धोबन और उसका बेटा

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The Romantic
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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:21


"कितनी बार बोलेगा ये बात तू मेरे से, मैं तेरी आनहके ऩही पढ़ सकती क्या, जिनमे मेरे लिए इतना पायर च्चालकता है". मैं मा से फिर पूरा चिपक गया. उसकी चुचिया मेरी च्चती में चुभ रही थी और मेरा लॉरा अब सीधा उसकी चूत पर ठोकर मार रहा था. हम दोनो एक दूसरे की आगोश में कुच्छ देर तक ऐसे ही खोए रहे फिर मैने अपने आप को अलग किया और बोला "मा एक सवाल करू"

"हा पुच्छ क्या पुच्छना है"

"मा, जब मैं तुम्हारी चूत छत रहा था तब तुमने गालिया क्यों निकाली"

"गालिया, और मैं, मैं भला क्यों कर गालिया निकलने लगी"

"ऩही मा तुम गालिया निकल रही थी, तुमने मुझे कुत्ता कहा और और खुद को कुट्टिया कहा, फिर तुमने मुझे हरामी भी कहा"

"मुझे तो याद ऩही बेटा की ऐसा कुच्छ मैने तुम्हे कहा था, मैं तो केवल थोरा सा जोश में आ गई थी और तुम्हे बता रही थी कैसे क्या करना है, मुझे तो एक डम याद ऩही की मैने ये साबद कहे है"

"ऩही मा तुम ठीक से याद करने की कोशिश करो तुमने मुझे हरामी या हरमज़दा कहा था और खूब ज़ोर से झार गई थी"

"बेटा, मुझे तो ऐसा कुच्छ भी याद ऩही है, फिर भी अगर मैने कुच्छ कहा भी था तो मैं अपनी र से माफी मांगती हू, आगे से इन बतो का ख्याल रखूँगी"

"ऩही मा इसमे माफी माँगने जैसी कोई बात ऩही है, मैने तो जो तुम्हारे मुँह से सुना उसे ही तुम्हे बता दिया, खैर जाने दो तुम्हारा बेटा हू अगर तुम मुझे डूस बीश गालिया दे भी दोगि तो क्या हो जाएगा"

"ऩही बेटा ऐसी बात ऩही है, अगर मैं तुझे गालिया दूँगी तो हो सकता है तू भी कल को मेरे लिए गालिया निकले और मेरे प्रति तेरा नज़रिया बदल जाए और तू मुझे वो सम्मान ना दे जो आजतक मुझे दे रहा है"

"नही मा ऐसा कभी ऩही होगा, मैं तुम्हे हमेशा पायर करता रहूँगा और वही सम्मान दूँगा जो आजतक दिया है, मेरी नॅज़ारो में तुम्हारा स्थान हमेशा उँछ रहेगा"


The Romantic
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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:22

"ठीक है बेटा, अब तो हुमारे बीच एक दूसरे तरह का संबंध स्थापित हो गया है इसके बाद जो कुच्छ होता है वो हम दोनो की आपसी समझदारी पर निर्भर करता है"

"हा मा तुमने ठीक कहा, पर मा अब इन बातो को छोर कर क्यों ना असली काम किया जाए, मेरी बहुत इच्छा हो रही है की मैं तुम्हे चोदु, देखो ना मा मेरा डंडा कैसा खरा हो गया है"

"हा बेटा वो तो मैं देख ही रही हू, की मेरे लाल का हथियार कैसा तरप रहा मा का मालपुआ खाने को, पर उसके लिए तो पहले मा को एक बार फिर से थोरा गरम करना परेगा बेटा,"

"है मा तो क्या अभी तुम्हारा मन चुड़वाने का ऩही है"

"ऐसी बात ऩही है बेटे, चुड़वाने का मन तो है पर, किसी भी औरत को छोड़ने से पहले थोरा गरम करना परता है, इसलिए बुर चाटना, चुचि चूसना, चूमा चाती करना और दूसरे तरह के काम किए जाते है"

"इसका मतलब है की तुम अभी गरम ऩही हो और तुम्हे गरमा करना परेगा ये सब कर के"

"हा इसका यही मतलब है"

"पर मा तुम तो कहती थी तुम बहुत गरम हो और अभी कह रही हो की गरम करना परेगा"

"आबे उल्लूए गरम तो मैं बहुत हू पर इतने दीनो के बाद इतनी जबरदस्त चूत चटाई के बाद तूने मेरा पानी निकल दिया, तो मेरी गर्मी थोरी देर के लिए शांत हो गई है अब, तुरंत चुड़वाने के लिए तो गरम तो करना ही परेगा ना, ऩही तो अभी छ्होर दे कल तक मेरी गर्मी फिर चाड जाएगी और तब तू मुझे चोद लेना"

"ओह ऩही मा मुझे तो अभी करना है, इसी वाक़ूत"

"तो अपनी मा को ज़रा गरम कर दे और फिर मज़े ले चुदाई का"

मैने फिर से मा की दोनो चुचियाँ पकर ली और उन्हे दबाते हुए उसके होंठो से अपने होंठ भीरा दिया और. मा ने भी अपने गुलाबी होंठो को खोल कर मेरा स्वागत किया और अपनी जीभ को मेरे मुँह में पेल दिया. मा के मुँह के रस में गजब का स्वाद था. हम दोनो एक दूसरे के होंठो को मुँह में भर कर चूस्ते हू आपस में जीभ से जीभ लारा रहे थे. मा की चुचियों को अब मैं ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा था और अपने हाथो से उसके मांसल पेट को भी सहला रहा था. उसने भी अपने हाथो के बीच में मेरे लंड को दबोच लिया था और कस कस के मारोर्ते हुए उसे दबा रही थी. मा ने अपना एक पैर मेरी कमर के उपर रख दिया था और अपने जाँघो के बीच मुझे बार बार दबूच रही थी. अब हम दोनो की साँसे तेज चलने लगी थी. मेरा हाथ अब मा की पेत पर चल रहा था और वाहा से फिसलते हुए सीधा उसके ****अरो पर चला गया. अभी तक तो मैने मा के मक्खन जैसे गुदज ****अरो पर उतना ध्यान ऩही दिया था परंतु अब मेरे हाथ वही पर जा के चिपक गये थे. ओह ****अरो को हाथो से मसलने का आनंद ही कुच्छ और है. मोटे मोटे ****अरो के माँस को अपने हाथो में पकर कर कभी धीरे कभी ज़ोर से मसल्ने का अलग ही मज़ा है. ****अरो को दबाते हुए मैने अपनी उंगलियों को ****अरो के बीच की दरार में डाल दिया और अपनी उंगलियों से उसके ****अरो के बीच की खाई को धीरे धीरे सहलाने लगा. मेरी उंगलिया मा की गांद के च्छेद पर धीरे धीरे तैर रही थी. मा की गांद का छेद एक डम गरम लग रहा था. मा जो की मेरे गालो को चूस रही थी अपना मुँह हटा के बोल उठी, "ये क्या कर रहा है रे., गांद को क्यों सहला रहा है".

"है मा, तुम्हारा ये देखने में बहुत सुंदर लगता है, सहलाने दो ना,,,,,,,"

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Re: धोबन और उसका बेटा

Unread post by The Romantic » 30 Oct 2014 14:23



"चूत का मज़ा लिया ऩही, और चला है गांद का मज़ा लूटने", कह कर मा हासणे लगी. मेरी समझ में तो कुच्छ आया ऩही पर, जब मा ने मेरी हाथो को ऩही हटाया तो मैने मा की गांद के पकप्कप्ते च्छेद में अपनी उंगलियाँ चलाने की अपनी दिल की हसरत पूरी कर ली. और बरे आराम से धीरे धीरे कर के अपनी एक उंगली को हल्के हल्के उसकी गांद के गोल सिकुरे हुए च्छेद पर धीरे धीरे चला रहा था. मेरी उंगली का थोरा सा हिस्सा भी सयद गांद में चला गया था पर मा ने इस पर कोई ध्यान ऩही दिया था. कुच्छ देर तक ऐसे ही गांद के छेद को सहलाता और ****अरो को मसलता रहा. मेरा मन ही ऩही भर रहा था. तभी मा ने मुझे अपने जाँघो के बीच और कस के दबोच कर मेरे गालो पर एक पायर भारी थपकी लगाई और मुँह बिचकते हुए बोली, "****इए कितनी देर तक ****आर और गांद से ही खेलता रहेगा, कुच्छ आगे भी करेगा या ऩही, चल आ जा और ज़रा फिर से चुचि को चूस तो". मैं मा की इस पायर भारी झिरकी को सुन कर अपने हाथो को मा के ****अरो पर से हटा लिया और मुस्कुराते हुए मा के चेहरे को देखा और पायर से उसके गालो पर चुंबन डाल कर बोला "जैसी मेरी मा की इच्छा". और उसकी एक चुचि को अपने हाथो से पकर कर दूसरी चुचि से अपना मुँह सता दिया और निपपलो को मुँह में भर के चूसने का काम शुरू कर दिया. मा की मस्तानी चुचियो के निपल फिर से खरे हो गये और उसके मुँह से सिसकारिया निकलने लगी. मैं अपने हाथो को उसकी एक चुचि पर से हटा के नीचे उसकी जाँघो के बीच ले गया और उसकी बुर को अपने मुति में भर के ज़ोर से दबाने लगा, बर से पानी निकलना शुरू हो गया था. मेरी उंगलिओ में बुर का चिपचिपा रस लग गया. मैने अपनी बीच वाली उंगली को हल्के से चूत के च्छेद पर धकेला, मेरी उंगली सरसरती हुई बुर के अंदर घुस गई. आधी उंगली को चूत में पेल कर मैने अंदर बाहर करना शुरू कर दिया. मा की आँखे एक डम से नशीली होती जा रही थी और उसकी सिसकारिया भी तेज हो गई थी. मैं उसकी एक चुचि को चूस्ते हुए चूत के अंदर अपनी आधी उंगली को गाचा गछ पेले जा रहा था. मा ने मेरे सिर को दोनो हाथो से पकर कर अपने चुचियों पर दबा दिया और खूब ज़ोर ज़ोर से सिसकते हुए बोलने लगी "ओह सी सस्स्स्स्स्स्सीए चूस ज़ोर से निपल को काट ले, हरामी, ज़ोर से काट ले मेरी इन चुचियों को है,,,,," और मेरी उंगली को अपने बुर में लेने के लिए अपने ****अरो को उच्छलने लगी थी. मा के मुँह से फिर से हरामी साबद सुन कर मुझे थोरा बुरा लगा. मैने अपने मुँह को उसके चुचियो पर से हटा दिया और और उसके पेट को चूमते हुए उसकी बुर की तरफ बढ़ गया. छूट से उंगलिया निकल कर मैने चूत के दोनो फांको को पकर के फैलाया और जहा कुच्छ सेकेंड पहले तक मेरी उंगलिया थी उसी जगह पर अपने जीभ को नुकीला कर के डाल दिया. जीभ को बुर के अंदर लिबलिबते हुए मैं भग्नासे को अपने नाक से रगार्ने लगा. मा की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. अब उसने अपने पैरो को पूरा खोल दिया था और मेरे सिर को अपने बुर पर दाहाती हुई चिल्लई "छत साले मेरी बुर को छत, ऐसे ही छत कर खा जा, एक बार फिर से मेरा पानी निकल दे हरामी, बुर चाटने में तो तू पूरा उस्ताद निकला रे, छत ना अपनी मा के बुर को मैं तुझे चुदाई का बादशाह बना दूँगी मेरे चूत चातु राजाआ साले,". मा की बाकी बाते तो मेरा उतास बढ़ा रही थी पर उसके मुँह से अपने लिए गली सुन ने की आदत तो मुझे थी ऩही. पहली बार मा के मुँह से इस तरह से गली सुन रहा था. तोरा अजीब सा लग रहा था पर, बदन में एक तरह की सिहरन भी हो रही थी. मैने अपने मुँह को मा के बुर पर से हटा दिया और मा की ऊवार देखने लगा. मा के मज़े में बढ़ा होने पर अपनी अधखुली आँखे पूरी खोल दी और मेरी र देखते हुए बोली, "रुक क्यों गया ****इए जल्दी जल्दी छत ना अपने माल पुए को". मैने मुस्कुराते हुए मा की र देखा और बोला "क्या मा तुम तो भी ना, तुम्हे ध्यान है तुमने अभी अभी मुझे कितनी गालिया दी है, मैं जब याद दिलाता हू तो तुम कहती हो दी ही ऩही अभी पाता ऩही कितनी गालिया दे दी". इस पर मेरी मा हासणे लगी और मुझे अपनी तरफ खीचा तो मैं उठ कर फिर से उसके बगल में जा के लेट गया. मा ने मेरे गाल पर अपने हाथो से एक पायर भारी थपकी दे कर पुचछा, "चल मान लिया मैने गली दी, तुझे बुरा लगा क्या". मैने मुँह बना लिया था. मा मुझे बाँहो में भरते हुए बोली, "आरे मेरे छोड़ू बेटे, मा की गालिया क्या तुझे इतनी बुरी लगती है की तू बुरा मान के रुत गया"

"ऩही मा बुरी लगने की बात तो ऩही लेकिन तुम्हारे मुँह से गालिया सुन के बरा अजीब सा लगा"

"क्यों अजीब लग रहा है क्या मैं गालिया ऩही दे सकती"

"दे सकती हो, उसका उदाहरण तो तुमने मुझे दिखा ही दिया मगर अजीब इस लिए लग रहा है क्यों की आज के पहले तुमको कभी गली देते हुए ऩही सुना"

"आज के पहले तुमने कभी मुझे नंगा भी तो ऩही देखा था ना, ना ही आज के पहले कभी मेरी बुर और चुचि चूस के मेरा पानी निकाला था, सब कुछ तो आज पहली बार हो रहा है, इसलिए गालिया भी आज पहली बार सुन रहा है" कह कर मा हस्ने लगी और मेरे लंड को अपने हाथो से मारोर्ने लगी.

"ओह मा क्या कर रही हो दुख़्ता है ना,,,,,,,,,, फिर भी तुम मुझे एक बात बताओ की तुमने गालिया क्यों दी"


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