बिस्तर पर तकिये के सहारे लेट कर अपनी बाँहों को फैलाते हुए मुझे प्यार से बुलाया. मैं कूद कर बिस्तर पर चढ़ गया और दीदी को बाँहों में भर उनके होंठो का चुम्बन लेने लगा. तभी लाइट चली गई और कमरे में पूरा अँधेरा फ़ैल गया. मैं और दीदी दोनों हसने लगे. फिर उन्होंने ने कहा "हाय राजू....ये तो एक दम टाइम पर लाइट चली गई...मैंने भी दिन में नहीं चुदवाया था की....रात में आराम से मजा लुंगी....चल एक काम कर अँधेरे में बूर चाट सकता है....देखू तो सही.....तू मेरी चुत की सुगंघ को पहचानता है या नहीं....सलवार नहीं खोलना ठीक है...." इतना सुनते ही मैं होंठो को छोर निचे की तरफ लपका उनके दोनों पैरों को फैला कर सूंघते हुए उनकी फटी सलवार के पास उनके चुत के पास पहुँच गया. सलवार के फटे हुए भाग को फैला कर चुत पर मुंह लगा कर लफर-लफर चाटने लगा. थोड़ी देर चाटने पर ही दीदी एक दम सिसयाने लगी और मेरे सर को अपनी चुत पर दबाते हुए चिल्लाने लगी " हाय राजू....बूर चाटू.....राजा....हाय सच में तू तो कमाल कर रहा है....एक दम एक्सपर्ट हो गया है....अँधेरे में भी सूंघ लिया....सीईईईइ बहनचोद....साला बहुत उस्ताद हो गया....है.....है मेरे राजा.....सीईईईइ" मैं पूरी चुत को अपने मुंह में भरने के चक्कर में सलवार की म्यानी को और फार दिया, यहाँ तक तक की दीदी की गांड तक म्यानी फट चुकी थी और मैं चुत पर जीभ चलाते हुए बीच-बीच में उनकी गांड को भी चाट रहा था और उसकी खाई में भी जीभ चला रहा था. तभी लाइट वापस आ गई. मैंने मुंह उठाया तो देखा मैं और दीदी दोनों पसीने से लथपथ हो चुके थे.होंठो पर से चुत का पानी पोछते हुए मैं बोला "हाय दीदी देखो आपको कितना पसीना आ रहा है...जल्दी से कपरे खोलो...." दीदी भी उठ के बैठते हुए बोली "हाँ बहुत गर्मी है....उफ्फ्फ्फ्फ्फ....लाइट आ जाने से ठीक रहा नहीं तो मैं सोच रही थी.....साली ..." कहते हुए अपने समीज को खोलने लगी. समीज खुलते ही दीदी कमर के ऊपर से पूरी नंगी हो गई. उन्होंने ब्रा नहीं पहन रखी थी ये बात मुझे पहले से पता थी. क्यों की दिन भर उनकी समीज के ऊपर से उनके चुचियों के निप्पल को मैं देखता रहा था. दोनों चूचियां आजाद हो चुकी थी और कमरे में उनके बदन से निकल रही पसीने और परफ्यूम की मादक गंध फ़ैल गई. मेरे से रुका नहीं गया. मैंने झपट कर दीदी को अपनी बाँहों में भरा और निचे लिटा कर उनके होंठो गालो और माथे को चुमते हुए चाटने लगा. मैं उनके चेहरे पर लगी पसीने की हर बूँद को चाट रहा था और अपने जीभ से चाटते हुए उनके पुरे चेहरे को गीला कर रहा था. दीदी सिसकते हुए मुझ से अपने चेहरे को चटवा रही थी. चेहरे को पूरा गीला करने के बाद मैं गर्दन को चाटने लगा फिर वह से छाती और चुचियों को अपनी जुबान से पूरा गीला कर मैंने दीदी के दोनों हाथो को पकड़ झटके के साथ उनके सर के ऊपर कर दिया. उनकी दोनों कांख मेरे सामने आ गई. कान्खो के बाल अभी भी बहुत छोटे छोटे थे. हाथ के ऊपर होते ही कान्खो से निकलती भीनी-भीनी खुश्बू आने लगी. मैं अपने दिल की इच्छा पूरी करने के चक्कर में सीधा उनके दोनों छाती को चाटता हुआ कान्खो की तरफ मुंह ले गया और उसमे अपने मुंह को गार दिया. कान्खो के मांस को मुंह में भरते हुए चूमने लगा और जीभ निकाल कर चाटने लगा. कांख में जमा पसीने का नमकीन पानी मेरे मुंह के अन्दर जा रहा था मगर मेरा इस तरफ कोई ध्यान नहीं था. मैं तो कांख के पसीने के सुगंध को सूंघते हुए मदहोश हुआ जा रहा था. मुझे एक नशा सा हो गया था मैंने चाटते-चाटते पूरी कांख को अपने थूक और लार से भींगा दिया था. दीदी चिल्लाते हुए गाली दे रही थी "हाय हरामी....सीईईइ...ये क्या कर रहा है.....चूतखोर.....सीई....बेशरम.....कांख चाटने का तुझे कहा से सूझा.....उफ्फ्फ्फ्फ्फ....पूरा पसीने से भरा हुआ था....साला मुझे भी गन्दा कर रहा है..... हाय पूरा थूक से भींगा दिया....हाय माधरचोद....ये क्या कर रहा है....उफ्फ्फ्फ्फ्फ....हाय मेरे पुरे बदन को चाट रहा है.....हाय भाई......तुझे मेरे बदन से रस टपकता हुआ लगता है क्या.....हाय…… उफ्फ्फ्फ्फ्फ...." मुझे इस बात की चिंता नहीं थी की दीदी क्या बोल रही है. मैं दुसरे कांख को चाटते हुए बोला "हाय दीदी...तेरा बदन नशीला है...उम्म्म्म्म्म्म्म.....बहुत मजेदार है....तू तो रसवंती है....रसवंती....तेरे बदन को चाटने से जितना मजा मुझे मिलता है उतना एक बार बियर पी थी तब भी नहीं आया था....हाय.....दीदी तुम्हारी कान्खो में जो पसीना रहता है उसकी गंध ने मुझे बहुत बार पागल किया है.....हाय आज मौका मिला है तो नहीं छोरुगा....तुम्हारे पुरे बदन को चाटूंगा.....गांड में भी अपनी जुबान डालूँगा...हाय दीदी आज मत रोकना मुझे....मैं पागल हो गया हूँ.....उम्म्म्म्म्म्म्म्म...." दीदी समझ गई की मैं सच में आज उनको नहीं छोड़ने वाला. उनको भी मजा आ रहा था. उन्होंने अपना पूरा बदन ढीला छोर दिया था और मुझे पूरी आजादी दे दी थी. मैं आराम से उनके कान्खो को चाटने के बाद धीरे धीरे निचे की तरफ बढ़ता चला गया और पेट की नाभि को चाटते हुए दांतों से सलवार के नारे को खोल कर खीचने लगा. इस पर दीदी बोली "फार दे ना....बहनचोद...पूरी तो पहले ही फार चूका है....और फार दे...." पर मैंने खींचते हुए पूरी सलवार को निचे उतार दिया और दोनों टांग फैला कर उनके बीच बैठ एक पैर को अपने हाथ से ऊपर उठा कर पैर के अंगूठे को चाटने लगा धीरे धीरे पैर की उँगलियों और टखने को चाटने के बाद पुरे तलवे को जीभ लगा कर चाटा. फिर वहां से आगे बढ़ते हुए उनके पुरे पैर को चाटते हुए घुटने और जांघो को चाटने लगा. जांघो पर दांत गाराते हुए मांस को मुंह में भरते हुए चाट रहा था. दीदी अपने हाथ पैर पटकते हुए छटपटा रही थी. मेरी चटाई ने उनको पूरी तरह से गरम कर दिया था
दीदी का दीवाना compleet
Re: दीदी का दीवाना
दीदी का दीवाना पार्ट-09
वो मदहोश हो रही थी. मैं जांघो के जोर को चाटते हुए पैर को हवा में उठा दिया और लप लप करते हुए कुत्ते की तरह कभी बूर कभी उसके चारो तरफ चाटने लगा फिर अचानक से मैंने जांघ पकर कर दोनों पैर हवा में ऊपर उठा दिया इस से दीदी की गांड मेरी आँखों के सामने आ गई और मैं उस पर मुंह लगा कर चाटने लगा. दीदी एक दम गरमा गई और तरपते हुए बोली "क्या कर रहा है...हाय गांड के पीछे हाथ धो कर पर गया....है....सीईईई गांड मारेगा क्या....जब देखो तब चाटने लगता है...उस समय भी चाट रहा था....हाय हरामी....कुत्ते....सीईई...चाट मगर ये याद रख मारने नहीं दूंगी......साला आज तक इसमें ऊँगली भी नहीं गई है.....और तू कुत्ता.....जब देखो...उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़....हाय चाटना है तो ठीक से चाट.....मजा आ रहा है....रुक मुझे पलटने दे......" कहते हुए पलट कर पेट के बल हो गई और गांड के निचे तकिया लगा कर ऊपर उठा दिया और बोली "ले अब चाट....कुत्ते....अपनी कुतिया दीदी की गांड....को.....बहनचोद.....बहन की गांड....खा रहा है.....उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ बेशरम......" मेरे लिए अब और आसन हो गया था. दीदी की गांड को उनके दोनों चुत्तरों को मुठ्ठी में कसते हुए मसलते हुए खोल कर उनकी पूरी गांड की खाई में जीभ डाल कर चलाने लगा. गांड का छोटा सा भूरे रंग का छेद पकपका रहा था. होंठो को गांड के छेद के होंठो से मिलाता हुआ चूमने लगा. तभी दीदी अपने दोनों हाथो को गांड के छेद के पास ला कर अपनी गांड की छेद को फैलाती हुई बोली "हाय ठीक से चाट...चाटना है तो....छेद पूरा फैला कर....चाट...मेरा भी मन करता था चटवाने को.....तेरी जो वो मस्तराम की किताब है न उसमे लिखा है....हाय राजू.....मुझे सब पता है...बेटा....तू क्या क्या करता है....इसलिए चौंकना मत....बस वैसे ही जैसे किताब में लिखा है वैसे चाट.....हाय...जीभ अन्दर डाल कर चाट....हाय सीईईईईई....." मैं समझ गया की अब जब दीदी से कुछ छुपा ही नहीं है तो शर्माना कैसा अपनी जीभ को करा कर के उनकी गांड की भूरी छेद में डाल कर नचाते हुए चाटने लगा. गांड को छेद को अपने अंगूठे से पकर फैलाते हुए मस्ती में चाटने लगा. दीदी अपनी गांड को पूरा हवा में उठा कर मेरे जीभ पर नचा रही थी और मैं गांड को अपनी जीभ डाल कर चोदते हुए पूरी खाई में ऊपर से निचे तक जीभ चला रहा था. दीदी की गांड का स्वाद भी एक दम नशीला लग रहा था. कसी हुई गांड के अन्दर तक जीभ डालने के लिए पूरा जीभ सीधा खड़ा कर के गांड को पूरा फैला कर पेल कर जीभ नचा रहा था. सक सक गांड के अन्दर जीभ आ जा रही थी. थूक से गांड की छेद पूरी गीली हो गई थी और आसानी से मेरी जीभ को अपने अन्दर खींच रही थी. गांड चटवाते हुए दीदी एक दम गर्म हो गई थी और सिसकते हुए बोली "हाय राजा...अब गांड चाटना छोड़ो....हाय राजा....मैं बहुत गरम हो चुकी हूँ.....हाय मुझे तुने....मस्त कर दिया है...हाय अब अपनी रसवंती दीदी का रस चूसना छोड़ और.......उसकी चुत में अपना मुस्लंड लौड़ा डाल कर चोद और उसका रस निकाल दे.....हाय सनम....मेरे राजा....चोद दे अपनी दीदी को अब मत तड़पा...." दीदी की तड़प देख मैंने अपना मुंह उनकी गांड पर से हटाया और बोला " हाय दीदी जब आपने मस्तराम की किताब पढ़ी थी तो...आपने पढ़ा तो होगा ही की....कैसे गांड....में...हाय मेरा मतलब है की एक बार दीदी....अपनी गांड...." दीदी इस एक दम से तड़प कर पलटी और मेरे गालो पर चिकोटी काटती हुई बोली "हाय हरामी....साला.....तू जितना दीखता है उतना सीधा है नहीं....सीईईईइ....माधरचोद....मैं सब समझती हूँ....तू साला गांड के पीछे पड़ा हुआ है.....कुत्ते मेरी गांड मारने के चक्कर में तू....साले...यहाँ मेरी चुत में आग लगी हुई है और तू....हाय....नहीं भाई मेरी गांड एक दम कुंवारी है और आज तक मैंने इसमें ऊँगली भी नहीं डाली है....हाय राजू तेरा लौड़ा बहुत मोटा है....गांड छोड़ कर चुत मार ले...मैंने तुझे गांड चाटने दिया....गांड का पूरा मजा ले लिया अब रहने दे...." मैं दीदी की चिरौरी करने लगा. "हाय दीदी प्लीज़....बस एक बार...किताब में लिखा है कितना भी मोटा.....हो चला जाता है...हाय प्लीज़ बस एक बार...बहुत मजा...आता है...मैंने सुना है....प्लीज़....” मैं दीदी के पैर को चूम रहा था, चुत्तर को चूम रहा था, कभी हाथ को चूम रहा था. दीदी से मैं भीख मांगने के अंदाज में चिरौरी करने लगा. कुछ देर तक सोचने के बाद दीदी " बोली ठीक है भाई तू कर ले....मगर मेरी एक शर्त है....पहले अपने थूक से मेरी गांड को पूरा चिकना कर दे....या फिर थोड़ा सा मख्खन का टुकड़ा ले आ मेरी गांड में डाल कर एक दम चिकना कर दे फिर....अपना लण्ड डालना...डालने के पहले…. लण्ड को भी चिकना कर लेना....हाँ एक और बात तेरा पानी मैं अपनी चुत में ही लुंगी खबरदार जो.... तुने अपना पानी कही और गिराया....गांड मारने के बाद चुत के अन्दर डाल कर गिराना....नहीं तो फिर कभी तुझे चुत नहीं दूंगी… और याद रख मैं इस काम में तेरी कोई मदद नहीं करने वाली मैं कुर्सी पकर कर खड़ी हो जाउंगी…..बस….” मैं राजी हो गया और तुंरत भागता हुआ रसोई से फ्रीज खोल मख्खन के दो तीन टुकड़े ले कर आ गया. दीदी तब तक सोफे वाली चेयर के ऊपर दो तकिया रख कर अपनी आधे धर को उस पर टिका कर गांड को हवा में लहरा रही थी. मैं जल्दी से उनके पीछे पहुँच कर उनके चुत्तरो को फैला कर मख्खन के टुकड़ो को एक-एक कर उनकी गांड में ठेलने लगा. गांड की गर्मी पा कर मख्खन पिघलता जा रहा था और उनकी गांड में घुस कर घुलता जा रहा था. मैंने धीरे धीरे कर के सारे टुकड़े डाल दिए फिर निचे झुक कर गांड को बाहर से चाटने लगा. पूरी गांड को थूक से लथपथ कर देने के बाद मैंने अपने लण्ड पर भी ढेर सारा थूक लगाया और फिर दोनों चुत्तरों को दोनों हाथ से फैला कर लण्ड को गांड की छेद पर लगा कर कमर से हल्का सा जोर लगाया. गांड इतनी चिकनी हो चुकी थी और छेद इतनी टाइट थी की लण्ड फिसल कर चुत्तरों पर लग गया. मैंने दो तीन बार और कोशिश की मगर हर बार ऐसा ही हुआ. दीदी इस पर बोली "देखा भाई मैं कहती थी न की एक दम टाइट है....कुत्ते....मेरी बात नहीं मान रहा था...किताब में लिखी हर बात.....सच नहीं....हाय तू तो....बेकार में....उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ कुछ होने वाला नहीं....दर्द भी होगा.....हाय.....चुत में पेल ले....ऐसा मत कर...." मगर मैं कुछ नहीं बोला और कोशिश करता रहा. थोड़ी देर में दीदी ने खुद से दया करते हुए अपने दोनों हाथो से अपने चुत्तरों को पकड़ कर खींचते हुए गांड के छेद को अंगूठा लगा कर फैला दिया और बोली "ले माधरचोद अपने मन की आरजू पूरी कर ले....साला हाथ धो के पीछे पड़ा है....ले अब घुसा....लण्ड का सुपाड़ा ठीक से छेद पर लगा कर उसके बाद....धक्का मार...धीरे धीरे मारना...हरामी....जोर से मारा तो गांड टेढा कर के लण्ड तोड़ दूंगी....." मैंने दीदी के फैले हुए गांड के छेद पर लण्ड के सुपाड़े को रखा और गांड तक का जोर लगा कर धक्का मारा. इस बार पक से मेरे लण्ड का सुपाड़ा जा कर दीदी की गांड में घुस गया. गांड की छेद फ़ैल गई. सुपाड़ा जब घुस गया तो फिर बाकी काम आसान था क्योंकि सबसे मोटा तो सुपाड़ा ही था. पर सुपाड़ा घुसते ही दीदी की गांड परपराने लगी.
वो मदहोश हो रही थी. मैं जांघो के जोर को चाटते हुए पैर को हवा में उठा दिया और लप लप करते हुए कुत्ते की तरह कभी बूर कभी उसके चारो तरफ चाटने लगा फिर अचानक से मैंने जांघ पकर कर दोनों पैर हवा में ऊपर उठा दिया इस से दीदी की गांड मेरी आँखों के सामने आ गई और मैं उस पर मुंह लगा कर चाटने लगा. दीदी एक दम गरमा गई और तरपते हुए बोली "क्या कर रहा है...हाय गांड के पीछे हाथ धो कर पर गया....है....सीईईई गांड मारेगा क्या....जब देखो तब चाटने लगता है...उस समय भी चाट रहा था....हाय हरामी....कुत्ते....सीईई...चाट मगर ये याद रख मारने नहीं दूंगी......साला आज तक इसमें ऊँगली भी नहीं गई है.....और तू कुत्ता.....जब देखो...उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़....हाय चाटना है तो ठीक से चाट.....मजा आ रहा है....रुक मुझे पलटने दे......" कहते हुए पलट कर पेट के बल हो गई और गांड के निचे तकिया लगा कर ऊपर उठा दिया और बोली "ले अब चाट....कुत्ते....अपनी कुतिया दीदी की गांड....को.....बहनचोद.....बहन की गांड....खा रहा है.....उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ बेशरम......" मेरे लिए अब और आसन हो गया था. दीदी की गांड को उनके दोनों चुत्तरों को मुठ्ठी में कसते हुए मसलते हुए खोल कर उनकी पूरी गांड की खाई में जीभ डाल कर चलाने लगा. गांड का छोटा सा भूरे रंग का छेद पकपका रहा था. होंठो को गांड के छेद के होंठो से मिलाता हुआ चूमने लगा. तभी दीदी अपने दोनों हाथो को गांड के छेद के पास ला कर अपनी गांड की छेद को फैलाती हुई बोली "हाय ठीक से चाट...चाटना है तो....छेद पूरा फैला कर....चाट...मेरा भी मन करता था चटवाने को.....तेरी जो वो मस्तराम की किताब है न उसमे लिखा है....हाय राजू.....मुझे सब पता है...बेटा....तू क्या क्या करता है....इसलिए चौंकना मत....बस वैसे ही जैसे किताब में लिखा है वैसे चाट.....हाय...जीभ अन्दर डाल कर चाट....हाय सीईईईईई....." मैं समझ गया की अब जब दीदी से कुछ छुपा ही नहीं है तो शर्माना कैसा अपनी जीभ को करा कर के उनकी गांड की भूरी छेद में डाल कर नचाते हुए चाटने लगा. गांड को छेद को अपने अंगूठे से पकर फैलाते हुए मस्ती में चाटने लगा. दीदी अपनी गांड को पूरा हवा में उठा कर मेरे जीभ पर नचा रही थी और मैं गांड को अपनी जीभ डाल कर चोदते हुए पूरी खाई में ऊपर से निचे तक जीभ चला रहा था. दीदी की गांड का स्वाद भी एक दम नशीला लग रहा था. कसी हुई गांड के अन्दर तक जीभ डालने के लिए पूरा जीभ सीधा खड़ा कर के गांड को पूरा फैला कर पेल कर जीभ नचा रहा था. सक सक गांड के अन्दर जीभ आ जा रही थी. थूक से गांड की छेद पूरी गीली हो गई थी और आसानी से मेरी जीभ को अपने अन्दर खींच रही थी. गांड चटवाते हुए दीदी एक दम गर्म हो गई थी और सिसकते हुए बोली "हाय राजा...अब गांड चाटना छोड़ो....हाय राजा....मैं बहुत गरम हो चुकी हूँ.....हाय मुझे तुने....मस्त कर दिया है...हाय अब अपनी रसवंती दीदी का रस चूसना छोड़ और.......उसकी चुत में अपना मुस्लंड लौड़ा डाल कर चोद और उसका रस निकाल दे.....हाय सनम....मेरे राजा....चोद दे अपनी दीदी को अब मत तड़पा...." दीदी की तड़प देख मैंने अपना मुंह उनकी गांड पर से हटाया और बोला " हाय दीदी जब आपने मस्तराम की किताब पढ़ी थी तो...आपने पढ़ा तो होगा ही की....कैसे गांड....में...हाय मेरा मतलब है की एक बार दीदी....अपनी गांड...." दीदी इस एक दम से तड़प कर पलटी और मेरे गालो पर चिकोटी काटती हुई बोली "हाय हरामी....साला.....तू जितना दीखता है उतना सीधा है नहीं....सीईईईइ....माधरचोद....मैं सब समझती हूँ....तू साला गांड के पीछे पड़ा हुआ है.....कुत्ते मेरी गांड मारने के चक्कर में तू....साले...यहाँ मेरी चुत में आग लगी हुई है और तू....हाय....नहीं भाई मेरी गांड एक दम कुंवारी है और आज तक मैंने इसमें ऊँगली भी नहीं डाली है....हाय राजू तेरा लौड़ा बहुत मोटा है....गांड छोड़ कर चुत मार ले...मैंने तुझे गांड चाटने दिया....गांड का पूरा मजा ले लिया अब रहने दे...." मैं दीदी की चिरौरी करने लगा. "हाय दीदी प्लीज़....बस एक बार...किताब में लिखा है कितना भी मोटा.....हो चला जाता है...हाय प्लीज़ बस एक बार...बहुत मजा...आता है...मैंने सुना है....प्लीज़....” मैं दीदी के पैर को चूम रहा था, चुत्तर को चूम रहा था, कभी हाथ को चूम रहा था. दीदी से मैं भीख मांगने के अंदाज में चिरौरी करने लगा. कुछ देर तक सोचने के बाद दीदी " बोली ठीक है भाई तू कर ले....मगर मेरी एक शर्त है....पहले अपने थूक से मेरी गांड को पूरा चिकना कर दे....या फिर थोड़ा सा मख्खन का टुकड़ा ले आ मेरी गांड में डाल कर एक दम चिकना कर दे फिर....अपना लण्ड डालना...डालने के पहले…. लण्ड को भी चिकना कर लेना....हाँ एक और बात तेरा पानी मैं अपनी चुत में ही लुंगी खबरदार जो.... तुने अपना पानी कही और गिराया....गांड मारने के बाद चुत के अन्दर डाल कर गिराना....नहीं तो फिर कभी तुझे चुत नहीं दूंगी… और याद रख मैं इस काम में तेरी कोई मदद नहीं करने वाली मैं कुर्सी पकर कर खड़ी हो जाउंगी…..बस….” मैं राजी हो गया और तुंरत भागता हुआ रसोई से फ्रीज खोल मख्खन के दो तीन टुकड़े ले कर आ गया. दीदी तब तक सोफे वाली चेयर के ऊपर दो तकिया रख कर अपनी आधे धर को उस पर टिका कर गांड को हवा में लहरा रही थी. मैं जल्दी से उनके पीछे पहुँच कर उनके चुत्तरो को फैला कर मख्खन के टुकड़ो को एक-एक कर उनकी गांड में ठेलने लगा. गांड की गर्मी पा कर मख्खन पिघलता जा रहा था और उनकी गांड में घुस कर घुलता जा रहा था. मैंने धीरे धीरे कर के सारे टुकड़े डाल दिए फिर निचे झुक कर गांड को बाहर से चाटने लगा. पूरी गांड को थूक से लथपथ कर देने के बाद मैंने अपने लण्ड पर भी ढेर सारा थूक लगाया और फिर दोनों चुत्तरों को दोनों हाथ से फैला कर लण्ड को गांड की छेद पर लगा कर कमर से हल्का सा जोर लगाया. गांड इतनी चिकनी हो चुकी थी और छेद इतनी टाइट थी की लण्ड फिसल कर चुत्तरों पर लग गया. मैंने दो तीन बार और कोशिश की मगर हर बार ऐसा ही हुआ. दीदी इस पर बोली "देखा भाई मैं कहती थी न की एक दम टाइट है....कुत्ते....मेरी बात नहीं मान रहा था...किताब में लिखी हर बात.....सच नहीं....हाय तू तो....बेकार में....उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ कुछ होने वाला नहीं....दर्द भी होगा.....हाय.....चुत में पेल ले....ऐसा मत कर...." मगर मैं कुछ नहीं बोला और कोशिश करता रहा. थोड़ी देर में दीदी ने खुद से दया करते हुए अपने दोनों हाथो से अपने चुत्तरों को पकड़ कर खींचते हुए गांड के छेद को अंगूठा लगा कर फैला दिया और बोली "ले माधरचोद अपने मन की आरजू पूरी कर ले....साला हाथ धो के पीछे पड़ा है....ले अब घुसा....लण्ड का सुपाड़ा ठीक से छेद पर लगा कर उसके बाद....धक्का मार...धीरे धीरे मारना...हरामी....जोर से मारा तो गांड टेढा कर के लण्ड तोड़ दूंगी....." मैंने दीदी के फैले हुए गांड के छेद पर लण्ड के सुपाड़े को रखा और गांड तक का जोर लगा कर धक्का मारा. इस बार पक से मेरे लण्ड का सुपाड़ा जा कर दीदी की गांड में घुस गया. गांड की छेद फ़ैल गई. सुपाड़ा जब घुस गया तो फिर बाकी काम आसान था क्योंकि सबसे मोटा तो सुपाड़ा ही था. पर सुपाड़ा घुसते ही दीदी की गांड परपराने लगी.
Re: दीदी का दीवाना
दीदी का दीवाना पार्ट-09
वो मदहोश हो रही थी. मैं जांघो के जोर को चाटते हुए पैर को हवा में उठा दिया और लप लप करते हुए कुत्ते की तरह कभी बूर कभी उसके चारो तरफ चाटने लगा फिर अचानक से मैंने जांघ पकर कर दोनों पैर हवा में ऊपर उठा दिया इस से दीदी की गांड मेरी आँखों के सामने आ गई और मैं उस पर मुंह लगा कर चाटने लगा. दीदी एक दम गरमा गई और तरपते हुए बोली "क्या कर रहा है...हाय गांड के पीछे हाथ धो कर पर गया....है....सीईईई गांड मारेगा क्या....जब देखो तब चाटने लगता है...उस समय भी चाट रहा था....हाय हरामी....कुत्ते....सीईई...चाट मगर ये याद रख मारने नहीं दूंगी......साला आज तक इसमें ऊँगली भी नहीं गई है.....और तू कुत्ता.....जब देखो...उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़....हाय चाटना है तो ठीक से चाट.....मजा आ रहा है....रुक मुझे पलटने दे......" कहते हुए पलट कर पेट के बल हो गई और गांड के निचे तकिया लगा कर ऊपर उठा दिया और बोली "ले अब चाट....कुत्ते....अपनी कुतिया दीदी की गांड....को.....बहनचोद.....बहन की गांड....खा रहा है.....उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ बेशरम......" मेरे लिए अब और आसन हो गया था. दीदी की गांड को उनके दोनों चुत्तरों को मुठ्ठी में कसते हुए मसलते हुए खोल कर उनकी पूरी गांड की खाई में जीभ डाल कर चलाने लगा. गांड का छोटा सा भूरे रंग का छेद पकपका रहा था. होंठो को गांड के छेद के होंठो से मिलाता हुआ चूमने लगा. तभी दीदी अपने दोनों हाथो को गांड के छेद के पास ला कर अपनी गांड की छेद को फैलाती हुई बोली "हाय ठीक से चाट...चाटना है तो....छेद पूरा फैला कर....चाट...मेरा भी मन करता था चटवाने को.....तेरी जो वो मस्तराम की किताब है न उसमे लिखा है....हाय राजू.....मुझे सब पता है...बेटा....तू क्या क्या करता है....इसलिए चौंकना मत....बस वैसे ही जैसे किताब में लिखा है वैसे चाट.....हाय...जीभ अन्दर डाल कर चाट....हाय सीईईईईई....." मैं समझ गया की अब जब दीदी से कुछ छुपा ही नहीं है तो शर्माना कैसा अपनी जीभ को करा कर के उनकी गांड की भूरी छेद में डाल कर नचाते हुए चाटने लगा. गांड को छेद को अपने अंगूठे से पकर फैलाते हुए मस्ती में चाटने लगा. दीदी अपनी गांड को पूरा हवा में उठा कर मेरे जीभ पर नचा रही थी और मैं गांड को अपनी जीभ डाल कर चोदते हुए पूरी खाई में ऊपर से निचे तक जीभ चला रहा था. दीदी की गांड का स्वाद भी एक दम नशीला लग रहा था. कसी हुई गांड के अन्दर तक जीभ डालने के लिए पूरा जीभ सीधा खड़ा कर के गांड को पूरा फैला कर पेल कर जीभ नचा रहा था. सक सक गांड के अन्दर जीभ आ जा रही थी. थूक से गांड की छेद पूरी गीली हो गई थी और आसानी से मेरी जीभ को अपने अन्दर खींच रही थी. गांड चटवाते हुए दीदी एक दम गर्म हो गई थी और सिसकते हुए बोली "हाय राजा...अब गांड चाटना छोड़ो....हाय राजा....मैं बहुत गरम हो चुकी हूँ.....हाय मुझे तुने....मस्त कर दिया है...हाय अब अपनी रसवंती दीदी का रस चूसना छोड़ और.......उसकी चुत में अपना मुस्लंड लौड़ा डाल कर चोद और उसका रस निकाल दे.....हाय सनम....मेरे राजा....चोद दे अपनी दीदी को अब मत तड़पा...." दीदी की तड़प देख मैंने अपना मुंह उनकी गांड पर से हटाया और बोला " हाय दीदी जब आपने मस्तराम की किताब पढ़ी थी तो...आपने पढ़ा तो होगा ही की....कैसे गांड....में...हाय मेरा मतलब है की एक बार दीदी....अपनी गांड...." दीदी इस एक दम से तड़प कर पलटी और मेरे गालो पर चिकोटी काटती हुई बोली "हाय हरामी....साला.....तू जितना दीखता है उतना सीधा है नहीं....सीईईईइ....माधरचोद....मैं सब समझती हूँ....तू साला गांड के पीछे पड़ा हुआ है.....कुत्ते मेरी गांड मारने के चक्कर में तू....साले...यहाँ मेरी चुत में आग लगी हुई है और तू....हाय....नहीं भाई मेरी गांड एक दम कुंवारी है और आज तक मैंने इसमें ऊँगली भी नहीं डाली है....हाय राजू तेरा लौड़ा बहुत मोटा है....गांड छोड़ कर चुत मार ले...मैंने तुझे गांड चाटने दिया....गांड का पूरा मजा ले लिया अब रहने दे...." मैं दीदी की चिरौरी करने लगा. "हाय दीदी प्लीज़....बस एक बार...किताब में लिखा है कितना भी मोटा.....हो चला जाता है...हाय प्लीज़ बस एक बार...बहुत मजा...आता है...मैंने सुना है....प्लीज़....” मैं दीदी के पैर को चूम रहा था, चुत्तर को चूम रहा था, कभी हाथ को चूम रहा था. दीदी से मैं भीख मांगने के अंदाज में चिरौरी करने लगा. कुछ देर तक सोचने के बाद दीदी " बोली ठीक है भाई तू कर ले....मगर मेरी एक शर्त है....पहले अपने थूक से मेरी गांड को पूरा चिकना कर दे....या फिर थोड़ा सा मख्खन का टुकड़ा ले आ मेरी गांड में डाल कर एक दम चिकना कर दे फिर....अपना लण्ड डालना...डालने के पहले…. लण्ड को भी चिकना कर लेना....हाँ एक और बात तेरा पानी मैं अपनी चुत में ही लुंगी खबरदार जो.... तुने अपना पानी कही और गिराया....गांड मारने के बाद चुत के अन्दर डाल कर गिराना....नहीं तो फिर कभी तुझे चुत नहीं दूंगी… और याद रख मैं इस काम में तेरी कोई मदद नहीं करने वाली मैं कुर्सी पकर कर खड़ी हो जाउंगी…..बस….” मैं राजी हो गया और तुंरत भागता हुआ रसोई से फ्रीज खोल मख्खन के दो तीन टुकड़े ले कर आ गया. दीदी तब तक सोफे वाली चेयर के ऊपर दो तकिया रख कर अपनी आधे धर को उस पर टिका कर गांड को हवा में लहरा रही थी. मैं जल्दी से उनके पीछे पहुँच कर उनके चुत्तरो को फैला कर मख्खन के टुकड़ो को एक-एक कर उनकी गांड में ठेलने लगा. गांड की गर्मी पा कर मख्खन पिघलता जा रहा था और उनकी गांड में घुस कर घुलता जा रहा था. मैंने धीरे धीरे कर के सारे टुकड़े डाल दिए फिर निचे झुक कर गांड को बाहर से चाटने लगा. पूरी गांड को थूक से लथपथ कर देने के बाद मैंने अपने लण्ड पर भी ढेर सारा थूक लगाया और फिर दोनों चुत्तरों को दोनों हाथ से फैला कर लण्ड को गांड की छेद पर लगा कर कमर से हल्का सा जोर लगाया. गांड इतनी चिकनी हो चुकी थी और छेद इतनी टाइट थी की लण्ड फिसल कर चुत्तरों पर लग गया. मैंने दो तीन बार और कोशिश की मगर हर बार ऐसा ही हुआ. दीदी इस पर बोली "देखा भाई मैं कहती थी न की एक दम टाइट है....कुत्ते....मेरी बात नहीं मान रहा था...किताब में लिखी हर बात.....सच नहीं....हाय तू तो....बेकार में....उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ कुछ होने वाला नहीं....दर्द भी होगा.....हाय.....चुत में पेल ले....ऐसा मत कर...." मगर मैं कुछ नहीं बोला और कोशिश करता रहा. थोड़ी देर में दीदी ने खुद से दया करते हुए अपने दोनों हाथो से अपने चुत्तरों को पकड़ कर खींचते हुए गांड के छेद को अंगूठा लगा कर फैला दिया और बोली "ले माधरचोद अपने मन की आरजू पूरी कर ले....साला हाथ धो के पीछे पड़ा है....ले अब घुसा....लण्ड का सुपाड़ा ठीक से छेद पर लगा कर उसके बाद....धक्का मार...धीरे धीरे मारना...हरामी....जोर से मारा तो गांड टेढा कर के लण्ड तोड़ दूंगी....." मैंने दीदी के फैले हुए गांड के छेद पर लण्ड के सुपाड़े को रखा और गांड तक का जोर लगा कर धक्का मारा. इस बार पक से मेरे लण्ड का सुपाड़ा जा कर दीदी की गांड में घुस गया. गांड की छेद फ़ैल गई. सुपाड़ा जब घुस गया तो फिर बाकी काम आसान था क्योंकि सबसे मोटा तो सुपाड़ा ही था. पर सुपाड़ा घुसते ही दीदी की गांड परपराने लगी.
वो मदहोश हो रही थी. मैं जांघो के जोर को चाटते हुए पैर को हवा में उठा दिया और लप लप करते हुए कुत्ते की तरह कभी बूर कभी उसके चारो तरफ चाटने लगा फिर अचानक से मैंने जांघ पकर कर दोनों पैर हवा में ऊपर उठा दिया इस से दीदी की गांड मेरी आँखों के सामने आ गई और मैं उस पर मुंह लगा कर चाटने लगा. दीदी एक दम गरमा गई और तरपते हुए बोली "क्या कर रहा है...हाय गांड के पीछे हाथ धो कर पर गया....है....सीईईई गांड मारेगा क्या....जब देखो तब चाटने लगता है...उस समय भी चाट रहा था....हाय हरामी....कुत्ते....सीईई...चाट मगर ये याद रख मारने नहीं दूंगी......साला आज तक इसमें ऊँगली भी नहीं गई है.....और तू कुत्ता.....जब देखो...उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़....हाय चाटना है तो ठीक से चाट.....मजा आ रहा है....रुक मुझे पलटने दे......" कहते हुए पलट कर पेट के बल हो गई और गांड के निचे तकिया लगा कर ऊपर उठा दिया और बोली "ले अब चाट....कुत्ते....अपनी कुतिया दीदी की गांड....को.....बहनचोद.....बहन की गांड....खा रहा है.....उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ बेशरम......" मेरे लिए अब और आसन हो गया था. दीदी की गांड को उनके दोनों चुत्तरों को मुठ्ठी में कसते हुए मसलते हुए खोल कर उनकी पूरी गांड की खाई में जीभ डाल कर चलाने लगा. गांड का छोटा सा भूरे रंग का छेद पकपका रहा था. होंठो को गांड के छेद के होंठो से मिलाता हुआ चूमने लगा. तभी दीदी अपने दोनों हाथो को गांड के छेद के पास ला कर अपनी गांड की छेद को फैलाती हुई बोली "हाय ठीक से चाट...चाटना है तो....छेद पूरा फैला कर....चाट...मेरा भी मन करता था चटवाने को.....तेरी जो वो मस्तराम की किताब है न उसमे लिखा है....हाय राजू.....मुझे सब पता है...बेटा....तू क्या क्या करता है....इसलिए चौंकना मत....बस वैसे ही जैसे किताब में लिखा है वैसे चाट.....हाय...जीभ अन्दर डाल कर चाट....हाय सीईईईईई....." मैं समझ गया की अब जब दीदी से कुछ छुपा ही नहीं है तो शर्माना कैसा अपनी जीभ को करा कर के उनकी गांड की भूरी छेद में डाल कर नचाते हुए चाटने लगा. गांड को छेद को अपने अंगूठे से पकर फैलाते हुए मस्ती में चाटने लगा. दीदी अपनी गांड को पूरा हवा में उठा कर मेरे जीभ पर नचा रही थी और मैं गांड को अपनी जीभ डाल कर चोदते हुए पूरी खाई में ऊपर से निचे तक जीभ चला रहा था. दीदी की गांड का स्वाद भी एक दम नशीला लग रहा था. कसी हुई गांड के अन्दर तक जीभ डालने के लिए पूरा जीभ सीधा खड़ा कर के गांड को पूरा फैला कर पेल कर जीभ नचा रहा था. सक सक गांड के अन्दर जीभ आ जा रही थी. थूक से गांड की छेद पूरी गीली हो गई थी और आसानी से मेरी जीभ को अपने अन्दर खींच रही थी. गांड चटवाते हुए दीदी एक दम गर्म हो गई थी और सिसकते हुए बोली "हाय राजा...अब गांड चाटना छोड़ो....हाय राजा....मैं बहुत गरम हो चुकी हूँ.....हाय मुझे तुने....मस्त कर दिया है...हाय अब अपनी रसवंती दीदी का रस चूसना छोड़ और.......उसकी चुत में अपना मुस्लंड लौड़ा डाल कर चोद और उसका रस निकाल दे.....हाय सनम....मेरे राजा....चोद दे अपनी दीदी को अब मत तड़पा...." दीदी की तड़प देख मैंने अपना मुंह उनकी गांड पर से हटाया और बोला " हाय दीदी जब आपने मस्तराम की किताब पढ़ी थी तो...आपने पढ़ा तो होगा ही की....कैसे गांड....में...हाय मेरा मतलब है की एक बार दीदी....अपनी गांड...." दीदी इस एक दम से तड़प कर पलटी और मेरे गालो पर चिकोटी काटती हुई बोली "हाय हरामी....साला.....तू जितना दीखता है उतना सीधा है नहीं....सीईईईइ....माधरचोद....मैं सब समझती हूँ....तू साला गांड के पीछे पड़ा हुआ है.....कुत्ते मेरी गांड मारने के चक्कर में तू....साले...यहाँ मेरी चुत में आग लगी हुई है और तू....हाय....नहीं भाई मेरी गांड एक दम कुंवारी है और आज तक मैंने इसमें ऊँगली भी नहीं डाली है....हाय राजू तेरा लौड़ा बहुत मोटा है....गांड छोड़ कर चुत मार ले...मैंने तुझे गांड चाटने दिया....गांड का पूरा मजा ले लिया अब रहने दे...." मैं दीदी की चिरौरी करने लगा. "हाय दीदी प्लीज़....बस एक बार...किताब में लिखा है कितना भी मोटा.....हो चला जाता है...हाय प्लीज़ बस एक बार...बहुत मजा...आता है...मैंने सुना है....प्लीज़....” मैं दीदी के पैर को चूम रहा था, चुत्तर को चूम रहा था, कभी हाथ को चूम रहा था. दीदी से मैं भीख मांगने के अंदाज में चिरौरी करने लगा. कुछ देर तक सोचने के बाद दीदी " बोली ठीक है भाई तू कर ले....मगर मेरी एक शर्त है....पहले अपने थूक से मेरी गांड को पूरा चिकना कर दे....या फिर थोड़ा सा मख्खन का टुकड़ा ले आ मेरी गांड में डाल कर एक दम चिकना कर दे फिर....अपना लण्ड डालना...डालने के पहले…. लण्ड को भी चिकना कर लेना....हाँ एक और बात तेरा पानी मैं अपनी चुत में ही लुंगी खबरदार जो.... तुने अपना पानी कही और गिराया....गांड मारने के बाद चुत के अन्दर डाल कर गिराना....नहीं तो फिर कभी तुझे चुत नहीं दूंगी… और याद रख मैं इस काम में तेरी कोई मदद नहीं करने वाली मैं कुर्सी पकर कर खड़ी हो जाउंगी…..बस….” मैं राजी हो गया और तुंरत भागता हुआ रसोई से फ्रीज खोल मख्खन के दो तीन टुकड़े ले कर आ गया. दीदी तब तक सोफे वाली चेयर के ऊपर दो तकिया रख कर अपनी आधे धर को उस पर टिका कर गांड को हवा में लहरा रही थी. मैं जल्दी से उनके पीछे पहुँच कर उनके चुत्तरो को फैला कर मख्खन के टुकड़ो को एक-एक कर उनकी गांड में ठेलने लगा. गांड की गर्मी पा कर मख्खन पिघलता जा रहा था और उनकी गांड में घुस कर घुलता जा रहा था. मैंने धीरे धीरे कर के सारे टुकड़े डाल दिए फिर निचे झुक कर गांड को बाहर से चाटने लगा. पूरी गांड को थूक से लथपथ कर देने के बाद मैंने अपने लण्ड पर भी ढेर सारा थूक लगाया और फिर दोनों चुत्तरों को दोनों हाथ से फैला कर लण्ड को गांड की छेद पर लगा कर कमर से हल्का सा जोर लगाया. गांड इतनी चिकनी हो चुकी थी और छेद इतनी टाइट थी की लण्ड फिसल कर चुत्तरों पर लग गया. मैंने दो तीन बार और कोशिश की मगर हर बार ऐसा ही हुआ. दीदी इस पर बोली "देखा भाई मैं कहती थी न की एक दम टाइट है....कुत्ते....मेरी बात नहीं मान रहा था...किताब में लिखी हर बात.....सच नहीं....हाय तू तो....बेकार में....उफ्फ्फ्फ्फ्फ्फ़ कुछ होने वाला नहीं....दर्द भी होगा.....हाय.....चुत में पेल ले....ऐसा मत कर...." मगर मैं कुछ नहीं बोला और कोशिश करता रहा. थोड़ी देर में दीदी ने खुद से दया करते हुए अपने दोनों हाथो से अपने चुत्तरों को पकड़ कर खींचते हुए गांड के छेद को अंगूठा लगा कर फैला दिया और बोली "ले माधरचोद अपने मन की आरजू पूरी कर ले....साला हाथ धो के पीछे पड़ा है....ले अब घुसा....लण्ड का सुपाड़ा ठीक से छेद पर लगा कर उसके बाद....धक्का मार...धीरे धीरे मारना...हरामी....जोर से मारा तो गांड टेढा कर के लण्ड तोड़ दूंगी....." मैंने दीदी के फैले हुए गांड के छेद पर लण्ड के सुपाड़े को रखा और गांड तक का जोर लगा कर धक्का मारा. इस बार पक से मेरे लण्ड का सुपाड़ा जा कर दीदी की गांड में घुस गया. गांड की छेद फ़ैल गई. सुपाड़ा जब घुस गया तो फिर बाकी काम आसान था क्योंकि सबसे मोटा तो सुपाड़ा ही था. पर सुपाड़ा घुसते ही दीदी की गांड परपराने लगी.