मैं और मौसा मौसी compleet
Re: मैं और मौसा मौसी
हफ़्ते भर ये चुदाई चली. जब हमें जाने को दो दिन बचे तो उस रात मौसी ने खुद ही रोक लगा दी. "चलो, बहुत हो गया, अब सब लोग आज और कल आराम करो."
लीना पैर पटककर बोली "मौसी, ऐसे मत करो, अब दो दिन में हम चले जायेंगे, तब तक और मजा कर लेने दो"
"बेटी, तेरी चूत तो हरदम प्यासी रहती है पर इन मर्दों को देखो, इनके अब जोर से खड़े भी नहीं होते. तूने तो इनको पूरा निचोड़ लिया है. इन्हें आराम कर लेने दो. इनके लंडों में ताकत आ जायेगी. परसों एक खास प्रोग्राम करेंगे, तुम्हारे जाने के पहले"
"ठीक है मौसी" लीना के दिमाग में बात घुस गयी, शायद सच में रघू और रज्जू के लंड अब झड़ झड़ कर मुरझाने को आ गये थे "इनको आराम करने दो, पर आप की और राधा की बुर तो अभी भी ताजी है. मैं आप के साथ खेलूंगी अब. आप दोनों के साथ ठीक से वक्त नहीं निकाला मैंने, जाने के पहले अब इनको मैं मन भर के चखना चाहती हूं"
"धीरज रख बहू, सब हो जायेगा. पर आज तू भी आराम कर" मौसी लीना का चुम्मा लेकर बोलीं.
उस दिन भर हम लोग बस सोये, और कुछ नहीं किया. रघू और रज्जू को भी मौसाजी ने छुट्टी दे दी. राधा बस खाना बनाने आयी और चली गयी.
दूसरे दिन सुबह मौसी ने लीना को बुलाया. लीना वापस आयी तो बहुत खुश थी.
मैंने पूछा. "खुश लग रही हो डार्लिंग. कोई खुशखबर? उपवास खतम हो गया है लगता है. मौसी ने बुलाया है क्या?"
लीना बोली "एक खुशखबर और एक बुरी खबर है. बुरी खबर ये कि उपवास आज दिन भर चलेगा."
मैंने कहा "अरे रे .... मेरा लंड अब फ़िर से मस्त टनटना रहा है. दोपहर को जरा मौज मस्ती करते. फ़िर खुशखबरी क्या है?"
"मौसी ने रात के खाने के बाद सबको उनके कमरे में बुलाया है. कपड़े उतार के. बड़ी मूड में हैं. कहती हैं कि उपवास के बाद आज दावत होगी रात को. आज मजा आयेगा देखना राजा."
kramashah.................
Re: मैं और मौसा मौसी
मैं और मौसा मौसी--8
gataank se aage........................
मैं और लीना रात को कपड़े उतार के जब मौसी के कमरे में गये तो देखा कि सब वहां जमा थे और पूरे नंगे थे. आज पलंग बाजू में कर दिया गया था और पूरे फ़र्श पर गद्दियां बिछी थीं. मौसी और राधा लिपट कर बैठी थीं. मौसाजी रज्जू और रघू के बीच बैठे थे और अपने दोनों हाथों में उनके लंड ले कर मुठिया रहे थे.
"ये तो पूरा जमघट लगा है मौसी. कोई खास बात है क्या?" मैंने पूछा.
"आज एक खास खेल होने वाला है. ट्रेन ट्रेन का" मौसी मुस्कराती हुई बोलीं.
"कैसा खेल मौसी? ट्रेन ट्रेन खेल कैसा होता है?" लीना ने पूछा.
"अरे ट्रेन में लेडीज़ और जेंट कंपार्टमेंट अलग अलग होते हैं ना. आज हम लोग भी अलग अलग रहेंगे. मर्द अलग और औरतें अलग. एक कंपार्टमेंट से दूसरे कंपार्टमेंट में जाना मना है आज"
"ये क्या मौसी? लंड अलग और चूत अलग? मुझे और लंड चाहिये" लीना पैर पटककर बोली
"मेरी चुदैल बहू रानी, तू जरूर हमारा नाम रोशन करेगी" मौसी ने लीना का हाथ पकड़कर कहा "अरी हफ़्ते भर तो लंड ही लंड लिये हैं तूने. और बाद में और ले लेना, फ़िर से जल्दी गांव आ जा, अनिल को छुट्टी न हो तो खुद अकेली आ जाना और इस बार महने भर रहना. तू कहेगी तो एक दो और मस्त लंड तेरे लिये जमा करके रखूंगी, रघू और रज्जू के एक दो चचेरे भाई हैं, बड़े मस्त जवान लौंडे हैं. आज ये खेल देख ले, तेरे मौसाजी का बहुत मन है ये खेलने का"
"पर मौसी, मुझको भी देखना है ना, अनिल कैसे ये वाला खेल खेलता है" लीना शोखी से बोली.
"अरी फ़िकर क्यों करती है, सब दिखेगा. तू मैं और राधा यहां इस तरफ़, लेडीज़ कंपार्टमेंट. और तेरे मौसाजी, रज्जू रघू और अनिल यहां दूसरी तरफ़, जेंट कंपार्टमेंट, दोनों कंपार्टमेंट यहीं इस कमरे में बनेंगे. तेरे मौसाजी तो हमेशा खेलते हैं. आज और मजा आयेगा, अनिल जो है. चल आ जा लीना बेटी" लीना का हाथ पकड़कर मौसी ने उसको पास बिठा लिया. राधा तो लीना के पीछे चिपटकर उसके मम्मे दबाने लगाने लगी थी.
"वहां से दिखेगा बेटी, फ़िकर मत कर. और अनिल को कुछ करने की जरूरत नहीं है, ये तीनों उसको सिखा देंगे"
"आओ अनिल. यहां बैठो" मौसाजी बोले. मैं उनके पास जाकर बैठने लगा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर अपनी गोद में बिठा लिया. "वहां नहीं यहां बैठो बेटे. हम तो कब से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, क्यों भाभी, खेल शुरू करें?"
"हां करो ना, जान पहचान बढ़ा लो. वैसे मैंने विमला बाई को भी बुलाया है. बड़े दिन हो गये उससे मिले. कल अचानक आ गयी तो मैंने कहा कि आज रात को आ जाओ, हमारी बहू से भी जानपहचान बढ़ा लो. बस आती होगी."
तभी बाहर से किसी औरत की आवाज आयी "मौसी, आप कहां हो?"
मौसी चिल्ला कर बोलीं. "हम यहां है मेरे कमरे में. तुम भी आ जाओ, और तैयार होकर आना विमला. खेल शुरू ही होने वाला है. बस तुम्हारा ही इंतजार था. मेरे कमरे में कपड़े निकाल के रख दे"
मैं मौसाजी की गोद में बैठ गया. उनका लंड मेरी पीठ से सटा था. "लो रघू और रज्जू, आखिर अनिल आ गया हमारे साथ. लो अब इसे ठीक से प्यार करो. तुम लोग कब से पीछे लगे थे मेरे कि अनिल भैया से ठीक से जान पहचान करा दो हमारी, अब देखें कैसी सेवा करते हो उसकी, इसकी बीवी को तो तुमने खुश कर दिया, अब इसकी खुशी पर ध्यान दो"
मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था. मैं बोला "अरे ऐसी कोई बात नहीं है मौसाजी, आप चाहो तो अभी भी लीना को इस कंपार्टमेंट में बुला लो"
gataank se aage........................
मैं और लीना रात को कपड़े उतार के जब मौसी के कमरे में गये तो देखा कि सब वहां जमा थे और पूरे नंगे थे. आज पलंग बाजू में कर दिया गया था और पूरे फ़र्श पर गद्दियां बिछी थीं. मौसी और राधा लिपट कर बैठी थीं. मौसाजी रज्जू और रघू के बीच बैठे थे और अपने दोनों हाथों में उनके लंड ले कर मुठिया रहे थे.
"ये तो पूरा जमघट लगा है मौसी. कोई खास बात है क्या?" मैंने पूछा.
"आज एक खास खेल होने वाला है. ट्रेन ट्रेन का" मौसी मुस्कराती हुई बोलीं.
"कैसा खेल मौसी? ट्रेन ट्रेन खेल कैसा होता है?" लीना ने पूछा.
"अरे ट्रेन में लेडीज़ और जेंट कंपार्टमेंट अलग अलग होते हैं ना. आज हम लोग भी अलग अलग रहेंगे. मर्द अलग और औरतें अलग. एक कंपार्टमेंट से दूसरे कंपार्टमेंट में जाना मना है आज"
"ये क्या मौसी? लंड अलग और चूत अलग? मुझे और लंड चाहिये" लीना पैर पटककर बोली
"मेरी चुदैल बहू रानी, तू जरूर हमारा नाम रोशन करेगी" मौसी ने लीना का हाथ पकड़कर कहा "अरी हफ़्ते भर तो लंड ही लंड लिये हैं तूने. और बाद में और ले लेना, फ़िर से जल्दी गांव आ जा, अनिल को छुट्टी न हो तो खुद अकेली आ जाना और इस बार महने भर रहना. तू कहेगी तो एक दो और मस्त लंड तेरे लिये जमा करके रखूंगी, रघू और रज्जू के एक दो चचेरे भाई हैं, बड़े मस्त जवान लौंडे हैं. आज ये खेल देख ले, तेरे मौसाजी का बहुत मन है ये खेलने का"
"पर मौसी, मुझको भी देखना है ना, अनिल कैसे ये वाला खेल खेलता है" लीना शोखी से बोली.
"अरी फ़िकर क्यों करती है, सब दिखेगा. तू मैं और राधा यहां इस तरफ़, लेडीज़ कंपार्टमेंट. और तेरे मौसाजी, रज्जू रघू और अनिल यहां दूसरी तरफ़, जेंट कंपार्टमेंट, दोनों कंपार्टमेंट यहीं इस कमरे में बनेंगे. तेरे मौसाजी तो हमेशा खेलते हैं. आज और मजा आयेगा, अनिल जो है. चल आ जा लीना बेटी" लीना का हाथ पकड़कर मौसी ने उसको पास बिठा लिया. राधा तो लीना के पीछे चिपटकर उसके मम्मे दबाने लगाने लगी थी.
"वहां से दिखेगा बेटी, फ़िकर मत कर. और अनिल को कुछ करने की जरूरत नहीं है, ये तीनों उसको सिखा देंगे"
"आओ अनिल. यहां बैठो" मौसाजी बोले. मैं उनके पास जाकर बैठने लगा तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़कर अपनी गोद में बिठा लिया. "वहां नहीं यहां बैठो बेटे. हम तो कब से तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, क्यों भाभी, खेल शुरू करें?"
"हां करो ना, जान पहचान बढ़ा लो. वैसे मैंने विमला बाई को भी बुलाया है. बड़े दिन हो गये उससे मिले. कल अचानक आ गयी तो मैंने कहा कि आज रात को आ जाओ, हमारी बहू से भी जानपहचान बढ़ा लो. बस आती होगी."
तभी बाहर से किसी औरत की आवाज आयी "मौसी, आप कहां हो?"
मौसी चिल्ला कर बोलीं. "हम यहां है मेरे कमरे में. तुम भी आ जाओ, और तैयार होकर आना विमला. खेल शुरू ही होने वाला है. बस तुम्हारा ही इंतजार था. मेरे कमरे में कपड़े निकाल के रख दे"
मैं मौसाजी की गोद में बैठ गया. उनका लंड मेरी पीठ से सटा था. "लो रघू और रज्जू, आखिर अनिल आ गया हमारे साथ. लो अब इसे ठीक से प्यार करो. तुम लोग कब से पीछे लगे थे मेरे कि अनिल भैया से ठीक से जान पहचान करा दो हमारी, अब देखें कैसी सेवा करते हो उसकी, इसकी बीवी को तो तुमने खुश कर दिया, अब इसकी खुशी पर ध्यान दो"
मुझे थोड़ा अजीब लग रहा था. मैं बोला "अरे ऐसी कोई बात नहीं है मौसाजी, आप चाहो तो अभी भी लीना को इस कंपार्टमेंट में बुला लो"
Re: मैं और मौसा मौसी
"भाभी को तो हम फ़िर से अगली बार ले ही लेंगे अनिल भैया, अभी तुम तो आओ ऐसे" रज्जू बोला.
"क्या गोरे चिट्टे हैं अनिल भैया. बड़े मस्त दिखते हैं" रघू बोला और मेरे सामने नीचे बैठ गया. मेरा लंड हाथ में लेकर बोला "और ये लंड तो देख रज्जू, एकदम रसीला गन्ना है" फ़िर उसको चूमने और चाटने लगा.
मौसाजी मेरे निपल मसलते हुए मेरी गर्दन प्यार से चूम रहे थे. रज्जू मेरी जांघों पर हाथ फ़िरा रहा था "अनिल भैया का बदन तो खोबा है खोबा भैयाजी. और इनके होंठ कितने खूबसूरत हैं! बिलकुल लीना बहूरानी जैसे ही हैं. चुम्मा लेने को मन करता है भैयाजी"
मौसाजी पीछे से मेरे बालों में सिर छुपा कर मेरी गर्दन को चूमते हुए बोले "तो ले ले ना, अनिल क्या मना कर रहा है"
रज्जू ने तुरंत मेरे होंठों पर होंठ रख दिये और मेरे पेट और जांघों को सहलाने लगा. उसका हट्टा कट्टा बदन मेरे बदन से लगा हुआ था. मैं चार पांच मिनिट बस बैठा रहा, सोचा कर लेने दो इन लोगों को उनके मन की. पर फ़िर मन में मस्ती छाने लगी. सामने मौसी और राधा जैसे लीना को पकड़कर आगे पीछे से लगी हुई थीं, देख देख कर और मस्ती चढ़ रही थी. मैंने रज्जूका लंड हाथ में ले लिया और अपनी जीभ उसके मुंह में डाल दी. रज्जू उसको चूसने लगा. उसका लंड मेरी हथेली में थिरक रहा था.
उधर रघू अब मेरा लंड मुंह में लिये था. बड़े प्यार से सुपाड़ा मुंह में लेकर उसको लड्डू जैसे गपागप चूस रहा था. रज्जू ने चुम्मा तोड़ा और मौसाजी को बोला. "भैयाजी, अनिल भैया को नीचे सुला दो तो जरा हम ठीक से उनके बदन को देख लें"
मौसाजी ने मुझे लिटा दिया और तीनों मुझसे लिपट गये. कोई मेरी जांघों को चूमता तो कोई लंड मुंह में लेता. कोई मेरे होंठ चूमता तो कोई मेरे चूतड़ सहलाने लगता. जब किसीने मेरे चूतड़ फ़ैलाकर मेरा गुदा चूसना शुरू कर दिया तो मैं मस्ती से झूम उठा.
"मां कसम क्या गांड है अनिल भैया की. एकदम माल है" मेरे पीछे से रज्जू की आवाज आयी. फ़िर उसने मुंह मेरी गांड से लगा दिया.
"मैंने बोला था ना कि कल तुझे एक मस्त गांड दूंगा. ले हो गयी तसल्ली" मौसाजी मेरे मुंह पर अपना लंड रगड़ते हुए बोले.
"अभी कहां भैयाजी, तसल्ली तो तब मिलेगी जब मैं इस खूबसूरत गांड में लंड डालकर चोदूंगा." रज्जू बोला.
"हां हां चोद लेना, पर बाद में. पहले मैं खेलूंगा. याने तुम लोगों से खिलवाऊंगा. आज बड़े दिन बाद तीन लंड एक साथ मिले हैं. आज मैं मजा करूंगा, तीनों लंड एक साथ लूंगा. अनिल बेटे, तेरे को कोई परेशानी तो नहीं है?" मैं कुछ बोल नहीं पाया क्योंकि मौसाजी का लंड मेरे मुंह में था. उधर एक लंबी सी जीभ मेरी गांड में घुस कर मुझे गुदगुदी कर रही थी.
मौसी बोलीं "अरे नहीं, अनिल को क्या परेशानी होगी. अनिल बेटे, जब से तू आया है, तेरे मौसाजी आस लगाये बैठे हैं. एक साथ तीन लंड लेना चाहते हैं. पहले ही कहने वाले थे पर बहू को देखकर मुंह में पानी आ गया, बोले, पहले तीन चार दिन बहू के बदन से खेलूंगा, उसको खुश करूंगा और फ़िर खुद की प्यास बुझाऊंगा. आज इनको खुश कर दो बेटे. सुनते हो रघू और रज्जू. आज पहले भैयाजी की कस के सेवा करो और फ़िर बाद में अनिल की. अनिल यहां से प्यासा नहीं जाना चाहिये. चूतें तो बहुत मिलती हैं उसको, उसकी खुद की बीवी इतनी मतवाली है पर ऐसे तीन तीन लंड उसने कभी नहीं लिये होंगे"
तभी दरवाजा खुला और एक औरत अंदर आयी. वह भी एकदम नंगी थी सिर्फ़ ब्रा पहने हुए थी. उमर पैंतीस के करीब होगी. गले में सोने की बड़ी माला थी, कान में झूमर और कलाइयों पर चूड़ियां. बड़ी बिंदी लगाये हुए थी, मांग में सिंदूर भरा था. ब्रा में कसी चूंचियां मोटी मोटी थीं, और बदन अच्छा खाया पिया हुआ था. पेट के नीचे घने बाल थे.
"आओ विमला, बड़ी देर लगा दी, कब से राह देख रहे थे तुम्हारी. और इस बार बहुत दिन बाद गांव आयी हो, छह महने से ज्यादा हो गये."
"देर हो गयी इसीलिये तो कपड़े उतार कर ही आयी मौसी. मेरा मतलब है बुर खोल कर आयी हूं जिसको प्यास लगी हो वो चूस ले" विमला बाई बोलीं.
मौसाजी बोले "बुर खुली है बड़ी अच्छी बात है विमला बाई पर फ़िर मम्मे क्यों नहीं खोले?"
मौसी झल्ला कर बोलीं "अब तुम क्यों औरतों के बीच बोल रहे हो? आज तुम बस लंडों की सोचो. विमला के दूध आता है सो ब्रा बांध के आयी है कि छलक न जाये, मैंने ही कहा था कि आकर हमारे यहां जो खूबसूरत मेहमान आये हैं उनको चखा जाना"