hindi Novel - Madhurani

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sexy
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Re: hindi Novel - Madhurani

Unread post by sexy » 18 Mar 2016 11:49

Madhurani - CH-7 सरपंच

Courage is not the absence of fear, but rather the judgement that something else is more important than fear.
-Ambrose Redmoon


वे दोनो सरपंच के मकानके पास जाकर पहूंचे. मकान कैसा.... वह तो एक हवेली थी हवेली! हवेलीके अंदर जानेके लिए सामनेही पुराना तेल लगा लगाकर काला हुवा बहुत बडा दरवाजा था. हवेलीका विस्तार भी बहुत बडा था. कमसे कम सामनेसे तो वैसेही लग रहा था. हवेलीकी बायी ओर, हवेलीसे सटकर सरपंचकी बहुत बडी गोशाला थी. अभी वह खालीही दिखाई दे रहा थी, शायद जानवर सुबह जल्दीही चरनेके लिए जंगलमें चले गए होंगे. गणेशको अंदर ले जाते हूए सदाने दायी तरफ जो बैठक थी उसमें गणेशको बिठाया. बैठक मतलब एक थोडी उंचाईपर बंधा एक कमरा था, और उसमे गद्दे इत्यादि बिछाए हूए थे. गणेश बैठकमें इधर उधर देखते हूए ही अंदर गया. उधर सदा घरके अंदर चला गया था, शायद सरपंचको बुलानेके लिए. बैठकमें दिवारोंपर अलग अलग प्रकारकी तस्वीरे लगाई हूई थी - जैसे नेहरु, लाल बहादूर शास्त्री, महात्मा गांधी, इत्यादि. गणेश उन तस्वीरोंको देखते हूए एक जगह गद्देपर बैठ गया. दिवारपर उसका ध्यान एक गंभीर प्रभावशाली लंबी लंबी मुंछोवाले, सरको महंगीसी पगडी बांधे हूए एक आदमी की तस्वीर की तरफ गया. शायद वे सरपंचके पिता होंगे या पिताके पिता होंगे. तभी अंदरसे सदा एक बाल्टीमें पानी ले आया.

" आवो साबजी हाथपैर धो लिजियो ... इतनी दुर से आवत रहे ... थक गए होंगे... " बाल्टी लेकर सदा सामने बाहरी चबुतरेपर जाते हूए बोला.

" हां ... " कहते हूऐ गणेश उठ गया और उधर चला गया.

लोटेसे बाल्टीसे पानी लेकर गणेशने हाथ पैर मुंह धोकर, मुंह मे पाणी लेकर कुल्ला किया और अब वह पानी थूकनेके लिए इधर उधर देखते हूए जगह ढूंढने लगा.

" इहा सामने थूक दियो जी ... " सदाने गणेशकी उलझन देखते हूए कहा.

उसने अपने आपको असहज महसूस करते हूए अपने मुंहमे भरा हूवा पानी सामनेही लेकिन थोडी दूर थूकनेकी कोशीश की तो सदा मन ही मन मुस्कुराया.

" सरपंच पुजापाठ करत रहे है ... थोडी देरमें आ जावेंगे... आप आरामसे बैठकमें बैठीयो ... मै चायपानीका इंतजाम कराये देवत हूं " गणेशके पास हाथपैर पोछने के लिए एक तौलीए जैसा कपडा देते हूए सदाने कहा. जब गणेश हाथपैर पोछने लगा, सदा जल्दीसे अंदर चला गया.

गणेशको अब, हाथपैर धोनेके बाद तरोंताजा महसूस होने लगा था. बससे आनेकी वजहसे चेहरा पसिना और धुलसे मलिन हुवा था. चेहरा पोछते हूए वह पैर लंबे कर लोडपर लेट कर बैठ गया. बसमें पैर एक सिमीत दायरेमें रखनेसे अकड गए थे. चेहरा पोछकर कपडा एक तरफ रखते हूए उसने अपनी थकान दुर करनेके उद्देशसे पैरोंको और जोडोंको ढीला छोड दिया. तभी सदा पिनेके लिए पानी लेकर आया. यहा का पानी पिलानेका तरीका कुछ अलगही लग रहा था. सदाने पानीसे भरा हूवा पितल का लोटा गणेशके हाथमें थमाया. लोटेको उपरसे पितलकीही एक कटोरीसे ढका था. यह ऐसा तरीका उधर बारामतीकी तरफ उसने देखा था. जितना लगता है उतना पानी कटोरीमें खुद लो और पानी पिनेके बाद फिरसे लोटेको उसी कटोरीसे ढको. ना जाने क्यो यह तरीका उसे पहले देखा तबभी अच्छा नही लगा था. उसके मनमें एक आशंका हमेशा रहती थी की अगर कटोरीसे पानी पिकर कटोरी फिरसे लोटेपर रखी तो कटोरीका झूठा पानी लोटेमें फिरसे गिरेगा. लेकिन यह हूई उसकी सोच, उधर बारामतीकी तरफ तो बडे बडे लोग इसी तरह से पानी पिते थे. वैसे उसे प्यासभी बहुत लगी थी. सुबह पौ फटनेसे पहले घरसे बाहर निकलनेके बाद अबतक पानी की एक बुंद उसके पेटमे नही गई थी. वह मुंह के उपर लोटा तिरछा कर उपरसे गटागट पानी पिने लगा. लोटा खाली होनेके बादही उसने निचे रखा और एक लंबी सांस ली.

" बहुत प्यास लगी रहत ... है जी ?... और लेकर आऊ? " सदाने पुछा.

गणेशने सर हिलाकर 'नही' कहा.

सरपंच पुजापाठ निपटाकर शांतीसे बैठकमें आ गए. सफेद धोती और उपर कपडेका सिला हुवा वैसाही सफेद बनियन. मस्तकपर लाल टिका लगाया हुवा. पुजाके पहिले सुबह सुबह नहा धोकर तैयार होनेसे उनके तेल लगाए हुए बाल और चेहरा एक अनोखे तेज से चमक रहे थे. सरपंच एक अध्यात्मीक व्यक्तीत्व लग रहे थे. वैसे गणेश और सरपंचजी की तहसीलमें पहलेही पहचान हूई थी. सरपंचजीके आतेही लेटा हूवा गणेश सिधा होकर बैठ गया.

" नमस्ते ... गणेशराव "

" नमस्ते ... "

सरपंचजी गणेशके बगलमेंही दुसरे एक लोडको खिंचकर टेंककर बैठ गए.
गणेशके पिठपर हलकेही थपथपाते हूए सरपंचजीने कहा, " फ़िर कैसन हो... कुछ तकलिफ तो ना हूई ना ईहां तक पहूंचनेमें "

गणेश उलझनमें पड गया की हां कहां जाए या ना कहा जाए ... क्योंकी यहां तक की उसकी यात्रा कुछ खांस सुखदायकतो नही हूई थी. .

उसकी उलझन देखकर सरपंचजीने कहां " शुरु शुरु में... तकलीफ तो होवेगीही... इतनी दुर वहभी देहात
मा और बससे उबड खाबड रास्तेसे आना बोले तो तकलीफ़ तो होवेगीही... लेकिन धीरे धीरे आदत हो जावे गी..."

सरपंचजीका बोलनेका लहजा एखाद दुसरा लब्ज छोडा जाए तो काफी साफ सुधरा लग रहा था... कम से कम उस देहाती सदा से तो साफ सुधरा था ही. तभी सदा चाय लेकर वहां आ गया.

" अरे सिरफ चाय ... साथमें कुछ खानेको भी ले आवो भाई .. " सरपंचजी ने उसे टोका.

सदाने चायकी दो प्यालीयां दो हाथमें पकडकर लाई थी. सरपंजीकी सुचना सुनतेही असमंजससा वह दरवाजेमेंही खडा हो गया.

" नही... सरपंचजी... घरसे निकलने के पहलेही मैने नाश्ता किया है... मुझे सुबह उठते बराबर नाश्ता करनेकी आदत जो है. ... "

"अरे नही ऐसे कैसे... आप हमारे ईहा पहली बार आवत रहे.... "

" नही सरपंचजी ... सचमुछ रहने दिजीए .... "

" अच्छा ठिक है... लेकिन सदा इनके दौपहरके और शामके खानेका इंतजाम करनेके लिए जरा अंदर बता दीज्यो .. "

सदाने अपने चेहरेपर मुस्कान लाते हूए अपना सर सहमतीमें हिलाया और चाय लेकर वह गणेश और सरपंचजीके सामने आकर खडा हो गया. चायकी प्यालीयां उनके हवाले कर वह फिरसे जल्दी जल्दी अंदर चला गया.

" बहुत ही सभ्य आदमी लगता है .. " गणेशने चाय लेते हूए सदा जिस तरफ गया उस तरफ़ देखते हूए कहा.

सरपंचभी जो चाय पी रहे थे उन्हे चाय पिते हूए अचानक चाय मानो उनके गलेमें अटककर खांसी आ गई.
उन्होने गणेशकी तरफ आश्चर्यसे देखते हूए पुछा, " आपको ये ईहां ले आया ?"

" जी हां "

" हे भगवान ... " हैरानीसे सरपंचजीने अपने मस्तकपर हाथ मारते हूए कहा.

" क्यो क्या हूवा ? "
" कुछ नाही "

आगे और सरपंचजीने कुछ नही कहां और वे फिरसे अपनी चाय पिनेमें व्यस्त हूए देखकर गणेशने कहा,

" आप नही जानते ... मेरी पहचान ना होते हूए भी उसने बस स्टॉपसे मेरा सामान यहांतक उठाकर लाया... और रास्तेमें बाते कर मेरा मनोरंजनभी किया... सचमुछ ऐसे सज्जन और सभ्य लोग देहातमेंही मिलना मुमकिन है... और वेभी बहुत कम .. अपनी उंगलीयोंसे गिनती हो इतनेही होंगे... ... "

" सज्जन? ... कौन सदा ? " सरपंचजीने आश्चर्यसे पुछा.

गणेश सरपंचजी सदाके बारेंमे आगे क्या कहते है इसकी राह देखने लगा. लेकिन सरपंचजी इतनाही कहकर आगे चुप रहे.

" क्यों क्या हुवा ? ... मुझे तो बहुत सज्जन लगा वो "

" कुछ ना ही ... धीरे धीरे आपको सब समझमें आ जावेगा ... " इतना कहकर सरपंचजीने बातोंका रुख बदल दिया.

" अब दिनभर क्या करने का इरादा है ... मेरा मतलब ई है के ... कुछ आराम कर काम शुरु करेंगे या अभी तुरंत... ... "

सरपंचजीने बातोंका रुख बदलनेकी बात गणेशके खयालमें आगई. लेकिन उसे भी उसीके बारेंमें और कुरेदकर पुछना अच्छा नही लगा. लगभग तीनचार घंटेकी यात्राके बाद गणेश काफी थक गया था. उसमे तुरंत अभी काम शुरु करनेका उत्साह बाकी नही था. गणेश सोचमें पड गया.

क्या किया जाए? ...

तुरंत काम शुरु किया जाए?...

या थोडे आराम के बाद?...

सरपंचजीने मानो उसके मनमें चल रहा द्वंव्द भांप लिया.

" ठिक है ... ऐसा किजीयो ... थोडा विश्राम करियो ... तबतक खाना बन जावे गा ... और फिर खाना खानेके बाद ही कामको शुरवात करते है... "

" हां ठिक है ... वैसेही करेंगे... " गणेश अपने पैर थोडे फैलाते हूए बोला.

" और आप बिनदास्त आराम किजीयो ... एकदम पुरा लेटकर... मै सदाको दरवाजा बंद करनेके लिए कहे देता हूं " ऐसा बोलते हूए सरपंचजी बैठकके बाहर निकल गए.

क्रमश:

Courage is not the absence of fear, but rather the judgement that something else is more important than fear.

-Ambrose Redmoon

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Re: hindi Novel - Madhurani

Unread post by sexy » 18 Mar 2016 11:49

Madhurani - CH-8 कमरा

When hungry, eat your rice; when tired, close your eyes. Fools may laugh at me, but wise men will know what I mean.
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खाना-वाना होनेके बाद दोपहर गणेश और सरपंचजी घरसे बाहर निकले. उनके साथ एक नौकरभी था.

"सबके पहले आपके रहनेका , खानेपीनेका इंतजाम करना जरुरी है... हर बार अपडाऊन करना आपसे ना ही हो पावे गा ... "

" हां मुझेभी ऐसाही लगता है ... कमसे कम यहां हूं तबतक एखाद कमरा रहनेके लिए मिलता है तो बहुत अच्छा होगा "

" मिलेगा ना... जरुर मिलेगा... उधर हमरा और एक घर है .... वहां अभी कोई ना ही रहत... लेकिन वहां हम सारा खेतीका सामान समान जैसे की हल, दरांती, कुल्हाडी, और खेतीमें लगनेवाली जंजीरे, रखत है ... लेकिन सामनेके कमरेमें आप आरामसे रह पावे है... . "

" हां ... उतनी ही रखवालदारी हो जावेंगी हमरे सामान सुमानकी ... " सरपंचजीका नौकर बिचमेंही बोला.

सरपंचजीने उसकी तरफ कडी नजरसे देखते हूए उसे चूप रहनेका इशारा किया.

साले बेवकुफ़ नौकर कभी नही सुधरेंगे ... उन्हे कब कहां क्या बोलना चाहिए.. थोडा भी दिमाग नही है....
सरपंचजीने सोचा.
गणेशरावको क्या लगा होगा... की मै उन्हे रखवालीके लिए अपने घरमें पनाह दे रहा हूं ...

" लेकिन सरपंचजी ... मै जादा कुछ किराया नही दे सकुंगा. "

" अरे आप उसकी चिंता मत किजीयो ... हम क्या आपसे किराया लेवेंगे ? " सरपंचजीने गणेशके पिठपर थपकी लगाते हूए कहा.

" नही ... नही ... ऐसे कैसे... जो कुछ भी होगा आप बता दिजीए.. "

'' अरे गणेशराव ये क्या शहर है .... आपसे किराया लेवेंगे तो ... सारे गांव मे हमरी नाक कट जावेंगी ... "

चलते हूए अबतक गणेशके खयालमें आ चुका था की यह वही रस्ता है जिससे वे बसस्टॉपसे सरपंचजीके घरकी तरफ जाते हूए गुजरे थे.

" सुबह हम इधरसेही गुजरे थे... "

" हां ... हमरा घरभी इधरही आवे है ... हमरे घरके सामनेसेही गुजरे होंवेंगे . "

वे तिनो फिरसे सुबह जिस दुकानके सामनेसे गुजरे थे उस दुकानके सामने आ गए. दुकानके गल्लेपर अबभी वही सुंदर युवती बैठी हुई थी. उसकी तरफ देखकर ना जाने क्यो गणेशके शरीर से एक अजिबसी सिरहन दौड गई. उसकी दिलकी धडकन तेज होने लगी थी. अभीभी उस युवतीका ध्यान उसकी तरफ नही था. लेकिन उसकी दिल मोह लेनेवाली तेज बिनदास हरकते देखने लायक थी.

" वह हमरी मधुराणीका दुकान " गणेशके देखनेका रुख देखकर सरपंचजीने कहा.

" अच्छा .. अच्छा " गणेश ज्यादा दिलचस्पी ना दिखाते हूए बोला.

" और उसकी दुकानके एकदम सामने है हमरा घर " सरपंच उस दुकानके सामने स्थित एक घरके सामने खडे होते हूए बोले.

सरपंचजीके बोलनेमें शायद कुछ शरारत छिपी हुई थी... कमसे कम गणेशको वैसे लगा था.
और सरपंचजीका दुसरा घर मतलब, इट-पत्थर और मिटी से बने हूए 3-4 कमरे थे. घर उपरसे लोहेके टीन - छप्परसे ढंका हुवा था. और वे टीन नटबोल्टसे फिट किए होनेसे छप्परको बिच बिचमें छोटे छोटे गढ्ढे दिख रहे थे. सरपंचजीने नौकरके हाथमें चाबियां थमाते हूए उसे सामनेका ताला खोलनेका इशारा किया. नौकरने चाबी लेकर जल्दीसे सामनेके दरवाजेपर लगा हुवा ताला खोला. तभी गणेशके बगलमें ऐसी कुछ हरकत हूई की वह की वह चौंक गया. देखता है तो लगभग उसके शरीर को स्पर्ष करती हूई मधुरानी उसकी बगलमें आकर खडी हो गई थी.

" नमस्कार सरपंचजी " मधुराणीका मधुर स्वर गुंजा.

कितना मधूर और आंदोलीत करनेवाला स्वर था वह...

" नमस्कार " सरपंचजीने पलटकर उसके नमस्कार को प्रतिसाद दिया.

" बहुत दिनों बाद दिखाई देवे है ... . क्या घरको रंग देनेका सोच तो नाही रहियो ... ऐसी बात होवे तो हमें बताई दियो ... हमरें दुकानमें पडी है कुछ रंगरोटी " वह सरपंचजीसे बोली.

गणेश एकदम उसके करीब खडा उसकी हर अदा, उसके बोलनेका ढंग, उसकी हर हरकत निहार रहा था. बोलते वक्त उसकी रसीले गुलाबी होठोंसे झलक रहे उसके सफेद दांत विषेश मादक लग रहे थे. गणेश अपने होश हवास खोकर उसकी हर अदा निहार रहा था.

" अरे नाही ... हमरे गांव में ये नए ग्रामसेवक आवे है... गणेशराव ... उनके रहने का इंतजाम करने की सोच रहे है "

" अरे सच्ची ... शहरके दिखाई देवत रहे .... मेरा तो ध्यानही नाही ही था.... सोचा कोई नया मेहमान होवे है " वह गणेशकी तरफ देखते हूए बोली.

अब वह उससे जरा दूर हटके खडी होगई. गणेशका दिल मायूससा होगया. उसे वह उसका हल्का हल्का स्पर्ष अच्छा लग रहा था. लेकिन उसके चेहरेपर छाई वह मायूसी फिरसे हट गई. उसकी वहं सिधे दिलको छुनेवाली मादक नजर अब उसे घायल कर रही थी. उसकी तरफ देखकर गणेश मंदसा मुस्कुराया.

" अच्छा तो बाबूजी आप ईहां रहनेवाले हो... फिरतो आप हमरे पडोसी होवे है ... हमरा बहुत जमेगा.. देखोजी ... " उसने आगे कहा.

तबतक सरपंचजीका नौकर दरवाजा खोलकर अंदर चला गया.

"अच्छा गणेशराव मै क्या सोचरिया... आप आगेका कमरा लीजो .. " सरपंचजी बोले.

" अच्छा सरपंचजी ... आती हूं " मधुराणी वहांसे निकलकर अपने दुकानकी तरफ जाते हूए बोली.

सरपंचजीने गर्दन हिलाई . जाते हूए उसने गणेशकी तरफ देखते हूए एक मुस्कान दी. गणेशभी उसकी तरफ देखते हूए मुस्कुराया. जैसे वह वहांसे चली गई सरपंचजी और गणेश उस नौकर के पिछे कमरेमें घुस गए. वह नौकर अंदर आकर इधर उधर कुछ ढुंढ रहा था.

" ए येडे पहले लाईट तो जलाई दे ... हमरे नौकर ना एक एक नमुने होवे है ... " सरपंच चिढकर बोले.

नौकरने वापस आकर दरवाजेके बगलमें स्थित बल्बका स्वीच दबाया. अंधेरे कमरेमें सब तरफ बल्बकी पिली पिली रोशनी फैल गई. कमरेंमें सब तरफ हल, दरांती, कुल्हाडी, और खेतीमें लगनेवाली जंजीरे, जैसे सामान सब तरफ फैलकर रखे हूऐ थे.... और उस सामानपर धुल की एक हलकीसी परत जमी हूई थी. कुछ थैले भी रखे हूए थे जिसके मुंह रस्सीसे बंधे हूए थे.

" तो फिर बोलियो कैसा रहा ये कमरा.... ' सरपंचजीने गणेशसे कहा.

और आगे नौकरको कुछ आदेश देते हूए बोले, ' ए तूम इस कमरेंमे रखा सामान सुमान अंदरके कमरेंमे रख दियो और इन्हे यह कमरा साफ कर दीजो ... बाबूजी आजसे ईहां रहेंगे ... . "

" जी साबजी " नौकरने हामी भर दी.

" और हां न्हाणी उधर अंदर है "

"न्हाणी?"

"मतलब बाथरुम जी " सरपंचजी हसते हूए बोले.

गणेशने अंदर जाकर बाथरूम देख ली.

गणेश बाहर आते हूए बोला " संडास.... संडास नही दिख रहा है "

" गणेशराव ....ई देहात है... ईहां सब लोगोंको खुली हवाकी आदत है... एकबार सरकारने संडास बांध दिए थे ईहां... लेकिन उसमें कोई नही जाता रहा ... आखीर लोगोंने तुड़वा दिए ... कमसे कम एक तो रखना था... आपके जैसन लोगोंके वास्ते ... "

गणेशका चेहरा उदास हो गया. वह अपने चेहरेके भाव छुपाता हुवा बोला, " वैसे कमरा अच्छा है... वैसे मैभी कुछ जादा रुकनेवाला नहीं हूं यहा... हफ्तेमें दो तिन बार बस... "

" और संबा अब एक काम लगाई रहा तुमरे पिछे... गणेशराव जब जब ईहां रुकेंगे... उनका पाणी वानी भरना तुम्हारी तरफ ... समझे... " सरपंचजीने अपने नौकर को ताकीद दी.

" पाणी ? " गणेशने आश्चर्यसे पुछा.

" अब नल कहां है ? ये मत पुछियो जी .. " सरपंचजी गणेशका मजाक करते हूए बोले.

गणेश फिरसे झेंपसा गया.

" हमारा ये नौकर आपको पाणी कुंएसे भरकर लाकर देवत रहेगा... " सरपंचजी ने कहा.

" चलो अब उधर ऑफीसमें जावत रहे ... तबतक तुम साफ सफाई करियो ... समझे... " सरपंचजीने अपने नौकरको फिरसे आदेश दिया.

" जी साबजी " नौकर बोला और उसने अपना काम शुरु कर दिया.

सरपंचजी और गणेश कमरेसे बाहर आगए और आफिसकी तरफ निकल पडे. जाते हूए गणेश लाख कोशीश की बावजुद अपनी नजरको मधूराणीकी दुकानकी तरफ जानेसे रोक नही सका.

क्रमश:...


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Re: hindi Novel - Madhurani

Unread post by sexy » 18 Mar 2016 11:50

Madhurani - CH-9 खराडे साब

Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
-oscar Wilde


गणेश ऑफिसमें बैठकर पुराने ग्रामसेवककी राह देखने लगा. सरकारने ग्रामपंचायतके व्दारा ग्रॅन्ट देकर जहां हर बृहस्पतीवारको हर हफ्ते बाजार भरता था वहीं मैदानमें एक कोनेमें एक अच्छा खांसा छोटा ऑफीस बनाकर दिया था. पुराने ग्रामसेवकसे चार्ज लिए बैगर गणेशको वहां काम शुरु करना मुमकीन नही था. तभी उसे दरवाजेमें किसीकी आहट हो गई. गणेशने उधर देखा.

लगता है आगए है पुराने ग्रामसेवक...

वह उनकी अंदर आनेकी राह देखने लगा. काफी समय होगया फिरभी कोई अंदर नही आया यह देखकर गणेशने फिरसे उस तरफ देखा. उसे फिरसे वहां दिवारपर कोई साया हिले जैसा दिखा.

शायद कोई देहाती होगा ... और कामके लिए आया होगा ...

साला अबतक चार्जही नही लिया और ये लोगोंका होगया शुरु...

" कौन है ?" गणेश अपनी जगहसेही चिल्लाया.

एक फटे पुराने कपडे पहना हूवा आदमी अंदर आ गया.

" मै हूं साबजी ... पांडू"

" देखो मै आजही यहां जॉईन हुवा हूं ...अभी मैने चार्जभी नही लिया है ... तुम कल आ जावो ..."

" नाही साबजी ... मै ईहां का चपरासी हूं "

" चपरासी ... लेकिन ऑर्डर लेते वक्त तो मुझे ऐसा कुछ नही बोला गया था की यहां कोई चपरासी भी है "

" मतलब वैसे नाही साबजी ... "

कुत्ता जैसे अपनी दुम हिलाते हूए अपने मालीक के पास जाता है वैसे वह गणेशके पास गया.

" अच्छा अच्छा ..." अब गणेशके खयालमें आगया.

" अरे ... खराडे साब कैसे नही आए अबतक ..." गणेशने उसे पुछा.

" अभी आवत ही रहे होंगे... वे उनके गांवसे आवत रहे ना... इसलिए कभी कभी देर हो जात रही ..."

" देर ?... सुबह आने चाहिए थे... अब दोपहर हो कर गुजरी है... फिरभी नही आए है अबतक .."

" आ जावेंगे साबजी ... कभी कभी हो जात रही....ऐसन "

" और तुम कहां रहते हो ..." गणेशने पुछा.

" ई यहीं ... उस तरफ वाली गलीमें... ई हां ऑफीसमा कुछ आहट होई गयी इसलिए आवत रहा ... मुझे लगा खराडे साब आवे है... तभी आते हुए रास्तेमें सरपंचजी मिलत रहे ... उन्होने कहां की नए साबजी आवे है करके... "

यह स्पष्ट था की पुराने ग्रामसेवककी आनेका ऐसा कुछ समय तय नही था. गणेश कुछ नही बोला. उसने फिरसे अस्वस्थतासे अपनी घडीमें देखा.

" चाय पाणी ... कुछ लावू क्या साबजी "

" चाय? ... यहां कही हॉटेल है क्या ?"

" नाही साबजी ..."

" फिर चाय कहांसे लावोगे... ? "

" लाऊंगाजी आस पडोससे ... किसीके घरसे... "

" और पैसे..."

" साबजी ने बोलने के बाद ... पैसे लेनेकी किसकी मजालजी ? "

" लेकिन ऐसे कैसे ... कुछ किसीके यहांसे लानेका और वहंभी बेदाम ..."

" साबजी ... ईहांकी पब्लीक बहुत येडी है ... जबरदस्ती दिया तो भी पैसे नही लेवेगी... फिर हमराभी क्या जाता है.... बेदाम तो बेदाम " वह ताली लेनेके लिए गणेशके सामने हाथ करते हूए बोला.

गणेशने उसके फटे पुराने और मैले कपडेकी तरफ और उसके पसीनेकी बदबुभरे शरीर की तरफ देखकर अपना ताली लेनेके लिए सामने जाता हूवा हाथ रोक दिया. साफ झलक रहा था की वह गणेशको खुलाना चाहता था.
फिरसे दरवाजेमें कुछ हरकत हुई. गणेशने और पांडूने उधर देखा. उन्होने देखा की आखिर खराडे साहब आ गए थे. खराडे साब मतलब सफेद पैजामा और उपर रेशमी शर्ट , मुंहमें पान, तेल लगा चिकनाई भरा चेहरा, सरपर पतले हूए लेकीन अबभी पुरी तरह काले - तेल लगे हूए बाल.

चलो आगए एक बार खराडे साब...

" नमस्कार साबजी..." पांडूने नमस्कार किया.

पांडूके नमस्कारकी उपेक्षा करते हूए आए बराबर उन्होने वही एक कोनेमें मुंह मे भरे पान की पिचकारी मारी.

" अरे क्या करे... घरसे सुबह ही निकला लेकिन देखो कैसे आते आते दोपहर हो गई... ." कुर्सीपर बैठते हूए वे गणेशरावकी तरफ देखते हूए बोले.

गणेश सिर्फ उनकी तरफ देखकर मुस्कुराया. उसे मालूम था की उनसे अब देरसे आए बात के लिए बहस करनेसे सिधे चार्ज हॅड ओवर करनेके बारेमें बात की जाए तो सब कुछ उतनाही जल्दी होगा. नहीतो और एक दिन लगेगा.

" कितना समय लगेगा चार्ज लेनेको ..."

" उसका क्या है गणेशराव ... मुझे देनेमे कुछ समय नही लगेगा... पांच मिनिटका काम है... लेकिन तुम्हे लेनेमे कितना समय लगता है यह तुम देखो... " खराडे साहब मानो अपने खुदकेही जोक पर हंसते हूऎ टेबलके निचे पैर लंबे करते हूए बोले.

पांडू आगे आगया और उन्होने अपनी बॅग पांडूके हाथमें थमा दी. पांडूने वह बॅग बगलमें दिवारमें बने बिनादरवाजेकी अलमारीमें रख दी. वहां अलमारीमें औरभी बहुत धुलमें पडे कागजाद रखे हूए थे. कोनेमें एक गोदरेजकी अलमारी थी.

उसमें सब महत्वपुर्ण फाइलें रखी होगी... गणेशने सोचा.

अभीभी खराडे साहब कामके बारेमें कुछ नही कर रहे है यह देखकर गणेश बोला, " तो शुरवात करे...."

" रुको भाई ... ऐसीभी क्या जल्दी है.... पहले आरामसे चाय पिएंगे... और फिर कामके बारेंमे सोचेंगे.... सरकारी काम अगर ऐसेही फटाफट होने लगां तो कैसे होगा... तुम अभी नये हो... बच्चे हो... हो जायेंगी धीरे धीरे आदत... मैभी नया था तब ऐसे ही था... तुम्हारे जैसे... लेकिन सच कहूं ... बहुत गुस्सा आता था पहले... सरकारी लोगोंका ... मैनेतो सारी सिस्टीम बदलनेकी ठान ली थी.... लेकिन अब देखो... निकले थे सिस्टीमको बदलने .... और खुद बदलके रह गए... " खराडे साहबकी बडबड शुरु होगई.

गणेश सिर्फ सुन रहा था. उसे मालूम था की बोलकर कुछ नही होनेवाला. उलटी औरभी देरी हो जाती.

" ए पांड्या ... जरा शांताबाईके यहांसे चाय लेकर आ" खराडे साहबने आदेश दिया.

पांडू तुरंत दौडते हूए बाहर चला गया. खराडे साबने अब बैठे बैठे ही अपनी कुर्सी पिछे खिसकाई और आरामसे बैठते हूए पुछा,

" तो... यही रहोगे या अपडाऊन करोगे ?"

" यही एक कमरा दिया है सरपंचजीने "

" अच्छा... सरपंच बहुत अच्छा आदमी है यहां का"

खराडे साहबने इधर उधर कोई है तो नही यह देखा और जितना हो सके उतना गणेशके पास उपना मुंह लेकर कहा, " तुम हो इसलिए एक पर्सनल मशवरा देता हूं ..."

गणेश खराडे साहब क्या बोलते है इसकी राह देखने लगा.

" यहां के लोग... बहुत बुरे है .. यहां किसीके झमलेमें मत पडो... यहां हम भले और हमारा काम भला ऐसे रहना पडता है.... एक को सलाह दो तो दुसरेको बुरा लगता है... और दुसरेको दो तो तिसरेको गुस्सा आता है... अब क्या बोलू तुम्हे ... बहुत बुरा गांव है ये... मतलब ... मेरे पुरे नौकरीके अबतक के कार्यकालमें मैने इतना बुरा गांव कही देखा नही " खराडे साहब बोल रहे थे.

गणेशको खराडे साहबकी फालतु बकवास सुननेमें बिलकुल दिलचस्पी नही थी. उसे कब एकबार चार्ज लेकर कामपर लग जाता हूं ऐसे हो गया था.

" सब फाईल इस अलमारीमें रखी होगी ... नही ? ..." गणेश फिरसे असली बातपर आते हूए बोला.

खराडे साहब कुछभी बोले नही. फिरसे एकबार कोनेमें जाकर पानकी पिचकारी मारकर आगए.

" आलमारीकी चाबी आपके पासही होगी ... नही? ... " गणेश फिरसे बोला ताकी खराडे साहब कुछ जल्दी करे.

" क्या भाईसाब... आप तो बहुत ही व्याकुल हो रहे हो... मेरी बात मानो ऐसी सिन्सीयारीटी गव्हर्मेंटमें कुछ कामकी नही ... कभी कभी तो ऐसी सिन्सीयारीटी हमारे लिए ही खतरा बन जाती है... मतलब ये मेरे अनुभवके बोल है... मै तो बोलता हूं ये बोल लिख लो... "

गणेशको अब इस आदमीको कैसे हॅन्डल करे कुछ सुझ नही रहा था. उसे चिढभी आ रही थी और हंसीभी आ रही थी. लेकिन चिढकर काम नही बननेवाला था और हंसनेसे तो और भी खतरा था. उलटा काम बिगड सकता था. आखिर गणेशने अपने पल्ले बांध लिया की भले दो दिन क्यों ना लगे ... लेकिन खराडेसाहब के अनुसारही आगे चलना चाहिए. वैसेभी उनके पास कौनसा दुसरा रास्ता था. ?. उधर खराडे साहब की फालतु बकबक चल रही थी और इधर गणेश एक अपने अलगही दुनियामें रममान हुवा था की जिसमे उसे खराडे साहबकी बकबक तो सुनाई दे रही थी लेकिन चिढभी नही आ रही थी और हंसीभी नही आ रही थी.


Imagination was given to man to compensate him for what he is not, and a sense of humor was provided to console him for what he is.
-oscar Wilde

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