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xossip hindi - गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग

Posted: 05 May 2017 09:48
by sexy

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कहानी के पात्र

वीणा - उम्र 22 साल. कहानी की पहली वर्णनकर्ता.
मीना - उम्र 23 साल. वीणा के ममेरे भाई बलराम की पत्नी. कहानी की दूसरी वर्णनकर्ता.
गिरिधर - उम्र 45 साल. वीणा के मामाजी और मीना के ससुर.
कौशल्या - उम्र 42 साल. वीणा की मामीजी और मीना की सास.
बलराम - उम्र 24 साल. वीणा के ममेरे भाई और मीना के पति.
किशन - उम्र 18 साल. वीणा का ममेरा भाई और मीना का देवर.
रामु - उम्र 26 साल. गिरिधर के घर का नौकर.
गुलाबी - उम्र 19 साल. रामु की पत्नी.
अमोल - उम्र 22 साल. मीना का छोटा भाई.
विश्वनाथ - उम्र 48 साल. मामाजी के मित्र.
नीतु - उम्र 18 साल. वीणा की छोटी बहन.

xossip hindi - गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग

Posted: 05 May 2017 09:48
by sexy

गाँव के रंग सास, ससुर, और बहु के संग - 1




प्रिय पाठकों, जैसा कि आप जानते हैं, मेरा नाम वीणा है. मैं गाँव मेहसाना, ज़िला रतनपुर की रहने वाली हूं. मेरी उम्र 22 साल है, फ़िगर 34/27/35, और रंग बहुत गोरा है. मेरी पिछली कहानी मे मैने सोनपुर के मेले मे मेरे मामा, मामी और उनकी बहु मीना के साथ अपने अनुभव के बारे मे लिखा था. आपने पढ़ा किस तरह मेले मे मेरी और मीना भाभी का गैंग-रेप हुआ. बाद मे मामाजी के दोस्त विश्वनाथजी के घर मे बलात्कारियों ने हम दोनो के साथ मेरी मामी की भी चुदाई की. और आपने यह भी पड़ा किस तरह मामाजी ने मुझे और अपनी बहु को भी चोदा.

कहानी के अंत मे मामा, मामी, और भाभी ने योजना बनायी कि किस तरह वे घर जाकर अपनी अवैध हवस का खेल जारी रखेंगे. मामी और भाभी अपने गाँव खानपुर के लिये हाज़िपुर स्टेशन पर उतर गये. मामाजी मुझे घर छोड़ने के लिये मेरे साथ आये.

अब आगे की कहानी...


मामाजी और मै शाम तक एक तांगे मे बैठकर गाँव मेहसाना पहुंचे. मामाजी के आवाज़ लगाते ही मेरे पिताजी, मेरी माँ, और मेरी छोटी बहन नीतु घर के बाहर आये. मामाजी ने अपने जीजा (मेरे पिताजी) और अपनी दीदी (मेरी माँ) के पाँव छुये.

"गिरिधर, कोई परेशानी तो नही हुई सोनपुर के मेले मे?" पिताजी ने मामाजी से पूछा.
"नही, जीजाजी." मामाजी मुझे आंख मारकर बोले, "परेशानी कैसी? बहुत मज़ा लिया वीणा बिटिया ने!"

सुनते ही नीतु बिफर पड़ी, "पिताजी! देखिये वीणा दीदी ने कितना मज़ा किया मेले मे! आप लोगों ने मुझे जाने ही नही दिया!"
पिताजी नीतु को बोले, "अरे तू कैसे जाती, बेटी? इतना बुखार था तुझे उस दिन!"
मामाजी बोले, "नीतु बिटिया, अगले साल जब सोनपुर मे मेला लगेगा हम तुझे ज़रूर ले जायेंगे!"

यूं ही बातें करते हुए हम अन्दर आ गये. रात के खाने तक हम सब सिर्फ़ मेले के बारे मे ही बातें करते रहे. मामाजी और मुझे बहुत कुछ बना-बना कर बोलना पड़ा क्योंकि हम लोगों ने मेला तो कम देखा था और बाकी सब कुकर्म ही ज़्यादा किये थे.

रात को खाने के बाद हम सोने चले गये. मामाजी को मेरे कमरे मे सोने को दिया गया. मैं उस रात नीतु के कमरे मे सोई.

नीतु काफ़ी रात तक मुझसे मेले के बारे मे पूछती रही फिर थक कर सो गयी.

उसके सोते ही मैं बिस्तर से उठी, धीरे से दरवाज़ा खोलकर बाहर आयी और अपने कमरे की तरफ़ गयी जहाँ मामाजी सोये हुए थे.

मैने दरवाज़ा खट्खटाया तो मामाजी ने खोला. "अरे वीणा बिटिया, तू यहाँ इतनी रात को?" उन्होने पूछा.

कमरे मे काफ़ी अंधेरा था. अटैचड बाथरूम की बत्ती जल रही थी जिससे थोड़ी रोशनी आ रही थी.

मैने अपने पीछे दरवाज़ा बंद किया और खाट पर जा बैठी.

"मामाजी, मुझे नींद नही आ रही है!" एक कामुक सी अंगड़ाई लेकर मैने कहा.
"तो मेरे कमरे मे क्यों आयी है?" आवाज़ नीची करके मामाजी ने पूछा.
"चुदवाने के लिये, और क्या?" मैने कहा, "आप कल चले जायेंगे. फिर न जाने मेरी किस्मत मे कब कोई लौड़ा होगा. इसलिये आज रात जी भर के आपसे चुदवाऊंगी."
"हश!! धीरे बोल, पागल लड़की!" मामाजी बोले, "यह विश्वनाथ का कोठा नही, तेरे माँ-बाप का घर है. दीदी और जीजाजी ने सुन लिया तो मुझे गोली मार देंगे!"
"मै कुछ नही जानती!" मैने हठ कर के कहा, "मुझे आपका लौड़ा चाहिये!"

मामाजी हंसे और बोले, "लौड़ा तो तु ऐसे मांग रही है जैसे कोई लॉलीपॉप हो!"

मामाजी मेरे सामने खड़े थे. मैने टटोलकर लुंगी की गांठ को खोल दी तो लुंगी ज़मीन पर गिर गयी. मैने मामाजी का काला लन्ड अपने हाथ से पकड़ा. उनका मोटा लन्ड पूरा खड़ा नही था पर ताव खा रहा था.

मैने कहा, "मामाजी, आपका लन्ड लॉलीपॉप से कुछ कम नही है. चूस के बहुत स्वाद आता है." बोलकर मैने उनका लन्ड अपने मुंह मे ले लिया और सुपाड़े पर जीभ चलाने लगी.

मामाजी को मज़ा आने लगा. वह दबी आवाज़ मे बोले, "आह! चूस बिटिया, अच्छे से चूस!"

मैं मन लगाकर मामाजी के लन्ड को चूसने लगी और उनके पेलड़ को उंगलियों से सहलाने लगी. जल्दी ही उनका लन्ड फूलकर कड़क हो गया. मामाजी मेरे सर को पकड़कर मेरे मुंह मे अपना लन्ड पेलने लगे.

कुछ देर बाद मामाजी ने मेरे मुंह से अपना लन्ड निकाल लिया और बोले, "चल लेट जा."

मैने खुश होकर अपनी साड़ी उतारनी चाही, तो मामाजी बोले, "कपड़े उतारने का समय नही है. बस लेट कर अपनी टांगें खोल. मैं जल्दी से तुझे चोद देता हूं."
"नंगे हुए बिना मुझे मज़ा नही आयेगा, मामाजी!" मैने आपत्ति जतायी.
"लड़की, अपने बाप के घर मे अपने मामा से चुदवा रही है यही कम है क्या?" मामाजी बोले, "इससे पहले कि किसी को भनक पड़ जाये, अपनी चूत मरा ले और निकल यहाँ से. मेरे घर जब आयेगी तब इत्मिनान से चोदूंगा तुझे."

मै अपनी साड़ी और पेटीकोट कमर तक उठाकर बिस्तर पर लेट गयी, और अपनी दोनो टांगें फैलाकर अपनी चूत मामाजी के आगे कर दी. मेरी चूत इतनी गरम हो गयी थी के उससे पानी चू रही थी.

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Posted: 05 May 2017 09:51
by sexy
मामाजी मेरे पैरों के बीच बैठे. अपने 8 इंच के लन्ड का फूला हुआ सुपाड़ा मेरी चूत के फांक मे रखा और एक जोरदार धक्का मारकर अपना लन्ड 3-4 इंच घुसा दिया. मैं अचानक के धक्के से चिहुक उठी.

"चुप, लड़की! मरवायेगी क्या?" मामाजी ने डांटकर कहा.
"थोड़ा बताकर घुसाइये ना!" मैने जवाब दिया.

मामाजी ने अब धीरे से दबाव देकर अपना पूरा लन्ड मेरी संकरी चूत मे घुसा दिया और मेरे ऊपर सवार हो गये. मैने मामाजी को बाहों मे भर लिया और उनके होठों का चुम्बन करने लगी. मेरे होठों को पीते हुए मामाजी अपनी कमर उठा उठाकर मुझे चोदने लगे.

हम दोनो की ही सांसें तेज चल रही थी पर हम कोई आवाज़ नही कर रहे थे. बस चुपचाप अंधेरे मे लेटे चुदाई किये जा रहे थे. "ठाप! ठाप! ठाप! ठाप!" अंधेरे मे बस यही आवाज़ आ रही थी.

मुझे पेलते पेलते मामाजी बोले, "वीणा, नीतु अब बड़ी हो गयी है, है ना?"
मैं मामाजी के ठापों का कमर उठा उठाकर जवाब दे रही थी. मैं बोली, "हाँ, इस साल 18 की होगी."
"उसके मम्मे अब मीसने लायक बड़े हो गये हैं. अमरूद जैसे."
"मामाजी, अब आपकी बुरी नज़र मेरी छोटी बहन पर भी पड़ गयी है!" मैने कहा.
"क्यों इसमे क्या बुराई है?" मामाजी ठाप लगाते हुए बोले. "जब बड़ी भांजी को चोद सकता हूं तो छोटी को क्यों नही चोद सकता?"
"तो बुला लाऊं उसे यहाँ? उसके बुर का भी उदघाटन कर दीजिये!" मैने कहा.
"हो सकता है उसके बुर का उदघाटन पहले ही हो चुका हो!" मामाजी बोले, "आजकल के लड़कियों का कुछ पता नही. अब तेरे को ही देख ना. शकल से तु चुदैल थोड़े ही लगती है. कभी मौका मिला तो फुर्सत से नीतु को चोदुंगा. तु उसे पटाने मे मेरी मदद करेगी ना?"
"हाँ मामाजी." मैने कहा. चूत मे मामाजी के मोटे लन्ड की ठोकर से मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मै कुछ भी मानने को राज़ी थी.

धीरे धीरे हमारी सांसें और तेज हो गयी और मामाजी के धक्के भी तेज हो गये. अब मेरे लिये अपनी मस्ती को दबाये रखना मुश्किल हो रहा था.

"ओह!! मामाजी! आह!! और जोर से मामाजी! आह!!" मैं दबी आवाज़ मे बोलने लगी.
मामाजी कमर चलाते हुए बोले, "चुप कर, साली! बाहर कोई सुन लेगा!"

पर मुझसे खुद पर काबू नही हो रहा था. माँ, बाप, और छोटी बहन से छुपकर चुदवाने मे अलग ही मज़ा आ रहा था. मैं बस झड़ने ही वाली थी. मामाजी को जोर से जकड़कर मैने कहा, "और जोर से मामाजी! हाय और जोर से! क्या मज़ा आ रहा है चूत मराने मे!! उम्म!! आह!! हाय मैं गयी! हाय मैं गयी, मामाजी!!"

मेरी आवाज़ इतनी ऊंची हो गयी कि दरवाज़े के बाहर कोई होता तो ज़रूर सुन लेता. मामाजी ने मेरे होठों को अपने होठों से दबाकर बंद कर दिया जिससे मैं कोई आवाज़ न निकाल सकूं. फिर जोरों की ठाप देते हुए वह मेरी चूत मे झड़ने लगे. हम दोनो के मुंह से सिर्फ़ "ऊंघ!! ऊंघ!! ऊंघ!!" की आवाज़ निकल रही थी.

पुरा झड़ने के बाद मामाजी मेरे ऊपर कुछ देर लेटे हांफ़ते रहे. मैं भी उनके नीचे लेटे अपनी चूत मे उनके गरम वीर्य के अहसास का मज़ा लेती रही.

शांत होने पर मामाजी उठे और उन्होने अपना ढीला लौड़ा मेरी चूत से निकाल लिया. मेरी चूत से उनका वीर्य बहकर निकलने लगा.

"चल उठ, छोकरी." मामाजी बोले. "आज बस इतनी ही चुदाई होगी. इससे पहले कोई आ जाये, मेरे कमरे से निकल."

एक बार झड़के मेरी भूख नही मिटी थी. मैं तो रात भर चुदवा सकती थी. पर हालात को देखते हुए मैं बिस्तर से उठी, अपनी साड़ी ठीक की और चुपके से मामाजी के कमरे से निकल आई. मामाजी ने मेरे पीछे दरवाज़ा बंद कर लिया.

मेरे जांघों पर मामाजी का वीर्य बहने लगा था. अपनी चूत को अपनी जांघों से दबाकर मैं किसी तरह नीतु के कमरे तक पहुंची. मैने धीरे से नीतु के कमरे का दरवाज़ा खोला और आकर बिस्तर पर उसके पास लेट गयी.

अंधेरे मे नीतु के हलके सांसों की आवाज़ आ रही थी. शायद वह पूरे समय सोती ही रही थी और उसे मेरे आने-जाने का कुछ पता नही चला था.

पर अचानक नीतु ने पूछा, "दीदी, तु कहां गयी थी?"

मेरा दिल धक! से धड़क उठा.

"अरे तु सोयी नही है? मैं...मैं कहीं नही गयी थी!" मैने हड़बड़ाकर जवाब दिया.
"झूठ मत बोल, दीदी! तु मामाजी के पास क्यों गयी थी?" नीतु ने पूछा.
"ओह! वह तो ऐसे ही!" मैने हंसने की कोशिश की और कहा, "हम मीना भाभी और मामीजी के बारे मे बात कर रहे थे."
"पता नही तुम लोग क्या बातें कर रहे थे, पर अजीब आवाज़ें आ रही थी अन्दर से." नीतु बोली.
"कमीनी, तु कान लगाकर सुन रही थी क्या?" मैने पूछा.
"और तुम लोग अंधेरे मे बैठ के क्यों बातें कर रहे थे?" नीतु ने उलटे पूछा.
"तु अन्दर देख भी रही थी, साली!" मुझे तो डर से पसीने आने लगे. "ठहर मैं माँ से तेरी शिकायत करती हूं."
"दीदी, मैं तेरी जगह होती तो माँ-पिताजी को शिकायत करने नही जाती." नीतु ने मुझे धमकाया.
"क्या मतलब है तेरा?"
"कुछ नही!" नीतु बोली. उसने एक बड़ी सी नकली जम्हाई ली और कहा, "बड़ी नींद आ रही है, दीदी. मैं तो चली सोने."

नीतु ने मेरे किसी सवाल का और जवाब नही दिया. मैने अंधेरे मे लेटे सोचती रही नीतु ने क्या देखा और सुना होगा, और न जाने कब मेरी आंख लग गई.


अगले दिन सुबह नाश्ते के बाद मामाजी हाज़िपुर लौटने वाले थे. मैने सोचा मीना भाभी न जाने क्या कर रही होगी. उनका हाल-चाल पूछने के लिये, और मामाजी के साथ अपनी कल रात की चुदाई के अनुभव को बताने के लिये, मैने भाभी को एक चिट्ठी लिखी.

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प्रिय मीना भाभी,

आशा है घर पे सब कुशल-मंगल है. बलराम भैया, किशन, और बाकी सब लोग कैसे हैं? घर का हाल-चाल बताना.

भाभी, कल रात मौका देखकर मैने मामाजी से एक बार चुदवा लिया. मुझे तो उनसे सारी रात चुदवाने का मन था, पर वही नही माने.

खैर, आज सुबह मामाजी हाज़िपुर के लिये रवाना हो रहे हैं. दोपहर तक घर पहुंच जायेंगे. यह चिट्ठी मैं उनके हाथों भिजवा रही हूँ.

चिट्ठी का जवाब जल्दी देना. सोनपुर से लौटते समय ट्रेन मे तुमने जो योजना बनायी थी वह सफ़ल हो रही है या नही, सब खोलकर लिखना. मामीजी को मेरा प्रणाम कहना.

तुम्हारी वीणा