुत । अदभुत खेल ।
वह काफ़ी आगे निकल आया था । कई सौ योजन की दूरी तय हो चुकी थी । जस्सी किसी उमेठे गये तार में फ़ँसी खिलौना गुङिया की भांति चक्रवाती बवंडर में ऊपर नीचे जा रही थी । और फ़िर वह एक जगह रुक गयी । बवंडर मानों वहीं थमकर खङा हो गया । अब ढोल की आवाज काफ़ी तेज हो गयी थी । पर वह जैसे कहीं बहुत नीचे से आ रही थी । अब क्या करना चाहिये । उसने सोचा । उसने नीचे की तरफ़ दृष्टि डाली । काला गहन अंधेरा । अंधेरा ही अंधेरा । अंधेरे के सिवाय कुछ नहीं था । वह नीचे उतरने लगा ।

ये आप क्या कह रहे हो । वह बेहद हैरत से बोला - मुझे बिलकुल भी विश्वास ही नहीं हो रहा ।
- मुझे भी नहीं होता । प्रसून भावहीन स्वर में बोला - पर कभी कभी अजीव बातों पर भी विश्वास करना ही पङता है । तुम्हारी ये ढोलक क्या गजब ढा रही है । शायद कोई भी इस पर यकीन न करे । एक मासूम लङकी तुम्हारी वजह से कटी पतंग की तरह बिना लक्ष्य भटकती हुयी यहाँ तक आ पहुँची है । और निराधार अंतरिक्ष में लटकी हुयी है । बल्कि लटकी कहना भी गलत है । वह तूफ़ानी बवंडर में कैद है । अभी मैं ये भी नहीं कह सकता कि वो जीती है । या मर चुकी है ।
उस बूङे के चेहरे पर गहरे अफ़सोस के भाव थे । वह मानों रो पङना चाहता था । उसकी वजह से किसी को घोर कष्ट हुआ था । यह सोच उसको मारे ही डाल रही थी । प्रसून को कम से कम अब इस बात की तो तसल्ली हो चुकी थी कि जो भी क्रिया हो रही थी । या अनजाने में की जा रही थी । उसका लक्ष्य जस्सी को कोई नुकसान पहुँचाना नहीं था ।
गोल बवंडर शून्य 0 स्थान में जस का तस थमा हुआ था । और अब उसकी मुश्किल और भी दुगनी हो गयी थी । जब जिसकी वजह से वह सब क्रिया हो रही थी । उसे ही कुछ मालूम नहीं था । तब फ़िर उसका कोई इलाज उसके पास क्या होता ।
- दाता ! उसने आह भरी - तेरा अन्त न जाणा कोय ।
अब सब कुछ संभालना उसका ही काम था । अगर कोई छोटी बङी शक्ति के स्वयँ जान में ये घटना हो रही थी । तब बात एकदम अलग थी । और अब बात एकदम अलग । उसने अन्दाजा लगाया । प्रथ्वी पर सुबह हो चुकी होगी । तब जस्सी को लेकर बराङ परिवार में क्या भूचाल मचा होगा । जस्सी मरी पङी होगी । वह भी मरा पङा होगा । कहीं ऐसा ना हो । वे उन दोनों का अन्तिम संस्कार ही कर दें । यहाँ से वापिसी भी कब होगी । कुछ पता नहीं था । और अब तो ये भी पता नहीं था कि वापिसी होगी भी या नहीं । यदि उनके शरीर नष्ट कर दिये गये । तो उनकी पहचान हमेशा के लिये खो जायेगी ।
तब क्या उसे यूँ ही वापिस लौटकर सारी स्थिति को देखना संभालना चाहिये । अचानक उसके पीछे क्या बात हुयी थी । वह न तो उन वर्तमान परिस्थितियों में अभी पता लगा सकता था । न ही उसके पास इतना समय था ।
उसने इतने अलौकिक स्थानों की यात्रायें की थी कि उसे याद भी नहीं था । पर ये अंधेरे नीच लोक अजीव ही थे । चमकता सूर्य और खिली धूप का क्या मतलब होता है । यहाँ के निवासी शायद जानते ही नहीं थे । हर समय धुंध सी फ़ैली रहती थी । और बहुत पीला सा मटमैला प्रकाश फ़ैला रहता था ।
सृष्टि नियम में काले पानी की सजा जैसा ये अजीव ही विधान था । लगता था । सृष्टि अपनी प्रारम्भिक अवस्था में थी । अलग अलग जगह अलग अलग लोकों में जीवन की कितनी अजीव परिस्थितियाँ विकसित थी ।
उसने बूङे को गौर से देखा । एक अजीव सा सूनापन उसकी आँखों में समाया हुआ था । वह जैसे ठहरा हुआ समय था । उसके पास ढोल रखा हुआ था । और शायद वही उसका अब साथी भी था । वह भारत के किसी पिछङे गाँव की तरह एक कच्चे से मकान में रहता था । जिसमें सिर्फ़ एक कमरा था । और बाहर बहुत सी खुली जगह थी । उसका ही घर क्या । अधिकतर बहाँ की आवादी ऐसी ही हालत में थी । उसके कमरे में पाँच छह पुरुष और तीन स्त्रियाँ बैठी हुयी थी । उन सबको उसको लेकर बहुत आश्चर्य था । वे बार बार उस पवित्र आत्मा को देख रहे थे । जो स्वेच्छा से यहाँ तक आ गया था । और उसकी दिव्य आभा से वहाँ एक अजीव सा प्रकाश फ़ैला हुआ था ।
पर उसकी हालत खुद अजीव हो रही थी । उसका अगला कदम अब क्या हो ? उसे ही ये तय करना मुश्किल हो रहा

था । तब उसकी निगाह उस ढोल पर गयी । सारा रहस्य शायद इस ढोल में ही छुपा हुआ था । पहले उसने सोचा कि वह बूङे से उसके बारे में पूछे । उसका दिमाग कैप्चर कर ले । और समस्या को बारीकी से देखे । और वह यही करने वाला था ।
तब हठात ही उसे दूसरी बात सूझी । जो अधिक उचित थी । दरअसल वह जब तक यहाँ पहुँचा था । ढोल कृमशः मद्धिम होता हुआ रुक गया था । और वह इसी ध्वनि के सहारे यहाँ तक आया था । आज उसने योग का एक अजीव अनुभव किया था । उस ढोल की ध्वनि के साथ अजीव तरंगे आकार ले रही थी । और उनमें मानवीय आकार और जमीनी दृश्य किसी ग्राफ़िक विजुअलाइजेशन की तरह हौले हौले आकार ले रहे थे । जैसे किसी आडियों फ़ाइल को प्ले करने पर ध्वनि के आधार पर तरंगो की तीवृता और क्षीणता के आरोह अवरोह पर डिजायन बनती है ।
खास बात ये थी कि इसमें जस्सी करम कौर एक युवा नाविक मछुआरा एक बूङा और कुछ नटगीरी के करतब उसे नजर आये थे । लेकिन जैसे जैसे वह करीव आता गया । इन सब शरीरों की रूप आकृतियाँ बदलने लगीं । यही बङा अदभुत बिज्ञान उसने देखा था । वह इसे जानता तो था । पर ऐसा प्रत्यक्ष रूप पहली बार देखा था । उसने सोचा । किसी टीवी सेट इंटरनेट आदि में दृश्य ध्वनि का प्रसारण और रिसीविंग के मध्य कुछ कुछ ऐसा ही होता होगा ।
तब सारा रहस्य इसी बात में छुपा था । और वह बारबार इसी को सोच रहा था । वह जब उधर से आ रहा था । तब जस्सी और करम कौर की आवृतियाँ उनके वर्तमान स्वरूप की बन रही थी । लेकिन बीच रास्ते में उसने उतनी ही संख्या में दूसरी अपरिचित आवृतियाँ देखीं । जो इस नीच लोक की तरफ़ से उसी पथ पर जा रही थी । और इसका चित्रण इस तरह से बनता था । जैसे जस्सी करम कौर और अन्य एक रास्ते पर आ रहे हों । और उतनी ही संख्या में वैसे ही लिंगी इधर से जा रहे हों । तब एक बिन्दु पर वे शरीर मिले । और जस्सी उस अपरिचित लङकी में समा गयी । करम कौर एक औरत में समा गयी । इधर का दृश्य उधर के दृश्य से मिल गया । और मामला ठहर गया । फ़िर ये वीडियो क्लिप जैसा चित्र पाज होकर स्टिल चित्र में बदल गया । ये उसने देखा था ।
बूङा सूनी आँखों से उसी की तरफ़ देखता हुआ कुछ बोलने की प्रतीक्षा कर रहा था । पर क्या बोले वह ? वह खुद चाहता था कि वह बोले ।
- बाबा ! तब वह ही बोला - मैं आपके इस ढोल को बजते हुये सुनना चाहता हूँ । मेरा मतलब जैसा आप हमेशा से करते आये । जिन भावों से । जिन वजह से आप ढोल बजाते रहे । ठीक सब कुछ वैसा ही देखना सुनना चाहता हूँ । लेकिन मनोरंजन के लिये नहीं । इसमें किसी की जिन्दगी मौत का सवाल छुपा है । और शायद मेरी जिन्दगी मौत का सवाल भी ।
सबने चौंककर उसकी तरफ़ देखा । एक ढोल बजने से किसी की जिन्दगी मौत का क्या लेना देना । ये उनकी समझ में नहीं आ रहा था । बूङे ने बङे असहाय भाव से इंकार में सिर हिलाया । उसकी बूङी आँखों में दुख का सागर लहरा रहा था । उसके इंकार पर प्रसून को बङी हैरत सी हुयी । उसका आगे का पूरा कार्यकृम ही उसके ढोल बजने पर निर्भर था ।
- ये सब । वह कमजोर आवाज में बोला - खुद होता है । मैं वैसा ढोल हमेशा नहीं बजा सकता । बल्कि ये मान लो । वह खुद ब खुद बजने लगता है । और ये यहाँ । उसने छाती पर हाथ रखा - यहाँ हूक उठने पर होता है । अभी मैं बहुत देर से ढोल बजाता रहा हूँ । इसलिये मेरा दर्द शान्त हो चुका है । भावनाओं का ज्वार शान्त हो चुका है ।
ये भावना हमेशा पूरे जोर पर नहीं होती । बल्कि कभी कभी ही होती है । तब मैं ढोल बजाने लगता हूँ । और गाता हूँ । अपना दुख व्यक्त करता हूँ । ये सब मैं यकायक करता हूँ । तब ये लोग । उसने कमरे में मौजूद लोगों पर दृष्टि डाली - खिंचे से चले आते हैं । ये भी अपने वाध्य यन्त्र बजाते हैं । और गाने में मेरा साथ देते हैं । तब एक अजीव सा तरंगित माहौल बन जाता है । और मैं पूरी तरह डूबा हुआ अपने अतीत में लौट जाता हूँ ।
प्रसून के चेहरे पर रहस्यमय मुस्कराहट आयी । उसका ख्याल एकदम सही था । पर उससे क्या होना था । उसका ढोल बजना बहुत जरूरी था । उसी बात पर उसकी और जस्सी की जिन्दगी निर्भर करती थी । जस्सी जो चक्रवाती बवंडर में यहाँ से दूर निराधार लटकी हुयी थी ।
मगर बूङा भी अपनी जगह सही कह रहा था । सुख और दुख का असली भाव कृतिम रूप से पैदा करना संभव ही नहीं था । वो भी तब जब अभी अभी वह उस स्थिति से उबरा हो । उसने एक निगाह खुले आसमान की तरफ़ डाली । क्या टाइम हो रहा था । इसका भी अन्दाज नही हो पा रहा था । कितनी देर हो चुकी थी । इस बात को लेकर भी वह असमंजस में था । उसे जल्दी ही कोई निर्णय लेना था । और अब इसके लिये एक ही उपाय बचा था ।

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