xossip hindi - गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग
xossip hindi - गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग
हम कुछ देर ऐसे ही लिपटकर पड़े रहे. अपने शरीर पर रामु का भारी शरीर मुझे बहुत अच्छा लग रहा था.
कुछ देर बाद रामु बोला, "भाभी, आप सोनपुर के मेले मे का सचमुच चार-चार से चुदवाई थी?"
लग रहा था जोश खतम होने के साथ मेरे लिये उसकी इज़्ज़त भी लौट आयी थी.
मैने मुस्कुराकर जवाब दिया, "अब तुमसे क्या छुपाना, रामु. यह सच है. सोनपुर मे चार-चार लोगों ने मेरा सामुहिक बलात्कार किया था. और मैने उनसे मज़े लेकर चुदवाया था. मुझे बलात्कार करवाना बहुत अच्छा लगता है."
रामु मुझसे अलग हुआ और कपड़े पहनने लगा. मैने भी उठकर पेटीकोट से अपनी चूत से बहते रामु के वीर्य को पोछा और अपने कपड़े पहनने लगी.
"भाभी, आप को चोदकर हमें बहुत मजा आया." रामु बोला, "आपको मजा आया?"
"हाँ रामु, मुझे भी बहुत मज़ा आया तुमसे चुदवा कर." मैने कहा.
"आप फिर हमसे चुदवायेंगी?" रामु ने पूछा.
"हाँ, क्यों नही? चाहो तो तुम मुझे रोज़ चोद सकते हो. पर मेरी एक शर्त है." मैने कहा, "तुम चोदते समय मुझे रंडी, छिनाल, कुतिया जो गाली देना है दे सकते हो. पर सबके सामने मुझे घर की बहु की तरह इज़्ज़त दोगे."
"जरूर भाभी." रामु बोला.
"और गुलाबी को मैं कुछ भी सिखाऊं, तुम दखल नही दोगे!" मैं कहा.
"का सिखायेंगी आप?" रामु ने पूछा.
"मैं उसे अपने जैसी एक छिनाल बनाउंगी. कोई आपत्ती है तुम्हे?" मैने उसे छेड़कर कहा.
"ई का कह रही हैं आप! गुलाबी बहुत भोली लड़की है." रामु बोला, "आप ई सब उसे मत सिखाइये!"
"तो तुम क्या चाहते हो, तुम्हारे चाची के बारे मे उसे सब बता दूं?" मैने कहा.
"नही भाभी, उसे कुछ मत बतायिये!" रामु डरकर बोला, "ऊ हमरे गाँव मे किसी को बता दी तो हम वहाँ मुंह नही दिखा पायेंगे! आप को गुलाबी को जो सिखना है सिखा लो!"
हम कपड़े पहनकर तैयार हुए तो मैने कहा, "रामु तुम यहीं ठहरो. मैं पहले घर जाती हूँ. तुम थोड़ी देर बाद आना."
रामु वहीं रुक गया और मैं घर की तरफ़ चल दी. मेरी साड़ी की तो बहुत बुरी हालत थी. सिलवटों से पूरी तरह खराब हो चुकी थी. ऊपर से उस पर जगह जगह घाँस के तिनके लगे हुए थे. मेरे कपड़ों से वीर्य की तेज महक आ रही थी. मेरे जांघों पर रामु का वीर्य चू रहा था. सिंदूर तो शायद बिलकुल ही फैल गया था. देखकर कोई यही समझ्ता कि मेरा बलात्कार हुआ है.
दो कदम चलते ही मुझे तुम्हारी मामीजी खड़ी दिखाई दी.
मुझे देखकर बोली, "बहु, कितनी देर से चुदवा रही थी किशन से! दो घंटे हो गये तुझे खेत मे गये हुए!"
"माँ, मैं देवरजी से तो बस 10-15 मिनट ही चुदी थी." मैने कहा, "बाकी समय तो मुझे रामु चोद रहा था."
सासुमाँ सुनकर बोली, "क्या बहु! तो रामु से भी चुद ली? बड़ी पहुंची हुई रांड है तु तो!"
"नही माँ, मैने कुछ नही किया." मैने जवाब दिया, "मै किशन से चुदवा रही थी तब उसने हमें देख लिया. फिर मुझे रास्ते मे पकड़कर उसने मेरा बलात्कार किया. बहुत गंदी गंदी गालियाँ दे देकर चोद रहा था मुझे."
"और तु उसकी गालियाँ सुनकर उत्तेजित हो गयी और खूब मज़े लेकर उससे चुदवाई." सासुमाँ मुस्कुराकर बोली.
"माँ आपको कैसे पता?" मैं हैरान होकर पूछा.
"मैने देखा ना तुम दोनो को झड़ी के पीछे चुदाई करते हुए!" ससुमे हंसकर बोली, "जब रामु बहुत देर तक वापस नही आया, तो मैं खुद देखने चली आयी. झाड़ी के पीछे से मस्ती की आवाज़ें आ रही थी. झांक कर देखा तो पाया रामु मेरे घर की बहु को रंडी, कुतिया, छिनाल, चूतमरानी और न जाने क्या क्या कहकर चोद रहा है."
मैने शरम से सर झुका दी जैसे मेरी कोई चोरी पकड़ी गयी हो.
सासुमाँ बोली, "बहु तु घर जा. पीछे के दरवाज़े से अन्दर जाना. तेरे कपड़ों की हालत तो पूछ ही मत. तेरे बदन से वीर्य की इतनी तेज महक आ रही है कि लगता है तु 10 मर्दों के वीर्य मे नहाकर आ रही है! कहीं बलराम या गुलाबी ने तेरी यह हालत देख ली तो मुश्किल हो जायेगी."
"आप भी चलो ना, माँ." मैने कहा.
"नही. मैं ज़रा रामु की खबर लेती हूँ." सासुमाँ बोली, "मादरचोद की इतनी हिम्मत, नौकर होकर मेरी बहु को रंडी कह कर गाली दे! हमारी चूत मारेगा तो हमारे इशारे पर. तु अब जा, बहु, नही तो गुलाबी मुझे ढूंढते हुए आ जायेगी!"
मैने घर की तरफ़ चल दी और सासुमाँ उस झुरमुट मे घुस गयी जहाँ रामु छुपा बैठा था.
मुझे बहुत उत्सुकता हुई कि आखिर तुम्हारी मामीजी रामु के साथ क्या सलुक करती है. मैं भी चुपके से सासुमाँ के पीछे उस झुरमुट के पास गयी और आड़ से झाड़ी के पीछे झांकने लगी.
कुछ देर बाद रामु बोला, "भाभी, आप सोनपुर के मेले मे का सचमुच चार-चार से चुदवाई थी?"
लग रहा था जोश खतम होने के साथ मेरे लिये उसकी इज़्ज़त भी लौट आयी थी.
मैने मुस्कुराकर जवाब दिया, "अब तुमसे क्या छुपाना, रामु. यह सच है. सोनपुर मे चार-चार लोगों ने मेरा सामुहिक बलात्कार किया था. और मैने उनसे मज़े लेकर चुदवाया था. मुझे बलात्कार करवाना बहुत अच्छा लगता है."
रामु मुझसे अलग हुआ और कपड़े पहनने लगा. मैने भी उठकर पेटीकोट से अपनी चूत से बहते रामु के वीर्य को पोछा और अपने कपड़े पहनने लगी.
"भाभी, आप को चोदकर हमें बहुत मजा आया." रामु बोला, "आपको मजा आया?"
"हाँ रामु, मुझे भी बहुत मज़ा आया तुमसे चुदवा कर." मैने कहा.
"आप फिर हमसे चुदवायेंगी?" रामु ने पूछा.
"हाँ, क्यों नही? चाहो तो तुम मुझे रोज़ चोद सकते हो. पर मेरी एक शर्त है." मैने कहा, "तुम चोदते समय मुझे रंडी, छिनाल, कुतिया जो गाली देना है दे सकते हो. पर सबके सामने मुझे घर की बहु की तरह इज़्ज़त दोगे."
"जरूर भाभी." रामु बोला.
"और गुलाबी को मैं कुछ भी सिखाऊं, तुम दखल नही दोगे!" मैं कहा.
"का सिखायेंगी आप?" रामु ने पूछा.
"मैं उसे अपने जैसी एक छिनाल बनाउंगी. कोई आपत्ती है तुम्हे?" मैने उसे छेड़कर कहा.
"ई का कह रही हैं आप! गुलाबी बहुत भोली लड़की है." रामु बोला, "आप ई सब उसे मत सिखाइये!"
"तो तुम क्या चाहते हो, तुम्हारे चाची के बारे मे उसे सब बता दूं?" मैने कहा.
"नही भाभी, उसे कुछ मत बतायिये!" रामु डरकर बोला, "ऊ हमरे गाँव मे किसी को बता दी तो हम वहाँ मुंह नही दिखा पायेंगे! आप को गुलाबी को जो सिखना है सिखा लो!"
हम कपड़े पहनकर तैयार हुए तो मैने कहा, "रामु तुम यहीं ठहरो. मैं पहले घर जाती हूँ. तुम थोड़ी देर बाद आना."
रामु वहीं रुक गया और मैं घर की तरफ़ चल दी. मेरी साड़ी की तो बहुत बुरी हालत थी. सिलवटों से पूरी तरह खराब हो चुकी थी. ऊपर से उस पर जगह जगह घाँस के तिनके लगे हुए थे. मेरे कपड़ों से वीर्य की तेज महक आ रही थी. मेरे जांघों पर रामु का वीर्य चू रहा था. सिंदूर तो शायद बिलकुल ही फैल गया था. देखकर कोई यही समझ्ता कि मेरा बलात्कार हुआ है.
दो कदम चलते ही मुझे तुम्हारी मामीजी खड़ी दिखाई दी.
मुझे देखकर बोली, "बहु, कितनी देर से चुदवा रही थी किशन से! दो घंटे हो गये तुझे खेत मे गये हुए!"
"माँ, मैं देवरजी से तो बस 10-15 मिनट ही चुदी थी." मैने कहा, "बाकी समय तो मुझे रामु चोद रहा था."
सासुमाँ सुनकर बोली, "क्या बहु! तो रामु से भी चुद ली? बड़ी पहुंची हुई रांड है तु तो!"
"नही माँ, मैने कुछ नही किया." मैने जवाब दिया, "मै किशन से चुदवा रही थी तब उसने हमें देख लिया. फिर मुझे रास्ते मे पकड़कर उसने मेरा बलात्कार किया. बहुत गंदी गंदी गालियाँ दे देकर चोद रहा था मुझे."
"और तु उसकी गालियाँ सुनकर उत्तेजित हो गयी और खूब मज़े लेकर उससे चुदवाई." सासुमाँ मुस्कुराकर बोली.
"माँ आपको कैसे पता?" मैं हैरान होकर पूछा.
"मैने देखा ना तुम दोनो को झड़ी के पीछे चुदाई करते हुए!" ससुमे हंसकर बोली, "जब रामु बहुत देर तक वापस नही आया, तो मैं खुद देखने चली आयी. झाड़ी के पीछे से मस्ती की आवाज़ें आ रही थी. झांक कर देखा तो पाया रामु मेरे घर की बहु को रंडी, कुतिया, छिनाल, चूतमरानी और न जाने क्या क्या कहकर चोद रहा है."
मैने शरम से सर झुका दी जैसे मेरी कोई चोरी पकड़ी गयी हो.
सासुमाँ बोली, "बहु तु घर जा. पीछे के दरवाज़े से अन्दर जाना. तेरे कपड़ों की हालत तो पूछ ही मत. तेरे बदन से वीर्य की इतनी तेज महक आ रही है कि लगता है तु 10 मर्दों के वीर्य मे नहाकर आ रही है! कहीं बलराम या गुलाबी ने तेरी यह हालत देख ली तो मुश्किल हो जायेगी."
"आप भी चलो ना, माँ." मैने कहा.
"नही. मैं ज़रा रामु की खबर लेती हूँ." सासुमाँ बोली, "मादरचोद की इतनी हिम्मत, नौकर होकर मेरी बहु को रंडी कह कर गाली दे! हमारी चूत मारेगा तो हमारे इशारे पर. तु अब जा, बहु, नही तो गुलाबी मुझे ढूंढते हुए आ जायेगी!"
मैने घर की तरफ़ चल दी और सासुमाँ उस झुरमुट मे घुस गयी जहाँ रामु छुपा बैठा था.
मुझे बहुत उत्सुकता हुई कि आखिर तुम्हारी मामीजी रामु के साथ क्या सलुक करती है. मैं भी चुपके से सासुमाँ के पीछे उस झुरमुट के पास गयी और आड़ से झाड़ी के पीछे झांकने लगी.
xossip hindi - गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग
रामु ने जैसे ही सासुमाँ को देखा वह बुरी तरह चौंक उठा. "मालकिन! आप! यहाँ!"
"क्यों रे नालायक! तुझे एक घंटे पहले भेजा था बहु को लेकर आने के लिये." सासुमाँ चिल्लाकर बोली, "तु यहाँ क्या कर रहा है?"
वीणा, रामु सासुमाँ से बहुत डरता है. वह 18 साल की उम्र से हमारे घर पे काम कर रहा है.
सासुमाँ को देखकर वह कांपने लगा और हकलाने लगा, "म-म-मालकिन! ह-ह-हम तो ब-बस आने ही वाले थे."
"मेरी बहु कहाँ है?" सासुमाँ ने कड़क आवाज़ मे पूछा.
"पता नही!" रामु बोला, "हमे मिली नही!"
"तुने देखा ठीक से? किशन के पास नही थी?"
"नही वहाँ भी नही थी." रामु बोला, "प-पता नही, मालकिन. वह क-कहाँ गयी."
"साले बदमाश! झूठ बोलता है!" ससुम ने डांट लगाई.
"नही, म-मालकिन!" रामु गिड़गिड़ाकर बोला, "माँ कसम! हम नही देखे भाभी को!"
"चुप! तु तो अपनी माँ को कोठे पर बेच दे! माँ की कसम खाता है, नालायक."
"मालकिन, आप हमरी माँ के बारे मे ऐसा मत बोलिये!" रामु ने ऐंठकर कहा.
"क्यों रे?" सासुमाँ ने उसकी एक कान पकड़ ली और मरोड़कर बोली, "तु अपनी चाची के साथ मुंह काला करके उसका गर्भ बना सकता है तो अपनी माँ को तु छोड़ देगा?"
रामु की आंखें बड़ी बड़ी हो गई. कुछ देर अपना मुंह मछली की तरह खोलता और बंद करता रहा. फिर बोला, "आ-आपको, कैसे पता, मालकिन?"
सासुमाँ बोली, "जब मैं आ रही थी मुझे मेरी बहु मिली थी. हरामज़ादे, बेचारी की क्या हालत बनायी है तुने! रो रोकर मुझे सब बतायी वो. किस तरह बेरहमी से तुने उसका बलात्कार किया है!"
देखकर लगा रामु की आंखे गोटियों की तरह बाहर आ जायेंगी.
"म-मालकिन...ह-ह-हम भाभी का बलात्कार किये?" बहुत मुश्किल से उसने कहा. उसकी हालत देखकर इधर तो मैं मुश्किल से अपनी हंसी रोक पा रही थी.
"और नही तो क्या तेरे बाप ने किया है?" सासुमाँ बोली, "उसका सिंदूर पूरा फैल गया था. उसके कपड़े सारे खराब हो गये थे. कोई भी देखकर समझ सकता है तुने उस बेचारी लड़की के साथ क्या क्या जुलम किये हैं."
"ऊ सब हम नही किये हैं, मालकिन!" रामु झट से बोला, "ऊ सब किसन भैया किये हैं!"
"क्या बकता है!" सासुमाँ फिर उसका कान मरोड़कर बोली, "तु कहना चाहता हैं मेरी देवी जैसे बहु का बलात्कार उसके लक्षमण जैसे देवर ने किया है? साले, रंडी की औलाद! कीड़े पड़े तेरे मुंह मे!"
रामु को समझ मे नही आ रहा था अब क्या कहे. उसने अपनी आंखों से देखा था मुझे किशन से चुदवाते हुए. "मालकिन, हम अपनी आंखों से देखे हैं..."
"तुने शराब पी रखी है?" सासुमाँ ने पूछा.
"नही मालकिन!" रामु बोला, "बस थोड़ी सी..."
"शराब पीकर तुने मेरी बहु की इज़्ज़त लूटी, मादरचोद!" सासुमाँ की भाषा धीरे धीरे रंगीन होती जा रही थी. "तुझे तो मैं थानेदार से इतने डंडे खिलवाऊंगी कि ज़िन्दगी मे तेरा औज़ार फिर कभी खड़ा नही होगा."
"मालकिन, आप पुलिस वुलिस मत बुलाइये! ऊ लोग हम को पीट पीटकर मार डालेंगे! फिर हमरी गुलाबी का का होगा!" रामु गिड़गिड़ाकर बोला, "आप यकीन मानिये! हम भाभी की इज़्ज़त नही लूटे हैं. ऊ तो हमरी माँ समान है!" रामु बोला.
"तो किसने लूटी उसकी इज़्ज़त?" सासुमाँ ने पूछा.
"किसी ने नही, मालकिन." रामु बोला, "भाभी खुदे हमको बोली उनके साथ सब काम करने को."
"कौन सा काम?"
"वही सब काम...जो आदमी-औरत....करता है." रामु हिचकिचा कर बोला, "भगवान कसम, वही बोली थी!"
सासुमाँ कुछ देर चुप रही, फिर बोली, "तु तो कहता है मेरी बहु तेरी माँ समान है? वह बोली और तुने उसके साथ मुंह काला कर लिया?"
"मालकिन...हम थोड़े...भावुक हो गये थे." रामु बोला.
"तु भावुक हो गया तो क्या अपनी माँ पर भी चढ़ जायेगा?" सासुमाँ बोली, "आठ साल से मेरे घर की रोटियाँ तोड़ रहा है, भड़ुवे की औलाद! घर की बहु पर मुंह मारने से पहले थोड़ा भी नही सोचा तुने?"
रामु बोला, "ऊ का है न मालकिन...जवानी मे ऐसा हो जाता है..."
"अच्छा! बहुत जवानी चढ़ गयी है तुझे?" सासुमाँ ने कहा, "अभी देखती हूँ कितनी जवानी है तुझमे. बहिनचोद, इज़्ज़त खराब करने के लिये तेरी रंडी माँ बहिन नही मिली थी? मेरा घर ही मिला था तुझे?"
"मालकिन...आप हमरी माँ बहिन को काहे गाली दे रही हैं?" रामु बोला.
"क्यों, तु मेरी बहु को ठोकते समय क्या कह रहा था? वह छिनाल है? रंडी है? कुतिया है?" सासुमाँ बोली, "ठहर तेरी और तेरे खानदान के इज़्ज़त का फ़लूदा बनाती हूँ. चल अपने कपड़े उतार!"
रामु को समझ मे नही आया सासुमाँ ने क्या कहा. वह बोला, "मालकिन, कपड़े उतारूं?"
"हाँ रे गांडु! अपने कपड़े उतारकर नंगा हो जा!" सासुमाँ बोली, "तुझे पूरे गाँव मे नंगा घुमाऊंगी. सगी चाची की चूत मारकर पेट बनाता है और मेरी बहु को छिनाल कहता है!"
सासुमाँ की अश्लील भाषा सुनकर रामु एक पल के लिये रुक गया. फिर बोला, "मालकिन! हम आपके पाँव पड़ते हैं! हमे माफ़ कर दीजिये! ऐसी गलती फिर कभी नही होगी!"
"क्यों रे! मेरी बहु को चोदते समय तो पूरा नंगा हो गया था. अब कहाँ से शरम आ रही है?" सासुमाँ बोली, "उतार कपड़े या पुलिस बुलाऊं?"
रामु धीरे धीरे अपने कपड़े उतारने लगा. सासुमाँ साड़ी का आंचल कमर मे बांधे, दोनो हाथ अपनी कमर पर रखे, उसे देखती रही. रामु ने आंखे नीची करके अपनी कमीज, बनियान और पैंट उतार दी. उसका लन्ड बिलकुल ढीला हो गया था पर चड्डी मे काफ़ी उभर कर दिख रहा था.
सासुमाँ ने ज़मीन से एक छड़ी उठायी और उसकी नोक रामु के लौड़े पर रखकर बोली, "यही औज़ार तुने जबरदस्ती घुसाया था मेरी बहु की चूत मे? बहुत दर्द हुआ था उस बेचारी को."
"दर्द नही हुआ था, मालकिन." रामु धीरे से बोला. सासुमाँ के सामने इस तरह अध-नंगे खड़े रहने की वज़ह से उसे बहुत बेचैनी हो रही थी.
"क्यों, दर्द क्यों नही हुआ था?" सासुमाँ उसके लन्ड को डंडी से छेड़ती हुई बोली, "बहुत छोटा है क्या तेरा लौड़ा? तभी गुलाबी मेरे बलराम से चुदने के लिये लार टपकाती रहती है."
सासुमाँ की भाषा भद्दी से भद्दी होती जा रही थी. अब जाके रामु के पौरुष को चोट लगी. थोड़ा अकड़कर बोला, "छोटा नही है, मालकिन. गुलाबी खुस है हमरे औजार से!"
"अच्छा? कितनी बड़ी है तेरी नूनी?" सासुमाँ चिढ़ाकर बोली, "जब बलराम 5 साल का था, तब उसकी नूनी इतनी थी."
"7 इंच की हैं, मालकिन." रामु थोड़ा गुस्से से बोला.
सासुमाँ ने थोड़ी देर डंडे से चड्डी के ऊपर से उसके लन्ड को छेड़ा. फिर कहा, "7 इंच तो बुरा नही है! बहु को इससे ज़रूर दर्द हुआ होगा!"
"हम कहे ना, भाभी हम से अपनी मरजी से करवाई है." रामु बोला, "हम उनको कोई दर्द नही दिये."
"तो क्या वह बहुत मज़े से चुदवाई तुझसे?" सासुमाँ ने पूछा.
"हाँ. भाभी का चरित्र ठीक नही है, मालकिन. उनका बलात्कार करने की जरूरत ही का है जब वह खुसी खुसी दे देती है." रामु बोला, "और आप माने या न माने, हम अपनी आंखों से देखे भाभी को किसन भैया के साथ खेत मे मुंह काला करते हुए."
"क्या देखा तुने?" ससुम ने पूछा.
"का बतायें, मालकिन." रामु बोला, "किसन भैया और भाभी नंगे होकर चारपायी के ऊपर कर रहे थे."
"क्या कर रहे थे?" सासुमाँ ने पूछा.
"वही...." रामु संकोच के कारण खोलकर बता नही पा रहा था.
"चुदाई कर रहे थे?" सासुमाँ ने पूछा, "चुदाई कर रहे थे तो बोल न खोलकर, वर्ना मुझे कैसे समझ आयेगा क्या कर रहे थे?"
"जी." रामु बोला.
शायद परिस्थिति ही कुछ ऐसे थी कि रामु के लन्ड मे ताव आने लगा और चड्डी मे उसका लन्ड थोड़ा खड़ा होने लगा. ऊपर से सासुमाँ की अश्लील भाषा और छड़ी की नोक से उसके लन्ड को छेड़ना रामु को उत्तेजित कर रहा था.
"क्यों रे नालायक! तुझे एक घंटे पहले भेजा था बहु को लेकर आने के लिये." सासुमाँ चिल्लाकर बोली, "तु यहाँ क्या कर रहा है?"
वीणा, रामु सासुमाँ से बहुत डरता है. वह 18 साल की उम्र से हमारे घर पे काम कर रहा है.
सासुमाँ को देखकर वह कांपने लगा और हकलाने लगा, "म-म-मालकिन! ह-ह-हम तो ब-बस आने ही वाले थे."
"मेरी बहु कहाँ है?" सासुमाँ ने कड़क आवाज़ मे पूछा.
"पता नही!" रामु बोला, "हमे मिली नही!"
"तुने देखा ठीक से? किशन के पास नही थी?"
"नही वहाँ भी नही थी." रामु बोला, "प-पता नही, मालकिन. वह क-कहाँ गयी."
"साले बदमाश! झूठ बोलता है!" ससुम ने डांट लगाई.
"नही, म-मालकिन!" रामु गिड़गिड़ाकर बोला, "माँ कसम! हम नही देखे भाभी को!"
"चुप! तु तो अपनी माँ को कोठे पर बेच दे! माँ की कसम खाता है, नालायक."
"मालकिन, आप हमरी माँ के बारे मे ऐसा मत बोलिये!" रामु ने ऐंठकर कहा.
"क्यों रे?" सासुमाँ ने उसकी एक कान पकड़ ली और मरोड़कर बोली, "तु अपनी चाची के साथ मुंह काला करके उसका गर्भ बना सकता है तो अपनी माँ को तु छोड़ देगा?"
रामु की आंखें बड़ी बड़ी हो गई. कुछ देर अपना मुंह मछली की तरह खोलता और बंद करता रहा. फिर बोला, "आ-आपको, कैसे पता, मालकिन?"
सासुमाँ बोली, "जब मैं आ रही थी मुझे मेरी बहु मिली थी. हरामज़ादे, बेचारी की क्या हालत बनायी है तुने! रो रोकर मुझे सब बतायी वो. किस तरह बेरहमी से तुने उसका बलात्कार किया है!"
देखकर लगा रामु की आंखे गोटियों की तरह बाहर आ जायेंगी.
"म-मालकिन...ह-ह-हम भाभी का बलात्कार किये?" बहुत मुश्किल से उसने कहा. उसकी हालत देखकर इधर तो मैं मुश्किल से अपनी हंसी रोक पा रही थी.
"और नही तो क्या तेरे बाप ने किया है?" सासुमाँ बोली, "उसका सिंदूर पूरा फैल गया था. उसके कपड़े सारे खराब हो गये थे. कोई भी देखकर समझ सकता है तुने उस बेचारी लड़की के साथ क्या क्या जुलम किये हैं."
"ऊ सब हम नही किये हैं, मालकिन!" रामु झट से बोला, "ऊ सब किसन भैया किये हैं!"
"क्या बकता है!" सासुमाँ फिर उसका कान मरोड़कर बोली, "तु कहना चाहता हैं मेरी देवी जैसे बहु का बलात्कार उसके लक्षमण जैसे देवर ने किया है? साले, रंडी की औलाद! कीड़े पड़े तेरे मुंह मे!"
रामु को समझ मे नही आ रहा था अब क्या कहे. उसने अपनी आंखों से देखा था मुझे किशन से चुदवाते हुए. "मालकिन, हम अपनी आंखों से देखे हैं..."
"तुने शराब पी रखी है?" सासुमाँ ने पूछा.
"नही मालकिन!" रामु बोला, "बस थोड़ी सी..."
"शराब पीकर तुने मेरी बहु की इज़्ज़त लूटी, मादरचोद!" सासुमाँ की भाषा धीरे धीरे रंगीन होती जा रही थी. "तुझे तो मैं थानेदार से इतने डंडे खिलवाऊंगी कि ज़िन्दगी मे तेरा औज़ार फिर कभी खड़ा नही होगा."
"मालकिन, आप पुलिस वुलिस मत बुलाइये! ऊ लोग हम को पीट पीटकर मार डालेंगे! फिर हमरी गुलाबी का का होगा!" रामु गिड़गिड़ाकर बोला, "आप यकीन मानिये! हम भाभी की इज़्ज़त नही लूटे हैं. ऊ तो हमरी माँ समान है!" रामु बोला.
"तो किसने लूटी उसकी इज़्ज़त?" सासुमाँ ने पूछा.
"किसी ने नही, मालकिन." रामु बोला, "भाभी खुदे हमको बोली उनके साथ सब काम करने को."
"कौन सा काम?"
"वही सब काम...जो आदमी-औरत....करता है." रामु हिचकिचा कर बोला, "भगवान कसम, वही बोली थी!"
सासुमाँ कुछ देर चुप रही, फिर बोली, "तु तो कहता है मेरी बहु तेरी माँ समान है? वह बोली और तुने उसके साथ मुंह काला कर लिया?"
"मालकिन...हम थोड़े...भावुक हो गये थे." रामु बोला.
"तु भावुक हो गया तो क्या अपनी माँ पर भी चढ़ जायेगा?" सासुमाँ बोली, "आठ साल से मेरे घर की रोटियाँ तोड़ रहा है, भड़ुवे की औलाद! घर की बहु पर मुंह मारने से पहले थोड़ा भी नही सोचा तुने?"
रामु बोला, "ऊ का है न मालकिन...जवानी मे ऐसा हो जाता है..."
"अच्छा! बहुत जवानी चढ़ गयी है तुझे?" सासुमाँ ने कहा, "अभी देखती हूँ कितनी जवानी है तुझमे. बहिनचोद, इज़्ज़त खराब करने के लिये तेरी रंडी माँ बहिन नही मिली थी? मेरा घर ही मिला था तुझे?"
"मालकिन...आप हमरी माँ बहिन को काहे गाली दे रही हैं?" रामु बोला.
"क्यों, तु मेरी बहु को ठोकते समय क्या कह रहा था? वह छिनाल है? रंडी है? कुतिया है?" सासुमाँ बोली, "ठहर तेरी और तेरे खानदान के इज़्ज़त का फ़लूदा बनाती हूँ. चल अपने कपड़े उतार!"
रामु को समझ मे नही आया सासुमाँ ने क्या कहा. वह बोला, "मालकिन, कपड़े उतारूं?"
"हाँ रे गांडु! अपने कपड़े उतारकर नंगा हो जा!" सासुमाँ बोली, "तुझे पूरे गाँव मे नंगा घुमाऊंगी. सगी चाची की चूत मारकर पेट बनाता है और मेरी बहु को छिनाल कहता है!"
सासुमाँ की अश्लील भाषा सुनकर रामु एक पल के लिये रुक गया. फिर बोला, "मालकिन! हम आपके पाँव पड़ते हैं! हमे माफ़ कर दीजिये! ऐसी गलती फिर कभी नही होगी!"
"क्यों रे! मेरी बहु को चोदते समय तो पूरा नंगा हो गया था. अब कहाँ से शरम आ रही है?" सासुमाँ बोली, "उतार कपड़े या पुलिस बुलाऊं?"
रामु धीरे धीरे अपने कपड़े उतारने लगा. सासुमाँ साड़ी का आंचल कमर मे बांधे, दोनो हाथ अपनी कमर पर रखे, उसे देखती रही. रामु ने आंखे नीची करके अपनी कमीज, बनियान और पैंट उतार दी. उसका लन्ड बिलकुल ढीला हो गया था पर चड्डी मे काफ़ी उभर कर दिख रहा था.
सासुमाँ ने ज़मीन से एक छड़ी उठायी और उसकी नोक रामु के लौड़े पर रखकर बोली, "यही औज़ार तुने जबरदस्ती घुसाया था मेरी बहु की चूत मे? बहुत दर्द हुआ था उस बेचारी को."
"दर्द नही हुआ था, मालकिन." रामु धीरे से बोला. सासुमाँ के सामने इस तरह अध-नंगे खड़े रहने की वज़ह से उसे बहुत बेचैनी हो रही थी.
"क्यों, दर्द क्यों नही हुआ था?" सासुमाँ उसके लन्ड को डंडी से छेड़ती हुई बोली, "बहुत छोटा है क्या तेरा लौड़ा? तभी गुलाबी मेरे बलराम से चुदने के लिये लार टपकाती रहती है."
सासुमाँ की भाषा भद्दी से भद्दी होती जा रही थी. अब जाके रामु के पौरुष को चोट लगी. थोड़ा अकड़कर बोला, "छोटा नही है, मालकिन. गुलाबी खुस है हमरे औजार से!"
"अच्छा? कितनी बड़ी है तेरी नूनी?" सासुमाँ चिढ़ाकर बोली, "जब बलराम 5 साल का था, तब उसकी नूनी इतनी थी."
"7 इंच की हैं, मालकिन." रामु थोड़ा गुस्से से बोला.
सासुमाँ ने थोड़ी देर डंडे से चड्डी के ऊपर से उसके लन्ड को छेड़ा. फिर कहा, "7 इंच तो बुरा नही है! बहु को इससे ज़रूर दर्द हुआ होगा!"
"हम कहे ना, भाभी हम से अपनी मरजी से करवाई है." रामु बोला, "हम उनको कोई दर्द नही दिये."
"तो क्या वह बहुत मज़े से चुदवाई तुझसे?" सासुमाँ ने पूछा.
"हाँ. भाभी का चरित्र ठीक नही है, मालकिन. उनका बलात्कार करने की जरूरत ही का है जब वह खुसी खुसी दे देती है." रामु बोला, "और आप माने या न माने, हम अपनी आंखों से देखे भाभी को किसन भैया के साथ खेत मे मुंह काला करते हुए."
"क्या देखा तुने?" ससुम ने पूछा.
"का बतायें, मालकिन." रामु बोला, "किसन भैया और भाभी नंगे होकर चारपायी के ऊपर कर रहे थे."
"क्या कर रहे थे?" सासुमाँ ने पूछा.
"वही...." रामु संकोच के कारण खोलकर बता नही पा रहा था.
"चुदाई कर रहे थे?" सासुमाँ ने पूछा, "चुदाई कर रहे थे तो बोल न खोलकर, वर्ना मुझे कैसे समझ आयेगा क्या कर रहे थे?"
"जी." रामु बोला.
शायद परिस्थिति ही कुछ ऐसे थी कि रामु के लन्ड मे ताव आने लगा और चड्डी मे उसका लन्ड थोड़ा खड़ा होने लगा. ऊपर से सासुमाँ की अश्लील भाषा और छड़ी की नोक से उसके लन्ड को छेड़ना रामु को उत्तेजित कर रहा था.
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सासुमाँ ने डंडी की नोक को उसके चड्डी के इलास्टिक मे फंसाकर चड्डी को नीचे कर दिया जिससे रामु का लन्ड बाहर आ गया. लन्ड पूरी तरह खड़ा नही था पर उसकी लंबाई और मोटाई का अंदाज़ा लगाया जा सकता था.
रामु ने अपनी चड्डी चढ़ाने की कोशिश की तो सासुमाँ डांटकर बोली, "हाथ हटा! मैं भी तो देखूं जिस लौड़े के लिये मेरी बहु ने घर की इज़्ज़त मिट्टी मे मिला दी है, वह कितना बड़ा है!"
सासुमाँ ने छड़ी से खींचकर रामु की चड्डी ज़मीन पर गिरा दी, तो रामु पूरी तरह नंगा हो गया. सासुमाँ ने फिर उसके नंगे लन्ड को डंडे से छेड़ना शुरु किया.
थोड़ी ही देर मे रामु का लन्ड खड़े होकर अपने पूरे आकर मे आ गया. सासुमाँ ने अब छड़ी फेक दी और रामु के करीब जाकर उसके लन्ड को हाथ से पकड़ लिया. मुट्ठी मे लेकर लन्ड की लंबाई, मोटाई सब नापा. उसके पेलड़ को भी उंगलियों से छेड़कर देखा. रामु ने आंख बंद कर ली और उसका शरीर उत्तेजना मे कांपने लगा.
"ठीक-ठाक है, तेरा लन्ड. गुलाबी के किस्मत मे यही लिखा है तो वह बेचारी भी क्या करे!" सासुमाँ रामु के खड़े लन्ड को हिलाते हुए बोली, "हाँ तो बता, किशन और बहु की चुदाई देखने के बाद तुने क्या किया?"
"मालकिन, जब भाभी कपड़े पहिन कर घर को लौट रही थी, हम उनको पूछे वह काहे अपने देवर के साथ मुंह काला कर रही थी." रामु बोला, "हम बोले की हम मालकिन को सब बता देंगे!"
"ऐसा कहा तुने?" सासुमाँ ने पूछा.
"जी, मालकिन!" रामु बोला, "पर भाभी बोली, रामु सासुमाँ को मत बताओ. तुम चाहो तो मेरी जवानी से खेल सकते हो."
"फिर तुने क्या कहा?"
"हम कहे कि भाभी हमारे लिये माँ समान होती है!" रामु बोला.
"अच्छा? बड़े उच्च विचार हैं तेरे! फिर तु उसे कैसे चोद बैठा?" सासुमाँ ने पूछा. वह तो जानती थी रामु सरासर झूठ बोल रहा है.
रामु थोड़ा हिचकिचा कर बोला, "भाभी फिर अपनी साड़ी का पल्लु गिरा दी और अपना बिलाउज और बिरा खोलकर अपने नंगे जोबन हमको दिखाई. बोली, रामु चखकर देखोगे मेरे जोबन?"
"ओहो! तुने कोई जबरदस्ती नही की?" सासुमाँ बोली.
रामु ने देखा कि सासुमाँ उसकी कहानी पर विश्वास नही कर रही है तो वह बोला, "मालकिन, थोड़ी सी जबरदस्ती किये थे हम. भाभी को किसन भैया के साथ देखकर हम थोड़े भावुक हो गये थे. पर भाभी हमरा पूरा साथ दी थी."
"ठीक है. आगे बोल!" सासुमाँ बोली. वह धीरे धीरे रामु के लन्ड को हिलाये जा रही थी.
"हम भाभी को पकड़कर इस झुरमुट मे ले आये, और फिर उनके जोबन को बहुत पियार किये." रामु ने कहा.
"प्यार किया मतलब क्या?" सासुमाँ ने पूछा.
"मतलब, दबाये और चूसे." रामु ने कहा.
"कैसी लगी तुझे मेरी बहु की चूचियां?" सासुमाँ ने पूछा.
"अच्छी लगी, मालकिन." रामु ने कहा. फिर उसने जोड़ा, "बहुत गोरे गोरे और कसे कसे हैं भाभी के जोबन."
"मेरे चूचियों से भी अच्छी हैं?" सासुमाँ ने रामु से पूछा.
रामु ने कोई जवाब नही दिया. बस हैरान होकर सासुमाँ को देखने लगा. वह सोच मे पड़ गया कि आखिर यह हो क्या रहा है!
सासुमाँ ने अपने साड़ी का आंचल कंधे से गिरा दिया और बोली, "अच्छा अब ठीक से देखकर बता. बहु की चूचियां अच्छी हैं या मेरी?"
रामु के सामने तुम्हारी मामीजी की ब्लाउज़ मे कसी बड़ी-बड़ी चूचियां थी जो मेरे से दुगुने आकर की थी. उसने छू के देखने के लिये हाथ उठाया फिर हाथ नीचे कर लिया.
"अरे हाथ लगाकर देख ले! बहुतों ने हाथ लगाये हैं मेरी चूचियों को." सासुमाँ बोली. उनका हाथ अब भी रामु के मोटे काले लन्ड को धीरे धीरे हिलाये जा रहा था.
रामु ने एक हाथ बढ़ाकर सासुमाँ के दो चूचियों को धीरे से दबाया पर वह कुछ बोला नही.
सासुमाँ ने कहा, "क्या रे! ज़ुबान नही है क्या?
"अच्छी है मालकिन." रामु ने कहा, "आपके जोबन भी अच्छे हैं."
"लगता है तुने ठीक से देखा नही." सासुमाँ बोली, "ठहर, ब्लाउज़ उतारकर दिखाती हूँ."
रामु की फटी-फटी आंखों के सामने सासुमाँ अपने ब्लाउज़ के हुक खोलने लगी. हुक खोलकर रामु की तरफ़ पीठ करके बोली, "रामु, ज़रा मेरी ब्लाउज़ उतार दे."
रामु ने सासुमाँ की ब्लाउज़ उतार दी और अपने कंधे पर रख ली.
"अच्छा, अब मेरी ब्रा भी उतार दे." सासुमाँ ने कहा.
रामु ने अपने दो कांपते हाथ बढ़ाये और सासुमाँ के ब्रा का हुक खोलने लगा. पर शायद हैरत, डर, और उत्तेजना मे उसके हाथ कांप रहे थे, या फिर हुक बहुत टाईट थी, जिसकी वजह से हुक खुल ही नही रहा था.
"तु क्या कर रहा है, रामु!" सासुमाँ जोर से दहाड़ उठी, "एक हुक भी नही खोला जाता है तुझसे? चूतिये, गुलाबी की ब्रा खोले बिना ही उसे चोदता है क्या?"
"ख-खोल रहे हैं, मालकिन." रामु ने कहा और थोड़ी मशक्कत के बाद हुक खुल गया. रामु ने सासुमाँ की ब्रा उनके बाहों से अलग किया और अपने कंधे पर रख लिया.
सासुमाँ ने कहा, "अब पीछे से मेरी दोनो चूचियों को पकड़. उन्हे दबा के देख. उनकी घुंडियों को मीस के देख. फिर बता, मेरी चूचियां अच्छी हैं या मेरी बहु की."
रामु ने ऐसा ही किया. सासुमाँ की पपीते जैसे बड़ी बड़ी चूचियों को पीछे से पकड़ा और दबाने और मसलने लगा. उसे इतना जोश आ गया कि उसने अचानक उसने सासुमाँ की दोनो चूचियों को जोर से पकड़कर उन्हे खींचकर अपने नंगे बदन से चिपका लिया और अपना खड़ा लन्ड उनके चूतड़ पर दबा दिया और उनके कंधे को चूमने लगा.
"अबे सुअर की औलाद! कर क्या रहा है तु?" सासुमाँ गुस्से से बोली, "तुझे मैने कहा कि मेरी गांड मार? फिर क्यों मेरी गांड मे अपना लौड़ा ठूंस रहा है? तुझे कहा है मेरी चूचियों का निरीक्षण कर. बस उतना ही कर जो कहा जाये!"
रामु झट से अलग हो गया.
सासुमाँ उसकी तरफ़ मुड़ी और बोली, "अब बता, क्या सोचा तुने."
"मालकिन, आपके जोबन बहुत बड़े और सख्त हैं." रामु बोला.
"लगता है तुने ठीक से मेरी चूचियों का निरीक्षण नही किया है." सासुमाँ बोली, "मेरी चूचियों को मुंह मे लेकर चूस और बता उनका स्वाद मेरी बहु की चूचियों से अच्छा है या नही."
झाड़ी के आड़ मे खड़ी मैं सासुमाँ की इन सब करतूतों का आनंद उठा रही थी.
रामु ने अपनी चड्डी चढ़ाने की कोशिश की तो सासुमाँ डांटकर बोली, "हाथ हटा! मैं भी तो देखूं जिस लौड़े के लिये मेरी बहु ने घर की इज़्ज़त मिट्टी मे मिला दी है, वह कितना बड़ा है!"
सासुमाँ ने छड़ी से खींचकर रामु की चड्डी ज़मीन पर गिरा दी, तो रामु पूरी तरह नंगा हो गया. सासुमाँ ने फिर उसके नंगे लन्ड को डंडे से छेड़ना शुरु किया.
थोड़ी ही देर मे रामु का लन्ड खड़े होकर अपने पूरे आकर मे आ गया. सासुमाँ ने अब छड़ी फेक दी और रामु के करीब जाकर उसके लन्ड को हाथ से पकड़ लिया. मुट्ठी मे लेकर लन्ड की लंबाई, मोटाई सब नापा. उसके पेलड़ को भी उंगलियों से छेड़कर देखा. रामु ने आंख बंद कर ली और उसका शरीर उत्तेजना मे कांपने लगा.
"ठीक-ठाक है, तेरा लन्ड. गुलाबी के किस्मत मे यही लिखा है तो वह बेचारी भी क्या करे!" सासुमाँ रामु के खड़े लन्ड को हिलाते हुए बोली, "हाँ तो बता, किशन और बहु की चुदाई देखने के बाद तुने क्या किया?"
"मालकिन, जब भाभी कपड़े पहिन कर घर को लौट रही थी, हम उनको पूछे वह काहे अपने देवर के साथ मुंह काला कर रही थी." रामु बोला, "हम बोले की हम मालकिन को सब बता देंगे!"
"ऐसा कहा तुने?" सासुमाँ ने पूछा.
"जी, मालकिन!" रामु बोला, "पर भाभी बोली, रामु सासुमाँ को मत बताओ. तुम चाहो तो मेरी जवानी से खेल सकते हो."
"फिर तुने क्या कहा?"
"हम कहे कि भाभी हमारे लिये माँ समान होती है!" रामु बोला.
"अच्छा? बड़े उच्च विचार हैं तेरे! फिर तु उसे कैसे चोद बैठा?" सासुमाँ ने पूछा. वह तो जानती थी रामु सरासर झूठ बोल रहा है.
रामु थोड़ा हिचकिचा कर बोला, "भाभी फिर अपनी साड़ी का पल्लु गिरा दी और अपना बिलाउज और बिरा खोलकर अपने नंगे जोबन हमको दिखाई. बोली, रामु चखकर देखोगे मेरे जोबन?"
"ओहो! तुने कोई जबरदस्ती नही की?" सासुमाँ बोली.
रामु ने देखा कि सासुमाँ उसकी कहानी पर विश्वास नही कर रही है तो वह बोला, "मालकिन, थोड़ी सी जबरदस्ती किये थे हम. भाभी को किसन भैया के साथ देखकर हम थोड़े भावुक हो गये थे. पर भाभी हमरा पूरा साथ दी थी."
"ठीक है. आगे बोल!" सासुमाँ बोली. वह धीरे धीरे रामु के लन्ड को हिलाये जा रही थी.
"हम भाभी को पकड़कर इस झुरमुट मे ले आये, और फिर उनके जोबन को बहुत पियार किये." रामु ने कहा.
"प्यार किया मतलब क्या?" सासुमाँ ने पूछा.
"मतलब, दबाये और चूसे." रामु ने कहा.
"कैसी लगी तुझे मेरी बहु की चूचियां?" सासुमाँ ने पूछा.
"अच्छी लगी, मालकिन." रामु ने कहा. फिर उसने जोड़ा, "बहुत गोरे गोरे और कसे कसे हैं भाभी के जोबन."
"मेरे चूचियों से भी अच्छी हैं?" सासुमाँ ने रामु से पूछा.
रामु ने कोई जवाब नही दिया. बस हैरान होकर सासुमाँ को देखने लगा. वह सोच मे पड़ गया कि आखिर यह हो क्या रहा है!
सासुमाँ ने अपने साड़ी का आंचल कंधे से गिरा दिया और बोली, "अच्छा अब ठीक से देखकर बता. बहु की चूचियां अच्छी हैं या मेरी?"
रामु के सामने तुम्हारी मामीजी की ब्लाउज़ मे कसी बड़ी-बड़ी चूचियां थी जो मेरे से दुगुने आकर की थी. उसने छू के देखने के लिये हाथ उठाया फिर हाथ नीचे कर लिया.
"अरे हाथ लगाकर देख ले! बहुतों ने हाथ लगाये हैं मेरी चूचियों को." सासुमाँ बोली. उनका हाथ अब भी रामु के मोटे काले लन्ड को धीरे धीरे हिलाये जा रहा था.
रामु ने एक हाथ बढ़ाकर सासुमाँ के दो चूचियों को धीरे से दबाया पर वह कुछ बोला नही.
सासुमाँ ने कहा, "क्या रे! ज़ुबान नही है क्या?
"अच्छी है मालकिन." रामु ने कहा, "आपके जोबन भी अच्छे हैं."
"लगता है तुने ठीक से देखा नही." सासुमाँ बोली, "ठहर, ब्लाउज़ उतारकर दिखाती हूँ."
रामु की फटी-फटी आंखों के सामने सासुमाँ अपने ब्लाउज़ के हुक खोलने लगी. हुक खोलकर रामु की तरफ़ पीठ करके बोली, "रामु, ज़रा मेरी ब्लाउज़ उतार दे."
रामु ने सासुमाँ की ब्लाउज़ उतार दी और अपने कंधे पर रख ली.
"अच्छा, अब मेरी ब्रा भी उतार दे." सासुमाँ ने कहा.
रामु ने अपने दो कांपते हाथ बढ़ाये और सासुमाँ के ब्रा का हुक खोलने लगा. पर शायद हैरत, डर, और उत्तेजना मे उसके हाथ कांप रहे थे, या फिर हुक बहुत टाईट थी, जिसकी वजह से हुक खुल ही नही रहा था.
"तु क्या कर रहा है, रामु!" सासुमाँ जोर से दहाड़ उठी, "एक हुक भी नही खोला जाता है तुझसे? चूतिये, गुलाबी की ब्रा खोले बिना ही उसे चोदता है क्या?"
"ख-खोल रहे हैं, मालकिन." रामु ने कहा और थोड़ी मशक्कत के बाद हुक खुल गया. रामु ने सासुमाँ की ब्रा उनके बाहों से अलग किया और अपने कंधे पर रख लिया.
सासुमाँ ने कहा, "अब पीछे से मेरी दोनो चूचियों को पकड़. उन्हे दबा के देख. उनकी घुंडियों को मीस के देख. फिर बता, मेरी चूचियां अच्छी हैं या मेरी बहु की."
रामु ने ऐसा ही किया. सासुमाँ की पपीते जैसे बड़ी बड़ी चूचियों को पीछे से पकड़ा और दबाने और मसलने लगा. उसे इतना जोश आ गया कि उसने अचानक उसने सासुमाँ की दोनो चूचियों को जोर से पकड़कर उन्हे खींचकर अपने नंगे बदन से चिपका लिया और अपना खड़ा लन्ड उनके चूतड़ पर दबा दिया और उनके कंधे को चूमने लगा.
"अबे सुअर की औलाद! कर क्या रहा है तु?" सासुमाँ गुस्से से बोली, "तुझे मैने कहा कि मेरी गांड मार? फिर क्यों मेरी गांड मे अपना लौड़ा ठूंस रहा है? तुझे कहा है मेरी चूचियों का निरीक्षण कर. बस उतना ही कर जो कहा जाये!"
रामु झट से अलग हो गया.
सासुमाँ उसकी तरफ़ मुड़ी और बोली, "अब बता, क्या सोचा तुने."
"मालकिन, आपके जोबन बहुत बड़े और सख्त हैं." रामु बोला.
"लगता है तुने ठीक से मेरी चूचियों का निरीक्षण नही किया है." सासुमाँ बोली, "मेरी चूचियों को मुंह मे लेकर चूस और बता उनका स्वाद मेरी बहु की चूचियों से अच्छा है या नही."
झाड़ी के आड़ मे खड़ी मैं सासुमाँ की इन सब करतूतों का आनंद उठा रही थी.