मैंने 'लिव-इन रिलेशनशिप' का बच्चा क्यों पैदा किया

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मैंने 'लिव-इन रिलेशनशिप' का बच्चा क्यों पैदा किया

Unread post by admin » 04 Aug 2019 07:43

जब प्यार हुआ तो इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा कि वो ना मेरे देश का था, ना मेरे मज़हब का, ना मेरी जाति का. पर अब हमारे लिव-इन रिलेशनशिप को टूटे एक महीना ही हुआ था और मैं उसके बच्चे की मां बननेवाली थी.

मेरे सारे दोस्तों को लग रहा था कि मैं पागल हो गई हूं क्योंकि मैं, 21 साल की कुंवारी लड़की, ये बच्चा रखना चाहती थी.

मुझे भी ऐसा ही लग रहा था कि मैं पागल हो जाऊंगी. मन ऐसा घबरा रहा था जैसे कुछ बहुत बुरा होने वाला है. पर जो बुरा होना था वो तो हो चुका था.

मैं 19 साल की थी जब मुस्तफ़ा से मिली. उत्तर-पूर्व के अपने छोटे से शहर को छोड़कर मैंने देश के दूसरे सिरे में एक बड़े शहर में कॉल सेंटर में नौकरी करनी शुरू ही की थी.

मुस्तफ़ा अफ़्रीकी मूल का था. वो 'टॉल, डार्क ऐंड हैंडसम' वाली कैटिगरी में फ़िट बैठता था. उसमें 'स्वैग' था. मेरा जवां दिल उसकी तरफ़ खिंचा चला गया. एक-डेढ़ साल की दोस्ती और के बाद हमने साथ रहना शुरू कर दिया.

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मैं क्रिश्चियन हूं और वो मुसलमान. हमें एक दूसरे से प्यार भी था लेकिन शादी की बात सोचने की हिम्मत दोनों में ही नहीं थी.

हम सपनों की उस दुनिया में जी रहे थे जहां आगे की ज़िंदगी के बारे में कुछ भी सोचना बेमानी सा लगता है. उसके बहुत से दोस्त थे जो हमेशा हमारे घर आया करते थे. मैं भी उनसे खुलकर हंसती-बोलती थी.

पता नहीं क्यों, मुस्तफ़ा के मन में शक़ घर करने लगा. उसे लगता था कि मेरा उसके दोस्तों के साथ अफ़ेयर है और इस बात को लेकर हमारी लड़ाइयां होने लगीं.

धीरे-धीरे ये इतनी कड़वीं हो गईं कि हमारे दिन एक दूसरे पर चीखते-चिल्लाते बीतने लगे. आख़िर हमने ब्रेकअप कर लिया.

#HerChoice जब मुझे मालूम चला कि नपुंसक से मेरी शादी हुई है

#HerChoice आख़िर क्यों मैंने एक औरत के साथ रहने का फ़ैसला किया?

मैं बहुत दुखी रहने लगी, घंटों रोती रहती और इसका असर मेरे काम पर भी पड़ने लगा. मेरी नौकरी छूट गई.
वापस घर जाने का इरादा

मैंने तय किया कि वापस घर जाऊंगी. अपने इस छोटे से अपार्टमेंट और उसके साथ जुड़े अनुभवों से दूर जाना चाहती थी.

लेकिन मेरी सारी प्लानिंग फेल हो गई जब उस महीने मेरे पीरियड्स नहीं आए. पास की एक दुकान से 'प्रेगनेंसी टेस्टिंग किट' लेकर आई तो मेरा डर सही साबित हुआ. रिज़ल्ट 'पॉज़िटिव' था.

मुस्तफ़ा के साथ रहने के बाद ये दूसरी बार था कि मैं प्रेगनेंट हुई थी. पहली बार उसके दबाव में मैंने अबॉर्शन करवा दिया था. पर इस बार...

मैंने मुस्तफ़ा को फ़ोन कर एक कैफ़े में बुलाया. आमने-सामने बैठ जब उसे बताया तो मुझ पर ही चिल्लाने लगा, कि मैंने सावधानी क्यों नहीं बरती.

उसने मुझे सैकड़ों वजहें गिनाई और बच्चा गिराने के लिए मनाने की कोशिश की. ये तक कह डाला कि वो यक़ीन कैसे कर ले कि बच्चा उसी का है!

लेकिन मैंने ज़िद पकड़ ली थी. जब पहला बच्चा गिराया था तो लगा था कि जैसे मैंने किसी का ख़ून किया है.

दोबारा अपने ही बच्चे का ख़ून करने की हिम्मत मुझमें नहीं थी. ऐसा नहीं कि मुझे डर नहीं लग रहा था. मेरे तो आंसू रुक ही नहीं रहे थे.

अपने प्रेम संबंधों के लिए मां-बाप ने मुझे छोड़ दिया

मैं शादीशुदा नहीं थी और न ही मेरे पास कोई अच्छी नौकरी थी. बच्चे का बाप तो उसे अपना मानने को तैयार तक नहीं था.

लेकिन साथ ही ऐसा भी लग रहा था कि भगवान शायद मुझे मौक़ा दे रहा है एक नई ज़िंदगी शुरू करने का.

अब तक मैं एक लापरवाह युवा की ज़िंदगी जी रही थी, सबको शक़ था कि मैं एक बच्चे को नहीं पाल पाऊंगी.

मुझे भी मालूम था कि मेरा रास्ता आसान नहीं है पर अब मेरे पास ज़िम्मेदार होने की एक वजह थी. मेरे अजन्मे बच्चे का प्यार मुझे उसे इस दुनिया में लाने को कह रहा था.

मैंने डरते-डरते अपने परिवार को इस बारे में बताया. उन्हें मुस्तफ़ा के बारे में पहले से पता था लेकिन मेरी प्रेगनेंसी की बात सुनकर वो बहुत गुस्सा हुए.

वो इस बात से उतने नाराज़ नहीं थे कि मैं शादी से पहले मां बनने जा रही हूं. बल्कि इससे कि वो बच्चा एक काले, विदेशी और उनकी जाति के बाहर के लड़के का था.

मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि मैं सब कुछ ख़ुद संभाल लूंगी. उन्होंने भी दोबारा मदद के लिए नहीं पूछा.

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#HerChoice 'गाली भी महिलाओं के नाम पर ही दी जाती है!'

इस मुश्किल वक़्त में मेरी एक दोस्त ने बहुत मदद की. उसी की स्कूटी चलाकर मैं मेडिकल चेकअप के लिए डॉक्टर के पास जाया करती थी.
सेल्स गर्ल की नौकरी

अपना ख़र्च चलाने के लिए मैंने एक दुकान में सेल्स गर्ल का काम करना शुरू किया. इस बीच, मुस्तफ़ा ने मुझे मनाने की कोशिशें ज़ारी रखीं पर मेरा फ़ैसला पक्का था.

डिलिवरी वाले दिन मेरी दोस्त मुझे स्कूटी पर बैठाकर हॉस्पिटल ले गई. एक घंटे बाद सिज़ेरियन ऑपरेशन से मेरे बच्चे का जन्म हुआ.

जब मुझे होश आया तो बच्चा मेरी दोस्त की गोद में था और डॉक्टर मेरे पास खड़ी मुस्कुरा रही थीं. मैं बहुत ख़ुश थी. लग रहा था सब ठीक होने वाला है.

शाम को मुस्तफ़ा भी हॉस्पिटल आया. उसने बच्चे को गोद में उठाया और अपने दोस्तों को फ़ोन करके बताया कि वो एक बेटे का पिता बन चुका है.

मुस्तफ़ा को इतना खुश देख मैं हैरान रह गई. पर वो अब भी अपने परिवार को इस बारे में बताने की हिम्मत नहीं कर पा रहा था.

उसने दोबारा रिश्ता शुरू करने की बात कही. वो बच्चे को मुस्लिम नाम भी देना चाहता था. लेकिन मैंने इनकार कर दिया और अपने बच्चे को क्रिश्चियन नाम दिया.

मैं मुस्तफ़ा पर भरोसा नहीं कर पा रही थी. कुछ दिनों बाद मेरी मां और कज़िन भी मेरे पास आ गए. अब मैं अकेली नहीं थी.

अगले साल मुस्तफ़ा भारत से अपने देश लौट गया और फिर मेरी ज़िंदगी में कभी वापस नहीं आया.

अब मैं 29 साल की हूं और मेरा बेटा छह साल का होने जा रहा है. ये व़क्त बहुत मुश्किल था पर उसे बड़ा करते-करते मैं और निडर हो गई हूं.

मैं लोगों को बेझिझक बताती हूं कि मेरी शादी नहीं हुई और मेरा एक बेटा है. उससे भी कहती हूं कि अगर कोई उसके पापा का नाम पूछे तो वो मुस्तफ़ा बताए.

मुझे अपने फ़ैसले पर कोई पछतावा नहीं है. मैं ख़ुश हूं. मेरा बेटा अब मेरी मां के घर में रहता है क्योंकि मैं यहां अपना करियर बना रही हूं.

अब पार्टियों और इवेंट्स में गाना गाती हूं. पैसे जमा कर अपने बेटे का भविष्य सुरक्षित बनाने की कोशिश कर रही हूं. वो बहुत ही प्यारा बच्चा है.

मुस्तफ़ा के साथ मेरा रिश्ता हमेशा के लिए ख़त्म हो गया लेकिन ये हमेशा ख़ास रहेगा. इस रिश्ते से मैंने जीना सीखा है.

मैं सब कुछ भुलाकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रही हूं. मैं दोबारा प्यार करना चाहती हूं. शादी भी. लेकिन जल्दबाज़ी नहीं है.

किस्मत में होगा, तो ये भी हो जाएगा.

(ये पूर्वोत्तर भारत की एक महिला की वास्तविक कहानी है जो बीबीसी संवाददाता सिन्धुवासिनी से बातचीत पर आधारित है. महिला के आग्रह पर नाम बदल दिए गए हैं. इस सिरीज़ की प्रोड्यूसर दिव्या आर्य हैं.)

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