बाली उमर का चस्का compleet

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raj..
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Re: बाली उमर का चस्का

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 13:11

राज अपने हाथो से मेरे जिस्म को गरमा रहा था और मैं भी जोश में आ के तेजी से उसके लिंग पे अपने हाथ फिसला फिसला के योंन सुख ले रही थी। उधर डॉली के हाथ तेजी से जय का हस्त मैथुन कर रहे थे कि तभी जय के लिंग से सफ़ेद गाढ़ा माल पिचकारी मारता हुआ छूट गया और ललिता के हाथों को भर गया। इधर मैं जोश से भर गयी और तेजी से राज के लंड की सेवा करने लगी। कुछ पलों में राज ने भी अपनी पिचकारी छोड़ दी पर उसने मेरे सर को थाम के अपने लंड पे झुका लिया जिस कारण उसका माल मेरे हाथों से साथ साथ ठोड़ी और होंठो पे भी गिरा। पूरानी यादें ताज़ा हो गयी जब मेने अपने होंठो पे जीभ फेरी। वोही नमकीन सा स्वाद और चिपचिपा एहसास।
हमने अपने आप को संभाला और साफ़ सफाई करके बैठ गये। फिल्म ख़त्म हुई और हम सब बाहिर आ गये। मैं शर्म से सर झुका के चल रही थी पर डॉली के चेहरे पे कोई शर्म नही थी। वह उन दोनों लड़कों से हस हस के बातें करती चलती रही। तभी राज ने मेरा हाथ थाम लिया और पुछा क्या बात है चुप क्यूँ हो। इसपे मेने राज की आँखों में आंखें ड़ाल के कहा कि यह सब ठीक नही जो हम कर रहे हैं। राज मुस्कुराया और बोला तुम मेरी गर्ल फ्रेंड बनोगी। मैं ख़ुशी से फूले नही समा रही थी और मेने झट से सर हिला के हामी भर दी। शायद मुझे विकी से प्यार हो गया था
सिनेमा के अंदर हुए अनुभव ने मुझे बोल्ड बना दिया था और अब मैं काफी खुल गयी थी। स्कूल और घर दोनों जगह राज मेरे साथ मस्ती करने का कोई मोका नही छोड़ता। राज के लिंग का हस्त-मैथुन करते करते और उस से निकले वीर्य का स्वाद लेते लेते दो हफ्ते हो गये थे। फिर एक दिन शनिवार कोहाफ-डे स्कूल छुट्टी के बाद राज मुझे अपने घर ले गया।
वहां उसने मुझे अपना आलिशान दो मंजिला बंगला दिखाया । उस समय वहां उसके नोकर के सिवा कोई ओर नही था। फिर अंत मैं जब पूरा बंगला अन्दर बाहर से देख लिया तो वह मुझे अपने मम्मी-पापा के बेडरूम ले गया। वहां उसने एक अलमारी खोली और किताबों के निचे से एक मैगज़ीन निकाली। मैं तब तक बिस्तर पे बेठ चुकी थी। राज ने वो रंगीन मैगज़ीन मेरे सामने रख के कहा यह ब्लू-मैगज़ीन हे।
मेने पहले कभी ब्लू-मैगज़ीन नही देखी थी पर देखने की इच्छा जरुर थी। मेने पहला पन्ना खोला तो दंग रह गयी। उसपे ढेर सारी तसवीरें थी जिन में अंग्रेज युगल सम्भोग की अलग अलग क्रिया में दिख रहे थे। मेने राज की और देखा और मुस्कुराते हुए पुछा कि ये गन्दी मैगज़ीन कहा से लायी तो उसने बिलकुल बेबाकी से कह दिया की मम्मी पापा की हे। मैं हैरान हो गयी और दो पल के लिए यह सोचने लगीकहीं मेरे मम्मी पापा भी तो ऐसी गन्दी मैगज़ीन नही देखते। खैर मैं वापिस मैगज़ीन में खो गयी और पन्ने पलटा पलटा के सेक्स को नये तरीके से जानने लगी।
उसमे हस्त-मैथुन तो था ही पर पहली बार गान्ड-मैथुन, मुख-मैथुन और चुनमूनियाँ-मैथुन के नज़ारे देखने को मिल रगे थे। ओर साथ ही साथ एक मर्द-दो लडकियां या एक लड़की-दो मर्द एकसाथ सेक्स करते देखने को मिले। यह सब देख देख के मेरी हालत का अंदाज़ा आप सब लगा ही सकते हो, एक तो कच्ची उम्र उपर से बॉय-फ्रेंड का साथ। मेरी चुनमूनियाँ गीली होचुकी थी और जिस्म हवस की गर्मी से लाल हो गया था। राज भी शायद इसी मकसद से मुझे अपने घर लाया था और अब मेरी हालत से उसको मेरे किले में अपना झंडा गाड़ के जीत का जशन मानाने का आसान मोका दिख रहा था मैगज़ीन देखते देखते मेरा मन बोहत विचिलित हो चूका था। मेरे हाथ पैर थरथरा रहे थे ओर सर भारी हो गया था। जेसे जेसे पन्ने पलट रही थी वेसे वेसे हवस की दासी बनती जा रही थी । अब राज ने अपनी चाल चली और मुझे पकड़ के पेट के बल लिटा दिया और खुद मेरे उपर चढ़ गया । मैं कुछ कहती उस से पहले मैगज़ीन मेरे सामने रख दी और बोला ऐसे देख। उसका 6 इंची लंड मेरे पिछवाड़े की दरार में सटा हुआ महसूस हो रहा था।
अब राज मैगज़ीन के पेजपलटा रहा था और मुझे समझा भी रहा था की यह पोज केसे लेते हैं। पर मेरा ध्यान अब उसके लिंग पे था जो मेरे पिछवाड़े को निहाल कर रहा था। मेने स्कूल ड्रेस पहनी हुई थी, स्कर्ट और शर्ट। राज ने अब मुझसे कहा की वो मुझे मैगज़ीन वाला मज्जा देना चाहता हे। मेने भी व्याकुल मन सेहामी भर दी ओर उसको ग्रीन सिग्नल दिया। राज ने मेरी स्कर्ट उठाना शुरू किया। मेरी चिकनी जवानी नंगी होती जा रही थी। स्कर्ट कमर तक उठा देने के बाद राज ने मेरी पेंटी झटके से निचे खींच दी और पेरों से बाहर करके मुझे कमर के निचे पूरी नंगी करके मेरे चिकने शरीर पे अपनी हाथ फेरने लगा। अब मैं बिलकुल से हवस की गिरिफ्त में थी ओर राज की अगली चालका इंतजार करने लगी। तभी राज ने मैगज़ीन को वोह पन्ना खोला जिस पे गान्ड-मैथुन की तस्वीर थी । मैं राज का इशारा समज गयी और मन ही मन से खुद को तयार करने लगी । राज ने अब मेरे चिकने मांसल और गान्डज चुतड की दो फांको को अपने दो हाथो से चीर के अलग किया और फिर पुछा की थूक लगाऊं या तेल? मेने कोई जवाब नही दिया तो उसने थूक लगा के मेरी गांड को चिकनी करना शुरू कर दिया। अच्छी तरह से थूक लगाने के बाद उसने ऊँगली मेरी गांड में घुसा दी। मेरी हलकी सी चीख निकली पर ऊँगली अंदर घुस चुकी थी और अब राज उसको अंदर बाहर करने लगा।

raj..
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Re: बाली उमर का चस्का

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 13:13

मेरे अंदर हवस का तूफ़ान तेज होता जा रहा था। राज ने अब ऊँगली निकाल ली और फिर से थूक लगा के गांड को चिकनाई से भरने लगा। फिर उसने अपनी पेंट उतार दी। अपने लिंग पे थूक लगा कर मेरे गान्ड-द्वार पे थूका और उसपे लिंग टिका के बोला – सरदारनी, तयार हो जा। थोडा दर्द होगा पहले फिर मज़ा ही मज़ा। मेने लम्बी सांस ली और शरीर ढीला छोड़ दिया । राज ने मेरे चुतड खोल के लंड को एक झटका देते हुए मेरी गांड में घुसेड़ना चाहा पर सुराख तंग होने के कारण लंड फिसल गया। राज ने मुझे अपने दोनों हाथ पीछे लाने को कहा और बोला कि में अपने चुतड हाथो से फैला लू । मेने वेसा ही किया ओर अब राज को आराम से लंड अंदर डालने का अवसर मिल गया । अगले ही पल राज के लिंग-मुंड ने मेरी गांड के तंग सुराख को चीरते हुए जगह बना के अंदर प्रवेश पा लिया।
मेरी तेज़ चीख निकली पर राज ने मेरा मूंह बंद कर दिया और अब तेज़ी से धक्के मार मार के अपने लंड को मेरी तंग गांड में घुसाता गया। मैं पीड़ा से कराह रही थी पर राज ने मेरा मूंह बंद कर रखा था। ८-१० धक्कों के बाद वोह रुक गया और मेरे मूंह से हाथ हटा के मेरे ऊपर लेट गया। मैंने राज से रोते हुए कहा कि मुझे छोड़ दे यह सब मुझसे नही होगा। उसपे राज ने कहा की अब रोती क्यों हे लंड पूरा अंदर हे। मुझे यह जान के थोड़ी राहत मिली की लंड पूरा अंदर था। अब मेने अपने शरीर को ढीला कर दिया जो कि अब तक अकड़ा हुआ था दर्द से। राज ने भी धीरज रखा ओर कुछ देर में ही मेरा दर्द काफी कम हो चूका था।
राज ने लंड पूरा बाह रखिंच के फिर से मेरी गांड और अपने लंड पे थूक लगा के फिर से पोजीशन बनाई ओर अब की बार आराम से लंड अंदर घुसाने लगा। इस बार दर्द कम हुआ ओर मज़ा ज्यादा आया। मेने भी शरीर ढीला छोड़ दिया ओर राज को आराम से मारने को कहा।
राज अब स्पीड बढ़ा के तेज़ी से मेरी ले रहा था। साथ ही बोल रहा था की ललिता से ज्यादा मज़ा तेरे साथ आ रहा हे। तुम सरदारनी कुडियां मस्त होती हो ओर मज्जे से गांड मरवाती हो। मैं यह जान के खुश हुई की ललिता से ज्यादा मज़ा मुझ में था और अब में भी गांड उठा उठा के लंड लेने लगी। यह देख के राज का जोश दोगुना हो गया ओर उसने मेरी कमर थाम के मेरी गांड में ताबड़तोड़ धक्के मारना शुरू कर दिया। मैं भी जोर जोर से सिस्कारियां मारती हुई गांड मरवा रही थी कि तभी राज मेरे उपर निढाल सा गिर गया ओर उसके लंड से वीर्य की धार मेरे अंदर बहने लगी। 2 मिनट वेसे ही मेरे उपरपढ़ा रहने के बाद वोह उठा ओर तोलिये से अपना लंड साफ़ करके मेरी गांड पे रख दिया। में सीधी हुई ओर अपनी गांड को तोलिये से साफ़ करके पेंटी पहन ली।
अब तो सिलसिला चल पड़ा था मेरा और राज का। जब भी मोका मिलता राज मुझे घर पे या स्कूल में दबोच के मेरी ले लेता। पर धीरे धीरे मुझे एहसास होने लगा था कि इस सब में प्यार तो हे ही नही। राज कभी भी मुझे किस नही करता और न ही प्यार भरी रोमानी बातें करता। वह बस मोका मिलते ही मुझे झुका के स्कर्ट उठाता, पेंटी उतारता और थूक लगा के मेरी गांड मार लेता। एक दिन मेने डॉली दीदी से इस बारे में बात की। उसने मुझे यकीन दिलाया कि राज बोहत अछा लड़का हे ओर मुझे उस जेसा बॉय-फ्रेंड नही मिलेगा। तभी राज और जय वहां आ गये। डॉली ने राज को झिडकी लगा के मेरा ख्याल रखने को कहा। जय को मोका मिला और उसने राज को मेरा ख्याल रखने की सलाह देते हुए यह कह दिया कि अगर वोह ख्याल नही रखेगा तो में रखूगा। जय की आँखों में अजीब सी चमक थी, ओर मुझे पहली बार जय में एक अछा इन्सान नजर आया। वेसे देखने में ओर बोल-चाल में जय राज से कई कदम आगे था ओर मेने पहली बार ध्यान दिया की जय राज से कितना गोरा चिकना ओर स्मार्ट था।
स्कूल ख़त्म होने के बाद हम चारो बाहर निकले ओर राज के कहने पे पास के रेस्टोरेंट की ओर चल दिए। राज मेरी दायें ओर था पर उसका ध्यान मुझसे ज्यादा ललिता में था। जय मेरी बाएँ तरफ था ओर बार बार मेरी आँखों में आंखें डाल के कुछ कहने का यतन कर रहा था। तभी चलते चलते उसने अपना हाथ मेरे नितम्ब पे चिपका दिया। मेरी सिसकारी निकल गयी पर उसने जल्दी हाथ हटा लिया। मेने उसकी ओर देखा तो वोह मुस्कुरा दिया। मैं भी उसकी बेशर्मी से भरी मुस्कान पे लुट सी गयी ओर मुस्कुरा दी।
हम सब अंदर बैठे बातें कर रहे थे। जय मेरे सामने और राज ललिता के सामने था। तभी मुझे किसी के पेर अपनी टांग से छुते हुए महसूस हुए। मुझे लगा राज ही होगा इसलिए विरोध नही किया और बेठी रही। आहिस्ते से वो पेर मेरी दोनों टांगो के बिच से घुटनों तक आ गये। पर राज तो ऐसी हरकतें करता ही नही था। वह तो बस मेरे गदराए चुनमूनियाँडों का दीवाना था। खैर, थोड़ी देर बाद हम वहां से चल पड़े।
मेरा ध्यान जय की पेंट की ओर गया तो समझ गयी की मुझे पेर से कोन छेड़ रहा था। जय की पेंट में टेंट बना हुआ था । मैं मुस्कुरा गयी। शर्म के मारे चेहरा लाल हो गया। जय ने भी मेरी नजर पकड ली थी जब में उसके लिंग को घूर रही थी। वह भी मुझे देख मुस्कुराया ओर एक फ्लाइंग किस चोरी से मेरी ओर भेज दी। मेने भी आंख के इशारे से उसे जता दिया कि मेने उसकी फ्लाइंग किस कबूल कर ली।
धीरे धीरे जय मेरे करीब ओर राज मुझसे दूर होते जा रहे थे। एक दिन हम चारो राज के घर शनिवार के दिन हाफ-डे छुट्टी के बाद गये। वहां हम विकी के मम्मी पापा वाले बेडरूम में बैठे थे जहाँ विकी ने कोई बीस बार मेरी गांड ली होगी। बातों बातों में ही ब्लू-फिल्मो पे आ गये तो पता चला की ललिता को ऐसी फिल्म्स देखते हुए दो साल हो चुके थे ओर यह बात भी पता चली की विकी ने ललिता को भी इस कमरे में बुला के फिल्मे देखी हैं।
धीरे धीरे माहोल गरम हो गया। ललिता ने बताया की जब पहले पहले विकी उसकी लेता था तो दर्द कितना हुआ करता था। इस बात पे मैंने भी अपने दर्द भरे एहसास को बता दिया। फिर बात जय ओर विकी के लिंग के साइज़ की हुई तो दोनों ने अपने कपडे उतार के तन्ने हुए लंड सामने करते हुए बोला बताओ कोन किसका पसंद करती हे। डॉलील ने झट से विकी का ६ इंची मोटा लंड पकड़ लिया। मेरी नज़रें जय के पांच इंची गोरे चिकने लंड पे टिक्की हुई थी। पर शर्म के मारे मेने कोई हरकत नही की ओर चुप चाप बेठी रही। तभी जय ललिता की ओर बढ़ा और उसके होंठों को अपने मूंह में भर के रसपान करने लगा। ललिता को उन दोनों के साथ खुल के अय्याशी करते देख मुझे विकी की दिखाई हुई ब्लू-मैगज़ीन याद आई जिस में एक लड़की 2 या 3 मर्दों के साथ लगी होती थी। तभी राज ने पुछा किसे किसे ब्लू-फिल्म देखनी हे। हम सब ने एक स्वर में हामी भर दी।

raj..
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Re: बाली उमर का चस्का

Unread post by raj.. » 31 Oct 2014 13:13


राज ने अलमारी से एक cd निकाली ओर dvd player में डाल दी। फिल्म शुरू हो गयी ओर साथ ही साथ उन तीनो की अय्याशी भी।
ललिता उन दोनों को बड़ी आसानी से संभाले हुए थी। एक तरफ राज का लंड हाथों में सहलाते सहलाते और तगड़ा कर रही थी दूसरी तरफ जय से अपने होंठो को चुसवा चुसवा के मदमस्त कर रही थी। ब्लू-फिल्म शुरू हो चुकी थी ओर मेरा सारा ध्यान उसमे होने वाले हवस के प्रदर्शन पे चला गया। एक इंडियन सी दिखने वाली लड़की को दो अंग्रेजो ने घेर रखा था ओर बारी बारी से उसके जिस्म से खिलवाड़ कर रहे थे। कभी मम्मे चूसते तो कभी होंठो का मदिरापान करके उसकी मदहोशी बढ़ाते। इधर राज ओर जय पूरे नंगे हो के ललिता को भी नग्न करने में जुट गये।
यह सब देख के मेरे दिल-दिमाग पे गहरा असर पढ़ रहा था। प्यार ओर हवस के बीच का फर्क अब बेमानी हो गया था। जिस राज से पहले मुझे प्यार हुआ ओर जिस जय के लिए मेरे दिल में नये जज्बात उभर रहे थे वह दोनों मेरी आँखों के सामने मेरी सहेली ओर स्कूल की सबसे चालू सरदारनी के साथ हवस का नंगा नाच खेल रहे थे। पर मैं भी तो ललिता कौर की राह पे चल पड़ी थी। अब मेरे लिए पीछे हटना संभव नही था। दो-दो हवस भरे नज़ारे देख के मेरा दिमाग मेरे काबू से बाहिर होता जा रहा था। मैंने भी अब अयाशी के समुन्द्र में डुबकी लगाने की ठान ली ओर उन तीनो के देखते देखते अपने जिस्म से स्कूल यूनिफार्म की स्कर्ट ओर शर्ट उतार के बिस्तर पे उनके साथ जा मिली।
हम चारों नंगे बेड पे ब्लू-फिल्म का आनंद ले रहे थे। मुझे नंगी देख जय ने ललिता को छोड़ के मेरे पास आ गया था। ओर फिर मेरी नंगी कमर में हाथ डाल के अपने चिकने नंगे गोरे बदन से चिपका लिया। मैं भी शरम लाज की सभी सीमाओं को लाँघ के जय से चिपक गयी। फिर जय ने मेरे रसीले होंठो का रसपान शुरू किया ओर निचे से एक ऊँगली मेरी योनि में घुसा दी। मेरी चीख निकली ओर तभी राज ओर ललिता का ध्यान मेरी ओर गया। मैं जय से अलग हो के अपनी योनि पर हाथ अखे हुए लेटी थी। जय परेशान ओर राज हैरान था। जय ने पुछा की तेरी इतनी टाइट क्यों हे। राज तो बोलता हे कि इसने कई बार ली हे तेरी। इस पर मेने कहा की राज पीछे वाली लेता हैं। मैं आगे से कुवारी हूँ।
ललिता यह बात सुन के हस दी ओर बोली - राज ने तेरी पीछे वाली सील तोड़ी है, अब आगे वाली जय तोडेगा। यह सुन के मैंने जय की ओर देखा तो वोह चमकती आँखों से मेरी ओर देख के बोला - तयार है सरदारनी अपनी सील तुडवाने को? मैं थोडा सा घबरा गयी ओर प्रेगनेंसी के डर से उनको अवगत करवाया। मुझे माँ नही बनना था इसलिए मेने उनसे बता दिया जो मेरे दिल में था।
ललिता ने हस्ते हुए कहा की घबरा मत कुछ नही होगा। में भी तो चुनमूनियाँ देती हूँ। मैं कभी प्रेग्नेंट नही हुई। मेने पुछा केसे तो उसने मुझे सेफ पीरियड, कंडोम, माला-डी और एबॉर्शन के बारे में सब बताया। जब मुझे संतुष्टि हो गयी तो में भी चुनमूनियाँ संभोग के लिए तैयार हो गयी।

मैंने जय के लिंग को हाथों में ले के मसलना शुरू किया। उधर ललिता झुक के राज के लंड को चूस रही थी जेसे ब्लू-फिल्म में हो रहा था। जय ने मुझे इशारा किया चूसने का। मैं भी झुक गयी ओर मूह खोल के उसके गोरे लंड का सुपाडा मूंह में ले के चूसने लगी। उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़् .... क्या नज़ारा था। मोहल्ले की दो सबसे हसीन कुडियां झुक के अपने मुंह में लंड लिए हुए थीं ओर दोनों एक दुसरे से आगे बढ़ना चाहती थी। ललिता अनुभवी थी ओर लिंग को धीमी लय से चूस रही थी। वहीँ मैं जोश से भरी हुई तेज़ी से लिंग-मुंड पे अपने रसीले होंठ चला रही थी।
विकी ओर जय के जिस्म मचल रहे थे ओर वे किसी भी समय झड सकते थे। तभी राज ने अपना लंड ललिता के मुंह से खीँच लिया ओर मेरे पीछे आ गया। मैं जय का लंड चूसने में व्यस्त थी की तभी मेरे मांसल चुतडों के बीच मुझे विकी का फनफनाता लंड महसूस हुआ। मेने जय के लिंग को मुंह से निकाल के पीछे देखा तो विकी तयार था ओर तभी मेरी गांड में तेज़ दर्द के साथ उसका मोटा सुपाडा प्रवेश कर गया। मेरे मुंह से चीख निकली - हाय रब्बा ...ओउह ओह आओह ... आज तो बहुत मोटा लग रहा है, राज!"
राज अपने फूले हुए लंड को मेरी गांड की गहराइयों में अंदर ओर अंदर करता गया तेज़ धक्कों से।

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