मायाजाल

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
The Romantic
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Re: मायाजाल

Unread post by The Romantic » 05 Dec 2014 19:00

करमकौर ने तुरन्त एक बङा टावल लपेटा । और बाहर आ गयी । सतीश उसको देखकर हैरान ही रह गया । सिर्फ़
एक टावल में भरपूर जवानी । वह तेजी से पलटकर बाहर जाने को हुआ । पर करमकौर ने उसे अभी रुक कहते हुये रोक दिया । वह चोर निगाहों से उसे देखने लगा । उसकी मोटी मोटी चिकनी जाँघे आधे से अधिक खुल रही थी

उसने टावल को ही उठाकर अपना गोल स्तन बाहर निकाल लिया था । और बच्चे को दूध पिला रही थी ।
- बेबी भूखा था । वह उसे देखती हुयी बोली - दूध पी लेगा । फ़िर तंग नहीं करेगा । और सुन । तेरी मालकिन राजवीर है । मैं करम कौर नहीं । तू मुझे भाभी बोल सकता है । आखिर परदेस में तुझे भी कोई अपना लगने वाला होना चाहिये ना । वैसे तेरी शादी हुयी या नहीं ।
सतीश ने झेंपते हुये ना में सिर हिलाया । कितनी अजीब बात थी । अपने एकान्त क्षणों में वह हमेशा जिस औरत के निर्वस्त्र बदन की कल्पना करता था । वह साक्षात ही लगभग निर्वस्त्र बैठी थी । पर वह एकदम नर्वस हो रहा था ।
- फ़िर तू किसकी लेता है । वह शरारात से बोली - पप्पी झप्पी । कोई कुङी फ़िट की हुयी है । कोई प्रेमिका । कोई मेरे जैसी भाभी भाभी वगैरह ।
उसने फ़िर से इंकार में सिर हिलाया । करम कौर उत्तेजित हो रही थी । उसने बच्चे को दूसरे स्तन से लगाने के बहाने से टावल को खुल जाने दिया । सतीश का दिल तेजी से धक धक करने लगा । एक लगभग आवरण रहित सम्पूर्ण नायिका उसके सामने थी ।
करमकौर छुपी निगाह से उसके बैचेन उठान को महसूस कर रही थी । उसने बच्चे को दूध पिला दिया था । फ़िर उसने टावल को ठीक कर लिया ।
- अरे लल्लू ! वह प्यार से उसका हाथ पकङकर बोली - अब मैं तेरी भाभी हुयी । फ़िर मुझसे क्या शर्म करता है । चल कोई बात नहीं । पर तूने सच बताना । कभी अपनी किसी भाभी को नहाते हुये चुपचाप देखा है । कोई तांक झांक टायप । कभी कुछ ।
सतीश कुछ बोल न सका । बस हल्के से मुस्कराकर रह गया । करम कौर को अजीव सी झुँझलाहट हुयी । पर आज मानों उसने भी सभी दीवार गिरा देने की ही ठान ली थी । उसने उसके पास जाकर उसके गाल पर एक पप्पी ली ।
और बहाने से उसके पेन्ट से हाथ फ़िराते हुये बोली - यकीन कर मैं तेरी भाभी हूँ । गाड प्रामिस । किसी को कुछ नहीं बोलूँगी । अब बता । तू मेरी एक इच्छा पूरी कर देगा । सिर्फ़ एक । देख ना नहीं करना । वरना इस करमा का दिल ही तोङ दे ।
अब सतीश में हिम्मत जागृत हुयी । उसके होठ सूखने से लगे । फ़िर वह बोला - हाँ । बोलो । आप बोलो ।

करम कौर ने उसे मसाज आयल की बाटल थमा दी । और दीवान पर पेट के बल लेटती हुयी बोली - मैंने आज तक सिर्फ़ पुरुष मसाज के बारे में सुना भर है । कभी कराने का चांस नहीं बना । इसलिये उसकी फ़ीलिंग नहीं जानती । तू मुझे वो मसाज एक्स्पीरियेंस करा । और तुझे फ़ुल्ली छूट है । चाहे मुझे भाभी समझ । वाइफ़ समझ । लवर समझ । या सिर्फ़ औरत समझ । सिर्फ़ औरत । कुछ भी क्यों न समझ । लेकिन बस ये मसाज फ़ीलिंग । आनन्दयुक्त और यादगार हो । तू यहाँ से चला भी जाय । तो मुझे तेरी बारबार याद आये ।
सतीश के बदन में गरमाहट की तरंगे सी फ़ैलने लगी । करम कौर दीवान पर लेटी थी । उसने नाम मात्र को तौलिया पीठ पर डाला हुआ था । वह बस एक पल झिझका । आज उसकी सबसे बङी चाहत पूरी होने वाली थी । उसकी हथेलियाँ तेल से भीग चुकी थी । फ़िर वह दीवान पर बैठ गया । और टावल सरका दिया । करम कौर के विशाल दूधिया नितम्ब उसके सामने थे । उसकी वलयाकार पीठ उसके सामने थी ।
- यादगार मसाज । वह आह सी भरती हुयी बोली - और इसके लिये तू ये शर्ट वगैरह उतार दे । जो कि आराम से हाथ पैर चला सके । आराम से । धीरे धीरे । संगीतमय । कोई जल्दी नहीं । बङे हौले हौले करना ।
सतीश ने वैसा ही किया । फ़िर उसके कठोर हाथों का स्पर्श करम कौर को अपने कन्धों से कमर तक होने लगा । तब उसने और आगे हाथ ले जाने का आदेश दिया । सतीश के हाथ उसके चिकने नितम्बों पर घूमते हुये फ़िसलने लगे । फ़िर वह आनन्द से कराहने लगी । अब वह अगले क्षणों की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रही थी । और तब उसे अपने बदन में किसी उँगली समान प्रवेश की अनुभूति हुयी । लोहा गर्म हो चुका था । वह तुरन्त उठकर बैठ गयी । और सीधा उसके अंग को सहलाने लगी ।
सतीश ने उसके स्तनों को सहलाया । वह उसका अनाङीपना समझ गयी थी । उसने उसे दीवान पर गिरा दिया । और अपनी कलायें दिखाने लगी । तब उसके अन्दर का पुरुष जागा ।
उसने करमकौर को झुका लिया । और उससे सट गया । वाकई वह मर्द था । अनाङी था । हिन्दू था । और करमकौर का इच्छित अलग टेस्ट था । इधर वह भरपूर पंजाबन औरत थी । वह आनन्द के अतिरेक में कराहती हुयी नितम्ब उछालने लगी । और ढेर होती चली गयी । एक बलिष्ठ पुरुष के समक्ष । एक समर्पित नायिका की भांति । जो उसके अब तक अनुभव से एकदम अलग ही साबित हुआ था । इसलिये यह वाकई एक यादगार अनुभव था । पर अभी तो बहुत समय बाकी थी । बहुत समय । समय ही समय ।

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Re: मायाजाल

Unread post by The Romantic » 05 Dec 2014 19:02

समय की इस किताब में सदियों से जाने क्या क्या लिखा जाता रहा है । क्या लिखने वाला है । और आगे क्या लिखा जायेगा । ये शायद कोई नहीं जानता है । करमकौर को ही सुबह तक ये नहीं मालूम था । आज उसकी जिन्दगी में एक यादगार पुरुष आने वाला है । न सिर्फ़ यादगार पुरुष । बल्कि यादगार एक एक लम्हा भी । जिसको बारबार संजोने का दिल करे ।
क्या अजीव बात थी । उसे घर की देखभाल के लिये छोङ गयी राजवीर के बारे में सोचना चाहिये था । उसकी बेटी जस्सी के बारे में सोचना चाहिये था । उसे एक पराये पुरुषसे अनैतिक पाप संबन्ध के पाप के बारे में सोचना चाहिये था । पर येसभी सोच गायब हो चुकी थी। उसके अन्दर की करम कौरमर चुकी थी । और मुक्त भोग की अभिलाषी स्त्री जाग उठी थी । वासना से भरी हुयी स्त्री । जिसे सम्बन्ध नहीं । पुरुष नजर आता है । और ये पुरुष आज किस्मत की देवी ने मेहरबान होकर उसे उपलब्ध कराया था । अगर ये बेशकीमती पल वह पाप पुण्य को सोचने में गुजार देती । तो ना जानेये पल फ़िर कब उसकी जिन्दगी में आते । आते भी या ना आते । इसलिये वह किसी भी हालत में इसको गंवाना नहीं चाहतीथी ।
सतीश अनाङी था । औरत से उसका पहले वास्ता नहीं था । पर वह हेविच्युल थी। मेच्योर्ड थी । एक अनाङी था । एक खिलाङिन थी । और ये संयोग बङा अनोखा और दिलचस्प अनुभववाला था । अभी अभी बीते क्षणों को सोचकर ही उसका बदन रोमांचित होताथा । अब उसे कुछ लज्जा सी आ रही थी । और कुछ वह त्रिया चरित्र करना चाहती थी । इस तन्हाई केएक एक पल को सजाने के लिये ।
वह कपङे पहनने लगी । तब सतीश चौंककर बोला - नहाओगी नहीं..भ भाभी ?
- यू नाटी.. ब्वाय ! वह उसका कान पकङकर बोली - दर्द बेदर्द हो रही हूँ मैं । हिम्मत नहीं हो रही । पर नहाना भी चाहतीहूँ ।
सतीश के मुँह से चाहत केआवेग में भरी भावना निकल गयी । मैं नहला देता हूँ । वह मसाज से ज्यादा आसान है । वह भौंचक्का रह गयी । स्त्री पुरुष का सामीप्य अनोखी स्थितियों को जन्म देताहै । किसी खिलती कली के समान तमाम अनजान कलायेंपंखुरियों के समान खुलने लगती है । उसने कोई ना नुकुर नहीं की । वे दोनों बाथरूम में आ गये । सतीश की उत्तेजना वह जान रही थी । ये कभी न समाप्त होने वाली भूख थी । अगले ही क्षणों मेंफ़िर से बह आनन्दित होकर सिसकियाँ भर रही थी ।
और अब रात के नौ बज चुकेथे । वह टीवी के सामने बैठी हुयी फ़िल्मी सांगदेख रही थी । कितनी अदभुत बात थी । पर्दे पररोमांटिक भंगिमायें करते हर नायक नायिका में उसे अपनी और सतीश कीही छवि नजर आ रही थी । आज रात को भी वह भरपूर जीना चाहती थी । शायद ऐसी गोल्डन नाइट जिन्दगी में फ़िर से नसीब न हो । अतः उसने अपने पुष्ट बदन पर सिर्फ़ एक गाउन पहना हुआ था । और उसका भी एक बन्द ही लगाया हुआ था । एक बन्द ।
- ये स्त्री भी अजीब पागल ही होती है । उसने सोचा - सदियों से इसने व्यर्थ ही खुद को अनेक बन्दिशों की बन्द में कैद किया हुआ है । ये एक बन्द काफ़ी है । जब दिल अन्दर । जब दिल बाहर।
सतीश अभी काम में लगा हुआ था । तब उसे एक कल्पना हुयी । काश वह राजवीर की जगह होती । औरसतीश
उसका सर्वेंट होता । तो वह उसका भरपूर यूज करती । जवानी का एक एक क्षण ।एक एक एनर्जी बिट । वह स्त्री पुरुष के अभिसारी रंग से रंग देती । शायद आगे भी ऐसा मौका मिले । पर आगे की बात आगे थी । आज की रात तो निश्चय उसके हाथ में थी । और यकीनन गोल्डन थी।
अभिसार युक्त स्नान के बाद दोनों ने लंच किया था । और फ़िर दोपहर तीन बजे थककर चूर होकर सो गये थे । करमकौर रात मेंभी जागने और जगाने की ख्वाहिशमन्द थी । अतः उसने भरपूर नींद ली थी ।और शाम छह बजे उठी थी । वैसे भी मुक्त और सन्तुष्टिदायक यौनाचारके बाद तृप्ति की नींद आना स्वाभाविक ही थी ।
सो जागने के बाद वह खुद को एकदम तरोताजा महसूस कर रही थी । महज तीन घण्टे पूर्व के वासनात्मक क्षण उसे गुजरे जमाने के पल लगने लगे थे । और वह फ़िर से अभिसार के लिये मानसिक रूप से तैयार थी ।
- कमाल की होती है । औरत के अन्दर छिपी औरत । उसने सोचा - वाकई यह अलग होती है । बाहर की औरत नकली और दिखाबटी होती है । सामाजिक रूढियों परम्पराओं के झूठे आभूषणों से लदी हुयी । बोगस दायरों में कैद । बेबसी की सिसकियाँ लेतीहुयी । मुक्ति और मुक्त औरत के अहसास ही जुदा होते हैं । और वे अहसास फ़िर से जागने लगे थे ।
यही सब सोचते सोचते उसे दस बज गये । सतीश फ़ारिगहोकर उसी कमरे में आ गया। पर वह उससे अपरिचित सीटीवी ही देखती रही । उसका बच्चा सो चुका था ।सतीश सोफ़े पर बैठा हुआ था । वह उसकी तरफ़ से किसी पहल का इन्तजार कर रही थी । पर उसे उदासीन समझकर जब वह भी टीवी देखने में मशगूल हो गया । तब वह खुद ही उसके पास जाकर गाउन समेटकर उसकी गोद में बैठ गयी । ऐसी ही किसी पूर्व कल्पना से आभासी सतीश सिर्फ़ लुंगी में था ।
सो उसका कठोर स्पर्श महसूस करती हुयी वह आनन्द के झूले में झूलने लगी । एक कसमसाहट के बीच दोनों ने खुद को एडजस्ट किया । और फ़िर वे आन्तरिक रूप से बेपर्दा अंगो के स्पर्शको महसूस करने लगे । सतीश ने उसके गाउन में हाथ डाल दिया । और गोलाईयों को सहलाने लगा।
पर अब उसकी इच्छा प्राकृतिकता से विपरीत अप्राकृतिक हो चली थी । जो पंजाबी पुरुषों का खास शौक था । और पंजाबन औरतों की एक अजीव लत । जिसकी वे पागल हद तक दीवानी थी । अतः इस खेल के अनाङी सतीश को वह भटकाती हुयी वासना की भूलभुलैया युक्त अंधेरी सुरंगों में ले गयी ।
और तब रात के बारह बज चुके थे । अभी अभी सोई करम कौर की अचानक किसी वजह से नींद खुल गयी थी । उसे टायलेट जाने की आवश्यकता महसूस हो रही थी । सतीश अपने कमरे मेंजा चुका था ।

उसने एक नजर अपने बच्चे पर डाली । और बाहर निकल गयी । सबकुछ सामान्य था । रात भरपूर जवान नायिका की भांति अंगङाईयाँ लेती हुयी मुक्त भाव से विचर रही थी । और खुद अनावृत सी होकर उसने अपना आवरण चारों और फ़ैला दिया था । एक जादू से सब सम्मोहित हुये से नींद के आगोश में थे । और निशा अंधेरे से आलिंगन सुख प्राप्त कर रही थी ।
अंधेरा । राजवीर के घर में भी अंधेरा फ़ैला हुआ था । वह टायलेट से फ़ारिग हो चुकी थी । और अचानक ही बिना किसी भावना के खिङकी के पास आकर खङी हो गयी । तब अक्समात ही उसे हल्का हल्का सा चक्कर आने लगा । पूरा घर उसे गोल गोल सा घूमता हुआ प्रतीत हुआ । कमरा । बेड । टीवी। सोफ़ा । उसका बच्चा । स्वयँ वह सभी कुछ उसे घूमता हुआ सा नजर आने लगा । सव कुछ मानों एक तूफ़ानी चक्रवात में घिर चुका हो । और अपने ही दायरे में गोल गोल घूम रहा हो । फ़िर उसे लगा । एक तेज तूफ़ान भांय भांय सांय सांय करता हुआ आ रहा है । और फ़िर सब कुछ उङने लगा । घर । मकान । दुकान । शहर। धरती । आसमान । लोग । वह । राजवीर । सभी तेजी से उङ रहे हैं । और बस उङते ही चले जा रहे हैं ।
और फ़िर यकायक उसकी आँखों के सामने दृश्य बदल गया । वह भयंकर तेज तूफ़ान उसे उङाता हुआ एक भयानक जंगल में छोङ गया । फ़िर एक गगनभेदी धमाका हुआ । और आसमान में जोरों से बिजली कङकी । इसके बाद तेज मूसलाधार बारिश होने लगी । घबराकर वह जंगल में भागने लगी । पर क्यों और कहाँ भाग रही हैं । ये उसको मालूम न था । बिजली बारबार जोरों से कङकती थी । और आसमान में गोले से दागती थी । हर बार पानी दुगना तेज हो जाता था । भयानक मूसलाधार बारिश हो रही थी ।
और फ़िर वह एक दरिया मेंफ़ँसकर उतराती हुयी बहने लगी । तभी उसे उस भयंकर तूफ़ान में बहुत दूर एक साहसी नाविक मछुआरा दिखायी दिया । वह उसकी ओर जोर जोर से बचाओ कहती हुयी चिल्लाई। और फ़िर गहरे पानी में डूबने लगी । फ़िर उसका सिर बहुत जोर से चकराया । और वह बचाओ बचाओ चीखती हुयी लहराकरगिर गयी ।

क्या ! राजवीर उछलकर बोली - क्या कह रही है तू ? क्या सच में ऐसा हुआ था ?
- मेरा यकीन कर । राजवीरतू मेरा यकीन कर । करमकौर घबराई हुयी सी बोली - मुझे तो तेरे इसीघर में कोई भूत प्रेत काचक्कर मालूम होता है । समझ ले । मरते मरते बची हूँ मैं । तेरे जाने के बाद सारा दिन मैं तेरे लिये दुआयें ही करती रही । पूजा पाठ के अलावाकिसी बात में मन ही नहींलगा । रात बारह बजे तक मुझे चैन नसीब नहीं हुआ । जिन्दगी में इतना दर्द एक साथ मैंने पहले कभी महसूस नहीं किया । पर नींद ऐसी होती है । सूली पर लटके इंसान को भी आ ही जाती है । सो दिन भर की सूली चढी हुयीमैं बेचारी करमकौर अभी ठीक से नींद की झप्पी लेभी नहीं पायी थी कि अचानक मेरी आँख खुल गयी । और मुझे टायलेट जाना हुआ । बस उसके बाद मैं यहाँ खिङकी से आयी ..तू यकीन कर राजवीर । तब यहाँ खिङकी के बाहर तेरा । उसने उँगली दिखाई - ये घर नहीं था । कोई दूसरी ही दुनियाँ थी । भयानक जंगल था । एकऐसा जादुई जंगल । जिसमें जाते ही मैं नंगी हो गयी । और किसी अज्ञात भय से भाग रही थी।

पर राजवीर को अब उसकी बात सुनाई नहीं दे रही थी । वह उठकर खिङकी के पास पहुँची । और बाहर देखने लगी । जहाँ लान में लगे पेङ पौधे नजर आ रहे थे । वहाँ कुछ भी असामान्य नहीं था ।
राजवीर जैसे ही वापिस लौटी । उस समय तो वह घर चली गयी थी । फ़िर उसने पहली फ़ुरसत में ही दोपहर को आकर उसे सव बातबताई । जस्सी अभी घर नहीं थी ।
- सच्ची ! मैं एकदम सच बोल रही हूँ । वह फ़िर से बोली - मुझे एकदम ठीकठीक याद है । टायलेट जाते समय मैंने घङी देखी थी । उस समय बारह बजे थे । फ़िर मैं चकराकर यहाँ । उसने जमीन की तरफ़ उँगली से इशारा किया - यहाँ गिर पङी थी । और जब मुझे होशआया । मैं संभली । मैंनेफ़िर घङी देखी थी । तब तीन बज चुके थे । पूरे तीन घण्टा मैं बेहोश सी पङी रही ।
- ठहर । ठहर । राजवीर ने उसे टोका - जब तू बेहोश सी हो गयी । उस टाइम क्या हुआ ?
- अरी पागल है क्या । करम कौर झुँझलाकर बोली - बेहोश मतलब बेहोश । उसटाइम का भी कुछ पता रहताहै क्या ? क्या हुआ ।
क्या नहीं हुआ । वैसे हुआ हो । तो मुझे पता नहीं । मैं तो मानों आपरेशन से पहले वाले नींद के इंजेक्शन के समान नशे में थी । और पूरे तीन घण्टे रही ।
- नहीं नहीं ! राजवीर बोली - मेरा मतलब था । वोनाविक मछुआरा..कहीं उसने तेरी बेहोशी का..कोई फ़ायदा तो नहीं उठाया । ऐसा कुछ तुझे फ़ील हुआ हो । जैसे भूत बूत । वह भय से जस्सी कीकल्पना करती हुयी बोली - अक्सर जवान औरत का फ़ायदा उठा लेते हैं । नहीं मैंने ऐसा पढा है ।फ़िल्मों में भी देखा है ।
- अरे नहीं । वो सालिआ ऐसा कुछ करता । करमकौर अपने स्तन पर हाथ रखकर बोली - फ़िर मैं तीन घण्टे नहीं । तीन दिन बेहोश रहने वाली थी । एकदम टार्जन लुक ।..पर अपनी किस्मत में तो ये दाढी वाले सरदार ही लिखे हुये हैं । हिन्दू आदमी की बात ही अलग होतीहै ।
अजीव होती है ये औरत भी। शायद इसको समझना बहुत मुश्किल ही है । वह भयभीत थी । आशंकित थी । पर रोमांचित थी । वह सब क्या था ।

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Re: मायाजाल

Unread post by The Romantic » 05 Dec 2014 19:03

जस्सी के साथ क्या हुआ था ? क्या वही टार्जन लुक नौजवान उसकाप्रेमी था । बकौल राजवीर जिससे वह बात करती रहती थी । वह उस दृश्य में पहुँचकर नंगीकैसे हो गयी थी । तब जस्सी के साथ क्या होता था । क्या वह उसके साथ काम सुख प्राप्त कर चुकी थी । भय की इन परिस्थितियों में भी येविचार एक साथ दोनों के दिमाग में आ रहे थे । औरभारी हलचल मचाये हुये थे ।
दूसरे राजवीर इस मामले की खेली खायी औरत थी । उसे साफ़ साफ़ लग रहा था। आज करमकौर उससे कुछ छुपा रही है । उसके चेहरे पर भय के वे रंग ही नहीं थे । जो होने चाहिये थे । बस एक क्षण को जब वह रहस्यमय चक्रवात की बात करती थी । तब वाकई लगता था कि वहसच बोल रही है । बाकी औरबात करते समय तो यही लगता था कि वह लण्डन की सैर करके आयी हो । भरपूररंगरेलियाँ मनायी हों ।पर बात इण्डियन कल्चर की कर रही हो । जाने क्यों राजवीर को दाल में कुछ काला सा नजर आया। बल्कि उसे पूरी दाल हीकाली नजर आ रही थी ।ालदाल तो सिर्फ़ उतनी ही थी । जब वह खिङकी के पारटार्जन लुक मछुआरे की बात करती थी । दाता ! क्या माजरा था । क्या बलाय घुस गयी थी घर में । उसकी खासमखास भी झूठ बोल रही थी । उसके मन में ये भी आया । काश ! वहजस्सी या करम कौर की जगहहोती । तो ये अनुभव उसकेसाथ भी होता । तब उसने मन ही मन तय किया । रात बारह बजे वह खुद भी खिङकी के पास आकर जादू देखेगी कि आखिर सच क्या है ?
* ***********************
- ओये बेबे ! सच मैं साफ़साफ़ देख रहा हूँ । गुरुदेव सिंह दोनों के स्तनों का दृष्टिक रसपान करता हुआ बोला - तेरे घर में बङी तगङी बलाय घुसी हुयी है । चारबङे बङे जिन्नात तो मेरे कू साफ़ साफ़ दिख रहे हैं । बस थामने की देर है । फ़िर देखना । इस बाबे दा हुनर ।
गुरुदेव सिंह चौहान एक हरामी बाबा था । साधुओं के नाम पर कलंक था । दागथा । और अपनी हरामगीरी के चलते ही साधु बना था । वास्तव में उसने बाबाओं की संगति में दो चार जन्तर मन्तर सीख लिये थे । जिन्हें पढकर वो किसी के लिये ताबीज बना देता था । किसी को गण्डा बँधवा देता था । साधुओं की संगति में ही वह
वास्तविकता रहित नकली पूजा पाठ करना सीख गया था । और तांत्रिक गद्दी लगाने के थोथे आडम्बर सीख गया था । जिनसे न किसी को फ़ायदा होना था । और न ही कोई नुकसान । यह कुछ कुछ मनोबैज्ञानिक रूप से उनभृमित लोगों के लिये डिस्टल वाटर के डाक्टरीइंजेक्शन जैसा था । जिसे डाक्टर कोई भी बीमारी न होने पर सिर्फ़ इसलिये लगाते हैं कि उस मरीज को सीरियसली लगता है कि वो बीमार है । और पानी के इसी रंगीन इंजेक्शन के वह खासे पैसे वसूल करता है । और मरीज मनोबैज्ञानिक प्रभाव से ठीक होने लगता है ।
यही हाल बाबा गुरुदेव सिंह का था । उसका सिर्फ़ दिखावे का भेस था । जो अक्सर ही ज्यादातर पंजाब के नकलीबाबाओं की खासियत थी । वो कोई प्रेत बाधा ठीक करना नहीं जानता था । औरन ही उसे इन बातों की कोई समझ थी ।

पर इस बाबागीरी में उसे हर तरफ़ मौज मलाई मिली थी ।सो चैन की छानता हुआ वह इसी में रम गया था । कोईन कोई अक्ल का अंधा अंधीउससे टकरा ही जाता था । और फ़िर उसकी बल्ले बल्ले ही हो जाती थी ।
विधवा हो जाने के बाद कुछ दिनों तक इधर उधर टाइम पास करती करम कौर को किसी औरत के माध्यम से गुरुदेव सिंह का पता चला था । और तब वह उससे मिली थी । अपनी विधवा स्थितियों में वह मानसिक टेंशन में आ गयी थी । और शान्ति के लिये । अपने आगे के अच्छे दिनों की जानकारी के लिये वह बाबाओं के पास घूमती फ़िरी थी । तब से वह गुरुदेव सिंह से परिचित थी ।
गुरुदेव सिंह ने उसकी झाङ फ़ूँक शान्ति के नाम पर पूरा ऊपर से नीचेतक टटोल लिया था । यहाँ तक कि वह बहकने लगी थी ।और खुद उसका दिल होने लगा कि बाबा को स्वयँ बोल दे । मन्तर बाद में चलाना । पहले उसकी बचैनी दूर कर दे । और अभी कल से सतीश से जिस्मानी परिचय होने केबाद उसकी भावनायें अलग ही हो गयी थीं । जिन्दगीका जितना मजा लूट सकते हो लूटो । कल का कोई भरोसा नहीं । और स्वर्ग नरक किसने देखा है ।
- क्या ? वे दोनों सचमुचउछलकर बोली - क्या बाबाजी । चार चार जिन्नात । हाय रब्ब । येक्या मुसीबत है । बाबाजी आप कुछ करो ना । हमें इस मुसीबत से निकालने के लिये ।
गुरुदेव सिंह की बिल्लौरी आँखों में एक भूखी चमक उभरी । पर इस मामले में वह खासा समझदार था । उसने राजवीर को कमरे से बाहर जाने को कहा । और करम कौर को अन्दर ही रोक लिया । फ़िर उसने एक भभूति जैसी राख और कुछ मोरपंखी झाङन जैसा थैलेसे निकाला ।
कोई बीस मिनट बाद उसने राजवीर को अन्दर बुलाया। और करमकौर को बाहर जाने को कहा । अन्दर आतेसमय राजवीर ने देखा । करमकौर के चेहरे पर अजीव से रोमांच के भाव थे । क्या हुआ था । इसकेसाथ । उसने धङकते दिल सेसोचा । और डरते डरते अन्दर आ गयी । गुरुदेव सिंह ने उसे दरबाजा बन्द करने का आदेश दिया ।
कमरे में अजीव सी कसैली और मिश्रित दारू की सी गन्ध आ रही थी । जब वह गुरुदेव सिंह के पास आयी । तो उसे वैसी ही गन्ध उसके मुँह से महसूस हुयी । कमरे में सिगरेट का धुँआ अलग से भरा हुआ था । उस पर कमरा बन्द और होने से दमघोंटू वातावरण था । यह फ़र्जी साधुओं का औरतों को चक्कर में डालकर घनचक्कर बनाने कापुराना साधुई नुस्खा था। जिसे वह बेचारी नहीं जानती थी ।
- देख बेबे ! वह चेतावनी सी देता हुआ कठोर स्वर में बोला - तूने इलाज कराना हो । तो वैसा सोचना । ये जिन्नात का मामला बहुत बुरा होता है । ये औरत को सिर्फ़ औरत के तौर पर देखते हैं। तू समझ गयी ना । अगर तेरी सेवा के बदले राजी होकर तेरी छोरी को छोङ दे । तो उसके देखे । ये ज्यादा बुरा नहीं है । इसलिये तू पहले सोच ले ।फ़िर तू सोचे । इसमें मेरा कोई दोष है । मुझे तो दूसरे का दुख दूर करना ही ठीक लगता है । बाकी हम बाबाओं को दुनियाँदारी से क्या लेना ।
कुछ कुछ समझती हुयी । कुछ कुछ ना भी समझती हुयी राजवीर ने सहमकर उसके समर्थन में सिर हिलाया । जिन्नात का नाम सुनकर ही उसकी हवा खराब हो उठी थी । वो भी उसकी बेटी पर । वो भी उसके घर में । वह पूरा सहयोग करने को तैयार हो गयी ।
तब गुरुदेव सिंह ने उसे कमरे के बीचोबीच खङा कर दिया । और अगरबत्तियाँ सुलगा दी । फ़िर वह राजवीर के पास आया । और कोई तीखी गन्ध वाली जङी सी उसे सुंघाई । राजवीर हल्के हल्के नशे का सा अनुभव करने लगी । पर वह पूरे होश में थी ।
उसने सिन्दूर मिली भभूतउसके माथे पर लगा दी । फ़िर उसके ठीक पीछे आकर खङा हो गया । वह भभूत कीबिन्दियाँ सी उसके गाल पर लगा रहा था । वह राजवीर से एकदम सटकर खङा था । और उसके विशाल नितम्बों से लगा हुआ था ।
उसकी तरफ़ से कोई विरोधी प्रतिक्रिया न पाकर गुरुदेव सिंह ने उसकी कुर्ती में हाथ डाल दिया । और भभूत उसकेस्तनों पर मलने लगा । राजवीर उत्तेजित होने लगी । पर क्या हो सकता था । चुप रहना उसकी मजबूरी थी । बाबा उसके पूरे बदन पर हाथ फ़िरा रहा था । और फ़िर वह उसको बहकाता हुआ सा कमर के पास ले आया । पैरों के बीच उसका हाथ जाते हीराजवीर कसमसाने लगी । बाबा ने उसका बन्द खोल दिया ।
- चिन्ता न कर । वह फ़ुसफ़ुसाया - वह खुश हो जायेगा । फ़िर नुकसान नहीं करेगा । ठीक है ।
राजवीर ने समर्थन में सिर हिला दिया । बाबा नेउसको झुका दिया । और उसके नितम्बों के करीब हुआ । राजवीर ने भय से आँखे बन्द कर ली । फ़िर उसे अपने अन्दर कुछ सरकने का सा आभास हुआ । एक गरमाहट सी उसके अन्दर भरती जा रही थी । रोकते रोकते भी उसके मुँह से आह निकल गयी । फ़िर उसके विशाल अस्तित्व पर चोटों की बौछार सी होने लगी । और वह बेदम सी होती चली गयी।
क्या अजीब बात थी । वह भूल गयी थी । किसलिये आयी है । क्या परेशानी है । और उस नयी स्थिति को अनुभव करती हुयी पूर्णतया आत्मसात करने लगी । एक ऊँची हाँफ़ती सी चढाई चढती हुयी । वह गहरी गहरी सांसे लेने लगी । तब बाबा उसके ऊपर ढेर हो गया । राजवीर के अन्दर गर्म लावा सा बहने लगा ।
खिङकी की झिरी से आँख लगाये खङी करम कौर अलग हट गयी । उसके चेहरे पर अजीव सी मुस्कराहट थी । राजवीर ने कोई विरोध नहीं किया । इस बात की उसे बङी हैरत हुयी । उसेलगने लगा । उसकी तरह शायद राजवीर भी बहुभोग की अभ्यस्त थी । या फ़िर औरत होती ही ऐसी है कि जल्दी समर्पण कर देती है । कुछ भी हो । इस बात के लिये वह किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँची ।

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