पेइंग गेस्ट compleet

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007
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पेइंग गेस्ट compleet

Unread post by 007 » 31 Oct 2014 22:12

पेइंग गेस्ट
मैं पेइंग गेस्ट बनकर एक हफ़्ते पहले ही आया था. घर की मालकिन सुधा जोशी नाम की एक विधवा महिला थीं. करीब चालीस साल उम्र होगी. कद औसत से थोड़ा कम, गेहुआं रंग, काले लम्बे जूड़े में बन्धे बाल जिसमें कई सफ़ेद लटें दिखने लगी थीं और आंखों पर चश्मा. शरीर मझोले किस्म का था याने ज्यादा मोटा भी नहीं और ज्यादा पतला भी नहीं.
उनकी दो लड़कियां थीं. बड़ी मीनल बीस साल की एक सांवली लम्बी दुबली पतली लड़की थी. चेहरा बार बार मुंहासे होने से थोड़ा खुरदरा हो गया था और होंठ भी काले काले थे. पर फ़िर भी मीनल के चेहरे पर बुद्धिमत्ता की साफ़ झलक दिखती थी. छोटी लड़की सोलह साल की सीमा नाटे कद की थी इसलिये उम्र में और छोटी लगती थी. वह भी सांवली थी पर अच्छी चिकनी त्वचा होने से काफ़ी आकर्षक दिखती थी.
सुधा भाभी काफ़ी पैसेवाली थी. मुझे पेइंग गेस्ट सिर्फ़ इसलिये रखा था कि घर में एक पुरुष हो. बड़ा घर था, हरेक को अलग बेडरूम था, साथ में दो तीन बड़े कमरे भी खाली थे. मैं तब पैंतीस वर्ष का था और काफ़ी औरतों के साथ (और कुछ किशोरों के साथ भी) बहुत कामकर्म कर चुका था. यहां पूना में अपना खुद का घर खरीदने तक यहां रुका था. छोटी लड़की सीमा को देखकर कभी कभी मेरा लन्ड खड़ा होता था पर कभी यह नहीं सोचा था कि इस घर में इतने मस्त कामुक दिन मेरे भाग्य में लिखे हैं. लड़कियां मुझे अंकल कहती थीं और सुधा भाभी भी मुझे मेरे पहले नाम अनिल से पुकारने लगी थीं.
मस्ती की शुरुवात एक सोमवार को हुई. दोनो लड़कियां स्कूल और कालेज गई थीं. सुधा भाभी किचन में कुछ काम कर रही थीं. मैं उस दिन छुट्टी लेकर घर में ही था. मेरी एक चुदाई की किताब कल से गायब थी और मैं परेशान था कि कहीं इन लोगों के हाथ न लग जाये. किताब ढूम्डता मैं किचन तक आया तो दरवाजा लगा था. अन्दर से सिटकनी बन्द थी. लौटने ही वाला था कि अन्दर से मुझे सिसकने की हल्की आवाज आयी. मैने झुककर एक चीर में से देखा तो देखता ही रह गया. मेरा लन्ड एकदम कस के खड़ा हो गया.
सुधा भाभी टेबल के सामने कुर्सी पर बैठी थीं. सामने थाली में लम्बे वाले बैंगन पड़े थे जिन्हे काट के वह सब्जी बना रही थी. पर इस समय अपनी साड़ी ऊपर कर के वह एक बैंगन अपनी चूत में घुसेड़ कर मुट्ठ मार रही थी. एक हाथ में मेरी गुमी हुई किताब थी और उसे चश्मा लगा कर पढ़ते हुए सुधा भाभी के चेहरे से तीव्र वासना छलक रही थी. चश्मा पहने हुए हस्तमैथुन करती हुई उस अधेड़ नारी को इस हालत में देख कर मैं काफ़ी उत्तेजित हो गया. आखिर कभी सोचा नहीं था कि ऐसी सीधी साधी दिखने वाली औरत ऐसी मस्त चुदैल होगी.

पहली बार मैने गौर किया कि सुधा भाभी की नंगी जांघें बड़ी गोरी गोरी और मांसल थीं और बहुत आकर्षक लग रही थीं. चूत पर घनी झांटें थीं और लाल लाल बुर में वह बैंगन तेजी से अन्दर बाहर हो रहा था. मुझे यकीन हो गया कि ऊपर से अधेड़ अनाकर्षक दिखने वाली सुधा भाभी असल में बड़ी मादक नारी है जिसे चोदने में बड़ा मजा आएगा. भाभी जिस तरह से इतने मोटे बैंगन से अपनी बुर चोद रही थी उससे साफ़ था कि उसकी चूत मस्त चुदी हुई और खूब रस छोड़ने वाले थी.
सुधा भाभी अब झड़ने के करीब थी और सिसक सिसक कर तड़प रही थी. मेरा मन हुआ कि उसी समय जाकर अपना लन्ड उसकी चूत में डाल दूम पर दरवाजा अंदर से बंद था. आखिर भाभी हलके से चीखी और झड़ गई. लस्त पड़ कर वह कुर्सी में ही ढेर हो गयी और बैंगन उनके हाथ से छूट गया. कपकपाती चूत ने बैंगन करीब करीब पूरा निगल लिया और एक इंच का डंठल छोड़ वह आठ-नौ इम्च का बैंगन पूरा अंदर समा गया. मुझे बड़ा अच्छा लगा क्योकि गहरी और लम्बी चूत वाली औरतें मुझे बहुत अच्छी लगती हैं. उनकी चूत में पीने के लिये खूब रस होता है.
सुस्ताने के बाद सुधा भाभी ने बैंगन चूत से निकाला. उनके चेहरे पर अब शांति थी. साड़ी ठीक कर के जब उन्होंने चिपचिपे बैंगन को देखा तो वह मम्द मम्द मुस्कराने लगीं. मुझे लगा कि उठ कर उसे धोएंगी या फ़ेक देंगी पर वैसा ही उसे काट के उन्होंने बाकी सब्जी में मिला दिया. सोचा होगा कि उनकी चूत का थोड़ा रस अगर उनका परिवार खा भी लेगा तो कोई बड़ी बात नहीं होगी. इस बात ने मुझे पक्का इशारा कर दिया कि वह महा कामुक औरत है. मैने तो निश्चय कर लिया कि आज खूब सब्जी खाऊंगा.
अब मैं सुधा भाभी को फ़ांस कर चोदने के चक्कर में था. मुझे मालूम था कि मेरे कहने भर की देर है और चुदाई की प्यासी वह नारी मेरी बांहों में आ लिपटेगी. मैने कुछ और तस्वीरों वाली किताबें लाईं और उन्हे जान बूझ कर मेरे कमरे में टेबल पर रखा. मुझे पता था कि मेरी अनुपस्थिति में कमरा ठीक करने के लिये सुधा भाभी रोज मेरे कमरे में आती थी. दूसरे ही दिन मौका देखकर मैं बाहर जाने का बहाना करके वहीं बाथरूम में छुप गया. कुछ ही देर में भाभी वहां आई और इधर उधर देखकर कि घर में कोई नहीं है, कमरे का दरवाजा लगा लिया. फ़िर वहीं कुरसी में बैठकर चश्मा लगाया और किताबें देखने लगी.
इस बार मैं जान बूझकर और गंदी किताबें लाया था. उनमें हर तरह के चित्र थे, मर्द-औरत, मर्द-मर्द, औरत-औरत, जानवरों के साथ रति करते स्त्री पुरुष, कमसिन किशोर और किशोरियों को भोगते स्त्री पुरुष इत्यादि. देखकर भाभी का चेहरा शर्म और वासना से लाल हो गया और वह जांघें रगड़ने लगी. कुछ ही देर में सिसक कर उसने साड़ी ऊपर की और किताबें देखती हुई बुर में उंगली डाल कर हस्तमैथुन करने लगी.
यही मौका था, मैने ज़िप खोल कर अपना तन्नाया हुआ लन्ड बाहर निकाल लिया और उसे हाथ में लेकर बाहर निकल आया. सुधा भाभी मुझे देखकर डर से पथरा गई, उसकी उंगली चलना बन्द हो गई, हाथ से किताब गिर पड़ी और सहमी हुई वह मेरी तरफ़ देखने लगी.”अनिल भैया, तुम? ”
मैं कुछ न कहकर उसके पास गया, प्यार से झुककर भाभी को चूमा और अपनी मोटा लौड़ा उसके हाथ में दे दिया. पास से पता चलता था कि भाभी असल में कितनी सुम्दर थी. चिकना चेहरा, गुलाबी कोमल होंठ और मुलायम रेशम से बाल. मैने भाभी के कपकपाते गुलाबी होंठों पर अपने होंठ रखे और चूमने लगा. कुछ देर वह डरी रही पर फ़िर उसका साहस बन्धा.

007
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Re: पेइंग गेस्ट

Unread post by 007 » 31 Oct 2014 22:13


जब उनका ध्यान अपने हाथ में पकड़े मस्त ९ इम्च के मोटे ताजे लन्ड पर गया तो मानो उसके शरीर में बिजली दौड़ गयी. वह भी मुझे चूमने लगी और देखते ही देखते उसकी वासना ने अब तीव्र रूप ले लिया. वह चश्मे के नीचे से अपनी आंखें मेरी आंखों में डाल के देखने लगी और अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसेड़ दी. जल्द ही सुधा भाभी अपना नरम मुंह खोल कर मेरा मुंह चूसने लगी और अपने हाथों से मेरे लन्ड को मुठियाने लगी. उसका हाथ फ़िर अपनी बुर में चलने लगा.
मैं भी कांओत्तेजना से पागल हो गया था. भाभी के मीठे मुंह को चूम कर मुझे लगा कि इस मुंह से क्यों न अपना लन्ड चुसवाऊम. “भाभी, लन्ड चूसेंगी?” मैने धीरे से पूछा. भाभी ने सिर्फ़ सिर हिलाया और मैने उठ कर खड़े होकर अपना लन्ड उसके हाथ से निकालकर अपने हाथ में ले लिया. बैठी हुई भाभी का मुंह मेरे लन्ड के ठीक सामने था. लन्ड का सूजा हुआ सुपाड़ा सुधा भाभी के गाल पर रगड़ता हुआ मैं बोला. “भाभी, मुंह खोलिये”. उसने चुपचाप अपना मुंह खोल दिया और मैने सुपाड़ा सीधा उसके मुंह में घुसेड़ दिया. भाभी के गाल फ़ूल गये जैसे कोई सेब मुंह में पूरा भर लिया हो.
“चूसिये भाभी, लन्ड चूसिये और मुट्ठ मारना बन्द मत कीजिये, मजा लेती रहिये” भाभी ने मेरी बात मान कर मेरे लन्ड को चूसना शुरू कर दिया. जोर जोर से दो उंगलियों से मुट्ठ मारती हुई वह अब मेरे लन्ड को निगलने की कोशिश करने लगी. मैने भी लन्ड उसके मुंह में धीरे धीरे गहरा पेलना शुरू किया. “लन्ड पूरा निगलिये भाभी, गले तक उतर जाने दीजिये, मैं अब आपके मुंह को चोदना शुरू करने वाला हूं, देखिये क्या मजा आयेगा.” मैने धक्के लगाने शुरू किये और किसी तरह मेरा आधे से ज्यादा लन्ड भाभी के गले तक घुस गया. अब मैने हाथ से उसका सिर पकड़ा और लन्ड जोर से पेलना शुरू किया. एक दो धक्कों में ही लन्ड जड़ तक उसके हलक में उतर गया.
सुधा भाभी का दम घुटने लगा और वह थोड़ी कसमसाई पर मैने उनके गोंगियाने की परवाह न करके उनका सिर पकड़ कर जोर जोर से उनके गले को चोदना शुरू कर दिया. “डरिये नहीं भाभी, कुछ नहीं होगा, चूसती रहिये और मुट्ठ मारती रहिये, मुझे अपने गले को चोदने दीजिये, अभी आपको मस्त मलाई खिलाता हूं.” दोनों हाथों में भाभी का सिर किसी फ़ुटबाल की तरह पकड़ कर मैं खड़ा खड़ा उसका मुंह चोदने लगा.
लन्ड अब भाभी की जीभ और तालू को रगड़ता हुआ उसके गले में अन्दर बाहर हो रहा था. मुंह बन्द करके भाभी भी उसे भरसक चूस रही थी. जिस आसानी से अब भाभीने मेरा पूरा लन्ड निगल लिया था उससे स्पष्ट था कि भाभी को लन्ड चूसने का काफ़ी अनुभव था. अभी भी भाभीने चश्मा पहन रखा था और धक्के मारते समय मेरा पेट उससे टकरा जाता था. मुझे बहुत मजा आया और दस मिनट उस मतवाली नारी का मुंह चोदने के बाद मैं झड़ गया.
मैने तुरंत लन्ड आधा बाहर खींच कर सिर्फ़ सुपाड़ा भाभी के मुंह में रहने दिया. “सुधा भाभी, जीभ पर मेरा वीर्य लीजिये और स्वाद ले लेकर खाइये, आपको मजा आ जायेगा, मेरे लन्ड की मलाई खाने को तो लौंडियां तरसती हैं, आपको खुद ही खिला रहा हूं” कहकर लन्ड को मैने खूब मुठियाया और गाढे सफ़ेद वीर्य का फ़ुहारा भाभी की जीभ पर बरसने लगा. भाभी ने वह चुपचाप निगल लिया, हां उसका हाथ अपनी बुर में और तेज चलने लगा. मेरा लन्ड जब सिमट कर शांत हो गया तो मैने उसे भाभी के होंठों से खींच कर बाहर निकाल लिया.
बुर में उंगली चलने की पुच – पुच – पुच आवाज निकल रही थी. मचली हुई उस बुर की महक भी कमरे मैं फ़ैल गई थी. मेरा दिल उस माल को चाटने के लिये मचल उठा. भाभी का हाथ पकड़ कर मैने खींच लिया और पास से देखा. उंगलियों पर गीला चिपचिपा सफ़ेद शहद सा लगा था. मैने अपने मुंह में लेकर भाभी की उंगलियां चाट लीं.
भाभी अपनी वासना से भरी आंखों से मेरे इस कर्म को देखती रह गई. भाभी की बुर का स्वाद जैसा मैने सोचा था, वैसा ही मादक निकला, थोड़ा कसैला और खटमिट्ठा. “भाभी, आपकी चूत चूसूंगा, आप अपनी जांघें पसार कर आराम से बैठ जाइये.” कामवासना में तड़पती सुधा भाभी तुरंत अपनी टांगें फ़ैला कर बैठ गई. “चूस लो अनिल भैया, मुझे अब यह चुदासी सहन नहीं होती” उसने सिसक कर कराहते हुए कहा.
मैं फ़र्श पर भाभी के पैरोम के बीच बैठ गया. आगे सरक कर अपना मुंह उस रसीली चूत पर जमाने के पहले उसे मन भर कर बिलकुल पास से देखा. पास से तो उस बुर का जो नजारा था वह देख कर मेरा अभी अभी झड़ा लन्ड भी फ़िर तन्नाने लगा. मैने ऐसी रसीली और बड़े बड़े भगोष्ठों वाली बुर बहुत कम देखी थीं क्योंकि ऐसी चूत सिर्फ़ उम्र में बड़ी और खूब चुदी हुई औरतों की ही होती है. सुधा भाभी की घनी झांटें भी बिलकुल काली और घुंघराली थी, मानो किसी छोकरी के सिर के बाल हों. बुर के लाल लाल होंठों को ठीक से चूमने के लिये मुझे वह जुल्फ़ें बाजू में करनी पड़ी. चूत के ढीले ढाले गहरे छेद में से सफ़ेद चिपचिपा पानी रिस रहा था.

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Re: पेइंग गेस्ट

Unread post by 007 » 31 Oct 2014 22:13


मैने और न रुक कर सीधे अपने होंठ जमाकर उस रसीले माल को चूसना शुरू कर दिया. उधर वह महकता गाढा सफ़ेद शहद मेरे मुंह में गया और उधर मेरा लौड़ा फ़िर कस कर खड़ा हो गया. जीभ डाल कर मैने भाभी की बुर चाटी और जीभ से ही बुर के ऊपरी कोने में उभरे लाल बेर जैसे क्लिटोरिस को भी गुदगुदाया. बेरी पर जीभ का लगना था और मानों भाभी पागल हो गईं और मेरा सिर अपनी चूत पर दबा कर धक्के मारने लगी. “हाय, हाय, क्या कर रहे हो अनिल, मर जाऊंगी रे, रहा नहीं जाता, जीभ डाल डाल कर चूसो ना, झड़ा दो मुझे प्लीज़.”

मैने मन भर के बुर के उस शहद का पान किया. भाभी को बस झड़ाता नहीं था और कगार पर लाकर फ़िर छोड़ देता था क्योंकि जब तक वह मतवाली थी तब तक उसकी चूत रस छोड़ती रहेगी, यह मुझे मालूम था. अन्त में जब सुधा भाभी असहनीय वासना से रोने लगीं, तो उनपर तरस खा कर मैने अपनी जीभ भाभी के भोसड़े में डाली और सपासप उस चूती बुर को अपनी जीभ से चोदने लगा. साथ ही अपने ऊपर के होंठ को उसके क्लिटोरिस पर रगड़ने लगा. दो ही मिनट में भाभी एक चीख मारकर ढेर हो गई. “हा ऽ य उई ऽ मां ऽ ऽ मर गई ऽ ऽ”. अब उसकी बुर ने ऐसा पानी मेरे मुंह में फ़ेंका जैसे शहद की शीशी टूट गई हो. पूरा महकता कसैला पानी मैने पिया और चाट चाट कर पूरी चूत और जांघें साफ़ कीं.
जब उठा तो सुधा भाभी शरमा कर नीचे देख रही थी. “क्यों भाभीजी, अपने इस भैया की सेवा पसंद आई?” “तुम तो बड़े मझे हुए चोदू निकले, अनिल, मुझे ऐसा झड़ाया कि सालों में इतना आनन्द किसी ने नहीं दिया था.” “भाभी, बोलिये, चुदाएंगी? अभी एक घंटा है सीमा को स्कूल से आने में.” “हां, अनिल, चल जल्दी से चोद डाल, बहुत दिनों की प्यासी हूं लन्ड के लिये”.
मैने भाभी को उठकर पलंग पर लेटने को कहा. “भाभीजी, आपको नंगा करने के लिये समय नहीं है, अभी ऐसे ही चोद डालता हूं, बाद में आपके इस मांसल शरीर को मन भर कर देखूंगा.” सुधा भाभी अब तक चुदाई की आशा से अपनी साड़ी ऊपर कर के एक तकिया अपने नितम्बों के नीचे रख कर लेट गई थी. अपनी जांघें फ़ैला कर मुझे अपनी बाहों में खींच कर मुझे बेतहाशा चूमती हुई वह बोली.”बस अब चोद डाल मेरे राजा, इतना चोद कि मैं बेहोश हो जाऊम”
भाभी की चूत में मैने अपना तन्नाया हुआ लन्ड घुसेड़ दिया. उस गीले चिकने ढीले ढाले भोसड़े में लन्ड ऐसा गया जैसे मक्खन में छुरी. भाभी पर लेट कर उन्हें चूमता हुआ मैं मस्त सटा सट चोदने लगा. मैं एक बार झड़ चुका था इसलिये अपनी वासना पर काबू रखकर आराम से भाभी को मजा ले ले कर चोद सकता था. भाभी के गुलाबी होंठों को दांत में पकड़ कर चूसते हुए मैने ऐसे हचक हचक के चोदा कि पांच ही मिनट में वह झड़ गई और अपने बन्द मुंह से मस्ती में गुनगुनाने लगी. मैने उसे पूरा झड़ जाने दिया और फ़िर जब वह थोड़ी शांत हुई तो उसका मुंह छोड़ा. गहरी सांस लेते हुए भाभी तृप्त भावना से मेरी आंखों में आंखें डालके मुझे चूमने लगीं.
“भाभी, थोड़ी चुदासी की प्यास बुझी ना? अब गप्पें मारते हुए आराम से घंटे भर तक चोदेंगे” मैं अब उसे हौले हौले लम्बे जोरदार धक्के लगा लगा कर एक धीमी लय से चोदने लगा. बुर में से मस्त फचाक-फचाक-फचाक ऐसी चुदने की आवाज निकलने लगी. “भाभी, यह बताइये कि आप की चूत का ऐसा मस्त रसीला भोसड़ा कैसे बना? ऐसा तो मैने सिर्फ़ रंडियों का या पचास साठ साल की चुदक्कड़ महिलाओं में ही देखा है.”
भाभी मुस्करायी और फ़िर शरमाते शरमाते पर बड़े गर्व के साथ उन्होंने अपनी पूरी कहानी सुनाई.
भाभी को पहली बार १२ साल की आयु में उनके मामाजी ने चोदा, जिन्होंने पाल पोस कर भाभी को बड़ा किया था. उसके बाद मामाजी रोज कई बार कमसिन सुधा भाभी को चोदते थे. सोलह साल की आयु में मामा के लड़के के साथ उनकी शादी कर दी गई और फ़िर अगले कई साल उनकी दिन रात चुदाई हुई. रात को पति और दिन में मामाजी या ससुर उनपर चढे रहते थे. कुछ दिन बाद यह चुदाई बहुत बढ गई क्योंकि सुधा भाभी का पति, याने उसका ममेरा भाई अपना बिज़िनेस चलाने के चक्कर में भाभी को कई लोगों से चुदाने लगा.
फ़िर उसके पति को समलिंग सम्भोग का चसका लगा. उसके बाद भाभी की गांड पर उसका ज्यादा ध्यान जाने लगा. खूबसूरत जवान लड़कों और युवकों को वह भाभी की चूत का लालच देकर घर लाता और गांड मारता और मरवाता. साथ साथ भाभी की भी खूब चुदाई होती. अगर कोई जवान न मिले तो उसका पति भाभी की ही गांड मार लेता.

कई बार तो एक रात में भाभी को दस दस लड़कों ने चोदा. बच्चियां हो जाने के बाद घर में यह क्रीड़ा बन्द हो गयी पर अक्सर उसके पति अपने साथ सुधा भाभी को बाहर ले जाते और भाभी को अपने मित्रों से चुदवाकर खुद मजा लेते. इस निरन्तर चुदाई का ही यह नतीजा था कि भाभी की चूत का मस्त ढीला रसीला भोसड़ा हो गया था. दो साल पहले पति की मृत्यु के बाद भाभी ने चुदाई छोड़ दी थी. पर अपनी कामवासना शांत करने का सिर्फ़ एक तरीका था उनके पास और वह था मुट्ठ मारना. इसलिये गाजर, मूली, बैंगन, केले आदि से भाभी खूब मुट्ठ मारतीं थी. और चूत को बराबर ढीला करती रहतीं थीं.
अपनी कहानी सुनाने के बाद भाभी ने मेरे चोदने का मजा लेते हुआ पूछा. “अनिल, तुम्हें आखिर मेरी जैसी ढीली भोसड़े वाली चूतें क्यों पसंद हैं? नौजवानों को तो टाइट सकरी चूतें ज्यादा पसम्द आती हैं.”

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