चेतावनी ........... ये कहानी समाज के नियमो के खिलाफ है क्योंकि हमारा समाज मा बेटे और भाई बहन और बाप बेटी के रिश्ते को सबसे पवित्र रिश्ता मानता है अतः जिन भाइयो को इन रिश्तो की कहानियाँ पढ़ने से अरुचि होती हो वह ये कहानी ना पढ़े क्योंकि ये कहानी एक पारवारिक सेक्स की कहानी है
ट्यूशन का मजा-1
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लेखक- अंजान
मेरा नाम अनिल है. मेरी दीदी लीना मुझसे एक साल बड़ी है. यह तब की कहानी है जब हम एच. एस. सी. के पहले साल में याने ग्यारहवीं में थे. मैं अठारह साल का था. कायदे से तब तक हमें बारहवीं पास कर लेनी थी, और दीदी मुझसे आगे की क्लास में याने कॉलेज में होना चाहिये थी. पर हम दोनों की पढ़ाई लेट शुरू हुई थी, वहां हमारे जरा से छोटे शहर में, जो करीब करीब एक बड़े गांव सा ही था, किसी को हमें स्कूल में डालने की जल्दी नहीं थी और इसलिये हम दोनों को एक ही क्लास में एक साथ भरती कराया गया था.
लीना असल में मेरी एक दूर की मौसी की बेटी है, इसलिये रिश्ते में मेरी मौसेरी बहन सी है. बचपन से रहती हमारे यहां ही थी क्योंकि मौसी जिस गांव में रहती थी वहां स्कूल तो नहीं के बराबर था. मैं उसे दीदी कहता था. आठवीं पास करने के बाद पढ़ाई के लिये हमें शहर में मेरी नानी के यहां भेज दिया गया. नानी वहां उस वक्त अकेली थी क्योंकि नानाजी की मृत्यु हो चुकी थी और नानी का बेटा, याने मेरा मामा अपने परिवार के साथ कुछ साल को दुबाई चला गया था.
दसवीं पास करने के बाद हम दोनों उसी स्कूल के जूनियर कॉलेज में पढ़ने लगे. वहां एक पति पत्नी पढ़ाते थे, चौधरी सर और मैडम. वैसे वे स्कूल में टीचर थे पर साथ साथ कॉलेज में भी लेक्चर लेते थे. वे ट्यूशन लेते थे पर गिने चुने स्टूडेंट्स की. वे पढ़ाते अच्छा थे और उनकी पर्सनालिटी भी एकदम मस्त थी, इसलिये कॉलेज में बड़े पॉपुलर थे.
एक रिश्तेदार से उनके बारे में सुनकर उनकी ट्यूशन हमें नानी ने लगा दी थी. बोली कि एच. एस. सी. के रिज़ल्ट पर आगे का पूरा कैरियर निर्भर करता है और तुम दोनों पढ़ने में जरा कच्चे हो तो अब दो साल मैडम और सर से पढ़ो. हमने बस दिखाने को एक दो बार ना नुकुर की और फ़िर मान गये, सर और मैडम की जोड़ी बड़ी खूबसूरत थी. सर एकदम गोरे और ऊंचे पूरे थे. मैडम मझले कद की थीं और बड़ी नाजुक और खूबसूरत थीं. हमारी उमर ही ऐसी थी कि मैं और दीदी दोनों मन ही मन उन्हें चाहते थे.
पहले ट्यूशन लेने में वे आनाकानी कर रहे थे. मैडम नानी से बोलीं "हम बस स्कूल के बच्चों की ट्यूशन लेते हैं. असल में हम जरा सख्त हैं, डिसिप्लिन रखते हैं, छोटे बच्चे तो चुपचाप डांट डपट सह लेते हैं, ये दोनों अब बड़े हैं तो इन्हें शायद ये पसंद न आये. क्योंकि वही सख्ती हम सब स्टूडेंट्स के साथ बरतेंगे भले वे स्कूल के हों या कॉलेज के."
हम दोनों का दिल बैठ गया क्योंकि हम दोनों उस सुंदर पति पत्नी के जोड़े से इतने इम्प्रेस हो गये थे कि किसी भी हालत में उनकी ट्यूशन लगाना चाहते थे. नानी ने भी उनसे मिन्नत की, बोलीं कि कोई बात नहीं, आप को जिस तरीके से पढ़ाना हो, वैसे पढ़ाइये, इन्हें पीट भी दिया कीजिये अगर जरूरत हो"
नानी ने हमारी ओर देखा. मैं बोला "मैडम, प्लीज़ ... हम कोई बदमाशी नहीं करेंगे ... आप सजा देंगी तो वो भी सह लेंगे"
सर बोले "पर ये लीना, इतनी बड़ी है अब ..."
लीना भी धीरे धीरे बोली "नहीं सर, हम आप जैसे पढ़ाएंगे, पढ़ लेंगे"
आखिर सर और मैडम मान गये, हमारी खुशी का ठिकाना न रहा. बस अगले हफ़्ते से हमारी ट्यूशन चालू हो गयी.
पढ़ने के लिये हम उनके यहां घर में जाते थे, जो पास ही था, बस बीस मिनिट चलने के अंतर पर. धीरे धीरे हमें समझ में आया कि सर और मैडम कितने सख्त थे. हम जूनियर कॉलेज में हों या न हों, सर और मैडम को फ़रक नहीं पड़ता था. वे हमसे वैसे ही पेश आते थे जैसे स्कूल के बच्चों के साथ. मैं मझले कद का था और लीना दीदी भी दुबली पतली थी. बालिग होने के बावजूद हम दोनों दिखने में जरा छोटे ही लगते थे इसलिये सर और मैडम हमें बच्चे समझ कर ही पढ़ाते और ’बच्चों’ कहकर बुलाते थे. कभी कभी कान पकड़कर पीठ पर एकाध घूंसा भी लगा देते थे पर हम बुरा नहीं मानते थे, क्योंकि उस जमाने में टीचरों का स्टूडेंट पर हाथ उठाना आम बात थी, कोई बुरा नहीं मानता था. और सर और मैडम दोनों इतने खूबसूरत थे कि भले उनकी पिटाई या डांट का डर लगता हो फ़िर भी उनके घर जाने को हम हमेशा उत्सुक रहते थे.
लीना और मैं, हम दोनों बहुत करीब थे, सगे भाई बहन जैसे इसलिये मुझे दीदी के साथ जरा भी झिझक नहीं होती थी. जवानी चढ़ने के साथ लीना दीदी भी मुझे बहुत अच्छी लगती थी. उसे देखकर अब उससे चिपकने का मन होता था. मैडम तो पहले से ही मुझे बहुत अच्छी लगती थीं. नयी नयी जवानी थी इसलिये रात को उन दोनों के बारे में सोचते हुए लंड खड़ा हो जाता था. अब मैं दीदी से भी छेड़ छाड करता था. जब उसका ध्यान नहीं होता था तब उसे अचानक हौले से किस करता और कभी मम्मे भी दबा देता. दीदी कभी कभी फ़टकार देती थी पर बहुत करके कुछ नहीं बोलती और मेरी हरकत नजरंदाज कर देती, शायद उसे भी अच्छा लगता था. एक दो बार रात को ठंड ज्यादा होने के बहाने से उसकी रजाई में घुसकर मैंने दीदी से चिपटने की भी कोशिश की पर दीदी इतने आगे जाने को तैयार नहीं थी, मुझे डांट कर भगा देती थी. कभी तमाचा भी जड़ देती.
पर वैसे लीना दीदी चालू थी, उसके प्रति मेरा तीव्र आकर्षण उसे अच्छा लगता था, इसलिये जहां वो मुझे हाथ भर दूर अलग रखती थी, वहीं जान बूझकर रिझाती भी थी. अन्दर कुरसी में पढ़ने बैठती तो एक टांग दूसरी पर रख लेती जिससे उसकी स्कर्ट ऊपर चढ़ जाती और उसके दुबले पतले चिकने पैर मुझपर कयामत सी ढा देते. अपनी सफ़ेद रंग की रबर की स्लीपर उंगली पर नचाती रहती. कभी जान बूझकर सबसे तंग पुराने टॉप घर में पहनती जिससे उसके टॉप में से उसके जरा जरा से पर एकदम सख्त उरोज उभरकर मुझे अपनी छटा दिखाते.
ट्यूशन का मजा compleet
Re: ट्यूशन का मजा
एक दो बार मैंने उसकी ट्रेनिंग ब्रा और पैंटी उसकी अलमारी से चुरा कर उसमें मुठ्ठ मारी. वैसे बाद में धो कर रख दी पर उसे पता चल गया, उसने उस दिन मुझे जांघ में अपने बड़े नाखूनों से इतनी जोर से चूंटी काटी कि मैं बिलबिला उठा. चूंटी काटते वक्त मेरी ओर देख रही थी मानों कह रही हो कि ये तो बस जांघ में काटी है, ज्यादा करेगा तो कहीं भी काट सकती हूं. उसके बाद ऐसा करने की मेरी हिम्मत नहीं हुई. पर लगता है कि बाद में दीदी को मुझपर तरस आ गया. एक दिन मुझे बोली कि अनिल, इस प्लास्टिक के बैग में मैंने अपने पुराने कपड़े रखे हैं, वो नीचे जाकर नानी ने जो झोला बनाया है बुहारन को कपड़े देने के लिये उसमें डाल दे, अपने भी पुराने कपड़े ले जा.
मैंने जाते जाते उस बैग में देखा, दीदी के कपड़े और मैं उनमें हाथ ना डालूं! दीदी की सलवार कमीज़ के नीचे एक पैंटी और ब्रा भी थी. पुरानी नहीं लग रही थी, बल्कि वही वाली थी जिसमें मैंने मुठ्ठ मारी थी. मैंने चुपचाप उसे निकालकर अपनी अलमारी में छुपा लिया. बाद में लीना दीदी ने पूछा कि दे आया कपड़े? मैंने हां कहा और नजर चुरा ली. फ़िर कनखियों से देखा तो दीदी मन ही मन मुस्करा रही थी. बाद में उस पैंटी और ब्रा में मैने इतनी मुठ्ठ मारी कि हिसाब नहीं. हस्तमैथुन करता था और दीदी को दुआ देता था.
कहने का तात्पर्य ये कि मुझमें और दीदी में आपसी आकर्षण फटाफट बढ़ रहा था, पर अभी सीमा को लांघा नहीं था. और जैसा आकर्षण मुझे लीना दीदी की ओर लगता था, और शायद उसे थोड़ा बहुत मेरी ओर लगता हो, उससे ज्यादा हम दोनों को सर और मैडम की तरफ़ लगता. पहले हम इसके बारे में बात नहीं करते थे पर एक दिन आखिर हिम्मत करके मैंने दीदी से कहा "दीदी, मैडम कितनी सुंदर हैं ना? फ़िल्म में हीरोइन बनने लायक हैं" तो दीदी बोली "हां मैडम बहुत खूबसूरत हैं अनिल. पर ऐसा क्यों पूछ रहा है? क्या इरादा है तेरा?"
"कुछ नहीं दीदी. मैं कहां कुछ करता हूं? बस देखता ही तो हूं"
"पर कैसे देखता है मुझे मालूम है. अब कोई बदमाशी नहीं करना नहीं तो सर मारेंगे"
"तुझे भी तो सर अच्छे लगते हैं दीदी, झूट मत बोल. कैसे देख रही थी कल उनको जब वे अंदर के कमरे में शर्ट बदल रहे थे! दरवाजे में से मुड़ मुड़ कर देख रही थी अंदर, अच्छा हुआ मैडम तब हमारी नोटबुक जांच रही थीं और उन्होंने देखा नहीं, नहीं तो तेरी तो शामत आ ही गई थी"
दीदी झेंप गयी फ़िर बोली "और तू कैसे घूरता है मैडम को. कल उनका पल्लू गिरा था तो कैसे टक लगा कर देख रहा था उनकी छाती को. तुझे अकल नहीं है क्या? उन्होंने देख लिया तो?"
"वैसे पेयर अच्छा है" मैंने कहा.
दीदी बोली "कौन से पेयर की बात कर रहा है?"
"दीदी, सर और मैडम का पेयर! तुमको क्या लगा? अच्छा दीदी, ये बात है, तुम उस पेयर की बात कर रही थीं जो मैडम की छाती पर है! अब बदमाशी की बात कौन कर रहा है दीदी?"
दीदी मुंह छुपा कर हंसने लगी. वो भी इन बातों में कोई कम नहीं है.
"दीदी, मैडम को बोल कर देखें कि वे हमें बहुत अच्छी लगती हैं? शायद कुछ जुगाड़ हो जाये, एक दो प्यार के चुम्मे ही मिल जायें. मुझे लगता है कि उनको भी हम अच्छे लगते हैं. कल नहीं कैसे चूम लिया था हम दोनों के गाल को उन्होंने, जब टेस्ट में अच्छे मार्क मिले थे?"
"चल हट शरारती कहीं का. कुछ मत कर नहीं तो मार पड़ेगी फ़ालतू में. वैसे तो आज सर ने भी मेरे बाल सहला दिये थे और मेरी पीठ पर चपत मार के मुझे शाबाशी दी थी जब मैंने वो सवाल ठीक से सॉल्व किया था." दीदी बोली. वैसे उसे भी सर और मैडम बहुत अच्छे लगते थे ये मुझे मालूम था. पिछली बार वह चुपचाप उनके एल्बम में से उन दोनों का एक फ़ोटो निकाल लाई थी और अपने तकिये के नीचे रखती थी.
हमारी ये बात हुई उस रात हम दोनों को नींद देर से आयी. मैंने तो मजा ले लेकर मैडम को याद करके मुठ्ठ मारी. बाद में मुझे महसूस हुआ कि दीदी भी सोई नहीं थी, अंधेरे में भले दिखता न हो पर वो चादर के नीचे काफ़ी इधर उधर करवट बदल रही थी, बाद में मुझे एक दो सिसकियां भी सुनाई दीं, मुझे मजा आ गया, दीदी क्या कर रही थी ये साफ़ था.
इस बात के दो तीन दिन बाद हम जब एक दिन पढ़ने पहुंचे तो चौधरी सर बाहर गये थे. मैडम अकेली थीं. आज वे बहुत खूबसूरत लग रही थीं. उन्होंने लो कट स्लीवलेस ब्लाउज़ पहन रखा था और साड़ी भी बड़ी अच्छी थी, हल्के नीले रंग की. पढ़ाते समय उनका पल्लू गिरा तो उन्होंने उसे ठीक भी नहीं किया, हमें एक नया सवाल कराने में वे इतनी व्यस्त थीं. ब्लाउज़ में से उनके स्तनों का ऊपरी हिस्सा दिख रहा था. मैं बार बार नजर बचाकर देख रहा था, एक बार दीदी की ओर देखा तो उसकी निगाह भी वहीं लगी थी.
बाद में मैडम को ध्यान आया तो उन्होंने पल्लू ठीक किया पर एक ही मिनिट में वो फिर से गिर गया. इस बार मैडम ने नीचे देखा पर उसे वैसा ही रहने ही दिया. उसके बाद मैडम हमें कनखियों से देखतीं और अपनी ओर घूरता देख कर मुस्करा देती थीं. मेरा लंड खड़ा होने लगा. दीदी समझ गयी, मुझे कोहनी से मार कर सावधान किया कि ऐसा वैसा मत कर.
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उसके बाद मैडम ने खुद अपनी छाती सहलाना शुरू किया जैसे उन्हें थोड़ी तकलीफ़ हो रही हो. छाती के बीच हाथ रखकर मलतीं और कभी अपने स्तनों के ऊपरी भाग को सहला लेतीं. अब मैं और दीदी दोनों उनके मतवाले उरोजों की ओर देखने में खो से गये थे, यहां तक कि मैडम को मालूम है कि हम घूर रहे हैं, यह पता होने पर भी हमारी निगाहें वहां लगी हुई थीं. और बुरा मानना तो दूर, मैडम भी पल्लू गिरा गिरा के झुक झुक कर हमें अपने सौंदर्य के दर्शन करा रही थीं.
पांच मिनिट बाद मैडम ने अचानक एक हल्की सी कराह भरी और जोर से छाती सहलाने लगीं.
दीदी ने पूछा "क्या हुआ मैडम?"
"अरे जरा दर्द है, कल शाम से ऐसा ही दुख रहा है. कल हम दोनों मिल कर जरा पलंग उठा कर इधर का उधर कर रहे थे तब शायद छाती के आस पास लचक सी आ गयी है. सर बोले कि आते वक्त दवाई ले आयेंगे"
दीदी ने मेरी ओर देखा. मैडम बोलीं "मालिश करने से आराम मिलता है पर मुझे खुद की मालिश करना नहीं जमता ठीक से. अब सर आयेंगे तब ..."
मैंने दीदी को कोहनी मारी कि चांस है. दीदी समझ गयी. पर मुझे आंखें दिखा कर चुप रहने को बोली. उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि खुद मैडम को कुछ कहे.
मैडम ने थोड़ा और पढ़ाया, फ़िर उठकर पलंग पर लेट गयीं.
लीना बोली "मैडम, आप की तबियत ठीक नहीं है, हम जाते हैं, कल आ जायेंगे, आप आराम कर लें"
मैडम बोलीं "अरे नहीं, अभी ठीक हो जायेगा. लीना, जरा मालिश कर दे तू ही. जरा आराम मिले तो फ़िर ठीक हो जाऊंगी. सर को आने में देर है, और अभी तो तुम लोगों के दो लेसन भी लेना है"
लीना दीदी ने मेरी ओर देखा. मैंने उसे आंख मार दी कि कर ना अगर मैडम कह रही हैं. दीदी शरमाते हुए उठी. बोली "मैडम, तेल ले आऊं क्या गरम कर के?"
"अरे नहीं, ऐसे ही कर दे. और अनिल, तुझे बुरा तो नहीं लगेगा अगर मैं कहूं कि मेरे पैर दबा दे. आज बदन टूट सा रहा है, कल जरा ज्यादा ही काम हो गया, इन्हें भी अच्छी पड़ी थी घर का फ़र्निचर इधर उधर करने की" वे अंगड़ाई लेकर बोलीं.
मैं झट उठ कर खड़ा हो गया "हां मैडम, कर दूंगा, बुरा क्यों मानूंगा, आप तो मेरी टीचर हैं, आप की सेवा करना तो मेरा फ़र्ज़ है"
मैं साड़ी के ऊपर मैडम के पैर दबाने लगा. क्या मुलायम गुदाज टांगें थीं. लीना उनकी छाती के बीच हाथ रखकर मालिश करने लगी.
मैडम आंखें बंद करके लेट गयीं, दो मिनिट बाद बोलीं "अरे यहां नहीं, दोनों तरफ़ कर, जहां दर्द है वहां मालिश करेगी कि और कहीं करेगी!" कहके मैडम ने उसके हाथ अपने मम्मों पर रख लिये. दीदी शरमाते हुए उनकी ब्लाउज़ के ऊपर से उनकी छाती की मालिश करने लगी. मैंने दीदी को आंख मारी कि दीदी मैं कहता था ना कि मैडम को बोलेंगे तो कुछ चांस मिलेगा. दीदी ने मुझे चुप रहने का इशारा किया. उसका चेहरा लाल हो गया था, साफ़ थाकि उसे इस तरह मैडम की मालिश करना अच्छा लग रहा था.
"ऐसा कर, मैं बटन खोल देती हूं. तुझे ठीक से मालिश करते बनेगी. और अनिल, तू साड़ी ऊपर सरका ले, ठीक से पैर दबा और जरा ऊपर भी कर, मेरी जांघों पर दबा, वहां भी दुखता है"
मैडम ने बटन खोले. सफ़ेद लेस वाली ब्रा में बंधे उनके खूबसूरत सुडौल स्तन दिखने लगे. दीदी ने उन्हें पकड़ा और सहलाने लगी. मैडम ने आंखें बंद कर लीं. कुछ देर बाद लीना दीदी के हाथ पकड़कर अपने सीने पर दबाये और बोलीं "अरी सहला मत ऐसे धीरे धीरे, उससे कुछ नहीं होगा, दबा जरा .... हां ... अब अच्छा लग रहा है, लीना .... और जोर से दबा"
मैंने साड़ी ऊपर कर के मैडम की गोरी गोरी जांघों की मालिश करनी शुरू कर दी. मेरा लंड खड़ा हो गया था. लीना दीदी अब जोर जोर से मैडम के मम्मों को दबा रही थी. उसकी सांसें भी थोड़ी तेज चलने लगी थीं. मेरे हाथ बार बार मैडम की पैंटी पर लग रहे थे. मैडम बीच बीच में इधर उधर हिलतीं और पैर ऊपर नीचे करतीं, इस हिलने डुलने से उनकी साड़ी और ऊपर हो गयी.
मुझसे न रहा गया. मैंने चुपचाप मैडम की पैंटी थोड़ी सी बाजू में सरका दी. दीदी देख रही थी, पर कुछ नहीं बोली. अब वो भी मस्ती में थी. मैडम के मम्मे कस के मसल रही थी. मैडम को जरूर पता चल गया होगा कि मैंने उनकी पैंटी सरका दी है. पर वे कुछ न बोलीं. बस आंखें बंद करके मालिश का मजा ले रही थीं, बीच में लीना के हाथ पकड़ लेतीं और कहतीं ’अं ... अं ... अब अच्छा लग रहा है जरा ..."
मैंने मौका देख कर साड़ी उठाकर उसके नीचे झांक लिया, सरकायी हुई पैंटी में से मैडम की गोरी गोरी फ़ूली बुर की एक झलक मुझे दिख गयी.
क्रमशः ..................................