कितनी सैक्सी हो तुम --4 इस स्राव के निकलते ही मुझे कुछ सुकून महसूस हुआ, अब मेरी तड़प भी कम हो गई थी, मैं होश में आने लगी परन्तु मेरे पूरे शरीर में मीठा-मीठा दर्द हो रहा था, मुझे ऐसा महसूस होने लगा जैसे मेरा पेशाब यहीं निकल जायेगा।
मैं तुरन्त आशीष से खुद को छुड़ाकर कमरे से सटे टायलेट की तरफ दौड़ी। टायलेट की सीट पर बैठते ही बिना जोर लगाये मेरी योनि से श्वेत पदार्थ मिश्रित स्राव बड़ी मात्रा में निकलने लगा।
परन्तु मूत्र विसर्जन के बाद मिलने वाली संतुष्टि भी कम सुखदायी नहीं थी।
अपनी योनि को अच्छी तरह धोने के बाद मैं वापस अपने कमरे में आई तो देखा आशीष अपना नाईट सूट पहनकर टीवी देखने लगे।
मैं भी अब पहले से बहुत अच्छा अनुभव कर रही थी, आते ही आशीष की बगल में लेटकर टीवी देखने लगी। पता ही नहीं लगा कि कब मुझे नींद आ गई।
सुबह जब मैं जगी तो बिल्कुल फ्रेश थी आज का दिन मुझे अपनी ससुराल में सबसे अच्छा लग रहा था।
आशीष फैक्ट्री चले गये, मैं अपने रोजमर्रा के कामों से फ्री होकर दिन में फिर से सो गई।
आज उम्मीद थी कि फिर से कुछ नया होगा।
मैंने शाम को फ्री होते ही नहा धोकर मेकअप किया, अच्छी साड़ी पहनकर तैयार हुई, लिप्स्टिक, आई लाइनर और पता नहीं क्या-क्या रगड़ डाला चेहरे पर।आखिर आशीष को आकर्षित जो करना था।
हुआ भी वही, आशीष शाम को फैक्ट्री से घर आये जैसे ही मुझे देखा एकदम बोले- नयना… आज तो सच में पटाखा लग रही हो। लगता है घायल करने के मूड में हो…
मैं मन ही मन बहुत खुश थी, रात को मिलने वाले सुख की आशा में रोमाँचित भी।
रात का खाना खाकर मैं जल्दी से कमरे में आई और नाइट गाऊन पहन कर आशीष का इंतजार करने लगी।कुछ देर मम्मी पापा के साथ समय बिताने के बाद आखिर आशीष भी कमरे में आ ही गये।
मैंने मुस्कुरा कर उनका स्वागत किया, पर आज कमरे में आते ही उन्होंने दरवाजा बंद किया और मुझे गले से लगाते हुए बोले- तुम इतनी सुन्दर हो मुझे तो अंदाजा ही नहीं था। मैं भी आने वाले सुखद पलों को सोचते सोचते उनकी बाहों में सिमट गई, उन्होंने अपने होंठ मेरे तपते हुए होंठों पर रख दिये।
हालांकि मैं भी यही चाहती थी परन्तु आशीष की तरफ से इस तरह के अप्रत्याक्षित हमले के लिये मैं तैयार नहीं थी, मैं बिदककर उनसे दूर हट गई।
आशीष किसी शिकारी की तरह मुझे पर झपटे, और मुझे बाहों में लेकर बिस्तर पर गिर गये।
हाययय… आशीष तो पागलों की तरह मुझे चूमने लगे, मेरा नाइट गाउन उन्होंने उतार फेंका, अब तो मैं भी इस कामानन्द के लिये तैयार हो चुकी थी, मैं भी आशीष की शर्ट के बटन खोलने लगी।
आशीष ने मेरी मदद की और शर्ट उतार फेंकी, बनियान उन्होंने खुद ही उतार दी।
आशीष मेरे सामने ऊपर से नंगे थे, मैं भी उनके सामने सिर्फ पैंटी में थी।
पिछली रात वाला खेल हम दोनों के बीच फिर से शुरू हो गया, आज मैं भी थोड़ा थोड़ा साथ देने लगी।
फिर आज भी वो ही हुआ आशीष ने मेरे पूरे बदन को इतना चूमा और चाटा कि मेरा योनि रस टपकने लगा, मैं उठी बाथरूम में जाकर फ्रैश हुई, वापस आकर देखा आशीष बिल्कुल नार्मल मूड में नाइट सूट पहनकर टीवी देख रहे थे। मैं भी उनके साथ टीवी देखते देखते सो गई।
अब तो यही हम दोनों की रतिचर्या बन गई।
आशीष रोज रात को मेरे बदन का भरपूर मर्दन करके मुझे डिस्चार्ज कर देते और मैं संतुष्ट होकर सो जाती।
धीरे धीरे ऐसे ही कुछ महीने बीत गये, अब मैं भी आशीष से खुलकर बात करने लगी।
आखिर अब मैं इस घर में नई नहीं थी, अपना अधिकार समझने लगी थी, अब आशीष का यह व्यवहार मुझे कुछ अजीब लगने लगा था, आशीष का सैक्स करने का तरीका मेरे ज्ञान से कुछ अजीब था पर मैं बहुत चाहकर भी आशीष से इस बारे में बात नहीं कर पा रही थी।
हाँ यह जरूर था कि आशीष के साथ रोज रात को मैं खुलकर खेल लेती थी और शायद मैं उससे संतुष्ट भी थी पर अब ज्यादा पाने की चाहत होने लगी थी।एक दिन मैंने खुद ही एक मजबूत निर्णय लिया, मैंने दिन भर कुछ सोचा और रात को उस पर अमल करने का निर्णय लिया।
उस रात को मैं रोज की तरह नहा धोकर अच्छे से तैयार होकर आशीष का इंतजार करने लगी। आशीष की अपनी नित्यचर्या को पूरा करके रात को 10 बजे अपने कमरे में आये।
अन्दर आते ही उन्होंने मुझे गले से लगाया और मेरे होंठों पर एक प्यारी सी चुम्मी दी। मैंने भी बढ़कर उनका स्वागत किया और बदले में उससे भी प्यारी चुम्मी उनके होंठों पर दी।
हम लोग बिस्तर पर बैठकर बातें करते करते टी वी देख रहे थे। धीरे से आशीष से एक हाथ आगे बढ़ाकर मेरी गोलाइयों को सहलाना शुरू कर दिया।
मुझे आशीष का यों सहलाना सदा से बहुत पसन्द है, मैं आशीष की ओर थोड़ा झुक गई ताकि उनको आसानी हो, हुआ भी यही… अब आशीष को आसानी हुई और उन्होंने मेरे गाऊन को आगे से खोलकर अपने दोनों हाथों में मेरे दुग्धकलश थाम लिये।आहह… हहहहहह… क्या अहसास थाॽ
मैंने कस कर आशीष को पकड़ लिया और अपने होंठ आशीष को होंठों से सटा दिये।
आशीष मेरे होंठों का कामुक रस पीने लगे और दोनों हाथों से मेरे गोरे और बड़े स्तनों की घुंडियों को सहला रहे थे। माँऽऽऽऽ…रे… क्या सुखद अनुभूति थी ! उसको बयान करना भी मुश्किल था।
आशीष से मेरे गाऊन के बचे हुए बटन भी खोल दिये और गाऊन को मेरे बदन से अलग कर दिया। अब मैं सिर्फ पैंटी में थी। आशीष मेरे बांयें कान के नीचे लगातार चूमते जा रहे थे।
मेरे पूरे बदन में गुदगुदी होने लगी।
आशीष को मेरा गोरा बदन चाटना बहुत पसन्द था और मुझे चटवाना।
मैंने भी धीरे धीरे-आशीष की कमीज के बटन खोलकर उनके बदन से अलग कर दिया, बनियान आशीष ने खुद ही उतार दी।
अब वो भी सिर्फ एक पायजामा और अंडरवीयर में थे। आशीष मेरी गर्दन को चूमते और चाटते जा रहे थे, धीरे धीरे उनके होंठों ने मेरे बांये चुचुक पर कब्जा जमा लिया दायाँ चुचुक अभी भी उनकी उंगलियों के बीच में मचल रहा था।ऊफ्फ्फ… क्या कामुक अहसास था… आशीष का दांया हाथ मेरी पैंटी के अन्दर जा चुका था।
मैंने आज सुबह ही खास आशीष के लिये अपनी योनि के चारों ओर के बालों को हटाकर उसको बिल्कुल मक्खन जैसी चिकनी बनाया था मैं चाहती थी कि आज आशीष पूरा ध्यान मेरी इस चिकनी चमेली पर ही हो।
आशीष अपने एक हाथ से मेरी इस चिकनी चमेली को सहला रहे थे और दूसरे हाथ से मेरी चूचियों से खेल रहे थे, उनके होंठों का रस लगातार मेरे चुचूकों पर गिर रहा था।
आशीष ने पता नहीं कब मेरी पैंटी भी निकाल दी। अब मैं पूरी नंगी होकर अपना रूप यौवन आशीष की नजरो में परोसने लगी।
आशीष मुझे अति कामुक नजरों से देख रहे थे जिसका असीम आनन्द मैं लगातार अनुभव कर रही थी।
मेरा पूरा बदन कांप रहा था, मैं अपने हाथों से आशीष को सहला रही थी। आज मैं आशीष को इतना गरम कर देना चाहती थी कि वो आज मेरे काम जीवन के अधूरेपन को खुद ही पूरा कर दें।
मैंने आशीष को बिस्तर पर गिरा लिया, अब मैं आशीष के ऊपर आ गई, मैंने आशीष के होंठों को अपने होंठों में लेकर ऐसे ही चूसना शुरू कर दिया जैसे आशीष कल तक मेरे होंठों को चूसते थे।
उनके होंठों का कामुक रस जैसे मेरे बदन में आग लगा रहा था मैं तो खुद ही इस आग में जलने को तैयार थी। मैंने आशीष की गर्दन और छाती को चूमना शुरू कर दिया।
जिस तरह आशीष मेरे बदन तो सिर से पैर तब चूमते थे आज वो ही मैं करने लगी उनके साथ। आहहहह… इस बार सिसकारी आशीष ने ली।
मुझे आशीष को ऐसे प्यार करना अच्छा लग रहा था। मैंने अपनी दोनों चूचियों को आशीष के बदन पर रगड़ना शुरू कर दिया। सीईईईईई… मैं तो जैसे जन्नत में थी।
आज सब उल्टा हो रहा था आशीष ने अति उत्तेजना में बिस्तर की चादर को पकड़ लिया। मैं तो आशीष के ऊपर चढ़कर बैठ गई। अपने स्तनों को आशीष के बदन पर रगड़ते रगड़ते मैं आशीष की छाती से होते हुए पेट पर आ गई और बड़ी अदा के साथ आशीष के पायजामे को नीचे सरकाना शुरू कर दिया।
आशीष भी नितम्ब उठाकर मेरा साथ देने लगे। आशीष के नितम्ब ऊपर होते ही मैंने तेजी आशीष का पायजामा निकाल कर फेंक दिया।
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Re: कितनी सैक्सी हो तुम
कितनी सैक्सी हो तुम --5 आज सब उल्टा हो रहा था आशीष ने अति उत्तेजना में बिस्तर की चादर को पकड़ लिया। मैं तो आशीष के ऊपर चढ़कर बैठ गई। अपने स्तनों को आशीष के बदन पर रगड़ते रगड़ते मैं आशीष की छाती से होते हुए पेट पर आ गई और बड़ी अदा के साथ आशीष के पायजामे को नीचे सरकाना शुरू कर दिया।
आशीष भी नितम्ब उठाकर मेरा साथ देने लगे। आशीष के नितम्ब ऊपर होते ही मैंने तेजी आशीष का पायजामा निकाल कर फेंक दिया। आशीष की दोनों टांगों के बीच में लटका हुआ लिंग मेरे सामने था। मैंने आशीष के पूरे बदन को चूमना शुरू कर दिया। सीईईईई…आ…शी…ष…ऊफ्फ्फ्फ… आशीष ने मेरे दोनों निप्पल को उमेठ डाला।
मैं कामाग्नि में पूरी तरह जल रही थी, मैंने एक हाथ से आशीष के सोये हुए लिंग को सहलाना शुरू कर दिया।
आशीष लगातार मेरे स्तनों को दबा रहे थे, मेरे निप्पलों से खेल रहे थे परन्तु चूंकि मैं आशीष की टांगों के बीच में थी तो उनको बार बार मेरे स्तनों को सहलाने में परेशानी हो रही थी।
मेरा ध्यान सिर्फ आशीष के लिंग की तरफ ही था, मैं लगातार प्रयास कर रही थी कि आज इसी लिंग से निकलने वाले अमृत से अपनी कामाग्नि बुझाऊँ।
हाययय…आहहह… मेरा पूरा बदन बुरी तरह कामोत्तेजित था। मेरी योनि में अजीब तरह की खुजली हो रही थी। हालांकि मेरे लिये यह खुजली नई नहीं थी परन्तु इतनी अधिक खुजली कभी महसूस नहीं हुई।
मैं आशीष के लिंग को अपनी योनि में अन्दर तक बसा लेना चाहती थी। अनेक प्रयास करने पर भी जब आशीष के लिंग में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मजबूर होकर मै आशीष के दोनों ओर पैर करके ऊपर आ गई, अब उनका लिंग मेरी योनि के ठीक नीचे था।
आशीष लगातार आँखें बन्द करके मेरे स्तनों से खेल रहे थे।
उईईईई… मेरी योनि की बेचैनी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी, योनि के अन्दर जैसे ज्वार भाटा उबल रहा था।
मैंने अपनी योनि को ही सीधे आशीष के सोये पड़े लिंग पर रगड़ना शुरू कर दिया। पर… ऊफ्फ्फ…ये…क्या…हुआ…मेरी…बेचैनी…तो…घटने…की…बजाय…और…बढ़…गई। दिल तो ये करने लगा कि चाकू लेकर अपनी योनि
को चीर दूँ मैं !
आशीष बेदर्दी से मेरे स्तनों से खेल रहे थे, मैं पागलों की तरह अपनी योनि आशीष के लिंग पर रगड़ने लगी। हायययय… कुछ देर तक रगड़ते-रगड़ते मेरी योनि से खुद ही रस निकलने लगा, मेरी आँखों से नशा सा छंटने लगा। कुछ तो आराम मिला।
हालांकि अभी भी कुछ कमी महसूस हो रही थी पर योनि की अग्नि कुछ हद तक शांत हो चुकी थी। आशीष अब आँखें बन्द किये आराम से लेटे थे।
मैं उनके ऊपर से उठकर सीधे बाथरूम में गई, योनि के अन्दर तक पानी मारकर उसको ठण्डा करने की कोशिश की और सफाई करके वापस आई, देखा तो आशीष सो चुके थे या शायद सोने का नाटक कर रहे थे।
मेरी आँखें भी बोझिल थी, चुपचाप आकर सो गई मैं।
सुबह मैं फ्रैश मूड से उठी तो देखा आशीष हमेशा की तरह गहरी नींद में सो रहे थे। बैड टी लाकर मैंने आशीष को आवाज दी, आशीष ने आँखें खोली, मुझे देखकर मुस्कुसराये और सीधे बैठकर चाय का कप ले लिया।
मैंने समय ना गंवाते हुए तुरन्त आशीष से पूछा- क्या आपको कोई प्राब्लम हैॽ
आशीष शायद मेरे इस अप्रत्याक्षित प्रश्न के लिये तैयार नहीं थे, चाय का कप भी उसके हाथों से गिरते गिरते बचा पर आशीष कुछ नहीं बोले।
मैंने फिर से अपना सवाल थोड़ी तेज आवाज और गुस्से वाले अंदाज में दोहराया।
‘हाँ…’ बस इतना ही बोला आशीष ने और उनकी आँखों से तेजी से आँसू गिरने लगे।
मेरे तो जैसे पैरों के तले से जमीन ही खिसक गई। मैं समझ ही नहीं पाई कि मुझे क्या करना चाहिएॽ मुझे तो अपना वैवाहिक जीवन ही अंधेरे में दिखने लगा पर आशीष लगातार रोये जा रहे थे।
भले ही कुछ भी परेशानी थी पर पति-पत्नी का प्यार अपनी जगह होता है, मुझसे आशीष के ये आँसू बर्दाश्त नहीं हो रहे थे, मैंने माहौल को हल्का करने के लिये बोला- चाय तो पी लो और टैंशन मत लो। हम किसी अच्छेा डॉक्टर को दिखा लेंगे।
पता नहीं आशीष ने मेरी बात पर ध्यान दिया या नहीं पर वो चाय पीकर बहुत तेजी से अपने दैनिक कार्य से निवृत्त होकर ऑफिस के लिये तैयार हुए और बाहर आ गये।
आज आशीष पापा से भी पहले ऑफिस के लिये निकल गये।
मैं कोई बेवकूफ नहीं थी, उनकी मनोदशा अच्छी तरह समझ सकती थी पर अन्दर से मैं भी बहुत परेशान थी। मुझे तो अपना वैवाहिक जीवन ही अन्धकारमय लगने लगा। मेरे पति का पुरूषांग जिस की दृढ़ता हर पुरूष को गौरवांन्वित करती है, क्रियाशील ही नहीं था। हालांकि मैं व्यक्तिगत रूप से खुद को बहुत मजबूत मानती थी पर आज मैं भी खुद को अन्दर से टूटा हुआ महसूस कर रही थी।
शादी के बाद पिछले 4 महीनों में आशीष के व्य्वहार का आकलन कर रही थी। आशीष सच में मुझे जान से बहुत प्यार करते थे। मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूँॽ
फिर भी मैंने रात को आशीष से खुलकर बात करने का निर्णय किया। आज मुझे एक दिन इस घर में पिछले 4 महीने से ज्यादा लम्बा लग रहा था।
रात को आशीष घर बहुत देर से आये, उन्होंने सोचा होगा कि मैं सोती हुई मिलूँगी तो कोई बात ही नहीं होगी। पर मेरी आँखों से तो नींद कोसों दूर थी। डिनर के बाद कमरे में आते ही मैंने उनसे बात करनी शुरू की, मेरी बात शुरू करते ही उनकी आँखों से आँसू छलकने लगे।
यही मेरी सबसे बड़ी कमजोरी थे मैं उनको रोता नहीं देख सकती थी।
उन्होंने बोलना शुरू किया- नयना, सच तो यह है कि मैं शुरू से ही तुमको धोखा दे रहा हूँ ! तुमको ही नहीं सबको, अपने माँ-बाप को भी। मैंने अपनी इस बीमारी के बारे में किसी को नहीं बताया। मुझे पता था कि एक ना एक दिन तुमको जरूर पता चलेगा पर मैं तुमको दुख नहीं पहुँचाना चाहता था। हमेशा सोचता था कि जब तक काम ऐसे चल रहा है चलने दूं। मैंने शादी से पहले इसके अनेक इलाज करवाये पर कोई फायदा नहीं हुआ। आज तुमको इसके बारे में पता चल गया है तो निर्णय तुम पर है तो चाहो निर्णय ले सकती हो। मेरे मन में तुम्हारे लिये जो प्यार आज है वो ही हमेशा रहेगा।
अब मैं क्या करतीॽ मैं तो अन्दर से पहले ही टूट चुकी थी। उनके साथ मेरी भी आँखों से आँसू निकल गये।
हम दोनों एक दूसरे को चुप कराते कराते कब सो गये पता ही नहीं चला।
सुबह मैं आशीष से पहले उठी। बहुत सोचा फिर बाद में इसी को नियति का खेल सोचकर धैर्य करना ही ठीक समझा और आशीष के लिये चाय बनाने चली गई।
जिंदगी ऐसे ही चलती रही। सात साल कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। पर उस दिन अचानक मानो मुझ पर बिजली गिर पड़ी, मेरी शादी की सातवीं सालगिरह थी, सभी मेहमान आये हुए थे।
अच्छा खासा फंक्शन चल रहा था, अचानक मेरी सास मेरी मम्मी के पास आयी और बोली- बहन जी, आपकी बेटी की शादी को 7 साल हो गये, जरा इससे ये तो पूछो कि हमें पोते-पोती का मुँह भी दिखायेगी या नहींॽ
मेरी सास ने भरी महफिल में मेरी माँ से ऐसा सवाल पूछ लिया जिसका जवाब उस समय कोई भी नहीं दे सकता था।
बहुत हंगामा हुआ, मेरे पापा भी कोई इतनी छोटी चीज नहीं थे जो अपनी बेटी की इस तरह भरी महफिल में बेइज्जती सहन कर लेते। उसी दिन शाम को मम्मी पापा मुझे अपने साथ घर लिवा लाये। आशीष के लाख कहने के बाद भी उन्होंने मुझे उस घर में नहीं रहने दिया।
मेरी सास के इस व्यवहार से मैं भी हतप्रभ थी पर मैं किसी भी कीमत पर आशीष से दूर नहीं होना चाहती थी। मजबूरी ऐसी कि असली बात किसी को बता भी नहीं सकती थी।
आशीष भी नितम्ब उठाकर मेरा साथ देने लगे। आशीष के नितम्ब ऊपर होते ही मैंने तेजी आशीष का पायजामा निकाल कर फेंक दिया। आशीष की दोनों टांगों के बीच में लटका हुआ लिंग मेरे सामने था। मैंने आशीष के पूरे बदन को चूमना शुरू कर दिया। सीईईईई…आ…शी…ष…ऊफ्फ्फ्फ… आशीष ने मेरे दोनों निप्पल को उमेठ डाला।
मैं कामाग्नि में पूरी तरह जल रही थी, मैंने एक हाथ से आशीष के सोये हुए लिंग को सहलाना शुरू कर दिया।
आशीष लगातार मेरे स्तनों को दबा रहे थे, मेरे निप्पलों से खेल रहे थे परन्तु चूंकि मैं आशीष की टांगों के बीच में थी तो उनको बार बार मेरे स्तनों को सहलाने में परेशानी हो रही थी।
मेरा ध्यान सिर्फ आशीष के लिंग की तरफ ही था, मैं लगातार प्रयास कर रही थी कि आज इसी लिंग से निकलने वाले अमृत से अपनी कामाग्नि बुझाऊँ।
हाययय…आहहह… मेरा पूरा बदन बुरी तरह कामोत्तेजित था। मेरी योनि में अजीब तरह की खुजली हो रही थी। हालांकि मेरे लिये यह खुजली नई नहीं थी परन्तु इतनी अधिक खुजली कभी महसूस नहीं हुई।
मैं आशीष के लिंग को अपनी योनि में अन्दर तक बसा लेना चाहती थी। अनेक प्रयास करने पर भी जब आशीष के लिंग में कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई तो मजबूर होकर मै आशीष के दोनों ओर पैर करके ऊपर आ गई, अब उनका लिंग मेरी योनि के ठीक नीचे था।
आशीष लगातार आँखें बन्द करके मेरे स्तनों से खेल रहे थे।
उईईईई… मेरी योनि की बेचैनी मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी, योनि के अन्दर जैसे ज्वार भाटा उबल रहा था।
मैंने अपनी योनि को ही सीधे आशीष के सोये पड़े लिंग पर रगड़ना शुरू कर दिया। पर… ऊफ्फ्फ…ये…क्या…हुआ…मेरी…बेचैनी…तो…घटने…की…बजाय…और…बढ़…गई। दिल तो ये करने लगा कि चाकू लेकर अपनी योनि
को चीर दूँ मैं !
आशीष बेदर्दी से मेरे स्तनों से खेल रहे थे, मैं पागलों की तरह अपनी योनि आशीष के लिंग पर रगड़ने लगी। हायययय… कुछ देर तक रगड़ते-रगड़ते मेरी योनि से खुद ही रस निकलने लगा, मेरी आँखों से नशा सा छंटने लगा। कुछ तो आराम मिला।
हालांकि अभी भी कुछ कमी महसूस हो रही थी पर योनि की अग्नि कुछ हद तक शांत हो चुकी थी। आशीष अब आँखें बन्द किये आराम से लेटे थे।
मैं उनके ऊपर से उठकर सीधे बाथरूम में गई, योनि के अन्दर तक पानी मारकर उसको ठण्डा करने की कोशिश की और सफाई करके वापस आई, देखा तो आशीष सो चुके थे या शायद सोने का नाटक कर रहे थे।
मेरी आँखें भी बोझिल थी, चुपचाप आकर सो गई मैं।
सुबह मैं फ्रैश मूड से उठी तो देखा आशीष हमेशा की तरह गहरी नींद में सो रहे थे। बैड टी लाकर मैंने आशीष को आवाज दी, आशीष ने आँखें खोली, मुझे देखकर मुस्कुसराये और सीधे बैठकर चाय का कप ले लिया।
मैंने समय ना गंवाते हुए तुरन्त आशीष से पूछा- क्या आपको कोई प्राब्लम हैॽ
आशीष शायद मेरे इस अप्रत्याक्षित प्रश्न के लिये तैयार नहीं थे, चाय का कप भी उसके हाथों से गिरते गिरते बचा पर आशीष कुछ नहीं बोले।
मैंने फिर से अपना सवाल थोड़ी तेज आवाज और गुस्से वाले अंदाज में दोहराया।
‘हाँ…’ बस इतना ही बोला आशीष ने और उनकी आँखों से तेजी से आँसू गिरने लगे।
मेरे तो जैसे पैरों के तले से जमीन ही खिसक गई। मैं समझ ही नहीं पाई कि मुझे क्या करना चाहिएॽ मुझे तो अपना वैवाहिक जीवन ही अंधेरे में दिखने लगा पर आशीष लगातार रोये जा रहे थे।
भले ही कुछ भी परेशानी थी पर पति-पत्नी का प्यार अपनी जगह होता है, मुझसे आशीष के ये आँसू बर्दाश्त नहीं हो रहे थे, मैंने माहौल को हल्का करने के लिये बोला- चाय तो पी लो और टैंशन मत लो। हम किसी अच्छेा डॉक्टर को दिखा लेंगे।
पता नहीं आशीष ने मेरी बात पर ध्यान दिया या नहीं पर वो चाय पीकर बहुत तेजी से अपने दैनिक कार्य से निवृत्त होकर ऑफिस के लिये तैयार हुए और बाहर आ गये।
आज आशीष पापा से भी पहले ऑफिस के लिये निकल गये।
मैं कोई बेवकूफ नहीं थी, उनकी मनोदशा अच्छी तरह समझ सकती थी पर अन्दर से मैं भी बहुत परेशान थी। मुझे तो अपना वैवाहिक जीवन ही अन्धकारमय लगने लगा। मेरे पति का पुरूषांग जिस की दृढ़ता हर पुरूष को गौरवांन्वित करती है, क्रियाशील ही नहीं था। हालांकि मैं व्यक्तिगत रूप से खुद को बहुत मजबूत मानती थी पर आज मैं भी खुद को अन्दर से टूटा हुआ महसूस कर रही थी।
शादी के बाद पिछले 4 महीनों में आशीष के व्य्वहार का आकलन कर रही थी। आशीष सच में मुझे जान से बहुत प्यार करते थे। मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूँॽ
फिर भी मैंने रात को आशीष से खुलकर बात करने का निर्णय किया। आज मुझे एक दिन इस घर में पिछले 4 महीने से ज्यादा लम्बा लग रहा था।
रात को आशीष घर बहुत देर से आये, उन्होंने सोचा होगा कि मैं सोती हुई मिलूँगी तो कोई बात ही नहीं होगी। पर मेरी आँखों से तो नींद कोसों दूर थी। डिनर के बाद कमरे में आते ही मैंने उनसे बात करनी शुरू की, मेरी बात शुरू करते ही उनकी आँखों से आँसू छलकने लगे।
यही मेरी सबसे बड़ी कमजोरी थे मैं उनको रोता नहीं देख सकती थी।
उन्होंने बोलना शुरू किया- नयना, सच तो यह है कि मैं शुरू से ही तुमको धोखा दे रहा हूँ ! तुमको ही नहीं सबको, अपने माँ-बाप को भी। मैंने अपनी इस बीमारी के बारे में किसी को नहीं बताया। मुझे पता था कि एक ना एक दिन तुमको जरूर पता चलेगा पर मैं तुमको दुख नहीं पहुँचाना चाहता था। हमेशा सोचता था कि जब तक काम ऐसे चल रहा है चलने दूं। मैंने शादी से पहले इसके अनेक इलाज करवाये पर कोई फायदा नहीं हुआ। आज तुमको इसके बारे में पता चल गया है तो निर्णय तुम पर है तो चाहो निर्णय ले सकती हो। मेरे मन में तुम्हारे लिये जो प्यार आज है वो ही हमेशा रहेगा।
अब मैं क्या करतीॽ मैं तो अन्दर से पहले ही टूट चुकी थी। उनके साथ मेरी भी आँखों से आँसू निकल गये।
हम दोनों एक दूसरे को चुप कराते कराते कब सो गये पता ही नहीं चला।
सुबह मैं आशीष से पहले उठी। बहुत सोचा फिर बाद में इसी को नियति का खेल सोचकर धैर्य करना ही ठीक समझा और आशीष के लिये चाय बनाने चली गई।
जिंदगी ऐसे ही चलती रही। सात साल कैसे बीत गये पता ही नहीं चला। पर उस दिन अचानक मानो मुझ पर बिजली गिर पड़ी, मेरी शादी की सातवीं सालगिरह थी, सभी मेहमान आये हुए थे।
अच्छा खासा फंक्शन चल रहा था, अचानक मेरी सास मेरी मम्मी के पास आयी और बोली- बहन जी, आपकी बेटी की शादी को 7 साल हो गये, जरा इससे ये तो पूछो कि हमें पोते-पोती का मुँह भी दिखायेगी या नहींॽ
मेरी सास ने भरी महफिल में मेरी माँ से ऐसा सवाल पूछ लिया जिसका जवाब उस समय कोई भी नहीं दे सकता था।
बहुत हंगामा हुआ, मेरे पापा भी कोई इतनी छोटी चीज नहीं थे जो अपनी बेटी की इस तरह भरी महफिल में बेइज्जती सहन कर लेते। उसी दिन शाम को मम्मी पापा मुझे अपने साथ घर लिवा लाये। आशीष के लाख कहने के बाद भी उन्होंने मुझे उस घर में नहीं रहने दिया।
मेरी सास के इस व्यवहार से मैं भी हतप्रभ थी पर मैं किसी भी कीमत पर आशीष से दूर नहीं होना चाहती थी। मजबूरी ऐसी कि असली बात किसी को बता भी नहीं सकती थी।
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Re: कितनी सैक्सी हो तुम
कितनी सैक्सी हो तुम --6
अच्छा खासा फंक्शन चल रहा था, अचानक मेरी सास मेरी मम्मी के पास आई और बोली- बहन जी, आपकी बेटी की शादी को 7 साल हो गये, जरा इससे ये तो पूछो कि हमें पोते-पोती का मुँह भी दिखायेगी या नहींॽ
मेरी सास ने भरी महफिल में मेरी माँ से ऐसा सवाल पूछ लिया जिसका जवाब उस समय कोई भी नहीं दे सकता था।
बहुत हंगामा हुआ, मेरे पापा भी कोई इतनी छोटी चीज नहीं थे जो अपनी बेटी की इस तरह भरी महफिल में बेइज्जती सहन कर लेते। उसी दिन शाम को मम्मी पापा मुझे अपने साथ घर लिवा लाये। आशीष के लाख कहने के बाद भी उन्होंने मुझे उस घर में नहीं रहने दिया।
मेरी सास के इस व्यवहार से मैं भी हतप्रभ थी पर मैं किसी भी कीमत पर आशीष से दूर नहीं होना चाहती थी। मजबूरी ऐसी कि असली बात किसी को बता भी नहीं सकती थी।
अब मायके में मेरे दिन महीने ऐसे ही कटने लगे, अनेको बार फैसले की बातें हुई। आशीष लेने भी आये पर मेरे पापा थे कि मुझे भेजने को तैयार ही नहीं हुए।
रिटायरमेंट के बाद पापा ने भी पेंट की एक फैक्ट्री लगा ली थी आगरा में जिसका सारा काम मुकुल देखता था। मुकुल मेरे बचपन का साथी था। मुकुल के पापा मेरे पापा के आफिस में ही चपरासी थे, वो शुरू से ही हमारे साथ रहे।
मुकुल और मैं एक साथ खेलकूद कर बड़े हुए क्योंकि बड़े होने के बाद मुकुल को काम की जरूरत थी और पापा को विश्वसनीय आदमी की तो उन्होंने मुकुल को अपने साथ ही रख लिया।
मेरे घर आने के बाद तो पापा अक्सर बीमार ही रहने लगे, अब सारा काम मुकुल अकेले ही देखने लगा।
धीरे धीरे मुझे घर आये एक साल बीत गया, एक दिन मैंने पापा से कहा- पापा, मैं सारा दिन घर में बैठकर बोर हो जाती हूं अगर आप बुरा ना मानो तो मैं फैक्ट्री का काम देख लूंगी इस बहाने आपकी मदद भी हो जायेगी और मेरा समय भी कट जायेगा।
पापा ने मेरे सुझाव पर सहर्ष सहमति दे दी।
अब मुकुल रोज मुझे फैक्ट्री ले जाता वहाँ सारा काम समझाता और शाम को घर छोड़ भी जाता।
पापा ने मुकुल से मुझे परचेजिंग और एकाउंट्स सिखाने को कहा।
इस बार तय हुआ कि इस बार परचेजिंग के लिये मुकुल मुझे साथ दिल्ली ले जायेगा।
तय दिन पर मैं समय से पहले ही तैयार होकर गाड़ी लेकर मुकुल के घर की तरफ चल दी।
सोचा कि मुकुल यहाँ तक आयेगा उससे बेहतर यह है कि मैं मुकुल तो उसके घर से ही ले लूँगी।
मैंने कार मुकुल की सोसायटी की पार्किंग में लगाई और ऊपर मुकुल के फ्लैट के बाहर पहुँची।
अभी मैं डोर बैल बजाने ही वाली थी कि अन्दर से लड़ाई की आवाजें आने लगी। मुकुल और उसकी पत्नी मोनिका बहुत तेज तेज लड़ रहे थे। मोनिका शायद मुकुल के साथ नहीं रहना चाहती थी।
मुकुल कह रहा था- तुम मेरी पत्नी हो, तुमको प्यार करना मेरा अधिकार है उसको कोई नहीं रोक सकता।
मोनिका बोली- प्यार का मतलब यह नहीं कि जब दिल किया आये और बीवी पर चढ़ गये। मुझे ये सब बिल्कुल भी पसन्द नहीं है। बहुत दर्द होता है, बर्दाश्त नहीं होता।
अब उन दोनों की बात मुझे कुछ कुछ समझ आने लगी, मैं कोई दूध पीती बच्ची तो थी नहीं।
अब मैंने देर ना करते हुए डोर बैल बजाई। अन्दर एकदम शान्ति हो गई।
मुकुल बाहर आया और मुझे देखकर सीधा मेरे साथ ही नीचे आ गया। उसका मूड खराब था।
मैंने गाड़ी की चाबी मुकुल को दे दी, उसने स्टेयरिंग सम्भाला और हम दिल्ली की तरफ चल दिये।
मुकुल चुपचाप गाड़ी चला रहा था उसका मूड खराब था, मूड मेरा भी ठीक नहीं था। पर हम दोनों के कारण अलग अलग थे।
मैं सोच रही थी कि एक तरफ तो मुकुल है जिसकी पत्नी उसको झेल नहीं पा रही।
दूसरी तरफ मैं हूं जिसका पति उसको वो सुख नहीं दे पा रहा। ईश्वर भी ऐसा अन्याय क्यों करता हैॽ पर दुनिया में अक्सर जोड़े ऐसे बन ही जाते हैं।
सोचते-सोचते मेरे दिमाग ने काम करना शुरू किया, मैंने सोचा क्यों ना मुकुल को वो सुख मैं दूं जो मोनिका नहीं दे पा रही और मुझे मुकुल से वो सुख मिल सके जो आशीष से नहीं मिला।
इस तरह हम दोनों एक दूसरे के पूरक बन सकते थे।
पर मुकुल स्वभाव से ऐसा नहीं था डर यही था कि मुकुल तैयार होगा या नहीं।
पता नहीं कब मैंने फैसला कर लिया कि अब मुझे मुकुल को अपने लिये तैयार करना ही होगा।
मैंने मुकुल की ओर देखा, वो चुपचाप गाड़ी चला रहा था।
मैंने मन ही मन मुकुल पर डोरे डालने का निर्णय लिया, मैंने अपना दुपट्टा उतार कर पीछे की सीट पर फेंक दिया, कुर्ती को ठीक किया और अपने खूबसूरत स्तनों को कुछ ज्यादा ही उभार लिया।
मैंने मुकुल से साईड में गाड़ी रोकने को कहा, उसने गाड़ी रोकी तो मैंने पूछा- अब बताओ क्या बात हैॽ तुम्हारा मूड क्यों खराब हैॽ
मुकुल ने कोई जवाब नहीं दिया।
अब मैंने मुकुल को अपनी पुरानी दोस्ती का वास्ता दिया- देखो मुकुल, यह ठीक है कि आज तुम पापा की फैक्ट्री में हो पर मेरे लिये पहले मेरे दोस्त हो मुझे नहीं बताओगे क्या बात हुईॽ
पर मुकुल अब भी चुप ही रहा। आखिर में मजबूर होकर मुझे ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ा, मैंने कहा- मैंने तुम्हारे घर के बाहर तुम्हारी और मोनिका की सब बातें सुन ली थी।
मेरा इतना बोलना था कि मुकुल फट पड़ा, बोला- तुम ही बताओ, मेरी क्या गलती हैॽ आखिर तीन साल हो गये हमारी शादी को। मोनिका है कि मुझे हाथ तक नहीं लगाने देती। क्या मैं इंसान नहीं हूंॽ मेरा दिल नहीं करता कि अपनी पत्नी को प्यार दूंॽ उसके शरीर को प्यार करूंॽ पर मोनिका तो यह समझती ही नहीं।
मुकुल एक ही सांस में सब बोलकर रूआँसा सा होकर बैठ गया।मैंने अपनी दांई बांह पसारकर मुकुल की गर्दन में डाल दी और मुकुल को जानबूझ कर अपनी छाती से चिपकाकर कहा- कोई बात नहीं। सब ठीक हो जायेगा, तुम टैंशन मत लो।
मुकुल चुप था, मैं मुकुल को कुछ ज्यादा ही दबाव देकर अपने स्तनों पर चिपका रही थी पर मुकुल ने खुद को छुड़ाते हुए कहा- पता नहीं कब ठीक होगा। होगा भी या नहीं।
मेरे अन्दर खुद ही ऊर्जा का संचार होने लगा था, मैं अब मुकुल पर पूरा ध्यान दे रही थी, मैं खुद को बहुत गर्म महसूस कर रही थी, दिल तो था कि ऐसे ही मुकुल को पकड़ लूं पर हिम्मत नहीं कर पा रही थी।
अगर मुकुल ने ना कर दिया तो?
बस यही सोच रही थी।
मैं चाहती थी कि ऐसा जाल फैला दूं कि मुकुल चाहे तो भी मना ना कर पाये। मैं बार-बार मुकुल तो अलग अलग बहाने से छू रही थी। मैंने रात को दिल्ली में ही रूकने को बोला।
मुकुल तैयार नहीं था पर मैंने कहा- मुझे आज दिल्ली घुमाना, मैंने सुना है शाम को इंडिया गेट पर बहुत भीड़ होती है। तुम पापा को कोई भी बहाना बनाओ पर आज रात यहीं रूकेंगे कल सुबह सुबह वापस चलेंगे।
मेरे जोर देने पर मुकुल को मानना पड़ा पर बोला कि पहले अपना काम करेंगे फिर घूमना।
बस मेरा काम बनता दीखने लगा।
फटाफट अपना काम निपटाकर हम जल्दी ही फ्री हो गये। एक तो मैं वैसे ही आग में जली जा रही थी ऊपर से मौसम की गर्मी बेहाल कर रही थी। मैंने सबसे पहले मुकुल को कहीं एक कमरा लेने की सलाह दी ताकि वहाँ फ्रैश होकर कुछ आराम करें।
वहीं करोलबाग में होटल क्लार्क में कमरा लिया। मैं तेजी से कमरे में पहुँची जबकि मुकुल गाड़ी पार्क करके बाद में आया। मैं अपना दिमाग बहुत तेजी से चला रही थी। जब जो जितनी तेजी से सोच रही थी उसी पर उतनी तेजी से ही अमल कर रही थी। मुझे पता था कि मेरे पास आज की रात है मुकुल को अपनाने के लिये, कल तो आगरा जाना ही होगा।
कमरे में आते ही मैं कपड़े उतारकर बाथरूम में चली गई। मुझे बाथ लेना था और यह मेरी योजना का एक हिस्सा भी था।
मैं शावर के पानी का आनन्द ले रही थी तभी कमरे में दरवाजा खुलने और बंद होने की आवाज हुई।
शायद मुकुल ही कमरे में आया था फिर भी मैंने सुनिश्चित किया- कौनॽ
“अरे मैडम मैं हूं…” यह मुकुल ही आवाज थी। तभी शायद मुकुल ने देखा बैड पर मेरे सारे कपड़े फैले हुए थे तो वो बोला- आते ही नहाने चली गई। इतनी गर्मी लग रही थी क्या?
मैंने कहा- हाँ, अब नहा तो ली, पर मैं वो पसीने वाले कपड़े नहीं पहनूंगी और कपड़े तो लाई नहीं तो अब क्या पहनूँ।
हंसते हुए मुकुल बोला- यह तो नहाने जाने से पहले सोचना था ना। अब तो फंस गई बैठो सारी रात बाथरूम में।
मुझे मुकुल का हंसना अच्छा लगा।
मैंने कहा- मैं ऐसे ही बाहर आ रही हूं तू कौन सा पराया है मेरे लिये; तू तो वैसे भी मेरा बचपन का दोस्त है।
इतना बोलकर मैं सिर्फ तौलिये में ही बाथरूम से बाहर आ गई, मैंने जानबूझ कर अपना बदन भी नहीं पोंछा।
मुकुल ने मुझे देखा तो जैसे पलक झपकाना भी भूल गया।
मैंने पूछा- क्या हुआॽ
मुकुल बोला- क्यों मुझ पर कहर बरपा रही हो। मैं कोई विश्वामित्र नहीं हूँ।
“पर मैं तो मेनका हूँ ना !” इतना बोलते हुए मैंने मुकुल की तरफ पीठ की और ड्रेसिंग टेबल की तरफ घूम गई।
अब मैं ड्रेसिंग के शीशे में देखकर अपने बाल ठीक करने लगी, और कनखियों से लगातार पीछे बैठे मुकुल को देख रही थी। वो पीछे से मेरी गोरी टांगों को मेरी पिंडलियों को मेरी जांघों को लगातार घूर रहा था।
मुझे मुकुल का यूं घूरना बहुत अच्छा लग रहा था।
हालांकि वो मुझसे नजरें बचाकर मुझे घूर रहा था पर तब वो मुझसे नजरें कैसे बचा सकता था जब ये जलवा मैं खुद ही उसको दिखा रही थी। हाँ मैं बिल्कुल नार्मल होने का नाटक कर रही थी।
बाल ठीक करके अचानक मैं मुकुल की तरफ मुड़ी क्योंकि मैं उसे रंगे हाथों पकड़ना चाहती थी पर वो भी बहुत तेज था उसने तेजी से अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमाने की कोशिश की।
मैंने सीधे सवाल दागा- क्या देख रहा था बदमाश…?
अच्छा खासा फंक्शन चल रहा था, अचानक मेरी सास मेरी मम्मी के पास आई और बोली- बहन जी, आपकी बेटी की शादी को 7 साल हो गये, जरा इससे ये तो पूछो कि हमें पोते-पोती का मुँह भी दिखायेगी या नहींॽ
मेरी सास ने भरी महफिल में मेरी माँ से ऐसा सवाल पूछ लिया जिसका जवाब उस समय कोई भी नहीं दे सकता था।
बहुत हंगामा हुआ, मेरे पापा भी कोई इतनी छोटी चीज नहीं थे जो अपनी बेटी की इस तरह भरी महफिल में बेइज्जती सहन कर लेते। उसी दिन शाम को मम्मी पापा मुझे अपने साथ घर लिवा लाये। आशीष के लाख कहने के बाद भी उन्होंने मुझे उस घर में नहीं रहने दिया।
मेरी सास के इस व्यवहार से मैं भी हतप्रभ थी पर मैं किसी भी कीमत पर आशीष से दूर नहीं होना चाहती थी। मजबूरी ऐसी कि असली बात किसी को बता भी नहीं सकती थी।
अब मायके में मेरे दिन महीने ऐसे ही कटने लगे, अनेको बार फैसले की बातें हुई। आशीष लेने भी आये पर मेरे पापा थे कि मुझे भेजने को तैयार ही नहीं हुए।
रिटायरमेंट के बाद पापा ने भी पेंट की एक फैक्ट्री लगा ली थी आगरा में जिसका सारा काम मुकुल देखता था। मुकुल मेरे बचपन का साथी था। मुकुल के पापा मेरे पापा के आफिस में ही चपरासी थे, वो शुरू से ही हमारे साथ रहे।
मुकुल और मैं एक साथ खेलकूद कर बड़े हुए क्योंकि बड़े होने के बाद मुकुल को काम की जरूरत थी और पापा को विश्वसनीय आदमी की तो उन्होंने मुकुल को अपने साथ ही रख लिया।
मेरे घर आने के बाद तो पापा अक्सर बीमार ही रहने लगे, अब सारा काम मुकुल अकेले ही देखने लगा।
धीरे धीरे मुझे घर आये एक साल बीत गया, एक दिन मैंने पापा से कहा- पापा, मैं सारा दिन घर में बैठकर बोर हो जाती हूं अगर आप बुरा ना मानो तो मैं फैक्ट्री का काम देख लूंगी इस बहाने आपकी मदद भी हो जायेगी और मेरा समय भी कट जायेगा।
पापा ने मेरे सुझाव पर सहर्ष सहमति दे दी।
अब मुकुल रोज मुझे फैक्ट्री ले जाता वहाँ सारा काम समझाता और शाम को घर छोड़ भी जाता।
पापा ने मुकुल से मुझे परचेजिंग और एकाउंट्स सिखाने को कहा।
इस बार तय हुआ कि इस बार परचेजिंग के लिये मुकुल मुझे साथ दिल्ली ले जायेगा।
तय दिन पर मैं समय से पहले ही तैयार होकर गाड़ी लेकर मुकुल के घर की तरफ चल दी।
सोचा कि मुकुल यहाँ तक आयेगा उससे बेहतर यह है कि मैं मुकुल तो उसके घर से ही ले लूँगी।
मैंने कार मुकुल की सोसायटी की पार्किंग में लगाई और ऊपर मुकुल के फ्लैट के बाहर पहुँची।
अभी मैं डोर बैल बजाने ही वाली थी कि अन्दर से लड़ाई की आवाजें आने लगी। मुकुल और उसकी पत्नी मोनिका बहुत तेज तेज लड़ रहे थे। मोनिका शायद मुकुल के साथ नहीं रहना चाहती थी।
मुकुल कह रहा था- तुम मेरी पत्नी हो, तुमको प्यार करना मेरा अधिकार है उसको कोई नहीं रोक सकता।
मोनिका बोली- प्यार का मतलब यह नहीं कि जब दिल किया आये और बीवी पर चढ़ गये। मुझे ये सब बिल्कुल भी पसन्द नहीं है। बहुत दर्द होता है, बर्दाश्त नहीं होता।
अब उन दोनों की बात मुझे कुछ कुछ समझ आने लगी, मैं कोई दूध पीती बच्ची तो थी नहीं।
अब मैंने देर ना करते हुए डोर बैल बजाई। अन्दर एकदम शान्ति हो गई।
मुकुल बाहर आया और मुझे देखकर सीधा मेरे साथ ही नीचे आ गया। उसका मूड खराब था।
मैंने गाड़ी की चाबी मुकुल को दे दी, उसने स्टेयरिंग सम्भाला और हम दिल्ली की तरफ चल दिये।
मुकुल चुपचाप गाड़ी चला रहा था उसका मूड खराब था, मूड मेरा भी ठीक नहीं था। पर हम दोनों के कारण अलग अलग थे।
मैं सोच रही थी कि एक तरफ तो मुकुल है जिसकी पत्नी उसको झेल नहीं पा रही।
दूसरी तरफ मैं हूं जिसका पति उसको वो सुख नहीं दे पा रहा। ईश्वर भी ऐसा अन्याय क्यों करता हैॽ पर दुनिया में अक्सर जोड़े ऐसे बन ही जाते हैं।
सोचते-सोचते मेरे दिमाग ने काम करना शुरू किया, मैंने सोचा क्यों ना मुकुल को वो सुख मैं दूं जो मोनिका नहीं दे पा रही और मुझे मुकुल से वो सुख मिल सके जो आशीष से नहीं मिला।
इस तरह हम दोनों एक दूसरे के पूरक बन सकते थे।
पर मुकुल स्वभाव से ऐसा नहीं था डर यही था कि मुकुल तैयार होगा या नहीं।
पता नहीं कब मैंने फैसला कर लिया कि अब मुझे मुकुल को अपने लिये तैयार करना ही होगा।
मैंने मुकुल की ओर देखा, वो चुपचाप गाड़ी चला रहा था।
मैंने मन ही मन मुकुल पर डोरे डालने का निर्णय लिया, मैंने अपना दुपट्टा उतार कर पीछे की सीट पर फेंक दिया, कुर्ती को ठीक किया और अपने खूबसूरत स्तनों को कुछ ज्यादा ही उभार लिया।
मैंने मुकुल से साईड में गाड़ी रोकने को कहा, उसने गाड़ी रोकी तो मैंने पूछा- अब बताओ क्या बात हैॽ तुम्हारा मूड क्यों खराब हैॽ
मुकुल ने कोई जवाब नहीं दिया।
अब मैंने मुकुल को अपनी पुरानी दोस्ती का वास्ता दिया- देखो मुकुल, यह ठीक है कि आज तुम पापा की फैक्ट्री में हो पर मेरे लिये पहले मेरे दोस्त हो मुझे नहीं बताओगे क्या बात हुईॽ
पर मुकुल अब भी चुप ही रहा। आखिर में मजबूर होकर मुझे ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ा, मैंने कहा- मैंने तुम्हारे घर के बाहर तुम्हारी और मोनिका की सब बातें सुन ली थी।
मेरा इतना बोलना था कि मुकुल फट पड़ा, बोला- तुम ही बताओ, मेरी क्या गलती हैॽ आखिर तीन साल हो गये हमारी शादी को। मोनिका है कि मुझे हाथ तक नहीं लगाने देती। क्या मैं इंसान नहीं हूंॽ मेरा दिल नहीं करता कि अपनी पत्नी को प्यार दूंॽ उसके शरीर को प्यार करूंॽ पर मोनिका तो यह समझती ही नहीं।
मुकुल एक ही सांस में सब बोलकर रूआँसा सा होकर बैठ गया।मैंने अपनी दांई बांह पसारकर मुकुल की गर्दन में डाल दी और मुकुल को जानबूझ कर अपनी छाती से चिपकाकर कहा- कोई बात नहीं। सब ठीक हो जायेगा, तुम टैंशन मत लो।
मुकुल चुप था, मैं मुकुल को कुछ ज्यादा ही दबाव देकर अपने स्तनों पर चिपका रही थी पर मुकुल ने खुद को छुड़ाते हुए कहा- पता नहीं कब ठीक होगा। होगा भी या नहीं।
मेरे अन्दर खुद ही ऊर्जा का संचार होने लगा था, मैं अब मुकुल पर पूरा ध्यान दे रही थी, मैं खुद को बहुत गर्म महसूस कर रही थी, दिल तो था कि ऐसे ही मुकुल को पकड़ लूं पर हिम्मत नहीं कर पा रही थी।
अगर मुकुल ने ना कर दिया तो?
बस यही सोच रही थी।
मैं चाहती थी कि ऐसा जाल फैला दूं कि मुकुल चाहे तो भी मना ना कर पाये। मैं बार-बार मुकुल तो अलग अलग बहाने से छू रही थी। मैंने रात को दिल्ली में ही रूकने को बोला।
मुकुल तैयार नहीं था पर मैंने कहा- मुझे आज दिल्ली घुमाना, मैंने सुना है शाम को इंडिया गेट पर बहुत भीड़ होती है। तुम पापा को कोई भी बहाना बनाओ पर आज रात यहीं रूकेंगे कल सुबह सुबह वापस चलेंगे।
मेरे जोर देने पर मुकुल को मानना पड़ा पर बोला कि पहले अपना काम करेंगे फिर घूमना।
बस मेरा काम बनता दीखने लगा।
फटाफट अपना काम निपटाकर हम जल्दी ही फ्री हो गये। एक तो मैं वैसे ही आग में जली जा रही थी ऊपर से मौसम की गर्मी बेहाल कर रही थी। मैंने सबसे पहले मुकुल को कहीं एक कमरा लेने की सलाह दी ताकि वहाँ फ्रैश होकर कुछ आराम करें।
वहीं करोलबाग में होटल क्लार्क में कमरा लिया। मैं तेजी से कमरे में पहुँची जबकि मुकुल गाड़ी पार्क करके बाद में आया। मैं अपना दिमाग बहुत तेजी से चला रही थी। जब जो जितनी तेजी से सोच रही थी उसी पर उतनी तेजी से ही अमल कर रही थी। मुझे पता था कि मेरे पास आज की रात है मुकुल को अपनाने के लिये, कल तो आगरा जाना ही होगा।
कमरे में आते ही मैं कपड़े उतारकर बाथरूम में चली गई। मुझे बाथ लेना था और यह मेरी योजना का एक हिस्सा भी था।
मैं शावर के पानी का आनन्द ले रही थी तभी कमरे में दरवाजा खुलने और बंद होने की आवाज हुई।
शायद मुकुल ही कमरे में आया था फिर भी मैंने सुनिश्चित किया- कौनॽ
“अरे मैडम मैं हूं…” यह मुकुल ही आवाज थी। तभी शायद मुकुल ने देखा बैड पर मेरे सारे कपड़े फैले हुए थे तो वो बोला- आते ही नहाने चली गई। इतनी गर्मी लग रही थी क्या?
मैंने कहा- हाँ, अब नहा तो ली, पर मैं वो पसीने वाले कपड़े नहीं पहनूंगी और कपड़े तो लाई नहीं तो अब क्या पहनूँ।
हंसते हुए मुकुल बोला- यह तो नहाने जाने से पहले सोचना था ना। अब तो फंस गई बैठो सारी रात बाथरूम में।
मुझे मुकुल का हंसना अच्छा लगा।
मैंने कहा- मैं ऐसे ही बाहर आ रही हूं तू कौन सा पराया है मेरे लिये; तू तो वैसे भी मेरा बचपन का दोस्त है।
इतना बोलकर मैं सिर्फ तौलिये में ही बाथरूम से बाहर आ गई, मैंने जानबूझ कर अपना बदन भी नहीं पोंछा।
मुकुल ने मुझे देखा तो जैसे पलक झपकाना भी भूल गया।
मैंने पूछा- क्या हुआॽ
मुकुल बोला- क्यों मुझ पर कहर बरपा रही हो। मैं कोई विश्वामित्र नहीं हूँ।
“पर मैं तो मेनका हूँ ना !” इतना बोलते हुए मैंने मुकुल की तरफ पीठ की और ड्रेसिंग टेबल की तरफ घूम गई।
अब मैं ड्रेसिंग के शीशे में देखकर अपने बाल ठीक करने लगी, और कनखियों से लगातार पीछे बैठे मुकुल को देख रही थी। वो पीछे से मेरी गोरी टांगों को मेरी पिंडलियों को मेरी जांघों को लगातार घूर रहा था।
मुझे मुकुल का यूं घूरना बहुत अच्छा लग रहा था।
हालांकि वो मुझसे नजरें बचाकर मुझे घूर रहा था पर तब वो मुझसे नजरें कैसे बचा सकता था जब ये जलवा मैं खुद ही उसको दिखा रही थी। हाँ मैं बिल्कुल नार्मल होने का नाटक कर रही थी।
बाल ठीक करके अचानक मैं मुकुल की तरफ मुड़ी क्योंकि मैं उसे रंगे हाथों पकड़ना चाहती थी पर वो भी बहुत तेज था उसने तेजी से अपनी गर्दन दूसरी तरफ घुमाने की कोशिश की।
मैंने सीधे सवाल दागा- क्या देख रहा था बदमाश…?