दीदी का दीवाना compleet

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raj..
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Re: दीदी का दीवाना

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 23:13

सारे कपड़े अब खंगाले जा चुके थे. दीदी सीधी खड़ी हो गई और अपने दोनों हाथो को उठा कर उसने एक अंगराई ली और अपनी कमर को सीधा किया फिर दाहिनी तरफ घूम गई. मेरी किस्मत शायद आज बहुत अच्छी थी. दाहिनी तरफ घूमते ही उसकी दाहिनी चूची जो की अब नंगी थी मेरी लालची आँखों के सामने आ गई. उफ़ अभी अगर मैं अपने लण्ड को केवल अपने हाथ से छू भर देता तो मेरा पानी निकल जाता. चूची का एक ही साइड दिख रहा था. दीदी की चूची एक दम ठस सीना तान के खड़ी थी. ब्लाउज के ऊपर से देखने पर मुझे लगता तो था की उनकी चूचियां सख्त होंगी मगर 28-29 साल की होने के बाद भी उनकी चुचियों में कोई ढलकाव नहीं आया था. इसका एक कारण ये भी हो सकता था की उनको अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ था. दीदी को शायद ब्रा की कोई जरुरत ही नहीं थी. उनकी चुचियों की कठोरता किसी भी 17-18 साल की लौंडिया के दिल में जलन पैदा कर सकती थी. जलन तो मेरे दिल में भी हो रही थी इतनी अच्छी चुचियों मेरी किस्मत में क्यों नहीं है. चूची एकदम दूध के जैसी गोरे रंग की थी. चूची का आकार ऐसा था जैसे किसी मध्यम आकार के कटोरे को उलट कर दीदी की छाती से चिपका दिया गया हो और फिर उसके ऊपर किशमिश के एक बड़े से दाने को डाल दिया गया हो. मध्यम आकार के कटोरे से मेरा मतलब है की अगर दीदी की चूची को मुट्ठी में पकड़ा जाये तो उसका आधा भाग मुट्ठी से बाहर ही रहेगा. चूची का रंग चूँकि हद से ज्यादा गोरा था इसलिए हरी हरी नसे उस पर साफ़ दिखाई पर रही थी, जो की चूची की सुन्दरता को और बढा रही थी. साइड से देखने के कारण चूची के निप्पल वन-डायेमेन्शन में नज़र आ रहे थे. सामने से देखने पर ही थ्री-डायेमेन्शन में नज़र आ सकते थे. तभी उनकी लम्बाई, चौड़ाई और मोटाई का सही मायेने में अंदाज लगाया जा सकता था मगर क्या कर सकता था मजबूरी थी मैं साइड व्यू से ही काम चला रहा था. निप्पलों का रंग गुलाबी था, पर हल्का भूरापन लिए हुए था. बहुत ज्यादा बड़ा तो नहीं था मगर एक दम छोटा भी नहीं था किशमिश से बड़ा और चॉकलेट से थोड़ा सा छोटा. मतलब मुंह में जाने के बाद चॉकलेट और किशमिश दोनों का मजा देने वाला. दोनों होंठो के बीच दबा कर हलके-हलके दबा-दबा कर दांत से काटते हुए अगर चूसा जाये तो बिना चोदे झर जाने की पूरी सम्भावना थी


raj..
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Re: दीदी का दीवाना

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 23:13

दीदी का दीवाना पार्ट-3

दाहिनी तरफ घूम कर आईने में अपने दाहिने हाथ को उठा कर देखा फिर बाएं हाथ को उठा कर देखा. फिर अपनी गर्दन को झुका कर अपनी जांघो के बीच देखा. फिर वापस नल की तरफ घूम गई और खंगाले हुए कपरों को वही नल के पास बनी एक खूंटी पर टांग दिया और फिर नल खोल कर बाल्टी में पानी भरने लगी. मैं समझ गया की दीदी अब शायद नहाना शुरू करेंगी. मैंने पूरी सावधानी के साथ अपनी आँखों को लकड़ी के पट्टो के गैप में लगा दिया. मग में पानी भर कर दीदी थोड़ा सा झुक गई और पानी से पहले अपने बाएं हाथ फिर दाहिनी हाथ के कान्खो को धोया. पीछे से मुझे कुछ दिखाई नहीं पर रहा था मगर. दीदी ने पानी से अच्छी तरह से धोने के बाद कान्खो को अपने हाथो से छू कर देखा. मुझे लगा की वो हेयर रेमोविंग क्रीम के काम से संतुष्ट हो गई और उन्होंने अपना ध्यान अब अपनी जांघो के बीच लगा दिया. दाहिने हाथ से पानी डालते हुए अपने बाएं हाथ को अपनी जांघो बीच ले जाकर धोने लगी. हाथों को धीरे धीरे चलाते हुए जांघो के बीच के बालों को धो रही थी. मैं सोच रहा था की काश इस समय वो मेरी तरफ घूम कर ये सब कर रही होती तो कितना मजा आता. झांटों के साफ़ होने के बाद कितनी चिकनी लग रही होगी दीदी की चुत ये सोच का बदन में झन-झनाहट होने लगी. पानी से अपने जन्घो के बीच साफ़ कर लेने के बाद दीदी ने अब नहाना शुरू कर दिया. अपने कंधो के ऊपर पानी डालते हुए पुरे बदन को भीगा दिया. बालों के जुड़े को खोल कर उनको गीला कर शैंपू लगाने लगी. दीदी का बदन भीग जाने के बाद और भी खूबसूरत और मदमस्त लगने लगा था. बदन पर पानी पड़ते ही एक चमक सी आ गई थी दीदी के बदन में. शैंपू से खूब सारा झाग बना कर अपने बालों को साफ़ कर रही थी. बालो और गर्दन के पास से शैंपू मिला हुआ मटमैला पानी उनकी गर्दन से बहता हुआ उनकी पीठ पर चुते हुए निचे की तरफ गिरता हुआ कमर के बाद सीधा दोनों चुत्तरों के बीच यानी की उनके बीच की दरार जो की दीदी की गांड थी में घुस रहा था. क्योंकि ये पानी शैंपू लगाने के कारण झाग से मिला हुआ था और बहुत कम मात्रा में था इसलिए गांड की दरार में घुसने के बाद कहा गायब हो जा रहा था ये मुझे नहीं दिख रहा था. अगर पानी की मात्रा ज्यादा होती तो फिर वो वहां से निकल कर जांघो के अंदरूनी भागो से ढुलकता हुआ निचे गिर जाता. बालों में अच्छी तरह से शैंपू लगा लेने के बाद बालों को लपेट कर एक गोला सा बना कर गर्दन के पास छोड़ दिया और फिर अपने कंधो पर पानी डाल कर अपने बदन को फिर से गीला कर लिया. गर्दन और पीठ पर लगा हुआ शैंपू मिला हुआ मटमैला पानी भी धुल गया था. फिर उन्होंने एक स्पोंज के जैसी कोई चीज़ रैक पर से उठा ली और उस से अपने पुरे बदन को हलके-हलके रगरने लगी. पहले अपने हाथो को रगरा फिर अपनी छाती को फिर अपनी पीठ को फिर बैठ गई. निचे बैठने पर मुझे केवल गर्दन और उसके निचे का कुछ हिस्सा दिख रहा था. पर ऐसा लग रहा था जैसे वो निचे बैठ कर अपने पैरों को फैला कर पूरी तरह से रगर कर साफ़ कर रही थी क्योंकि उनका शरीर हिल रहा था. थोरी देर बाद खड़ी हो गई और अपने जांघो को रगरना शुरू कर दिया. मैं सोचने लगा की फिर निचे बैठ कर क्या कर रही थी. फिर दिमाग में आया की हो सकता है अपने पैर के तलवे और उँगलियों को रगर कर साफ़ कर रही होंगी. मेरी दीदी बहुत सफाई पसंद है. जैसे उसे घर के किसी कोने में गंदगी पसंद नहीं है उसी तरह से उसे अपने शरीर के किसी भी भाग में गंदगी पसंद नहीं होगी. अब वो अपने जांघो को रगर रगर कर साफ़ कर रही थी और फिर अपने आप को थोड़ा झुका कर अपनी दोनों जांघो को फैलाया और फिर स्पोंज को दोनों जांघो के बीच ले जाकर जांघो के अंदरूनी भाग और रान को रगरने लगी. पीछे से देखने पर लग रहा था जैसे वो जांघो को जोर यानि जहाँ पर जांघ और पेट के निचले हिस्से का मिलन होता और जिसके बीच में चूत होती है को रगर कर साफ़ करते हुए हलके-हलके शायद अपनी चूत को भी रगर कर साफ़ कर रही थी ऐसा मेरा सोचना है. वैसे चुत जैसी कोमल चीज़ को हाथ से रगर कर साफ़ करना ही उचित होता. वाकई ऐसा था या नहीं मुझे नहीं पता, पीछे से इस से ज्यादा पता भी नहीं चल सकता था. थोड़ी देर बाद थोड़ा और झुक कर घुटनों तक रगर कर फिर सीधा हो कर अपने हाथों को पीछे ले जाकर अपने चुत्तरों को रगरने लगी. वो थोड़ी-थोड़ी देर में अपने बदन पर पानी डाल लेती थी जिस से शरीर का जो भाग सुख गया होता वो फिर से गीला हो जाता था और फिर उन्हें रगरने में आसानी होती थी. चुत्तरों को भी इसी तरह से एक बार फिर से गीला कर खूब जोर जोर से रगर रही थी. चुत्तरों को जोर से रगरने से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था क्योंकि वहां का मांस बहुत मोटा था, पर जोर से रगरने के कारण लाल हो गया था और थल-थलाते हुए हिल रहा था. मेरे हाथों में खुजली होने लगी थी और दिल कर रहा था की थल-थलाते हुए चुत्तरों को पकड़ कर मसलते हुए हलके-हलके मारते हुए खूब हिलाउ. चुत्तारों को रगरने के बाद दीदी ने स्पोंज को दोनों चुत्तरों की दरार के ऊपर रगरने लगी फिर थोड़ा सा आगे की तरफ झुक गैई जिस से उसके चुत्तर फ़ैल गए. फिर स्पोंज को दोनों चुत्तरों के बीच की खाई में डाल कर रगड़ने लगी. कोमल गांड की फूल जैसी छेद शायद रगड़ने के बाद लाल हो गुलाब के फूल जैसी खिल जायेगी. ये सोच कर मेरे मन में दीदी की गांड देखने की तीव्र इच्छा उत्पन्न हो गई. मन में आया की इस लकड़ी की दिवार को तोड़ कर सारी दुरी मिटा दू, मगर, सोचने में तो ये अच्छा था, सच में ऐसा करने की हिम्मत मेरी गांड में नहीं थी. बचपन से दीदी का गुस्सैल स्वभाव देखा था, जानता था, की जब उस दुबई वाले को नहीं छोड़ती थी तो फिर मेरी क्या बिसात. गांड पर ऐसी लात मारेगी की गांड देखना भूल जाऊंगा. हालाँकि दीदी मुझे प्यार भी बहुत करती थी और मुझे कभी भी परेशानी में देख तुंरत मेरे पास आ कर मेरी समस्या के बारे में पूछने लगती थी.

स्पोंज से अपने बदन को रगड़ने के बाद. वापस स्पोंज को रैक पर रख दिया और मग से पानी लेकर कंधो पर डालते हुए नहाने लगी. मात्र स्पोंज से सफाई करने के बाद ही दीदी का पूरा बदन चम-चमाने लगा था. पानी से अपने पुरे बदन को धोने के बाद दीदी ने अपने शैंपू लगे बालों का गोला खोला और एक बार फिर से कमर के पास से निचे झुक गई और उनके चुत्तर फिर से लकड़ी के पट्टो के बीच बने गैप के सामने आ गए. इस बार उनके गोरे चम-चमाते चुत्तरों के बीच की चमचमाती खाई के आलावा मुझे एक और चीज़ के दिखने को मिल रही थी. वो क्या थी इसका अहसास मुझे थोड़ी देर से हुआ. गांड की सिकुरी हुई छेद से करीब चार अंगुल भर की दूरी पर निचे की तरफ एक लम्बी लकीर सी नज़र आ रही थी. मैं ये देख कर ताज्जुब में पर गया, पर तभी ख्याल आया की घोंचू ये तो शायद चूत है. पहले ये लकीर इसलिए नहीं नज़र आ रही थी क्योंकि यहाँ पर झान्ट के बाल थे, हेयर रिमुविंग क्रीम ने जब झांटो की सफाई कर दी तो चूत की लकीर स्पष्ट दिखने लगी. इस बात का अहसास होते ही की मैं अपनी दीदी की चूत देख रहा हूँ, मुझे लगा जैसे मेरा कलेजा मुंह को आ जायेगा और फिर से मेरा गला सुख गया और पैर कांपने लगे. इस बार शायद मेरे लण्ड से दो बूँद टपक कर निचे गिर भी गया पर मैंने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया. लण्ड भी मारे उत्तेजना के काँप रहा था. बाथरूम में वैसे तो लाइट आँन थी मगर चूँकि बल्ब भी लकरी के पट्टो के सामने ही लगा हुआ था इसलिए दीदी की पीठ की तरफ रोशनी कम थी. फिर भी दोनों मोटी जांघो के बीच ऊपर की तरफ चुत्तरों की खाई के ठीक निचे एक गुलाबी लकीर सी दिख रही थी. पट्टो के बीच से देखने से ऐसा लग रहा था जैसे सेब या पके हुए पपीते के आधे भाग को काट कर फिर से आपस में चिपका कर दोनों जांघो के बीच फिट कर दिया गया है. मतलब दीदी की चूत ऐसी दिख रही थी जैसे सेब को चार भागो में काट कर फिर दो भागो को आपस में चिपका कर गांड के निचे लगा दिया गया हो. कमर या चुत्तरों के इधर-उधर होने पर दोनों फांकों में भी हरकत होती थी और ऐसा लगता जैसे कभी लकीर टेढी हो गई है कभी लकीर सीधी हो गई है. जैसे चूत के दोनों होंठ कभी मुस्कुरा रहे है कभी नाराज़ हो रहे है. दोनों होंठ आपस में एक दुसरे से एक दम सटे हुए दिख रहे थे. होंठो के आपस में सटे होने के मतलब बाद में समझ में आया की ऐसा चूत के बहुत ज्यादा टाइट होने के कारण था. दोनों फांक एक दम गुलाबी और पावरोटी के जैसे फूले हुए थे. मेरे मन में आया की काश मैं चूत की लकीर पर ऊपर से निचे तक अपनी ऊँगली चला और हलके से दोनों फांकों को अलग कर के देख पाता की कैसी दिखती है, दोनों गुलाबी होंठो के बीच का अंदरूनी भाग कैसा है मगर ये सपना ही रह गया. दीदी के बाल धुल चुके थे और वो सीधी खड़ी हो गई.

raj..
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Re: दीदी का दीवाना

Unread post by raj.. » 02 Nov 2014 23:14

बालो को अच्छी तरह से धोने के बाद फिर से उनका गोला बना कर सर के ऊपर बाँध लिया और फिर अपने कंधो पर पानी डाल कर अपने आप को फिर से गीला कर पुरे बदन पर साबुन लगाने लगी. पहले अपने हाथो पर अच्छी तरह से साबुन लगाया फिर अपने हाथो को ऊपर उठा कर वो दाहिनी तरफ घूम गई और अपने कान्खो को आईने में देख कर उसमे साबुन लगाने लगी. पहले बाएं कांख में साबुन लगाया फिर दाहिने हाथ को उठा कर दाहिनी कांख में जब साबुन लगाने जा रही थी तो मुझे हेयर रिमुविंग क्रीम का कमाल देखने को मिला. दीदी की कांख एक दम गोरी, गुलाबी और चिकनी हो गई थी. जीभ लगा कर चाटो तो जीभ फिसल जाये ऐसी चिकनी लग रही थी. दीदी ने खूब सारा साबुन अपनी कान्खो में लगाया और फिर वैसे ही अपनी छाती पर रगर-रगर कर साबुन लगाने लगी. छाती पर साबुन का खूब सारा झाग उत्पन्न हो रहा था. दीदी का हाथ उसमे फिसल रहा था और वो अपनी ही चुचियों के साथ खिलवार करते हुए साबुन लगा रही थी. कभी निप्पल को चुटकियों में पकर कर उन पर साबुन लगाती कभी पूरी चूची को दोनों हाथो की मुट्ठी में कस कर साबुन लगाती. साबुन लगाने के कारण दीदी की चूची हिल रही थी और थलथला रही थी. चुचियों के हिलने का नज़ारा लण्ड को बेकाबू करने के लिए काफी था. तभी दीदी वापस नल की तरफ घूम गई और फिर निचे झुक कर पैरों पर साबुन लगाने के बाद सीधा हो कर अपनी जांघो पर साबुन लगाने लगी. दोनों जांघो पर साबुन लगाने के बाद अपने हाथो में ढेर सारा साबुन का झाग बना कर अपनी जांघो को फैला कर उनके बीच अपने हाथों को घुसा दिया. हाथ चलाते हुए अपनी चूत पर साबुन लगाने लगी. अच्छी तरह से चूत पर साबुन लगा लेने के बाद जैसा की मैंने सोचा था गांड की बारी आई और फिर पहले अपने चुतरों पर साबुन लगा लेने के बाद अपने हाथो में साबुन का ढेर सारा झाग बना कर अपने हाथो को चुत्तरों की दरार में घुसा दिया और ऊपर से निचे चलाती हुई अपनी गांड की खाई को रगरते हुए उसमे साबुन लगाने लगी. गांड में साबुन लगाने से भी खूब सारा झाग उत्पन्न हो रहा था. खूब अच्छी तरह से साबुन लगा लेने के बाद. नल खोल कर मग से पानी उठा-उठा कर दीदी ने अपना बदन धोना शुरू कर दिया. पानी धीरे-धीरे साबुन को धो कर निचे गिराता जा रहा था और उसी के साथ दीदी के गोरे बदन की सुन्दरता को भी उजागर करता जा रहा था. साबुन से धुल जाने के बाद दीदी का गोरा बदन एक दम ढूध का धुला लग रहा था. जैसे बाथरूम के उस अंधियारे में चांदनी रौशन हो गई थी. ऊपर से निचे तक दीदी का पूरा बदन चम-चमा रहा था. मेरी आंखे चुंधिया रही थी और मैं अपनी आँखों को फार कर ज्यादा से ज्यादा उसके मद भरे यौवन का रस अपनी आँखों से पी जाना चाहता था. मेरे पैर थक चुके थे और कमर अकड़ चूँकि थी मगर फिर भी मैं वह से हिल नहीं पा रहा था. अपने पुरे बदन को धो लेने के बाद दीदी ने खूंटी पर टंगा तौलिया उतारा और अपने बदन को पोछने लगी. पुरे बदन को तौलिये से हौले-हौले दबा कर पोछने के बाद अपने सर को बालों को तौलिये से हल्के से पोछा और तौलिये को बालों में लपेट कर एक गोला बना दिया. फिर दाहिनी तरफ घूम कर आईने के सामने आ गई. दाहिनी चूची जो की मुझे इस समय दिख रही थी थोड़ी लाल या फिर कहे तो गुलाबी लग रही थी. ऐसा शायद रगर का सफाई करने के कारण हुआ होगा, निप्पल भी थोड़ी काली लग रही थी ऐसा शायद उनमे खून भर जाने के कारण हुआ होगा. दीदी ने अपने आप को आईने अच्छी तरह से देखा फिर अपने दोनों हाथो को उठा कर बारी-बारी से अपनी कान्खो को देखा और सुंघा भी, फिर अपने दोनों जांघो के बीच अच्छी तरह से देखा, अपने चेहरे का हर कोण से अच्छी तरह से आईने में देखा और फिर अपनी नजरो को निचे ले जा कर अपने पैरों आदि को देखने लगी. मैं समझ गया की अब दीदी बाहर निकलेंगी. इस से पहले की वो बाहर निकले मुझे चुप चाप निकल जाना चाहिए. मैं जल्दी से बाहर निकला और साइड में बने बेसीन पर अपना हाथ धोया और एक शर्ट पहन कर चुपचाप बाहर निकल गया. मैं किसी भी तरह का खतरा नहीं मोलना चाहता चाहता था इसलिए बाहर निकल पहले अपने आप को सयंत किया, अपने उखरे हुए सांसो पर काबू पाया और फिर करीब पंद्रह मिनट के बाद घर में फिर से दाखील हुआ.


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