कामवासना

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
007
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Re: कामवासना

Unread post by 007 » 10 Dec 2014 10:04

और इसी बिज्ञान नियम की वजह से ये या हम लोग यहाँ वाणी से बोल नहीं सकते । यहाँ सिर्फ़ मौन के शब्द ही बनते हैं । प्रथ्वी की तरह तेज चल भाग भी नहीं सकते । संक्षिप्त में स्थूल शरीर की बहुत सी क्रियायें नहीं कर सकते । ये सूर्य आदि तारों का प्रकाश यहाँ कम होने की वजह भी यही है ।
फ़िर तुम सोच रहे होगे । ये लोग हैं कौन ? ये हमारी आंतरिक और यांत्रिक कामवासना का रूप है । या आकार है । बङा जटिल है इसको समझना । पर मैं समझाने की कोशिश करती हूँ । शायद तुम समझ जाओ ।
अब नीचे हलचल कुछ तेज होने लगी थी । पर वह तो जैसे पागल हो गया था । मिथक कथायें । एलियन स्टोरीज सभी की तरह उसने सुनी पढी भर थी । पर वे यहीं जीवन में भी हो सकती थीं । ये कल्पना ही कठिन थी । एक मामूली भूत प्रेत जिज्ञासा ऐसी भयंकर या दिलचस्प यात्रा का कारण हो सकती है । बिना अनुभवी स्वयंम्भी हुये वह सोच भी नहीं सकता था । शायद कोई भी विश्वास ही न करे । एक साधारण गृहस्थ इंसान के घर में इतना रहस्य छिपा हो सकता है । उसकी सुन्दर स्त्री इतनी मायावी हो सकती है । अच्छे से अच्छा बुद्धिजीवी भी शायद नहीं सोच सकता । इम्पासिबल । असंभव ।
अभी वह फ़िर से पिछली घटना के तार जोङने की और उसका तारतम्य समझने की कोशिश कर रहा था । तभी उसे जीने पर आते कदमों की आहट सुनाई दी । और स्वाभाविक ही उसका समूचा ध्यान उधर ही केन्द्रित हो गया । अब क्या होने वाला था । क्या कुछ और नया ? अफ़लातूनी ? अगङम बगङम सा

नितिन जी ! अनुराग ऊपर आकर उसके सामने बैठता हुआ बोला - आप शादी के बारे में अपने विचार बताईये । आय मीन । इंसान को शादी करनी चाहिये । या नहीं ? ..हो हो हो..है ना हँसने की बात । क्या पागलपन का प्रश्न है ।
- देखिये । वह सामान्य स्वर में बोला - मैं इस बारे में कोई सटीक राय कैसे दे सकता हूँ । जबकि मैं स्वयं ही अविवाहित हूँ । और मुझे ऐसा कोई अनुभव भी नहीं है । फ़िर भी मनुष्य के अब तक इतिहास में शादी करने वालों के उदाहरण अनगिनत है । जबकि शादी न करने वालों के बहुत कम । और मुझे नहीं लगता कि शादी न करने वालों ने कुछ ऐसे झण्डे गाढे हों । जो अभी तक शान से फ़हरा रहे हों । और जिससे दूसरे स्त्री पुरुष विवाह न करने को प्रेरित हों । लेकिन ये बात मैं सिर्फ़ कह सकता हूँ । आप स्वयं अनुभवी हो । इसलिये आप कुछ अधिक बेहतर बता सकते हो ।
वह बगलोल सा गोल गोल आँखों से उसे देखता हुआ इस बेबाक विचार को गम्भीरता से सुनता रहा । और कुछ कुछ हैरान सा हुआ । सही कहा जाये । तो लङके की स्पष्ट शैली ने उसे बेहद प्रभावित किया ।
- काफ़ी सुलझे हुये इंसान हो दोस्त । वह प्रशंसा करता हुआ बोला - बात क्या कहते हो । चाँटा सा मारते हो । हो हो हो..है ना हँसने की बात । पर मुझे ये चाँटा खाना अच्छा लगा । खैर..मैं अपनी ही बात बताता हूँ । मुझे देखो । वह अपने बढी हुयी मोटी तोंद पर हाथ फ़िराता हुआ बोला - कोई भी इंसान मुझे देखकर मेरे भाग्य से ईर्ष्या ही करेगा । सरकारी नौकरी । निजी मकान । हट्टा कट्टा प्रेम करने वाला भाई । और अप्सराओं को मात करने वाली अति सुन्दर पत्नी । और इससे ज्यादा क्या चाहिये । हो हो हो.. है ना हँसने की बात । बोलो । कुछ गलत कहा मैंने ?
नितिन ने उसके समर्थन में सिर हिलाया । जिससे वह काफ़ी खुश हुआ ।
- लेकिन । वह जैसे जोरदार शब्दों में बोला - ये सब ऊपर से नजर आता है । हम सबको ऐसे ही ऊपर से देखने पर दूसरों का जीवन सुखमय नजर आता है । जबकि ठोस हकीकत ऐसी नहीं होती । मुझे देखो । मेरी अति सुन्दर पत्नी है । पर उसकी सुन्दरता को रोज रोज चाटूँ क्या ? उसकी रोज रोज आरती उतारूँ क्या ? हो हो हो..है ना हँसने की बात । जबकि एक सुन्दर औरत यही चाहती है । अपने पति या प्रेमी से । और अन्य सभी से भी । पर उसे नहीं मालूम । मेरी जिन्दगी । और एक धोबी के गधे की जिन्दगी । बिलकुल एक जैसी है । यू नो । डंकी आफ़ धोबी ..सारी शब्द भूल गया । याद आया । वाशरमेन..हो हो हो..।
धोबी गधे की पीठ पुठ्ठे कमर आदि बेल्ट से कस देता है । उस पर झोली डालता है । ईंटे लादता है । और गधा बेचारा चुपचाप बिना चूँ चाँ उसकी चाकरी करता है । फ़िर भी वो बिना बात उसके चूतङ में कोङा मारता है । गालियाँ देता है । हो हो हो.. है ना..हँसने की बात । फ़िर भी । फ़िर भी उस गधे से गधा कह दो । तो बहुत बुरा मान जायेगा । आप में उछल कर दुलत्ती मारेगा । हो हो हो.. है ना हँसने की बात ।
नितिन एकदम सब कुछ भूलकर ठहाका लगा उठा । क्या कहना चाहता था ये इंसान । और उसने अपनी ही ऐसी अजीव तुलना क्यों की ? उसे उसकी बातों में रस आने लगा ।
- देखो । वह बात को आगे बढाता हुआ बोला - मेरी नौकरी बीबी मकान इत्तफ़ाकन थोङा ही आगे पीछे सभी साथ साथ मिले । तीन जरूरी सुख । आसानी से मिले । इसके बाबजूद मैं गधा बन गया । नितिन जी इस संसार में नौकरी बिजनेस कोई अन्य रोजगार विषय हो । हर आदमी एक दूसरे की....मारने में लगा हुआ है । उस सबसे कैसे निबटना होता है । ये मैं ही जानता हूँ । उस पर दफ़्तर के काम का जरूरी जिम्मेदाराना बोझ । भुक्तभोगी के लिये ये गधे का बोझा ढोने के समान ही है । लेकिन मेरी सुन्दर बीबी को इस सबसे मतलब नहीं । वह हर आम बीबी की तरह शाम को पाउडर लिपिस्टिक लगाकर छल्ले मल्ले निकाल कर तैयार हो जाती है कि मैं अब उसकी नाइट डयूटी बजाने को तैयार हो जाऊँ । हो हो हो..है ना हँसने की बात । दिन में पेट के लिये डयूटी । रात में पेट से नीचे की डयूटी । और इस डयूटी पर खरा न उतरे । तो वह बिना बोले सिर्फ़ आँखों से व्यंग्य भावों से चूतङ में कोङा लगाती है । पति को नपुंसक नामर्द समझती है ।

इसलिये मेरे भाई । वह अपने मोटे पेट पर हाथ फ़िराता हुआ बोला - सुखी दिखाई देता जीवन ढोल की पोल है बस । ढोल में कैसी मधुर आवाज निकलती है । लगता है । इसके अन्दर जाने क्या स्पेशल चीज रखी है । लेकिन उसका पुरा उतार कर देखो । तो वहाँ एक शून्य 0 खाली सन्नाटा रिक्तता ही होती है । हो हो हो .. इसलिये कहा है ना । असल में । जो दिखता है । वो होता नहीं है । और जो होता है । वो दिखता नहीं है ।
- हाँ नितिन । पदमा फ़िर से मौन स्वर ही उसके दिमाग में बोली - जो दिखता है । वो होता नहीं है । और जो होता है । वो दिखता नहीं है । यह जीवन का बहुत बङा सच है । ये जो तुम यहाँ मनुष्य शरीरों जैसे यन्त्र आकार देख रहे हो । ये इसी प्रथ्वी के स्त्री पुरुषों की कामेच्छा के साकार कल्पना चित्र है । अतृप्त दमित कामवासना के कल्पना चित्र । कामवासना का सम्भोग सिर्फ़ शरीरों का मिलन या लिंग योनि इन्द्रियों का संयोग भर नहीं है । इंसान कई तरह से सेक्स करता है । समझना । रास्ते निकलती हुयी सिर्फ़ किसी एक जवान लङकी या औरत से उसके घर पहुँचने तक पचासों लोग मानसिक सम्भोग कर चुके होते हैं । कोई उसके स्तनों के प्रति अपनी कल्पना करता है । कोई गालों के प्रति । कोई होठों के । कोई नितम्बों से । कोई योनि का रसिक होता है । सोचो । सिर्फ़ एक लङकी मामूली रास्ते से घर तक कितने लोगों द्वारा अप्रत्यक्ष बलात्कार की गयी । और ये सिर्फ़ एक लङकी की बात की मैंने । तब सोचो । संसार में प्रति क्षण कितना मानसिक बलात्कार होता होगा ?
नितिन वाकई हक्का बक्का रह गया । एक साधारण बात का जो रहस्य उसने बताया था । शायद ही बढे से बढा बुद्धिजीवी भी इसकी इस तरह कल्पना न कर सके । उसे तो ऐसा ही लगा । कम से कम उसने तो कभी इस कोण से न सोचा था । इस तरह से न सोचा था । ख्याल ही न होता था ।
- लेकिन । वह फ़िर बोली - यहाँ नजर आते यन्त्र ऐसे लोगों के नहीं है । वह सिर्फ़ क्षणिक वासना होती है । अतः उसका चित्र आकार रूप नहीं ले पाता । ये यन्त्र दरअसल उन लोगों के हैं । जो तनहाई में पङे अपने प्रेमी प्रेमिका आदि से काल्पनिक सम्भोग कर रहे होते हैं । कोई दूसरे की स्त्री या पढोसन से काल्पनिक सम्भोग कर रहा होता है । स्थूल शरीर मिलन संयोग सुलभ न हो पाने से कोई प्रेमिका अपने प्रेमी के नीचे कल्पना में बिछी होती है । कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका को ख्यालों में लौट पलट कर रहा होता है । लेकिन ये तो ऐसे लोगों के उदाहरण हुये । जो परस्पर एक दूसरे को जानते हैं । कई बार सम्भोग साथी एकतरफ़ा प्यार जैसा होता है । कोई किसी को चाहता है । जबकि उसकी चाहत दूसरे को दूर दूर तक पता नहीं । वह कोई भी स्त्री पुरुष अपने कल्पना साथी को काल्पनिक संभोग करता है । ये हुयी एकतरफ़ा चाहत की बात । और भी देखो । कोई चाहत भी नहीं । कोई प्रेमी प्रेमिका अपने साथी के साथ मधुर मिलन के क्षणों के बारे में किसी परिचित से बात कर रहा है । और तुम यकीन करो । सुनने वाला निश्चित ही तुरन्त लालायित होकर उससे दूरस्थ सम्भोग करने लगेगा । उसी क्षण । काम..सेक्स.. सेक्स..सिर्फ़ सेक्स.. । इस सृष्टि के कण कण में काम समाया हुआ है । ये यन्त्र ऐसे ही लोगों के हैं । जो अपनी कल्पना का काम चित्र गहन भाव से देर तक बनाते रहते हैं । और उसमें विभिन्न रंग भरते हैं । क्योंकि ऐसे सेक्स पर कोई रोक नहीं लगा सकता । जिसके साथ कोई दूसरा सेक्स कर रहा है । वह भी नहीं । चाहे वह उसे पसन्द करे । या न करे । इस तरह ये इंसान किसी न किसी के प्रति परस्पर काम भाव में हमेशा डूबा रहता है ।

अब तुम गहराई से समझना । तुम प्रयोग के लिये एक सुन्दर लङकी की कल्पना करो । जिसे स्वपन में हुयी काम वासना की भांति तुमने नग्न कर लिया है । और वह स्वपन के सेक्स साथी की ही भांति कोई ना नुकर नहीं कर रही । वहाँ कोई सामाजिक डर भय भी नहीं । तब तुम कैसे परिचित भाव में सेक्स करते हो । जबकि तुम उसे दूर दूर तक नहीं जानते । और न ही वो तुम्हें । फ़िर बताओ । ऐसा कैसे हुआ ?
तो जो तन्हा बिस्तर पर लेटी प्रेमिका अपने प्रेमी के साथ काल्पनिक अभिसार कर रही है । अब जरा बारीकी से समझना । उसका अंतर्मन में एक चित्र आकार बन रहा है । उस समय वह मुँह से स्थूल वाणी शब्द भी नहीं बोल रही । पर उसका मौन स्वर आऽऽह आऽऽई नहीं.. आदि कर रहा है । अब उसके अंगों में रोमांच है । शरीर में उत्तेजना है । स्तन भरने लगे । योनि की आंतरिक पेशियों में फ़ङकन है । उसके खुद के हाथ प्रेमी के हाथ बन जाते हैं । उसकी खुद की उँगली प्रेमी का अंग बन जाती है । वह आधी खुद आधी अपना प्रेमी स्वयं हो जाती है । और अंततः पूर्ण उत्तेजना को प्राप्त होकर स्खलित भी हो जाती है । अब गौर से सोचो । अगर उसको कोई उस दशा में देखे । तो यही सोचेगा कि एक युवा लङका या लङकी अकेली हस्तमैथुन कर रही है । लेकिन वह यह कभी नहीं देख पायेगा कि इसकी काम वासना चेतना युक्त होकर प्रेमी के साथ विभिन्न मुद्रायें चित्र आकार स्वर का भी निर्माण कर रही है ।
और भले ही यह यहाँ अकेली नजर आ रही है । पर वास्तव में किसी अज्ञात स्थल अज्ञात भूमि पर विचार आकारित पूर्ण संभोग कर रही है । बिलकुल असली स्थूल शरीर संभोग के जैसा । और क्योंकि वह भी वाणी रहित मौन होता है । ये सब भी मौन स्वर हैं । बस उसकी कल्पना का प्रेमी प्रेमिका । और स्वयं उसके साथ सम्भोग रत वह । तब जो वहाँ दृश्य रूप नजर नहीं आता । वह यहाँ दिखाई देता है । क्योंकि कोई तो वह स्थान होगा ही । जहाँ वह वैचारिक सम्भोग कर रही है । नितिन जी । ये यन्त्र उन्हीं लोगों के काल्पनिक चित्र आकार है । यह इसके लिये एक निश्चित भूमि है ।
उसके दिमाग का फ़्यूज मानों भक से उङ गया । कौन थी ये औरत ? कौन ? सोचना भी कठिन है ।

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Re: कामवासना

Unread post by 007 » 10 Dec 2014 10:05

और अभी वह नीचे उतरने की सोच ही रहा था कि नहाकर ऊपर आती हुयी पदमा गीले बालों को झटकती हुयी छत पर आ गयी । वह इस अनोखी स्त्री की प्राकृतिक सुन्दरता देखकर एक बार फ़िर दंग रह गया ।
- कमाल के इंसान हो । वह साधारण स्वर में एक शालीन स्त्री की भांति बोली - रात से अभी तक छत पर क्या कर रहे हो ? क्या तुम स्नान आदि कुछ नहीं करते । मुँह भी नहीं धोया । चाय पानी कुछ भी नहीं । ऐसे तो भाई लगता है कि तुम कोई बङे रहस्यमय से इंसान हो । किसी अजीब सी कहानी जैसे । ऐसी अजीव और उलझी कहानी कि यही समझ में न आये कि इस कहानी को पढा जाये । या रहने दिया जाये ।
इस औरत ने सदियों से स्थापित कहावत ही फ़ेल कर दी थी । उसने सोचा । पता नहीं किस बेबकूफ़ ने कहा था । खरबूजा छुरी पर गिरे । या छुरी खरबूजे पर । कटेगा खरबूजा ही । यहाँ तो खरबूजा छुरी को ही काटे दे रहा था । पदमा अपनी बङी बङी कजरारी आँखों से उसी की ओर देख रही थी । और जैसे वह सधः स्नाता उसे चैलेंज सा करते हुये कह रही थी - क्या कमाल की कहानी लिखी । इस कहानी के लेखक ने । कहानी जो उसने शुरू की । उसे कोई और कैसे खत्म कर सकता है । इसीलिये..इसीलिये ये कहानी न तुमसे पढते बन रही है । न छोङते । ये बच्चों का खेल नहीं नितिन ।
अपवाद की बात छोङ दी जाये । तो सामान्यतः जिन्दगी में कई चीजें एक ही बार होती है । जन्म । मृत्यु । शादी । प्रेम आदि । फ़िर क्या हो सकता है । ज्यादा से ज्यादा उसकी मौत ही ना । मौत जो एक ही बार होनी है । और कोई तय नहीं कि किसकी कब और कैसे होगी ? लिखित रूप में ऐसी कोई गारंटी भी नहीं होती कि इंसान फ़ालतू के झमेलों में ना पङे । तो वह पूरे 100 वर्ष निर्विघ्न जीयेगा । और फ़िर उसे इस बात का भगवान से कोई पुरस्कार भी मिलेगा । एक आंतरिक गर्भ स्थिति में पहली सांस लिया बालक से लेकर किसी भी आयु का कोई भी इंसान कभी भी कहीं भी कैसे ही हालात में मर सकता है । अनुभवी लोग कहते हैं । जीवात्मा का जन्म होते ही मौत की छाया उसके पीछे पीछे चलने लगती है । मौत की छाया । क्यों सोच रहा है । वह ऐसे दार्शनिक विचार ? उसने खुद ही मन में सोचा ।
दरअसल कल की रात उस तलघर और उस अज्ञात कामवासना भूमि और उस रहस्यमय औरत का और भी विलक्षण रूप जानकर उसने दोपहर में अपने गुरु मनसा जोगी के पास इस रहस्य का भेद जानने हेतु जाने का निश्चय किया । शायद वह कोई मदद कर सकें । शायद ? फ़िर अपने ही इस विचार को उसने दिमाग से निकाल फ़ेंका । क्यों निकाल फ़ेंका ?
कल जो स्थितियाँ उसके साथ अचानक घटित हुयीं । उसमें वह एकदम वेवश था । तब वह चाहती । तो उसको मार भी सकती थी । पर उसने ऐसा कुछ नहीं किया था । बल्कि वह तो कदम कदम पर ऐसा लगता था कि अपनी उसकी खुद की गुत्थी वह स्वयं उसके लिये सुलझा रही थी । लेकिन साथ ही साथ उसके लिये अज्ञात अपने किसी प्रेमी की कमाल की कहानी जैसा चैलेंज भी कर देती थी । अब खास यही कटाक्ष । यही चैलेंज । उसे इस झमेले की तह में जाने को प्रेरित कर रहा था । वो भी गुरु आदि किसी दूसरे की सहायता के बिना । यदि वह इसमें कोई भी बाहरी सहायता लेता । तो उस रहस्यमय औरत की नजर में यह उसकी हार थी । जिसे वह जैसे बिना कहे हुये ही कहती थी । और बारबार कहती थी ।
दोपहर के दो बजने में अभी कुछ समय बाकी था । वह अपने किराये के कमरे में लेटा हुआ विचार मग्न था । और मजे की बात थी कि आगे क्या करे ? इस पर कई पहलूओं से सोचने के बाद भी तय नहीं कर पा रहा था । फ़िर किसी सफ़ल जासूस की भांति उसने अपनी अब तक की उपलब्धियों पर पुनर्विचार किया । उन उपलब्धियों में वह बन्द गली बन्द घर ही खास जान सका था । जिसमें कि वह खुद मौजूद भी था । लेकिन जमीन के नीचे वह अंधेरा बन्द कमरा कहाँ था ? यह उसे अब भी पता नहीं था । जबकि वह उसमें हो आया था । और बहुत देर रहा था । और वास्तव में उसके चिंतन की कील यहीं अटकी हुयी थी । और सबसे बढा रहस्य खुद उसके लिये यही था कि रात में बैंच से गिरने के बाद वह बेहोश हो गया था । और इसके बाद वह उन दो रहस्यमय स्थानों पर गया । देर तक रहा । लेकिन सुबह वह बाकायदा उसी बैंच पर लेटा था । वह कैसे और कब गया । यह उसे ठीक याद था । लेकिन उसी स्थान पर कैसे और क्यों लौटा । उसे दूर दूर तक न पता था । बहुत कोशिश करने के बाद भी वह उस काम वासना भूमि से आगे की बात याद न कर सका । रात बारह बजे से अगली सुबह के दस बजे तक के बीच में उसे बस इतना ही याद था । वह जब कोई निष्कर्ष न निकाल सका । तब उसकी पूरी सोच उसी तलघर पर अटक गयी । तलघर इसी घर में होना चाहिये । और वहाँ कुछ न कुछ रहस्य है । आखिर वह उसे तलघर में ही क्यों ले गयी ? लेकिन उसके लिये लगभग एकदम नये से इस घर में तलघर को तलाश करना आसान न था । और तलघर के बारे में सामान्य भाव से पूछना भी किसी दृष्टि से उचित न था ।

वह टहलता हुआ सा कमरे से बाहर आ गया । उस रहस्यमय घर में एकदम खामोशी छायी हुयी थी । दोपहर की कङी धूप खुले आंगन में फ़ैली हुयी थी । और शायद अकेली पदमा अपने कमरे में आराम कर रही थी । घर के दोनों आदमी शायद बाहर गये हुये थे । दोनों में से एक तो निश्चय ही गया था । उसका पति । वह सावधानी से टहलता हुआ घर के खुले स्थानों का किसी सफ़ल जासूस की भांति निरीक्षण करने लगा । पर उसे ऐसा कोई स्थान नजर न आया । जहाँ से तलघर का रास्ता जाता हो । या द्वार हो । फ़िर हो सकता है । वह रास्ता द्वार किसी कमरे के अन्दर से गया हो । जैसा कि अक्सर होता ही है । और इस अपरिचित मकान में वह दूसरे के कमरे की खोजबीन भला कैसे कर सकता है ।
ये काफ़ी बङा और पुराना सा घर था । जिसका आधा हिस्सा लगभग बन्द था । अनुपयोगी सा था । और इसकी एक ही वजह थी कि उस फ़ैमिली के गिने चुने सदस्यों के हिसाब से वह मकान काफ़ी बङा था । जो निश्चय ही अनुराग एण्ड फ़ैमिली ने बना बनाया खरीदा था । कब खरीदा था ? लगभग चार साल पहले । यकायक । यकायक उसके दिमाग में विस्फ़ोट हुआ । चार साल पहले ।
अभी वह आगे कुछ सोच पाता कि उसे खट से कमरे का दरवाजा खुलने की आवाज आयी । और फ़िर स्वतः ही उसकी निगाह उस तरफ़ चली गयी । वह अलसायी सी नींद से उठी एक सुस्ती भरे अदभुत सौन्दर्य के साथ उसके सामने खङी थी । उसकी लटें बेतरतीब होकर उसके सुन्दर चेहरे पर आ गयी थी । साङी ब्लाउज आदि कुछ सिकुङे सिमटे से थे । और वह तुरन्त नींद से उठने के बाद की शिथिल सी अवस्था में खङी थी ।
क्या अदभुत सुन्दरी है यह । वह स्वतः ही दिल से उसकी तारीफ़ कर उठा । हर रंग में सुन्दर दिखती है । वो भी एक से एक नये दिलकश अन्दाज में । ये भीगी भी सुन्दर लगेगी । और सूखी भी सुन्दर लगेगी । ये स्वच्छ भी सुन्दर लगेगी । और गन्दी भी । ये पुराने बदरंग वस्त्र पहने तो भी सुन्दर लगेगी । और नये चमचमाते तो भी । ये सुन्दरता की मोहताज नहीं । सुन्दरता स्वयं इसकी मोहताज है । वाकई । वाकई वह नैसर्गिक सौन्दर्य युक्त सुन्दरता की देवी ही थी ।
- नितिन जी । वह वहीं से मधुर स्वर में पूर्ण शालीनता से बोली - अभी आई ।
उसने सम्मोहित सी अवस्था में पूरे आदर से समर्थन में सिर हिलाया । और आंगन में फ़ूलों की क्यारी के पास बिछी कुर्सियों में से एक पर बैठ गया । उसके फ़िर से प्रकट होते ही वह जैसे समस्त सोच से रहित हो गया । फ़िर भी असफ़ल अन्दाज में जबरन कुछ सोचने की कोशिश करते हुये उसने सिगरेट सुलगायी । और गम्भीरता से कश लगाने लगा ।
- कोई भी सोच या इच्छा ही । वह चाय का गर्म कप उसे थमाती हुयी बोली - हमारी आगे की जिन्दगी का कारण होती है । जैसे ही इंसान की सभी इच्छायें मरी । वह तेजी से मरने लगता है । यदि वह शरीर से जीता भी रहे । तो भी वह चलते फ़िरते किसी कमजोर मुर्दे के समान ही होता है । फ़िर वह जीवन मुर्दा जीवन ही होता है । अतः वह जीवन है या मृत्यु ? इससे कोई खास अन्तर नहीं पङता । क्योंकि है तो वास्तव में वह मृत्यु ही । मृत्यु । जो एक दिन सभी की होती है ।
उसने गर्म चाय के कप से उठती धुंये की लकीर पर एक भरपूर मोहक निगाह डाली । और बङे ही मोहक अन्दाज में मुस्कराई । इतना कि उस सादगी युक्त सरल मुस्कान से भी वह विचलित होने लगा । और अन्दर तक हिल कर रह गया । ये औरत थी या जीती जागती कयामत ?

सेक्स..सेक्स.. सिर्फ़ सेक्स । वह अपने पतले रसीले होठों से चाय सिप करती हुयी बोली - देखो । इस टी कप को । इसके अन्दर गर्म तरल भरा हुआ है । और तब इसके अन्दर ये धुंआ स्वयं उठ रहा है । सोचो । ठंडी चाय में धुंआ उठ सकता है क्या ? ठंडी चाय । ठंडी औरत ।..दरअसल मैं कहना चाहती हूँ । हमारी सभी क्रियायें स्वतः स्वाभाविक और प्राकृतिक है । अगर अन्दर आग होगी । तो धुंआ उठेगा ही । और ध्यान रहे । ये आग खुद होती ही है । हरेक में नहीं होती । पैदा नहीं की जा सकती । और इसी उष्णता । इसी गर्माहट । इसी ऊर्जा में जीवन का असल संगीत गूँज रहा है । कसे तारों से ही । वह अपने ब्लाउज की निचली किनारी नीचे ही खींचती हुयी बोली - किसी साज में मधुर स्वर निकलते हैं । ढीले तारों से कभी कोई सरगम नहीं छेङी जा सकती । उससे कोई सुर ताल कभी बन ही नहीं सकता । कसे तार । उसने एक गर्वित निगाह अपने स्तनों पर स्वयं ही डाली । और उसी के साथ साथ नितिन की निगाह भी स्वाभाविक ही उधर गयी ।
वह फ़िर घबरा गया । उसका सम्मोहन फ़िर छाने लगा था । वह जैसे उसके अस्तित्व को ही वशीभूत कर लेना चाहती थी । अब तक यह तो वह निश्चित ही समझ गया था कि ये विलक्षण औरत सृष्टि की किसी भी चीज किसी भी क्रिया में निश्चित ही सिर्फ़ सेक्स को सिद्ध कर देगी । और फ़िर आगे सोचने का मौका ही न देगी ।
अतः बङी मुश्किल से खुद को संभालते हुये उसने बात का रुख दूसरी तरफ़ मोङा । और बोला - पदमा जी ! प्लीज आप गलत न समझें । तो मैं एक बात पूछना चाहता हूँ । मनोज शमशान में एक तेल से भरा बङा दीपक जलाने जाता है । मेरी मुलाकात उससे वहीं नदी के पास हुयी थी । मुझे नहीं पता । वह क्या है ? और उसका मतलब क्या होता है । पर मुझे थोङी स्वाभाविक जिज्ञासा अवश्य है कि किसी विशेष स्थान पर ऐसे दीपक को जलाने का मतलब क्या ? शायद आपको मालूम हो ।
- हाँ । वह साधारण स्वर में बोली - मालूम है । वह दीपक मेरे लिये ही जलाया जाता है । दरअसल इन लोगों को यानी मेरे पति और देवर को लगता है कि कभी कभी मैं अजीव सी स्थिति में हो जाती हूँ । तब मेरे जो लक्षण बनते हैं । वह किसी प्रेत आवेश जैसे होते हैं । हालांकि मेरे पति भूत प्रेत को मानते ही नहीं । वह इसे कोई दिमागी बीमारी मानते हैं । लेकिन एक बार जब मैं अपने पति के साथ मायके गयी हुयी थी । वहाँ भी ऐसा ही हो गया । तब मेरी माँ ने स्थानीय तांत्रिक वगैरह को दिखाया । और उसी ने ऐसा करने को बताया । लेकिन मेरे पति ने उसकी हँसी उङायी । तब मेरी माँ ने उन्हें कसम खिला दी कि भले ही तुम विश्वास करो । या न करो । पर ये दीपक कुछ खास दिनों में जलवाते रहना । बाकी उपचार हम अपने स्तर पर कर लेंगे ।

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Re: कामवासना

Unread post by 007 » 10 Dec 2014 10:08

लेकिन ये दीप तुम्हारे शहर में ही जलेगा । अब क्योंकि मेरे पति को उस दीपक में कोई दम ही नजर नहीं आता । तो वह जले । तो क्या । न जले तो क्या । बस वह अपनी सास की कसम की खातिर ऐसा करते हैं । इससे ज्यादा और कोई वजह नहीं । और बस इतना ही मैं भी जानती हूँ ।
बेहद रहस्यमय ? या एकदम सरल । या कोई पवित्र देवी । या फ़िर खुली किताब । वह दंग रह गया । जिस सामान्य अन्दाज में बिना लाग लपेट उसने वह बात बतायी । एक बार तो उसका मन हुआ कि इसके चरण स्पर्श ही कर ले ।
बताईये । उसने फ़िर सोचा । तंत्र दीप का रहस्य भी किसी फ़ुस्स पठाखे जैसा खत्म । बन्द गली । बन्द घर का भी खत्म । अब रह गया । जमीन के नीचे । अंधेरे बन्द कमरे का । शायद वही बढा रहस्य है । उसी में सारा खेल छुपा हो । पर वह उसके बारे में पूछे भी तो कैसे पूछे । कैसे ?
- नितिन जी ! अचानक ही उसी समय जब वह यह सोच ही रहा था । उस पठाखा औरत ने मानों धमाकेदार पटाखा फ़ोङा - वैसे आप भी कमाल स्वभाव के हो । कल रात बारह के करीब जब मैं घर के सभी गेट वगैरह बन्द कर रही थी । मैंने देखा । आपका कमरा खुला है । पर आप कमरे में नहीं हो । तब मैं चकित होकर आपको देखने छत पर आयी । और कुछ देर बातें करती रही । अचानक ही आपको नींद का झोंका सा आया । और आप बैंच से नीचे गिर गये । मैंने आपको बहुत हिलाया डुलाया । पर आप पर कोई असर नहीं हुआ । तब मैंने आपको फ़िर से बैंच पर ही लिटा दिया । और नीचे से तकिया चादरा लाकर आपको लगा गयी । आप बङी गहरी नींद सोते हो ?
उसे फ़िर तेज झटका सा लगा । अब तक इस औरत के प्रति बनी उसकी श्रद्धा कपूर के धुँये की भांति उङ गयी । सौन्दर्य की देवी अब उसे जीभ लपलपाती डसने को तैयार नागिन नजर आने लगी । एक बार फ़िर उसके चुनौती देते शब्द बार बार उसके कानों में गूँजने लगे - वह कहता है । मैं माया हूँ । स्त्री माया है । उसका सौन्दर्य बस माया जाल है । और ये कहानी बस यही तो है । पर..पर मैं उसको साबित करना चाहती हूँ - मैं माया नहीं हूँ । मैं अभी यही तो साबित कर रही थी ।..कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने ।.. कहानी जो उसने शुरू की । उसे कैसे कोई और खत्म कर सकता है ?
यकायक उसने चौंक कर उसकी तरफ़ देखा । वह बङे रहस्यमय ढंग से मोहक अन्दाज में उसी की तरफ़ देखती हुयी मुस्करा रही थी । और जैसे मौन वाणी से कटाक्ष कर रही थी - नितिन ये बच्चों का खेल नहीं

और ये कहानी बस यही तो है । रह रह कर उसके दिमाग में यह वाक्य रहस्यमय अन्दाज में गूँजने लगा । कहीं ऐसा तो नहीं कि - कोई कहानी ही न हो । पर वह ऐसा कह भी कैसे सकता था । कहानी थी । न सिर्फ़ कहानी थी । बल्कि अब वह भी इसी कमाल की कहानी का पात्र बन गया था । कहानी पढने चला इंसान खुद कहानी का हिस्सा बन गया । पात्र बन गया । कहानी के शब्द मानों चैलेंज कर रहे थे । रहस्य खोजने की जरूरत नहीं । रहस्य कहानी के लिखे इन्हीं शब्दों में है । खोज सको तो खोज लो ।
तब उसने सख्ती से एक निश्चय किया । अब और कुछ भी हो । इस मायावी औरत के जाल में हरगिज नहीं फ़ँसेगा । और कहानी से अलग रहकर सावधानी सतर्कता से कहानी पढेगा । दूसरे उसने अभी तक जो अपने तंत्र ज्ञान का कोई उपयोग नहीं किया । उसका उपयोग करेगा । और वशीकरण जैसे उपायों का सहारा भी लेगा । इस चालाक नागिन का वशीकरण । हाँ हाँ वशीकरण । क्योंकि इसने ऐसा करने को उसे मजबूर कर दिया है ।
- नितिन जी । अचानक वह हाथ बढाकर फ़ूलों की क्यारी से एक फ़ूल पत्तों युक्त नाजुक टहनी तोङकर अपने नाजुक गालों पर फ़िराती हुयी बोली - मैंने एक बङा मजेदार कार्टून देखा था । कार्टून । उसने सीधे सीधे उसकी आँखों में देखा - यू नो कार्टून ?..कार्टून में एक पात्र को अपनी बीमार भैंस को दवा खिलानी थी । किसी ने उसे सुझाव दिया । एक खोखली नली में दबा रख कर भैंस के मुँह में डालकर फ़ूँक मार दो । बस काम खत्म । सुझाव एकदम फ़ेंटास्टिक था । उसने ऐसा ही किया । लेकिन..लेकिन.. । अचानक वह आगे बोलने से पहले ही जोर से खिलखिलाकर हँसने लगी । और हँसते हँसते हुये ही बोली - लेकिन जानते हो नितिन जी क्या हुआ ? वह आदमी फ़ूँक मारता । इससे पहले भैंस ने ही उल्टा फ़ूंक मार दी । और पूरी दबा उस आदमी के पेट में । ह..ह..ह । नितिन जी भैंस ने ही उल्टा फ़ूंक मार दी ।

क्या है ये ? वह अचानक अन्दर तक सहम गया । कोई जादूगरनी ? वह मधुर स्वर में दंतपंक्ति को बिजली सा चमकाती हुयी बङे आकर्षक अन्दाज में हँसे जा रही थी । सीधी सी बात थी । जो बात अभी अभी बस उसने सोच ही पायी थी । उसका उसने भरपूर मजाक बनाया था । और एक बार फ़िर से उसे चैलेंज किया था । और वह सिर्फ़ उसे देख पा रहा था । उसे । जो अब ऊपर के होठ से निचला होठ दबाकर गर्दन के नीचे सीने पर फ़ूंक मार रही थी ।
- चलिये । अचानक वह फ़िर से उसे देखती हुयी बोली - जोक्स की बात छिङ ही गयी । तो एक और जोक सुनो । अरे सुन लो भाई । शायद ऐसी कहानी फ़िर कभी न लिखी जाये ? शायद ।..एक आदमी अपनी बेहद सुन्दर चंचल दिलफ़ेंक और मनचली बीबी से बहुत परेशान था । वह हर तरह से उसके आउट आफ़ कंट्रोल थी । तब किसी के सुझाव पर वह उसको वश में रखने हेतु एक पहुंचे हुये वशीकरण साधु के पास गया । और प्रार्थना की कि - वह कुछ ऐसा उपाय कर दे । जिससे उसकी स्त्री उसके वश में हो जाये । उसकी बात सुनकर साधु के चेहरे पर पहले बङे दुखी भाव आये । जैसे उसका ही घाव हरा हो गया हो । फ़िर अचानक उसको बहुत क्रोध आया । उसने उस आदमी को एक चाँटा मारा । और बोला - मूर्ख ! यदि औरत का वशीकरण करने का कोई उपाय होता । तो फ़िर तमाम लोग साधु ही क्यों बनते ?
फ़िर ये परवाह किये बिना कि नितिन पर उसके जोक का क्या असर हुआ । वह फ़िर से हँसती हुयी लोटपोट सी होने लगी । और वह ऐसे आकर्षक अन्दाज में हँस रही थी कि हँसने से कम्पित हुआ उसका आंचल रहित वक्ष एक शक्तिशाली चुम्बक की तरह उसे फ़िर से खींचने लगा ।
- अरे फ़िर क्यों पढे जा रहे हो ? ये घटिया वल्गर चीप अश्लील पोर्न सेक्सी कामुक सस्ती सी वाहियात कहानी । वह जैसे सीधे उसकी आँखों में झांकते हुये मौन स्वर में बोली - यही शब्द देते हो ना तुम । ऐसे वर्णन को । पाखण्डी युवक । तुम भी तो उसी समाज का हिस्सा हो । जहाँ इसे घटिया अनैतिक वर्जित प्रतिबंधित हेय मानते हैं । फ़िर क्यों रस आ रहा है । तुम्हें इस कहानी में ?..गौर से सोचो । तुम उसी ईडियट सोसाइटी का अटूट हिस्सा हो । उसी मूर्ख दोगले समाज का अंग हो । जहाँ दिमाग में तो यही सब भरा है । हर छोटे बङे सभी की चाहत यही है । पर बातें कपट युक्त उच्च सिद्धांतों खोखले आदर्श और झूठी नैतिकता की है ।
भाङ में गयी कहानी । और भाङ में गया रहस्य । वह तो पागल सा हुआ जा रहा है । वह अपना सब ज्ञान भूल गया । स्वभाव भूल गया । दिनचर्या भूल गया । उसका जैसे अस्तित्व ही खत्म कर दिया । इस मायावी औरत ने । ये एकदम उस पर छा सी जाती है । उसे सोचने का कोई मौका तक नहीं देती । उसने घङी पर निगाह डाली । सवा तीन बजने वाले थे । वह फ़ौरन ही इस भूलभुलैया से जाने की सोचने लगा । और उठने को तैयार हो गया ।
- सेक्स ..सेक्स..सिर्फ़ सेक्स । वह बङे आकर्षक ढंग से एक घुटना मोढ कर दूसरे पर रखती हुयी अपने उसी विशेष धीमें थरथराते अन्दाज में बोली - काम.. । नितिन जी ! काम. आप देखो । तो पूरे विश्व के लोग सेक्स के दीवाने होते हैं । लेकिन रियल्टी में वे रियल सेक्स को जानते तक नहीं । सेक्स बिजली है । पावर । ऊर्जा । लेकिन क्या सच में लोग बिजली को भी ठीक से जानते हैं ? वह बिजली । जिसका जाने कितना । और जाने कब से । यूज कर रहे हैं । पर क्या जानते हैं उसे ? मैं कहती हूँ - नो । हंड्रेड परसेंट नो । यस..नो नितिन जी.. नो । देखो । बिजली में दो तार होते हैं । जिसको - अर्थ फ़ेस । निगेटिव पाजिटिव । ठंडा गर्म । ऋणात्मक धनात्मक नाम से जाना जाता है । ये दोनों तार इस अदभुत अदृश्य ऊर्जा के उपयोग के लिये बहुत आवश्यक होते हैं ना । जिस यन्त्र में लगकर ये दोनों तार जुङ जाते हैं । joint । तुम समझ रहे हो ना । संभोग । तब वह यन्त्र ऊर्जावान हो जाता है । जीवन्त । जीवन ऊर्जा से भरपूर । पर है ना कमाल । एक दूसरे के अति पूरक ये तार आपस में कभी नहीं मिलते । लेकिन जब भी । गलती से भी । ये आपस में मिलते हैं । तो पैदा होती है । एक अदभुत ऊर्जा । प्रत्यक्ष होती है । एक अदृश्य ऊर्जा । चिटऽऽ चिटऽऽ फ़टाऽऽक । तुमने कभी देखा । कैसी अदभुत दिव्य चमक होती है तब । पर कब ? जब दो नंगे तार आपस में लिपट जाये । दो नंगे तार । दो नंगे बदन । दो नंगे शरीर । एक पाजिटिब । एक निगेटिव । और यही है असली सेक्स । उसका असली रूप । जब स्त्री पुरुष सिर्फ़ कपङों से ही नहीं । आंतरिक रूप से भी नंगे होकर एक दूसरे से लिपटे जायं । उनकी समस्त भावनायें नंगी हो जायं । आपस में । एक दूसरे से । कोई छिपाव नहीं । कोई दुराव नहीं । सेक्स .. सेक्स ..सिर्फ़ सेक्स । जिसमें आनन्द ही आनन्द की चिंगारियाँ उठने लगे ।

आऽऽह ! वह अचानक तङपते से बैचेन स्वर में बोली - मैं प्यासी हूँ ।
यकायक ही वह बेहद व्याकुल सी दिखने लगी । उसकी बङी बङी आँखें अपने गोलक में तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी । उसकी सुन्दर लटें चेहरे पर झूल आयी थी । वह जैसे असमंजस में प्यासी निगाहों से उसे देखती । फ़िर तेज तेज सांसे लेने लगती । हर सांस के साथ उसका सीना तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था ।
नितिन ने कठिनाई से अपने को संयमित किया ।
पर वह जैसे नियन्त्रण से बाहर हो रही थी । उसने काम ताप की तपन से व्याकुल होकर ब्लाउज खोल दिया । और आँखें बन्द कर गहरी गहरी सांसे लेने लगी । उसके मुँह से बार बार ..नितिन जी..नितिन जी के धीमे शब्द निकल रहे थे । अब क्या करता वह ? उसके खुले उन्नत पुष्ट दूधिया उरोज उसके सामने थे । उसका अब और भी काम आच्छादित हो चुका अकल्पनीय सौन्दर्य उसे शून्यता 0 में खींच रहा था । और वह लगभग शून्य 0 ही हो चला था ।
उसके दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया । वह आदेशित यन्त्र सा उठा । और पदमा की कुर्सी के पास ही नीचे जमीन पर बैठ गया । उसने उसकी गोरी कलाई थामी । और प्यार से उसकी हथेली सहलाता हुआ बोला - पदमा जी । प्लीज । प्लीज । आप होश में आईये ।
उसका वही हाथ उठा कर पदमा ने अपने विशाल स्तनों से सटा कर दबा लिया । और फ़िर जैसे दूर गहरी घाटी से उसकी आवाज आयी - भूल जाओ कि तुम क्या हो । भूल जाओ कि मैं क्या हूँ । जो होता है..।
नितिन उसके स्तन सहलाने लगा । मसलने लगा । वह वाकई भूल गया । वह कब नीचे उतर कर उसकी गोद में आ गयी । उसे बोध ही न हुआ । वह उसे गिराकर उसके ऊपर आ गयी थी । उसके दोनों सुडौल स्तन उसके चेहरे को छू रहे थे । वह किसी मजबूत से पेङ से अमरबेल की तरह लिपटी हुयी थी । उसे किसी जहरीली नागिन के बदन से लिपटे होने का स्पष्ट अहसास हो रहा था । उसके जहर से वह नशे से मूर्छित सा हो रहा था । फ़िर वह उसका मनमाना उपयोग करने लगी । काम बासना का अनोखा खेल खेलते हुये ।
कामवासना । पर क्या वाकई वह काम वासना से प्रभावित हो रहा था ? उसने जान बूझ कर खुद को निष्क्रिय कर रखा था । और बेहद गौर से उसकी हर गतिविधि और शरीर में होते परिवर्तन देख रहा था । खास कर उसके चेहरे पर आते परिवर्तनों का वह बेहद सूक्ष्मता से निरीक्षण कर रहा था ।

नितिन । उसके दिमाग में भूतकाल का मनसा जोगी बोला - इसको समझना बहुत कठिन भी नहीं है । तुम एक कप गर्म चाय या फ़िर एक गिलास ठंडा पानी धीरे धीरे पीने के समान व्यवहार से किसी प्रेत आवेश को सुगमता से जान सकते हो । जिस प्रकार चाय के कप से घूँट घूँट भरते हुये तुम्हारे शरीर में गर्माहट का समावेश धीरे धीरे ही होता है । और पूरा कप चाय पी लेने के बाद तुम एक ऊर्जा और भरपूर गर्माहट अपने अन्दर पाते हो । इसी तरह इस तरह का कोई भी प्रेत आवेश भी धीरे धीरे क्रियान्वित होता है ।
उदाहरण के लिये ऐसे प्रेत आवेश में जबकि वह शुरू भी होने लगा हो । तुम्हें लग सकता है कि वह सामान्य से थोङा ही अलग हट कर व्यवहार कर रही हो । जैसे किसी विशेष किस्म की आदत की वजह से । फ़िर अगर वह आवेश वहीं रुक जाये । उससे आगे न बढे । तो एक आम आदमी यही सोचेगा कि ये इंसान थोङा चिङचिङा गया । क्रोध में है । कुछ परेशान सा है आदि बहुत से सामान्य से थोङा अलग लक्षण । लेकिन यदि उस आवेश को प्रोत्साहित करते हुये उसका दर बङाते चले जाओ । तब वे असामान्य लक्षण तुम्हें स्पष्ट महसूस होंगे । साफ़ साफ़ दिखाई देंगे ।
और तब उसने पदमा के चेहरे को गौर से देखा । और रहस्यमय अन्दाज में मुस्कराया । पहली बार उसे लगा । काश ये अभी कहती - क्या कमाल की कहानी लिखी । इस कहानी के लेखक ने । कहानी जो उसने शुरू की । उसे कोई और कैसे खत्म कर सकता है । इसीलिये..इसीलिये ये कहानी न तुमसे पढते बन रही है । न छोङते । ये बच्चों का खेल नहीं नितिन ।
लेकिन अभी वह कुछ कैसे कहती । अभी तो वह खुद कहानी लिख रही थी । शायद एक बेहद रहस्यमय कहानी


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