Re: कामवासना
Posted: 10 Dec 2014 10:19
उसके मुर्दा जिस्म में वह अचानक प्राण बन कर आया था । और खुशियाँ जैसे अचानक उस रात उसकी झोली में आ गिरी थी । जैसे भाग्य की देवी मेहरबान हुयी हो ।
- खाना । वह कमजोर स्वर में बोला - मुझसे खाना भी न खाया गया । मैं भूखा हूँ ।
उसके आँसू निकल आये । अब खाना कहाँ से लाये वो । खाना तो उसने शाम को ही फ़ेंक दिया था । और जीने में ताला लगा था । खाने का कोई उपाय ही न था । वेवशी में वह रोने को हो आयी । और अभी कुछ कहना ही चाहती थी ।
- चल । वह कुछ खोलता हुआ सा बोला - हम दोनों खाना खाते हैं । माँ ने हम दोनों के लिये पराठें बनाये हैं । बहुत सारे ।
दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम । वो भूखा उठाता अवश्य है । पर भूखा सुलाता नहीं । जलचर जीव बसे जल में । उनको जल में भोजन देता । नभचर जीव बसे नभ में । उनको नभ में भोजन देता । कहीं भी कैसी भी कठिन से कठिन स्थिति हो । वो भूखे को भोजन देता है । वो अपने बच्चों को भूखा नहीं देख सकता । भूखा नहीं रहने देता । फ़िर दो प्रेमियों को कैसे रहने देता ?
नीबू के अचार से वो माँ की ममता के स्वादिष्ट पराठें एक दूसरे को अपने हाथ से खिलाने लगे । वो खा रहे थे । और निशब्द रो रहे थे । आँसू जैसे उनके दिल का सारा गम ही धोने में लगे थे ।
- विशाल । वह निराशा से बोली - हमारा क्या होगा ? हम कैसे मिल पायेंगे ।
- तू चिन्ता न कर । वह उसको थपथपा कर बोला - हम यहाँ से भाग जायेंगे । बहुत दूर । फ़िर हमें कोई जुदा न कर पायेगा ।
- मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । रात की रानी उसको अकेला देख कर बात करती हुयी बोली ।
- कभी नहीं । वह चंचल मुस्कान से उत्तर देते हुये बोली - कैसे भूल सकती हूँ ।
कहाँ और किस हाल में होगा वह ? उसने टहलते हुये सोचा । उस रात तब उसकी जान में जान आयी । जब दो घन्टे बाद वह सकुशल वापिस उतर कर चला गया । और कहीं कैसी भी गङबङ नहीं हुयी । पर अभी आगे का कुछ पता न था । क्या होगा ? कैसे होगा ? कोई उपाय भी न था । जिससे वह कुछ खोज खबर रख सकती थी ।
उसकी रात ऐसे ही टहलते हुये बीतती थी । उसकी माँ भाभी घर के और लोग उसकी हालत जानते थे । लेकिन शायद कोई कुछ न कर सकता था । सब जैसे अपने अपने दायरों में कैद थे । दायरे । सामाजिक दायरे । जैसे वह छत के दायरे में कैद थी ।
प्यार उसे आज कैसे मोढ पर ले आया था । प्यार से पैदा हुयी तनहाई । जुदाई से पैदा हुयी तङप । विरह से पैदा हुयी कसक । शायद आज उसे वास्तविक प्यार से रूबरू करा रही थी । वास्तविक प्यार । जिसमें लङके को सुन्दर लङकी का खिंचाव नहीं होता । लङकी को उसके पौरुषेय गुणों के प्रति आकर्षण नहीं होता । यह सब तो वह देख ही नहीं पाते थे । सोच ही नहीं पाते थे । वह तो मिलते ही एक दूसरे की बाहों में समा जाते । और एक दूसरे की धङकन सुनते । बस इससे ज्यादा प्यार का मतलब ही उन्हें न पता था ।
दैहिक वासना ने जैसे उनके प्यार को छुआ भी न था । उस तरफ़ उनकी भावना तक न जाती थी । कभी कोई ख्याल तक न आता ।
उसने उसके वक्षों पर कभी वासना युक्त स्पर्श तक न किया था । उसने कभी वासना से उसके होंठ भी न चूमे थे । उसने कभी जी भर कर उसका चेहरा न देखा था । उसकी आँखों में आँखें न डाली थी । और खुद उसे कभी ऐसी चाहत न हुयी कि वह ऐसा करे । फ़िर उनके बीच किस प्रकार के आकर्षण का चुम्बकत्व था ? जो वे घन्टों एक दूसरे के पास बैठे एक अजीब सा सुख महसूस करते थे । बस एक दूसरे को देखते हुये । एक दूसरे की समीपता का अहसास ।
मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । रात में जागने वाली टिटहरी उससे बोली ।
- हाँ री । वह प्यार से बोली - तू सच कहती है । नहीं भूलूँगी । कभी नहीं ।
क्या अजीब होता है ये प्यार भी । क्या कोई जान पाया । उसने टहलते हुये सोचा । शायद यही होता है प्यार । जो आज उसने इस नजरबन्दी में महसूस किया । प्यार पे जब जब पहरा हुआ है । प्यार और भी गहरा गहरा हुआ है । ये दुनियावी जुल्म उसे प्यार से दूर करने के लिये किया गया था । पर क्या ये पागल दुनियाँ वाले नहीं जानते थे । इससे उसका प्यार और भी गहरा हुआ था । अब तो उसकी समस्त सोच ही सिर्फ़ विशाल पर ही जाकर ठहर गयी थी । सिर्फ़ विशाल पर ।
प्यार तो जैसे दो शरीरों का नहीं । दो रूहों का मिलन होता है । जन्म जन्म से एक दूसरे के लिये प्यासे दो इंसान । सदियों से एक दूसरी की तलाश में भटकते हुये । फ़िर कभी किसी जन्म में जब मिलते हैं । एक दूसरे को पहचान लेते हैं । और एक दूसरे की ओर खिंचने लगते हैं । और एक दूसरे के आकर्षण में जैसे किसी अदृश्य डोर से बँध जाते हैं ।
- मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । रात में फ़ैली खामोशी बोली ।
- हाँ । वह शून्य 0 में देखती हुयी बोली - प्यार नहीं भुलाया जा सकता ।
- बेटी । उसकी माँ बोली - आखिर तूने क्या सोचा । ऐसा कब तक चलेगा ।
- माँ ! वह उस उदास रात में छत पर टहलती हुयी भावहीन सी कहीं खोयी खोयी उसको देखते हुये बोली - शायद तुम प्यार को नहीं जानती । प्यार क्या अजीव शै है । इसे सिर्फ़ प्रेमी ही जान सकते हैं । प्यार की कीमत सिर्फ़ प्रेमी ही जान सकते हैं । जिसके दिल में प्यार ही नहीं । वो इसे कभी नहीं समझ सकते । हाँ माँ कभी नहीं समझ सकते ।
प्यार के लिये तो । वह मुँडेर पर हाथ रख कर बोली - अगर जान भी देनी पङे । तो भी प्रेमी खुशी खुशी सूली चढ जाते हैं । प्यार की ये शमा अपने परवाने के लिये जीवन भर जलती ही रहती है । पर..पर तुम दुखी न हो माँ । मुझे तुझसे और अपने बाबुल से कोई शिकायत नहीं । शायद विरहा की जलन में सुलगना हम प्रेमियों की किस्मत में ही लिखा होता है ।
मजबूर सी ठकुराइन यकायक रो पङी । उसने अपनी नाजों पली बेटी को कस कर सीने से लगा लिया । और फ़ूट फ़ूट कर रोने लगी । वह दीवानी सी इस पगली मोहब्बत को चूम रही थी । उसकी फ़ूल सी बेटी के साथ अचानक क्या हुआ था । उसकी किस्मत ने एकाएक कैसा पलटा खाया था ।
- हे प्रभु ! उसने दुआ के हाथ उठाये - मेरी बेटी पर दया करना । दया करना प्रभु । इसके जीवन की गाङी कैसे चलेगी ।
छुक..छुक..छुक का मधुर संगीत गुनगुनाती रेल मानों प्यार की पटरी पर दौङते हुये मंजिल की ओर जाने लगी । किसी बुरे ख्वाव की तरह दुखद अतीत जैसे पीछे छूट रहा था । उसने खिङकी से बाहर झाँका ।
- मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । ट्रेन के साथ साथ तेजी से पीछे छूटते हुये पेङ बोले ।
- हाँ हाँ नहीं भूलूँगी । वह शोख निगाहों से बोली - कभी नहीं ।
जिन्दगी का सफ़र भी जैसे रेल की तरह उमृ की पटरी पर दौङ रहा है । गाङी दौङने लगी थी । किसी समाज समूह की तरह अलग अलग मंजिलों के मुसाफ़िर अपनी जगह पर बोगी में बैठ गये थे । रोमा के सामने ही एक युवा प्रेमी लङका खिङकी से बाहर झांकता हुआ अपने मोबायल पर बजते गीत भाव में बहता हुआ अपनी प्रेमिका की याद में खोया हुआ था - तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । प्यार क्या शै है मियाँ.. प्यार की कीमत जानो । प्यार कर ले कोई उसे । तो गनीमत जानो । ये दुनियाँ प्यार के किस्से । ये दुनियाँ प्यार के किस्से । मुझे जब भी सुनाती है । वो लङकी याद आती है । वो लङकी याद आती है । वो लङकी याद आती है ।
- बेटी । उसकी माँ बोली - जिद्दी ठाकुर ने फ़ैसला किया है । तुझे शहर के मकान में रखेंगे । तू वहीं रह कर अपनी पढाई करेगी । आखिर तुझे कब तक यूँ कैद में रखें । मुझे दुख है । भगवान ने जाने क्या तेरी किस्मत में लिखा है ।
- माँ । वह भावहीन स्वर में बोली - हम प्रेमियों की किस्मत भगवान नहीं लिखते । प्रेमी स्वयं अपनी किस्मत लिखते हैं । प्रेमियों की जिन्दगी के प्रेम गृन्थ के हर पन्ने पर सिर्फ़ प्रेम लिखा होता है । एक दूसरे के लिये मर मिटने का प्रेम ।
वह ठाकुर की पत्नी थी । लेकिन उससे ज्यादा उसकी माँ थी । अपनी पगली दीवानी लङकी के लिये वह क्या करे ।
जिससे उसे सुख हो । शायद वह किसी तरह भी न सोच पा रही थी ।
- मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । खिङकी से नजर आते गाँव बोले ।
- तुम ठीक कहते हो । वह प्यार से बोली - नहीं भूलूँगी ।
न चाहते हुये भी उस विरहा गीत के मधुर बोल फ़िर उसे खींचने लगे । किस प्रेमी के दिल की तङप थी यह - तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । कभी खुशबू भरे खत को सिरहाने रख कर सोती थी । कभी यादों में बिस्तर से लिपट कर खूब रोती थी । कभी आँचल भिगोती थी । कभी तकिया भिगोती थी । कभी तकिया भिगोती थी । ये उसकी सादगी है जो । ये उसकी सादगी है जो । हमें अब भी रुलाती है । वो लङकी याद आती है । वो लङकी याद आती है । वो लङकी याद आती है ।
जुदाई में याद की तङप से और भी तङपाते मधुर गीत ने डिब्बे में एक सन्नाटा सा कर दिया था । हरेक को जैसे अपना प्रेमी याद आ रहा था । लङके के चेहरे पर प्रेम उदासी फ़ैली हुयी थी । ठीक सामने बैठी सुन्दर जवान लङकी रोमा तक में उसकी कोई दिलचस्पी न थी । उसने उसे एक निगाह तक न देखा था । और अपनी प्रेमिका की विरह याद में खोया वह लगातार खिङकी से बाहर ही देख रहा था । पता नहीं इसकी प्रेमिका कहाँ थी ? उसने सोचा । और पता नहीं उसका प्रेमी कहाँ था ?
- मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । गीत के बोलों में प्रेमियों की रूह बोली ।
- नहीं भूलूँगी । वह गुनगुनाई - मैं नहीं भूल सकती ।
दीन दुनियाँ से बेखबर वह प्रेमी नम आँखों से जैसे रेल के सहारे दौङती अधीर प्रेमिका को ही देख रहा था । दोनों की एक ही बात थी । उसकी कल्पना में प्रेमी था । और उसकी कल्पना में उसकी प्रेमिका - तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । तुम ताना तुम ।
- खाना । वह कमजोर स्वर में बोला - मुझसे खाना भी न खाया गया । मैं भूखा हूँ ।
उसके आँसू निकल आये । अब खाना कहाँ से लाये वो । खाना तो उसने शाम को ही फ़ेंक दिया था । और जीने में ताला लगा था । खाने का कोई उपाय ही न था । वेवशी में वह रोने को हो आयी । और अभी कुछ कहना ही चाहती थी ।
- चल । वह कुछ खोलता हुआ सा बोला - हम दोनों खाना खाते हैं । माँ ने हम दोनों के लिये पराठें बनाये हैं । बहुत सारे ।
दाने दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम । वो भूखा उठाता अवश्य है । पर भूखा सुलाता नहीं । जलचर जीव बसे जल में । उनको जल में भोजन देता । नभचर जीव बसे नभ में । उनको नभ में भोजन देता । कहीं भी कैसी भी कठिन से कठिन स्थिति हो । वो भूखे को भोजन देता है । वो अपने बच्चों को भूखा नहीं देख सकता । भूखा नहीं रहने देता । फ़िर दो प्रेमियों को कैसे रहने देता ?
नीबू के अचार से वो माँ की ममता के स्वादिष्ट पराठें एक दूसरे को अपने हाथ से खिलाने लगे । वो खा रहे थे । और निशब्द रो रहे थे । आँसू जैसे उनके दिल का सारा गम ही धोने में लगे थे ।
- विशाल । वह निराशा से बोली - हमारा क्या होगा ? हम कैसे मिल पायेंगे ।
- तू चिन्ता न कर । वह उसको थपथपा कर बोला - हम यहाँ से भाग जायेंगे । बहुत दूर । फ़िर हमें कोई जुदा न कर पायेगा ।
- मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । रात की रानी उसको अकेला देख कर बात करती हुयी बोली ।
- कभी नहीं । वह चंचल मुस्कान से उत्तर देते हुये बोली - कैसे भूल सकती हूँ ।
कहाँ और किस हाल में होगा वह ? उसने टहलते हुये सोचा । उस रात तब उसकी जान में जान आयी । जब दो घन्टे बाद वह सकुशल वापिस उतर कर चला गया । और कहीं कैसी भी गङबङ नहीं हुयी । पर अभी आगे का कुछ पता न था । क्या होगा ? कैसे होगा ? कोई उपाय भी न था । जिससे वह कुछ खोज खबर रख सकती थी ।
उसकी रात ऐसे ही टहलते हुये बीतती थी । उसकी माँ भाभी घर के और लोग उसकी हालत जानते थे । लेकिन शायद कोई कुछ न कर सकता था । सब जैसे अपने अपने दायरों में कैद थे । दायरे । सामाजिक दायरे । जैसे वह छत के दायरे में कैद थी ।
प्यार उसे आज कैसे मोढ पर ले आया था । प्यार से पैदा हुयी तनहाई । जुदाई से पैदा हुयी तङप । विरह से पैदा हुयी कसक । शायद आज उसे वास्तविक प्यार से रूबरू करा रही थी । वास्तविक प्यार । जिसमें लङके को सुन्दर लङकी का खिंचाव नहीं होता । लङकी को उसके पौरुषेय गुणों के प्रति आकर्षण नहीं होता । यह सब तो वह देख ही नहीं पाते थे । सोच ही नहीं पाते थे । वह तो मिलते ही एक दूसरे की बाहों में समा जाते । और एक दूसरे की धङकन सुनते । बस इससे ज्यादा प्यार का मतलब ही उन्हें न पता था ।
दैहिक वासना ने जैसे उनके प्यार को छुआ भी न था । उस तरफ़ उनकी भावना तक न जाती थी । कभी कोई ख्याल तक न आता ।
उसने उसके वक्षों पर कभी वासना युक्त स्पर्श तक न किया था । उसने कभी वासना से उसके होंठ भी न चूमे थे । उसने कभी जी भर कर उसका चेहरा न देखा था । उसकी आँखों में आँखें न डाली थी । और खुद उसे कभी ऐसी चाहत न हुयी कि वह ऐसा करे । फ़िर उनके बीच किस प्रकार के आकर्षण का चुम्बकत्व था ? जो वे घन्टों एक दूसरे के पास बैठे एक अजीब सा सुख महसूस करते थे । बस एक दूसरे को देखते हुये । एक दूसरे की समीपता का अहसास ।
मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । रात में जागने वाली टिटहरी उससे बोली ।
- हाँ री । वह प्यार से बोली - तू सच कहती है । नहीं भूलूँगी । कभी नहीं ।
क्या अजीब होता है ये प्यार भी । क्या कोई जान पाया । उसने टहलते हुये सोचा । शायद यही होता है प्यार । जो आज उसने इस नजरबन्दी में महसूस किया । प्यार पे जब जब पहरा हुआ है । प्यार और भी गहरा गहरा हुआ है । ये दुनियावी जुल्म उसे प्यार से दूर करने के लिये किया गया था । पर क्या ये पागल दुनियाँ वाले नहीं जानते थे । इससे उसका प्यार और भी गहरा हुआ था । अब तो उसकी समस्त सोच ही सिर्फ़ विशाल पर ही जाकर ठहर गयी थी । सिर्फ़ विशाल पर ।
प्यार तो जैसे दो शरीरों का नहीं । दो रूहों का मिलन होता है । जन्म जन्म से एक दूसरे के लिये प्यासे दो इंसान । सदियों से एक दूसरी की तलाश में भटकते हुये । फ़िर कभी किसी जन्म में जब मिलते हैं । एक दूसरे को पहचान लेते हैं । और एक दूसरे की ओर खिंचने लगते हैं । और एक दूसरे के आकर्षण में जैसे किसी अदृश्य डोर से बँध जाते हैं ।
- मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । रात में फ़ैली खामोशी बोली ।
- हाँ । वह शून्य 0 में देखती हुयी बोली - प्यार नहीं भुलाया जा सकता ।
- बेटी । उसकी माँ बोली - आखिर तूने क्या सोचा । ऐसा कब तक चलेगा ।
- माँ ! वह उस उदास रात में छत पर टहलती हुयी भावहीन सी कहीं खोयी खोयी उसको देखते हुये बोली - शायद तुम प्यार को नहीं जानती । प्यार क्या अजीव शै है । इसे सिर्फ़ प्रेमी ही जान सकते हैं । प्यार की कीमत सिर्फ़ प्रेमी ही जान सकते हैं । जिसके दिल में प्यार ही नहीं । वो इसे कभी नहीं समझ सकते । हाँ माँ कभी नहीं समझ सकते ।
प्यार के लिये तो । वह मुँडेर पर हाथ रख कर बोली - अगर जान भी देनी पङे । तो भी प्रेमी खुशी खुशी सूली चढ जाते हैं । प्यार की ये शमा अपने परवाने के लिये जीवन भर जलती ही रहती है । पर..पर तुम दुखी न हो माँ । मुझे तुझसे और अपने बाबुल से कोई शिकायत नहीं । शायद विरहा की जलन में सुलगना हम प्रेमियों की किस्मत में ही लिखा होता है ।
मजबूर सी ठकुराइन यकायक रो पङी । उसने अपनी नाजों पली बेटी को कस कर सीने से लगा लिया । और फ़ूट फ़ूट कर रोने लगी । वह दीवानी सी इस पगली मोहब्बत को चूम रही थी । उसकी फ़ूल सी बेटी के साथ अचानक क्या हुआ था । उसकी किस्मत ने एकाएक कैसा पलटा खाया था ।
- हे प्रभु ! उसने दुआ के हाथ उठाये - मेरी बेटी पर दया करना । दया करना प्रभु । इसके जीवन की गाङी कैसे चलेगी ।
छुक..छुक..छुक का मधुर संगीत गुनगुनाती रेल मानों प्यार की पटरी पर दौङते हुये मंजिल की ओर जाने लगी । किसी बुरे ख्वाव की तरह दुखद अतीत जैसे पीछे छूट रहा था । उसने खिङकी से बाहर झाँका ।
- मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । ट्रेन के साथ साथ तेजी से पीछे छूटते हुये पेङ बोले ।
- हाँ हाँ नहीं भूलूँगी । वह शोख निगाहों से बोली - कभी नहीं ।
जिन्दगी का सफ़र भी जैसे रेल की तरह उमृ की पटरी पर दौङ रहा है । गाङी दौङने लगी थी । किसी समाज समूह की तरह अलग अलग मंजिलों के मुसाफ़िर अपनी जगह पर बोगी में बैठ गये थे । रोमा के सामने ही एक युवा प्रेमी लङका खिङकी से बाहर झांकता हुआ अपने मोबायल पर बजते गीत भाव में बहता हुआ अपनी प्रेमिका की याद में खोया हुआ था - तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । प्यार क्या शै है मियाँ.. प्यार की कीमत जानो । प्यार कर ले कोई उसे । तो गनीमत जानो । ये दुनियाँ प्यार के किस्से । ये दुनियाँ प्यार के किस्से । मुझे जब भी सुनाती है । वो लङकी याद आती है । वो लङकी याद आती है । वो लङकी याद आती है ।
- बेटी । उसकी माँ बोली - जिद्दी ठाकुर ने फ़ैसला किया है । तुझे शहर के मकान में रखेंगे । तू वहीं रह कर अपनी पढाई करेगी । आखिर तुझे कब तक यूँ कैद में रखें । मुझे दुख है । भगवान ने जाने क्या तेरी किस्मत में लिखा है ।
- माँ । वह भावहीन स्वर में बोली - हम प्रेमियों की किस्मत भगवान नहीं लिखते । प्रेमी स्वयं अपनी किस्मत लिखते हैं । प्रेमियों की जिन्दगी के प्रेम गृन्थ के हर पन्ने पर सिर्फ़ प्रेम लिखा होता है । एक दूसरे के लिये मर मिटने का प्रेम ।
वह ठाकुर की पत्नी थी । लेकिन उससे ज्यादा उसकी माँ थी । अपनी पगली दीवानी लङकी के लिये वह क्या करे ।
जिससे उसे सुख हो । शायद वह किसी तरह भी न सोच पा रही थी ।
- मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । खिङकी से नजर आते गाँव बोले ।
- तुम ठीक कहते हो । वह प्यार से बोली - नहीं भूलूँगी ।
न चाहते हुये भी उस विरहा गीत के मधुर बोल फ़िर उसे खींचने लगे । किस प्रेमी के दिल की तङप थी यह - तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । कभी खुशबू भरे खत को सिरहाने रख कर सोती थी । कभी यादों में बिस्तर से लिपट कर खूब रोती थी । कभी आँचल भिगोती थी । कभी तकिया भिगोती थी । कभी तकिया भिगोती थी । ये उसकी सादगी है जो । ये उसकी सादगी है जो । हमें अब भी रुलाती है । वो लङकी याद आती है । वो लङकी याद आती है । वो लङकी याद आती है ।
जुदाई में याद की तङप से और भी तङपाते मधुर गीत ने डिब्बे में एक सन्नाटा सा कर दिया था । हरेक को जैसे अपना प्रेमी याद आ रहा था । लङके के चेहरे पर प्रेम उदासी फ़ैली हुयी थी । ठीक सामने बैठी सुन्दर जवान लङकी रोमा तक में उसकी कोई दिलचस्पी न थी । उसने उसे एक निगाह तक न देखा था । और अपनी प्रेमिका की विरह याद में खोया वह लगातार खिङकी से बाहर ही देख रहा था । पता नहीं इसकी प्रेमिका कहाँ थी ? उसने सोचा । और पता नहीं उसका प्रेमी कहाँ था ?
- मितवाऽऽ ..भूलऽऽ न जानाऽऽ । गीत के बोलों में प्रेमियों की रूह बोली ।
- नहीं भूलूँगी । वह गुनगुनाई - मैं नहीं भूल सकती ।
दीन दुनियाँ से बेखबर वह प्रेमी नम आँखों से जैसे रेल के सहारे दौङती अधीर प्रेमिका को ही देख रहा था । दोनों की एक ही बात थी । उसकी कल्पना में प्रेमी था । और उसकी कल्पना में उसकी प्रेमिका - तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । तुम ताना तुम । तुम ताना तुम । धीम धीम तन न ना । तुम ताना तुम ।