घरेलू चुदाई समारोह compleet

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007
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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:37

“बैठ जा इस पर, छिनाल… चल साली कुतिया… चोद मेरे लौड़े को। अब किस बात का इंतज़ार है… मुझे पता है कि मुझसे ज्यादा तू तड़प रही है मेरा लौड़ा अपनी चूत में खाने के लिये। बैठ जा अब इस पर राँड… चोद अपनी गीली चूत पूरी नीचे तक मेरे लण्ड की जड़ तक…”

“ये ले… साले हरामी…” कोमल बोली और उस मोटे लण्ड को जकड़ने के लिये उसने अपनी चूत नीचे दबा दी- “हाय… कितना बड़ा और मोटा महसूस हो रहा है, विशाल सख्त लौड़ा… अपना लण्ड मेरी चूत में ऊपर को ठाँस… चोदू, मुझे पूरा लण्ड दे दे… मैंने अपनी चूत में कभी कुछ भी इतना बड़ा नहीं लिया। ऐसा लग रहा है जैसे ये लौड़ा मेरी चूत को चीर रहा है…”

कोमल सच ही बोल रही थी। ये अदभुत ठुँसायी जो इस समय उसकी चूत में महसूस हो रही थी, इसकी कोमल ने कभी कल्पना भी नहीं की थी। उसे लग रहा था कि उसकी तंग चूत इतनी फैल जायेगी कि फिर पहले जैसी नहीं होगी। फिर भी बोली- “मुझे पूरा चाहिये… बेरहमी से चोद मुझे कर्नल… मेरी चूत में ऊपर तक ठाँस दे… चीर दे मेरी चूत को, इसका भोंसड़ा बना दे…”

कर्नल को हैरानी हो रही थी कि इस उछलती और चिल्लाती औरत ने उसका पूरा लण्ड अपनी चूत में ले लिया था। उसने पहले जितनी भी औरतों को चोदा था, कोई भी उसका लण्ड आधे से ज्यादा नहीं ले सकी थी। उसे खुशी थी कि आखिर उसे ऐसी औरत मिल गयी थी जिसने न सिर्फ़ उसका पूरा लण्ड अपनी चूत में ले लिया था बल्कि और माँग कर रही थी। वो कोमल की झुलती चूचियों को मसलते हुए बोला- “चोद इसे… भारी चूचियों वाली राँड…”

“ओह… हाँ… वही तो मैं हूँ, दो-टके की राँड… चोद अपनी बड़ी चूचियों वाली राँड को अपने इस गधे के लण्ड से, ठूंस दे मेरी चूत अपने लण्ड से… बना दे मेरी चूत का भोंसड़ा…” कोमल बोली और जब उत्तेजना और जोश में उसका शरीर थरथराने लगा तो वो अपनी आँखें बंद करके अपना सिर आगे-पीछे फेंकने लगी। अपनी दहकती चूत की दीवारों पर मोटे लौड़े का घर्षण महसूस करती हुई कोमल अपना हाथ नीचे लेजाकर अपनी सख्त हुई क्लिट रगड़ने लगी। कोमल को विश्वास हो गया था कि अगर भविष्य में उसे गधे या घोड़े से चुदवाने का मौका मिला तो वो छोड़ेगी नहीं क्योंकी कर्नल का लण्ड भी किसी गधे-घोड़े के लण्ड से कम नहीं था।

जब कर्नल ने कोमल की चूचियों को एक साथ मसला और उसके निप्पलों पर चुटकी काटी तो कोमल को चरम सीमा पर पहुँचाने के लिये यही काफी था। ,उसका बदन ऊपर उठा जब तक कि सिर्फ सुपाड़ा ही उसकी तंग चूत में रह गया था। जब सनसनाती आग उसकी चूत में धधकने लगी तो कोमल उसी तरह एक लंबे क्षण के लिये स्थिर हो गयी। फिर जितनी जोर से हो सकता था, कोमल ने उतनी जोर से अपनी चूत उस भीमकाय लण्ड पर दबा दी और जब तक उसका परमानंद व्याप्त रहा तब तक बहुत जोर-जोर से अपनी चूत उस लण्ड पर ऊपर-नीचे उछालती रही।

007
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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:38



“लौड़ा… गधे का चोदू लौड़ा…” कोमल चिल्लायी और फिर भक से झड़ गयी। कोमल की अँगुलियों ने उसकी भिनभिनाती क्लिट पर चिकोटी काटी। उसकी चूत उस मोटे लण्ड पर सिकुड़ गयी और उसके निप्पल कर्नल की चिकोटी काटती अंगुलियों में जलने लगे। कोमल चिल्लाई- “मुझे अपना वीर्य दे मादरचोद… इससे पहले कि मैं झड़ना बंद करूँ, अपना गाढ़ा वीर्य मेरी चूत में छोड़ दे। प्लीज़… छोड़ अपना वीर्य… अबबब… आआआहहह… आँआँआँ… ओंओंओं…”

“ये ले मेरा रस… छूट रहा है तेरी चूत में कुतिया… साली मर्दढ़ोर…” कोमल की दहकती चूत में अपने वीर्य की बाढ़ बहाते हुए कर्नल गुर्राया।

“हाँ मेरे चोदू… हाँ…” कोमल उछलती हुई बोली। कर्नल के लण्ड की आखिरी बूँद अपनी भूखी चूत से निचोड़कर सुखा देने के बाद तक कोमल का परमानंद बना रहा। जब वो कर्नल के ऊपर, आगे को गिरी तो कोमल ने अपनी जीभ कर्नल के मुँह में ठेल दी। उसे गर्व था कि उसने कर्नल को एक असली मर्द की तरह व्यवहार करने में मदद की थी और ये भी कि कर्नल ने अपने अदभुत लौड़े से उसकी चूत की सेवा की थी।

कर्नल मान कोमल के चूतड़ों को भींचता हुआ बोला- “अब तो तुम सजल को वापिस हमारे कालेज में भेजने के बारे में पुनः विचार करोगी… कोमल…”

कोमल ने हँसते हुए कर्नल के होंठों को फिर से चूम लिया- “नहीं… यह तय हो चुका है कि सजल इसी शहर में पढ़ेगा…” कर्नल की जीभ को चूसने के बाद कोमल फिर से बोली- “पर तुम जब चाहे मुझे चोदने के लिये आ सकते हो कर्नल…”

मनीषा ने कोमल को तैयार होकर अपने घर से निकलते हुए देखा। इसका मतलब था कि सुनील अब अकेला था। सजल को जाते हुए वह पहले ही देख चुकी थी। मनीषा सात साल से कोमल की पड़ोसन थी। इन सालों में उसकी कोमल से दोस्ती न के बराबर हुई थी। न ही उसे इसकी कोई इच्छा थी। हाँ, पर वह सुनील को अच्छे से जानने को बेहद उत्सुक थी। पर अभी तक सुनील ने उसे कभी लिफ्ट नहीं दी थी। पर पिछले कुछ दिनों में आये बदलाव को वह महसूस कर रही थी और उसे लग रहा था कि उसकी इच्छा-पूर्ति का समय आ गया था। आज शनिवार था और सुनील धूप सेंकने के लिये बाहर आने ही वाला होगा।

उसने अपने जिश्म और कपड़ों का मुआयना किया। उसने ब्रा नुमा छोटा सा ब्लाउज़, और हल्के नीले रंग की शिफान की साड़ी पहनी हुई थी और साथ ही काले रंग के बहुत ही ऊँची एंड़ी के सैंडल पहने हुए थे।

मनीषा का पति उसे चार साल पहले छोड़कर चला गया था। और उसे दूसरा ऐसा कोई नहीं मिला था जिसको वो अपनाना चाहती - सुनील को छोड़कर। वो बेचैनी से सुनील का इंतज़ार करने लगी। जिन थोड़े मर्दों से उसने इन चार सालों में सम्बंध स्थापित किये थे वो बिल्कुल ही बकवास और बेदम निकले थे। उसे उम्मीद थी कि सुनील उसके मापदंड पर खरा उतरेगा।

जब उसने सुनील को बाहर निकलते देखा तो उसके दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं और चूत गरमाने लगी। उसकी चूचियां भी तनकर खड़ी हो गईं। मनीषा ने सुनील को थोड़ा समय दिया और फिर वो भी अपने आँगन में उतर गई।

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Re: घरेलू चुदाई समारोह

Unread post by 007 » 28 Oct 2014 21:38



“हेलो, सुनील…”

“ओह हेलो मनीषा…” पर उसने खास ध्यान नहीं दिया।

मनीषा को बहुत तेज़ गुस्सा आया। पर आज उसने अपने आपको समझाया- “क्या तुम मेरी थोड़ी मदद करोगे, सुनील…”

“कहो, क्या करना है…”

“क्या तुम अंदर आओगे…”

इस बार सुनील ने उसे नज़र भरकर देखा। उसकी आंखें मनीषा के छोटे से ब्लाउज़ में से झाँकती चूचियों पर कुछ देर रुकी भी।

जब सुनील अंदर आ गया तो मनीषा ने उससे पूछा- “सुनील क्या तुम मेरे साथ एक ठंडी बीयर पियोगे… अभी काम करने के लिये मौसम बहुत गर्म है। या तुम्हें डर है कि कोमल ने तुम्हें यहाँ देख लिया तो झमेला खड़ा कर देगी…”

“नहीं, वो तो खैर दिन भर नहीं आने वाली। पर…”

“पर क्या… फिर तो चिंता की कोई बात ही नहीं है…” यह कहते हुए मनीषा उसे अंदर खींच ले गई।

कुछ ही देर में दोनों ने तीन-तीन बोतल बीयर चढ़ा लीं थीं और सुनील काफ़ी खुल गया था। उसकी नज़र अब बार-बार मनीषा के ब्लाउज़ से झाँकते सुडौल उरोजों पर ठहर रही थी। मनीषा को तो ऐसा लग रहा था कि वो उसी समय कपड़े उतारकर उस आकर्षक आदमी से चुदवाना शुरू कर दे। पर वह पहले माहौल बनाना चाहती थी और फिर अपने शयनकक्ष में चुदवाने का आनंद ही और था।

“मुझे माफ़ करना, पर क्या तुम मेरा एक और काम कर सकते हो, प्लीज़…” मनीषा ने अपना जाल फेंका।

“तुम बोलो तो सही…”

“मेरे बैडरूम की एक दराज़ खुलती नहीं है। उसमें मेरी कुछ जरूरी चीज़ें रखी है। क्या तुम…”

उसकी बात खत्म होने से पहले ही सुनील उठकर शयनकक्ष की ओर जाने लगा- “बिलकुल, अभी लो…”

“क्या सोचते हो, खुल पायेगा…”

“पता नहीं, यहाँ अंधेरा बहुत है, सारे पर्दे क्यों गिराये हुए हैं… कुछ दिखता ही नहीं…”

“तुम्हें जो करना है उसके लिये बहुत अच्छे से देखने की जरूरत नहीं है, सुनील…” मनीषा ने हल्के से अपने ब्लाउज़ का बटन खोलते हुए कहा। इससे पहले कि उस बेचारे आदमी को अपने आपको संभालने का मौका मिलता, उसकी आंखों के सामने कुदरत के दो करिश्मे दीदार हो गये। मनीषा ने अपना ब्लाउज़ उतार फेंका और अपने सीने को सामने किया और तान दिया।

सुनील के तो छक्के ही छूट गए।

“अब मुझे छोड़कर भागना नहीं, सुनील… जब से रितेश मुझे छोड़कर गया है मैं प्यासी हूँ… मुझे एक मर्द चाहिये… मैनें कई मर्दों के साथ सम्बंध बनाये पर कोई मुझे संतुष्ट नहीं कर पाया। मुझे तुम्हारी बेहद जरूरत है सुनील। मैं जानती हूँ कि तुम एक अच्छे चुदक्कड़ हो। मेरा मन कहता है कि तुम मेरी प्यास मिटा सकोगे। तुम्हें भी मेरी जरूरत है… कोमल तुम्हारा ध्यान जो नहीं रखती…” यह कहते हुए मनीषा ने अपने रहे-सहे कपड़े भी उतार फेंके। मनीषा अब सिर्फ़ ऊँची एंड़ी के सैंडल पहने हुए बिल्कुल नंगी खड़ी थी और उसे उम्मीद थी की उसकी जवान नंगी काया को देखने के बाद सुनील का संयम टूट जायेगा।

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