पीपलवाला भूत (सत्य कथा)

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The Romantic
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पीपलवाला भूत (सत्य कथा)

Unread post by The Romantic » 15 Dec 2014 15:40

पीपलवाला भूत (सत्य कथा)

बात उन दिनों की है जब हर गाँव, बाग-बगीचों में भूत-प्रेतों का साम्राज्य था। गाँवों के अगल-बगल में पेड़-पौधों, झाड़-झंखाड़ों, बागों (महुआनी, आमवारी, बँसवारी आदि) की बहुलता हुआ करती थी । एक गाँव से दूसरे गाँव में जाने के लिए पगडंडियों से होकर जाना पड़ता था। कमजोर लोग खरखर दुपहरिया या दिन डूबने के बाद भूत-प्रेत के डर से गाँव के बाहर जाने में घबराते थे या जाते भी थे तो दल बनाकर। हिम्मती आदमी दल का नेतृत्व करता था और बार-बार अपने सहगमन-साथियों को चेताया करता था कि मुड़कर पीछे मत देखो। जय हनुमान की दुहाई देते हुए आगे बढ़ो।
उस समय ग्रामीण क्षेत्रों में सोखाओं की तूँती बोलती थी और किसी के बीमार पड़ने पर या तो लोग खरबिरउआ दवाई से काम चला लेते थे नहीं तो सोखाओं की शरण में चले जाते थे। तो आइए अब आप को उसी समय की एक भूतही घटना सुनाता हूँ-
हमारे गाँव के एक बाबूसाहब पेटगड़ी (पेट का दर्द) से परेशान थे । उनकी पेटगड़ी इतनी बड़ गई कि उनके जान की बन गई। बहुत सारी खरविरउआ दवाई कराई गई; मन्नतें माँगी गई, ओझाओं-सोखाओं को अद्धा, पौवा के साथ ही साथ भाँग-गाँजा और मुर्गे, खोंसू (बकरा) भी भेंट किए गए पर पेटगड़ी टस से मस नहीं हुई। उसी समय हमारे गाँव में कोई महात्मा पधारे थे और उन्होनें सलाह दी कि अगर बाबूसाहब को सौ साल पुराना सिरका पिला दिया जाए तो पेटगड़ी छू-मंतर हो जाएगी। अब क्या था, बाबूसाहब के घरवाले, गाँव-गड़ा, हितनात सब लोग सौ साल पुराने सिरके की तलाश में जुट गए। तभी कहीं से पता चला कि पास के गाँव सिधावें में किसी के वहाँ सौ साल पुराना सिरका है।
अब सिरका लाने का बीड़ा बाबूसाहब के ही एक लँगोटिया यार श्री खेलावन अहिर ने उठा लिया । साम के समय खेलावन यादव सिरका लाने के लिए सिधावें गाँव में गए। (सिधावें हमारे गाँव से लगभग एक कोस पर है) खेलावन यादव सिरका लेकर जिस रास्ते से चले उसी रास्ते में एक बहुत पुराना पीपल का पेड़ था और उसपर एक नामी भूत रहता था। उसका खौफ इतना था कि वहाँ बराबर लोग जेवनार चढ़ाया करते थे ताकि वह उनका अहित न कर दे। अरे यहाँ तक कि वहाँ से गुजरनेवाला कोई भी व्यक्ति यदि अंजाने में सुर्ती बनाकर थोंक दिया तो वह भूत ताली की आवाज को ललकार समझ बैठता था और आकर उस व्यक्ति को पटक देता था। लोग वहाँ सुर्ती, गाँजा, भाँग आदि चढ़ाया करते थे।
अभी खेलावन अहिर उस पीपल के पेड़ से थोड़ी दूर ही थे तब तक सिरके की गंध से वह भूत बेचैन हो गया और सिरके को पाने के लिए खेलावन अहिर के पीछे पड़ गया। खेलावन अहिर भी बहुत ही निडर और बहादुर आदमी थे, उन्होंने भूत को सिरका देने की अपेक्षा पंगा लेना ही उचित समझा। दोनों में धरा-धरउअल, पटका-पटकी शुरु हो गई। भूत कहता था कि थोड़ा-सा ही दो लेकिन दो। पर खेलावन अहिर कहते थे कि एक ठोप (बूँद) नहीं दूँगा; तूझे जो करना है कर ले। अब भूत अपने असली रूप में आ गया और लगा उठा उठाकर खेलावन यादव को पटकने पर खेलावन यादव ने भी ठान ली थी कि सिरका नहीं देना है तो नहीं देना है। पटका-पटकी करते हुए खेलावन अहिर गाँव के पास आ गए पर भूत ने उनका पीछा नहीं छोड़ा और वहीं एक छोटे से गढ़हे में ले जाकर लगा उनको गाड़ने। अब उस भूत का साथ देने के लिए एक बुढ़ुआ (जो आदमी पानी में डूबकर मरा हो) जो वहीं पास की पोखरी में रहता था आ गया था। अब तो खेलावन यादव कमजोर पड़ने लगे। तभी क्या हुआ कि गाँव के कुछ लोग खेलावन यादव की तलाश में उधर ही आ गए तब जाकर खेलावन यादव की जान बची।
दो-तीन बार सिरका पीने से बाबूसाहब की पेटगड़ी तो एक-दो दिन में छू-मंतर हो गई पर खेलावन अहिर को वह पीपलवाला भूत बकसा नहीं अपितु उन्हें खेलाने लगा। बाबूसाहब ताजा सिरका बनवाकर और सूर्ती, भाँग आदि ले जाकर उस पीपल के पेड़ के नीचे चढ़ाए और उस भूत को यह भी वचन दिया कि साल में दो बार वे जेवनार भी चढ़ाएँगे पर तुम मेरे लँगोटिया यार (खेलावन यादव) को बकस दो। पीपलवाले भूत ने खेलावन यादव को तो बकस दिया पर जबतक बाबूसाहब थे तबतक वे साल में दो बार उस पीपल के पेड़ के नीचे जेवनार जरूर चढ़ाया करते थे।
उस पीपल के पेड़ को गिरे लगभग 20-25 साल हो गए हैं और वहीं से होकर एक पक्की सड़क भी जाती है पर अब वह भूत और वह पीपल केवल उन पुरनिया लोगों के जेहन में है जिनका पाला उस भूत से पड़ा।
सिरका चाहें आम का हो या कटहल का या किसी अन्य फल का पर यह वास्तव में पेट के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है और जितना पुराना होगा उतना ही बढ़िया ।

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