रीटा की तडपती जवानी compleet
Re: रीटा की तडपती जवानी
बहादुर कमरे मे घुसा तो पारो ने लपक के दरवाजा बंद कर दिया दरवाजे से पीठ चिपका कर खडी पारो ठरक से हाँफतीं सी बहादुर के पायजामे के उभार को ललचाई नजरो से देख रही थी। पारो का पल्लू सीने से सरक गया और पारो की दिलकश चालीस डी छातीयो ने पारो की चुस्त अंगीयाँ को चौद के रखा हुआ था। चुदास मस्ती मे पारो की आँखो मे वासना के शरारे बरस रही थी और रह रह कर पारो अदा से अपने नीचे के रसीले होंटों को काट रही थी।
पारो अपनी जाघ से जांघ रगड कर अपनी चुलबुली चूत को शांत करने की नाकाम कोशिश करती अपनी चूत को साडी के उपर से सहला कर और मस्त अंगडाई मारी तो बहादुर का लन्ड़ पायजामे के अन्नदर ही 45 के एन्गल पर अकड गया। पारो जैसे आँखो ही आँखो मे घोल कर पी जाने वाली नजरो से देखती बोली "तो फिर हो जाये प्यार मुहब्बत का सिलसीला"।
बहादुर ने पारो के ईकहरे बदन को बाहो मे दबोच लिया और पारो की अंगीया के धागे खोलने लगा। धागे खुलते ही पारो की अंगीया सप्रीन्ग को समान उछल कर अलग हो गई और पारो के दोनो मदमस्त कबूतर ऊछल कर बहादुर के हाथो मे आ गये। पारो का कमरबन्द ठीला हो गया और पेटीकोट ने पारो के पैरो मे मरी चिडीया की तरह दम तोड दिया। बहादुर ने पारो की लवारीस बदन को बांहो मे उठा कर बैड पर पटका तो पारो की आँखें उन्माद मे उपर की ओर लुडक गई।
पारो के जिस्म पर ज़ेवर के ईलावा एक धज्जी भी नही थी पारो का हुसन टपके आम के समान भरपूर जवान और रसीला था। अब बिस्तर पर पारो का अवारा शबाब लाहपरवाही से बिखरा और फलौरौसैन्ट लाईट मे जगमगा रहा था। चांदी के गहनो झूमर, झुमके, नथनीया, हार, चुडीयां, मुंदरीया, बिच्छू से लदी फदी पारो अप्सरा सी लग रही थी।
बहादुर ने भी अपने कपडे उतारे तो पारो ने बहादुर के अजूबा लन्ड़ को देख खुशी से चिल्ला सी पडी "आईऽऽऽऽ बाप रे बाप हायऽऽऽ राजा लगता है कि आज मेरी छोटी पारो के चिथडे होंगें"। पारो भी खूब गीली और बैड कबडी खेलने को बथेरी उतावली थी। बहादुर ने पारो की गाँड को थोडा बाहर खींच कर चूतडो के नीचे सिरहाना रखा तो पारो की रानी पूरी तरहा से उभर कर बाहर आ गई पारो की भौंसडी खुब ज्यदा मोटी और रसभरी थी और चूत के अंदर के पत्त्ते दो दो ईन्च बाहर लटके हुऐ फूल की पखुडीयों के समान कंपकपा रहे थे।
पारो ने एक हाथ से अपनी दो अुंगलीयां चूत पे रख कर अंगुलीयो का उलटा "वी" बना कर गुलाबी भौंसडी को चौडा दिया और दुसरे हाथ से बहादुर के हटेकटे लफन्डर लन्ड़ को पकड कर खींच कर अपनी चूत के चीरे से सटा दिया। दहकते लन्ड की गरमी पा कर पारो की धधकती चूत ताज़ा खुले सोडे़ की बोतल समान बिफर कर झाग छोडने लगी।
बहादुर ने एक झटके से ही अपना लोकी सा लन्ड पारो की फूलगोभी सी चूत मे घसोड दिया तो पारो करहा कर बोली "आहऽऽऽ अरे मेरे यार तेरा लन्ड़ है या कुतबमीनार हायऽऽऽ चोद मेरे माईया चोद उफ रेए, आज किसी मादरचोद से पाला पडा है, सीईईई ले राजा पाड के रख दे अपनी पारो को" यह कह कर पारो अदा से अपने पाव के अंगुठे पकड लिये।
फिर बहादुर ने पारो की चुच्चो की टोटनी को चुटकी मे ले करे अपने लन्ड से प्यासी पारो की पिनपिनाती चूत के पसीने छूटा दिये। कमरे मे चुदती पारो की घुटी घुटी चीखो चुडीयों और पाजेबौ की खनखनाहट सिसकारीयो और किल्लकारीयों की कामुक आवाजे आने लगी। पारो पारो न रही और बहादुर बहादुर न रहा।
कई हफतो से चूत का सतया हुआ बहादुर पूरी दौपेहर जबरदस्ती पारो की आगे पीछे से बार बार लगातार मारता रहा तो पारो की बस हो गई। अधमुई सी पारो जैसे तैसे बहादुर को झेलती चली गई। बहादुर ने पारो की भौंसडी और गाँड के परखच्चे उडा दिये थे। बहादुर ने पारो की चूत को चौद कर चित्त्तौड़गड बना डाला था लुटी पिटी चुदी और ठुकी पारो लंगडाती और लडखडाती अपने कमरे मे पहुच कर ढेर हो गई।
स्कूल पास आ गया तो रीटा बोली "अच्छा बहादुर कल सुबहा जरा जल्दी आ जाना सुबहा मेरी चोदम चुदाई की एक एकस्टरा कलास है"।
बहादुर फुसफुसाता सा बोला "परंतु बेबी तुम्हारी तो फट चुकी है"?
"ओह, कम आन बहादुर, अभी मेरी पिछली पडोसन तो अभी एकदम तन्दरूसत और तरोताजा है" शरारती रीटा ने मुस्कूरा कर आंख मार कर अपने रसीले होंट को हलका सा उचका कर सायलन्ट किस्स मार कर पलटी और चूतड मटकाती हल्के से लंगडाती सी स्कूल के गेट की तरफ चल दी।
दोस्तों ये कहानी यही ख़तम होती है फिर मिलूंगी आपसे एक और नई कहानी के साथ दोस्तों अपनी प्रतिक्रिया मेरी आई डी पर जरूर दे आपकी ...........
समाप्त