New Romantic Thriller Saga - शायद यहीं तो हैं ज़िंदगी – प्यार की अधूरी दास्तान

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jasmeet
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Re: New Romantic Thriller Saga - शायद यहीं तो हैं ज़िंदगी – प्यार की अधूरी दास्तान

Unread post by jasmeet » 05 Nov 2016 11:44

रेसीएवे करती है

निशा- अरे मैडम कहाँ पर हो तुम मैं तब से फोन लगा रही हूँ और तुम रेसीएवे क्यों नहीं कर रही हो.

राधिका- यार तेरा कब कॉल आया था.
निशा- अरे 1/2 घंटा पहले ही तो ट्राइ कर रही थी. तूने एक भी बार फोन रेसीएवे नहीं किया.

तभी उसको याद आता है की वो उस वक्त बाथरूम में थी.
राधिका- ओह सॉरी जान मैं नहा रही थी. बता कैसे फोन किया.

निशा- तू इस वक्त कहाँ पर है. मुझे तुझसे एक जरूरी बात करनी है.

राधिका- मैं अभी घर से ही निकली हूँ एक काम कर मेरे चौराहे पर आ जा.
निशा- ठीक है मैं थोड़े डियर में आती हूँ.

राधिका भी जल्दी से उसी जगह जाने के लिए मुड़ती है तभी वो कुछ ऐसा देखती है की उसके बढ़ते कदम वही पर रुक जाते हैं.

सामने एक आँधा भिखारी बारे गौर से राधिका को देख रहा था. जब राधिका की नज़र उस पर पड़ती है तो वो आँधा भिखारी इधर उधर देखने लगता है. बस फिर क्या था राधिका उसके पास पहुँचती है .

भिखारी- आँधे को कुछ पैसे दे दे बेटी.
राधिका- बेटी!!!! राधिका मन में सोचती है इसको कैसे पता की मैं लड़की हूँ अभी तो मैंने इससे कुछ भी बात तक नहीं की. इसका मतलब साला आँधा बाने का नाटक कर रहा है. अभी मजा चकती हूँ.

भिखारी- बेटी कुछ पैसे दे दे दो दिन से भूखा हूँ.

राधिका- बाबा तुम्हें कैसे पता चला की मैं लड़की हूँ और मैंने तो तुमसे कोई बात भी नहीं की है फिर कैसे…………….

भिखारी- इतना सुनते ही एक वो एकदम से घबरा जाता है और आपने आप को सम्हलते हुए कहता है वो बेटी बस मन की आँखों से देख लिया…

राधिका- ऐसा !!! तो आपका मन की आँखें तो बहुत स्ट्रॉंग है. तो आप सब कुछ देख सकते हैं तो फिर भीख क्यों माँगते हो.

बाबा- नहीं बेटा हर चीज़ मैं मन की आँखों से नहीं देख सकता. बस एहसास कर लेता हूँ.

राधिका- कमीना कहीं का अभी देखती हूँ तेरी मन की आँखें कितनी तेज है. राधिका मन में सोचते हुए बोली.

राधिका थोड़े उसके करीब आती है और अपना दुपट्टा अपने सीने से हटा देती है और अपने हाथ में रख लेती है. फिर उसके सामने अपनी कुतरी का एक स्तनों धीरे से खोल देती है. और राधिका का बूब्स का क्लेआवेरगे साफ दिखाई देने लगता है.

राधिका गौर से भिखारी के चेहरे का एक्सप्रेशन को पड़ने की कोशिश करती है. अक्टूबर का महीने में कोई खास ना सर्दी पड़ती ना ज्यादा गर्मी फिर भी उस भिखारी के चेहरे पर पसीने के कुछ बूंदें दिखाई देते हैं. अब उसको पूरी बात क्लीयर हो जाती है की वो आँधा नहीं है. राधिका तो अभी पूरे कपड़ों में कितनों पर बिजली गिरा सकती है . और ऊपर से उसने अपने हल्के बूब्स के दर्शन करा दिए तो उस भिखारी पर क्या गुज़ेरी गी भला.
राधिका- बाबा आप कब से आँधे हैं.

भिखारी- एक दम से घबरा जाता है और तोतला कर बोटा है वो……….मैं.. मैं…. बच…..पा…न से……

राधिका को इस तरह से उस भिखारी के पास बैठा देख कर आस पास के लोग भी अब राधिका को गौर से देखने लगते हैं और कुछ आदमी तो वही पर खड़े होकर दूर से तमाशा देखते हैं.

तभी राधिका आसमान की ओर देखकर ज़ोर से बोलती है — अरे ये क्या है आसमान में लगता है कोई बाहरी ग्रह के एलीयेन्स हमारे धरती पर उतार रहे हैं.

भिखारी तो कुछ पल के लिए ये भी बोल जाता है वो आँधा है और वो भी आसमान की ओर देखने लगता है. पर उसको तो कुछ दिखाई नहीं देता. होगा तब तो कुछ डीकेगा ना.

वो गलती करने के बाद भीकार के मुंह से अचानक निकल पड़ता है- कहा है वो एलीयेन्स वाला जहाज़. बस फिर क्या आस पास के लोग भी समाज जाते हैं और जो पिटाई उस भिखारी की होती है बेचारा उल्टे पॉन भाग खड़ा होता है.

राधिका- ची….. ना जाने कैसे कैसे लोग है इस धरती पर. और राधिका गुस्से से मूंड़ कर अपने रास्ते चल देती है.

थोड़ी दूर जाने पर निशा उसको सामने से आती दिखाई देती है. लेकिन कुछ भीड़ और राधिका को गुस्से में देख कर वो राधिका से पूछने लगती है.

निशा- अरे महारानी अब क्या हुआ क्यों तुम्हारा मूंड़ अपसेट है. और यहां पर इतनी भीड़ क्यों जमा है. कोई आक्सिडेंट तो नहीं हो गया ना किसी का …

राधिका उसे पूरा बात बता देती है

निशा- हां..हां. हहा ..हहा .हः… ओह माइ गॉड ……हां हां प्लीज़ राधिका मेरी तो हँसी नहीं रुक रही. हां हाहाहा ….

राधिका- तुझे हँसी आ रही है और मेरा खून सुलग रहा है. साला मेरे हाथों से बच गया. अगर हाथ आया होता तो साले की सचमुच आँखें निकल लेती.

निशा- यार तू हर समय पंगा क्यों लेती रहती है . क्या तूने समाज शुधारक का ठेका ले रखा है क्या .इतना कहकर निशा फिर से हँसे लगती है.

राधिका- चल ना यार सब लोग हमें ही देख रहे हैं.
निशा- अरे ऐसे ऐसे महान काम करेगी तो सब लोग तुझे ही तो देकेंगे ना. इतना कहकर निशा राधिका को लेकर चली जाती है.

राधिका- निशा हम जा कहा रहे हैं.

निशा- तुझसे एक बहुत जरूरी बात करनी है. इस लिए चल किसी गर्दन या ऐसी जगह चलते हैं जहाँ भीड़ कम हो. और निशा राधिका को एक गर्दन में ले कर जाती है.

राधिका- अब बता ना निशा क्या बात है जिसकी वजह से तू इतनी सुबह मेरे पास फोन की थी. क्या कोई सीरीयस मॅटर है क्या.??

निशा- यार बात तो कुछ ऐसी ही है पर मुझे समझ में नहीं आ रहा की कहाँ से शुरू करूं.निशा थोड़े….

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Re: New Romantic Thriller Saga - शायद यहीं तो हैं ज़िंदगी – प्यार की अधूरी दास्तान

Unread post by jasmeet » 05 Nov 2016 11:45

गंभीर होते हुए बोली.

राधिका- यार बता ना ऐसी कौन सी बात है जो तू इतनी परेशान हो रही है.

निशा- यार जो मैं बात तुझसे कहने वाली हूँ प्लीज़ मेरे बात का बुरा मत मना.
राधिका- बुरा क्यों मानूँगी अरे इस दुनिया में एक तू ही तो है जिसे में अपना दिल की सारी बात बताती हूँ. अब बोल ना.

निशा- यार कल जब मैं 3 बजे के करीब मार्केट जा रही थी तब मैंने कृष्णा भैया को देखा.

राधिका- हः हां हां !! तू भी ना अरे मेरे भैया को देख लिया तो हैरानी की क्या बात है.

निशा- दा-असल मैंने कृष्णा भैया को एक लड़की के साथ देखा था. और तुम्हारे भैया नशे में फुल थे. और वो औरत उसे सहारा दिए कहीं पर ले जा रही थी.

इतना सूते ही राधिका का चेहरे का रंग उड़ जाता है और वो भी किसी सोच में डूब जाती है.

निशा- राधिका मेरी बात का तुम्हें बुरा तो नहीं लगा ना. पर ई आम 100% शुरू वो कृष्णा भैया ही थे.

अब राधिका उसे वो बात बताने का निश्चय कर चुकी थी जिसको वो सब से छुपाती थी. अपने जिंदगी का काला पन्ना अब वो निशा को बताना चाहती थी और उसे यकीन था की सारी बातें , एक एक शब्द किसी बूम के धमाके जितना बड़ी होगी.

राधिका- निशा मेरी बात ध्यान से सुनो. ये काला पन्ना मैंने आज तक किसी के सामने कभी नहीं खोला है. पर मैं तुमसे उम्मीद करूँगी की तुम ये बात किसी को भी ना बताओ. फिर राधिका कहना शुरू करती हैं………………..

मैं जब 12 साल की थी तभी मेरी आंटी का निधन हो गया था. ये बात तुम भी जानती हो मगर कैसे ये तुम्हें नहीं पता.
जब मैं छोटी थी तब मेरा बाप शुरू से ही कोई काम धंधा नहीं करता था. उसको बस मुफ्त की रोती चाहिए था. उसका रोज़ का काम था सुबह घर से निकलता और दिन भर आवारा आदमियों के साथ ताश, सिगरेतटे, पानी, और शराब अंकल रहता था. और शाम को नशे की हालत में घर आता तो आंटी को मरता पीटता था.

मां भी एक लिमिट तक उसके अत्याचार सहती रही फिर आख़िर उसे कहना ही पड़ा. शर्म करो दिन रात इधर उधर घूमते रहते हो कोई काम धंधा तो करते नहीं और जो मैं सिलाई बिनाई करके कुछ पैसे जमा करती हूँ वो भी तुम दारू और जुवे में उड़ा देते हो.

इतना सुनते ही मेरे बाप ने मेरे आंटी को बहुत पिता. और अब तो उसका रोज़ का रुटीन बन गया था. दिन ऐसे ही बिताते गये कृष्णा भैया का भी कॉलेज से नाम काट गया. क्यों की उसकी फीस 6 मंत्स से जमा नहीं हुई थी. आंटी को सबसे ज्यादा मेरी चिंता थी. उसे मालूम था की इस शराबी का क्या भरोसा कहीं शराब के खातिर अपनी बेटी को बाज़ार में ना बेच दे.और शायद कुछ ऐसा ही होता अगर आंटी गाँव जाकर वहां की पूरी प्रॉपर्टी करीब 25 लाख का ज़मीन को बेचकर मेरा नाम से कई सारी पॉलिसी और कुछ मेरे लिए इन्षुरेन्स और फंड्स जमा करा दिया जो की मैं बड़ी होकर मेरा पढ़ाई पूरा हो सके और मेरी शादी में भी कोई रुकावट ना आए.बस जब मैं 12 साअल की हुई तो एक दिन मेरे बाप को ये बात मालूम चल गयी . फिर क्या था वो उसे हर दिन सताता और रोज़ दबाव डालता की वो पैसे उसके नाम कर दे. और मेरी आंटी को अब बर्दास्त के बाहर हो गया और वो खुद कर ली.

कृष्णा भी उस समय पूरा जवान था करीब 18 का . वो भी धीरे धीरे बाअप के दिखाए रास्ते पर चल पड़ा. वो भी शराब सिगरेटे, पानी सब नशा करने लगा. मैंने उसको कई बार समझाया पर वो मेरी बात नहीं मना.

हां इतना तो है की मेरे बाप ने मेरी आंटी के साथ बहुत गलत किया. पर जब से आंटी मारी तब से आज तक मेरे बाप ने मुझसे ऊंची आवाज़ में मुझसे बात नहीं की. कभी मेरे सामने कोई नशा नहीं की ना ही मेरा भाई. पता नहीं क्यों वो मेरे सामने ये सब नहीं करते हैं. अगर मैं घर पर भी होती हूँ तब भी नहीं.

भाई जैसे जैसे बड़ा होता गया उसके कई आवारा लड़कों से दोस्ती हो गयी. कोई ऐसा गलत काम नहीं है जो भैया से बच्चा ना हो. हां एक रंडी पान ही शायद बच गया था वो भी आज…………………….. इतना बोलकर राधिका चुप हो गयी और उसके आँख से आँसू आ गये.

निशा तो जैसे ये सुनकर एक दम खामोश हो गयी और राधिका को बारे प्यार से देखने लगी.

निशा- राधिका इतनी बड़ी बात तुमने मुझसे छुपा कर रखी थी. बता ना क्यों किया तूने ऐसा. क्या मैं तेरी बस फ़्रेंड हूँ इससे ज्यादा और कुछ भी नहीं.

राधिका- कल जो तूने औरत देखी होगी वो कोई रंडी ही होगी. एक बात और बताऊं मुझे सच में खुद नहीं पता पर अक्सर डर लगता है की मेरी इज्जत अपने ही घर में बचेगी की नहीं. राधिका ये शब्द तो बोल गयी पर उसका असर निशा पर दिखा.

निशा क्या!!!!! ये तू क्या बक रही है. तुझे पता भी है ना ……… तुझे क्या लगता है की तेरा भाई ही तेरा रेप करेगा.

राधिका- कस ये बात झूठ हो निशा. पर मैं जानती हूँ की मेरे भाई की गंदी नियत मुझपर बहुत पहले से है. वो तो किसी बहाने मेरे बदन को छूने की तक में रहता है. मैं बता नहीं सकती तुझे …………….इतना बोलकर राधिका फिर से चुप हो जाती है.

निशा- बता ना राधिका तुझे ऐसा क्यों लगता है की तेरा ही भाई….

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Re: New Romantic Thriller Saga - शायद यहीं तो हैं ज़िंदगी – प्यार की अधूरी दास्तान

Unread post by jasmeet » 05 Nov 2016 11:45

तेरी इज्जत……………

राधिका- मैंने उसको कई बात देखा है. जब मैं घर पर होती हूँ और अक्सर नहाने के लिए बाथरूम जाती हूँ तब वो पीछे खिड़की से हमेशा झकता रहता है. मैंने तो उसको अपनी पैंटी को हाथ में लेकर अपने पेनिस से रगड़ते हुए भी देखा है. वो तो हमेशा मेरे सामने ही अपनी पेनिस को हाथ में लेकर मसलता है. अब तू ही बता की मैं कितनी सेफ हूँ.

निशा- यार ये बात तू अपने बाप से क्यों नहीं कहती.

राधिका- उससे क्या बोलूं वो तो दिन रात खुद नशे में रहता है और अगर मैं भैया के खिलाफ गयी तो वो मुझपर ही बरस पड़ता हैं. तू ही बता मैं क्या करूं.

निशा इतना सुनकर कुछ देर तक गहरी विचार करती है पर उसे भी कुछ समाज नहीं आता.
निशा- यार तेरी प्राब्लम तो बहुत टिपिकल है. ऊपर पहाड़ तो नीचे खाई. अगर तू बाहर के लोगों से अपनी इज्जत बचाती है तो तेरे घर वाले उसे नूचने को तैयार बैठे हैं.

राधिका- इस लिए मुझे हमेशा लोगों पर गुस्सा आता है. सब मर्द एक जैसे ही होते हैं. जहां बोटी मिलती है वही टूट पड़ते हैं उसे नूचने के लिए. मुझे तो ऐसा लगता है की किसी दिन मेरा रेप हो जाएगा अगर इसी तरह से सब कुछ चलता रहा तो….. चाहे घर हो या बाहर. राधिका के आँखों में आँसू नहीं थाम रहे थे.

निशा राधिका के आँसू को पौच्ती है और उसे अपने गले लगा लेती है.

निशा- चिंता मत कर राधिका मेरे रहते तुझे कुछ नहीं होगा. मैं तेरे साथ मरते दम तक नहीं छोड़ूँगी.

निशा- यार एक बात बता राहुल के बारे में तेरा क्या ख्याल है. कहे तो कुछ तेरी प्राब्लम उससे शेयर करूँ कोई ना कोई रास्ता जरूर निकल आएगा.

राधिका- नहीं निशा प्लीज़ उसे कुछ मत बताना वो पता नहीं मेरे बारे में क्या सोचेगा.

निशा- ओ. हो तो जनाब राहुल के बारे में ऐसा भी सोचती हैं क्या. इतना कहकर निशा राधिका को अपनी बाहों में फिर से पकड़ लेती है और दोनों मुस्करा देते हैं…….

दूसरे दिन सुबह करीब 10 बजे जब राधिका घर में अकेली थी और संडे का दिन था. उसका भाई और बाप रोज की तरह अपने शराब पीने के लिए बाहर गये हुए थे की तभी उसके घर की दूर बेल बाजी.

राधिका- इस वक्त कौन आ गया और वो दरवाजा खोलने चली जाती है.
जैसे ही दरवाजा खोलती है सामने राहुल खड़ा था. जैसे ही राधिका की नज़र राहुल पर पड़ती है वो एक दम चौंक जाती है उसने कभी भी सपने में भी नहीं सोचा था की राहुल उसके घर पर आएगा.

राधिका- अरे राहुल जी आप!!!!! कैसे !!!! कब!!!! आपको मेरे घर का अड्रेस कैसे मालूम चला!!!!! ऐसे ही ढेर सारे सवाल एक साथ राधिका ने एक ही साँस में पूछ डाले.

राहुल- थेरो तो सही मैडम एक एक कर आपके सारे सावोलोन का जवाब देता हूँ. मुझे अंदर आने को नहीं कहोगी क्या.राधिका- एक दम से हां.. जी अंदर आइये.
राहुल जैसे ही अंदर आता है वो घर की दशा को देखकर उसने कभी ऐसा सोचा भी नहीं था की राधिका ऐसे घर में रहती होगी. मकान बहुत पुराना था. जगह जगह प्लास्टर फुट हुए थे. और कही कही पर तो पैंट भी नहीं था. उप्पर चाट र्क का था. कुल मिलकर दोनों कमरे बारे थे लगता था जैसे दो हॉल है. एक किचन और उससे अटॅच बाथरूम.

राहुल को ऐसे देखकर राधिका को अपने अंदर गिल्टी फील होने लगती है.और झट से कहती है आप यहां सोफा पर बैठिए मैं अभी आती हूँ.

राहुल कुछ डियर तक घर का पूरा मूवैयना करता है. घर में ज्यादा समान भी नहीं था. जरूरत भर का समान जैसे त.भी, एक पुराना रेडियो , और दो पलंग थे. एक सोफा सेट और पहनने के लिए कपड़े . बस इससे ज्यादा कुछ नहीं.

राधिका- अंदर से आती है और राहुल को ऐसे देखकर पूछती है
राधिका- क्या देख रहे हो राहुल. मैं किसी करोड़पति की बेटी नहीं हूँ. बस यही मेरी दुनिया है. जीवन में जो चाहिए रोती, कपड़ा और मकान तीनों चीज़ें हैं मेरे पास. हाँ बस आलीशान नहीं है.

राहुल- कोई बात नहीं राधिका जी लेकिन आपको देखने से तो ऐसा नहीं लगता पर खैर कोई बात नहीं.

राधिका- आप बैठिए मैं आपके लिए चाय नाश्ता लेकर आती हूँ.

राहुल- आरे आप क्यों तकलीफ कर रही हैं. रहने दीजिए इसकी कोई जरूरत नहीं.
राधिका- देखिए राहुल जी आप आज पहली बार आए हैं मेरे घर तो मेरा फर्ज बनता है. इतना कहकर राधिका किचन में चली जाती है और कुछ देर में स्नॅक्स ,चाय वगैरह एक ट्रे में लेकर आती है.

राधिका- कहिए कैसे आना हुआ आपको मेरा घर का अड्रेस कैसे पता चला.

राहुल- उस दिन हम कैंटीन में नाश्ता कर रहे थे तो आपका ये ई-कार्ड वही फर्श पर गिरा हुआ मुझे मिला.बस इसमें तुम्हारा नाम, पता सब कुछ इस ई कार्ड से ही मिल गया.और मैं यहां ………..

राधिका- ओह ये तो मुझे बिलकुल ध्यान ही नहीं रहा .ढयनयवाद राहुल जी नहीं तो ये गुम हो जाती तो मुझे प्राब्लम हो जाती.

राहुल- वैसे आप इस वक्त घर पर अकेली हैं क्या. राहुल से ऐसे सवाल सुनकर राधिका घूर के राहुल को देखने लगती हैं.

राधिका- हां हूँ तो. क्यों कुछ ऐसा वैसे करने का इरादा है क्या. कही तुम मेरा रेप तो नहीं करना चाहते हो ना.

राहुल- हंसते हुए, आरे आप भी कमाल करती हो मैं और रेप,, मुझमें इतनी हिम्मत नहीं है की मैं किसी लड़की का रेप कर सकूँ.

राधिका- क्यों इसमें हिम्मत की क्या बात है. सब जैसे करते है वैसे तुम भी… इतना बोलकर राधिका चुप हो जाती है.

राहुल- राधिका सब इंसान एक….

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