कथा चक्रवर्ती सम्राट की - hindi sex novel

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Re: कथा चक्रवर्ती सम्राट की - hindi sex novel

Unread post by admin » 13 Oct 2015 09:32

क्षमा करना देवी सिक्ता परंतु लगता है आज संध्या की परिचर्चा के लिए अमात्य और राज वैद्य स्वागत कक्ष में आ चुके हैं हम उन्हें अपने स्वार्थ के लिए प्रतीक्षा नहीं करवा सकते हम फिर किसी दिन आपको दिया हुआ अपना वचन निभाएँगे.”

महाराज सिक्ता से क्षमायाचना करते हुए बोले फिर रुद्र्प्रद की ओर मुड़ कर बोले “सेवक हमारी अनुपस्थिति में तुम देवी को संतुष्ट करो ध्यान रहे यह राज-आज्ञा है कर्तव्य पालन में चूक होने पर तत्क्षण तुम्हारा लिंग धारधार खड़ग से काट कर विदीर्ण किया जाएगा फिर उसपे नींबू का रस और नमक मल कर तुम्हें प्राणोन्नतक

वेदना पंहुचई जाएगी”

रुद्र्प्रद की तो बाँछे खिल गयीं , कहा तो उसकी पत्नी तृप्ति महाराज से चुद्वा कर स्वयं चने के वृक्ष पर चढ़ी जा रही थी और अपने पति को अपमानित कर रही थी और अब राज आज्ञा के पालन स्वरूप अब उसे यानी देवी सिक्ता को अपने ही पति के साथ चोदन करने को बाध्य होना पड़ेगा.

अविलंब रुद्र्प्रद चहका “जो आज्ञा महाराज”

टूटी काँच की चूड़ियों के मध्य नग्न ठंडे फर्श पर बैठी हुई सिक्ता के खुले लहराते महाराज के वीर्य से सिक्त केश उड़ उड़ कर उसके मुख मंडल पर आ कर उसके गालों पर सौम्य आघात कर उन को चूमते प्रतीत होते थे , परंतु वह उदास थी दुख आवेश से उसके नयनों से नमकीन अश्रु धारा अविरल बहने लगी , महाराज की

कर्तव्य परायणता आज उसके गर्भधारण और रति सुख के आड़े आ कर खड़ी हो गयी थी. महाराज अपने कर्तव्य का ही पालन करेंगे इसमें उसे लेश मात्र भी संशय न था परंतु महाराज के ऐसा करने का अर्थ था उसकी भूखी प्यासी योनी महाराज के बहुमूल्य वीर्य से वंचित ही रहेगी , अभी अभीतो महाराज भावा वेश में उसके उपर

चढ़ कर अपने लॅंड से उसे सिंचित कर रहे थे और न जाने कहाँ से यह मरा द्वारपाल औरवाह कलमुंहा संदेशवाहक आ गया.

उसे यह सोच कर सिहरन हुई कि उसने अपने पति से महाराज के सामने जो तुच्छता पूर्व व्यवहार कर उसका अपमान किया था न जाने वह उसपर कैसी प्रतिक्रिया देगा . घर में तो वह श्वान मुद्रा में उसके केशों को अपने हाथों से पकड़ कर बार बार खींच खींच कर वह उसका ऐसा छोड़न करता की उसकी गुदा की एक एक

कोशिका प्राणांत वेदना से चीत्कार उठती और गुदा द्वार रक्तरंजित हो जाता . कामावेश में रुद्र्प्रद एकदम पशु की तरह व्यवहार करता संभवत अपने वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा किए गये अनुचित व्यवहार का प्रतिशोध वह संभोग के समय अपनी निरीह पत्नी तृप्ति से पशुता जैसा संभोग कर लेता था.
जो भी हो अब ओखली में सिर दे ही दिया है तो मुसलों से कैसा भय ? आने दो रुद्र्प्रद हो या किसी और को आज तो स्वयं गजराज महावत संग आ जाए तो भी वह अपने कर्तव्य पथ से पीछे न हटेगी.

उधर स्वागत कक्ष में महाराज की निजी सचिव देवी सुवर्णा सिंहासन पर विराजित थी. निजी सचिव का पद स्वयं महाराज शिशिन्ध्वज ने ही स्थापित किया था इसका मुख्य कारण यह था कि राज्य के विद्वान मध्यम वर्गीय ,सामाजिक नैतिकता और शिष्टाचार का पुरस्कार करने वाले खाते पीते परिवार अपनी कन्याओं को को महाराज

की सेवा में भेजें .

देवी सुवर्णा स्वयं उच विद्या विभूषित विभिन्न पद्वियों से अलंकृत विदेशी मामलों की तज्ञ और महाराज के सलाहकार मंडल की प्रधान थी. उनका कर्तव्य कुछ कुछ वैसा ही था जैसा आज कल के मंत्रियों के सलाहकार नौकरशाहों का होता है. अंतर इतना था कि वह महाराज के परिचारिकाओं की स्वामिनी थी औरिस नाते महाराज

की विशेष कृपा उन्हें प्राप्त थी

देवी सुवर्णा ने आमत्य द्वितवीर्य और राज वैद्य वनसवान का स्वागत किया उन्हें विराजने के लिए आसान दिया तथा उनके वरिष्ठता के अनुरूप उन्हें राज्य परिचारिका मंडल की एक एक परिचारिका आवंटित की गयी. इधर प्रधान गुप्तचर का भी आगमन हुआ उनका भी यथोचित सम्मान हुआ और वह अपनी आवंटित परिचारिका के

साथ अपने आसान पर आ विराजे अब महाराज के आगमन की प्रतीक्षा हो रही थी.

देवी सुवर्णा अनुपम सौंदर्यवती थी किंतु उन्होने अत्यंत सादे श्वेत रेशमी वस्त्रों का परिधान किया था , शरीर पर एक भी आभूषण न था और उन्होने अपने केश खुले छोड़े हुए थे उनके विद्वत्ता के तेज से आलोकित उनके ललाट पर उनके रेशमी मुलायम केशों की लटे आ जातीं जिन्हें वह अपनी उंगलियों से संवारती.

देवी सुवर्णा के बारे में कहा जाता कि उन पर ” कार्येशु मंत्री शयनेशु रंभा” की पंक्तियाँ एकदम उचित बैठती थी, महाराज किसी भी मुद्दे पर उनका परामर्श अवश्य सुनते.

तभी महाराज के आगमन की सूचना हुई सभी अपने अपने आसनों से उठ खड़े हुए , शांत कदमों से चलते हुए महाराज अपने सिंहासन पर आ विराजे और सभी को बैठने का संकेत दिया.

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Re: कथा चक्रवर्ती सम्राट की - hindi sex novel

Unread post by admin » 13 Oct 2015 09:32

सभा की कार्यवाही शुरू हो” महाराज ने आदेश दिया तदनुसार सभी ने अपने बाँयी जाँघ पर परिचारिका को बैठाया , देवी सुवर्णा स्वयं महाराज की बाँयी जाँघ पर विराजीतो गयीं. तत्पश्चात सभी ने अपनी अपनी परिचारिका के गालों का चुंबन लिया और उनके गालों पर अपना हस्ताक्षर अपनी जिव्हा से चाट कर किया फिर कानों

के सिरे अपने दाँतों तले दबा कर उन्हें चर्चा में सहभागी होने का संकेत किया

जिव्हा से परिचारिका के गालों पर हस्ताक्षर करना एक प्राचीन पद्धति थी जिससे परिचारिका बैठक को सुनती थी और अंत में अपना मंतव्य अपने स्वामी को सुनाती थी.

देवी सुवर्णा महाराज की निर्वरतमान महारानी भी थी जिनका कार्यकाल पूरा होने वाला था देवी ज्योत्सना उन्हीं का स्थान लेने वालीं थी.

जब महाराज अपना हस्ताक्षर अपनी जिव्हा द्वारा सुवर्णा के गालों पर कर उसके कानो को दाँतों तले दबा रहे थे तो सुवर्णा की दर्द से हल्की चीख निकल गयी.

तत्क्षण महाराज ने अपनी मोटी अनामिका उनकी गुदा में निर्दयता पूर्वक घुसेड दी , जो ‘चुप रहने ‘ का ग़ूढ संकेत था.

” हाँ तो सभासदों चर्चा शुरू की जाय” महाराज ने आज्ञा दी.

अमात्य द्वितवीर्य बोलने को खड़े हुए इधर उनकी परिचारिका मधुस्मिता भी उनके साथ ही उठ कर खड़ी हुईं और अपने बाएँ हाथ से उनकी ग्रीवा में हाथ डाल अपने सिर को उनके वक्ष स्थल पर टीका कर उनके अंगवस्त्र को हल्का हटा कर उनके विशाल वक्ष स्थल पर अपनी जिव्हा से नक्काशी करते हुए छाती के केशों को

सहला रहीं थी.

ऐसा आचरण पुंसवक राज्य की महान संस्कृति के अनुरूप ही था जिसमे स्त्री पुरुष को एक जैसे अधिकार और सम्मान प्राप्त होते थे . किसी भी परिचर्चा में सहभागी होने की पहली शर्त यह होती कि पुरुषों को अपनी पत्नी अथवा पत्नी को अपने पति को अनिवार्य रूप से सहभागी करना ही पड़ता जिससे खुले वातावरण में नि

संकोच हो कर विचारों का आदान प्रदान किया जा सकता.

किसी सहभागी के पति अथवा पत्नी के न होने पर यह परिचर्चा अथवा बैठक का संचालन करने वालों का दायित्व होता कि सहभागियों को निर्धारित पद और वरिष्ठता के अनुसार परिचारक / परिचारिका उपलब्ध कराई जाएँ.

मधुस्मिता , शुचिस्मिता , अस्मिता तथा स्मिता जैसी परिचारिकाएँ ऐसे ही बैठकों में सहभागी होतीं.

महाराज अमात्य को सुनने के लिए उत्सुक थे , देवी सुवर्णा अभी भी अपनी गुदा सहला रहीं थी , किंतु महाराज की अनामिका उनकी गुदा में शने-शने गहरी उतर रही थी. महाराज को आभास हो गया था क़ि अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में देवी सुवर्णा अवश्य ही कोई अप्रिय स्थिति खड़ी कर सकतीं हैं इसी कारण वह सभा में

उनके सहभाग को नियंत्रित कर रहे थे . आज महाराज ने अपने निर्णय स्वयं लेने का विचार कर लिया था.

इसी बीच महाराज की पैनी उंगलियों के दबाव में श्वेत पतली रेशमी साड़ी फट गयी , और देवी सुवर्णा की ठंडी गुदा में महाराज की रत्नजडित अंगूठियों से युक्त उष्ण उंगलियाँ गुदा में सीधे गहरे तक उतर गयीं और महाराज के बढ़े हुए नाख़ून सुवर्णा के मल द्वार को चुभने लगे. एक गहरी सांस भर कर सुवर्णा ने अपने दाँतों तले होंठ

दबा लिए और महाराज प्रदत्त वेदना को सहने लगीं और अमात्य की ओर देखने लगीं.

महाराज “मैं आपसे आग्रह करूँगा कि दरबारी कार्य मंत्री श्री च्युतेश्वर को भी बैठक में सहभागी होने को आमंत्रित किया जाय , वह आपकी आज्ञा की प्रतीक्षा सभागृह के बाहर कर रहे हैं. आज की बैठक में उनके मंत्रालय से संबंधित विषयों पर परिचर्चा होगी”

महाराज ने उत्तर दिया “उन्हें सम्मान सहित अंदर ले आएँ”

देवी सुवर्णा ने ताली बजाई तत्क्षण स्मिता उनके सम्मुख उपस्थित हो गयी , स्मिता संकेत समझ गयी क़ि देवी सुवर्णा और महाराज की आज्ञा से दरबारी कार्य मंत्री च्युतेश्वर की तरफ से परिचर्चा में सहभागी होना है .

तत्पश्चात राजनीति , कूटनीति और व्यवहार शास्त्रों में निपुण महाराज की निजी सचिव , और परिचारिकाओं की प्रधान महाराज की सुविद्य पत्नी देवी सुवर्णा ने अधिकार वाणी से आमत्य को आदेश दिया “मंत्री द्वितवीर्य जब तक दरबारी कार्य मंत्री च्युतेश्वर सभा में पधारते हैं आप अपना निवेदन आरम्भ करिए , च्युतेश्वर जी अपनी

परिचारिका के साथ औपचारिकता पूर्ण करने के पश्चात ही सभा में सहभागी हो सकते हैं , इस बीच उनकी परिचारिका सभा में लिए गये निर्णयों से उन्हें परिचित कराएँगी.”

“जो आज्ञा देवी” अमात्य ने कहा. महाराज को देवी सुवर्णा का यों इस प्रकार उनकी उपस्थिति में अधिकार जताना उचित न लगा उन्होनें तत्क्षण देवी सुवर्णा की गुदा में उन्होने अपनी पैनी उंगली घुसेड़नी चाही परंतु देवी सुवर्णा को इस पैंतरे का आभास हो गया था बिना एक भी क्षण गँवाए उन्होनें अपनी दाँये हाथों से महाराज की

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Re: कथा चक्रवर्ती सम्राट की - hindi sex novel

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अपनी गुदा में गहरे उतरती उंगली मरोड़ डाली और बाँया हाथ महाराज की धोती पर ले जा कर उनके अंडकोष के बाल जोरों से खींचे और अंडकोष मसल डाले , इस दोतरफ़ा वेदनदायक वार से महाराज दर्द से दोहरे हो गये कितनी लोक लज्जा के भय से मौन ही रहे , उन्होने दर्द से विव्हल हो, कर देवी सुवर्णा की ओर देखा ,

देवी सुवर्णा ने आँखें बड़ी कर होंठों से कुछ बुदबुदाई .महाराज मन मसोस कर रह गये. देवी सुवर्णा अपनी पद के अंतिम दिनों में भी अपना अधिकारों के प्रति जागरूक थी और उन्होने महाराज की एक चलने न दी.

“आदरणीय महाराज और देवी सुवर्णा की जय हो ” आमत्य और उनकी परिचारिका ने झुक कर उन्हें नमस्कार किया , देवी सुवर्णा ने मंद स्मित किया और उन्हें अपनी बात कहने की आज्ञा दी.

” आपको यह वीदित होगा कि पिछले डेढ़ वर्षों में राज्य भयानक समस्या से जूझ रहा है , पिछले डेढ़ वर्षों से राज्य में किसी भी स्त्री के गर्भ नहीं ठहर रहा है , प्रजा में भय व्याप्त है . कारण जानने के लिए जब हमने वैद्य वनसवान और गुप्तचरों को लगाया तो हमें बड़ी विचित्र बातें वीदित हुईं.

१. वैद्य वनसवान ने राज्यों के १००० पुरुषों से अपनी सुविद्य पत्नी श्यामला को संभोग द्वारा गर्भधारणा करवानी चाही परंतु
१००० में से ७७७ पुरुषों का लिंग भेदन के समय शिथिल पद जाता . इनका वीर्य पी कर वनसवान ने यह निष्कर्ष निकाला कि किसी अज्ञात रोग से इनका लिंग शिथिल हो जाता है.

२. जो २३३ भाग्यशाली पुरुष देवी श्यामला का भेदन और चोदन कर सके ,उनके वीर्य का परीक्षण करने पर यह पाया गया की उनमें शुक्राणुओं का अभाव है.इस्लिये गर्भ धारणा नही हो सकती.

३. गुप्तचर खेचर यह समाचार लाएँ हैं कि किसी ऋषि ने हमारे राज्य में इस रोग का प्रसारण किया हुआ है जो पूर्वोत्तर में घने जंगलों के बीच साधना करता है.

४. सुनने में आया है की वह एकांत प्रिय है तथा जो भी उसके एकांत में खलल डालने आता है उसकी पालतू कुतिया आगंतुकों का लिंग चबा जाती है.

अत महाराज से सविनय निवेदन है कि सामने रखे गये तथ्यों के आधार पर उचित सोच विचार के बाद आगे की कार्यवाही का आदेश दें और उसका प्रारूप कृपा कर हम सभी को बताएँ.

सभा भवन में गहरी खामोशी छा गयी .महाराज यह ताड़ गये कि वह ऋषि और उसकी पालतू कुतिया कौन है ,वह भय से काठ हो गये आज भूतकाल के कुकर्म आज फलदायी हो रहे थे . महाराज की जाँघ पर बैठी हुई देवी सुवर्णा की तेज नज़रों से यह बात छुप ना सकी कि महाराज बहुत चिंतित हैं उन्होने अपना दाँये हाथ से

महाराज के अंडकोष सहला कर उनके गुप्ताँग पर उगे बेतरतीब बालों पर अपना हाथ फैलाया मानों वह महाराज कीचिन्ता का कारण जानना चाहतीं हों परंतु महाराज मौन रहे.

देवी सुवर्णा समझ गयीं कि अब जोनिरणय लेना है उन्हीं को लेना है. तत्क्षण उन्होने आदेश दिया

“वैद्य वनसवान आपकोयः आदेश दिया जाता है कि शिलाजीत की बूटियाँ हिमालय से मंगवा कर उसकी औषधि बना कर प्रजा में नि शुल्क बँटवाई जाएँ.

हम दरबारी कार्य मंत्री च्युतेश्वर , अमात्य द्वितवीर्य और स्वयं महाराज के साथ उन ऋषि से मिलने घनघोर वन जाएँगी जहाँ वे अपनी साधना कर रहे हैं.”

यह सुनना था कि सभी अपने अपने आसनों से उछल पड़े , भला किस में इतना साहस है कि एक जंगली कुतिया से अपना लिंग कटवाए? परंतु राज आज्ञा का उल्लंघन भी तो नहीं किया जा सकता!

महाराज विचारों में डूब गये स्वयं उनका लिंग भी भेदन के समय कई बार शिथिल पड़ जाता यदा कदा वे छोड़न करने में सफल भी होते तो परिचारिकाओं को गर्भधारणा न करवा पाते , समस्या वाकई काफ़ी गंभीर थी.

“यदि आवश्यकता पड़ी तो हम ऋषि से कारण जानकार आम उन्हें संतुष्ट करेंगी” देवी सुवर्णा बोलीं.

देवी की इस घोषणा के साथ ही पूरा सभागृह उठा.

“पुंसवक नगरी की महान विचारक , राजनीति कूटनीति और व्यवहार नीति में निपुण , रानी , महारानियों परिचारिकाओं की प्रधान महाराज की सुविद्य पत्नी और पट्टरानी देवी सुवर्णा की … जय जय जय”

देवी मधुस्मिता और शुचिस्मिता हाथ जोड़ कर बोलीं “देवी धन्य हैं आप जो राज्य के लिए इतना बड़ा त्याग करने जा रहीं हैं किंतु उस ऋषि के लिंग की लंबाई हमारी योनि की गहराई के सामने कुछ भी नहीं , इस तुच्छ कार्य के लिए परिचारिकाओं को आज्ञा दें”

“नहीं देवी मधुस्मिता हम स्वयं उस ऋषि से रत हो कर अपने राज्य पर आई इस विपत्ति को दूर करेंगी.

तभी वहाँ पर दरबारी कार्य मंत्री च्युतेश्वर का आगमन हुआ , उन्हें देवी उन्हें देवी स्मिता ने देवी सुवर्णा के आदेशानुसार पहले ही सूचित कर दिया था उनको देवी सुवर्णा

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