Page 1 of 2

बाली उमर में पहला प्यार old but gold sex story

Posted: 04 Aug 2019 07:47
by admin
प्रीत‍ि सोनी
एक नाम सुनते ही अचानक से दूसरी दुनिया में खो सी गई थी रिया। कॉलेज की जिंदगी का आखि‍री साल था, और गर्मी की सुबह पेपर देने जाते वक्त पुराने दिनों की याद उसे हमेशा की तरह आ ही गई थी। जब वह किशोरावस्था की चौखट पर जाकर खड़ी ही थी, उसे अपने रंग रूप पर थोड़ा-थोड़ा गुमान होने लगा था। उसकी उम्र से कुछ साल बड़े युवा लड़कों की निहारती आंखें, उसे इतना तो बता ही चुकी थी कि वह खूबसूरत है। जब भी वह कहीं जाती, लोग भीड़ में भी उसे निहारते....कभी- कभी वह मन ही मन इतराती, तो कभी गंदी निगाहों से खुद को बचाती। लेकिन उसका मन कहीं जाकर अटका हो, ऐसा तो अब तक नहीं हुआ था।

नजरें टिकी न थी किसी पे, पर नजरें कमाल थी
सब ताकते थे उसको, वो बेमिसाल थी >
>
एक रात चाची के घर बैठ कर टीवी देख रही थी, उसी वक्त दरवाजे पर कोई आया था। दरवाजा खुला हुआ था। रिया ने झांक कर देखा, तो बाहर कोई रिश्तेदार दरवाजे पर खड़ा था। चाची ने उन्हें अंदर बुलाया। रिया को इससे कोई मतलब नहीं था, कि घर में कौन आया है। उसे बस अपने टीवी देखने से मतलब था, जो वह बड़ी तल्लीनता से देख रही थी। इतनी देर में रिश्तेदार भी उसी कमरे में आकर बैठ गए जहां रिया तकिये से टिककर टीवी देख रही थी। लेकिन रिश्तेदार के साथ जो अजनबी चेहरा कमरे में दाखि‍ल हुआ, तो रिया का ध्यान अचानक ही उस चेहरे पर चला गया। सांवला सा चेहरा था। रिया चुपचाप उठकर किचन में चली गई। नाश्ता बनाने में चाची की मदद करने के लिए।

देखकर भी अनदेखा करना, जानते हैं मगर
ध्यान कैसे हटाएं ये जान न पाया कोई

चाची, पकौड़े का घोल तैयार कर पकौड़े तल रही थी, इतने में रिया के भैया भी आ गए, और उस नवेले चेहरे की पूछताछ शुरू हो गई। निशांत नाम था उसका। और वह रिया के घर के पीछे सफेद वाले घर में रहता था। लेकिन रिया के भैया के मुताबिक वह सफेद घर तो किसी पुलिस वाले का था। भैया ने फिर पूछा- कि आपके घर में कोई पुलिस वि‍भाग में है क्या ... जवाब आया.. हां मेरे फूफाजी हैं। भैया तो संतुष्ट हो गए लेकिन एक कन्फ्यूजन जरूर हो गया।
वो कुछ और कहते रहे, हम कुछ और समझ बैठे
इसी गलतफैमी में, दिल किसी और को दे बैठे

बातों का सिलसिला चल ही रहा था इतने में रिया गरम-गरम पकौड़े लेकर कमरे में आई। रिया ने जिद कर-कर के बड़े प्यार से उन लोगों के पकौड़े खिलाए। नाश्ता चल ही रह था, कि रिया उठकर कमरे से बहर जाने लगी। रास्ते में कुर्सियां रखी हुई थी, जिन्हें हटाते हुए निशांत ने रिया के लिए रास्ता बनाया। बस फिर क्या था, बाली उमर पर लड़कों की इन्हीं शराफत का अक्सर का जादू चल जाता है, सो चल ही गया ....।

वो मनचलों पर न मचला जो दिल था मेरा
तेरी शराफत पे सब जीत कर भी हार बैठे हम

Re: बाली उमर में पहला प्यार old but gold sex story

Posted: 04 Aug 2019 07:47
by admin
बातों का सिलसिला खत्म हुआ और मेहमान अपने घर को चले। लेकिन इसके साथ ही एक और भी सिलसिला चल पड़ा था। हर शाम अब रिया जब अपनी छत पर जाती, तो उसकी नजरें घर के पीछे वाले सफेद घर पर होती, जिन्हें छत पर किसी के आने का इंतजार रहता था। कुछ दिनों तक यही चलता रहा, लेकिन रिया के साथ अजीब वाक्या होता था। रिया जिस छत पर किसी चेहरे को ढूंढती, वहां उसे कोई नजर नहीं आता। लेकिन उस सफेद घर के बगल वाले एक छोटे से घर की छत पर जरूर कोई उसे देखने के लिए रोज आया करता था। रिया कुछ समझ नहीं पा रही थी। वह ये जानने का प्रयास कर रही थी कि क्या यह शख्स वही है जो उसके घर का मेहमान बनकर आया था, और दिल में बस गया .... या फिर कोई अजनबी चेहरा। लेकिन यह चेहरा अजनबी तो नहीं लगता। बहुत कुछ जाना पहचाना अैर अपना सा लगता है।


वो शक्ल दिल के हर कोने में ढल गई जैसे
आजतक अजनबी न लगा जो अजनबी था मुझसे

रि‍या ने अभी नौवीं की परीक्षा पास की थी ।वो गर्मी कि छुट्टियां ही थी, जब छत पर हर शाम एक दूसरे की झलक दिखाई देती थी। घर बहुत पास भी नहीं था इसीलिए चेहरा भी धुंधला सा ही दिखाई देता था। लेकिन छत पर उसका होना ही दिल के रूमानियत के हजारों जज्बातों से भर देता था। दोनों एक दूसरे की निगाहों से छुपते छुपाते एक दूसरे को देखा करते थे। और अब यह आदत बन चुकी थी, कि शाम से लेकर रात को छत पर सोने तक निगाहें उस छत पर होती थी। सुबह उठते ही निगाहें फिर उसी छत पर जा टिकती थी। दोनों की ही छत पर किनार नहीं होने का सबसे बड़ा फायदा यही था। जब जिसकी नींद खुलती, बिस्तर पर लेटे-लेटे ही एक दूसरे को देखना शुरू कर देता। जैसे दुनिया भर की रूमानियत इन दोनों को बख्शी हो खुदा ने।

तुझे देख-देख सोना, तुझे देखकर है जगना
मैनें ये जिंदगानी संग तेरे बितानी तुझमे बसी है मेरी जान
हाय, जिया धड़क-धड़क जाए...

अब रिया को वह सांवली शक्ल कुछ भोली सी लगने लगी थी । गर्मी की छुट्टि‍यों का हर दिन लगभग ऐसे ही गुजरने लगा। उधर निशांत भी बारहवीं क्लास पास करके, इस साल कॉलेज में दाखि‍ल होने वाला था। अब यह सिलसिला बढ़ने लगा था और रिया की सहेलियां भी उस अजनबी के किस्सों से वाकिफ थीं।कॉलेज खुल चुके थे, रिया की सहेली दीप्ती भी इस साल कॉलेज जाने वाली थी, जिसका उत्साह रिया और पारूल पर भी चढ़ा था। भले ही रिया और पारूल स्कूल में थे लेकिन तीनों मिलकर घंटों तक स्कूल कॉलेज और जहान की बातें करते और हंसी ठहाके लगाते ।

गर्मी की छुट्टियां खत्म हुई ।रिया और पारूल के स्कूल शुरू हुए और दीप्ती के कॉलेज ।अब तीनों सहेलियों के बीच चर्चा का नया विषय केवल कॉलेज के किस्से थे जो दीप्ती उन्हें सुनाती थी और तीनों मिलकर मजे से चर्चा करती । कॉलेज के दिन में पहला प्यार न हो ऐसा कम ही होता है ।बाली उमर पर प्यार के छींटे पड़ ही जाते हैं । >
वो उमर निकल जाए बगैर भ्‍िागोए किसी को > ये मोहब्बत का रंग इतना हल्का भी नहीं
अब दीप्ती को भी कॉलेज में कोई पसंद आने लगा था, जिसके बारे में खुब बातें होती। दीप्ति‍ अपने किस्से सुनाती और रिया अपनी छत वाले किस्से। जब से रिया के स्कूल खुले थे, निशांत रोज सुबह उसे स्कूल के समय पर दिखाई देता था। निशांत ने रिया को देखने के लिए सुबह की सैर शुरू की थी। रिया सायकल से स्कूल जा रही होती और निशांत सेर से लौट रहा होता। फिर दोनों की नजरें मिलती... धड़कते दिल से एक दूसरे को देखकर दोनों आगे निकल जाते। जो बिजलियां गिरती थी सुबह सुबह, उसकी कसक दोनों ही जानते थे बस।

Re: बाली उमर में पहला प्यार old but gold sex story

Posted: 04 Aug 2019 07:48
by admin
इधर दीप्ती का एकतरफा आकर्षण भी अपनी कहानी गढ़ रहा था। शहर में एक छोटा सा मेला लगा हुआ था। पारूल का प्रोग्राम तो नहीं बन पाया लेकिन दीप्ति और रिया अपनी सायकल से मेला देखने निकले ही थे कि कुछ दूर आगे जाकर निशांत दिखाई दिया जो अपनी सायकल से कहीं जा रहा था। रिया के मन में लड्डू फूट रहे थे, दीप्ति को यह बताने के लिए कि यही है वह लड़का, जो उसे छत से देखता है। रिया ने आगे निकल चुकी दीप्ति को आवाज लगाई और खुशी से फूली न समाते हुए कहा- दीप्ति यही है वो ....। दीप्ति भी बेहद उत्साहित थी निशांत के देखकर। वह भी रिया को यही बताना चाहती थी- कि यही है वह, जिसे कॉलेज में दीप्ति पसंद करती है ।
गुड्डे-गुडि़याेें और कपड़े तो होते थे एक जैसे प्यार में यही इत्तफाक हुआ > मोहब्बत भी हुई तो एक ही शख्स से उनको >
कहानी में ना मोड़ आ चुका था। दोनों हैरान भी थी और हंसी भी नहीं रूक रह थी। हालांकि निशांत का झुकाव रिया की तरह था ,इसीलिए दीप्ति ने ध्यान हटाना ही उचित समझा और अपनी दोस्ती निभाई। अब दीप्ति ने ही निशांत का नाम पता करके रिया को बताया। बस फिर क्या था, नाम और सरनेम जानकर तो टेलीफोन डिक्शनरी में से नंबर ढूंढने का प्रयास किया गया। 5 से 6 रांग नबर लगाने के बाद निशांत के घर का असली नंबर भी मिल गया था। लेकिन उसने कभी फोन नहीं उठाया।

भटकते पहुंची जो उसके दर पर
दरवाजा खुला मिला, पर वो नहीं मिला

एक शाम रिया अपनी सहेली पारूल के घर पर खि‍ड़की से बाहर झांक रही थी, शाम करीब पौने 5 बजे का समय था। तभी उसे दूर से निशांत की कद काठी का कोई धुंधला-सा अक्स आता हुआ दिखा। जैसे-जैसे वह नजदीक आ रहा था, रिया के दिल की धड़कनें बढ़ रही थी। रिया ने जल्दी से पारूल ओर दीप्ती को आवाज लगाई..... अरे जल्दी आओ न, निकल जाएगा वह।

हाय वो अचानक सामने आकर, नजर का मिलना
यूं लगा जैसे हम हम न रहे, कतल हो गए