Re: कामवासना
Posted: 10 Dec 2014 09:59
इनमें दिन रात ऐसे ही झमेले हैं । इसलिये अभी भी समय है । दरअसल ये वो मार्ग है । जिस पर जाना तो आसान है । पर लौटने का कोई विकल्प ही नहीं है ।
हद हो गयी । जैसे उल्टा । जासूस किसी रहस्य को खोजने चला । और खुद रहस्य में फ़ँस गया । लेखक कहानी लिखने चला । और खुद कहानी हो गया । वह तो अपने मन में हीरोगीरी जैसा ख्याल करते हुये इसका एक एक तार जोङकर शान से इस उलझी गुत्थी को हल करने वाला था । और उसे लगता था । सब चकित से होकर उसको पूरा पूरा सहयोग करेंगे । पर यहाँ वह उल्टा जैसे भूल भुलैया में फ़ँस गया था । कहावत ही उलट गयी । खरबूजा छुरी पर गिरे । या छुरी खरबूजे पर । कटेगा खरबूजा ही । लेकिन यहाँ तो खरबूजा ही छुरी को काटने पर जैसे आमादा था ।
उसने मोबायल में समय देखा । रात के दस बजना चाहते थे । नीचे घर में शान्ति थी । पर हल्की हल्की टी वी चलने की आवाज आ रही थी । कुछ सोचता हुआ वह नीचे उतर आया ।
रात लगभग आधी होने वाली थी । पर वह अभी तक छत पर ही था । इस घर में उसका आज दूसरा दिन था । और वह कुछ कुछ तार मिलाने में कामयाब सा हुआ था । कल दिन में वह अधिकतर पदमा को वाच करता रहा था । लेकिन कोई खास कामयाबी हासिल न हुयी थी । सिवाय इसके । वह एक बेहद सुन्दर सलीकेदार कुशल गृहणी थी । बस उसमें एक बात वाकई अलग थी । उन्मुक्त सौन्दर्य युक्त उन्मुक्त यौवन । वह आम औरतों की तरह किसी जवान लङके पुरुष के सामने होने पर बार बार अपने सीने को ढांकने की बे फ़ालतू दिखावा कोशिश नहीं करती थी । या इसके उलट उसमें अनुराग दिखाते हुये बगलों को खुजाना । स्तनों को उभारना । जांघ नितम्बों को खुजाना । योनि के समीप खुजाना । जैसी क्रियायें भी नहीं करती थी । जो काम से अतृप्त औरत के खास लक्षण होते हैं । और ठीक इसके विपरीत किसी के प्रति कोई चाहत प्रदर्शन करते हुये अर्धनग्न स्तनों की झलक दिखा कर काम संकेत देना भी उसका आम लङकियों स्त्रियों जैसा स्वभाव नहीं था । वह जैसी स्थिति में होती थी । बस होती थी । वह न कभी कुछ अलग से दिखाती थी । न कुछ छिपाती थी । सहज सामान्य । जैसी है । है । लचकती मचकती हरी भरी फ़ूलों की डाली । अनछुआ सा नैसर्गिक सौन्दर्य ।
उसको इस तरह जानना । देखने में ये सामान्य अनावश्यक सी बात लगती है । पर किसी का स्वभाव चरित्र ज्ञात हो जाने पर उसे आगे जानना आसान हो जाता है । और वह यही तो जानने आया था ।
इसके साथ साथ आज दिन में उसकी एक पहेली और भी हल हुयी थी । जब वह गली के आगे चौराहे से सिगरेट खरीदने गया था । उसने एक सिगरेट सुलगायी थी । और मनोज के घर के ठीक सामने खङा था । जब उसकी निगाह गली के अन्तिम छोर तक गयी । अन्तिम छोर पर गली बन्द थी । यह देखते ही उसके दिमाग को एक झटका सा लगा । स्वतः ही उसकी निगाह मनोज के घर पर ऊपर से नीचे तक गयी । उस घर की बनाबट आम घरों की अपेक्षा किसी गोदाम जैसी थी । और वह हर तरफ़ से बन्द सा मालूम होता था ।
- बन्द गली । उसे भूतकाल से आते मनोज के शब्द सुनाई दिये - बन्द घर । जमीन के नीचे । अंधेरा बन्द कमरा ।
- हा हा हा । तभी उसके दिमाग में भूतकाल में जोगी बोला - बन्द गली । बन्द घर । जमीन के नीचे । अंधेरा बन्द कमरा । हा हा हा । एकदम सही पता ।
- बन्द गली । बन्द घर तो हुआ । उसने सोचा - अब जमीन के नीचे । अंधेरा बन्द कमरा । लेकिन कहाँ है वो कमरा ? अंधेरा बन्द कमरा । जमीन के नीचे । इसका सीधा सा मतलब था । मनोज के घर में कोई तल घर होना चाहिये ।
अब ये एक और नयी मुसीबत थी । ये रहस्यमय पता सीधा उसी अण्डर ग्राउण्ड रूम की ओर इशारा कर रहा था । लेकिन वह नया आदमी सीधा सीधा किसी से उसके घर के तल घर के बारे में कैसे पूछता । उस पर साले ये सब आदमी कम कार्टून ज्यादा थे । और वह रहस्यमय औरत ? साली यही नहीं समझ में आता । औरत है कि कोई जिन्दा चुङैल भूतनी है । अप्सरा है । यक्षिणी है । या कोई देवी वेवी है ? क्या है ?
लगता है । ये रहस्यमय परिवार छत पर अक्सर बैठने का खास शौकीन था । छत पर एक बङा तखत कुछ कुर्सियाँ और लम्बी लम्बी दो बैंचे पङी हुयी थी । वह एक बैंच पर साइड के हत्थे से कोहनी टिकाये अधलेटा सा यही सब सोच रहा था । उसकी उँगलियों में जलती हुयी सिगरेट फ़ँसी हुयी थी । जिससे निकलकर धुँयें की लकीर ऊपर को जा रही थी । स्ट्रीट लाइट के पोल पर जलती मरकरी टयूब का हल्का प्रकाश छत पर फ़ैला हुआ था । उसकी कलाई घङी की दोनों सुईयाँ बारह नम्बर पर आकर ठहर गयी थी । छोटी सुई बङी से कसकर चिपकी हुयी थी । और बङी ने उसे ताकत से नीचे दबा कर भींच लिया था । सेकेंड की सुई छटपटाती सी बैचेन चक्कर लगा रही थी ।
एक अजीव सी बैचेन टेंशन महसूस करते हुये उसने सिगरेट को मुँह से लगाकर कश लेना ही चाहा था कि अचानक वह चौंक गया । पदमा ऊपर आ रही थी । जीने पर उसके पैरों की आहट तो नहीं थी । लेकिन उसके पैरों में बजती पायल की मधुर छन छन वह आराम से सुन रहा था ।
उसका दिल अजीव से भय से तेजी से धक धक करने लगा । क्या माजरा था ? और कुछ ही पलों में उसके छक्के ही छूट गये । वह अकेली ही ऊपर आयी थी । और बङी शालीनता सलीके से उसके सामने दूसरी बैंच पर बैठ गयी । बङी अजीव और खास औरत थी । क्या खाम खां ही मरवायेगी उसे । रात के बारह बजे यूँ उसके पास आने का दूसरा कोई परिणाम हो ही नहीं सकता था ।
- वास्तव में जवानी ऐसी ही होती है । वह मादक अंगङाई लेकर बोली - रातों को नींद न आये । करवटें बदलो । तकिया दबाओ । आप ही आप उलट पुलट कर बिस्तर सिकोङ डालो ।..तुम्हारे साथ भी ऐसा होता होगा..ना । है ना । अकेले में नग्न लेटना । नग्न घूमना । होता है ना ।
वह जवानी के लक्षण बता रही थी । और उसे अपनी जिन्दगानी ही खतरे में महसूस हो रही थी । ये औरत वास्तव में खतरनाक थी । उसका पति देवर कोई आ जाये । फ़िर क्या होगा ? कोई भी सोच सकता है ।
- लेकिन..। वह फ़िर से सामान्य स्वर में बोली - ऐसा सबके साथ हो । ऐसा भी नहीं । वो दोनों भाई किसी थके घोङे के समान घोङे बेच कर सो रहे हैं । प्रेमियों की निशा नशीली हो उठी है । रजनी खुल कर बाँहें फ़ैलाये खङी है । चाँदनी चाँद को निहार रही है । सब कुछ कैसा मदहोश करने वाला नशीला नशीला है..है ना ।
अब क्या समझता वह इसको । सौभाग्य या दुर्भाग्य ? शायद दोनों । प्रयोग परीक्षण के लिये जैसे समय जिस माहौल और जिस प्रयोग वस्तु की आवश्यकता थी । वह खुद उसके पास चलकर आयी थी । और उसका रुख भी पूर्ण सकारात्मक था । क्या था इस रहस्यमय औरत के मन में ? वह कैसे जान पाता ।
- काऽऽम..सेक्सऽऽ । वह ऐसे धीमे मगर झंकृत कम्पित स्वर में बोली कि उसे दक्षिण की दिवंगत सेक्स सिम्बल अभिनेत्री सिल्क स्मिता के बोलने की स्टायल याद हो आयी - सिर्फ़ सेक्स । हाँ नितिन..बस तुम गौर से देखो । तो इस सृष्टि में काम.. सेक्स ही नजर आयेगा । हर स्त्री पुरुष के मन दिलोदिमाग में बस हर क्षण काम तरंगे ही दौङती रहती हैं । वो देखो । उसने दूर क्षितिज की ओर नाजुक उंगली से इशारा किया - ये जमीन आसमान से मिलने को सदैव आतुर रहती है । हमेशा अतृप्त । क्योंकि ये कभी उससे पूर्णतयाः मिल नहीं पाती । इसका पूर्ण सम्भोग कभी हो ही नहीं पाता । जबकि यहाँ से ऐसा लग रहा है कि ये दोनों हमेशा काम रत हैं । लेकिन इसकी निकटतम सच्चाई यही है कि इन दोनों में उतनी ही दूरी है । जितनी दूरी इनमें है । यहाँ से एक दूसरे में समाये आलिंगन वद्ध नजर आते । पर ज्यों ज्यों पास जाओ । इनका फ़ासला पता लगता है । लेकिन वहाँ से आगे फ़िर देखने पर यही लगता है कि वह आगे पूर्ण सम्भोग रत है । किसी मृग मरीचिका जैसा । दिखता कुछ और । सच्चाई कुछ और । है ना ।
अचानक उसने अपने सीने के पास मैक्सी को इस तरह हिलाया । जैसे कोई कीङा उसके अन्दर घुस गया हो । और फ़िर दोनों स्तनों को थामकर हिलाते हुये मानों मैक्सी को एडजस्ट किया । और फ़िर बेहद शालीनता से ऐसे बैठ गयी । जैसे एक बेहद संस्कारी और सुशीला औरत हो । और वह वेवश था । इसको देखने सुनने के सिवाय शायद कुछ नहीं कर सकता था ।
लेकिन यहीं बस नहीं । वह किसी एक्सपर्ट काम शिक्षिका की भांति मधुरता से प्रेम पूर्ण स्वर में बोली - ऐसे ही नदियों को देखो । वे समुद्र से मिलने को निरंतर दौङ रही है । उनकी ये प्यासी दौङ कभी खत्म होती है क्या ? हमेशा अतृप्त । प्रथ्वी को देखो । ये कितने ही बीजों का निरंतर गर्भाधान कराती है । ये कभी तृप्त हुयी क्या ? चकोर कभी चाँद से तृप्त हुआ क्या ? ये बेले लतायें हमेशा ही वृक्षों से लिपटी रहती हैं । कभी तृप्त हुयी क्या ? ये भंवरे हमेशा कलियों का रस लेते हैं । क्यों नहीं कभी तृप्त हो जाते । पशु कुत्ते अपनी मादा को सूंघते हुये उसके पीछे घूमते हैं । सांड गायों के पीछे घूमते हैं । बन्दर काम के इतने भूखे हैं । कभी भी । कहीं भी । सबके सामने ही सेक्स कर लेते हैं । वे कभी तृप्त हो जाते हैं क्या ?
- माय गाड ! प्लीज । पदमा जी प्लीज । एनफ़ । वह घबराकर बोला - आप रुक जाईये प्लीज । हम किसी और सबजेक्ट पर बात नहीं कर सकते क्या ?
- इसीलिये तो मैं कहती हूँ । वह मधुर घण्टियों के समान धीमे स्वर में हँसती हुयी बोली - कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने ।.. कहानी जो उसने शुरू की । उसे कैसे कोई और खत्म कर सकता है ? न कहानी तुमसे पढते बन रही है । और न ही छोङते ।
चलो बदलती हूँ सबजेक्ट । फ़िर वह जलती मरकरी टयूब को देखती हुयी बोली - तनहाईयों से घिर गयी हूँ मैं । वो जो कभी हसरत बन कर जागी थी मेरे दिल में । आज मेरे पैरों की जंजीर बन गयी है । दुनियाँ से बिलकुल अलग हो गयी हूँ मैं । जब प्रथम भेंट हुयी उनसे तो । मेरे तन मन में प्यारी सी अनुभूति हुयी । उनकी आँखों में देखने की हिम्मत नहीं थी मुझ में । फ़िर भी उन्हें जी भर के देखना चाहती थी । वो मन्द मन्द मुस्कराते हुये बातें करते । और लगातार देखते रहे मुझे । पर मैं संकोच वश उन्हें कोई जबाब न दे पाती । उस पल मुझे लगा ऐसे कि वो मुझे बहुत पसन्द करते हैं । उस दिन के बाद उनसे रोज होने लगी बातें । इन बातों को सुनकर उनके प्रति लगाव बहुत गहरा हो गया है । लेकिन वक्त ने सब कुछ उलट कर रख दिया है । अब घिर गयी हूँ मैं एक अजीब सी उदासी से । शायद वो भी घिर गये हों तन्हाईयों से । और भर गयी हो रोम रोम में उनके उदासी । फ़िर भी मन में ये आस है कि । कभी दुख के बादल छटेंगे और होगा खुशहाल सवेरा ।
कभी दुख के बादल छटेंगे और होगा खुशहाल सवेरा । खुशहाल सवेरा ? अचानक उसकी मृगनयनी आँखों में आँसुओं के मोती से झिलमिला उठे - मुझे कविता वगैरह लिखना नहीं आता । बस ये राजीव जी के प्रति मेरे दिली भाव भर थे । जो स्वतः मेरे ह्रदय से निकले थे । लेकिन अब मैं तुमसे एक सरल सा प्रश्न पूछती हूँ । ये सब जानने के बाद बताओ कि - क्या मैं वाकई राजीव जी से बहुत प्यार करती थी या हूँ ?
- निसंदेह । वह बिना कुछ सोचे झटके से बोला - बहुत प्यार । गहरा प्यार । अमर प्यार ।
- गलत । टोटल गलत । वह भावहीन स्वर में बोली - मुझे लगता है । तुम बिलकुल ही मूर्ख हो । सच तो ये है कि मैं राजीव जी को कोई प्यार ही नहीं करती । दरअसल में तो मैं प्यार का मतलब तक नहीं जानती । प्यार किस चिङिया का नाम होता है ? ये भी मुझे दूर दूर तक नहीं पता । क्योंकि..क्योंकि..व� �� सुबकने लगी ।
नितिन के दिमाग में जैसे विस्फ़ोट हुआ । उसका समस्त वजूद हिलकर रह गया ।
- इसीलिये मैं फ़िर कहती हूँ । वह संभल कर दोबारा बोली - तुम मेरा यकीन करो । कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने ।.. कहानी जो उसने शुरू की । उसे कैसे कोई और खत्म कर सकता है ? इसीलिये न कहानी तुमसे पढते बन रही है । और न ही छोङते ।
हद हो गयी । जैसे उल्टा । जासूस किसी रहस्य को खोजने चला । और खुद रहस्य में फ़ँस गया । लेखक कहानी लिखने चला । और खुद कहानी हो गया । वह तो अपने मन में हीरोगीरी जैसा ख्याल करते हुये इसका एक एक तार जोङकर शान से इस उलझी गुत्थी को हल करने वाला था । और उसे लगता था । सब चकित से होकर उसको पूरा पूरा सहयोग करेंगे । पर यहाँ वह उल्टा जैसे भूल भुलैया में फ़ँस गया था । कहावत ही उलट गयी । खरबूजा छुरी पर गिरे । या छुरी खरबूजे पर । कटेगा खरबूजा ही । लेकिन यहाँ तो खरबूजा ही छुरी को काटने पर जैसे आमादा था ।
उसने मोबायल में समय देखा । रात के दस बजना चाहते थे । नीचे घर में शान्ति थी । पर हल्की हल्की टी वी चलने की आवाज आ रही थी । कुछ सोचता हुआ वह नीचे उतर आया ।
रात लगभग आधी होने वाली थी । पर वह अभी तक छत पर ही था । इस घर में उसका आज दूसरा दिन था । और वह कुछ कुछ तार मिलाने में कामयाब सा हुआ था । कल दिन में वह अधिकतर पदमा को वाच करता रहा था । लेकिन कोई खास कामयाबी हासिल न हुयी थी । सिवाय इसके । वह एक बेहद सुन्दर सलीकेदार कुशल गृहणी थी । बस उसमें एक बात वाकई अलग थी । उन्मुक्त सौन्दर्य युक्त उन्मुक्त यौवन । वह आम औरतों की तरह किसी जवान लङके पुरुष के सामने होने पर बार बार अपने सीने को ढांकने की बे फ़ालतू दिखावा कोशिश नहीं करती थी । या इसके उलट उसमें अनुराग दिखाते हुये बगलों को खुजाना । स्तनों को उभारना । जांघ नितम्बों को खुजाना । योनि के समीप खुजाना । जैसी क्रियायें भी नहीं करती थी । जो काम से अतृप्त औरत के खास लक्षण होते हैं । और ठीक इसके विपरीत किसी के प्रति कोई चाहत प्रदर्शन करते हुये अर्धनग्न स्तनों की झलक दिखा कर काम संकेत देना भी उसका आम लङकियों स्त्रियों जैसा स्वभाव नहीं था । वह जैसी स्थिति में होती थी । बस होती थी । वह न कभी कुछ अलग से दिखाती थी । न कुछ छिपाती थी । सहज सामान्य । जैसी है । है । लचकती मचकती हरी भरी फ़ूलों की डाली । अनछुआ सा नैसर्गिक सौन्दर्य ।
उसको इस तरह जानना । देखने में ये सामान्य अनावश्यक सी बात लगती है । पर किसी का स्वभाव चरित्र ज्ञात हो जाने पर उसे आगे जानना आसान हो जाता है । और वह यही तो जानने आया था ।
इसके साथ साथ आज दिन में उसकी एक पहेली और भी हल हुयी थी । जब वह गली के आगे चौराहे से सिगरेट खरीदने गया था । उसने एक सिगरेट सुलगायी थी । और मनोज के घर के ठीक सामने खङा था । जब उसकी निगाह गली के अन्तिम छोर तक गयी । अन्तिम छोर पर गली बन्द थी । यह देखते ही उसके दिमाग को एक झटका सा लगा । स्वतः ही उसकी निगाह मनोज के घर पर ऊपर से नीचे तक गयी । उस घर की बनाबट आम घरों की अपेक्षा किसी गोदाम जैसी थी । और वह हर तरफ़ से बन्द सा मालूम होता था ।
- बन्द गली । उसे भूतकाल से आते मनोज के शब्द सुनाई दिये - बन्द घर । जमीन के नीचे । अंधेरा बन्द कमरा ।
- हा हा हा । तभी उसके दिमाग में भूतकाल में जोगी बोला - बन्द गली । बन्द घर । जमीन के नीचे । अंधेरा बन्द कमरा । हा हा हा । एकदम सही पता ।
- बन्द गली । बन्द घर तो हुआ । उसने सोचा - अब जमीन के नीचे । अंधेरा बन्द कमरा । लेकिन कहाँ है वो कमरा ? अंधेरा बन्द कमरा । जमीन के नीचे । इसका सीधा सा मतलब था । मनोज के घर में कोई तल घर होना चाहिये ।
अब ये एक और नयी मुसीबत थी । ये रहस्यमय पता सीधा उसी अण्डर ग्राउण्ड रूम की ओर इशारा कर रहा था । लेकिन वह नया आदमी सीधा सीधा किसी से उसके घर के तल घर के बारे में कैसे पूछता । उस पर साले ये सब आदमी कम कार्टून ज्यादा थे । और वह रहस्यमय औरत ? साली यही नहीं समझ में आता । औरत है कि कोई जिन्दा चुङैल भूतनी है । अप्सरा है । यक्षिणी है । या कोई देवी वेवी है ? क्या है ?
लगता है । ये रहस्यमय परिवार छत पर अक्सर बैठने का खास शौकीन था । छत पर एक बङा तखत कुछ कुर्सियाँ और लम्बी लम्बी दो बैंचे पङी हुयी थी । वह एक बैंच पर साइड के हत्थे से कोहनी टिकाये अधलेटा सा यही सब सोच रहा था । उसकी उँगलियों में जलती हुयी सिगरेट फ़ँसी हुयी थी । जिससे निकलकर धुँयें की लकीर ऊपर को जा रही थी । स्ट्रीट लाइट के पोल पर जलती मरकरी टयूब का हल्का प्रकाश छत पर फ़ैला हुआ था । उसकी कलाई घङी की दोनों सुईयाँ बारह नम्बर पर आकर ठहर गयी थी । छोटी सुई बङी से कसकर चिपकी हुयी थी । और बङी ने उसे ताकत से नीचे दबा कर भींच लिया था । सेकेंड की सुई छटपटाती सी बैचेन चक्कर लगा रही थी ।
एक अजीव सी बैचेन टेंशन महसूस करते हुये उसने सिगरेट को मुँह से लगाकर कश लेना ही चाहा था कि अचानक वह चौंक गया । पदमा ऊपर आ रही थी । जीने पर उसके पैरों की आहट तो नहीं थी । लेकिन उसके पैरों में बजती पायल की मधुर छन छन वह आराम से सुन रहा था ।
उसका दिल अजीव से भय से तेजी से धक धक करने लगा । क्या माजरा था ? और कुछ ही पलों में उसके छक्के ही छूट गये । वह अकेली ही ऊपर आयी थी । और बङी शालीनता सलीके से उसके सामने दूसरी बैंच पर बैठ गयी । बङी अजीव और खास औरत थी । क्या खाम खां ही मरवायेगी उसे । रात के बारह बजे यूँ उसके पास आने का दूसरा कोई परिणाम हो ही नहीं सकता था ।
- वास्तव में जवानी ऐसी ही होती है । वह मादक अंगङाई लेकर बोली - रातों को नींद न आये । करवटें बदलो । तकिया दबाओ । आप ही आप उलट पुलट कर बिस्तर सिकोङ डालो ।..तुम्हारे साथ भी ऐसा होता होगा..ना । है ना । अकेले में नग्न लेटना । नग्न घूमना । होता है ना ।
वह जवानी के लक्षण बता रही थी । और उसे अपनी जिन्दगानी ही खतरे में महसूस हो रही थी । ये औरत वास्तव में खतरनाक थी । उसका पति देवर कोई आ जाये । फ़िर क्या होगा ? कोई भी सोच सकता है ।
- लेकिन..। वह फ़िर से सामान्य स्वर में बोली - ऐसा सबके साथ हो । ऐसा भी नहीं । वो दोनों भाई किसी थके घोङे के समान घोङे बेच कर सो रहे हैं । प्रेमियों की निशा नशीली हो उठी है । रजनी खुल कर बाँहें फ़ैलाये खङी है । चाँदनी चाँद को निहार रही है । सब कुछ कैसा मदहोश करने वाला नशीला नशीला है..है ना ।
अब क्या समझता वह इसको । सौभाग्य या दुर्भाग्य ? शायद दोनों । प्रयोग परीक्षण के लिये जैसे समय जिस माहौल और जिस प्रयोग वस्तु की आवश्यकता थी । वह खुद उसके पास चलकर आयी थी । और उसका रुख भी पूर्ण सकारात्मक था । क्या था इस रहस्यमय औरत के मन में ? वह कैसे जान पाता ।
- काऽऽम..सेक्सऽऽ । वह ऐसे धीमे मगर झंकृत कम्पित स्वर में बोली कि उसे दक्षिण की दिवंगत सेक्स सिम्बल अभिनेत्री सिल्क स्मिता के बोलने की स्टायल याद हो आयी - सिर्फ़ सेक्स । हाँ नितिन..बस तुम गौर से देखो । तो इस सृष्टि में काम.. सेक्स ही नजर आयेगा । हर स्त्री पुरुष के मन दिलोदिमाग में बस हर क्षण काम तरंगे ही दौङती रहती हैं । वो देखो । उसने दूर क्षितिज की ओर नाजुक उंगली से इशारा किया - ये जमीन आसमान से मिलने को सदैव आतुर रहती है । हमेशा अतृप्त । क्योंकि ये कभी उससे पूर्णतयाः मिल नहीं पाती । इसका पूर्ण सम्भोग कभी हो ही नहीं पाता । जबकि यहाँ से ऐसा लग रहा है कि ये दोनों हमेशा काम रत हैं । लेकिन इसकी निकटतम सच्चाई यही है कि इन दोनों में उतनी ही दूरी है । जितनी दूरी इनमें है । यहाँ से एक दूसरे में समाये आलिंगन वद्ध नजर आते । पर ज्यों ज्यों पास जाओ । इनका फ़ासला पता लगता है । लेकिन वहाँ से आगे फ़िर देखने पर यही लगता है कि वह आगे पूर्ण सम्भोग रत है । किसी मृग मरीचिका जैसा । दिखता कुछ और । सच्चाई कुछ और । है ना ।
अचानक उसने अपने सीने के पास मैक्सी को इस तरह हिलाया । जैसे कोई कीङा उसके अन्दर घुस गया हो । और फ़िर दोनों स्तनों को थामकर हिलाते हुये मानों मैक्सी को एडजस्ट किया । और फ़िर बेहद शालीनता से ऐसे बैठ गयी । जैसे एक बेहद संस्कारी और सुशीला औरत हो । और वह वेवश था । इसको देखने सुनने के सिवाय शायद कुछ नहीं कर सकता था ।
लेकिन यहीं बस नहीं । वह किसी एक्सपर्ट काम शिक्षिका की भांति मधुरता से प्रेम पूर्ण स्वर में बोली - ऐसे ही नदियों को देखो । वे समुद्र से मिलने को निरंतर दौङ रही है । उनकी ये प्यासी दौङ कभी खत्म होती है क्या ? हमेशा अतृप्त । प्रथ्वी को देखो । ये कितने ही बीजों का निरंतर गर्भाधान कराती है । ये कभी तृप्त हुयी क्या ? चकोर कभी चाँद से तृप्त हुआ क्या ? ये बेले लतायें हमेशा ही वृक्षों से लिपटी रहती हैं । कभी तृप्त हुयी क्या ? ये भंवरे हमेशा कलियों का रस लेते हैं । क्यों नहीं कभी तृप्त हो जाते । पशु कुत्ते अपनी मादा को सूंघते हुये उसके पीछे घूमते हैं । सांड गायों के पीछे घूमते हैं । बन्दर काम के इतने भूखे हैं । कभी भी । कहीं भी । सबके सामने ही सेक्स कर लेते हैं । वे कभी तृप्त हो जाते हैं क्या ?
- माय गाड ! प्लीज । पदमा जी प्लीज । एनफ़ । वह घबराकर बोला - आप रुक जाईये प्लीज । हम किसी और सबजेक्ट पर बात नहीं कर सकते क्या ?
- इसीलिये तो मैं कहती हूँ । वह मधुर घण्टियों के समान धीमे स्वर में हँसती हुयी बोली - कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने ।.. कहानी जो उसने शुरू की । उसे कैसे कोई और खत्म कर सकता है ? न कहानी तुमसे पढते बन रही है । और न ही छोङते ।
चलो बदलती हूँ सबजेक्ट । फ़िर वह जलती मरकरी टयूब को देखती हुयी बोली - तनहाईयों से घिर गयी हूँ मैं । वो जो कभी हसरत बन कर जागी थी मेरे दिल में । आज मेरे पैरों की जंजीर बन गयी है । दुनियाँ से बिलकुल अलग हो गयी हूँ मैं । जब प्रथम भेंट हुयी उनसे तो । मेरे तन मन में प्यारी सी अनुभूति हुयी । उनकी आँखों में देखने की हिम्मत नहीं थी मुझ में । फ़िर भी उन्हें जी भर के देखना चाहती थी । वो मन्द मन्द मुस्कराते हुये बातें करते । और लगातार देखते रहे मुझे । पर मैं संकोच वश उन्हें कोई जबाब न दे पाती । उस पल मुझे लगा ऐसे कि वो मुझे बहुत पसन्द करते हैं । उस दिन के बाद उनसे रोज होने लगी बातें । इन बातों को सुनकर उनके प्रति लगाव बहुत गहरा हो गया है । लेकिन वक्त ने सब कुछ उलट कर रख दिया है । अब घिर गयी हूँ मैं एक अजीब सी उदासी से । शायद वो भी घिर गये हों तन्हाईयों से । और भर गयी हो रोम रोम में उनके उदासी । फ़िर भी मन में ये आस है कि । कभी दुख के बादल छटेंगे और होगा खुशहाल सवेरा ।
कभी दुख के बादल छटेंगे और होगा खुशहाल सवेरा । खुशहाल सवेरा ? अचानक उसकी मृगनयनी आँखों में आँसुओं के मोती से झिलमिला उठे - मुझे कविता वगैरह लिखना नहीं आता । बस ये राजीव जी के प्रति मेरे दिली भाव भर थे । जो स्वतः मेरे ह्रदय से निकले थे । लेकिन अब मैं तुमसे एक सरल सा प्रश्न पूछती हूँ । ये सब जानने के बाद बताओ कि - क्या मैं वाकई राजीव जी से बहुत प्यार करती थी या हूँ ?
- निसंदेह । वह बिना कुछ सोचे झटके से बोला - बहुत प्यार । गहरा प्यार । अमर प्यार ।
- गलत । टोटल गलत । वह भावहीन स्वर में बोली - मुझे लगता है । तुम बिलकुल ही मूर्ख हो । सच तो ये है कि मैं राजीव जी को कोई प्यार ही नहीं करती । दरअसल में तो मैं प्यार का मतलब तक नहीं जानती । प्यार किस चिङिया का नाम होता है ? ये भी मुझे दूर दूर तक नहीं पता । क्योंकि..क्योंकि..व� �� सुबकने लगी ।
नितिन के दिमाग में जैसे विस्फ़ोट हुआ । उसका समस्त वजूद हिलकर रह गया ।
- इसीलिये मैं फ़िर कहती हूँ । वह संभल कर दोबारा बोली - तुम मेरा यकीन करो । कमाल की कहानी लिखी है । इस कहानी के लेखक ने ।.. कहानी जो उसने शुरू की । उसे कैसे कोई और खत्म कर सकता है ? इसीलिये न कहानी तुमसे पढते बन रही है । और न ही छोङते ।