कामवासना

Horror stories collection. All kind of thriller stories in English and hindi.
007
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Re: कामवासना

Unread post by 007 » 10 Dec 2014 09:55

उसके हाथ मैक्सी के बन्द पर गये । और मैक्सी कन्धों से नीचे सरक गयी । झीने परदे के पार खङी वीनस साक्षात हो उठी । उसमें एक अजीव सी हिंसकता स्वतः जाग उठी । शेर के मुँह को खून लग गया । उसके हाथ उसके कम्पित स्तनों पर कस गये । एक ताकतवर बलिष्ट शेर । और उसके खूँखार पंजो में तङपती नाजुक बदन हिरनी । आऽऽ..मा.. प्यास .. प्यास .. त्रुप्त..त्रुप्त..अ� ��ृप्त । पदमा का वक्ष तेजी से ऊपर नीचे हो रहा था । वह प्यासी नागिन की भांति कसकर उससे चिपक गयी ।
- क्यों पढ रहे हो ? ये घटिया वल्गर चीप अश्लील पोर्न सेक्सी कामुक सस्ती सी वाहियात कहानी । वह सीधे उसकी आँखों में भाव हीनता से देखता हुआ बोला - यही शब्द देते हो ना तुम । ऐसे वर्णन को । पाखण्डी पुरुष । तुम भी तो उसी समाज का हिस्सा हो । जहाँ इसे घटिया अनैतिक वर्जित प्रतिबंधित हेय मानते हैं । फ़िर क्या रस आ रहा है । तुम्हें इस कहानी में ।..गौर से सोचो । तुम उसी ईडियट सोसाइटी का अटूट हिस्सा हो । उसी मूर्ख दोगले समाज का अंग हो । जहाँ दिमाग में तो यही सब भरा है । हर छोटे बङे सभी की चाहत यही है । पर बातें उच्च सिद्धांतों आदर्श और नैतिकता की है ।
बङे भाई ! किसी मेमोरी चिप की तरह यदि ब्रेन चिप को भी पढा जा सकता । तो हर पुरुष नंगा हो जाता । और हर स्त्री नंगी । हर स्त्री की चिप में नंगे पुरुषों की फ़ाइलें ओपन होती । और हर पुरु्ष की चिप में खुलती - बस नंगी औरत । प्यास .. प्यास .. अतृप्त ..अतृप्त ।
वह हैरान रह गया । उसकी इस मानसिकता को क्या शब्द दे । ब्रेन वाशिंग । या ब्रेन फ़ीडिंग । या कोई सम्मोहन । या उस कयामत स्त्री का जादू । या रूप का वशीकरण । या .या स्त्री पुरुष के रोम रोम में समायी स्त्री पुरुष की अतृप्त चाहत । या फ़िर एक महान सच । महान सच । अतृप्त ।
- म..नोज..कैसा लग ..रहा है । वह कांपती थरथराती आवाज में बोली - तुम्हे..आऽऽ..तुम मुझे मारे दे रहे हो । ऊऽऽई ओऽऽ आईऽऽ ये कैसा आनन्द है ।
- अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ ओ औ अं अः । उसके दिमाग में भूतकाल की पदमा आकृति उभरी । साङी का पल्लू कमर में खोंसे हुये वह नजाकत से खङी हो गयी । और बोली - इनको स्वर कहते हैं । vowel । हर बच्चे को शुरू से यही सिखाया जाता है । पढाई का पहला वास्ता इन्ही से है । पर तुम इनका असली रहस्य जानते हो ? स्वर । यानी
आवाज । ध्वनि । काम ध्वनि । सीत्कार । अतृप्त शब्द । अतृप्त ।
नहीं समझे ।.. फ़िर से उसकी पतली पतली भौंह रेख किसी तीर का लक्ष्य साधते हुये कमान की तरह ऊपर नीचे हुयीं - एक सुन्दर इठलाती मदमदाती औरत के मुख से इन स्वर अक्षरों की संगीतमय अन्दाज में कल्पना करो । जैसे वह आनन्द में सिसकियाँ भर रही हो । अऽऽ । आऽऽ । इऽऽ । ईऽऽ । उऽऽ । ऊऽऽ । ओऽऽ । देखोऽ..वह महीन मधुर झनकार सी झन झन होती हुयी बोली - हर अक्षर को मीठे काम रस से सराबोर कर दिया गया है ना । सोचो । क्यों ?.. सेक्स । काम ।.. काम ही तो हमारे शरीर में बिजली सा दौङता रहता है । हाँ । जन्म से ही । पर हम समझ नहीं पाते । इन स्वर ध्वनियों में वही उमगता काम ही तो गूँज रहा है । काम । काम । सिर्फ़ काम । अतृप्त । अतृप्त ।
फ़िर इन्ही शब्दों के बेस पर व्यंजन रूप ध्वनि बनती है । क ख में अ और वासना वायु की गूंज है या नहीं । बस थोङा सा ध्यान से देखो । फ़िर इन काम स्वर और व्यंजन के मधुर मिलन से इस सुन्दर संसार की रचना होती है । गौर से देखो । तो ये पूरा रंगीन मोहक संसार इसी छोटी सी वर्णमाला में समाहित है ना

कमाल की हैं । मनोज जी आपकी भाभी भी । नितिन हँसते हँसते मानों पागल हुआ जा रहा था - आय थिंक । किसी भाषा शास्त्री किसी महा विद्वान ने भी स्वर रहस्य को इस कोण से कभी न जाना होगा । लेकिन अब मुझे उत्सुकता है । फ़िर क्या हुआ ?
आज रात ज्यादा हो गयी थी । आसमान बिलकुल साफ़ था । और रात का शीतल शान्त प्रकाश बङी सुखद अनुभूति का अहसास करा रहा था । काली छाया औरत बूढे पीपल के तने से टिक कर शान्त खङी थी । नितिन के स्त्री रहित बृह्मचर्य शरीर मन मष्तिष्क में स्त्री तेजी से घुलती सी जा रही थी । एक दिलचस्प रोचक आकर्षक किताब की तरह । किताब । जिसे बहुत कम लोग ही सही पढ पाते हैं । किताब । जिसे बहुत कम लोग ही सही पढना जानते हैं । बहुत कम ।
- लेकिन पढना । बहुत कठिन भी नहीं । पदमा अपना हाथ उसके शरीर पर घुमाती हुयी बोली - एक स्वस्थ दिमाग स्वस्थ अंगों वाली खूबसूरत औरत खुली किताब जैसी ही होती है । एक नाजुक और पन्ना पन्ना रंग बिरंगी अल्पना कल्पना से सजी सुन्दर सजीली किताब । जिसके हर पेज पर उसके सौन्दर्य की कविता लिखी है । बस पढना होगा । फ़िर पढो ।
पर उसकी हालत बङी ही अजीव सी थी । वह इस नैसर्गिक संगीत का सा रे गा मा भी न जानता था । उसे तो बस ऐसा लग रहा था । जैसे एकदम अनाङी इंसान को उङते घोङे पर सवार करा दिया हो । लगाम कब खींचनी है । कहाँ खींचनी है । घोङा कहाँ मोङना है । कहाँ सीधा करना है । कहाँ उतारना है । कैसे चढाना है । उसे कुछ भी तो न पता था । कुछ भी ।
अचानक वह मादकता से चलती हुयी बिस्तर पर चढ गयी । और आँखे बन्द कर ऐसी मुर्दा पङ गयी । जैसे थकन से बेदम हो गयी हो । वह हक्का बक्का सा इस तरह उसके पास खिंचता चला गया । जैसे घोङे की लगाम उसी के हाथ हो ।
- भूल जाओ ।.. भूल जाओ ।.. अपने आपको । वह जैसे बेहोशी में बुदबुदाई - भूल जाओ कि तुम क्या हो । भूल जाओ कि मैं क्या हूँ । जो स्वयं होता है । होने दो । उसे रोकना मत ।
स्वयं । वह हैरान था । वह कितनी ही देर से उसके सामने आवरण रहित थी । लेकिन फ़िर भी वह उसको ठीक से देख न सका था । वह उसके अधखुले स्तनों को स्पष्ट देखता था । तब उनकी एकदम साफ़ तस्वीर उसके दिमाग
में बनती थी । वह उसके लहराते बालों को स्पष्ट देखता था । तब उसे घिरती घटायें साफ़ दिखाई देती थी । वह उसके रसीले होठों को स्पष्ट देखता था । तब सन्तरे की खट्टी मीठी मिठास उसके अन्दर स्वतः महसूस होती थी । जब वह उसको टुकङा टुकङा देखता था । तब वह पूर्णता के साथ नजर आती थी । और जब वह किताब की तरह खुद ही खुल गयी थी । तब उसे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था । कुछ भी तो न था ।
उसने फ़िर से भूतकाल के बिखरे शब्दों को जोङने की कोशिश की - तुम ध्यान दो । तो औरत के हर अंग से रस टपकता है । वह रस से लबालब भरी रस भरी होती है । होठों में रस । गालों में रस । आँखों में रस । छातियों में रस । जंघाओं में रस । नाभि में रस । नितम्बों में रस ।
पर कहाँ था । कोई रस । जिनमें रस था । अब वो अंग ही न थे । कोई अंग ही न था । अंगहीन । बस हवा में फ़ङफ़ङाते खुले पन्नों की किताब । और बस वहाँ वासना की हवा ही अब बह रही थी । प्रकृति में समाई सुन्दर खिले नारी फ़ूल की मनमोहक खुशबू । जिसको वह मतवाले भंवरे के समान अपने अन्दर खींच रहा था ।
फ़िर कब वह उल्टी हुयी । कब वह सीधा हुआ । कब वह तिरछी हुयी । कब वह टेङा हुआ । कब वह उसको मसल देता । कब वह चीख उठती । कब वह उसको दबा डालता । कब वह कलाबाजियाँ सी पलटती । कब वह उसको काट लेता । कब वे खङे होते । कब लेट जाते । कब वह उसमें चला जाता । कब वह उसमें आ जाती । कब ? ये सब कब हुआ । कौन कह सकता है ? वहाँ इसको जानने वाला कोई था ही नहीं । थी तो बस वासना की गूँज । आऽऽह ..आऽऽ ! आऽऽई ..प्यास .. प्यास .. अतृप्त ..अतृप्त ।..रुको.. मत..आऽऽ ।
- बङे भाई ! वह सिगरेट का कश लेता हुआ बोला - मैं अब अन्दर कहीं सन्तुष्ट था । मैं उसके काम आया था । मैं अब सन्तुष्ट था । भाई की पराजय को भाई ने दूर कर दिया था । नैतिक अनैतिक का गणित मैं भूल चुका था । खुशी बस इस बात की थी । सवाल हल हो गया था । सवाल । उलझा हुआ सवाल ।
मैंने देखा । वह अधलेटी सी नग्न ही शून्य निगाहों से दीवाल पर चिपकी छिपकली को देखे जा रही थी । जो बङी साबधानी सतर्कता से पतंगे पर घात लगाये जहरीली जीभ को लपलपा रही थी । उसकी आँखों में खौफ़नाक चमक लहरा रही थी । और उसकी आँखे अपलक थी । एकदम स्थिर । मुर्दा ।
मैं उसके पास ही बैठ गया । और बेमन से उसका स्तन टटोलता हुआ बोला - अब प्यास तो नहीं । क्यों हो कोई अतृप्त । खत्म । कहानी खत्म ।
यकायक उसके मुँह से तेज फ़ुफ़कार सी निकली । उसकी आँखें दोगुनी हो गयी । उसका चेहरा काला बाल रूखे और उलझे हो गये । उसकी समस्त पेशियाँ खिंच उठी । और वह किसी बदसूरत घिनौनी चुङैल की तरह दांत पीसने लगी ।
- मूर्ख ! वह गुर्राकर बोली - औरत कभी तृप्त नहीं होती । फ़िर तू उसकी वासना को क्या तृप्त करेगा । तू क्या कहानी खत्म करेगा ।
- बङे भाई ! वह अजीव से स्वर में बोला - मैं हैरान रह गया । वह कह रही थी ।.. कमाल की कहानी लिखी है ।
इस कहानी के लेखक ने । राजीव ।.. कहानी जो उसने शुरू की । उसे कैसे कोई और खत्म कर सकता है । ये कहानी है । सौन्दर्य के तिरस्कार की । चाहत के अपमान की । प्यार के निरादर की । जजबातों पर कुठाराघात की । वह कहता है । मैं माया हूँ । स्त्री माया है । उसका सौन्दर्य मायाजाल है । और ये कहानी बस यही तो है । पर..पर मैं उसको साबित करना चाहती हूँ - मैं माया नहीं हूँ । मैं अभी यही तो साबित कर रही थी । तेरे द्वारा । पर तू फ़ेल हो गया । और तूने मुझे भी फ़ेल करवा दिया । राजीव फ़िर जीत गया । क्योंकि .. वह भयानक स्वर में बोली - क्योंकि तू..तू फ़ँस गया ना । मेरे मायाजाल में ।

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Re: कामवासना

Unread post by 007 » 10 Dec 2014 09:56

अब गौर से याद कर कहानी । मैंने कहा था । मैं राजीव जी से प्यार करती थी । पर वह कहता था । स्त्री माया है । ये मैंने तुझे कहानी के शुरू में बताया । मध्य में बताया । इशारा किया । फ़िर मैंने तुझ पर जाल फ़ेंका । दाना डाला । और तुझसे अलग हट गयी । फ़िर भी तू खिंचा चला आया । और खुद जाल में फ़ँस गया । मेरा जाल । मायाजाल ।.. वह फ़ूट फ़ूट कर रो पङी - राजीव जी तुम फ़िर जीत गये । मैं फ़िर हार गयी । ये मूर्ख लङका मुझसे प्रभावित न हुआ होता । तो मैं जीत.. न गयी होती ।
नितिन हक्का बक्का रह गया । देवर भाभी की लव स्टोरी के इस द एण्ड की तो कोई कल्पना ही न हो सकती थी ।
- सोचो बङे भाई । वह उदास स्वर में बोला - मैं हार गया । इसका अफ़सोस नहीं । पर तुम भी हार गये । इसका है । मैंने कई बार कहा । क्यों पढ रहे हो । इस कामुक कथा को । फ़िर भी तुम पढते गये । पढते गये । उसने जो सबक मुझे पढाया था । वही तो मैंने तुम पर आजमाया । पर तुम हार गये । और ऐसे ही सब एक दिन हार जाते हैं । और जीवन की ये वासना कथा अति भयानकता के साथ खत्म हो जाती है ।
नितिन को तेज झटका सा लगा । वह जो कह रहा था । उसका गम्भीर दार्श भाव अब उसके सामने एकदम स्पष्ट हो गया था । वह उसे रोक सकता था । कहानी का रुख मोङ सकता था । और तब वह जीत जाता । और कम से कम तब मनोज उदास न होता । पर वह तो कहानी के बहाव में बह गया । ये कितना बङा सत्य था ।
मनोज की आँखों से आँसू बह रहे थे । अब जैसे उसे कुछ भी सुनाने का उत्साह न बचा था । नितिन असमंजस में उसे देखता रहा । उसने मोबायल में समय देखा । रात का एक बज चुका था । चाँद ऊपर आसमान से जैसे इन दोनों को ही देख रहा था । काली छाया भी जैसे उदास सी थी । और अब जमीन पर बैठ गयी थी ।
चलो हार जीत कुछ हुआ । इसका भाभी पुराण तो समाप्त हो गया । उसने सोचा । और बोला - ये शमशान में तंत्र दीप ..मेरा मतलब ।
- तुम्हें फ़िर गलतफ़हमी हो गयी । वह रहस्यमय आँखों से उसे देखता हुआ बीच में ही बोला - कहानी अभी खत्म नहीं हुयी । कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने । कहानी जो उसने शुरू की । उसे कोई और कैसे खत्म कर सकता है ? जिसकी कहानी । वही इसे खत्म करेगा ।
लेकिन अबकी बार वह सतर्क था । एक बार जो किसी बात पर कोई पागल बन जाये । कोई बात नहीं । सबके साथ ही हो जाता है । दोबारा फ़िर उसी बात पर पागल बन जाये । चलो जानते हुये भी ठोकर लग गयी । मजबूती आ गयी । यही जीवन है । लेकिन तीन बारा फ़िर उसी बात पर पागल बन जाये । उसे पागल ही कहा जायेगा । और अब वह पागल हरगिज नहीं बनना चाहता था ।
- मनसा जोगी । वह मन ही मन बोला - रक्षा करें ।
- इसीलिये मैंने कहा था ना । तुम्हें फ़िर गलतफ़हमी हो गयी । वह एक नयी सिगरेट सुलगाता हुआ बोला - कहानी अभी खत्म नहीं हुयी । बल्कि इसे यूँ कहो । कहानी अब शुरू हुयी । रात आधे से ज्यादा हो रही है । पूरा शहर सो रहा है । और सिर्फ़ हम तीन जाग रहे हैं । तो क्या । किसी ब्लू फ़िल्म सी इस कामुक कथा का रस लेने के लिये ।
अभी वह हम तीन की बात पर चौंका ही था कि मनोज बोला - ये बूढा पीपल भी । ये पीपल भी तो हमारे साथ है ।
नितिन ने चैन की सांस ली । एक और संस्पेंस क्रियेट होते होते बचा था । लेकिन हम तीन सुनते ही उसकी निगाह सीधी उस काली छाया औरत पर गयी । जो अब भी वैसी ही शान्ति से बैठी थी । कौन थी । यह रहस्यमय अशरीरी रूह ? क्या इसका इस सबसे कोई सम्बन्ध था । या ये महज उनके यहाँ क्यों ? होने की उत्सुकता वश ही थी । कुछ भी हो । एक अशरीरी छाया को उसने पहली बार बहुत निकट से देर तक देखा था । और देखे जा रहा था ।
लेकिन कितना वेवश भी था वो । अगर मनोज वहाँ न होता । तो वह उससे बात करने की कोई कोशिश करता । एक वायु शरीर से पहली बार सम्पर्क का अनुभव करता । जो कि इस लङके और उसकी ऊँट पटांग कहानी के चलते न हो पा रहा था । एक मामूली जिज्ञासा से बढ गयी कहानी कितनी नाटकीय हो चली थी । समझना कठिन हो रहा था । और कभी कभी तो उसे लग रहा था कि वास्तव में कोई कहानी है ही नहीं । ये लङका मनोज सिर्फ़ चरस के नशे का आदी भर है ।
- नितिन जी ! अचानक वह सामान्य स्वर में बोला - अगर आप सोच रहे हैं कि मैं आपको उलझाना चाहता हूँ । और मुझे इसमें कोई मजा आता है । या मैं कोई नशा वशा करता हूँ । तो सारी । आप फ़िर गलत है । तब आपने मेरे शब्दों पर ध्यान नहीं दिया - और उसी के लिये मुझे समझ नहीं आता कि मैं किस तरह के शब्दों का प्रयोग करूँ । जो अपनी बात ठीक उसी तरह से कह सकूँ । जैसे वह होती है । पर मैं कह ही नहीं पाता । ..हाँ । यही सच है । अचानक ही सामान्य या खास शब्द अपने आप मेरे मुँह से निकलते हैं । यदि मैं इन्हें कहना चाहूँ । तो नहीं कह सकता ।
बन्द गली । बन्द घर । जमीन के नीचे । अंधेरा बन्द कमरा ।

नितिन वाकई हक्का बक्का ही रह गया । क्या प्रथ्वी पर कोई युवती इतनी सुन्दर भी हो सकती है ? अकल्पनीय । अवर्णनीय । क्या हुआ होगा । जव यौवन विकास काल में यह लहराती पतंग की तरह उङी होगी । गुलावी कलियों सी चटकी होगी । अधखिले फ़ूलों सी महकी होगी । गदराये फ़लों जैसी फ़ूली होगी । क्या हुआ होगा ? क्या हुआ होगा । जब इसकी मादक अदाओं ने बिजलियाँ गिरायी होंगी । तिरछी चितवन ने छुरियाँ चलायी होंगी । इसकी लचक मचक चाल से मोरनियाँ भी घबरायी होंगी । इसके इठलाते बलखाते बलों से नाजुक लतायें भी आभा हीन हुयी होंगी । लगता ही नहीं । ये कोई स्त्री है । ये तो अप्सरा ही है । रम्भा । या मेनका । या लोचना । या उर्वशी । जो स्वर्ग से मध्य प्रदेश की धरती पर उतर आयी । फ़िर क्यों न इस पर श्रंगार गीत लिखे गये । क्यों न इस पर प्रेम कहानियाँ गढी गयीं । क्यों न किसी चित्रकार ने इसे केनवास पर उतारा । क्यों न किसी मूर्तिकार ने इसे शिल्प में ढाला । क्यों ? क्यों ? क्योंकि ये कवित्त के श्रंगार शब्दों । प्रेम कथा के रसमय संवादों । चित्र तूलिका के रंगो । और संगेमरमर के मूर्ति शिल्प में समाने वाला सौन्दर्य ही नहीं था । ये उन्मुक्त रसीला नशीला मधुर तीखा खट्टा चटपटा अनुपम असीम सौन्दर्य था । वाकई । वाकई वह जङवत होकर रह गया ।
पहले वह सोच रहा था । किशोरावस्था के नाजुक रंगीन भाव के कल्पना दौर से ये लङका गुजर रहा है । और इसकी काम वासना ही इसे इसकी भाभी में बेपनाह सौन्दर्य दिखा रही है । पर अब वह खुद के लिये क्या कहता ? क्योंकि पदमा काम से बनी कल्पना नहीं । सौन्दर्य की अनुपम छटा बिखेरती हकीकत थी । एक सम्मोहित कर देने वाली । जीती जागती हकीकत । और वो हकीकत । अब उसके सामने थी ।
- नितिन जी ! अचानक उसकी बेहद सुरीली मधुर आवाज की खनखन पर वह चौंका - कहाँ खो गये आप ? चाय लीजिये ना ।
- रूप । सुन्दर रूप । रूप की देवी । रूपमती । रूपमाला । रूपसी । रूपशीला । रूप कुमारी । रूपचन्द्रा । रूपवती । रूपा । रूप ही रूप । हर अंग रंगीली । हर रंग रंगीली । हर संग रंगीली । रूप छटा । रूप आभा । चारों और रूप ही रूप । किन शब्दों का चयन करे वो । खींचता रूप । बाँधता रूप । कैसे बच पाये वो । वह खोकर रह गया ।
यकायक..यकायक उसे झटका लगा - कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने । राजीव ।.. कहानी जो उसने शुरू की । उसे कैसे कोई और खत्म कर सकता है । ये कहानी है । सौन्दर्य के तिरस्कार की । चाहत के अपमान की । प्यार के निरादर की । जजबातों पर कुठाराघात की । वह कहता है । मैं माया हूँ । स्त्री माया है । उसका सौन्दर्य बस माया जाल है । और ये कहानी बस यही तो है । पर..पर मैं उसको साबित करना चाहती हूँ - मैं माया नहीं हूँ । मैं अभी यही तो साबित कर रही थी । तेरे द्वारा । पर तू फ़ेल हो गया । और तूने मुझे भी फ़ेल करवा दिया । राजीव फ़िर जीत गया । क्योंकि .. क्योंकि तू .. तू भी फ़ँस गया ना । मेरे माया जाल में ।
- मनसा जोगी ! वह मन ही मन सहम कर बोला - रक्षा करें ।
- अब गौर से याद कर कहानी । उसके कानों में फ़िर से भूतकाल बोला - मैंने कहा था । मैं राजीव जी से प्यार करती थी । पर वह कहता था । स्त्री माया है । ये मैंने तुझे कहानी के शुरू में बताया । मध्य में बताया । इशारा किया । फ़िर मैंने तुझ पर जाल फ़ेंका । दाना डाला । और तुझसे अलग हट गयी । फ़िर भी तू खिंचा चला आया । और खुद जाल में फ़ँस गया । मेरा जाल । माया जाल ।.. राजीव जी तुम फ़िर जीत गये । मैं फ़िर हार गयी । ये मूर्ख लङका मुझसे प्रभावित न हुआ होता । तो मैं जीत.. न गयी होती ।
उसे फ़िर झटका सा लगा । ठीक यही तो उसके साथ भी हुआ जा रहा है । उसका भी हाल वैसा ही हो रहा है । शमशान में जलते तंत्र दीप से बनी सामान्य जिज्ञासा से कहानी शुरू तो हो गयी । पर अभी मध्य को भी नहीं पहुँची । और अन्त का तो दूर दूर तक पता नहीं । कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने । उसने अपनी समूची एकाग्रता को केन्द्रित किया । और बङी मुश्किल से उस रूपसी से ध्यान हटाया ।
कल रात वे दोनों चार बजे लौटे थे । मनोज सामान्य हो चुका था । वह उसे उसके घर छोङ आया था । और फ़िर अपने घर न जाकर सीधा मनसा की कुटिया पर जाकर सो गया था । सुबह वह कोई दस बजे उठा ।
- इसमें कोई हैरानी वाली बात नहीं मेरे बच्चे । उसकी बात सुनकर मनसा कतई अप्रभावित स्वर में बोला - ये जीवन का असली गणित है । गणित । जिसके सही सूत्र पता होने पर जिन्दगी का हर सवाल हल करना आसान हो जाता है । एक सामान्य मनुष्य दरअसल तत्क्षण उपस्थिति चीजों से हर स्थिति का आंकलन करता है । जैसे कोई झगङा हुआ । तो वह उसी समय की घटना और क्रिया पर विचार विमर्श करेगा । पर ज्यों ज्यों खोजेगा । झगङे की जङ भूतकाल में दबी होगी । जैसे कोई यकायक रोगी हुआ । तो वह सोचेगा । अभी की इस गलती से हुआ । पर ऐसा नहीं । रोग की जङ कहीं भूतकाल में पनप रही होगी । धीरे धीरे ।
- मैं कुछ समझा नहीं । वह उलझकर बोला - आपका आशय क्या है ?
- हुँऽ । जोगी विचार युक्त भाव से गहरी सांस लेकर बोला - मेरे कहने का मतलब है । आज जो तुम्हारे सामने है । उसकी जङे बीज कहीं दूर भूतकाल में है । और तुम्हारे लिये अदृश्य भूमि में अंकुरित हो रहे हैं । धीरे धीरे बढ रहे हैं । मैं सीधा तुम्हारे केस पर बात करता हूँ । पदमा के रहस्य की हकीकत जानने के लिये तुम्हें भूतकाल को देखना होगा । उसकी जिन्दगी के पिछले पन्ने पलटने होंगे । अब उनमें कुछ भी लिखा हो सकता है । मगर उस इबारत को पढकर ही तुम कुछ या सब कुछ जान पाओगे । अब ये तुम पर निर्भर है कि तुम क्या कैसे और कितना पढ पाते हो ?

पर । उसने जिद सी की - इसमें पढने को अब बाकी क्या है ? पदमा 30 साल की है । विवाहित । अति सुन्दर । उसका एक देवर है । पति है । बस । वह अपने पति से न सन्तुष्ट है । न असन्तुष्ट ।..लेकिन अपनी तरुणाई में वह
किसी राजीव से प्यार करती थी । मगर वह साधु हो गया । बस अपने उसी पहले प्यार को वह दिल से निकाल नहीं पाती । क्योंकि कोई भी लङकी नहीं निकाल पाती ।.. और शायद उसी प्यार को हर लङके में खोजती है । क्योंकि पति में ऐसा प्रेमी वाला प्यार खोजने का सवाल ही नहीं उठता । पति और प्रेमी में जमीन आसमान का अंतर होता है ।..इसके लिये वह किसी लङके को आकर्षित करती है । उसे अपने साथ खेलने देती है । यहाँ तक कि काम धारा भी बहने लगती है । यकायक वह विकराल हो उठती है । और तब सब सौन्दर्य से रहित होकर वह घिनौनी और कुरूप हो उठती है । उसकी मधुर सुरीली आवाज भी चुङैल जैसी भयानक विकृत हो उठती है । अब रहा उस तंत्र दीप का सवाल । कोई साधारण आदमी भी जान सकता है । वह कोई प्रेतक उपचार है । कोई रूहानी बाधा । बस एक रहस्य और बनता है । वह काली छाया औरत । लेकिन मुझे वह भी कोई रहस्य नहीं लगती । वह वहीं शमशान में रहने वाली कोई साधारण स्त्री रूह हो सकती है । जो उस वीराने में हम दोनों को देखकर महज जिज्ञासा वश आ जाती होगी । क्योंकि उसने इसके अलावा कभी कोई और रियेक्शन नहीं किया । या शायद इंसानी जीवन से दूर हो जाने पर उसे दो मनुष्यों के पास बैठना सुखद लगता हो ।
- शिव शिव । मनसा आसमान की ओर दुआ के अन्दाज में हाथ उठाकर बोला - वाह रे प्रभु ! तू कैसी कैसी कहानी लिखता है । मेरे बच्चे की रक्षा करना । उसे सही राह दिखाना ।
- सही राह । उसने सोचा । और बहुत देर बाद एक सिगरेट सुलगायी - कहाँ हो सकती है । सही राह । इस घर में । पदमा के पीहर में । या अनुराग में । या उस राजीव में । या फ़िर कहीं और ?
एकाएक फ़िर उसे झटका सा लगा । उसे सिगरेट पीते हुये पदमा बङे मोहक भाव से देख रही थी । जैसे उसमें डूबती जा रही हो । सिगरेट का कश लगाने के बाद जब वह धुँये के छल्ले छोङता । तो उसके सुन्दर चेहरे पर स्मृति विरह के ऐसे आकर्षक भाव बनते । मानों उन छल्लों में लिपटी हुयी ही वह गोल गोल घूमती उनके साथ ही आसमान में जा रही हो । वह घबरा सा गया । उसकी एक दृष्टि मात्र से घबरा गया । ऐसे क्या देख रही थी वह । क्यों देख रही थी वह ?
- राजीव जी भी ! वह दूर अतीत में कहीं खोयी सी बोली - सिगरेट पीते थे । मुझे उन्हें सिगरेट पीते देखना बहुत अच्छा लगता था । तब मैं महसूस करती थी कि सिगरेट की जगह मैं उनके होंठों से चिपकी हुयी हूँ । और हर कश के साथ उनके अन्दर उतर रही हूँ । उतरती ही जा रही हूँ । मेरा अस्तित्व धुँआ धुँआ हो रहा है । और मैं धुँआ के छल्ले सी ही गोल गोल आकाश में जा रही हूँ ।

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Re: कामवासना

Unread post by 007 » 10 Dec 2014 09:58

उसके दिमाग में एक भयंकर विस्फ़ोट हुआ । उसके अस्तित्व के मानों परखच्चे से उङ गये । कमाल की औरत थी । उसने मामूली सिगरेट पीने में ही इतना सेक्स डाल दिया कि उसे XXX उत्तेजना सी महसूस होने लगी । वह उसका केस जानने आया था । पर अब उसे लग रहा था । वह खुद केस होने वाला है । इसका तो बङे से बङा डाक्टर भी इलाज नहीं कर सकता । ये विकट सेक्सी लेडी तो उल्टा उसे ही मरीज बना देगी । भाङ में गयी । ये देवर भाभी रहस्य कथा । और भाङ में गयी ये सी आई डी कि तंत्र दीप क्या । छाया औरत क्या ? यहाँ उसे अपने वजूद बचाने के लाले थे । उसने तय किया । अब इस चक्कर में कोई दिलचस्पी नहीं लेगा । क्योंकि ये उसके बस का है भी नहीं ।
- वैसे कुछ भी बोलो । तब वह जान छुङाने के उद्देश्य से जाने का निश्चय करता हुआ अन्तिम औपचारिकता से बोला - राजीव जी ने आपका दिल तोङकर अच्छा नहीं किया ।
- डांट माइंड ! बट शटअप मि. नितिन । वह शटअप भी ऐसी दिलकश अदा से बोली कि वह फ़िर विचलित होने लगा - मुझे राजीव जी की बुराई सुनना कतई बर्दाश्त नहीं । अगेन डांट माइंड । बिकाज यू आर फ़ुल्ली फ़ूल । सोचो अगर वो ऐसा न करते । तो फ़िर इतनी दिलचस्प कहानी बन सकती थी ? क्या कमाल की कहानी लिखी उन्होंने ।
और ये खुला चैलेंज था । उसके लिये । जैसे वह उसका मतलब समझ गयी थी । और कह रही थी । इस कहानी के तारतम्य को आगे बढाना । उसके सूत्र जोङना । तुम जैसे बच्चों का खेल नहीं । उसने एक नजर खामोश बैठे मनोज पर डाली । क्या अजीव सी रहस्यमय फ़ैमिली थी । उनके घर में सब कुछ उसे अजीव सा लगा था । और वे एक अजीव ढंग से ही शान्त भी थे । और अप्रभावित भी । कोई बैचेनी लगता ही नहीं । उन्हें थी । जबकि उनसे ज्यादा बैचेनी उसे हो रही थी ।
क्या करना चाहिये उसे ? उसने सोचा । यदि वह ऐसे मामूली से चक्रव्यूह से घबरा जाता । तो फ़िर उसका तंत्र संसार में जाना ही बेकार था । बल्कि उसका संसार में जीना ही बेकार था । फ़िर उससे अच्छे और साहसी तो ये पदमा और मनोज थे । जो कि उस कहानी के पात्र थे । कहानी । जो साथ के साथ जैसे हकीकत में बदल रही थी ।
उसने फ़िर से पदमा के शब्दों पर गौर किया - सोचो । अगर वो ऐसा न करते । तो फ़िर इतनी दिलचस्प कहानी
बन सकती थी ? क्या कमाल की कहानी लिखी उन्होंने ।
वह सही ही तो कह रही थी । किसी राजीव ने सुन्दरता की देवी समान पदमा के प्यार का तिरस्कार करके ही तो इस कहानी की शुरूआत कर दी थी । अगर उन दोनों का आपस में सामान्यतः प्रेम संयोग हो जाता । तो फ़िर कोई कहानी बन ही नहीं सकती थी । फ़िर न मनोज जीवन का वह अजीव देवर भाभी प्रेम रंग देखता । और न शायद वह किसी वजह से तंत्र दीप जलाता । न उनकी मुलाकात होती । और न आज वह इस घर में बैठा होता । क्या मजे की बात थी । इस कहानी का दूर दूर तक कोई रियल प्लाट नहीं था । और कहानी निरंतर लिखी जा रही थी । ठीक उसी तरह । जैसे बिना किसी बुनियाद के कोई भवन महज हवा में बन रहा हो । वो भी बाकयदा पूरी मजबूती से । बङा और आलीशान भी ।
जिन्दगी को करीब से देख चुके अनुभवी जानकार कहते हैं - बङा कौर खा लेना चाहिये । उसने सोचा - लेकिन बङी बात कभी नहीं कहनी चाहिये । क्योंकि हो सकता है । फ़िर वह बात पूरी ही न हो । कभी न हो । इसलिये उसने मन ही मन में तय किया । इस खोज का परिणाम क्या हो । ऐसा कोई दावा । ऐसी कोई आशा वह नहीं करेगा । लेकिन जब यह कहानी उसके सामने आयी है । वह उसका निमित्त बना है । तब वह उसकी तह में जाने की पूरी पूरी कोशिश करेगा । और फ़िर उसने यही निश्चय किया ।

सोचो तुम दोनों । वह जैसे उन्हें जीवन के रहस्य सूत्र बहुत प्यार से समझाती हुयी सी बोली - एक हिसाब से यह कहानी बङी उलझी हुयी सी है । और दूसरे नजरिये से पूरी तरह सुलझी हुयी भी । शायद तुम चौंको । इस बात पर । पर मेरे इस अप्रतिम अदभुत सौन्दर्य और इस ठहरे हुये से उन्मुक्त यौवन का कारण राज सिर्फ़ मेरा प्रेमी ही तो है । न तुम । न तुम । न खुद मैं । न मेरा पति । न भगवान । न कोई और । सिर्फ़ मेरा प्रेमी ।
वो दोनों वाकई ही चौंक गये । बल्कि बुरी तरह चौंक गये ।
- हाँ जी हाँ । वह अपने चेहरे से लट को पीछे करती हुयी बोली - सोचो । एक सुन्दर युवा लङकी एक लङके से प्यार करती है । लेकिन उसका ये प्यार पूरा नहीं होता । और वो इस प्यार को करना छोङ भी नहीं पाती । नितिन यही बहुत बङा रहस्यमय सच है । चाहे लाखों जन्म क्यों न हो जाये । वह जब तक उस प्यार को पा न लेगी । तब तक वह प्रेमी उसके दिल से न निकलेगा । वह दिन रात उसी की आग में जलती रहेगी । प्रेम अगन । कौन जलती रहेगी ? एक टीन एज यंग गर्ल । ध्यान से समझने की कोशिश करो । प्यार के अतृप्त अरमानों में निरन्तर सुलगती । वो हसीन लङकी । वो प्रेमिका । उसके अन्दर कभी न मरेगी । चाहे जन्म दर जन्म होते जायें । कौन नहीं मरेगी ? वो हसीन लङकी । वो प्रेमिका । जिसके अन्दर 15-16 की उमर से एक अतृप्त प्यास पैदा हो गयी ।
इसीलिये वो हसीन लङकी । वो प्रेमिका । मेरे अन्दर सदा जीवित रहती है । और वही मेरी मोहक सुन्दरता और सदा यौवन का राज है ना । अब दूसरी बात सोचो । उस लङकी पदमा की शादी हो जाती है । और किसी हद तक उसकी काम वासना और अन्य शरीर वासनायें तृप्त होने लगती है । लेकिन उसकी खुद की मचलती प्यार प्रेम वासना तृप्त नही होती । जो चाह उसके दिल में प्रेमी और अपने प्रेम के लिये सुलग चुकी है । वो प्रेमी की बाहों में झूलना । वो चुम्बन । वो आलिंगन । वो चिढाना । सताना । रूठना । मनाना । वो उसके सीने पर सर रखना । ये सब एक प्रेमिका को । उसकी किसी से शादी हो जाना । नहीं दे सकते । कभी नहीं । तब ये तय है । उसके अन्दर एक प्रेमिका सदा मचलती ही रहेगी । प्रेमिका । जिसे सिर्फ़ अपने प्रेमी की ही तलाश है । इसीलिये तो मैं कहती हूँ - कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने ।.. कहानी जो उसने शुरू की । उसे कैसे कोई और खत्म कर सकता है ? कहानी । वह मादकता से होठ काटती हुयी सी बोली - कहानी जो सदियों तक खत्म न हो । बोलो लिख सकोगे । तुम इस कहानी का अन्त । अन्त ? पर अभी तो इसका मध्य ही नहीं हुआ ।
नितिन को लगा । जैसे वह पागल ही हो जायेगा । पर मनोज इस तरह शान्ति से उसकी बात सुन रहा था । जैसे महत्वपूर्ण गूढ धार्मिक प्रवचन सुन रहा हो । उसने सोचा । कम से कम उसने तो अपनी जिन्दगी में ऐसी कोई औरत न देखी थी । कहीं ऐसा तो नहीं कि वह एक सामान्य औरत हो ही नहीं ? फ़िर कौन हो सकती है वह ?

कल उसने एक बङा अजीव सा निर्णय आखिर लिया था । वह अच्छी तरह जान गया था । वह चाहे । सालों लगा रहे । इस बेहद रहस्यमय फ़ैमिली की इस देवर भाभी रहस्य कथा या फ़िर देवर भाभी प्रेत रहस्य कथा को किसी तरह नहीं जान पायेगा । तब उसने कुछ अजीव सा अलग हटकर सोचा । और उन्हीं के घर में कमरा लेकर बतौर किरायेदार रहने लगा । और अभी वे सब छत पर बैठे थे । उसे ये भी बङा रहस्य लगा कि उन दोनों ने उसके बारे में जानने की कोई कोशिश नहीं की । वह कहाँ रहता है ? उसके परिवार में कौन है ? उसने कहा । वह स्टूडेंट है । और उनके यहाँ रहना चाहता है । और वे मान गये । वह कुछ किताबें कपङे और स्कूटर के साथ वहाँ आ गया । अन्य छोटे मोटे सामान उन देवर भाभी ने उसे घर से ही दे दिये थे ।
गौर से देखा जाये । तो हर आदमी की जिन्दगी सिर्फ़ एक प्रश्नात्मक जिज्ञासा से बना फ़ल मात्र है । आगे क्या ? ये क्या ? वो क्या ? ये अच्छा । ये बुरा । जैसे प्रश्न उत्तरों में उलझता हुआ वह जन्म दर जन्म यात्रा करता ही जाता है । और कभी ये नहीं सोच पाता कि - हर प्रश्न वह स्वयं ही पैदा कर रहा है । और फ़िर स्वयं ही हल कर रहा है । उसका स्वयं ही उत्तर भी दे रहा है । बस उसे ये भृम हो जाता है कि प्रश्न उसका है । और उत्तर किसी और का । प्रश्न उत्तर । शायद बस इसी का नाम जीवन है ।
प्रश्न उत्तर । सिर्फ़ उसकी एक जिज्ञासा आज उसे इस घर में ले आयी थी । यकायक एक बङी सोच बन गयी थी उसकी । अगर वह ये प्रश्न हल कर सका । तो शायद जिन्दगी के प्रश्न को ही हल कर लेगा । बात देखने में छोटी सी लग रही थी । पर बात उसकी नजर में बहुत बढी थी । इसका हल हो जाना । उसकी आगे की जिन्दगी को सरल पढाई में बदल सकता है । जिसके हर इम्तहान में फ़िर वह अतिरिक्त योग्यता के साथ पास होने वाला था । और यही तो सब चाहते हैं । फ़िर उसने क्या गलत किया था ?
अब बस उसकी सोच इतनी ही थी कि अब तक जो वह मनोज के मुँह से सुनता रहा था । उसका चश्मदीद गवाह वह खुद होगा । आखिर इस घर में क्या खेल चल रहा है ?
रात के आठ बज चुके थे । मनोज कहीं बाहर निकल गया था । पर वह कुछ घुटन सी महसूस करता खुली छत पर आ गया था । पदमा नीचे काम में व्यस्त थी । अपने घर में एक नये अपरिचित युवक में स्वाभाविक दिलचस्पी लेते हुये अनुराग भी ऊपर चला आया । और उसी के पास कुर्सी पर बैठ गया ।
- मनोज जी से मेरी मुलाकात । वह उसकी जिज्ञासा का साफ़ साफ़ उत्तर देता हुआ बोला - नदी के पास शमशान में हुयी थी । जहाँ मैं नदी के पुल पर अक्सर घूमने चला जाता हूँ । मनोज को शमशान में खङे बूढे पीपल के नीचे एक दीपक जलाते देखकर मेरी जिज्ञासा बनी । ये क्या है ? यानी इस दीपक को जलाने का क्या मतलब है ?
लेकिन उसने अपनी तंत्र मंत्र दिलचस्पी आदि के बारे में कुछ न बताया ।
- ओह ओह । अनुराग जैसे सब कुछ समझ गया - कुछ नहीं जी । कुछ नहीं । नितिन जी । आप पढे लिखे इंसान हो । ये सब फ़ालतू की बातें हैं । कुछ नहीं होता इनसे । पहली बात । भूत प्रेत जैसा कूछ होता है । मैं नहीं मानता । और यदि होता भी है । तो वो इन दीपक वीपक से भला कैसे खत्म हो जायेगा ?
फ़िर आप सोच रहे होंगे । हमारी कथनी और करनी में विरोधाभास क्यों ? क्योंकि दीपक तो मेरा भाई मनोज ही जलाने जाता है । बात ये है कि लगभग चार साल पहले ही पदमा से मेरी शादी हुयी है । और लगभग उसी समय ये बना बनाया घर मैंने खरीदा था । और हम किराये के मकान से अपने घर में रहने लगे थे । सब कुछ ठीक चल रहा था । और अभी भी ठीक ही है । पर कभी कभी । अण्डरस्टेंड । कभी कभी मेरी वाइफ़ कुछ अजीव सी हो जाती है । एज हिस्टीरिया पेशेंट । यू नो । हिस्टीरिया ?
वह सेक्स के समय । या फ़िर किसी काम को करते करते । या सोते सोते ही । अचानक अजीव सा व्यवहार करने लगती है । जैसे उसका चेहरा विकृत हो जाना । उसकी आवाज बदल जाना । आँखों में भयानक बिल्लौरी इफ़ेक्ट सा पैदा हो जाना । कुछ अजीव शव्द वाक्य बोलना । जैसे लक्षण कुछ देर को नजर आते हैं । फ़िर कुछ देर बाद वह अपने आप सामान्य हो जाती है ।
बताईये इसमें क्या अजीव बात है ? आज दुनियाँ में एडस जैसी हजारों खतरनाक जान ही लेवा बीमारियाँ कितनों को हैं ? आदमी व्याग्रा से सेक्स जर्नी ड्राइव करता है । पाचन टेबलेट से खाना पचाता है । नींद गोलियाँ खाकर सोता है ...हो हो हो..है ना हँसने की बात ।
ब्रदर आज साइंस ने बेहद तरक्की की है । हर रोग का इलाज हमारे पास है । फ़िर इसका भी है । डाक्टर ने पता नहीं क्या अब्नार्मल ब्रेन आर्डर डिस प्लेमेंटरी जैसा कुछ ..हो हो हो...अजीव सा नाम लिख कर पर्चा बना दिया । उसकी मेडीसंस वह खाती है । अभी मुझे देखो । वैसे चीनी..कितनी महंगी है । और आदमी के अन्दर शुगर बढी हुयी है हो ..हो..हो.. है ना हँसने की बात । मेरी खुद बढी हुयी है । अभी चैक अप कराऊँ । डाक्टर पचासों रोग और भी निकाल देंगे ।.. हो..हो..हो.. आप यंग हो । स्वस्थ लगते हो । बट बिलीव मी मि. । माडर्न मेडिकल साइंस आप में भी हजार कमी बता देगी ..हो..हो..हो..है ना हँसने की बात ।
- है ना हँसने की बात । पूरा अजायब घर । उसके नीचे जाने के बाद उसने सोचा - साले इंसान है । या किसी कार्टून फ़िल्म के करेक्टर । इनका कोई एंगल ही समझ नहीं आता । एक तो वो दो ही नहीं झेले जा रहे थे । ये तीसरा और आ गया । ये तो ऐसा लगता है । वह उनकी हेल्प के उद्देश्य से नहीं आया । वे उल्टा उस पर ऐहसान कर रहे हों । कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने । उसके कानों में पदमा जैसे फ़िर बोली - राजीव ।.. कहानी जो उसने शुरू की । उसे कैसे कोई और खत्म कर सकता है । ये कहानी है..? कहानी । कहानी उससे छोङी भी न जा रही थी । और पढना भी मुश्किल लग रहा था ।
एक बार तो उसे लगा । कहाँ वह फ़ालतू के झमेले में फ़ँस गया । भाङ में गयी कहानी । और उसका लिखने वाला । पर तभी उसे चुनौती सी देती आकर्षक पदमा नजर आती । और कहती - इस कहानी के तारतम्य को आगे बढाना । उसके सूत्र जोङना । तुम जैसे बच्चों का खेल नहीं ।.. सोचो । अगर वो ऐसा न करते । तो फ़िर इतनी दिलचस्प कहानी बन सकती थी ? क्या कमाल की कहानी लिखी उन्होंने ।
और तभी उसे मनसा का भी चैलेंज सा गूँजता - भाग जा बच्चे । ये साधना सिद्धि तन्त्र मन्त्र बच्चों के खेल नहीं ।

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