“वे अपने कमरे में नहीं है बाबूजी.” शीतल ने वापस आ कर कहा. लेकिन शीतल की बात पर कोई प्रतिक्रिया दिए बिना ही मलूकदास बाहर की तरफ चल पड़े. बाकी सब लोग भी उनके पीछे थे. मलूकदास ने चौकीदार को आवाज लगाई चौकीदार उनके पास आया.
“अभी बंगले के अन्दर कौन आया था?” मलूकदास ने चौकीदार से सवाल किया.
“नहीं सेठजी यहाँ तो कोई नहीं आया.” चौकीदार ने जवाब दिया.
“तो फिर अजय बाहर गया?” मलूकदास ने अगला सवाल किया.
“हाँ छोटे मालिक तो घंटा भर पहले बाहर गए थे. लेकिन अभी तक आये नहीं. मुझे बताया की वे पान लेने जा रहे है” चौकीदार ने अजय के बाहर जाने कि जानकारी दी.
“ये पान कबसे खाने लगा.? और तुमने उसे रोका क्यों नहीं?” मलूकदास ने चौकीदार पर भड़कते हुए कहा.
“मैं उनको कैसे रोक सकता हूँ मालिक वो हमारे सेठ है” चौकीदार ने जवाब दिया.
“तो अब भुगतो सब. तुम्हारे सेठ का अपहरण हो गया है. और उसे छोड़ने के लिए दो करोड़ र्रुपये मांगे है” इस बार मलूकदास की बात सुन कर सबके दिलो पर जैसे बिजली टूट पड़ी हो.
“अपहरण! ये क्या कह रहे है आप?” शान्ति देवी ने आश्चर्य से कहा.
“अब क्या क्या होगा पापा?” आरती ने रुआंसी हो कर कहा”
“होगा क्या. छुड़ा कर लाना होगा उसे. मैं छुड़ा कर लूँगा उसे तुम लोगों को किसी को भी घबराने कि जरुरत नहीं है.” मलूकदास ने घर वालो को भरोसा दिलाया और फिर शाकाल के नंबर पर फोन लगाया. उधर घंटी जाने लगी.
“हाँ बोलो मलूकदास, अपून को विश्वास था कि तुम फोन जरुर करोगे” सामने से शाकाल कि आवाज आई.
“देखो शाकाल मैं तुम्हे दो करोड़ रुपया देने को तैयार हूँ. लेकिन मेरे बेटे को कुछ मत करना. बोलो रुपये कहाँ ले कर आना है. मैं अभी इसी वक्त आ रहा हूँ” मलूकदास ने शाकाल से विनती करते हुए कहा.
“गुड. अपून को पूरा यकीन था.तुम ऐसा ही करोगे लेकिन इतना जल्दी झुक जाओगे इस बात का यकीन नहीं था” मलूकदास कि बात पर शाकाल ने प्रतिक्रया दी.
“देखो शाकाल सुबह होने से पहले ही मै ये मामला निपटा लेना चाहता हूँ. क्योंकि अगर ये खबर पुलिस तक पहुँच गई तो पुलिस तुम्हे नहीं छोड़ेगी और तुम मेरे बेटे को नहीं छोड़ोगे”
यमदूत की लापरवाही
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Re: यमदूत की लापरवाही
“गुड बहूत समझदार लगते हो.अगर यही समझदारी पहले दिखाई होती तो तुम्हारे बेटे का अपरहण भी नहीं होता और दो के बजाय एक खोखे से ही काम चल जाता” शाकाल से बात करके मलूकदास ने फोन कट कर दिया. फिर घर मे गया दो करोड़ रुपये बैग में ड़ाल कर शाकाल कि बताई जगह पर पहुँच गया. उसने रुपये से भरा बैग शाकाल को दिया और अजय को ले कर घर आ गया अजय के घर आते ही सबने राहत कि सांस ली.
“भाग्यवान संभालो अपने बेटे को और पूछो इससे कि ये रात को बारह बजे घर से बाहर क्यों गया था? मैंने तो इसे पूछ लिया लेकिन इसने तो मौन धारण कर लिया है. जवाब ही नहीं.देता”
“आप बेवजह मेरे ऊपर गुस्सा हो रहे है पापा. मैं क्या बताऊँ आपको? मैं खुद नहीं जानता कि मैं वहां गया कैसे” मलूकदास कि बात पर अजय ने प्रतिक्रया दी और आगे कुछ भी बोले बिना ही अपने कमरे ने चला गया. सब लोग आश्चर्य से एक दूसरे कि तरफ देखने लगे.
“कमबख्त ये कौनसी बिमारी है. किसी से भी सीधे मुंह बात नहीं करना और रात को नींद में ही घर से निकल जाना” मलूकदास ने अजय कि बात पर हैरान हो कर कहा.
“सच में पापा. अजय भैया कि ये हालत मुझे बहूत अटपटी लगती है. कुछ कीजिये पापा कुछ कीजिये” आरती ने मलूकदास से कहा.
“मैं तुम्हारे दिल कि हालत समझ सकता हूँ बेटी. मैं अपने बेटे के इलाज के लिए डॉक्टर खरीद सकता हूँ अस्पताल खरीद सकता हूँ. पर क्या करूँ. कमबख्त ये बिमारी पकड़ में आये तब न” मलूकदास बोलते बोलते वह भावुक होने लगा था. उसकी आँखों में आंसू आ गए थे.
“हौसला रखिये समधी जी. सब ठीक हो जाएगा” पास में खड़े अजय के ससुर ने मलूकदास के कंधे पर हाथ रख कर हौसला दिलाते हुए कहा.
“अब हौसला रखना ही एक मात्र चारा है. शीतल तुम ऐसा करो कोमल को उसके नानी नानी के साथ भेज दो”
मलूकदास ने शीतल से कहा.
“ये क्या कह रहे है आप बाबूजी? कोमल के बिना मैं कैसे रहूंगी?” शीतल ने कोमल को खुद से अलग करने से मना करते हुए कहा.
“समझने कि कोशिश करो बहू कोमल हर समय एक ही सवाल पूछती है दादाजी पापा बात क्यों नहीं करते. और अजय की खामोशी हम सबको इतनी तकलीफ दे रही है तो सोचो इस मासूम बच्ची के दिल पर क्या गुजर रही होगी पता नहीं इस घर की तकदीर क्यों रूठ गयी. मेरा बेटा खामोश बुत बन कर बैठ गया है. पूरा घर मरघट लग रहा है”
सुबह के चार बजने को आये थे. सब अपनी अपनी जगह पर जा कर सो गए. लेकिन किसी कि भी आँखों में नींद नहीं थी. सुबह होते ही अजय से मिलाने आये मेहमानों ने वापस जाने कि तैयारी कर ली. कोमल भी नानी नानी के साथ जा रही थी.
“आरती सब लोग जा रहे है. लेकिन तुम रुक जाओ ना. दो दिन बाद चली जाना. सब लोग चले गए तो ये घर बहूत सूना सूना लगेगा” शीतल ने आरती को रोकने कि कोशिश करते हुए कहा शीतल कि आँखों में उदासी के साथ आंसू भी छलक आये थे.
“इस तरह हौसला नहीं हारते भाभी. अजय भैया बहूत जल्दी ठीक हो जायेंगे आज तो मुझे जाना होगा लेकिन कल में फिर वापस आ जाउंगी” आरती ने शीतल से कहा.
“कोमल भी ममी पापा के साथ जा रही है. अगर तबियत ठीक होती तो हमें किसी कि भी कमी का एहसास नहीं होता”
शीतल ने आरती को फिर रोकने की कोशिश की लेकिन आरती दूसरे दिन वापस आने का वादा करके चली गयी. सब मेहमान चले गए लेकिन अजय किसी को भी विदा करने के लिए अपने कमरे से बाहर भी नहीं आया. वह गुमसुम अपने कमरे में ही सोया रहा. मेहमानों को विदा करने के बाद मलूकदास अजय की मानसिक जांच रिपोर्ट लेने के लिए डॉक्टर के पास गए. डॉक्टर ने पूरी रिपोर्ट देखी लेकिन जवाब वही पहले वाला.
“भाग्यवान संभालो अपने बेटे को और पूछो इससे कि ये रात को बारह बजे घर से बाहर क्यों गया था? मैंने तो इसे पूछ लिया लेकिन इसने तो मौन धारण कर लिया है. जवाब ही नहीं.देता”
“आप बेवजह मेरे ऊपर गुस्सा हो रहे है पापा. मैं क्या बताऊँ आपको? मैं खुद नहीं जानता कि मैं वहां गया कैसे” मलूकदास कि बात पर अजय ने प्रतिक्रया दी और आगे कुछ भी बोले बिना ही अपने कमरे ने चला गया. सब लोग आश्चर्य से एक दूसरे कि तरफ देखने लगे.
“कमबख्त ये कौनसी बिमारी है. किसी से भी सीधे मुंह बात नहीं करना और रात को नींद में ही घर से निकल जाना” मलूकदास ने अजय कि बात पर हैरान हो कर कहा.
“सच में पापा. अजय भैया कि ये हालत मुझे बहूत अटपटी लगती है. कुछ कीजिये पापा कुछ कीजिये” आरती ने मलूकदास से कहा.
“मैं तुम्हारे दिल कि हालत समझ सकता हूँ बेटी. मैं अपने बेटे के इलाज के लिए डॉक्टर खरीद सकता हूँ अस्पताल खरीद सकता हूँ. पर क्या करूँ. कमबख्त ये बिमारी पकड़ में आये तब न” मलूकदास बोलते बोलते वह भावुक होने लगा था. उसकी आँखों में आंसू आ गए थे.
“हौसला रखिये समधी जी. सब ठीक हो जाएगा” पास में खड़े अजय के ससुर ने मलूकदास के कंधे पर हाथ रख कर हौसला दिलाते हुए कहा.
“अब हौसला रखना ही एक मात्र चारा है. शीतल तुम ऐसा करो कोमल को उसके नानी नानी के साथ भेज दो”
मलूकदास ने शीतल से कहा.
“ये क्या कह रहे है आप बाबूजी? कोमल के बिना मैं कैसे रहूंगी?” शीतल ने कोमल को खुद से अलग करने से मना करते हुए कहा.
“समझने कि कोशिश करो बहू कोमल हर समय एक ही सवाल पूछती है दादाजी पापा बात क्यों नहीं करते. और अजय की खामोशी हम सबको इतनी तकलीफ दे रही है तो सोचो इस मासूम बच्ची के दिल पर क्या गुजर रही होगी पता नहीं इस घर की तकदीर क्यों रूठ गयी. मेरा बेटा खामोश बुत बन कर बैठ गया है. पूरा घर मरघट लग रहा है”
सुबह के चार बजने को आये थे. सब अपनी अपनी जगह पर जा कर सो गए. लेकिन किसी कि भी आँखों में नींद नहीं थी. सुबह होते ही अजय से मिलाने आये मेहमानों ने वापस जाने कि तैयारी कर ली. कोमल भी नानी नानी के साथ जा रही थी.
“आरती सब लोग जा रहे है. लेकिन तुम रुक जाओ ना. दो दिन बाद चली जाना. सब लोग चले गए तो ये घर बहूत सूना सूना लगेगा” शीतल ने आरती को रोकने कि कोशिश करते हुए कहा शीतल कि आँखों में उदासी के साथ आंसू भी छलक आये थे.
“इस तरह हौसला नहीं हारते भाभी. अजय भैया बहूत जल्दी ठीक हो जायेंगे आज तो मुझे जाना होगा लेकिन कल में फिर वापस आ जाउंगी” आरती ने शीतल से कहा.
“कोमल भी ममी पापा के साथ जा रही है. अगर तबियत ठीक होती तो हमें किसी कि भी कमी का एहसास नहीं होता”
शीतल ने आरती को फिर रोकने की कोशिश की लेकिन आरती दूसरे दिन वापस आने का वादा करके चली गयी. सब मेहमान चले गए लेकिन अजय किसी को भी विदा करने के लिए अपने कमरे से बाहर भी नहीं आया. वह गुमसुम अपने कमरे में ही सोया रहा. मेहमानों को विदा करने के बाद मलूकदास अजय की मानसिक जांच रिपोर्ट लेने के लिए डॉक्टर के पास गए. डॉक्टर ने पूरी रिपोर्ट देखी लेकिन जवाब वही पहले वाला.
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Re: यमदूत की लापरवाही
“सेठजी इस जांच रिपोर्ट में मुझे कोई भी बिमारी नजर नहीं आ रही है. मैं यकीन के साथ कह रहा हूँ की आपका बेटा चंगा भला है उसे कोई तकलीफ नहीं है” डॉक्टर ने जांच रिपोर्ट देखने के बाद जवाब दिया.
“ये क्या कह रहे है आप डॉक्टर? मेरा बेटा पिछले चार दिन से जिन्दा लाश बन कर रह गया है और आप कह रहे है उसे कोई तकलीफ ही नहीं है? तो क्या वो हम सबके साथ जानबूझ कर मजाक कर रहा है?” डॉक्टर की बात पर मलूकदास ने अपनी प्रतिक्रया दी.
“उसकी खामोशी की सिर्फ एक ही वजह हो सकती है. भय या कन्फ्यूजन. उसके दिमाग में कोई भय है जो उसे कन्फ्यूज और परेशान कर रहा है. मैं ये दवाई…………
“एक मिनट एक मिनट. क्या कहा आपने कोई भय है जो अजय की परेशान कर रहा है?” मलूकदास ने डॉक्टर की बात बीच में ही काट कर पूछा.
“हाँ उसके नहीं बोलने की एक वजह ये भी हो सकती है”
“थैंक यू डॉक्टर. जानकारी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.” मलूकदास डॉक्टर को शुक्रिया बोल कर उठ गया. डॉक्टर आश्चर्य से देखता रहा.
“क्या हुआ बाबूजी? डॉक्टर ने क्या कहा?” मलूकदास के घर पहुंचते ही शीतल ने सवाल किया.
“डॉक्टर की रिपोर्ट मैं बाद में बताउंगा पहले ये बताओ की अजय कहाँ है?” मलूकदास ने शीतल से सवाल किया.
“वो अपने कमरे में सो रहा है” शांति देवी ने जवाब दिया.
“ठीक है उसे सोने दो और तुम दोनों मेरे साथ चलो बाहर लॉन में बैठते है. मुझे कुछ जरुरी बात करनी है” शीतल और शांतिदेवी मलूकदास के साथ बाहर आ गयी. तीनों बंगले के बाहर लॉन में कुर्शिया लगा कर बैठ गए.
“कुछ बताइए तो सही डॉक्टर ने क्या कहा?” शांति देवी ने पूछा.
“डॉक्टर ने कहा है कि इसे किसी भी प्रकार की कोई भी बिमारी नहीं है.और अब मैंने ये तय किया है की अजय का इलाज मैं खुद करूंगा” मलूकदास का जवाब सुन कर आश्चर्य से एक दुसरे की तरफ देखने लगी.
“एक बात बताओ शीतल. पहली बार तुमने अजय में ये बदलाव कब देखा?” मलूकदास ने शीतल से सवाल किया.
“सन्डे के दिन जब हम शोपिंग के लिए गए थे. अजय कार में ही बैठे रहे और मैं मॉल में चली गयी. जब मैं शोपिंग करके लौटी तो मैंने अजय में ये बदलाव देखा. अजय नजरे झुकाए बैठे रहे मैंने झिंझोड़ कर चलने के लिए कहा तो मेरी तरफ ऐसे घूर कर देखने लगे जैसे पहली बार देख रहे हो कार भी मैं खुद चला कर लाई” शीतल ने मलूकदास को जानकारी दी.
“और तुम दोनों के घर आने पर मैंने फोन किया था” मलूकदास ने बात आगे बढाते हुए कहा
“हाँ किया था” शीतल ने सहमति से सर हिलाया.
“ये क्या कह रहे है आप डॉक्टर? मेरा बेटा पिछले चार दिन से जिन्दा लाश बन कर रह गया है और आप कह रहे है उसे कोई तकलीफ ही नहीं है? तो क्या वो हम सबके साथ जानबूझ कर मजाक कर रहा है?” डॉक्टर की बात पर मलूकदास ने अपनी प्रतिक्रया दी.
“उसकी खामोशी की सिर्फ एक ही वजह हो सकती है. भय या कन्फ्यूजन. उसके दिमाग में कोई भय है जो उसे कन्फ्यूज और परेशान कर रहा है. मैं ये दवाई…………
“एक मिनट एक मिनट. क्या कहा आपने कोई भय है जो अजय की परेशान कर रहा है?” मलूकदास ने डॉक्टर की बात बीच में ही काट कर पूछा.
“हाँ उसके नहीं बोलने की एक वजह ये भी हो सकती है”
“थैंक यू डॉक्टर. जानकारी देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया.” मलूकदास डॉक्टर को शुक्रिया बोल कर उठ गया. डॉक्टर आश्चर्य से देखता रहा.
“क्या हुआ बाबूजी? डॉक्टर ने क्या कहा?” मलूकदास के घर पहुंचते ही शीतल ने सवाल किया.
“डॉक्टर की रिपोर्ट मैं बाद में बताउंगा पहले ये बताओ की अजय कहाँ है?” मलूकदास ने शीतल से सवाल किया.
“वो अपने कमरे में सो रहा है” शांति देवी ने जवाब दिया.
“ठीक है उसे सोने दो और तुम दोनों मेरे साथ चलो बाहर लॉन में बैठते है. मुझे कुछ जरुरी बात करनी है” शीतल और शांतिदेवी मलूकदास के साथ बाहर आ गयी. तीनों बंगले के बाहर लॉन में कुर्शिया लगा कर बैठ गए.
“कुछ बताइए तो सही डॉक्टर ने क्या कहा?” शांति देवी ने पूछा.
“डॉक्टर ने कहा है कि इसे किसी भी प्रकार की कोई भी बिमारी नहीं है.और अब मैंने ये तय किया है की अजय का इलाज मैं खुद करूंगा” मलूकदास का जवाब सुन कर आश्चर्य से एक दुसरे की तरफ देखने लगी.
“एक बात बताओ शीतल. पहली बार तुमने अजय में ये बदलाव कब देखा?” मलूकदास ने शीतल से सवाल किया.
“सन्डे के दिन जब हम शोपिंग के लिए गए थे. अजय कार में ही बैठे रहे और मैं मॉल में चली गयी. जब मैं शोपिंग करके लौटी तो मैंने अजय में ये बदलाव देखा. अजय नजरे झुकाए बैठे रहे मैंने झिंझोड़ कर चलने के लिए कहा तो मेरी तरफ ऐसे घूर कर देखने लगे जैसे पहली बार देख रहे हो कार भी मैं खुद चला कर लाई” शीतल ने मलूकदास को जानकारी दी.
“और तुम दोनों के घर आने पर मैंने फोन किया था” मलूकदास ने बात आगे बढाते हुए कहा
“हाँ किया था” शीतल ने सहमति से सर हिलाया.