यमदूत की लापरवाही
Posted: 15 Dec 2014 16:09
यमदूत की लापरवाही
(श्रेय: चन्दन सिंह राठौड़)
कहानी शुरू करने से पहले पाठकों से मैं रहस्य भरी इस दुनिया के बारे में कुछ चर्चा करना चाहूँगा. ये सृष्टि ऐसे रहस्यों से भरी पड़ी है जिनसे रुबरु हुए बिना शायद ही कोई विश्वास करेगा.
आज से चार या पाँच साल पहले वैज्ञानिकों की एक टीम ने जमीन के अन्दर और 27 किलोमीटर लम्बी महामशीन बना कर एक प्रयोग करने की कोशिश की थी. वैज्ञानिकों का दावा था कि इस पृथ्वी पर जो मोजूद वस्तुए है, उनका 5 % ही है देख पाते है, महसूस कर पाते है. बाकी 95 % हमारे आसपास होने के बावजूद भी, हम उन्हें देख नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते. लेकिन उस महामशीन के प्रोयोग से उन 95 % वस्तुओं पर जो रहस्य का जो पर्दा है, उनसे पर्दा हट जाएगा, हम उनके बारे में जान सकेंगे. लेकिन वो प्रयोग सफल होने से पहले ही वो महामशीन ही फ़ैल हो गई.
मैं जो कहानी पाठको के सामने पेश कर रहा हूँ, ये भी एक सच्ची घटना पर आधारित है. इस कहानी का रहस्य अंत में बताया जायेगा, ताकि पाठको में कहानी पढ़ने कि उत्सुकता बनी रहे. और कहानी पूरी होने पर उस सची घटना का जिक्र भी किया जायेगा, जिससे ये कहानी प्रेरित है.
मलूका इंडस्ट्री के मालिक मलूकदास का बेटा अजय अपनी कंपनी के मेनेजिंग डायरेक्टर का पदभार गृहण करने के बाद मजदूरों के समारोह को संबोधित करते हुए बोल रहा था.
“मलूका इंडस्ट्री के कर्मचारियों, और मजदूर भाईयो, आप सभी की मेहनत की बदौलत हमारी कंपनी देखते ही देखते जोजागढ़ शहर कि नंबर वन कंपनी बन गई है. आप सभी का इस कंपनी के लिए समर्पण देख कर में आपसे वादा करता हूँ कि आप सभी कि छोटी से छोटी तकलीफ भी मेरी तकलीफ है. और इसके बदले में आपसे ये उमीद करता हु कि आप अपनी मेहनत से इस कंपनी को तरक्की के रास्ते पर आगे बढाते रहे ताकि हम सभी का जीवन सही तरीके से चलता रहे.
मजदूरो का समारोह समाप्त होने के बाद मलूकदास का बेटा अजय अपनी कंपनी के ऑफिस के केबिन में कंपनी के काम काज के तौर तरीके सीख रहा था. उसके साथ में उसकी बीवी शीतल भी मौजूद थी
कंपनी का एक मजदूर जिसका नाम भी अजय ही था, पिछले तीन दिन से छुट्टी पर था. क्योंकि उसके पाँच साल के बेटे विकी को बुखार था. मजदूर अजय के पास उसके इलाज के लिए एक रुपया भी नहीं था. कंपनी के मालिक से वह पहले ही एडवांस ले चुका था. अब और माँगने कि उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन डर इस बात का भी था, कि अगर सही वक्त पर बच्चे का इलाज नहीं कराया तो बच्चे कि जान भी जा सकती है. इसलिए हिम्मत बटोरी और एक बार फिर मालिक से एडवांस लेने का फैसला किया. अपनी घरवाली गीता और बच्चे को साथ लिया और चल पड़ा इस उम्मीद में कि अगर मालिक ने कुछ मदद कर दी तो वहीँ से सीधा अस्पताल जा कर विकी का इलाज कराएगा. वह दबे कदमों से कंपनी के गेट में प्रवेश करके कंपनी के ऑफिस में जा कर मुनीम से मिला.
(श्रेय: चन्दन सिंह राठौड़)
कहानी शुरू करने से पहले पाठकों से मैं रहस्य भरी इस दुनिया के बारे में कुछ चर्चा करना चाहूँगा. ये सृष्टि ऐसे रहस्यों से भरी पड़ी है जिनसे रुबरु हुए बिना शायद ही कोई विश्वास करेगा.
आज से चार या पाँच साल पहले वैज्ञानिकों की एक टीम ने जमीन के अन्दर और 27 किलोमीटर लम्बी महामशीन बना कर एक प्रयोग करने की कोशिश की थी. वैज्ञानिकों का दावा था कि इस पृथ्वी पर जो मोजूद वस्तुए है, उनका 5 % ही है देख पाते है, महसूस कर पाते है. बाकी 95 % हमारे आसपास होने के बावजूद भी, हम उन्हें देख नहीं सकते, महसूस नहीं कर सकते. लेकिन उस महामशीन के प्रोयोग से उन 95 % वस्तुओं पर जो रहस्य का जो पर्दा है, उनसे पर्दा हट जाएगा, हम उनके बारे में जान सकेंगे. लेकिन वो प्रयोग सफल होने से पहले ही वो महामशीन ही फ़ैल हो गई.
मैं जो कहानी पाठको के सामने पेश कर रहा हूँ, ये भी एक सच्ची घटना पर आधारित है. इस कहानी का रहस्य अंत में बताया जायेगा, ताकि पाठको में कहानी पढ़ने कि उत्सुकता बनी रहे. और कहानी पूरी होने पर उस सची घटना का जिक्र भी किया जायेगा, जिससे ये कहानी प्रेरित है.
मलूका इंडस्ट्री के मालिक मलूकदास का बेटा अजय अपनी कंपनी के मेनेजिंग डायरेक्टर का पदभार गृहण करने के बाद मजदूरों के समारोह को संबोधित करते हुए बोल रहा था.
“मलूका इंडस्ट्री के कर्मचारियों, और मजदूर भाईयो, आप सभी की मेहनत की बदौलत हमारी कंपनी देखते ही देखते जोजागढ़ शहर कि नंबर वन कंपनी बन गई है. आप सभी का इस कंपनी के लिए समर्पण देख कर में आपसे वादा करता हूँ कि आप सभी कि छोटी से छोटी तकलीफ भी मेरी तकलीफ है. और इसके बदले में आपसे ये उमीद करता हु कि आप अपनी मेहनत से इस कंपनी को तरक्की के रास्ते पर आगे बढाते रहे ताकि हम सभी का जीवन सही तरीके से चलता रहे.
मजदूरो का समारोह समाप्त होने के बाद मलूकदास का बेटा अजय अपनी कंपनी के ऑफिस के केबिन में कंपनी के काम काज के तौर तरीके सीख रहा था. उसके साथ में उसकी बीवी शीतल भी मौजूद थी
कंपनी का एक मजदूर जिसका नाम भी अजय ही था, पिछले तीन दिन से छुट्टी पर था. क्योंकि उसके पाँच साल के बेटे विकी को बुखार था. मजदूर अजय के पास उसके इलाज के लिए एक रुपया भी नहीं था. कंपनी के मालिक से वह पहले ही एडवांस ले चुका था. अब और माँगने कि उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी. लेकिन डर इस बात का भी था, कि अगर सही वक्त पर बच्चे का इलाज नहीं कराया तो बच्चे कि जान भी जा सकती है. इसलिए हिम्मत बटोरी और एक बार फिर मालिक से एडवांस लेने का फैसला किया. अपनी घरवाली गीता और बच्चे को साथ लिया और चल पड़ा इस उम्मीद में कि अगर मालिक ने कुछ मदद कर दी तो वहीँ से सीधा अस्पताल जा कर विकी का इलाज कराएगा. वह दबे कदमों से कंपनी के गेट में प्रवेश करके कंपनी के ऑफिस में जा कर मुनीम से मिला.