अंजानी डगर
Posted: 11 Nov 2014 08:19
हिंदी सेक्सी कहानियाँ अंजानी डगर पार्ट--1
यह कहानी है हम 3 दोस्तो की. बबलू, विक्की और मैं आशु (निकनेम्स), हम तीनो देल्ही के साउत-एक्स इलाक़े मे पले- बढ़े हैं. हम तीनो ही अप्पर मिड्ल क्लास से थे. पैसे की कोई टेन्षन नही पर लिमिट भी थी. दिन मे स्कूल-कॉलेज फिर शाम को साउत-एक्स मार्केट मे तफ़री. हमारी मार्केट की खास बात है कि यहा सिर्फ़ हाई-फाइ लोग ही शॉपिंग करने आते है. यह अमीरो की मार्केट जो है. एक से एक सेक्सी कपड़ो मे सुन्दर-गोरी लड़किया ही मार्केट की रौनक थी. बाकी दुनिया मल्लिका सहरावत, नेहा धूपिया, एट्सेटरा. हेरोयिन्स को जिन कपड़ो मे सिर्फ़ फ़िल्मो मे ही देख पाते है, हम उन्हे अपनी आखों के सामने देखते थे. हर लड़की के साथ कोई ना कोई बाय्फ्रेंड ज़रूर होता था. कोई लीप किस कर रहा है तो कोई कमर मे हाथ डाल कर चल रहा है. इतने शानदार नज़ारो को देखते हुए रात के 10-11 बज जाते थे. ये जश्न तो उसके बाद भी चलता रहता था पर घर पर डाँट पड़ने का भी डर होता था, इसलिए हम 11 बजे तक घर पहुच जाते थे... ऐसे हस्ते खेलते आँखे सेकते लाइफ कट रही थी, पर अचानक हमारी जिंदगियो मे बवंडर आ गया. हम तीनो बी.कॉम के फाइनल एअर के एग्ज़ॅम मे लटक गये. कॉलेज से रिज़ल्ट देख कर घर जाते समय हम एक ख़तरनाक फ़ैसला कर चुके थे... 4 दिन बाद हम तीनो मुंबई के वीटी स्टेशन पर उतरे. घर वालो का पता नही क्या हाल था. हम तीनो के पास अपने कुल 5500 रुपये थे. हमे पता था कि मुंबई मे ये 5-6 दिन से ज़्यादा नही चलेंगे. स्टेशन से सीधे हम विरार मे विक्की के दोस्त श्याम के पास पहुच गये. श्याम अपनी प्लेसमेंट एजेन्सी चलाता था. हमने उससे रहने की जगह का बंदोबस्त करने को कहा और नौकरी का भी इन्तेजाम करने को कहा. फिर हम निकल पड़े मुंबई नगरी के जलवे देखने. शाम को वापस पहुचने पर श्याम का चेहरा खिला हुआ था. विक्की- क्यो दाँत दिखा रहा है बे ? श्याम- अबे मैदान मार लिया. तुम तीनो सुनोगे तो मेरा मूह चूम लोगे. विक्की- कुत्ते तूने हमे गे समझ रखा है क्या ? तेरा मूह तोड़ देंगे. श्याम- अरे भड़क क्यो रहा है यार...मैने तुम्हारे लिए ऐसे कामो का इन्तेजाम किया है कि तुम जिंदगी भर मुझे याद रखोगे. ये लो जॉब कार्ड्स और कल सुबह 10 बजे तक अपनी-अपनी नौकरी पर पहुच जाना. मैने कहा- थॅंक यू श्याम भाई. फिर हम तीनो रात बिताने के लिए अपना समान उठाकर श्याम की बताए जगह पर पहुच गये. सुबह के 9.50 हो चुके थे और मैं अपनी नौकरी की जगह के सामने खड़ा था. जुहू मे एक शानदार सफेद रंग का बंग्लॉ था. मैं गेट और बिल्डिंग के बीच शानदार लॉन था जिस पर 1 छतरी, 2 कुर्सी और 1 मेज लगे थे. मैनगेट पर वॉचमन खड़ा था. उसके पास पहुच कर मैने जॉब कार्ड दिखाया और बोला- नौकरी के लिए आया हू. वॉचमन- मुंबई मे नये हो ? मैं (आशु)- हा. पहले देल्ही मे था. वॉचमन- फिर तो मुंबई मे टिक जाओगे, देल्ही तो मुंबई की बाप है. फिर उसने इंटेरकाम पर बात की और छोटा गेट खोल दिया और बोला- सीधे अंदर बिल्डिंग के पीछे चले जाओ. मेडम वही मिलेंगी. मैने अपना समान उठाया और बिल्डिंग के पीछे पहुच गया. बिल्डिंग के पीछे का नज़ारा आगे से भी शानदार था. वाहा भी हरियाली थी और बाउंड्री वॉल बहुत उँची थी. बिल्डिंग के साथ एक बहुत बड़ा स्विम्मिंग पूल बना था जिस पर सूरज रोशनी पड़ने से तेज चौंधा निकल रहा था. कुछ सुन-बात कुर्सी पड़ी थी और एक पर कुछ टवल जैसे कपड़े पड़े थे. एक कॉर्डलेस फोन भी पूल की मुंडेर पर रखा था. पर वाहा पर कोई मेडम नही थी. मैं वापस गेट के लिए मुड़ने ही वाला था कि अचानक पानी की आवाज़ आई. एक 30 साल की हसीना ने स्विम्मिंग पूल के पानी से अपना सिर बाहर निकाला और बोली- तुम ही केर टेकर की नौकरी के लिए आए हो? क्या नाम है तुम्हारा ? आशु- ज..जी म..मेरा नाम आशु है. मेडम- हकलाते हो क्या ? (हंसते हुए बोली) आशु- ज..जी नही. मेडम- ठीक है. अपना समान सर्वेंट क्वॉर्टर मे रख दो और 5 मिनिट मे मैं हॉल मे आ जाओ. देल्ही मे मैने आइटीआइ से हॉस्पिटालिटी, विक्की ने वीडियो फोटोग्रफी और बबलू ने टेलरिंग का कोर्स किया था. यही ट्रैनिंग आज हमारे काम आ रही थी. हमने श्याम को अपने सर्टिफिकेट दे दिए थे और उसने हमारे लिए वैसे ही काम ढूँढ दिए. उधर विक्की और बबलू भी अपनी-अपनी नौकरियो पर पहुच चुके थे. विक्की को एक फिल्म प्रोड्यूसर के पास असिस्टेंट कॅमरामेन जॉब के लिए गया था और बबलू एक टेलरिंग शॉप मे असिस्टेंट मास्टर के लिए. चलिए अपनी कहानी आगे बढ़ते हैं. फिर मैने (आशु) अपना समान उठाया और कनखियो से मेडम की तरफ देखा. पर मेडम फिर पानी मे गायब हो गयी थी. मैं सीधा वॉचमन के पास पहुचा और बोला- भाई अब ये सर्वेंट क्वॉर्टर कहा है. वॉचमन चाबी देते हुए बोला- तीसरा कमरा खाली है, वही तुम्हे मिलेगा. कमरे पर पहुच कर अपना समान रखा और नज़र कमरे को देखा और बाहर निकल गया. सीधे मैं हॉल मे पहुचा, पर वाहा कोई नही था. बिल्डिंग के अंदर क्या शानदार सजावट थी वो शब्दो मे नही बता सकता. एक खास बात थी कि बिल्डिंग की एंट्रेन्स से लेकर सब जगह आदमियो के न्यूड स्कल्प्चर्स (मूर्तिया) लगे थे. औरत की कोई नही थी. मैं हॉल से पीछे स्वीमिंग पूल का नज़ारा साफ दिखाई दे रहा था. तभी स्विम्मिंग पूल से मेडम बाहर निकली... संगेमरमर मे तराशे हुए जिस्म पर पानी से तर-बतर छोटी सी बिकिनी मे मेडम अपने सुन्बाथ चेर के पास पहुचि. सूरज की रोशनी मे मेडम के अंगो का एक एक कटाव और भी गहरा लग रहा था. मेडम की लंबी गोरी टाँगे, बिकिनी से बाहर झाँकते 36डी के बूब्स, पूरी निर्वस्त्रा कमर पर केवल एक डोरी... ये सब देख कर मेरे पूरे शरीर मे कीटाणु रेंगने लगे. दिल धड़-धड़ कर बजने लगा और मेरा लंड बुरी तरह अकड़ गया. टट्टो मे दर्द होने लगा. मेरी पॅंट मे एक पहाड़ सा उभर आया. (आप लोग यकीन मानिए की मैं अब तक (18 साल) ब्रह्मचारी ही था. मेरा वीर्य-पात अब तक नही हुया था और ना ही मुझे इस बारे मे पता था. देल्ही मे माइक्रो-मिनी और ट्यूब-टॉप पहने आध-नंगी लड़कियो की मैं मार्केट मे लड़को के साथ चुहल-मस्ती देखकर भी हम तीन दोस्तो को कभी भी मूठ मारने ख़याल नही आया थी. इसका ही नतीजा था कि मेरा लंड जब खड़ा होता था तो पूरे 8" का पत्थर बन जाता था. और कुछ ना करने पर भी कम से कम आधे घंटे बाद ही शांत होता था.) अब मेरे लिए भारी मुश्किल हो गयी थी. सामने मेडम ने अपना टवल गाउन पहन लिया था और अब मैं हॉल की तरफ आ रही थी. इधर मेरी पॅंट मेरे मन की दशा जग-जाहिर कर रही थी. मैने अपने लंड को शांत करने के लिए थोडा सहलाया पर इससे बेचेनी और बढ़ गयी. और कुछ ना सूझा तो, मैं एक सोफे की पीछे जाकर खड़ा हो गया. इससे मेरी पॅंट को उभार छिप गया था. मेडम मैं हॉल मे आ चुकी थी- पहले कभी कहीं काम किया है ? आशु- जी नही. मेडम- तुम मुंबई कब आए. आशु- जी 1 दिन पहले. मेडम- बड़े लकी हो की एक दिन मे ही जॉब मिल गया. आशु- जी. मेडम- इतनी दूर क्यों खड़े हो यहाँ आओ. मैं जैसे-तैसे वाहा बैठ गया. पता नही मेडम ने पॅंट को नोटीस किया या नही. मेडम- मैं ज़्यादा नौकर-चाकर नही रखती. जीतने ज़्यादा होते हैं उतना सिरदर्द. मुझे अपनी प्राइवसी बहुत पसंद है. वॉचमन को भी बिल्डिंग मे कदम रखने इजाज़त नही है. केवल तुम्हे ही बिल्डिंग मे हर जगह जाने की इजाज़त होगी. इसलिए तुम्हे ही पूरी बिल्डिंग की केर करनी होगी. बोलो कर सकोगे ? आशु- जी. मेडम- वैसे तो इस घर मे कुल 2 लोग ही रहते हैं, मैं और मेरे पति की बेटी दीपा. घर पर खाना नही बनता. इसके अलावा लौंडरी, चाइ-कॉफी, रख-रखाव जैसे छोटे मोटे काम करने होंगे. आशु- मेडम तन्खा कितनी मिलेगी ? मेडम मुस्कुराते हुए बोली- शुरू मे 20000 रुपये महीना मिलेगा. अगर तुम हमारे काम के निकले तो कोई लिमिट नही है. बोलो तय्यार हो ? आशु- ज..जी मेम . मेडम- ठीक है तो उपर दीपा मेडम का कमरा है, उसे जाकर जगा दो. फिर कॉफी लेकर मेरे लिविंग रूम मे पहुच जाना, एकदम कड़क चाहिए. आशु- जी. मैं तुरंत वाहा से निकल लिया. जान बची सो लखो पाए. किचन मे कॉफी मेकर मे कॉफी का समान डाल कर मैं उपर पहुच गया. वाहा 4 कमरे थे. 3 कमरे लॉक थे. मैने चौथे कमरे का दरवाजा नॉक किया, पर कोई रेस्पोन्स नही आया. थोड़ी देर बाद मैं दरवाजे का हॅंडल घुमाया तो दरवाजा खुल गया. अंदर एक दम चिल्ड था. एक गोल पलंग पर एक खूबसूरत सी लड़की सोई थी. एक दम गोरी-चित्ति, ये दीपा थी. उसके कपड़े देख कर देल्ही की याद ताज़ा हो गयी. वही ट्यूब टॉप और माइक्रो मिनी. पर यहा की बात ही अलग थी. वाहा देल्ही मे लड़कियो को डोर से देख कर ही आँखे सेक्नि पड़ती थी और यहा एक अप्सरा मेरे सामने पड़ी थी. आल्मास्ट सोने से दीपा के कपड़े अस्त-व्यस्त हो गये थे. उसकी ब्लू स्कर्ट तो कमर पर पहुच गयी थी और पूरी पॅंटी अपने दर्शन करा रही थी. उपर का वाइट टॉप भी उपर चढ़ गया था और सुन्दर सी ऑरेंज एमब्राय्डरी ब्रा दिखने लगी थी.
यह कहानी है हम 3 दोस्तो की. बबलू, विक्की और मैं आशु (निकनेम्स), हम तीनो देल्ही के साउत-एक्स इलाक़े मे पले- बढ़े हैं. हम तीनो ही अप्पर मिड्ल क्लास से थे. पैसे की कोई टेन्षन नही पर लिमिट भी थी. दिन मे स्कूल-कॉलेज फिर शाम को साउत-एक्स मार्केट मे तफ़री. हमारी मार्केट की खास बात है कि यहा सिर्फ़ हाई-फाइ लोग ही शॉपिंग करने आते है. यह अमीरो की मार्केट जो है. एक से एक सेक्सी कपड़ो मे सुन्दर-गोरी लड़किया ही मार्केट की रौनक थी. बाकी दुनिया मल्लिका सहरावत, नेहा धूपिया, एट्सेटरा. हेरोयिन्स को जिन कपड़ो मे सिर्फ़ फ़िल्मो मे ही देख पाते है, हम उन्हे अपनी आखों के सामने देखते थे. हर लड़की के साथ कोई ना कोई बाय्फ्रेंड ज़रूर होता था. कोई लीप किस कर रहा है तो कोई कमर मे हाथ डाल कर चल रहा है. इतने शानदार नज़ारो को देखते हुए रात के 10-11 बज जाते थे. ये जश्न तो उसके बाद भी चलता रहता था पर घर पर डाँट पड़ने का भी डर होता था, इसलिए हम 11 बजे तक घर पहुच जाते थे... ऐसे हस्ते खेलते आँखे सेकते लाइफ कट रही थी, पर अचानक हमारी जिंदगियो मे बवंडर आ गया. हम तीनो बी.कॉम के फाइनल एअर के एग्ज़ॅम मे लटक गये. कॉलेज से रिज़ल्ट देख कर घर जाते समय हम एक ख़तरनाक फ़ैसला कर चुके थे... 4 दिन बाद हम तीनो मुंबई के वीटी स्टेशन पर उतरे. घर वालो का पता नही क्या हाल था. हम तीनो के पास अपने कुल 5500 रुपये थे. हमे पता था कि मुंबई मे ये 5-6 दिन से ज़्यादा नही चलेंगे. स्टेशन से सीधे हम विरार मे विक्की के दोस्त श्याम के पास पहुच गये. श्याम अपनी प्लेसमेंट एजेन्सी चलाता था. हमने उससे रहने की जगह का बंदोबस्त करने को कहा और नौकरी का भी इन्तेजाम करने को कहा. फिर हम निकल पड़े मुंबई नगरी के जलवे देखने. शाम को वापस पहुचने पर श्याम का चेहरा खिला हुआ था. विक्की- क्यो दाँत दिखा रहा है बे ? श्याम- अबे मैदान मार लिया. तुम तीनो सुनोगे तो मेरा मूह चूम लोगे. विक्की- कुत्ते तूने हमे गे समझ रखा है क्या ? तेरा मूह तोड़ देंगे. श्याम- अरे भड़क क्यो रहा है यार...मैने तुम्हारे लिए ऐसे कामो का इन्तेजाम किया है कि तुम जिंदगी भर मुझे याद रखोगे. ये लो जॉब कार्ड्स और कल सुबह 10 बजे तक अपनी-अपनी नौकरी पर पहुच जाना. मैने कहा- थॅंक यू श्याम भाई. फिर हम तीनो रात बिताने के लिए अपना समान उठाकर श्याम की बताए जगह पर पहुच गये. सुबह के 9.50 हो चुके थे और मैं अपनी नौकरी की जगह के सामने खड़ा था. जुहू मे एक शानदार सफेद रंग का बंग्लॉ था. मैं गेट और बिल्डिंग के बीच शानदार लॉन था जिस पर 1 छतरी, 2 कुर्सी और 1 मेज लगे थे. मैनगेट पर वॉचमन खड़ा था. उसके पास पहुच कर मैने जॉब कार्ड दिखाया और बोला- नौकरी के लिए आया हू. वॉचमन- मुंबई मे नये हो ? मैं (आशु)- हा. पहले देल्ही मे था. वॉचमन- फिर तो मुंबई मे टिक जाओगे, देल्ही तो मुंबई की बाप है. फिर उसने इंटेरकाम पर बात की और छोटा गेट खोल दिया और बोला- सीधे अंदर बिल्डिंग के पीछे चले जाओ. मेडम वही मिलेंगी. मैने अपना समान उठाया और बिल्डिंग के पीछे पहुच गया. बिल्डिंग के पीछे का नज़ारा आगे से भी शानदार था. वाहा भी हरियाली थी और बाउंड्री वॉल बहुत उँची थी. बिल्डिंग के साथ एक बहुत बड़ा स्विम्मिंग पूल बना था जिस पर सूरज रोशनी पड़ने से तेज चौंधा निकल रहा था. कुछ सुन-बात कुर्सी पड़ी थी और एक पर कुछ टवल जैसे कपड़े पड़े थे. एक कॉर्डलेस फोन भी पूल की मुंडेर पर रखा था. पर वाहा पर कोई मेडम नही थी. मैं वापस गेट के लिए मुड़ने ही वाला था कि अचानक पानी की आवाज़ आई. एक 30 साल की हसीना ने स्विम्मिंग पूल के पानी से अपना सिर बाहर निकाला और बोली- तुम ही केर टेकर की नौकरी के लिए आए हो? क्या नाम है तुम्हारा ? आशु- ज..जी म..मेरा नाम आशु है. मेडम- हकलाते हो क्या ? (हंसते हुए बोली) आशु- ज..जी नही. मेडम- ठीक है. अपना समान सर्वेंट क्वॉर्टर मे रख दो और 5 मिनिट मे मैं हॉल मे आ जाओ. देल्ही मे मैने आइटीआइ से हॉस्पिटालिटी, विक्की ने वीडियो फोटोग्रफी और बबलू ने टेलरिंग का कोर्स किया था. यही ट्रैनिंग आज हमारे काम आ रही थी. हमने श्याम को अपने सर्टिफिकेट दे दिए थे और उसने हमारे लिए वैसे ही काम ढूँढ दिए. उधर विक्की और बबलू भी अपनी-अपनी नौकरियो पर पहुच चुके थे. विक्की को एक फिल्म प्रोड्यूसर के पास असिस्टेंट कॅमरामेन जॉब के लिए गया था और बबलू एक टेलरिंग शॉप मे असिस्टेंट मास्टर के लिए. चलिए अपनी कहानी आगे बढ़ते हैं. फिर मैने (आशु) अपना समान उठाया और कनखियो से मेडम की तरफ देखा. पर मेडम फिर पानी मे गायब हो गयी थी. मैं सीधा वॉचमन के पास पहुचा और बोला- भाई अब ये सर्वेंट क्वॉर्टर कहा है. वॉचमन चाबी देते हुए बोला- तीसरा कमरा खाली है, वही तुम्हे मिलेगा. कमरे पर पहुच कर अपना समान रखा और नज़र कमरे को देखा और बाहर निकल गया. सीधे मैं हॉल मे पहुचा, पर वाहा कोई नही था. बिल्डिंग के अंदर क्या शानदार सजावट थी वो शब्दो मे नही बता सकता. एक खास बात थी कि बिल्डिंग की एंट्रेन्स से लेकर सब जगह आदमियो के न्यूड स्कल्प्चर्स (मूर्तिया) लगे थे. औरत की कोई नही थी. मैं हॉल से पीछे स्वीमिंग पूल का नज़ारा साफ दिखाई दे रहा था. तभी स्विम्मिंग पूल से मेडम बाहर निकली... संगेमरमर मे तराशे हुए जिस्म पर पानी से तर-बतर छोटी सी बिकिनी मे मेडम अपने सुन्बाथ चेर के पास पहुचि. सूरज की रोशनी मे मेडम के अंगो का एक एक कटाव और भी गहरा लग रहा था. मेडम की लंबी गोरी टाँगे, बिकिनी से बाहर झाँकते 36डी के बूब्स, पूरी निर्वस्त्रा कमर पर केवल एक डोरी... ये सब देख कर मेरे पूरे शरीर मे कीटाणु रेंगने लगे. दिल धड़-धड़ कर बजने लगा और मेरा लंड बुरी तरह अकड़ गया. टट्टो मे दर्द होने लगा. मेरी पॅंट मे एक पहाड़ सा उभर आया. (आप लोग यकीन मानिए की मैं अब तक (18 साल) ब्रह्मचारी ही था. मेरा वीर्य-पात अब तक नही हुया था और ना ही मुझे इस बारे मे पता था. देल्ही मे माइक्रो-मिनी और ट्यूब-टॉप पहने आध-नंगी लड़कियो की मैं मार्केट मे लड़को के साथ चुहल-मस्ती देखकर भी हम तीन दोस्तो को कभी भी मूठ मारने ख़याल नही आया थी. इसका ही नतीजा था कि मेरा लंड जब खड़ा होता था तो पूरे 8" का पत्थर बन जाता था. और कुछ ना करने पर भी कम से कम आधे घंटे बाद ही शांत होता था.) अब मेरे लिए भारी मुश्किल हो गयी थी. सामने मेडम ने अपना टवल गाउन पहन लिया था और अब मैं हॉल की तरफ आ रही थी. इधर मेरी पॅंट मेरे मन की दशा जग-जाहिर कर रही थी. मैने अपने लंड को शांत करने के लिए थोडा सहलाया पर इससे बेचेनी और बढ़ गयी. और कुछ ना सूझा तो, मैं एक सोफे की पीछे जाकर खड़ा हो गया. इससे मेरी पॅंट को उभार छिप गया था. मेडम मैं हॉल मे आ चुकी थी- पहले कभी कहीं काम किया है ? आशु- जी नही. मेडम- तुम मुंबई कब आए. आशु- जी 1 दिन पहले. मेडम- बड़े लकी हो की एक दिन मे ही जॉब मिल गया. आशु- जी. मेडम- इतनी दूर क्यों खड़े हो यहाँ आओ. मैं जैसे-तैसे वाहा बैठ गया. पता नही मेडम ने पॅंट को नोटीस किया या नही. मेडम- मैं ज़्यादा नौकर-चाकर नही रखती. जीतने ज़्यादा होते हैं उतना सिरदर्द. मुझे अपनी प्राइवसी बहुत पसंद है. वॉचमन को भी बिल्डिंग मे कदम रखने इजाज़त नही है. केवल तुम्हे ही बिल्डिंग मे हर जगह जाने की इजाज़त होगी. इसलिए तुम्हे ही पूरी बिल्डिंग की केर करनी होगी. बोलो कर सकोगे ? आशु- जी. मेडम- वैसे तो इस घर मे कुल 2 लोग ही रहते हैं, मैं और मेरे पति की बेटी दीपा. घर पर खाना नही बनता. इसके अलावा लौंडरी, चाइ-कॉफी, रख-रखाव जैसे छोटे मोटे काम करने होंगे. आशु- मेडम तन्खा कितनी मिलेगी ? मेडम मुस्कुराते हुए बोली- शुरू मे 20000 रुपये महीना मिलेगा. अगर तुम हमारे काम के निकले तो कोई लिमिट नही है. बोलो तय्यार हो ? आशु- ज..जी मेम . मेडम- ठीक है तो उपर दीपा मेडम का कमरा है, उसे जाकर जगा दो. फिर कॉफी लेकर मेरे लिविंग रूम मे पहुच जाना, एकदम कड़क चाहिए. आशु- जी. मैं तुरंत वाहा से निकल लिया. जान बची सो लखो पाए. किचन मे कॉफी मेकर मे कॉफी का समान डाल कर मैं उपर पहुच गया. वाहा 4 कमरे थे. 3 कमरे लॉक थे. मैने चौथे कमरे का दरवाजा नॉक किया, पर कोई रेस्पोन्स नही आया. थोड़ी देर बाद मैं दरवाजे का हॅंडल घुमाया तो दरवाजा खुल गया. अंदर एक दम चिल्ड था. एक गोल पलंग पर एक खूबसूरत सी लड़की सोई थी. एक दम गोरी-चित्ति, ये दीपा थी. उसके कपड़े देख कर देल्ही की याद ताज़ा हो गयी. वही ट्यूब टॉप और माइक्रो मिनी. पर यहा की बात ही अलग थी. वाहा देल्ही मे लड़कियो को डोर से देख कर ही आँखे सेक्नि पड़ती थी और यहा एक अप्सरा मेरे सामने पड़ी थी. आल्मास्ट सोने से दीपा के कपड़े अस्त-व्यस्त हो गये थे. उसकी ब्लू स्कर्ट तो कमर पर पहुच गयी थी और पूरी पॅंटी अपने दर्शन करा रही थी. उपर का वाइट टॉप भी उपर चढ़ गया था और सुन्दर सी ऑरेंज एमब्राय्डरी ब्रा दिखने लगी थी.