मैं और मौसा मौसी compleet
Re: मैं और मौसा मौसी
मौसी ओंधी लेट गयीं. मैंने उनके मोटे मोटे चूतड़ों पर दो चार चपत लगायीं "वाह, क्या गांड है मौसी, डनलोपिलो के गद्दे हैं, अचरज नहीं कि मौसाजी बस आपकी गांड के दीवाने हैं"
"अरे खेल मत इनसे, जल्दी मार और छुट्टी कर. फ़िर चोद दे जरा ठीक से राधा को, मेरी खास नौकरानी है, उसके सुख का खयाल रखना मेरा फ़र्ज़ है." मौसी चूतड़ हिलाकर बोलीं.
मैंने लंड पेलते हुए पूछा "क्यों मौसी, आप नहीं चुदवायेंगी?"
"मैं तो रात को चुदवा लूंगी अनिल बेटे, इस रधिया की प्यास बुझा. और ज्यादा चपर चपर मत कर, देखती हूं कि कितना दम है तुझमें, बिना झड़े मेरी गांड मार कर दिखा जरा"
"लो मौसी, ये लो" कहकर मैं मौसी की गांड मारने लगा. राधा मस्ती से फ़नफ़ना रही थी, टांगें फ़ैलाकर मौसी के सामने बैठ गयी और मौसी का सिर अपनी जांघों में जकड़ लिया. खुद मुझे चूमने लगी.
मौसी की गांड लाजवाब थी. एकदम मोटी ताजी. और फ़िर मौसी अपनी गांड सिकोड़ सिकोड़ कर मेरे लंड को दुहने लगीं. मुझसे न रहा गया और मैं हचक हचक के मौसी की मारने लगा. दो मिनिट में मेरा लंड झड़ गया.
"लो ... झड़ गये भैया. अब मुझे कौन चोदेगा? मौसी ... देखो ना भैया ने क्या किया" राधा गुस्से में बोली.
मौसी हंस के बोली "चला था मेरी गांड मारने. क्यों रे अनिल?"
मैं हांफ़ते हुए बोला "माफ़ कर दो मौसी, आप जीतीं मैं हारा, आप जैसी गांड हमेशा नसीब नहीं होती इसलिये रहा नहीं गया"
"दिल छोटा न कर बेटे. अभी तो हफ़्ता भर है ना तू यहां? और दे दूंगी तेरे को बाद में. अब यहां आ और मेरी बुर चूस. मेरी रज चखेगा तो जल्द ही तेरा लंड खड़ा हो जायेगा. ओ रधिया, तू जरा अनिल भैया के लंड को मस्त कर"
kramashah.................
Re: मैं और मौसा मौसी
मैं और मौसा मौसी--7 gataank se aage........................
मैं लेटा मौसी की चूत चाट रहा था तब बाजू के कमरे से आवाजें आयी. "अब छोड़ दो ... मौसाजी .... बहुत हो गया ... गांड दुख रही है .... चूत भी कसमसा रही है ... गला दुख रहा है ... कितने अंदर तक लंड पेलते हो तुम लोग ... चलो छोड़ो अब ... मेरे बदन का चप्पा चप्पा पिस गया है ... " ये लीना की आवाज थी.
"अभी तो बस दो बार चुदी हो बहू. एक बार और चुदवा लो. चलो फ़र्श पर चलते हैं, वहां मजा आयेगा तेरे को, यहां खटिया पर बहुत हो गया, ओ रघू, वो दरी बिछा दे नीचे. ऐसे ... अब लीना को एक एक करके ठीक से चोदो." मौसाजी की आवाज आयी.
"भैयाजी, गांड ...." रघू की आवाज आयी.
"गांड कल फ़िर से मारेंगे, पर आज चोदो जरूर और घंटे भर. मैंने दो बार मारी है इसकी, बहुत मजा आया पर अब लंड खड़ा नहीं हो रहा है, मैं रात को फ़िर से चोद लूंगा बहू को, पर तुम दोनों अब फ़िर से चोदो इसको"
जल्दी ही फ़च फ़च की आवाज आने लगी. रघू बोला "भैयाजी, बड़ा मजा आता है जमीन पर, बहू रानी का मुलायम बदन एकदम मखमल की गद्दी जैसा है"
"इसीलिये तो बोला तुम लोगों को कि फ़र्श पर चोदो. फ़र्श पर जोरदार धक्के लगते हैं, चुदैल औरतों की कमर तोड़ चुदाई कर सकते हैं. हमारी बहू रानी की भी चोद चोद कर कमर टेढ़ी कर दो. कल मैं फ़र्श पर लिटा कर इसकी गांड मारूंगा, इसके बदन की गद्दी का लुत्फ़ उठाना है मुझको.
लीना कराह रही थी "अरे दुखता है रे ... मत चोदो .... बदन मसल डाला मेरा तुम लोगों ने .... तुमको तो मेरे बदन की गद्दी मिल गयी पर .... मेरी हड्डी पसली एक हो रही है"
"रज्जू उसका मुंह बंद कर, बहुत बोल रही है." मौसाजी की आवाज आयी. फ़िर शांति छा गयी, अब सिर्फ़ ’फ़च’ ’फ़च’ ’सप’ ’सप’ की आवाज आ रही थी.
लीना की होती चुदाई की कल्पना से मेरा लंड सिर उठाने लगा. जल्दी ही काफ़ी कड़ा हो गया. "चल राधा, चोद ले अब इसको. खुद ही चढ़ के चोद ले, ये चोदेगा तो फ़िर जल्दी से झड़ जायेगा" कहकर मुझे लिटा कर मौसी मेरे मुंह पर चूत जमा कर बैठ गयीं. राधा मुझपर चढ़ कर चोदने लगी.
एक घंटे बाद राधा और मौसी ने मुझे छोड़ा. पिछले घंटे में मुझे लिटा कर रखा था इसलिये लीना के साथ क्या हो रहा था, मुझे दिख नहीं रहा था. बस आवाजें सुन रहा था. चोदने की आवाज लगातार आ रही थी. लीना की आवाज बस बीच बीच में आती जब उसका मुंह वो लोग छोड़ते. वो बस कराहती और बोलती "बहुत हो गया .... अब छोड़ो ... तुम्हारे पैर पड़ती हूं ... मार डालोगे क्या .... चलो खेल खेल में मजाक बहुत हो गया ...." पर फ़िर उसका मुंह कोई बंद कर देता.
मैं झड़ा और दस मिनिट पड़ा रहा. फ़िर उठकर हम कपड़े पहनने लगे. तब मैंने बाजू के कमरे में देखा. लीना जमीन पर चुपचाप पड़ी थी. मौसाजी उसकी बुर से मुंह लगा कर चूस रहे थे, लगता था वहां काफ़ी माल था, रघू और रज्जू ने निकाला हुआ. लीना की बुर चुद चुद कर लाल हो गयी थी, पपोटे फ़ूल गये थे. रघू और रज्जू बारी बारी से उसकी गांड चूस रहे थे. लीना का बदन भी लाल गुलाबी हो गया था. खास कर मम्मे तो ऐसे हो गये थे जैसे टमाटर. पूरे गोरे अंग पर दबाने और मसलने के निशान पड़ गये थे. चूतड़ों ने भी मौसाजी के इतने धक्के झेले थे कि वे भी लाल हो गये थे.
जब मैं मौसी और राधा उस कमरे में गये तो रघू लीना को ब्रा पहना रहा था. लगता था ब्रा पहनाने में उसको मजा आ रहा था, वो बार बार लीना के मम्मे दबाने लगता. लीना आंखें बंद करके चुपचाप गुड़िया सी पड़ी थी.
"भैयाजी, बड़ी मस्त ब्रा है बहू की, साली क्या फ़िट बैठती है बहूरानी की चूंची पर" रघू बोला फ़िर मौसाजी से पूछा "भैयाजी, अब बंद करना है क्या सच में?"
मैं लेटा मौसी की चूत चाट रहा था तब बाजू के कमरे से आवाजें आयी. "अब छोड़ दो ... मौसाजी .... बहुत हो गया ... गांड दुख रही है .... चूत भी कसमसा रही है ... गला दुख रहा है ... कितने अंदर तक लंड पेलते हो तुम लोग ... चलो छोड़ो अब ... मेरे बदन का चप्पा चप्पा पिस गया है ... " ये लीना की आवाज थी.
"अभी तो बस दो बार चुदी हो बहू. एक बार और चुदवा लो. चलो फ़र्श पर चलते हैं, वहां मजा आयेगा तेरे को, यहां खटिया पर बहुत हो गया, ओ रघू, वो दरी बिछा दे नीचे. ऐसे ... अब लीना को एक एक करके ठीक से चोदो." मौसाजी की आवाज आयी.
"भैयाजी, गांड ...." रघू की आवाज आयी.
"गांड कल फ़िर से मारेंगे, पर आज चोदो जरूर और घंटे भर. मैंने दो बार मारी है इसकी, बहुत मजा आया पर अब लंड खड़ा नहीं हो रहा है, मैं रात को फ़िर से चोद लूंगा बहू को, पर तुम दोनों अब फ़िर से चोदो इसको"
जल्दी ही फ़च फ़च की आवाज आने लगी. रघू बोला "भैयाजी, बड़ा मजा आता है जमीन पर, बहू रानी का मुलायम बदन एकदम मखमल की गद्दी जैसा है"
"इसीलिये तो बोला तुम लोगों को कि फ़र्श पर चोदो. फ़र्श पर जोरदार धक्के लगते हैं, चुदैल औरतों की कमर तोड़ चुदाई कर सकते हैं. हमारी बहू रानी की भी चोद चोद कर कमर टेढ़ी कर दो. कल मैं फ़र्श पर लिटा कर इसकी गांड मारूंगा, इसके बदन की गद्दी का लुत्फ़ उठाना है मुझको.
लीना कराह रही थी "अरे दुखता है रे ... मत चोदो .... बदन मसल डाला मेरा तुम लोगों ने .... तुमको तो मेरे बदन की गद्दी मिल गयी पर .... मेरी हड्डी पसली एक हो रही है"
"रज्जू उसका मुंह बंद कर, बहुत बोल रही है." मौसाजी की आवाज आयी. फ़िर शांति छा गयी, अब सिर्फ़ ’फ़च’ ’फ़च’ ’सप’ ’सप’ की आवाज आ रही थी.
लीना की होती चुदाई की कल्पना से मेरा लंड सिर उठाने लगा. जल्दी ही काफ़ी कड़ा हो गया. "चल राधा, चोद ले अब इसको. खुद ही चढ़ के चोद ले, ये चोदेगा तो फ़िर जल्दी से झड़ जायेगा" कहकर मुझे लिटा कर मौसी मेरे मुंह पर चूत जमा कर बैठ गयीं. राधा मुझपर चढ़ कर चोदने लगी.
एक घंटे बाद राधा और मौसी ने मुझे छोड़ा. पिछले घंटे में मुझे लिटा कर रखा था इसलिये लीना के साथ क्या हो रहा था, मुझे दिख नहीं रहा था. बस आवाजें सुन रहा था. चोदने की आवाज लगातार आ रही थी. लीना की आवाज बस बीच बीच में आती जब उसका मुंह वो लोग छोड़ते. वो बस कराहती और बोलती "बहुत हो गया .... अब छोड़ो ... तुम्हारे पैर पड़ती हूं ... मार डालोगे क्या .... चलो खेल खेल में मजाक बहुत हो गया ...." पर फ़िर उसका मुंह कोई बंद कर देता.
मैं झड़ा और दस मिनिट पड़ा रहा. फ़िर उठकर हम कपड़े पहनने लगे. तब मैंने बाजू के कमरे में देखा. लीना जमीन पर चुपचाप पड़ी थी. मौसाजी उसकी बुर से मुंह लगा कर चूस रहे थे, लगता था वहां काफ़ी माल था, रघू और रज्जू ने निकाला हुआ. लीना की बुर चुद चुद कर लाल हो गयी थी, पपोटे फ़ूल गये थे. रघू और रज्जू बारी बारी से उसकी गांड चूस रहे थे. लीना का बदन भी लाल गुलाबी हो गया था. खास कर मम्मे तो ऐसे हो गये थे जैसे टमाटर. पूरे गोरे अंग पर दबाने और मसलने के निशान पड़ गये थे. चूतड़ों ने भी मौसाजी के इतने धक्के झेले थे कि वे भी लाल हो गये थे.
जब मैं मौसी और राधा उस कमरे में गये तो रघू लीना को ब्रा पहना रहा था. लगता था ब्रा पहनाने में उसको मजा आ रहा था, वो बार बार लीना के मम्मे दबाने लगता. लीना आंखें बंद करके चुपचाप गुड़िया सी पड़ी थी.
"भैयाजी, बड़ी मस्त ब्रा है बहू की, साली क्या फ़िट बैठती है बहूरानी की चूंची पर" रघू बोला फ़िर मौसाजी से पूछा "भैयाजी, अब बंद करना है क्या सच में?"
Re: मैं और मौसा मौसी
रज्जू जो पैंटी पहना रहा था, बार बार लीना की जांघों को चूम लेता "हां भैयाजी, एक घंटे आराम करते हैं, फ़िर और चोदेंगे लीना भाभी को. मन नहीं भरा, क्या जन्नत की परी है बहू रानी"
"चलो हटो अब, बहुत हो गया. बहू को इतना मसला कुचला, अब भी मन नहीं भरा तुम्हारा? चलो अब आराम करने दो उसको घर जा कर. चलो हटो, मैं साड़ी पहना देती हूं" मौसी ने सबको हटाया और साड़ी पहनाने लगीं. लीना अबतक आंखें बंद करके ऐसी पड़ी थी कि बेहोश हो, आंखें खोल कर किलकिला करके मेरे को देखा और आंख मार कर मुंह बना दिया कि लो, मौसी क्यों बीच में आ गयीं, मैं तो और मजा लेती.
जब हम घर को निकले तो मैं काफ़ी थक गया था. लंड और गोटियां दुख रही थीं. पर मन में मस्ती छाई हुई थी. रज्जू ने लीना को कंधे पर लिया हुआ था जैसे गेहूं की बोरी हो. उसकी आंखें बंद थीं. रघू और मौसाजी पीछे चल रहे थे.
"कचूमर निकाल दिया मेरी बहू का, क्यों रे बदमाशों?" मौसी बोलीं.
"अरे नहीं मालकिन, बहू रानी तो अब भी तैयार थी, हम लोगों के ही लंड अब नहीं खड़े होते" रज्जू बोला.
"पर वो तो चिल्ला रही थी कि छोड़ दो" मौसी बोली.
"अरे बड़ी बदमाश है तेरी बहू. जानबूझकर इनको उकसा रही थी. जरा देखो, हंस रही है चुपचाप" मौसाजी बोले. लीना के चेहरे पर मुस्कान थी. आंखें खोल कर मेरी ओर देखा और आंख मार दी.
’अरे तो इसको उठा कर क्यों चल रहे हो?" मौसी ने पूछा.
"चुदा चुदा कर थक गयी है लीना बिटिया. चल तो लेगी पर खुद ही बोली कि मुझे उठा कर ले चलो सो रज्जू ने उठा लिया. एकदम निछावर हो गया है बहू पर, लाड़ में उठा लिया"
"हां अनिल भैया, आप की लुगायी जैसी औरत नहीं देखी आज तक. क्या चुदवाती है. मैं तो अब भाभी का गुलाम हो गया, उनकी खूब सेवा करूंगा, जैसे चाहेंगीं, मैं चोदूंगा" रज्जू बोला.
"और मैं भी. भैया, अब मुझे उठाने दो भाभी को" रघू बोला. दोनों बारी बारी से लीना को उठा कर घर पे ले आये.
उस रात हमने आराम किया. सब काफ़ी थक गये थे. मौसी बोलीं "आज सुस्ता लो, कल से दिन भर चुदाई होगी. कोई पीछे नहीं हटेगा, अपनी अपनी चूतें और लंड का खयाल रखो और उनको मस्त रखो" मौसी बोलीं. "लीना बेटी, तू कल आराम कर, आज जरा ज्यादा ही मस्ती कर ली तूने"
"अरे नहीं मौसी, यहां आराम करने थोड़े आई हूं! और ये ऐसे नहीं छोड़ूंगी इन दोनों बदमाशों को" उसका इशारा रघू और रज्जू की ओर था. "और मौसाजी भी सस्ते छू जायेंगे. ये तीनों रोज दोपहर चार घंट मेरे लिये रिज़र्व हैं. इनको इतना चोदूंगी कि इन तीनों के लंड नुन्नी बन कर रह जायेंगे" लीना मस्ती में लरज कर बोली.
अगला हफ़्ता ऐसे बीत गया कि पता ही नहीं चला. सुबह हम देर से उठते थे. नहा धो कर खाना खाकर लीना मौसाजी के साथ खेत के घर में चली जाती थी जहां रघू और रज्जू उसकी राह देखते थे. मैं राधा और मौसी घर में रह जाते थे. दिन भर मस्ती चलती थी. दोनों लंड की ऐसी भूखी थीं कि बस बारी बारी से मुझसे चुदवातीं. बीच बीच में खूब खातिरदारी करतीं, हर दो घंटे में बदाम दूध देतीं.
लीना जब शाम को आती थी तो उसका चेहरा देखते बनता था. चेहरे पर एकदम शैतानी झलकती थी और एक सुकून सा रहता था कि क्या मजा आया. ऐसी दिखती थी जैसे मलाई खाकर बिल्ली दिखती है. उसकी हालत किसी छोटे बच्चे सी थी जिसे मनचाहे खिलौने मिल जायें तो खेल खेल कर थक जाये फ़िर भी खेलता रहता है. इतना चुदवाती थी लीना कि उससे चला भी नहीं जाता था. मैंने एक बार कहा भी कि रानी, जरा सम्हाल के, इस तरह से अपनी चूत और गांड की धज्जियां मत उड़वाओ तो मुझे टोक देती "तुम्हे क्यों परेशानी हो रही है मेरे सैंया जब मैं खुश हूं? परेशान मत हो, आराम करने को तो बहुत समय मिलेगा जब हम वापस जायेंगे. तब चूत और गांड फ़िर टाइट कर लूंगी दस दिन में. तब तक इन तीनों लंडों का मजा तो ले लूं. और वो रघू और रज्जू के लंड तो बेमिसाल हैं." रघू रज्जू और मौसाजी उसके आगे पीछे ऐसे घूमते जैसे उसके गुलाम हों और वो मलिका.
रात को सब इतने थक जाते कि सो जाते. पहली रात को मौसाजी के साथ मिलकर हमने जो मस्ती की थी उसकी याद मुझे आती थी. मौसी और राधा की बुर और गांड से मुझे बहुत सुख मिलता था पर कभी कभी मौसाजी की गांड की याद आती थी, कितना मजा आया था उस रात उनकी मारने में. क्या गोरी चिकनी गरमा गरम गांड थी मौसाजी की. मैं सोचता था कि जाने के पहले कम से कम एक बार तो मौसाजी की फिर से मारूंगा.