यमदूत की लापरवाही

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The Romantic
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Re: यमदूत की लापरवाही

Unread post by The Romantic » 15 Dec 2014 16:51

“मैं आपसे वादा करता हूँ मैडम, कि मैं जो भी काम करूंगा, आपकी इजाजत से ही करूंगा. मैं पहले भी आपका नौकर था. अब भी आपका नौकर बन कर ही रहूंगा. लेकिन आपके पति एक पढ़े लिखे बिजनेसमेन थे. और मैं ठहरा अनपढ़. मैं उनकी तरह सब कुछ कैसे करूंगा?” शीतल की बात सुन कर उसने अपनी प्रतिक्रिया दी.
“उसकी तुम चिंता मत करो. मैं सब संभाल लूंगी. अजय की हर बात उसके उठने बैठने का तरीका, बोलने का तरीका, सब मैं तुम्हे सिखा दूंगी. लेकिन जब तक तुम हमारे रिश्तेदारों के बारे में हमारे घर के बारे में और अजय के बारे में सब कुछ जान नहीं जाते तब तक तुम्हे ये बिमारी का नाटक जारी रखना होगा.

बाहर दरवाजे डोर बेल बजने की आवाज आई. शीतल कमरे से निकल कर दरवाजे पर गयी. दरवाजा खोला तो देखा मलूकदास और शान्ति देवी मंदिर से वापस आ गए थे.

“बाबूजी” मलूकदास और शान्ति देवी को देख कर शीतल इतना ही बोल पाई थी. और उसकी रुलाई फूट पड़ी.

“शीतल क्या हुआ बेटी? तू रो क्यों रही हो? सब ठीक तो है न? शीतल की आँखों में आंसू देख कर मलूकदास ने पूछा.

“कुछ नहीं बाबूजी. आज मैं बहुत खुश हूँ. अजय ने आज मुझसे बात की है. वो धीरे धीरे ठीक हो रहा है बाबूजी. इसलिए ख़ुशी के मारे मेरी आँखों में आंसू आ गए” शीतल ने अपने पति की मौत का सारा गम खुद में ही समेट लिया और अपने आंसुओं को ख़ुशी के आंसू बता कर चेहरे पर नकली मुस्कान लाते हुए मलूकदास को अजय के ठीक होने की खुश खबरी सुनाई. शीतल की बात सुन कर मलूकदास और शान्ति देवी बहुत खुश हुए. और शीतल फिर अपने कमरे में जा कर अपने पति की मौत में फूट फूट कर रोने लगी.

समाप्त

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