अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति compleet

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007
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Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति

Unread post by 007 » 01 Nov 2014 15:34

अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति -13 लास्ट पार्ट

आंख खोल कर सामने देखा तो दीप्ति अजय के लन्ड को मसल रही थी. शोभा ने आगे बढ़ अजय के सुपाड़े को अपने होंठों में दबा लिया. धीरे से दोनों टट्टों को हाथों से मसला और अपनी जीभ को सुपाड़े की खाल पर फ़िराया. तुरन्त ही अजय के लन्ड ने अपना चिरपरिचित विकराल रुप धारण कर लिया. शोभा लन्ड को वही छोड़ अजय के चेहरे के पास जाकर होंठों पर किस करने लगी. दोनों ही एक दूसरे के मुहं में अपना अपना रस चख रहे थे.
"अजय चलो.. गेट रैडी..वर्ना मम्मी नाराज हो जायेंगी". शोभा ने अजय का ध्यान उसकी प्यासी मां की तरफ़ खींचा. अजय एक बार को तो समझ नहीं पाया कि चलने से चाची का क्या मतलब है. उसकी मां तो यहीं उसके पास है.
शोभा ने अजय को इशारा कर बिस्तर पर एक तरफ़ सरकने को कहा और दीप्ति को खींच कर अपने बगल में लिटा लिया. अजय से अपना ध्यान हटा शोभा ने जेठानी के स्तनों पर अपने निप्पलों को रगड़ा और धीरे से उनके होंठों के बीच अपने होंठ घुसा कर फ़ुसफ़ुसाई,"अब उसे मालूम है कि हम औरतों को क्या पसन्द है. आपको बहुत खुश रखेगा." कहते हुये शोभा ने जेठानी को अपनी बाहों में भर लिया. अजय अपनी चाची के पीछे लेटा ये सब करतूत देख रहा था. लन्ड को पकड़ कर जोर से चाची कि गांड की दरार में घुसाने लगा, बिना ये सोचे की ये कहां जायेगा. दिमाग में तो बस अब लंड में उठता दर्द ही बसा हुआ था. किसी भी क्षण उसके औजार से जीवनदाय़ी वीर्य की बौछार निकल सकती थी. घंटों इतनी मेहनत करने के बाद भी अगर मुट्ठ मार कर पानी निकालना पड़ा तो क्या फ़ायदा फ़िर बिस्तर पर दो-दो कामुक औरतों का.
शोभा ने गर्दन घुमा अजय की नज़रों में झांका फ़िर प्यार से उसके होंठों को चूमते हुये बोली, "बेटा, मेरे पीछे नहीं, मम्मी के पीछे आ जाओ. शोभा को अजय के लंड का सुपाड़ा अपनी गांड के छेद पर चुभा तो था पर इस वक्त ये सब नये नये प्रयोग करने का नहीं था. रात बहुत हो चुकी थी और दीप्ति एवं अजय अभी तक ढंग से झड़े नहीं थे. अजय ने मां के चेहरे की तरफ़ देखा. दीप्ति की आंखों में शर्म और वासना के लाल डोरे तैर रहे थे. दीप्ति मां, जो उसकी रोजाना जरुरत को पूरा करने का एक मात्र सुलभ साधन थी अभी खुद के और बेटे के बीच शोभा की उपस्थिति से असहज थी. लेकिन आज से पहले भी तो २ महीने तक हर रात दोनों प्रेमियों की तरह संसर्ग करते रहे हैं.
अजय ने एक बार और कमर को हल्के से झटका. सुपाड़ा फ़िर से शोभा के पिछले छेद में जा लगा. शोभा की सांस ही रुकने को थी कि दीप्ति ने हाथ बढ़ा अजय के चेहरे को सहलाया "बेटा. आओ ना?". अपनी मां से किये वादे को निभाने के लिये अजय शोभा से अलग हो गया. शोभा ने राहत की सांस ली. मन ही मन पछता भी रही थी कि आज उसकी पिछाड़ी चुदने से बच गई. उसके लिये भी गुदा-मैथुन एक नया अनुभव होगा.
अजय उठ कर दीप्ति के पीछे लेट गया. इस तरह दीप्ति अब अपनी देवरानी और बेटे के नंगे जिस्मों के बीच में दब रही थी. शोभा के चेहरे पर अपना गोरा चेहरा रगड़ते हुये बोली "शोभा, तुम हमें कहां से कहां ले आई?".
"कोई कहीं नहीं गया दीदी. हम दोनों यहीं है.. आपके पास". कहते हुये शोभा ने अपने निप्पलों को दीप्ति के निप्पलों से रगड़ा.
"हम तीनों तो बस एक-दूसरे के और करीब आ गये हैं." शोभा ने अपनी उन्गलियां दीप्ति के पेट पर फ़िराते हुये गीले योनि-कपोलों पर रख दीं. "आप तो बस मजे करो.." शोभा की आवाज में एक दम से चुलबुलाहट भर गई. आंख दबाते हुये उसने अजय को इशारा कर दिया था.

दीप्ति ने अपनी नंगी पीठ पर अजय के गरम बदन को महसूस किया. अजय ने एक हाथ दीप्ति की कमर पर लपेट कर मां को अपनी तरफ़ दबाया. यहां भी अनुभवहीन किशोर का निशाना फ़िर से चूका. लन्ड सीधा दीप्ति की गांड के सकरे रास्ते में फ़िसल गया.
"उधर नहीं". दीप्ति कराही. अपना हाथ पीछे ले जा कर अजय के सिर को पकड़ा और उसके गालों पर एक गीला चुम्बन जड़ दिया. अजय के गालों पर शोभा का चूतरस सूख चला था. आज रात एक पारम्परिक भारतीय घर में जहां एक दूसरे के झूठे गिलास में कोई पानी भी नहीं पी सकता था सब कुछ उलट पलट गया था. लंड और चूतों का रस सभी सम्भावित तरीकों से मिश्रित थे.

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Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति

Unread post by 007 » 01 Nov 2014 15:35


"दीदी, अपना पैर मेरे ऊपर ले लो", शोभा ने सलाह दी. शोभा दोनों के साथ आज रात एकाकार हो गई थी. उसने तुरन्त ताड़ लिया कि दीप्ति क्यूं अजय को मना कर रही है. हाथ बढ़ा खुद ही दीप्ति की मोटी जांघ को उठा अपने नितम्बों के ऊपर रख लिया. दीप्ति ने सोचा शायद शोभा अपनी चूत उसकी चूत से रगड़ना चाहती है. लेकिन जल्दी ही अजय का गरम काला दैत्याकार लिंग उसकी चूत और गुदा के बीच सरकने लगा. लड़का कामोत्तेजना में बिना निशाना साधे वार कर रहा था. जब भी उसके मोटे लन्ड का प्रहार दीप्ति के गुदा द्वार पर पड़ता तो पीड़ा से कराह उठती. अपने बेटे की सैक्स जिज्ञासाओं को शांत करने के लिये उसे अपना शरीर सौंप देना एक बात थी. किन्तु गांड मराना? ये तो अप्राकृतिक है. मां और बेटे के बीच प्यार का संबंध होता है. चलो स्त्री पुरुष होने के नाते एक दूसरे की सैक्स जरुरतें भी पूरी की जा सकती है. शोभा जैसी घर की ही अन्य वरिष्ठ सदस्य का साथ भी चल सकता है. किन्तु गुदा मैथुन. ना. इन्हीं सब विचारों में खोई हुई दीप्ति को पता ही नहीं चला कि कब शोभा ने उसकी टांगों के बीच में से हाथ घुसेड़ कर अजय के सख्त लन्ड को पकड़ लिया था. अजय के जननांग को सहलाने लगी. उसकी खुद की योनि में अभी तक हल्के हल्के झटके आ रहे थे. शायद अजय के द्वारा चूसे जाने के बाद कहीं ज्यादा संवेदनशील हो गई थी. सिर्फ़ सोचने मात्र से ही लिसलिसा जाती थी. दिमाग को झटका दे शोभा ने अजय तेल पिये लट्ठ को दीप्ति की रिसती चूत के मुहं पर रखा.
"अब डालो", अजय के चेहरे की ओर देखती शोभा बोली जो इस समय अपने बिशाल लण्ड को मां की चूत में गुम होते देख रहा था.
"आह. बेटा धीरे...शोभा आह", दीप्ति चित्कारी. लन्ड काफ़ी सकरे मार्ग से चूत में प्रविष्ट हुआ था. योनि की निचली दीवारों से सरकता हुआ अजय का लन्ड मां के गर्भाशय के मुहांने को छू रहा था. इतने सालों की चुदाई के बाद भी दीप्ति की चूत में ये हिस्सा अनछुया ही था. अजय के साथ संभोग करते समय भी उसने कभी इस आसन के बारे में सोचा नहीं था.
कृतज्ञतावश दीप्ति शोभा के गालों पर चुम्बन बरसाने लगी. अजय का लंड उसके पीछे कार्यरत था. पूरी रात उसे भरोसा नहीं था कि वो दुबारा अजय के लन्ड को अपनी चूत में भर पायेगी. पूरे वक्त तो शोभा के इशारों पर ही नाचता रहा था.
अजय ने मां के एक चूंचे को हाथ में कस के दबा लिया. दीप्ति को अपने फ़ूले स्तनों पर अजय के कठोर हाथ सुहाने लगे. वो अपना दूसरा स्तन भी अजय के सुपुर्द करना चाहती थी. शरीर को हल्का सा उठा अजय को दूसरा हाथ भी इस्तेमाल करने के लिये उकसाया. अजय ने तुरन्त ही मां के बदन के उठे बदन के नीचे से दूसरा हाथ सरका के दूसरे चूंचे को दबोच लिया . अब दोनों ही चूंचे अजय के पंजों में जकड़े हुये थे और वो उनके सहारे शरीर के नीचले हिस्से को मां की कमर पर जोर जोर से पटक रहा था.
अजय के जबड़े भींच गये. शोभा की नज़रें उसी पर थी. दीप्ति के सिर के ऊपर से चेहरा आगे कर दोनों एक दूसरे को चूमने लगे. छोटे छोटे चुम्बनों के आदान-प्रदान से मानों एक दूसरे को जतला रहे हो की अब उनकी कामक्रीड़ा का केन्द्र-बिन्दु सिर्फ़ दीप्ति ही है.
दीप्ति ने गर्दन मोड़ कर अपने सिर के पीछे चलती चाची भतीजे की हरकत को देखा तो वो भी साथ देने के लिये उतावली हो गई. दोनों के जुड़े हुये होंठों के ऊपर बीच में से उसने अपने होंठों को भी टिका दिया. तीनों अब बिना किसी भेद-भाव के साथ चुमने चाटने लगे. आंखें बन्द किये मालूम ही नहीं कौन किसके मुहं में समाया हुआ है.
शोभा ने अपना सिर मां बेटे के पास से हटा नीचे दीप्ति के चूचों को जकड़े पड़े अजय के हाथों को चूमा. और थोड़ा नीचे आते हुये दीप्ति के नंगे बदन पर जैसे चुम्बनों की बारिश ही कर दी. चूत में भरे हुये अजय के लन्ड और मुहं में समाई उसकी जीभ के बीच में शोभा की हरकतों को महसूस ही नहीं कर पा रही थी. किन्तु जब शोभा ने अपने होंठों को उसकी घनी झांटों के बीच में से तनी हुई क्लिट के ठीक ऊपर रखा तो दीप्ति अजय के मुहं में ही चीख पड़ी. शोभा के तपते होंठ और चूत को रौंदता अजय का बलशाली पुरुषांग एक साथ दीप्ति के होशो-हवास छीन चुके थे.

अजय की हालत भी खराब थी. मां के प्रजनांग में अन्दर बाहर होते उसके लन्ड को शोभा चाची के नर्म होंठों पर से गुजरना पड़ रहा था. हे भगवान, ये रंडी चाची चोदने की सब कलाओं में पारंगत है. प्रणय क्रीड़ा के चरम पर खुद को महसूस कर अजय लंड को जोर जोर से मशीनी पिस्टन की भांति मां की चिकनी चूत में भरने लगा.
दीप्ति खजुराहों की किसी सुन्दर मूर्ति के जैसी बिस्तर पर बेटे और देवरानी के बीच पसरी पड़ी थी. एक हाथ पीछे ले जाकर अजय के सिर को अपने चेहरे पर झुका रखा था. दुसरे से शोभा का सिर पकड़ उसे अपनी जांघों की गहराई में दबा रखा था. गोरा गदराया शरीर अजय के धक्कों के साथ बिस्तर पर उछल रहा था.

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Re: अजय, शोभा चाची और माँ दीप्ति

Unread post by 007 » 01 Nov 2014 15:35


दीप्ति की चूत एक ही समय में चोदी और चूसी जा रही थी. शोभा के सिर ने अजय के लंड के साथ तालमेल बैठा लिया था. जब अजय का लन्ड मां की चूत में गुम होता ठीक उसी समय शोभा भी दीप्ति के तने हुये चोंचले को पूरा अपने होंठों में समा लेती. फ़िर जैसे ही अजय लन्ड को बाहर खींचता, वो भी क्लिट को आजाद कर देती. चूत की दिवारों पर घर्षण से उत्पन्न आनन्द, लाल सुर्ख क्लिट से निकलते बिजली के झटके और अजय के हाथों में दुखते हुये चूंचें, कुल मिलाकर अब तक का सबसे वहशीयाना और अद्भुत काम समागम था ये दीप्ति के जीवन में.
अगले कुछ ही धक्कों के बाद दोनों मां-बेटे अपने आर्गैज्म के पास पहुंच गये. अब किसी भी क्षण वो अपनी मंजिल को पा सकते हैं. पहले दीप्ति की चूत का सब्र टूटा. अजय के गले में "म्म्म." की कराह के साथ ही दीप्ति ने शोभा के सिर को चूत के ऊपर जोरों से दबा दिया. अजय के हाथों ने पहले से ही दुखते दीप्ति के स्तनों पर दवाब बढ़ा दिया. सूजे हुये लंड पर फ़िसलते चाची के होंठों ने आग में घी का काम किया. जैसे ही उसे लन्ड में कुछ बहने का अहसास हुआ, उसने लन्ड से दीप्ति की चूत पर कहर बरसाना शुरु कर दिया. बेतहाशा धक्कों के बीच दीप्ति के गले से निकली घुटी हुई चीखें सुन नही सकता था.
शोभा ने भी चूत से लन्ड तक बिना रुके चाटना जारी रखा. जीभ पर सबसे पहले दीप्ति का चूतरस आया. क्षणभर पश्चात ही अजय का मीठा खत्टा वीर्य भी होठों के किनारे से आ लगा. गंगा, जमुना सरस्वती की भांति, दीप्ति का आर्गैज्म, अजय का वीर्य और शोभा का थूक उसके गले में मिल संगम बना रहे थे. शोभा के लिये तो अब कुछ भी अलग नहीं रह गया था. बाल, माथा, और पूरा चेहरा तीनों के ही शरीर द्रवों से नहा गया था.
दीप्ति ने सांस लेने के लिये अजय के मुहं में दबे पड़े अपने होंठों को बाहर खींचा. आर्गैज्म के बाद आते हल्के हल्के झटकों के बाद दिमाग सुन्न और शरीर निढाल हो गया. मानो किसी ने पूरी ऊर्जा खींच कर निकाल ली हो. परन्तु अभी तक अजय का लंड तनिक भी शिथिल नहीं हुआ था. बार बार धक्के मार कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा था. दीप्ति के पेट के बल लुढ़क जाने से उसका लण्ड अपने आप स्प्रींग की तरह उछल कर बाहर आ गया. शोभा रुक कर ये सब देख रही थी. बिचारा, अब मां की झटकती चूत में ना जा पायेगा. शोभा ने दीप्ति की टांगों के बीच से घुसकर अजय के लन्ड पर गोल करके अपने होंठों को सरका दिया. कुछ देर तक सिर को हिल आकर अजय के लण्ड को आखिरी बूंद तक आराम से झड़ने दिया. अजय आनन्द के मारे कांप रहा था. उत्तेजना से भर कर अपने दांत दीप्ति के सुन्दर नरम कंधों में गड़ा दिये. वीर्य की आखिरी बूंद भी शोभा के गले में खाली करके अजय का लन्ड "पॉप" की आवाज के साथ चाची के मुहं से बाहर निकल आया. शोभा ने पहली बार किसी पुरुष का वीर्य अपने गले भरा था, इससे पहले भी अजय को चूसते समय उसको गले से बाहर ही अपने मुखड़े पर झड़ाया था और कुमार अपने पति को तो वो सिर्फ़ उत्तेजित करने के लिये ही चुसती हैं. जैसे ही मुहं खोल गले के भीतर का मिश्रण बिस्तर पर उलटना चाहा, अजय के वीर्य के गाढ़ेपन और स्वाद से रुक गई. धीरे धीरे जीभ पर आगे पीछे घुमा घुमा कर भरपूर स्वाद लिया. आज से पहले ऐसा विशिष्ट स्वाद किसी खाद्य पदार्थ में नहीं आया था. संतुष्ट हो एक बार में ही पूरा का पूरा द्रव गले के नीचे उतार लिया. फ़िर उन्गलियां चेहरे पर फ़िरा कर बाकी बचे तरल को भी चटखारे ले लेकर मजे से खा गई.

थकान से चूर होकर दीप्ति बेसुध सो रही थी कि देर रात में या कहे की सवेरे की हल्कि रोशनी में बिस्तर पर किसी की कराहों से उसकी आंख खुली. आंखों ने अजय को शोभा की टंगों के बीच में धक्के मारते देखा. शोभा ने चादर मुट्ठी में भर रखी थी और नीचला होंठ दातों के बीच में दबा रखा था. "कुतिया, अभी तक जी नहीं भरा इस का?" अजय पुरी ताकत से शोभा को रौंद रहा था. बिना किसी दया भाव के. इसी बर्ताव के लायक है ये. सोचते हुये दीप्ति की आंखें फ़िर से बन्द होने लगी. गहन नींद में समाने से पहले उसके कानों में शोभा का याचना भरा स्वर सुनाई दिया.
"अजय,, बेटा बस कर. खत्म कर. प्लीईईईज. देख में फ़िर करवाऊंगी रात को..अब चल जल्दी से भर दे मुझे..जोर लगा". शायद उकसाने से अजय जल्दी झड़ जायेगा और वो भी उससे छूट कर थोड़ा सो पायेगी.
जब दीप्ति दुबारा उठी तो बाथरुम से किसी के नहाने की आवाज आ रही थी. अजय पास में ही सोया पड़ा था. बाहर सवेरे की रोशनी चमक रही थी. शायद छह बजे थे. अभी उसका पति या देवर नही जागे होंगे. लेकिन यहां अजय का कमरा भी बिखरा पड़ा था. चादर पर जगह जगह धब्बे थे और उसे बदलना जरुरी था. तभी याद आया कि आज तो उसके सास ससुर आने वाले है. घर की बड़ी बहू होने के नाते उसे तो सबसे पहले उठ कर नहाना-धोना है और उनके स्वागत की तैयारियां करनी है.
पुरी रात रंडियों की तरह चुदने के बाद चूत दुख रही थी. गोरे बदन पर जगह जगह काटने और चूसने के निशान बन गये थे और बालों में पता नहीं क्या लगा था. माथे का सिन्दूर भी बिखर गया था. जैसे तैसे उठ कर जमीन पर पड़ी नाईटी को उठा बदन पर डाला और कमरे से बाहर आ सीढीयों की तरफ़ बढ़ी.
और जादू की तरह शोभा पता नहीं कहां से निकल आई. पूरी तरह से भारतीय वेश भूषा में लिपटी खड़ी हाथों में पूजा की थाली थामे हुये थी.
"दीदी, मां बाबूजी आते होंगे. मैने सबकुछ बना लिया है. आप बस जल्दी से नहा लीजिये" कहकर शोभा झट से रसोई में घुस गई, आज दिन भर उसे सास ससुर की खातिरदारी में अपनी जेठानी का साथ देना था. रात भर भी साथ देती ही आई थी.
खैर, दिन के उजाले में सब कुछ बदल चुका था.

समाप्त.

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