बाली उमर का चस्का compleet

Discover endless Hindi sex story and novels. Browse hindi sex stories, adult stories ,erotic stories. Visit theadultstories.com
raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

बाली उमर का चस्का compleet

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 13:08

बाली उमर का चस्का

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपके लिए एक और नई कहाई लेकर हाजिर हूँ आशा करता हूँ आपको ये कहानी बहुत पसंद आएगी दोस्तो ये कहानी एक कश्मीरी लड़की अनु की कहानी है अब आप ये कहानी अनु की ज़ुबानी ही सुने तो ठीक रहेगा . मैं श्रीनगर कश्मीर से अनु कौर अपने तजुर्बे आप लोगों से शेयर करना चाहती हूँ। कश्मीर को धरती पे स्वर्ग कहा जाता है । यहाँ कुदरती खूबसूरती की भरमार है और यह बात यहाँ की लडकियों मैं भी है। कश्मीरी लडकियों की खूबसूरती के चर्चे बहुत दूर तक हैं और वोही चर्चे मेरे भी हैं। मैं कॉलेज ख़तम कर चुकी हूँ और नोकरी करती हूँ। सेक्स की आदत छोटी उम्र से लग गयी और उसका कारण था यहाँ के मर्दों की भूख। एक लड़का चंदन कुमार हमारे पड़ोस मैं रहता था और जब भी मैं बाकी बच्चो के साथ खेल रही होती तो वो मुझे साइड पे बुला के मेरे जिस्म पे हाथ फेरा करता और मेरे होंठों को चूसा करता। 10 मिनट ऐसा करने के बाद वह मुझे टॉफी दे देता और बोलता किसी को नसुनाना वरना टॉफी नही मिलेगी। ऐसा काफी दिनों तक चलता रहा और फिर एक दिन वो मुझे अपने घर ले गया। वहां सोफ़ा पे लिटा के उसने पहले 5 मिनट मुझे चूम चूम के बेहाल कर दिया। फिर अपनी पेंट उतार के मुझे अपना लिंग पकड़ा दिया। मैं हैरान थी क्युकी पहली बार खड़ा लिंग देख रही थी। उसने मुझे पुछा की टॉफी पसंद है या चोकलेट तो मेने कहा चाकलेट। उसने मुझसे कहा की अगर चाकलेट चाहिए तो उसका लिंग मसलना पड़ेगा।
मैं भोली भाली थी। मुझे क्या पता यह सब क्या होता हे। मैं उसका लिंग मसलने लगी और वोह भी मेरे जिस्म पे हाथ फेरने लगा। फिर उसने मुझे चुम्बन दे के लिटाया और मेरी पेंटी उतार दी और मेरी जान्घों के बीच अपना लिंग फंसा के आगे पीछे झटके देने लगा। साथ ही वोह हमारे मोहल्ले की सबसे सेक्सी सरदारनी जिसका नाम रोमा कौर था और जो मेरी दूर की बेहेन थी उसका नाम ले रहा था। मैं हैरान परेशान सी सोफा पे लेटी हुई यह झेलती रही। फिर उसने मुझे उलटी लिटा दिया पेट के बल और पीछे से मेरी टांगो में लिंग सटा के धक्कम पेल करने लगा। 5 मिनट बाद उसने मुझे सीधी करके मेरे पेट और जाँघो पे सफ़ेद गाढ़ा पानी निकाल दिया। मैं हैरान हो गयी क्युकी पहली बार यह देखा था। मेने पुछा यह दही कहाँ से आया तो वोह हस के बोला हाँ यह दही है स्वाद ले के देख मेने ऊँगली से उठा केजीब पे रखा तो अजीव सा नमकीन स्वाद आया। फिर उसने अपनी ऊँगली पे लगा के सारा मुझे पिला दिया। उसके बाद चंदन ने मुझे चोकलेट दी और बोल किसी से ना कहना। मुझे चोकलेट पसंद थी और फिर यह सिलसिला चल पड़ा।
वह तक़रीबन हर दुसरे या तीसरे दिन मेरा ऐसा करता और बदले में चोकलेट या चिप्स दे देता। पर एक बात थी उसने कभी भी मेरे सुराख़ में लिंग डालने की कोशिश नही की। यह था मेरा पहले योंन सम्बन्ध जो 6 महीने चला। फिर चंदन के पापा का तबादला किसी और शेहर हो गया। चंदन के चले जाने के बाद अगले कई साल मेरी जिंदगी में कोई नया लड़का नही आया। मैं अब बड़ी हो रही थी और मेरे अंदर नई नई उमंगें जवान होने लगी थी। टीवी पे फिल्मो में दिखने वाले सीन्स मुझे मस्त कर देते। रोमांटिक सीन्स देख देख के मैं भी अपने हीरो की राह देखने लगी थी। कोई भी लड़का मुझे देखता तो मैं अंदर ही अंदर उम्मीद लगा बैठती की क्या येही हे मेरा राजकुमार। फिर वोह पल आ ही गया जब मेरा राजकुमार मेरे सपनो को पूरा करने चला आया। हमने अपना घर बदल लिया था और नये मोहल्ले में एक किराये के सेट में रहने चले आये थे। यह पुराने मोहल्ले से बड़ा और ज्यादा पोश एरिया था।
मैंने ध्यान दिया की दोलड़के आते जाते मुझे घूर के आपस में बातें करते हैं। वह दोनों क्लास मेट थे और मेरे स्कूल के सीनियर्स भी। मैं भी उनसे बात करना चाहती थी पर उनकी और से पहेल का इंतजार कर रही थी। कुछ दिन बीत गये और मेरी उस मोहल्ले में नई सहेलियां बन गयी। उनमे से डॉली दीदी मेरी बेस्ट फ्रंड थी। वोह एकदम खुल्ले ख्यालों वाली पंजाबी कुड़ी थी। मोहल्ले के लडको से उसकी खूब पटती थी। एक शाम को हम पार्क में खेल रहे थे की तभी डॉली दीदी कहीं गायब हो गयी। उनको ढूँढने के लिए मैं पार्क के पिछले कोने में गयी तो वहां झाड़ियों से मुझे डॉली दीदी के हस्सने की आवाज़ आई। मैं चोकन्नी हो गयी और बड़े ध्यान से करीब गयी। वहां जो हो रहा था उस से मेरे होश उड़ गये। डॉली दीदी को दो लडको ने अपने बीच दबोच रखा था और उनकी स्कर्ट उठी हुई थी कमर तक। मेरे दिमाग में चंदन के साथ बिताये पल याद आने लगे और मेरा जिस्म मस्ती के सैलाब में बहने लगा।

raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: बाली उमर का चस्का

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 13:09

मैं डॉली दीदी की हरकतों को देख के हैरान भी थी और उनकी हिम्मत की दाद भी दे रही थी। तभी वह दोनों लडको पे मेरी नजर पड़ी तो देखा की यह वही दोनों हैं जो मुझे घूरते थे। मैने ध्यान से उनकी बातों को सुना तो पता चला की वह मेरे ही बारे में बातें कर रहे थे। डॉली दीदी ने उनको मेरा नाम बताया और कहा की वह दोनों सबर रखें तो मेरी उनसे दोस्ती करवा देंगी। यह बात सुन के मेरा दिल मस्ती से कूदने लगा और मैं वहां से चली आई। 15 मिनट बाद वह तीनो भी आ गये और डॉली दीदी ने मुझे बुला के अपने दोनों दोस्तों से परिचय करवाया। उनके नाम राज और जय था।
राज ऊँचा लम्बा हट्टा कट्टा लड़का था। रंग सांवला और चेहरे पे शेव बनाई हुई थी जिस से अंदाजा हो गया की वह व्यस्क हो चूका था। मोहल्ले के सभी लड़ों पे उसका दबदबा था क्युकी वह बॉडी बिल्डिंग करता था जिम में और अमीर माँ बाप का इकलोता बेटा था। उसके पापा पंजाबी ब्राह्मण और माँ कश्मीरी पंडित थी। जय कश्मीरी पंडित लड़का था। एकदम गोरा चिट्टा और चिकना पर बातों का उतना ही तेज़ और चिकनी चुपड़ी बातें करने वाला। राज ने दोस्ती का हाथ मेरी और बढाया और मैंने भी बिना देरी के अपना हाथ उसके हाथ में दे दिया। जय भी मेरे पास आया और हाथ आगे बढाया पर राज मेरा हाथ छोड़ने को तयार ही नही था। डॉली दीदी हँसते हुए बोली अनु कौर राज का हाथ छोड़ेगी या बेचारा जय खड़ा रहे। मैं शर्म से लाल हो गयी पर राज ने बेशर्मो की तरह मेरा हाथ पकडे रखा। मुझे मजबूरी में अपने बायें हाथ से जय का हाथ थामना पड़ा। यह देख के डॉली दीदी बोली की तुम दोनों नई सरदारनी के चक्कर में पुरानी को भूल तो नही जाओगे। इस्पे राज ने हस के कहा की चिकनी सिखनियो का साथ नसीब वालों को मिलता है। इस बात पे हम सब खूब खिलखिला के हस दिए और हमारी दोस्ती का सफ़र शुरू हो गयानये माहोल में आ के एज नये खुल्लेपन का एहसास होने लगा था।
राज और जय से दोस्ती कर के नई उमंगे परवान चड़ने लगी थी। डॉली दीदी भी खूब बढ़ावा देती थी मुझे। एक दिन शाम को हम सारे छुप्पा छुपी खेल रहे थे। मैं राज के साथ एक दीवार के पीछे छुप गये। जय डॉली दीदी के साथ उनके घर के टॉयलेट में छुप गये जो बाहर बना हुआ था लॉन में। राज ने मुझे अपने सामने कर लिया और चुप रहने को कहा। तभी राजू जो हम सबको ढूंड रहा था वहां आया पर हम राज ने मोका देखते मेरा हाथ पकड़ा और जय के टॉयलेट की और दौड़ पड़ा। मैं भी राज का साथ देती हुई वहां पोहंच गयी। राज ने जय से दरवाजा खोलने को कहा और फिर हम दोनों भी अंदर घुस गये। अब जो हुआ उसके लिए मैं बिलकुल तयार नही थी।राज मेरे पीछे खड़ा हो गया और जय डॉली दीदी के। फिर जय ने अपने कूल्हे को डॉली के नितम्बों पे रगड़ना शुरू कर दिया। मैं आंखें खोल के डॉली को देख रही थी पर उसने मुझसे कहा ऐसा करने में बहुत मज्जा आता हे। मैं कुछ समझ पाती उससे पहले राज ने अपने कूल्हे को मेरे नितंबो से लगा दिया। मेरी सिस्कारियां निकल गयी पर डॉली ने मेरा हाथ थाम के मुझे चुप रहने का इशारा किया।
बाहिर राजू हमें ढूंड रहाथा और अंदर हम रासलीला कर रहे थे। राज ने अपना मोटा लम्बा लिंग मेरे नितंबो के बिच की दरार में फस्सा दिया था और अब हलके हलके धक्के दे के वोह मुझे चंदन की याद दिला रहा था। मेने घुटनों जितनी फ्रॉक पहनी थी और वोह भी अब राज ने हाथ से उठानी शुरू कर दी। मेरी गरम सांसें तेज़ी से चलने लगी और राज भी अब अपनी साँसों को मेरी गर्दन गले और पीठ पे छोड़ने लगा जिस से मेरी मस्ती दोगुनी होती गयी। सामने जय ने डॉली की स्कर्ट कमर तक उठा ली हुई थी और अपने कूल्हों को बड़ी तेज़ी से उसके नितंबो पे रगड़ रहा था। हम चारों की तेज़ सांसें उस छोटी सी जगह पे कोहराम मचा रही थी।
जय ने डॉली की पेंटी घुटनों तक खिसका दी थी। डॉली की हालत बदहवासी से भरी हुई थी और वह जय को उकसा रही थी । इधर राज बड़े ध्यान से मेरी हालत पतली करने मैं लगा हुआ था। मेरी फ्रॉक अब कमर तक उठ चुकी थी। मेरी पेंटी भी घुटनों तक खिस्सक गयी हुई थी और राज का लिंग भी बाहिर आ गया था। मेने अपने नग्न नितम्बों पर उसका गरम नंगा लिंग महसूस किया और बिजली के झटके से महसूस करते हुए राज के अगले कदम का इंतजार करने लगी। राज ने भी देर नहीं की और सीधे अपने लिंग को मेरी जाँघो के बीच फस्सा दिया। मेरी उमंगें तरोताजा हो गयी और मैं हवस के खेल का खुल के मज्जा लेने लगी।
अब मेरी नज़र डॉली पेपड़ी जो की घोड़ी की तरह झुकी हुई थी और तक़रीबन नंगी हो चुकी थी पूरी तरह। जय ने अपने लिंग पे थूक लगा के डॉली के नितंबो के बीच गान्ड द्वार पर रख के तेज़ धक्का मारा । डॉली की हलकी चीख निकली और फिर उसने अपने होंठो को दांतों तल्ले दबा दिया। उफ्फ्फ क्या नज़ारा था .... जय का लिंग डॉली के अंदर बाहर हो रहा था और डॉली झुक्की हुई मज्जे ले ले के मरवा रही थी। मेरा मन किया की काश डॉली की जगह मैं होती। तभी राज ने अपने लिंग पे थूक लगा दी और फिर मुझे झुकने को कहा। मैं भी बिना सोचे समझे झुक गयी और आने वाले तूफ़ान की तयारी करने लगी। फिर राज ने भी मेरी गान्ड पर थूक लगा के ऊँगली अन्दर घुसा दी। मेरी सांस उपर की उपर और नीचे की निचे रुक गयी। पर कुछ ही पलों बाद सब सामान्य हो गया और अब राज की ऊँगली पूरी तेज़ी से मेरी गांड में अंदर बाहिर होने लगी। इसके बाद राज ने मेरी गांड में और थूक लगा के अपने लंड को लगा दिया। फिर मेरी पतली कमर को थाम के एक करारा शॉट मारा। मेरी जोर से चीख निकल गयी और मैंने राज को धक्केल के पीछे हटा दिया। राज ने मुझसे पुछा क्या हुआ तो मैं बोली की बहुत दर्द हुआ। इस्पे राज ने डॉली की और इशारा करके कहा की यह भी तो पूरा लंड ले रही हे।

raj..
Platinum Member
Posts: 3402
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: बाली उमर का चस्का

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 13:10

मैं घबरा गयी थी और गांड मरवाने का शोक मेरे दिमाग से उतर चुका था। राज ने भी मोके की नजाकत को समझते हुए मुझे छोड़ दिया। मैं उस टॉयलेट से बाहर निकली और अपने घर चली गयी। पर सारी रात राज की अशलील हरकतें बार बार याद आती रही और डॉली के कारनामे भी नींद उड़ाते रहे उस रात मुझे नींद नही आई। सारी रात करवट बदल बदल कर निकली। सुबह हुई तो मैं स्कूल को तयार हो के चल दी। दोपहर लंच ब्रेक में राज मेरे पास आया और हँसते हुए पुछा कल दर्द हुआ था क्या। मेने सर हिला के इशारे से हाँ कहा। वोह बोला शुरू में दर्द होता हे फिर बाद में मज्जा आयेगा जेसे ललिता लेती हे। मैंने सर हिल के हाँ कहा और फिर पुछा कि डॉली दीदी को भी पहली बार दर्द हुआ था। इस्पे राज हस के बोला की ललिता की जिसने फर्स्ट टाइम ली होगी उसको पता होगा हम तो उसके शिष्य हैं और उस्सी ने हमें यह सब सिखाया। मैं इस बात पे हस दी और राज भी मेरे साथ खूब हँसा।
फिर राज मुझे स्कूल कैन्टीन ले गया और चिप्स पेप्सी वगेरा मंगवा दी। तभी वहां जय और डॉली भी आ गये। राज ने उठ के पहले जय फिर डॉली को हग किया ओर हम चारो बेठ गये। राज बोला चलो आज बंक मार के फिल्म देखने चलते हैं। मैंने मना किया तो राज ने कहा ललिता और जय तुम दोनों चलोगे क्या। वह तयार हो गये। फिर तीनो स्कूल के पिछले गेट पे गये और राज ने वहां खड़े दरबान को 50 रूपए दिए तो उसने गेट खोल दिया। तभी डॉली ने मुझे आने का इशारा किया। मेरी कुछ समज में आये उससे पहले राज मेरे पास आया और हाथ पकड़ के साथ चल पड़ा। मैं कोई विरोध नहीं कर पाई और हम चारो स्कूल से बाहर आ गये।
हम सब सिनेमा पोहंच गये और राज ने 4 टिकेट खरीदे। हम अंदर पोहंचे तो फिल्म स्टार्ट हो गयी थी। इमरान हाश्मी और उदिता गोस्वामी की अक्सर में खूब गरमा गरम सीन थे और जब तक हम सीट पे बेठें तब तक इमरान ने उदिता को चूमना चाटना शुरू कर दिया था। मैं और डॉली बीच में बेठे और जय राज हमारे साइड पे। राज मेरी और था इसलिए मैं उसकी शरारतों के लिए मन ही मन तैयार थी।
और उसने भी समय बर्बाद नही किया। सीधे अपने हाथ को मेरी जाँघ पे रख के हलके हलके मसलने दबाने लगा। मैं उस समय उतेजना से भर गयी और अपने सर को उसके कंधे पे टिक्का के उसको ग्रीन सिग्नल देदी। वोह बायें हाथ से जाँघो को मसलने में लगा था और दायें हाथ को मेरे कंधो से होते हुए मेरे उरोजों को मसलने लगा। पहली बार मुझे अपने मम्मों पे किसी मर्द के स्पर्श का असर महसूस होने लगा । इतना मज़्ज़ा आता होगा मम्मे दबवाने में तो कब की शुरू हो गयी होती।
उधर जय ने ललिता की स्कर्ट के अंदर हाथ दाल के उसकी हालत खराब कर दी थी। साथ ही वोह उसके मम्मों को बारी बारी से निचोड़ रहा था। मैं उसकी हरकतों को देख रही थी की तभी जय ने मेरी और देख के गन्दा इशारा किया। मैं नाक मरोड़ के उसके इशारे को अनदेखा कर दिया। तभी उसने ललिता की शर्ट के उपर वाले 2 बटन खोल के उसमे अपना हाथ घुसा दिया। मेरी तो आंखें फटी की फटीरह गयी पर ललिता उसका पूरा साथ देती हुई मुस्कुराती हुई मम्मे दबवाती रही। यहाँ राज ने भी अपनी हरकत तेज़ करते हुए मेरी शर्ट के 2 बटन खोल दिए और हाथ अंदर दाल दिया। मेरी चीख निकल गयी पर उसनेदुसरे हाथ से मेरा मुह दबा दिया। जय डॉली और राज तीनो मुझे घूर के देखने लग्गे। मैं भी शर्मिंदा महसूस करती हुई सोरी सोरी कहने लगी। ललिता ने मुझे डांट लगाते हुए कहा की अब मैं बच्ची नही रह गयी हूँ। मैं भी शर्म से लाल हो गयी थी और उसको भरोसा देते हुए बोली की आगे से ऐसा नही होगा।
मैं शर्म से पानी पानी हुई जा रही थी। राज का हाथ मेरी शर्ट के अंदर था और मेरे नग्न उरोजों के साथ जी भर के खेल रहा था। मैं अपनी कक्षा की उन गिनी चुनी लड़कियों में से थी जो ब्रा पेहेन के आती थी। ललिता मुझसे 2 कक्षा आगे थी परन्तु मेरे उरोज उसके उरोजो को अभी से टक्कर देरहे थे।
राज ने मेरी ब्रा में हाथ डाला हुआ था और मेरे चिकने मम्मे कस कस से निचोड़ने में लगा हुआ था। मेरी हालत खराब होती जा रही थी। चुनमूनियाँ से रस बह बह केपेंटी को गीली कर चूका था। सांसें उखाड़ने लगी थी हवस के सैलाब में। उधर मेरी दाएँ ओर बेठी ललिता की हालत मुझसे भी खराब थी। जय कभी डॉली के होंठ चूसता तो कभी अपना मूंह उसके मम्मों पे रख देता जिन्हें वोह ब्रा से बाहर निकाल चूका था। ललिता के निप्पल मूंह में लेके वोह चूसे जा रहा था और ललिता के चेहरे पे हवस के रंग साफ़ झलक रहे थे।
हमारे आस पास भी येही सब चल रहा था। जवान जोड़े अपनी रंग रलियों में बेखबर योंन सुख का आनंद ले रहे थे। अब जय ने अपनी अगली चाल चलते हुए ज़िप खोल के अपने लिंग को बाहर निकाल लिया। ललिता ने भी झट से उसके चार इंची लिंग को थाम के मसलना शुरू कर दिया। उनको देख राज केसे पीछे रहता। उसने भी ज़िप खोली और अपना लंड बाहर निकाल लिया। उफ्फ्फ में उसका लंड देखते ही परेशान हो गई क्युकी वह जय के लिंग से दो इंच लम्बा ओर दो गुना मोटा था। उसका लंड अभी से कॉलेज के लडको के साइज़ का हो गया था। मैंने अपने कांपते हुए हाथ उसके लंड पे रख के महसूस किया की उसके लंड में आग जेसी गर्मी और दिल जेसी धड़कन थी। मेरे हाथ का स्पर्श पाते ही राज का लंड उछल उछल के हिलने लगा।

Post Reply